गुरुवार, 25 मई 2017

धूमावती साधना

धूमावती साधना


           माँ भगवती धूमावती जयन्ती निकट ही है।  इस बार माँ भगवती धूमावती जयन्ती जून २०१७ को आ रही है। आप सभी को माँ भगवती धूमावती जयन्ती  की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ।

           दस महाविद्याओं में धूमावती महाविद्या साधना अपने आप में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इस साधना के बारे में दो बातें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं, प्रथम तो यह दुर्गा की विशेष कलह निवारिणी शक्ति है, दूसरी यह कि यह पार्वती का विशाल एवं रक्ष स्वरूप है, जो क्षुधा से विकलित कृष्ण वर्णीय रूप है, जो अपने भक्तों को अभय देने वाली तथा उनके शत्रुओं के लिए साक्षात काल स्वरूप है।

           साधना के क्षेत्र में दस महाविद्याओं के अन्तर्गत धूमावती का स्थान सर्वोपरि माना जाता है। जहाँ धूमावती साधना सम्पन्न होती है, वहाँ इसके प्रभाव से शत्रु-नाश एवं बाधा-निवारण भी होता है। धूमावती साधना मूल रूप से तान्त्रिक साधना है। इस साधना के सिद्ध होने पर भूत-प्रेत, पिशाच व अन्य तन्त्र-बाधा का साधक व उसके परिवार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, अपितु उसकी प्रबल से प्रबल बाधाओं का भी निराकरण होने लग जाता है।

           धूमावती का स्वरूप क्षुधा अर्थात भूख से पीड़ित स्वरूप है और इन्हें अपने भक्षण के लिए कुछ न कुछ अवश्य चाहिए। जब कोई साधक भगवती धूमावती की साधना सम्पन्न करता है तो देवी प्रसन्न होकर उसके शत्रुओं का भक्षण कर लेती है और साधक को अभय प्रदान करती हैं।

           दस महाविद्याओं में धूमावती एक प्रमुख महाविद्या है, जिसे सिद्ध करना साधक का सौभाग्य माना जाता है। जो लोग साहसपूर्वक जीवन को निष्कण्टक रूप से प्रगति की ओर ले जाना चाहते हैं, उन्हें भगवती धूमावती साधना सम्पन्न करनी ही चाहिए। भगवती धूमावती साधना सिद्ध होने पर साधक को निम्न लाभ स्वतः मिलने लगते हैं -----

१. धूमावती सिद्ध होने पर साधक का शरीर मजबूत व सुदृढ़ हो जाता है। उस पर गर्मी, सर्दी, भूख, प्यास और किसी प्रकार की बीमारी का तीव्र प्रभाव नहीं पड़ता है।
२. धूमावती साधना सिद्ध होने पर साधक की आँखों में साक्षात् अग्निदेव उपस्थित रहते हैं और वह तीक्ष्ण दृष्टि से जिस शत्रु को देखकर मन ही मन धूमावती मन्त्र का उच्चारण करता है, वह शत्रु तत्क्षण अवनति की ओर अग्रसर हो जाता है।
३. इस साधना के सिद्ध होने पर साधक की आँखों में प्रबल सम्मोहन व आकर्षण शक्ति आ जाती है।
४. इस साधना के सिद्ध होने पर भगवती धूमावती साधक की रक्षा करती रहती है और यदि वह भीषण परिस्थितियों में या शत्रुओं के बीच अकेला पड़ जाता है तो भी उसका बाल भी बाँका नहीं होता है। शत्रु स्वयं ही प्रभावहीन एवं निस्तेज हो जाते हैं।

           इस साधना के माध्यम से आपके जितने भी शत्रु हैं, उनका मान-मर्दन कर जो भी आप पर तन्त्र प्रहार करता है, उस पर वापिस प्रहार कर उसी की भाषा में जबाब दिया जा सकता है। जिस प्रकार तारा समृद्धि और बुद्धि की, त्रिपुर सुन्दरी पराक्रम और सौभाग्य की सूचक मानी जाती है, ठीक उसी प्रकार धूमावती शत्रुओं पर प्रचण्ड वज्र की तरह प्रहार कर नेस्तनाबूँद करने वाली देवी मानी जाती है। यह अपने आराधक को बड़ी तीव्र शक्ति और बल प्रदान करने वाली देवी है, जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूपों में साधक की सहायता करती  है। सांसारिक सुख अनायास ऐसे ही प्राप्त नहीं हो जाते, उनके लिए साधनात्मक बल की आवश्यता होती है, जिससे शत्रुओं से बचा रहकर बराबर उन्नति के मार्ग पर अग्रसर रहा जा सके। मगर आज के समय में आपके आसपास रहने वाले और आपके नजदीकी लोग ही कुचक्र रचते रहते हैं और आप सोचते रहते हैं कि आपने किसी का कुछ भी बिगाड़ा नहीं है तो मेरा कोई क्यों बुरा सोचेगा, काश!ऐसा ही होता!

           मगर सांसारिक बेरहम दुनिया में कोई किसी को चैन  से रहते हुए नहीं देख सकता और आपकी पीठ पीछे कुचक्र चलते ही रहते हैं। इनसे बचाव का एक ही सही तरीका है, धूमावती साधना। इसके बिना आप एक कदम नहीं चल सकते, समाज में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते है कि अचानक से किसी परिवार में परेशानियाँ शुरू हो जाती है और व्यक्ति जब ज्यादा परेशान होता है तो किसी डॉक्टर को दिखाता है, मगर महीनों इलाज कराने के बावज़ूद भी बीमारी ठीक नहीं होती, तब कोई दूसरी युक्ति सोचकर किसी अन्य जानकार को दिखाता है और मालूम पड़ता है कि किसी ने कुछ करा दिया था या टोना-टोटका जैसा कुछ मामला था और जब इलाज कराया, तब वह ५-७ दिन में बिलकुल ठीक हो गया। ऐसे में जो पढ़े-लिखे व्यक्ति होते हैं, उन्हें भी इस पर विश्वास हो जाता है कि वास्तव में इस समाज में रहना कितना मुश्किल काम है।

           धूमावती दारूण विद्या है। सृष्टि में जितने भी दुःख, दारिद्रय, चिन्ताएँ, बाधाएँ  हैं, इनके शमन हेतु धूमावती से ज्यादा श्रेष्ठ उपाय कोई और नहीं है। जो व्यक्ति इस महाशक्ति की आराधना-उपासना करता है, उस पर महादेवी प्रसन्न होकर उसके सारे शत्रुओं का भक्षण तो करती ही है, साथ ही उसके जीवन में धन-धान्य की कमी नहीं होने देती। क्योंकि इस साधना से माँ भगवती धूमावती लक्ष्मी-प्राप्ति में आ रही बाधाओं का भी भक्षण कर लेती है। अतः लक्ष्मी-प्राप्ति हेतु भी इस शक्ति की पूजा करते रहना चाहिए।

साधना विधान :----------
         
           इस साधना को धूमावती जयन्ती, किसी भी माह की अष्टमी, अमावस्या अथवा रविवार के दिन से आरम्भ किया जा सकता है। इस साधना को किसी खाली स्थान पर, श्मशान, जंगल, गुफा या किसी भी एकान्त स्थान या कमरे में करनी चाहिए।

           यह साधना रात्रिकालीन है और इसे रात में ९ बजे के बाद ही सम्पन्न करना चाहिए। नहाकर लालवस्त्र धारण कर गुरु पीताम्बर ओढ़कर लाल ऊनी आसन पर बैठकर पश्चिम दिशा की ओर मुँहकर साधना करनी चाहिए।

           साधक अपने सामने चौकी पर लाल वस्त्र बिछा लें। इस साधना में माँ भगवती धूमावती का चित्र, धूमावती यन्त्र और काली हकीक माला की विशेष उपयोगिता बताई गई है, परन्तु यदि सामग्री उपलब्ध ना हो तो किसी ताम्र पात्र में "धूं" बीज का अंकन काजल से करके उसके ऊपर एक सुपारी स्थापित कर दें और उसे ही माँ धूमावती मानकर उसका पूजन करना चाहिए। जाप के लिए रुद्राक्ष माला का उपयोग किया जा सकता है।

           सबसे पहले साधक शुद्ध घी का दीपक प्रज्ज्वलित कर धूप-अगरबत्ती भी लगा दे। फिर सामान्य गुरुपूजन सम्पन्न करे और गुरुमन्त्र का चार माला जाप कर ले। फिर सद्गुरुदेवजी से धूमावती साधना सम्पन्न करने की अनुमति लें और साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।

           इसके बाद साधक संक्षिप्त गणेशपूजन सम्पन्न करे और "ॐ वक्रतुण्डाय हूं" मन्त्र की एक माला जाप करे। फिर भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।

           फिर साधक संक्षिप्त भैरवपूजन सम्पन्न करे और "ॐ अघोर रुद्राय नमः" मन्त्र की एक माला जाप करे। फिर भगवान अघोर रुद्र भैरवजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।

           इसके बाद साधक को साधना के पहिले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए।

           साधक दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प लें कि  मैं अमुक नाम का साधक गोत्र अमुक आज से श्री धूमावती साधना का अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हूँ। मैं नित्य २१ दिनों तक ५१ माला मन्त्र जाप करूँगा। माँ ! मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे मन्त्र की सिद्धि प्रदान करे तथा इसकी ऊर्जा को मेरे भीतर स्थापित कर दे।

           इसके बाद  साधक माँ भगवती धूमावती का सामान्य पूजन करे। काजल, अक्षत, भस्म, काली मिर्च आदि से पूजा करके कोई भी मिष्ठान्न भोग में अर्पित करे।
 
           हाथ में जल लेकर निम्न विनियोग पढ़कर भूमि पर जल छोड़ें -----

विनियोग :-----

           ॐ अस्य धूमावतीमन्त्रस्य पिप्पलाद ऋषिः, निवृच्छन्दः, ज्येष्ठा देवता, धूम्  बीजं, स्वाहा शक्तिः, धूमावती कीलकं ममाभीष्टं सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादि न्यास :-----

ॐ पिप्पलाद ऋषये नमः शिरसि।       (सिर स्पर्श करे)
ॐ निवृच्छन्दसे नमः मुखे।             (मुख  स्पर्श  करे)
ॐ ज्येष्ठा देवतायै नमः हृदि।          (हृदय  स्पर्श  करे)
ॐ धूम्  बीजाय नमः गुह्ये।           (गुह्य  स्थान स्पर्श  करे)
ॐ स्वाहा शक्तये नमः पादयोः।        (पैरों   को   स्पर्श  करे)
ॐ धूमावती कीलकाय नमः नाभौ।      (नाभि स्पर्श करे)
ॐ विनियोगाय नमः सर्वांगे।           (सभी अंगों का स्पर्श करे)

कर न्यास  :-----
 
ॐ धूं धूं अंगुष्ठाभ्याम नमः।      (दोनों तर्जनी उंगलियों से दोनों अँगूठे को स्पर्श करें)
ॐ धूम् तर्जनीभ्यां नमः।          (दोनों अँगूठों से दोनों तर्जनी उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ मां मध्यमाभ्यां नमः।          (दोनों अँगूठों से दोनों मध्यमा उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ वं अनामिकाभ्यां नमः।         (दोनों अँगूठों से दोनों अनामिका उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ तीं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।       (दोनों अँगूठों से दोनों कनिष्ठिका उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ स्वाहा करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः।  (परस्पर दोनों हाथों को स्पर्श करें)

हृदयादि न्यास :-----

ॐ धूं धूं हृदयाय नमः।       (हृदय को स्पर्श करें)
ॐ धूं शिरसे स्वाहा।          (सिर को स्पर्श करें)
ॐ मां शिखायै वषट्।         (शिखा को स्पर्श करें)
ॐ वं कवचाय हुम्।          (भुजाओं को स्पर्श करें)
ॐ तीं नेत्रत्रयाय वौषट्।       (नेत्रों को स्पर्श करें)
ॐ स्वाहा अस्त्राय फट्।       (सिर से घूमाकर तीन बार ताली बजाएं)

           इसके बाद साधक हाथ जोड़कर निम्न श्लोकों का उच्चारण करते हुए माँ भगवती धूमावती का ध्यान करें ---

ध्यान :------

ॐ विवर्णा चंचला दुष्टा दीर्घा च मलिनाम्बरा।
विमुक्त कुन्तला रूक्षा विधवा विरलद्विजा।।
काकध्वज रथारूढ़ा विलम्बित पयोधरा।
शूर्पहस्ताति रक्ताक्षीघृतहस्ता वरान्विता।।
प्रवृद्धघोणा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा।
क्षुत्पिपासार्दिता नित्यं भयदा कलहास्पदा।।

          इस प्रकार ध्यान करने के बाद साधक भगवती धूमावती के मूलमन्त्र का ५१ माला जाप करें ---

मन्त्र :----------

          ।। ॐ धूं धूं धूमावती स्वाहा ।।

OM DHOOM DHOOM DHOOMAAVATI SWAAHAA.

         मन्त्र जाप के उपरान्त साधक निम्न श्लोक का उच्चारण करने के बाद एक आचमनी जल छोड़कर सम्पूर्ण जाप भगवती धूमावती को समर्पित कर दें।

ॐ गुह्यातिगुह्य गोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपं।
     सिद्धिर्भवतु मे देवि! त्वत्प्रसादान्महेश्वरि।।

         इस प्रकार यह साधना क्रम साधक नित्य २१ दिनों तक निरन्तर सम्पन्न करें।

         "मन्त्र महोदधि" ग्रन्थ के अनुसार इस मन्त्र का पुरश्चरण एक लाख मन्त्र जाप है। तद्दशांश हवन करना चाहिए। यदि ऐसा सम्भव नहीं है तो १०,००० अतिरिक्त मन्त्र जाप कर लेना चाहिए।

         इस तरह से यह साधना पूर्ण होकर कुछ ही दिनों में अपना प्रभाव दिखाती है। यह दुर्भाग्य को मिटाकर सौभाग्य में बदलने की अचूक साधना है।  इस साधना के बारे में कहा गया है कि बन्दूक की गोली एक बार को खाली जा सकती है, मगर इस साधना का प्रभाव कभी खाली नहीं जाता।
 
         महाविद्याओं में धूमावती साधना सप्तम नम्बर पर आती है। यह शत्रु का भक्षण करने वाली महाशक्ति और दुखों से निवृत्ति दिलाने वाली देवी है। इस साधना के माध्यम से साधक में बुरी शक्तियों को पराजित करने की और विपरीत स्थितियों में अपने अनुकूल बना देने की शक्ति प्राप्त हो जाती है। कहते हैं कि समय बड़ा बलवान होता है, उसके सामने सभी को हार माननी पड़ती  है। परन्तु जो समय पर हावी हो जाता है, वह उससे भी ज्यादा ताकतवर कहलाता है। परिपूर्ण होना केवल शक्ति साधना के द्वारा ही सम्भव है। इसके माध्यम से दुर्भाग्य को भी सौभाग्य में परिवर्तित किया जा सकता है।
                        
         आपकी साधना सफल हो और माँ भगवती धूमावती का आपको आशीष प्राप्त हो। मैं सद्गुरुदेव भगवानजी से ऐसी ही प्रार्थना करता हूँ।

                इसी कामना के साथ

              ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।


शनिवार, 20 मई 2017

शनि ग्रह का जीवन पर प्रभाव व शनि-शान्ति के उपाय

शनि ग्रह का जीवन पर प्रभाव व शनि-शान्ति के उपाय




                 शनि जयन्ती  समीप ही है। शनि जयन्ती इस बार २५ मई २०१७ को आ रही है। इस अवसर का सदुपयोग करके शनि की साढ़े साती, अढ़ैया अथवा जन्म कुण्डली में शनि ग्रह की अशुभ स्थिति के कारण होने वाली पीड़ाओं, बाधाओं और कुप्रभावों को दूर किया जा सकता है।

                 ज्योतिषशास्त्र में शनि ग्रह का विशेष स्थान है। शास्त्रों में शनि को सन्तुलन व न्याय का ग्रह माना गया है। कई ज्योतिषविदों ने शनि को क्रोधी ग्रह भी माना है और यदि किसी व्यक्ति से कुपित हो जाएं तो व्यक्ति के हँसते-खेलते संसार को बर्बाद भी कर देता है।

                 इस संसार में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है, जो शनि के प्रभाव से अछूता हो। शनिदेव का नाम सुनते ही व्यक्ति में भय उत्पन्न हो जाता है। शनि के प्रति सभी का डर सदैव बना रहता है। शनि के कारण जीवन की दिशा, सुख, दुःख आदि सभी बातें निर्धारित होती है।

                वास्तविकता में शनि कुकर्मियों को पीड़ित करता है तथा सुकर्मियों व कर्मठ लोगों का भाग्योदय करता है। यदि किसी व्यक्ति के कर्म अच्छे नहीं हैं तो शनि भाग्य हरकर पापियों को कंगाल बना देता है, परन्तु किसी भी व्यक्ति पर अपना असर डालने पर शनि व्यक्ति को कुछ संकेत देता है। यह संकेत एक प्रकार की चेतवानी होती है कि व्यक्ति अपने कर्म सुधारे और जीवन के मार्ग पर कर्म व धर्म अपनाकर दुष्कर्म व अधर्म का परित्याग करे।

                 शनि व्यक्ति के जीवन में अनेक परेशानियाँ लाकर निम्नलिखित बदलाव लाता है -----

१. शनि प्रभावित व्यक्ति के घर की दीवारों में अकस्मात दरारें आना शुरू हो जाती हैं। नियमित सफ़ाई के बावजूद घर की दीवारों पर मकड़ियाँ अपने जाले बनाना शुरू कर देती हैं।

२. शनि प्रभावित व्यक्ति के घर पर बने नमकीन पदार्थों में भी चींटियाँ आ जाती हैं तथा पूरी सफ़ाई के बावजूद भी चींटियाँ घर से पलायन नहीं करती हैं। इसे खाना खरण होना कहते हैं।

३. शनि प्रभावित व्यक्ति के घर पर काली बिल्लियाँ डेरा डाल लेती हैं तथा वहीं बिल्ली अपने बच्चों को जन्म भी देती हैं। अक्सर दो बिल्लियाँ मिलकर एक दूसरे से लड़ती हुई भी पाई जाती हैं।

४. शनि प्रभावित व्यक्ति के स्वभाव और विचारों में भी बदलाव आता है। व्यक्ति में काम भावना बढ़ जाती है। मन और भावनाओं पर नियन्त्रण नहीं रहता। व्यक्ति के अनैतिक सम्बन्ध भी बन जाते हैं।

५. शनि प्रभावित व्यक्ति की सूझबूझ खो जाती है। व्यक्ति अर्जित किया हुआ धन व कीमती समय लम्बी दूरी की यात्राओं में लगा देता है। व्यक्ति को अकारण ही लम्बी दूरी की असफल यात्राएँ करनी पड़ती हैं।

६. शनि प्रभावित व्यक्ति का झूठ बोलना बढ़ जाता है। व्यक्ति आकारण झूठ बोलना शुरू करा देता है। उसके आचरण और विचारों में झूठ का वास हो जाता है। व्यक्ति को लगता ही नहीं है कि वह झूठ बोल रहा है।

७. शनि प्रभावित व्यक्ति अत्यधिक सुस्त हो जाता है। व्यक्ति गन्दगी पसन्द करता है तथा खुद को साफ़-सुथरा नहीं रख पाता। नित्य स्नान का त्याग करता है, व्यक्ति बाल और नाखून काटने से परहेज करता है।

८. व्यक्ति के खानपान की पसन्द में अकस्मात बदलाव आ जाता है। व्यक्ति माँसाहार भक्षण में अत्यधिक रुचि लेता है। मदिरा के सेवन में भी व्यक्ति की रुचि बढ़ती है तथा बासी व तला हुआ खाना पसन्द करता है।

९. शनि प्रभावित व्यक्ति को प्रॉपर्टी के विवादों का सामना करना पड़ता है। सगे-सम्बन्धियों से पैतृक सम्पत्ति को लेकर मतभेद बढ़ता है। घर की कोई दीवार गिर सकती है। गृह निर्माण में धन खर्च करना पड़ता है।

१०. शनि व्यक्ति की टाँगों पर का बुरा प्रभाव शुरु करता है तो इस समय व्यक्ति के घुटनों में जकड़न शुरू हो जाती है तथा व्यक्ति के चमड़े से बने हुए जूते या चप्पल खोने लगते हैं या जल्दी-जल्दी टूटने लगते हैं।

११. शनि प्रभावित व्यक्ति को कर्मक्षेत्र में परेशानी आती है। व्यक्ति को पदोन्नति नहीं मिल पाती है। अधिकारियों से सम्बन्ध बिगड़ने लगते हैं व नौकरी छूट जाती है। व्यक्ति का अनचाही जगह पर तबादला होता है।

१२. शनि सर्वदा व्यक्ति के पेट और पीठ पर अपना वार करता है। व्यक्ति के कार्यक्षेत्र में समस्याएँ आती हैं, उसका कामकाज ठप्प पड़ जाता है। व्यक्ति का चलता हुआ कारोबार बन्द हो जाता है। व्यवसाय में कानूनी दाँवपेंच आ जाते हैं, जिसके कारण व्यक्ति को न्यायालय के चक्कर काटने पड़ते हैं।

१३. शनि प्रभावित व्यक्ति के यहाँ इन्कम टैक्स औरे सेल टैक्स आदि के छापे भी पड़ते हैं। व्यक्ति के जीवनसाथी के चरित्र का हनन भी होता है।

१४. शनि प्रभावित व्यक्ति का लाइफ पार्टनर दूसरे लोगों से शारीरिक रूप से अनैतिक सम्बन्ध बनाता है। शनि प्रभावित व्यक्ति के भाई-बहन उससे गद्दारी करते हैं तथा पैसे में ठगी भी करते हैं। शनि प्रभावित व्यक्ति के दोस्त और रिश्तेदार भी व्यक्ति का जीवन खराब करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं।

शनि शान्ति के उपाय

१. सुबह और शाम को पूजा करते समय महामृत्युंजय मन्त्र अथवा "ॐ नमः शिवाय" इस मन्त्र के जाप से शनि के दुष्प्रभावों से मुक्ति मिलती है।

२. घर के किसी अँधेरे कोने में एक लोहे की कटोरी में सरसों का तेल भरकर उसमें ताँबे का सिक्का डालकर कोने वाली जगह पर रखें।

३. अगर शनिदेव की आप के जीवन में अशुभ दशा चल रही हो तो माँस-मदिरा जैसी तामसी चीज़ों सेवन न करें।

४. जब भी घर में खाना बने तो उसमें दोनों समय खाने में काला नमक और काली मिर्च को उपयोग में लाएं।

५. शनिवार के दिन बन्दरों को भुने हुए चने खिलाएं और मीठी रोटी पर तेल लगाकर काले कुत्ते को खाने को दें। इससे जीवन में खुशियाँ आएंगी।

६. शनिवार के दिन अपने हाथ के नाप का काला धागा लेकर उसको माँझकर माला की तरह गले में पहनें।

७. आठ शनिवार तक यह प्रयोग करें---शनि ढैया के शमन के लिए शुक्रवार की रात्रि में आठ सौ ग्राम काले तिल पानी में भिगो दें और शनिवार को प्रातः उन्हें पीसकर एवं गुड़ में मिलाकर ८ लड्डू बनाएं और किसी काले घोड़े को खिला दें। इस से जीवन में शुभ दिन की शुरुआत होती है।

८. बरगद और पीपल पेड़ के नीचे हर शनिवार सूर्योदय से पूर्व राई तेल का दीपक जलाकर शुद्ध कच्चा दूध एवं धूप अर्पित करें।

९. शनि के प्रकोप से बचने के लिए प्रत्येक शनिवार को काली गाय की सेवा करें और खाने से पहले रोटी का पहला निवाला गाय को खिलाएं। सिन्दूर लेकर गाय को लगाएं और पूजा करें।

१०. हनुमान चालीसा, भैरव चालीसा अथवा शनि चालीसा का पाठ करें एवं पीपल की सात परिक्रमा करें। यदि शनि की साढ़ेसाती से ग्रस्त हैं और शनिवार को अँधेरा होने के बाद पीपल पर मीठा जल अर्पित कर सरसों के तेल का दीपक और अगरबत्ती जलाएं।

                   इन दस नियमों का पालन करके आप एक बार जरूर देखें। शनिदेव कैसे आपके सारे कष्ट पलक झपकते ही दूर कर देंगे।

लाल किताब के अनुसार शनि-शान्ति के उपाय

१. लग्न स्थित शनि अशुभ फल देता है। ऐसे में जातक को बन्दरों की सेवा करनी चाहिए। चीनी मिला हुआ दूध बरगद के पेड़ की जड़ में डालकर गीली मिट्टी से तिलक करना चाहिए। झूठ नहीं बोलना चाहिए। दूसरों की वस्तुओं पर बुरी दृष्टि नहीं डालनी चाहिए।

२. शनि द्वितीय भावस्थ होकर अशुभ फल देता हो तो जातक को अपने माथे पर दूध या दही का तिलक लगाना चाहिए और साँपों को दूध पिलाना चाहिए।

३. शनि तीसरे भाव में हो तो जातक को माँस, मदिरा आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसे में जातक को तिल, नीम्बू एवं केले का दान करना चाहिए। घर में काला कुत्ता पालें एवं उसकी सेवा करें।

४. शनि चतुर्थ भावस्थ होकर अशुभ फल दे रहा हो तो जातक को कुए में दूध डालना चाहिए। बहते हुए पानी में शराब डालनी चाहिए, हरे रंग की वस्तुओं से परहेज नहीं रखना चाहिए। मजदूरों की सहायता करें व भैंस एवं कौओं को भोजन दें। जातक को अपने नाम पर भवन निर्माण नहीं करना चाहिए।

५. पंचम भाव में शनि अशुभ फल दे रहा हो तो जातक को अपने पास सोना एवं केसर रखना चाहिए। जातक को ४८ साल से पहले अपने लिए मकान नहीं बनाना चाहिए। साथ ही नाक व दाँतों को साफ रखना चाहिए। लोहे का छल्ला पहनने से व साबुत हरी मूँग मन्दिर में दान करने से शनि की पीड़ा कम होगी।

६. षष्ठम् भाव में शनि अशुभ फल दे रहा हो तो जातक को चमड़े एवं लोहे की वस्तुएँ खरीदनी चाहिए। इस भाव में जातक को ३९ साल की उम्र के बाद ही मकान बनाना चाहिए।

७. सप्तम् भाव में स्थित शनि अशुभ फल दे रहा हो तो जातक को शहद से भरा हुआ बर्तन कहीं सुनसान जगह में दबाना चाहिए। बाँसुरी में चीनी भरकर कहीं सुनसान जगह में दबाएं। इस भाव में शनि हो तो जातक को बना-बनाया मकान खरीदना चाहिए।

८. अष्टम् भाव में स्थित शनि अशुभ हो तो जातक को अपने पास चाँदी का टुकड़ा रखना चाहिए। साँपों को दूध पिलाना चाहिए व जीवन में कभी भवन का निर्माण नहीं कराना चाहिए।

९. नवम् भावस्थ शनि अशुभ फल दे रहा हो तो छत पर कबाड़, लकड़ी आदि नहीं रखनी चाहिए, जो बरसात आने पर भीगती हो। चाँदी के चौरस टुकड़े पर हल्दी का तिलक लगाकर उसे अपने पास रखना चाहिए। पीपल के पेड़ को जल देने के साथ-साथ गुरुवार का व्रत भी करना चाहिए। अगर इस भाव में शनि हो और जातक की पत्नी गर्भवती हो तो भूलकर भी मकान न बनवाएं। बच्चा होने के बाद बनवा सकते हैं।

१०. दशम् भाव में शनि हो तो माँस, मदिरा आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। चने की दाल तथा केले मन्दिर में चढ़ाने चाहिए।

११. एकादश भाव में शनि अशुभ फल दे रहा हो तो जातक को घर में चाँदी की ईंट रखनी चाहिए। उसे माँस, मदिरा आदि सेवन नहीं करना चाहिए एवं दक्षिणामुखी मकान में वास नहीं करना चाहिए५५ साल की उम्र के बाद ही मकान बनाना शुभ रहेगा।

१२. बारहवें भाव में शनि अशुभ फल दे रहा हो तो कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए। माँस, मदिरा, अण्डे का सेवन नहीं करना चाहिए।

           लाल किताब की इन बातों पर अमल कर शनि से प्राप्त परेशानियों को हम समाप्त कर सकते हैं।

           मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

               इसी कामना के साथ

        ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।

शनिवार, 6 मई 2017

छिन्नमस्ता साधना

छिन्नमस्ता साधना


          माँ भगवती छिन्नमस्ता जयन्ती समीप ही है। इस बार माँ भगवती छिन्नमस्ता जयन्ती ९ मई २०१७ को आ रही है। आप सभी को माँ भगवती छिन्नमस्ता जयन्ती की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ। 

 

          छिन्नमस्ता शब्द दो शब्दों के योग से बना है - प्रथम छिन्न और द्वितीय मस्ता। इन दोनों शब्दों का अर्थ है - छिन्न यानि अलग या पृथक तथा मस्ता अर्थात मस्तक। इस प्रकार जिनका मस्तक देह से पृथक हैंवह छिन्नमस्ता कहलाती हैं। देवी अपने मस्तक को अपने ही हाथों से काट करअपने हाथों में धारण करती हैं तथा प्रचण्ड चण्डिका जैसे अन्य नामों से भी जानी जाती हैं।

 

          मार्कण्डेय पुराणशिव पुराण आदि में देवी के इस रूप का विस्तार से वर्णन किया गया है। इनके अनुसार जब देवी ने चण्डी का रूप धरकर राक्षसों का संहार किया। दैत्यों को परास्त करके देवों को विजय दिलवाई तो चारों ओर उनका जय घोष होने लगा। परन्तु देवी की सहायक योगिनियाँ जया और विजया की रुधिर पिपासा शान्त नहीं हो पाई थीइस पर उनकी रक्त पिपासा को शान्त करने के लिए माँ ने अपना मस्तक काटकर अपने रक्त से उनकी रक्त प्यास बुझाई। इस कारण माता को छिन्नमस्तिका नाम से पुकारा जाने लगा। छिन्नमस्तिका देवी को तन्त्र शास्त्र में प्रचण्ड चण्डिका और चिन्तापूर्णी माता जी भी कहा जाता है।

 

          छिन्नमस्ता की उपस्थिति दस महाविद्याओं में पाँचवें स्थान पर हैंदेवी एक प्रचण्ड डरावनीभयंकर तथा उग्र रूप में विद्यमान हैं। समस्त देवी-देवताओं से पृथक देवी छिन्नमस्ता का स्वरूप है। देवी स्वयं ही सात्विकराजसिक तथा तामसिक तीनों गुणों का प्रतिनिधित्व करती हैंत्रिगुणमयी सम्पन्न हैं। देवी ब्रह्माण्ड के परिवर्तन चक्र का प्रतिनिधित्व करती हैंसन्पूर्ण ब्रह्माण्ड इस चक्र से चलायमान है। सृजन तथा विनाश का सन्तुलित होनाब्रह्माण्ड के सुचारु परिचालन हेतु अत्यन्त आवश्यक है। देवी छिन्नमस्ता की आराधना जैन तथा बौद्ध धर्म में भी की जाती हैं तथा बौद्ध धर्म में देवी छिन्नमुण्डा वज्रवराही के नाम से विख्यात हैं।

 

          छिन्नमस्ता देवी जीवन के परम सत्य मृत्यु को दर्शाती हैंवासना से नूतन जीवन की उत्पत्ति तथा अन्ततः मृत्यु की प्रतीक स्वरूप हैं देवी। देवी स्व-नियन्त्रण के लाभअनावश्यक तथा अत्यधिक मनोरथों के परिणाम स्वरूप पतनयोग अभ्यास द्वारा दिव्य शक्ति लाभआत्म-नियन्त्रणबढ़ती इच्छाओं पर नियन्त्रण का प्रतिनिधित्व करती हैं। देवी योग शक्तिइच्छाओं के नियन्त्रण और यौन वासना के दमन की विशेषकर प्रतिनिधित्व करती हैं।

 

          छिन्नमस्ता देवी अपने मस्तक को अपने ही खड्ग से काटकरअपने शरीर से छिन्न या पृथक करती हैं तथा अपने कटे हुए मस्तक को अपने ही हाथ में धारण करती हैं। देवी का यह स्वरूप अत्यन्त ही भयानक तथा उग्र हैंदेवी इस प्रकार के भयंकर उग्र स्वरूप में अत्यधिक कामनाओं तथा मनोरथों से आत्म नियन्त्रण के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करती हैं। देवी छिन्नमस्ता का घनिष्ठ सम्बन्ध "कुण्डलिनी" नामक प्राकृतिक ऊर्जा या मानव शरीर में छिपी हुई प्राकृतिक शक्ति से हैं। कुण्डलिनी शक्ति प्राप्त या जागृत करने हेतुयोग अभ्यासत्याग तथा आत्म नियन्त्रण की आवश्यकता होती हैं। एक परिपूर्ण योगी बनने हेतु सन्तुलित जीवन-यापन का सिद्धान्त अत्यन्त आवश्यक हैजिसकी शक्ति देवी छिन्नमस्ता ही हैं। परिवर्तन शील जगत (उत्पत्ति तथा विनाशवृद्धि तथा ह्रास) की शक्ति हैं देवी छिन्नमस्ता। इस चराचर जगत में उत्पत्ति या वृद्धि होने पर देवी भुवनेश्वरी का प्रादुर्भाव होता हैं तथा विनाश या ह्रास होने पर देवी छिन्नमस्ता का प्रादुर्भाव माना जाता हैं।

 

          देवी योग-साधना के उच्चतम स्थान पर अवस्थित हैं। योग शास्त्रों के अनुसार तीन ग्रन्थियाँ ब्रह्मा ग्रन्थिविष्णु ग्रन्थि तथा रुद्र ग्रन्थि को भेद कर योगी पूर्ण सिद्धि प्राप्त कर पाता हैं तथा उसे अद्वैतानन्द की प्राप्ति होती है। योगियों का ऐसा मानना हैं कि मणिपुर चक्र के नीचे की नाड़ियों में ही काम और रति का निवास स्थान हैं तथा उसी के ऊपर देवी छिन्नमस्ता आरूढ़ हैं तथा इसका ऊपर की ओर प्रवाह होने पर रुद्रग्रन्थि का भेदन होता है।

 

           सामान्यतः हिन्दू धर्म का अनुसरण करने वाले देवी छिन्नमस्ता के भयावह तथा उग्र स्वरूप के कारणस्वतन्त्र रूप से या घरों में उनकी पूजा नहीं करते हैं। देवी के कुछ-एक मन्दिरों में उनकी पूजा-आराधना की जाती हैंदेवी छिन्नमस्ता तन्त्र क्रियाओं से सम्बन्धित हैं तथा तान्त्रिकों या योगियों द्वारा ही यथाविधि पूजित हैं। देवी की पूजा साधना में विधि का विशेष ध्यान रखा जाता हैदेवी से सम्बन्धित एक प्राचीन मन्दिर रजरप्पा में हैंजो भारत वर्ष के झारखण्ड राज्य के रामगढ़ जिले में अवस्थित हैं। देवी का स्वरूप अत्यन्त ही गोपनीय हैंइसे केवल सिद्ध साधक ही जान सकता हैं। देवी की साधना रात्रि काल में होती हैं तथा देवी का सम्बन्ध तामसी गुण से हैं।

 

           छिन्नमस्ता  देवी अपना मस्तक काट कर भी जीवित हैंयह उनकी महान यौगिक (योग-साधना) उपलब्धि हैं। योग-सिद्धि ही मानवों को नाना प्रकार के अलौकिकचमत्कारी तथा गोपनीय शक्तियों के साथ पूर्ण स्वस्थता प्रदान करती हैं।

 

           छिन्नमस्ता साधना एक ऐसी साधना हैजिसको सम्पन्न कर सामान्य गृहस्थ भी योगी का पद प्राप्त कर सकता है। वायु वेग से शून्य के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकता है। ज़मीन से उठ कर हवा में स्थिर हो सकता हैएक शरीर को कई शरीरों में बदल सकता है और अनेक ऐसी सिद्धियों का स्वामी बन सकता हैआश्चर्य की गणना में आती है।

 

साधना विधान :----------

 

          इस साधना को छिन्नमस्ता जयन्ती अथवा किसी भी मंगलवार से आरम्भ किया जा सकता है। आप चाहे तो इस साधना को नवरात्रि के प्रथम दिन से भी शुरु कर सकते हैं। यह साधना रात्रि काल में ही सम्पन्न की जाती हैअतः मन्त्र जाप रात्रि में ही किया जाए अर्थात यह साधना रात्रि को दस बजे आरम्भ करके प्रातः लगभग तीन या चार बजे तक समाप्त करनी चाहिए।

 

          इस साधना को पूरा करने के लिए सवा लाख मन्त्र जाप सम्पन्न करना चाहिए और यह साधना ग्यारह या इक्कीस दिनों में पूरी होनी चाहिए।

 

          रात्रि को लगभग दस बजे स्नान करके काली अथवा नीली धोती धारण कर लें। फिर साधना कक्ष में जाकर दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके काले या नीले ऊनी आसन पर बैठ जाएं। अपने सामने किसी बाजोट पर काला अथवा नीला वस्त्र बिछाकर उस पर सद्गुरुदेवजी का चित्र या विग्रह और माँ भगवती छिन्नमस्ता का यन्त्र-चित्र स्थापित कर लें। इसके साथ ही गणपति और भैरव के प्रतीक रूप में दो सुपारी क्रमशः अक्षत एवं काले तिल की ढेरी पर स्थापित कर दें।

 

          अब सबसे पहले साधक शुद्ध घी का दीपक प्रज्ज्वलित कर धूप-अगरबत्ती भी लगा दे। फिर सामान्य गुरुपूजन सम्पन्न करें तथा गुरुमन्त्र की कम से कम चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से छिन्नमस्ता साधना सम्पन्न करने की अनुमति लें और उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

 

          इसके बाद साधक संक्षिप्त गणपति पूजन सम्पन्न करें और ॐ वक्रतुण्डाय हुम् मन्त्र का एक माला जाप करें। फिर भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

 

          तत्पश्चात साधक सामान्य भैरवपूजन सम्पन्न करें और ॐ भ्रं भ्रं हुं हुं विकराल भैरवाय भ्रं भ्रं हुं हुं फट्” मन्त्र का एक माला जाप करें। फिर भगवान विकराल भैरवजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

 

          इसके बाद साधना के पहले दिन साधक को संकल्प अवश्य लेना चाहिए। इसके लिए दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प लें कि मैं अमुक नाम का साधक अमुक गौत्र परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्दजी का शिष्य होकर आज से श्री छिन्नमस्ता साधना का अनुष्ठान प्रारम्भ कर रहा हूँ। मैं नित्य २१ दिनों तक ६० माला मन्त्र जाप करूँगा। हे,  माँ! आप मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे इस मन्त्र की सिद्धि प्रदान करें और इसकी ऊर्जा को आप मेरे भीतर स्थापित कर दें।

 

          ऐसा कह कर हाथ में लिया हुआ जल जमीन पर छोड़ देना चाहिए। इसके बाद प्रतिदिन संकल्प लेने की आवश्यकता नहीं है।

 

          तदुपरान्त साधक माँ भगवती छिन्नमस्ता चित्र और यन्त्र का सामान्य पूजन करे। उस पर कुमकुमअक्षत और पुष्प चढ़ावें।  किसी मिष्ठान्न का भोग लगाएं। उसके सामने दीपक और लोबान धूप जला लें।

 

          फिर साधक दाहिने हाथ में जल लेकर निम्न विनियोग मन्त्र पढ़ें ---

 

विनियोग :-----

 

            ॐ अस्य श्री शिरच्छिन्नामन्त्रस्य भैरव ऋषिः सम्राट् छन्दः श्री छिन्नमस्ता देवता ह्रींकारद्वयं बीजं स्वाहा शक्तिः मम् अभीष्ट कार्य सिध्यर्थे जपे विनियोगः।

 

ऋष्यादिन्यास :-----

 

ॐ भैरव ऋषयै नमः शिरसि।             (सिर को स्पर्श करें)

ॐ सम्राट् छन्दसे नमः मुखे।             (मुख को स्पर्श करें)  

ॐ श्री छिन्नमस्ता देवतायै नमः हृदये।   (हृदय को स्पर्श करें)

ॐ ह्रीं ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये।            (गुह्य स्थान को स्पर्श करें)

ॐ स्वाहा शक्तये नमः पादयोः।          (पैरों को स्पर्श करें)

ॐ ममाभीष्ट कार्य सिद्धयर्थये जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे।  (सभी अंगों को स्पर्श करें)

 

करन्यास :-----

 

ॐ आं खड्गाय स्वाहा अँगुष्ठयोः।   (दोनों तर्जनी उंगलियों से दोनों अँगूठे को स्पर्श करें)

ॐ ईं सुखदगाय स्वाहा तर्जन्योः।    (दोनों अँगूठों से दोनों तर्जनी उंगलियों को स्पर्श करें)

ॐ ऊं वज्राय स्वाहा मध्यमयोः।     (दोनों अँगूठों से दोनों मध्यमा उंगलियों को स्पर्श करें)

ॐ ऐं पाशाय स्वाहा अनामिकयोः।   (दोनों अँगूठों से दोनों अनामिका उंगलियों को स्पर्श करें)

ॐ औं अंकुशाय स्वाहा कनिष्ठयोः।  (दोनों अँगूठों से दोनों कनिष्ठिका उंगलियों को स्पर्श करें)

ॐ अ: सुरक्ष रक्ष ह्रीं ह्रीं स्वाहा करतलकर पृष्ठयोः।  (परस्पर दोनों हाथों को स्पर्श करें)

 

हृदयादिन्यास :-----

 

ॐ आं खड्गाय हृदयाय नमः स्वाहा।        (हृदय को स्पर्श करें)

ॐ ईं सुखदगाय शिरसे स्वाहा स्वाहा।       (सिर को स्पर्श करें)

ॐ ऊं वज्राय शिखायै वषट् स्वाहा।          (शिखा को स्पर्श करें)

ॐ ऐं पाशाय कवचाय हूं स्वाहा।            (भुजाओं को स्पर्श करें)

ॐ औं अंकुशाय नेत्रत्रयाय वौषट् स्वाहा।     (नेत्रों को स्पर्श करें)

ॐ अ: सुरक्ष रक्ष ह्रीं ह्रीं अस्त्राय फट् स्वाहा। (सिर से घूमाकर तीन बार ताली बजाएं)

 

व्यापक न्यास :-----

 

ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्रवेरोचनियै ह्रींह्रीं फट् स्वाहा मस्तकादि पादपर्यन्तम्।

ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्रवेरोचनियै ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा पादादि मस्तकान्तम्।

 

                इससे तीन बार न्यास करें।

                इसके बाद साधक हाथ जोड़कर निम्न ध्यान मन्त्र से भगवती छिन्नमस्ता का ध्यान करें ---

 

ध्यान :-----

 

ॐ भास्वन्मण्डलमध्यगां निजशिरश्छिन्नं विकीर्णालकम्

     स्फारास्यं प्रपिबद्गलात् स्वरुधिरं वामे करे बिभ्रतीम्।

     याभासक्तरतिस्मरोपरिगतां सख्यौ निजे डाकिनी

     वर्णिन्यौ परिदृश्य मोदकलितां श्रीछिन्नमस्तां भजे

 

              इसके बाद साधक भगवती छिन्नमस्ता के मूलमन्त्र का रद्राक्ष माला से ६० माला जाप करें ---

 

मन्त्र :----------

 

        ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीयै ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा

 

OM SHREEM HREEM HREEM KLEEM AIM VAJRA VAIROCHANEEYEI HREEM HREEM PHAT SWAAHA.

 

              मन्त्र जाप के उपरान्त साधक निम्न सन्दर्भ का उच्चारण करने के बाद एक आचमनी जल छोड़कर सम्पूर्ण जाप भगवती छिन्नमस्ता को समर्पित कर दें।

 

ॐ गुह्यातिगुह्य गोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपं।

     सिद्धिर्भवतु मे देवि! त्वत्प्रसादान्महेश्वरि

 

              इस प्रकार यह साधना क्रम साधक नित्य २१ दिनों तक निरन्तर सम्पन्न करें।

 

              जब पूरे सवा लाख मन्त्र जाप हो जाएं,  तब पलाश के पुष्प अथवा बिल्व के पुष्पों से दशांश हवन करें। ऐसा करने पर यह साधना सिद्ध हो जाती है।

 

साधना नियम :----------

 

१. ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें।

२. एक समय फलाहार लें,  अन्न लेना वर्जित है।

३. मन्त्र जाप समाप्ति के बाद उसी स्थान पर सो जाएं।

४. साधना काल में साधक अन्य कोई  कार्यनौकरीव्यापार आदि न करे।

 

              छिन्नमस्ता साधना सौम्य साधना है और आज के भौतिक युग में इस साधना की नितान्त आवश्यकता है। इस साधना के द्वारा साधक जहाँ पूर्ण भौतिक सुख प्राप्त कर सकता हैवहीं वह आध्यात्मिक क्षेत्र में भी पूर्णता प्राप्त करने में समर्थ होता है। साधक कई साधनाओं में स्वतः सफलता प्राप्त कर लेता है और इस साधना के द्वारा कई-कई जन्मों के पाप कटकर वह निर्मल हो जाता है। यह साधना अत्यधिक सरलउपयोगी और आश्चर्यजनक सफलता देने में समर्थ है।

 

              आपकी साधना सफल हो और माँ भगवती छिन्नमस्ता का आपको आशीष प्राप्त हो। मैं सद्गुरुदेव भगवानजी से ऐसी ही प्रार्थना करता हूँ।

 

              इसी कामना के साथ

 

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।