मातंगी हृदय साधना
धनार्थी धनमाप्नोति दारार्थी सुन्दरीं प्रियाम्।
स्तोत्र पाठ के उपरान्त निम्न मन्त्र का ११ माला जाप मूँगा माला या रुद्राक्ष माला से सम्पन्न करें -----
दसमहाविद्याओं में मातंगी महाविद्या
नवम् स्थान पर अवस्थित है। एक कथा के अनुसार एक बार मतंग मुनि ने सभी जीवों को वश
में करने के उद्देश्य से नाना प्रकार के वृक्षों से परिपूर्ण कदम्ब वन में देवी
श्रीविद्या त्रिपुरा की आराधना की। मतंग मुनि के कठिन साधना से सन्तुष्ट होकर देवी
त्रिपुरसुन्दरी ने अपने नेत्रों से एक श्याम वर्ण की सुन्दर कन्या का रूप धारण
किया, जिन्हें राजमातंगिनी कहा गया एवं जो
देवी मातंगी का ही एक स्वरूप हैं। यह दक्षिणाम्नाय तथा पश्चिमाम्नाय की देवी हैं।
राजमातंगी, सुमुखी, वश्यमातंगी तथा कर्णमातंगी इनके नामान्तर हैं। मातंगी के भैरव का नाम
मतंग हैं। ब्रह्मयामल इन्हें मतंग मुनि की कन्या बताता है।
भगवती मातंगी की साधना करने वाला उत्तम
पुरुष शास्त्र, वेद-वेदांग का ज्ञाता, दैवज्ञ, संगीत एवं सर्व विद्याओं से सम्पन्न हो जाता है। इनके मन्त्रों से
वशीकरण एवं सम्मोहन कार्यों में शीघ्र सफलता मिलती है। देवताओं से पूजित यह विद्या
किसी भी कन्या के विवाह में उत्पन्न दोषों को समाप्त करती है। इस विद्या के प्रभाव
से अन्न-धन की वृद्धि, वाक् सिद्धि एवं परम सौभाग्य की
प्राप्ति होती है। भगवती मातंगी के कई स्वरूपों की उपासना प्रचलित है।
नारदपंचरात्र के अनुसार कैलाशपति भगवान
शिव को चाण्डाल तथा देवी शिवा को ही उच्छिष्ट चाण्डालिनी कहा गया हैं। माँ मातंगी
को ही उच्छिष्ट चाण्डालिनी भी कहते हैं, इस
रूप में माँ साधक के समस्त शत्रुओ एवं विघ्नों का नाश करती है, फिर साधक के जीवन में ग्रह या अन्य
बाधा का कोई असर नहीं होता । जिसे संसार में सब ठुकरा देते हैं, जिसे संसार में कहीं पर भी आसरा नहीं
मिलता, उसे माँ उच्छिष्ट चाण्डालिनी अपनाती है
और साधक को वो शक्ति प्रदान करती है, जिससे
ब्रह्माण्ड की समस्त सम्पदा साधक के सामने तुच्छ-सी नजर आती है।
यहाँ पर माँ मातंगी हृदय साधना
प्रस्तुत की जा रही है, जो कि पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी प्रदत्त
ही है। माँ मातंगी अपने भक्त के सभी दुःखों व दरिद्रता का नाश कर समस्त सुखों को
देने वाली देवी है और यह मातंगी हृदय साधना द्वारा ही सम्भव है। इसे सम्पन्न करने
के बाद मातंगी उस साधक के हृदय में निवास करने लगती है और उसके भौतिक जीवन के
समस्त दुःखों का निराकरण कर उसके जीवन को श्रेष्ठता प्रदान करने में सहायक होती है
।
चूँकि दस महाविद्याएँ भोग और मोक्ष
दोनों को प्रदान करने वाली है और मातंगी उन दस महाविद्याओं में से एक हैं, जिनकी साधना करना अपने आप में श्रेष्ठ
कहा जाता है। इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने कहा है -----
"मातंगी मेवत्वं पूर्ण, मातंगी पूर्णत्व उच्चते"
इससे यह स्पष्ट होता है कि मातंगी
एकमात्र श्रेष्ठतम साधना है और एकमात्र मातंगी ही पूर्णता दे सकती है। महर्षि
विश्वामित्र ने यहाँ तक कहा है कि बाकी नौ महाविद्याओं का भी समावेश मातंगी साधना
में स्वतः ही हो गया है। चाहे हम बाकी नौ साधनाएँ नहीं भी करें और केवल मातंगी
साधना को ही सम्पन्न कर लें तो भी अपने आप में पूर्णता प्राप्त हो सकती है। इसलिए
शास्त्रों में मातंगी साधना को सर्वोच्चता और श्रेष्ठता दी गई है।
मातंगी शब्द जीवन के प्रत्येक पक्ष को
उजागर करने की क्रिया के का नाम है और जीवन के सैकड़ों पक्ष हैं, जहाँ भौतिक पक्ष हैं - स्वास्थ्य, आय, धन, कुटुम्ब-सुख, पत्नी, पुत्र, पुत्रियाँ, गृहस्थ सुख, पूर्णायु, भवन सुख, अकाल मृत्यु निवारण, शत्रु
निवारण, भाग्योदय, राज्य सुख, यात्राएँ और सैकड़ों प्रकार की इच्छाओं
की पूर्ति। वैसे ही आध्यात्मिक पक्ष भी है - कुण्डलिनी जागरण, ध्यान, धारणा, समाधि, अपने इष्ट के दर्शन, आने
वाले भविष्य को देख सकने की क्षमता, किसी
भी व्यक्ति के भूतकाल को परखने की पहचान और अन्त में सिद्धाश्रम की प्राप्ति।
ये सभी क्रियाएँ, ये सभी स्थितियाँ केवल मातंगी साधना की
सिद्धि से ही प्राप्त हो सकती है। यदि हम मातंगी साधना को भली प्रकार से सम्पन्न
कर लें तो निश्चय ही ये सारी स्थितियाँ स्वतः ही प्राप्त हो जाती है।
जिस प्रकार गरुड़ सर्पों का नाश करता
है, उसी प्रकार मातंगी देवी की उपासना के
फलस्वरूप साधक भी अपने शत्रुओं का नाश करने में समर्थ होता है। मातंगी साधना कई
विधियों से सम्पन्न की जाती है, किन्तु
श्रेष्ठ मातंगी हृदय साधना सम्पन्न कर अपने शत्रुओं पर पूर्ण विजय तथा पूर्ण
मान-सम्मान, प्रतिष्ठा व ऐश्वर्य प्राप्त किया जा
सकता है।
मातंगी हृदय साधना को सम्पन्न करने के
बाद ही शारीरिक, मानसिक तथा आर्थिक तीनों ही दृष्टियों
से पूर्ण स्वस्थ, सुखी और सम्पन्नता युक्त जीवन प्राप्त
किया जा सकता है और गृहस्थ जीवन भी पूर्णतः सुखमय बनाया जा सकता है। अतः इस साधना
के माध्यम से साधक सभी भौतिक सुखों की प्राप्ति करने में सक्षम हो सकता है।
साधना विधान :------------
यह एक ऐसी साधना है, जो कि पूरे जीवन को बदल कर रख देती है, इसलिए इस साधना को अक्षय तृतीया से
वैशाख पूर्णिमा के मध्य सम्पन्न करना श्रेष्ठ माना गया है। अक्षय तृतीया के दिन ''मातंगी जयन्ती'' होती है और वैशाख पूर्णिमा के दिन ''मातंगी सिद्धि दिवस'' होता हैै। इन १२ दिनों में आप चाहे जितना
मन्त्र जाप कर सकते हैं। समय का अपने आप में विशेष महत्व होता है, इसलिए साधक को विशेष क्षणों का लाभ अवश्य उठाना चाहिए।
यदि किसी कारणवश साधक इस समयावधि में
यह साधना सम्पन्न न कर सके तो तो किसी भी नवरात्रि के प्रथम दिन अथवा किसी भी
रविवार के दिन से यह साधना आरम्भ कर सकता है। इस साधना को कोई भी स्त्री या पुरुष
सिद्ध कर सकता है।
साधक को चाहिए कि वह प्रातःकाल या
रात्रि नौ बजे बाद स्नानादि से निवृत्त होकर लाल वस्त्र धारण कर उत्तर दिशा की ओर
मुँह करके लाल आसन पर बैठ जाएं। अपने सामने बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर गुरु
चित्र या गुरु यन्त्र और मातंगी यन्त्र या मातंगी चित्र का स्थापन कर दें।
सबसे पहले साधक संक्षिप्त गुरुपूजन
सम्पन्न करें और गुरुमन्त्र का पाँच माला जाप करें। फिर पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी से
मातंगी हृदय साधना सम्पन्न करने के लिए मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लें और उनसे
साधना की पूर्णता एवं सफलता के लिए निवेदन करें।
इसके बाद सामान्य गणपति पूजन करके एक
माला "ओम् वक्रतुण्डाय हुम्" मन्त्र का जाप करें और गणपतिजी से
साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।
तत्पश्चात साधक भगवान भैरवनाथजी का
स्मरण करके एक माला "ॐ हूं भ्रं हूं मतंग भैरवाय नमः" मन्त्र का जाप करें और भैरवनाथजी से
साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए निवेदन करें।
इसके बाद साधक को चाहिए कि वह साधना के
पहले दिन संकल्प अवश्य लें। साधक दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प लें कि “मैं अमुक नाम का साधक गोत्र अमुक आज से श्री मातंगी हृदय
साधना का अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हूँ। मैं नित्य ११ दिनों तक ११ माला मन्त्र जाप
करूँगा। माँ ! मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे मन्त्र की सिद्धि प्रदान करे तथा
इसकी ऊर्जा को मेरे भीतर स्थापित कर दे।”
संकल्प लेने के बाद माँ भगवती मातंगी
का पूजन कुमकुम, अक्षत, धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य आदि से सामान्य पूजन करें।
फिर निम्न विनियोग मन्त्र का उच्चारण
करके एक आचमनी जल भूमि पर छोड़ दें -----
विनियोग :-----
ॐ अस्य श्रीमातंगीहृदयस्तोत्रमन्त्रस्य
दक्षिणामूर्तिर्ऋषिर्विराट्छन्दो मातंगी देवता ह्रीं बीजं, हूं शक्तिः, क्लीं कीलकं
सर्ववांछितार्थसिद्धये पाठे विनियोगः।
ऋष्यादिन्यास :-----
ॐ दक्षिणामूर्ति ऋषये नमः शिरसि। (सिर को स्पर्श करें)
विराट् छन्दसे नमः मुखे। (मुख को स्पर्श करें)
मातंगी देवतायै नमः हृदि। (हृदय को स्पर्श करें)
ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये।
(गुह्य स्थान को स्पर्श करें)
हूं शक्तये नमः पादयोः। (पैरों को स्पर्श करें)
क्लीं कीलकाय नमः नाभौ। (नाभि को स्पर्श करें)
विनियोगाय नमः सर्वांगे। (सभी अंगों को स्पर्श करें)
कर-न्यास :-----
ॐ ह्रीं ऐं श्रीं
अँगुष्ठाभ्याम् नमः। (दोनों तर्जनी उंगलियों से दोनों अँगूठे को स्पर्श
करें)
नमो भगवति तर्जनीभ्याम्
नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों तर्जनी उंगलियों को स्पर्श
करें)
उच्छिष्ट चाण्डालि
मध्यमाभ्याम् नमः।
(दोनों
अँगूठों से दोनों मध्यमा उंगलियों को स्पर्श करें)
श्रीमातंगेश्वरि
अनामिकाभ्याम् नमः।
(दोनों
अँगूठों से दोनों अनामिका उंगलियों को स्पर्श करें)
सर्वजनवशंकरि
कनिष्ठिकाभ्याम् नमः।
(दोनों
अँगूठों से दोनों कनिष्ठिका उंगलियों को स्पर्श करें)
स्वाहा करतलकर
पृष्ठाभ्याम् नमः। (परस्पर दोनों हाथों को स्पर्श करें)
हृदयादि-न्यास :-----
ॐ ह्रीं ऐं श्रीं हृदयाय
नमः। (हृदय को स्पर्श करें)
नमो भगवति शिरसे स्वाहा। (सिर को स्पर्श करें)
उच्छिष्ट चाण्डालि शिखायै
वषट्। (शिखा को स्पर्श करें)
श्रीमातंगेश्वरि कवचाय
हुम्। (भुजाओं को स्पर्श करें)
सर्वजनवशंकरि नेत्रत्रयाय
वौषट्। (नेत्रों को स्पर्श करें)
स्वाहा अस्त्राय फट्। (सिर से घूमाकर तीन बार ताली बजाएं)
ध्यान :-----
हाथ जोड़कर माँ भगवती मातंगी का ध्यान
करें -----
ॐ घनश्यामलांगीं स्थितां रत्नपीठे शुकस्योदितं श्रृण्वतीं रक्त
वस्त्राम्।
सुरापानमत्तां
सरोजस्थितां श्रीं भजे वल्लकीं वादयन्तीं मतंगीम्।।
तत्पश्चात मातंगी हृदय स्तोत्र का पाठ
करें -----
मातंगी हृदय स्तोत्रम्
एकदा कौतुकाविष्टा
भैरवं भूतसेवितम्।
भैरवी परिपप्रच्छ
सर्वभूतहिते रता।।१।।
श्रीभैरव्युवाच
भगवन्सर्वधर्मज्ञ भूतवात्सल्यभावन।
अहं तु वेत्तुमिच्छामि
सर्वभूतोपकारम्।।२।।
केन मन्त्रेण जप्तेन
स्तोत्रेण पठितेन च।
सर्वथा
श्रेयसाम्प्राप्तिर्भूतानां भूतिमिच्छताम्।।३।।
श्रीभैरव उवाच
श्रृणु देवि तव
स्नेहात्प्रायो गोप्यमपि प्रिये।
कथयिष्यामि तत्सर्वं
सुखसम्पत्करं शुभम्।।४।।
पठतां श्रृण्वतां
नित्यं सर्वसम्पतित्तदायकम्।
विद्यैश्वर्यसुखावाप्ति
मंगलप्रदमुत्तमम्।।५।।
मातंग्या हृदयं स्तोत्र
दुःखदारिद्रयभंजनम्। मंगलं मंगलानां च अस्ति
सर्वसुखप्रदम्।।६।।
ध्यान :----------
ॐ श्यामां
शुभ्रांशुभालां त्रिकमलनयनां रत्नसिंहासनस्थां
भक्ताभीष्टप्रदात्रीं
सुरनिकरकरा सेव्यकञ्जांघ्रियुग्माम्।
नीलाम्भोजां सुकान्तिं
निशिचर निकरारण्य दावाग्निरूपां
पाशं खड्गं चतुर्भिर्वर
कमलकरैः खेटकं च अंकुश्च।।
मातंगीमावहन्तीमभिमत
फलदां मोदिनीं चिन्तयामि।
मूल स्तोत्रम् :----------
ॐ नमस्ते मातंग्यै
मृदुमुदिततन्वै तनुमतां परश्रेयोदायै कमलचरण ध्यान मनसाम्।
सदा सं सेव्यायै सदसि
पिबुधैर्द्दिव्यधिषणैर्द्दयार्द्रायै देव्यै दुरितदलनोद्दण्डमनसे।।१।।
परं मातस्ते यो जपति
मनुमव्यग्रहृदयः कवित्वं कल्पानां कलयति सुकल्पः प्रतिपदम्।
अपि प्रायो
रम्यामृतमयपदा तस्य ललिता नटीं मन्या वाणी नटति रसनायां चपलिता।।२।।
तव ध्यायन्तो ये
वपुरनुजपन्ति प्रवलितं सदा मन्त्रं मातर्न हि भवति तेषां परिभवः।
कदम्बानां मालाः शिरसि
तव युञ्जन्ति सदये भवन्ति प्रायस्ते युवतिजनयूथस्व वशगाः।।३।।
सरोजैस्साहस्रैस्सरसिजपद
द्वन्द्वमपि ये सहस्त्र नामोक्त्वा तदपि तव ङेन्तं मनुमितम्।
पृथङनाम्ना तेनायुत कलितमर्चन्ति खलु ते सदा देवव्रात प्रणमित
पदांभोजयुगलाः।।४।।
तव प्रीत्यै
मातर्द्ददति बलिमाधाय बलिना समत्स्यं माँसं वा सुरुचिरसितं राजरुचितम्।
सुपुण्या ये
स्वान्तस्तव चरणमोदैक रसिका अहो भाग्यं तेषां त्रिभुवनमलं वश्यमखिलम्।।५।।
लसल्लोल श्रोत्राभरण
किरणक्रान्तिकलितं मितस्मितत्यापन्न प्रतिभितममन्नं विकरितम्।
मुखाम्भोजं मातस्तव
परिलुठद्भ्रूमधुकरं रमा ये ध्यायन्ति त्यजति न हि तेषां सुभवनम्।।६।।
परः श्रीमातंग्या जयति
हृदयाख्यस्सुमनसामयं सेव्यस्सद्योभिमत फलदश्चाति ललितः।
नरा ये श्रृण्वन्ति
स्तवमपि पठन्तिममनिशं न तेषां दुःप्राप्यं जगति यदलभ्यं दिविषदाम्।।७।।
फलश्रुति
धनार्थी धनमाप्नोति दारार्थी सुन्दरीं प्रियाम्।
सुतार्थी लभते पुत्रं
स्तवस्यास्य प्रकीर्तनात्।।१।।
विद्यार्थी लभते विद्यां
विविधां विभवप्रदाम्।
जयार्थी पठनादस्य जयं
प्राप्नोति निश्चितम्।।२।।
नष्टराज्यो लभेद्राज्यं
सर्वसम्पत्समाश्रितम्।
कुबेरसम सम्पत्तिः स
भवेद्धृदयं पठन्।।३।।
किमन्त्र बहुनोक्तेन
यद्यदिच्छति मानवः।
मातंगीहृदयस्तोत्र
पाठात्तत्सर्वमाप्नुयात्।।४।।
स्तोत्र पाठ के उपरान्त निम्न मन्त्र का ११ माला जाप मूँगा माला या रुद्राक्ष माला से सम्पन्न करें -----
मन्त्र :----------
।। ॐ ह्रीं ऐं श्रीं नमो भगवति उच्छिष्ट चाण्डालि श्रीमातंगेश्वरि
सर्वजनवशंकरि स्वाहा ।।
OM
HREEM AYIEM SHREEM NAMO BAGWATI UCHCHHISHT CHAANDAALI SHRIMAATANGESHWARI
SARVAJANVASHANKARI SWAAHAA.
मन्त्र जाप के बाद पुनः मातंगी हृदय
स्तोत्र का पाठ करें।
स्तोत्र पाठ के बाद समस्त जाप एक आचमनी
जल छोड़कर माँ भगवती मातंगी को ही समर्पित कर दें।
इस साधना क्रम को नित्य ग्यारह दिनों
तक सम्पन्न करना चाहिए।
साधना समाप्ति के पश्चात यन्त्र एवं माला को विसर्जित कर दें। चित्र
को पूजा स्थल में ही स्थापित रहने दें।
इस प्रकार यह साधना पूर्ण हो जाती है
और साधक को ३-४ महीने के अन्दर-अन्दर ही अनुकूल फल प्राप्त होने लगते हैं, आवश्यकता है तो साधना में पूर्ण
श्रद्धा और विश्वास से साथ मन्त्र जाप सम्पन्न करने की।
आपकी साधना सफल हो और आपकी मनोकामना
पूर्ण हो! मैं पूज्यपाद सद्गुरुदेव निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना
करता हूँ।
इसी कामना के साथ
ॐ
नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।
5 टिप्पणियां:
गुरुदेव का बहुत-बहुत धन्यवाद इस प्रकार की साधना भेजते हैं
Kya bina guru k sadhana ko kar sakte hai
बिना गुरु के कोई भी साधना सम्पन्न नहीं की जा सकती।
मेरी बहन की शादी नहीं हो पा रही है... मै संकल्प लेकर मातंगिनी साधना करती..... मैने अरविंद श्री माली जी से गुरु दीक्षा ली है.... जय श्री गुरु देव
Bahut hi Sundar
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