शनिवार, 25 अगस्त 2018

कृष्ण सरस्वती साधना


कृष्ण सरस्वती साधना


         श्रीकृष्ण जन्माष्टमी निकट ही है। यह २ सितम्बर २०१८ को आ रही है। आप सभी को जन्माष्टमी पर्व की अग्रिम रूप ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          भगवान विष्णु के अवतरण प्रत्येक युग में सम्भव हुए हैं और होते रहेंगे, किन्तु भगवान श्रीकृष्ण जैसा अवतरण दुर्लभ ही हुआ है तथा इस बात की पुष्टि केवल जनसामान्य की भावनाओं के आधार पर ही नहीं वरन् शास्त्रीय आधार पर भी की जा सकती है, जहाँ सभी शास्त्रों ने एकमत होकर श्रीकृष्ण अवतरण को ही सम्पूर्ण माना है, जीवन के भौतिक पक्षों के प्रति भी और जीवन के आध्यात्मिक पक्षों के प्रति भी। भगवान श्रीकृष्ण की प्रचलित छवि में उन्हें ईश्वर तो माना गया, किन्तु उनके साथ जुड़े साधना पक्ष और उनकी प्रबल आध्यात्मिकता की उपेक्षा कर दी गई, जबकि इस बात के पूर्ण प्रमाण मिलते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण कुशल तन्त्रवेत्ता और साधक भी थे, जिन्होंने शिष्य रूप में अपने गुरु सान्दीपनि के आश्रम में रहकर अनेक साधनाओं को सीखा था।

          वस्तुतः कृष्ण "शब्द" ही अपने आप में जीवन का अत्यन्त गम्भीर रहस्य समेटे हैं। इस शब्द में जहाँ "क" काम का सूचक है, वहीं "ऋ" श्रेष्ठ शक्ति का प्रतीक है, "ष" षोडश कलाओं का रहस्य समेटे हैं तो "ण" निर्वाण का बोध कराने में समर्थ है और इस प्रकार "कृष्ण" शब्द का तात्पर्य है, जो सामर्थ्य पूर्वक पूर्ण भोग व मोक्ष दोनों में समान गति बनाए रखे तथा इसी कारण भगवान श्रीकृष्ण की साधना-आराधना अपने आप में सम्पूर्ण साधना कही गई।

          भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी अनेक कथाओं के पीछे भी उनके साधक होने की कथा ही निहित है, जिसे अलौकिकता का आवरण दे दिया गया है और उनसे जुड़ा साधना पक्ष भुला दिया गया है। अनेक राक्षसों का वध या अपने गुरु के मृत पुत्र को जीवित करना जैसी अनेक घटनाएँ उनकी इसी विलक्षणता की परिचायक है और ऐसे अलौकिक युगपुरुष के जन्म का अवसर तो स्वतः सिद्ध मुहूर्त है ही।

          क्या आपके बच्चे पढ़ाई में कमजोर हैं? क्या आपका मन अशान्त रहता है? घर में प्रसनता की कमी है?  क्या आप ज्ञान प्राप्ति चाहते हैं, जिससे एक नई  रोशनी पैदा हो और घर में प्रेम पूर्ण वातावरण बने, जिससे प्रसन्न होकर आपका हृदय खुशी से भर उठे, बुद्धि का विकास हो और सभी ओर से प्रसन्नता  के सन्देश मिले। यह हर कोई चाहता है कि उसे दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हो। मैं अपने स्वयं के द्वारा परखी हुई या यह कहूँ कि पूर्ण रूप से अनुभूत की हुई साधना कृष्ण सरस्वती साधनासाबर विधि से दे रहा हूँ।

                    मुझे आशा है कि आप इस साधना का लाभ अवश्य प्राप्त करेंगे। यह साधना आपकी बुद्धि का विकास करेगी और मन में एक नवीन शक्ति का संचार करेगी। यह एक ओर जहाँ बच्चों में ज्ञान का विकास करती है, वही दूसरी ओर मन में असीम शान्ति भी देती है। आत्मचिन्तन का मार्ग खोल देती है। दिल में प्रेम के अंकुर को प्रस्फुटित कर चेतना को विकसित करती है, क्योंकि श्रीकृष्ण प्रेम का ही रूप है।

        यह मन्त्र उच्चकोटि के सन्तों द्वारा दिया गया है और आपके लाभ  के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है।

साधना विधान :-----------

          इस साधना को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से आरम्भ करें। इसके अलावा इसे बसन्त पंचमी अथवा किसी भी शुक्लपक्ष के गुरुवार से शुरू किया जा सकता है। इस साधना के लिए तिथि पूर्णिमा, पंचमी एवं अष्टमी विशेष रूप से फलदायी है।

          इस साधना के लिए सुबह का समय उत्तम है, लेकिन यह साधना रात्रि ७ बजे से १० बजे के मध्य भी की जा सकती है। साधना हेतु वस्त्र पीले रंग के उत्तम है, लेकिन सफ़ेद वस्त्र भी धारण किए जा सकते हैं। आसन पीला या सफ़ेद रंग का ही लें। साधना में दिशा उत्तर रहेगी।

          साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर साधना के निमित्त बैठ जाए। अपने बाजोट पर पीला वस्त्र बिछा लें। उस पर पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी, भगवान श्रीकृष्ण एवं माँ सरस्वती के चित्र स्थापित कर लें। शुद्ध घी का दीपक और धूप-अगरबत्ती प्रज्ज्वलित कर दें।

          सबसे पहले सद्गुरुदेवजी का सामान्य पूजन करें और साबर कृष्ण सरस्वती मन्त्र को एक कागज़ पर लिखकर उनके श्रीचरणों में रख दें। फिर गुरुमन्त्र की चार माला जाप के पश्चात् गुरुदेव से साधना की आज्ञा लेते हुए मन्त्र ग्रहण करें। अर्थात कागज़ उठाकर मन्त्र बोलकर तीन बार पढ़ें। मन्त्र पढ़ते समय ऐसी भावना करें कि जैसे सद्गुरुदेवजी आपको मन्त्र दे रहे हैं और आप मन्त्र ग्रहण कर रहे हैं। इस तरह मन्त्र दीक्षा पूर्ण हो जाती है और गुरुजी का साधना के लिए आशीर्वाद भी मिल जाता है।

          गुरुपूजन के पश्चात भगवान गणेशजी का, फिर माँ सरस्वती का पूजन करें और अन्त में कृष्ण भगवान का पूजन कर सफलता के लिए प्रार्थना करें। पूजन में गंगाजल, कुमकुम, अक्षत, पीले पुष्प, फल, मिश्री, मेवा आदि का प्रयोग करें। भोग में दूध का बना मिष्ठान्न अर्पित करें, यदि खीर हो तो अति उत्तम होगा। इस साधना में शुद्ध घी का दीपक जलाना आवश्यक है, जो साधना काल में पूरे समय जलता रहना चाहिए।

          इसके बाद मन्त्र जप शुरू कर सकते हैं। यह ११ दिन की साधना है। जाप के लिए माला सफेद हकीक की लें, अगर ना मिले तो एक घण्टा जाप कर सकते हैं, मिल जाए तो बहुत उत्तम होगा। आपको नित्य  ११ माला मन्त्र जाप करना है।

साबर मन्त्र :-----------

   ।। उठ सरस्वती दीपक बालो, हरिमन्दिर से हुए चानन,
    गुरु के ज्ञान ध्यान, पैज पत रखे आप श्री कृष्ण भगवान ।।

UTH SARASWATI DEEPAK BAALO HARIMANDIR SE HUYE CHAANAN
GURU KE GYAAN DHYAAN PAIJ PAT RAKHE AAP SHRIKRISHNA BHAGWAAAN.

          अगर हो सके तो दीपक की स्थिर लौ पर त्राटक करते हुए जाप करें। इस साधना के लिए यन्त्र की आवश्यकता नहीं है।

          मन्त्र जाप समाप्त होने के बाद एक आचमनी जल छोड़कर समस्त जाप समर्पित कर दे। इस प्रकार यह साधना ११ दिनों तक सम्पन्न करे।

          ११ वें दिन खीर का भोग बनाएं और पूजन करें। साधना पूर्ण होने पर खीर का भोग अर्पित करें। उसमें थोड़ा-सा शहद मिला कर जाप के वक़्त सामने अपने पास रखें। बाद में खीर अपने बच्चों को और पत्नी सहित स्वयं या घर के छोटे-बड़े सभी सदस्यों को वितरित कर दें और सद्गुरुदेवजी को धन्यवाद दें तथा सफलता की प्रार्थना करें। माला आप स्वयं पहन लें या बच्चे को पहना दें।

          आपकी साधना सफल हो और भगवान श्रीकृष्ण व माँ सरस्वती आपकी मनोकामना पूरी करे! मैं सद्गुरुदेव भगवानजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।

कोई टिप्पणी नहीं: