शिवपंचाक्षरी मन्त्र साधना
श्रावण मास समीप ही है। इस बार यह मास १० जुलाई २०१७ से आरम्भ हो रहा है। चूँकि श्रावण मास शिव आराधना–साधना के लिए श्रेष्ठ
माह है‚ अतः इसे शिव मास भी कहा जाता है।
आप सभी को श्रावण मास की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!
जैसे सभी देवताओं में त्रिपुरारि भगवान शंकर देवाधिदेव हैं, ठीक उसी प्रकार सब मन्त्रों में भगवान शिव का पंचाक्षर मन्त्र ‘नम: शिवाय’ श्रेष्ठ है। इसी मन्त्र के आदि में प्रणव (ॐ) लगा देने पर यह षडक्षर मन्त्र ‘ॐ नम: शिवाय’ हो जाता है। वेद अथवा शिवागम में षडक्षर मन्त्र स्थित है; किन्तु संसार में पंचाक्षर मन्त्र को मुख्य माना गया है।
संसार बन्धन में बँधे हुए मनुष्यों के हित की कामना से स्वयं भगवान शिव ने ‘ॐ नम: शिवाय’ इस आदि मन्त्र का प्रतिपादन किया। पंचाक्षर व षडक्षर मन्त्र में सच्चिदानन्दस्वरूप भगवान शिव सदा रमते हैं। इसे ‘पंचाक्षरी विद्या’ भी कहते हैं। यह मन्त्रराज समस्त श्रुतियों का सिरमौर, सम्पूर्ण उपनिषदों की आत्मा और शब्द समुदाय का बीजरूप है। ‘नम: शिवाय’ मन्त्र के जप से मनुष्य परमात्मा शिव में मिलकर शिवस्वरूप हो जाता है।
भगवान शिव का कथन है– "यह सबसे पहले मेरे मुख से निकला; इसलिए यह मेरे ही स्वरूप का प्रतिपादन करने वाला है। पंचाक्षर तथा षडक्षर मन्त्र में वाच्य-वाचक भाव के द्वारा शिव स्थित हैं। शिव वाच्य हैं और मन्त्र वाचक है। यह पंचाक्षर व षडक्षर मन्त्र शिववाक्य होने से सिद्ध है। इसलिए मनुष्य को नित्य पंचाक्षर मन्त्र का जाप करना चाहिए।"
"यह पंचाक्षर मन्त्र मोक्षमार्ग को प्रकाशित करने वाला दीपक है। अविद्या के समुद्र को सोखने वाला वडवानल है और पापों के जंगल को जला डालने वाला दावानल है। यह पंचाक्षर मन्त्र वटवृक्ष के बीज की भाँति हैं, जो सब कुछ देने वाला तथा सर्वसमर्थ माना गया है।" ---(स्कन्दपुराण)
इस मन्त्र के लिए लग्न, तिथि, नक्षत्र, वार और योग का विचार नहीं किया जाता। यह मन्त्र कभी सुप्त नहीं होता, सदा जाग्रत ही रहता है। अत: पंचाक्षर मन्त्र ऐसा है, जिसका अनुष्ठान सब लोग सब अवस्थाओं में कर सकते हैं।
शिवपुराण
में भगवान शिव कहते है– "जिसकी जैसी समझ हो, जिसे जितना समय मिल सके, जिसकी जैसी बुद्धि, शक्ति, सम्पत्ति, उत्साह, योग्यता और प्रेम हो, उसके अनुसार वह जब कभी, जहाँ कहीं अथवा जिस किसी भी
साधन द्वारा मेरी पूजा कर सकता है। उसकी की हुई वह पूजा उसे अवश्य मोक्ष की प्राप्ति
करा देगी।"
पंचाक्षर मन्त्र की महिमा
पंचाक्षर मन्त्र अल्पाक्षर एवं अति सूक्ष्म है, किन्तु इसमें अनेक अर्थ भरे हैं।
–यह सबसे पहला मन्त्र है।
–यह मन्त्र भगवान शिवजी का हृदय–शिवस्वरूप, गूढ़ से भी गूढ़ और मोक्ष ज्ञान देने वाला है।
–यह मन्त्र समस्त वेदों का सार है।
–यह अलौकिक मन्त्र मनुष्यों को आनन्द प्रदान करने वाला और मन को निर्मल करने वाला है।
–पंचाक्षर मन्त्र मुक्तिप्रद–मोक्ष देने वाला है।
–यह शिव की आज्ञा से सिद्ध है।
–पंचाक्षर मन्त्र नाना प्रकार की सिद्धियों को देने वाला है।
–इस मन्त्र के जाप से साधक को लौकिक, पारलौकिक सुख, इच्छित फल एवं पुरुषार्थ की प्राप्ति हो जाती है।
–यह मन्त्र मुख से उच्चारण करने योग्य, सम्पूर्ण प्रयोजनों को सिद्ध करने वाला व सभी विद्याओं का बीजस्वरूप है।
–यह मन्त्र सम्पूर्ण वेद, उपनिषद्, पुराण और शास्त्रों का आभूषण व सब पापों का नाश करने वाला है।
‘शिव’ यह दो अक्षरों का मन्त्र ही बड़े-बड़े पातकों का नाश करने में समर्थ है और उसमें नम: पद जोड़ दिया जाए, तब तो वह मोक्ष देने वाला हो जाता है।
श्रीशिव पंचाक्षर स्तोत्र के पाँचों श्लोकों में क्रमशः न, म, शि, वा और य अर्थात् ‘नम: शिवाय’ है, अत: यह स्तोत्र शिवस्वरूप है –
विभिन्न कामनाओं के लिए पंचाक्षर मन्त्र का प्रयोग
विभिन्न कामनाओं के लिए गुरु से मन्त्र ज्ञान प्राप्त करके नित्य इसका ससंकल्प जप करना चाहिए और पुरश्चरण भी करना चाहिए।
–दीर्घायु चाहने वाला गंगा आदि नदियों पर पंचाक्षर मन्त्र का एक लाख जप करे व दुर्वांकुरों, तिल व गिलोय का दस हजार हवन करे।
–अकालमृत्यु भय को दूर करने के लिए शनिवार को पीपलवृक्ष का स्पर्श करके पंचाक्षर मन्त्र का जप करे।
–चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के समय एकाग्रचित्त होकर महादेवजी के समीप जो दस हजार जप करता है, उसकी सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं।
–विद्या और लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए अंजलि में जल लेकर शिव का ध्यान करते हुए ग्यारह बार पंचाक्षर मन्त्र का जप करके उस जल से शिवजी का अभिषेक करना चाहिए।
–एक सौ आठ बार पंचाक्षर मन्त्र का जप करके स्नान करने से सभी तीर्थों में स्नान का फल मिलता है।
–प्रतिदिन एक सौ आठ बार पंचाक्षर मन्त्र का जप करके सूर्य के समक्ष जल पीने से सभी उदर रोगों का नाश हो जाता है।
–भोजन से पूर्व ग्यारह बार पंचाक्षर मन्त्र के जप से भोजन भी अमृत के समान हो जाता है।
–रोग शान्ति के लिए पंचाक्षर मन्त्र का एक लाख जप करें और नित्य १०८ आक की समिधा से हवन करें।
पंचाक्षर मन्त्र की महिमा
पंचाक्षर मन्त्र अल्पाक्षर एवं अति सूक्ष्म है, किन्तु इसमें अनेक अर्थ भरे हैं।
–यह सबसे पहला मन्त्र है।
–यह मन्त्र भगवान शिवजी का हृदय–शिवस्वरूप, गूढ़ से भी गूढ़ और मोक्ष ज्ञान देने वाला है।
–यह मन्त्र समस्त वेदों का सार है।
–यह अलौकिक मन्त्र मनुष्यों को आनन्द प्रदान करने वाला और मन को निर्मल करने वाला है।
–पंचाक्षर मन्त्र मुक्तिप्रद–मोक्ष देने वाला है।
–यह शिव की आज्ञा से सिद्ध है।
–पंचाक्षर मन्त्र नाना प्रकार की सिद्धियों को देने वाला है।
–इस मन्त्र के जाप से साधक को लौकिक, पारलौकिक सुख, इच्छित फल एवं पुरुषार्थ की प्राप्ति हो जाती है।
–यह मन्त्र मुख से उच्चारण करने योग्य, सम्पूर्ण प्रयोजनों को सिद्ध करने वाला व सभी विद्याओं का बीजस्वरूप है।
–यह मन्त्र सम्पूर्ण वेद, उपनिषद्, पुराण और शास्त्रों का आभूषण व सब पापों का नाश करने वाला है।
‘शिव’ यह दो अक्षरों का मन्त्र ही बड़े-बड़े पातकों का नाश करने में समर्थ है और उसमें नम: पद जोड़ दिया जाए, तब तो वह मोक्ष देने वाला हो जाता है।
शिव पंचाक्षर स्तोत्र
श्रीशिव पंचाक्षर स्तोत्र के पाँचों श्लोकों में क्रमशः न, म, शि, वा और य अर्थात् ‘नम: शिवाय’ है, अत: यह स्तोत्र शिवस्वरूप है –
नागेन्द्रहाराय
त्रिलोचनाय भस्मांगरागाय महेश्वराय। नित्याय
शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै ‘न’काराय नम: शिवाय।।१।।
मन्दाकिनी सलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मन्दारपुष्पबहुपुष्प
सुपूजिताय तस्मै ‘म’काराय नम: शिवाय।।२।।
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्रीनीलकण्ठाय
वृषध्वजाय तस्मै ‘शि’काराय नम: शिवाय।।३।।
वशिष्ठकुम्भोद्भव गौतमार्य मुनीन्द्रदेवार्चित शेखराय।
चन्द्रार्क वैश्वानरलोचनाय तस्मै ‘व’काराय नम: शिवाय।।४।।
यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै ‘य’काराय नम: शिवाय।।५।।
पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत् शिव सन्निधौ। शिवलोकमवाप्नोति
शिवेन सह मोदते॥६।।
विभिन्न कामनाओं के लिए गुरु से मन्त्र ज्ञान प्राप्त करके नित्य इसका ससंकल्प जप करना चाहिए और पुरश्चरण भी करना चाहिए।
–दीर्घायु चाहने वाला गंगा आदि नदियों पर पंचाक्षर मन्त्र का एक लाख जप करे व दुर्वांकुरों, तिल व गिलोय का दस हजार हवन करे।
–अकालमृत्यु भय को दूर करने के लिए शनिवार को पीपलवृक्ष का स्पर्श करके पंचाक्षर मन्त्र का जप करे।
–चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के समय एकाग्रचित्त होकर महादेवजी के समीप जो दस हजार जप करता है, उसकी सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं।
–विद्या और लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए अंजलि में जल लेकर शिव का ध्यान करते हुए ग्यारह बार पंचाक्षर मन्त्र का जप करके उस जल से शिवजी का अभिषेक करना चाहिए।
–एक सौ आठ बार पंचाक्षर मन्त्र का जप करके स्नान करने से सभी तीर्थों में स्नान का फल मिलता है।
–प्रतिदिन एक सौ आठ बार पंचाक्षर मन्त्र का जप करके सूर्य के समक्ष जल पीने से सभी उदर रोगों का नाश हो जाता है।
–भोजन से पूर्व ग्यारह बार पंचाक्षर मन्त्र के जप से भोजन भी अमृत के समान हो जाता है।
–रोग शान्ति के लिए पंचाक्षर मन्त्र का एक लाख जप करें और नित्य १०८ आक की समिधा से हवन करें।
‘शिव’ नामरूपी मणि जिसके कण्ठ में
सदा विराजमान रहती है,
वह
नीलकण्ठ का ही स्वरूप बन जाता है। शिव नाम रूपी कुल्हाड़ी से संसाररूपी वृक्ष जब
एक बार कट जाता है तो वह फिर दोबारा नहीं जमता। भगवान शंकर पार्वतीजी से कहते हैं
कि कलिकाल में मेरी पंचाक्षरी विद्या का आश्रय लेने से मनुष्य संसार-बन्धन से
मुक्त हो जाता है। मैंने बारम्बार प्रतिज्ञापूर्वक यह बात कही है कि यदि पतित, निर्दयी, कुटिल, पातकी मनुष्य भी मुझमें मन
लगा कर मेरे पंचाक्षर मन्त्र का जप करेंगे तो वह उनको संसार-भय से तारने वाला
होगा।
यह साधना मूल रूप से भगवान्
शिव की कृपा प्राप्ति हेतु है और पंचाक्षरी मन्त्र से शिवत्व की प्राप्ति भी सहज
सम्भव है। इतिहास और हमारे पुराण प्रमाण हैं कि भगवती पार्वती ने भी इसी मन्त्र के
द्वारा भगवान् शिव को प्राप्त करने के लिए पहला कदम बढ़ाया था। शिव यानि परब्रह्म
और परब्रह्म की प्राप्ति यानी मूल उत्स से लेकर सहस्त्रार तक पहुँचने की क्रिया।
साधना और प्रयोग में अन्तर है। यदि इस क्रिया को
साधनात्मक रूप में करना है तो समय और श्रम दोनों ही लगेंगे और यदि मात्र प्रयोग
करना है तो कृपा तो प्राप्त हो ही जाती है क्योंकि महादेव तो
भोलेनाथ है ही।
साधना सामग्री :---------
शिव लिंग निर्माण हेतु ---
तन्त्र साधकों के लिए शमशान की मिट्टी और भस्म, श्यामा (काली) गाय का गोबर
दूध और घी, गंगा जल, शहद बेलपत्र, धतूरा फल और फूल, श्वेतार्क के पुष्प, भाँग, रुद्राक्ष की माला, लाल आसन, लाल वस्त्र।
इन सभी सामग्री को पहले ही एकत्रित कर लें।
स्नानादि से निवृत्त होकर जहाँ पर शिवलिंग का निर्माण करना है, उस स्थान को गोबर से लीप कर
पवित्र कर लें तथा मिटटी, भस्म और गोबर को गंगा जल से भिगोकर एक १६ इंच
लम्बा और पाँच इंच मोटा यानि गोलाई ५ इंच होनी चाहिए, शिवलिंग का निर्माण करें।
साधना विधान :--------
सर्वप्रथम स्नानकर पीले वस्त्र पहिनकर पीला आसन पर उत्तर दिशा की ओर मुख कर आसन ग्रहण करें और संकल्प
लेकर साधना शुरु करें। यदि आप साधना करना चाहते
हैं तो संकल्प पूर्ण सिद्धि का लें और यदि प्रयोग करना चाहते
हैं तो उस कार्य सिद्धि का संकल्प लें, जिस कार्य की आप पूर्ति चाहते हैं। ११ या २१ दिन में ३१०००, ५१०००, १२५००० आदि निश्चित करके आप प्रतिदिन कितनी माला जाप निश्चित करना चाहते हैं, उसका भी संकल्प लें। किन्तु पूर्ण सिद्धि
हेतु साधना में ५ लाख जाप ही आवश्यक है।
मन्त्र जाप के पूर्व सामान्य गुरुपूजन करके चार माला अपने गुरुमन्त्र
की अवश्य करें, जो इस साधना में आपके शरीर को निरन्तर ऊर्जा और
सुरक्षा प्रदान करती रहेगी। गौरी गणेश की स्थापना सुपारी में कलावा लपेटकर करें और उनका पूजन सम्पन्न करें तथा अपनी दाहिनी ओर भैरव की
स्थापना करें, यदि आपके पास भैरव यन्त्र या गुटिका हो तो अति
उत्तम या फिर सुपारी का भी उपयोग कर सकते हैं। अब भगवान् भैरव का पूजन सिन्दूर और
लाल फूल से करें तथा गुड का भोग लगाएं। उनके सामने एक सरसों के तेल का दीपक प्रज्ज्वलित करें‚ जो मन्त्र जाप तक जलता रहे।
अब अपने बाँईं ओर एक घी का दीपक प्रज्ज्वलित करें, जो कि पूरे साधना काल में
अखण्ड जलता रहे।
ध्यान :-------
ध्यायेन्नित्यम् महेशं
रजतगिरिनिभं चारूचन्द्रावतंसं ,
रत्नाकल्पोज्ज्व्लाङ्गं
परशुमृगवराभीति हस्तं प्रसन्नम्।
पद्मासीनं समन्तात्
स्तुतममरगणैव्याघ्रकृत्तिं वसानं,
विश्ववाद्यम्
विश्ववन्द्यम् निखिल भयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रं।।
ॐ श्री उमामहेश्वराभ्यां
नमः आवाहयामि, स्थापयामि पूजयामि।।
इसके बाद भगवान् शिव का पूजन पंचामृत, गंगाजल, फूल एवं नैवेद्य आदि से
करें और एक पंचमुखी रुद्राक्ष की छोटे दानों की माला शिव को पहना दें और दूसरी
माला से जाप करें। साधना के सम्पन्न होते ही यह माला दिव्य माला हो जाएगी, जो जीवनपर्यन्त आपके काम
आएगी।
अब एक पाठ रुद्राष्टक का
करें :-----------
रुद्राष्टक
नमामीशमीशान
निर्वाण रूपं, विभुं
व्यापकं ब्रह्म वेद: स्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥१॥
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥२॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥३॥
चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालुम्।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि॥४॥
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम्।
त्रय:शूल निर्मूलनं शूलपाणिं, भजे अहं भवानीपतिं भाव गम्यम्॥५॥
कलातीत-कल्याण-कल्पांतकारी, सदा सज्जनानन्द दातापुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद-प्रसीद प्रभो मन्माथारी॥६॥
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजंतीह लोके परे वा नाराणम्।
न तावत्सुखं शांति संताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वभुताधिवासम् ॥७॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम्।
जरा जन्म दु:खौद्य तातप्यमानं, प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो॥८॥
रूद्राष्टक इदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये,
ये पठंति नरा भक्त्या तेषां शम्भु प्रसीदति ॥९॥
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥१॥
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥२॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥३॥
चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालुम्।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि॥४॥
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम्।
त्रय:शूल निर्मूलनं शूलपाणिं, भजे अहं भवानीपतिं भाव गम्यम्॥५॥
कलातीत-कल्याण-कल्पांतकारी, सदा सज्जनानन्द दातापुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद-प्रसीद प्रभो मन्माथारी॥६॥
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजंतीह लोके परे वा नाराणम्।
न तावत्सुखं शांति संताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वभुताधिवासम् ॥७॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम्।
जरा जन्म दु:खौद्य तातप्यमानं, प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो॥८॥
रूद्राष्टक इदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये,
ये पठंति नरा भक्त्या तेषां शम्भु प्रसीदति ॥९॥
इसके बाद भगवान् शिव से मन्त्र जप की सिद्धि हेतु प्रार्थना करें।
विनियोग :---
ॐ अस्य
श्री शिवपंचाक्षर मन्त्रस्य वामदेव ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, सदाशिवो देवता, ॐकारो बीजम्, नमः
शक्तिः, शिवाय इति कीलकम मम श्रीसाम्बसदाशिव प्रीत्यर्थं न्यासे जपे च विनियोगः।
ऋष्यादि न्यास :---
ॐ वामदेव ऋषये नमः शिरसि। (सिर को स्पर्श करें)
ॐ अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे। (मुख को स्पर्श करें)
ॐ श्रीसदाशिवो देवताये
नमः हृदये। (हृदय को स्पर्श करें)
ॐ बीजाय नमः गुह्ये। (गुह्य स्थान स्पर्श करे)
ॐ नमः शक्तये पादयोः। (पैरों को स्पर्श करें)
ॐ शिवाय इति कीलकाय नमः नाभौ। (नाभि को स्पर्श करें)
ॐ श्रीसाम्बसदाशिव
प्रीत्यर्थे विनियोगाय नमः सर्वांगे। (सभी अंगों को स्पर्श करें)
कर न्यास :---
ॐ ॐ अँगुष्ठाभ्याम् नमः। (दोनों तर्जनी उंगलियों से दोनों अँगूठे को स्पर्श करें)
ॐ नं तर्जनीभ्याम् नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों तर्जनी उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ मं मध्यमाभ्याम् नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों मध्यमा उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ शिं अनामिकाभ्याम् नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों अनामिका उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ वां कनिष्ठिकाभ्याम् नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों कनिष्ठिका उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ यं करतलकरपृष्ठाभ्याम् नमः। (परस्पर दोनों हाथों को स्पर्श करें)
अंगन्यास :---
ॐ ॐ हृदयाय नमः। (हृदय को स्पर्श करें)
ॐ नं शिरसे स्वाहा। (सिर को स्पर्श करें)
ॐ मं शिखाये वषट्। (शिखा को स्पर्श करें)
ॐ शिं कवचाय हुं। (भुजाओं को स्पर्श करें)
ॐ वां नेत्रत्रयाय वौषट्। (नेत्रों को स्पर्श करें)
ॐ यं अस्त्राय फट। (सिर से घूमाकर तीन बार ताली बजाएं)
इति हृदयादिषडंगन्यासः।
अब अपनी संकल्प शक्तिअनुसार जाप करें ---
मन्त्र :—--------
।। ॐ नम: शिवाय ।।
OM NAMAH SHIVAAY.
इसके बाद फिर एक पाठ
रुद्राष्टक का और पुनः गुरु मन्त्र। पूरे साधना काल में आपका यही क्रम होना चाहिए। किसी भी साधना में
नियम संयम का पालन पूरी दृढ़ता से होना ही चाहिए न कि अपने अनुसार कम या ज्यादा।
नियम :-------
जो कि अन्य साधना में होते
हैं- पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन, भूमि शयन, क्षौर कर्म वर्जित आदि।
विशेष :---------
यह साधना शैव साधकों की है, अतः उनमें कुछ अघोर पद्धति
से भी होंगे और कुछ वामपंथ से भी। अतः उनके लिए उनका तीनों सन्ध्या अर्थात क्रम
पूजन अति आवश्यक है और यदि उन्हें शिव का अघोर पूजन क्रम आता हो तो प्रतिदिन उसी
पूजन को करें। क्योंकि मूलतः यह अघोर साधना ही है, किन्तु सौम्यता का समावेश लिए हुए।
इस साधना क्रम को पूर्णिमा
से प्रारम्भ कर पूरे श्रावण माह तक सम्पन्न करना है, अतः जो भी साधना का संकल्प
लें, अच्छे से सोच समझकर करें
ताकि बीच में साधना क्रम टूटे नहीं।
तो, जो साधक हैं वे तैयारी करें
और हो जाएँ शिवमय।
आपकी यह साधना निखिल कृपा से सफल हो और भगवान शिव का आपको आशीष प्राप्त हो। मैं सद्गुरुदेव भगवानजी से ऐसी ही
प्रार्थना करता हूँ।
इसी कामना के साथ
ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश
आदेश आदेश।।
4 टिप्पणियां:
Jii ha
ॐ नमः शिवाय
Namo narayanaya
प्रणाम गुरुदेव,
गुरुदेव मेरी इच्छा है की में इस आने वाले श्रावण मास में 51 दिन में 6 लाख ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप करू और उसका दशांश निकाल के इतनी क्षमता तो नही है की हवन कर सकू पर उसके दशांश निकाल के उसका फिर पाठ कर सकता हूं क्या में यह क्रम अपना सकता हूं कृपया बताएं
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