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बुधवार, 21 सितंबर 2022

तीक्ष्ण त्रिशक्ति साधना

 तीक्ष्ण त्रिशक्ति साधना   

          आश्विन नवरात्रि महापर्व समीप ही है। यह २६ सितम्बर २०२२ से आरम्भ हो रहा है। आप सभी को आश्विन नवरात्रि पर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          इस ब्रह्माण्ड में आदिशक्ति के अनन्त रूप अपने-अपने सुनिश्चित कार्यों को गति प्रदान करने के लिए तथा ब्रह्माण्ड के योग्य सञ्चालन के लिए अपने नियत क्रम के अनुसार गतिशील है। इसी ब्रह्माण्डीय शक्ति के मूल तीन दृश्यमान स्वरूप को हम महासरस्वतीमहालक्ष्मी तथा महाकाली के रूप में देखते हैं। तान्त्रिक दृष्टि से यही तीन शक्तियाँ सृजन, पालन तथा संहार क्रम की मूल शक्तियाँ हैं‚ जो कि त्रिदेव की सर्व कार्य क्षमता का आधार है।

          ये ही त्रिदेवियाँ ब्रह्माण्ड की सभी क्रियाओं में सूक्ष्म या स्थूल रूप से अपना कार्य करती ही रहती हैं तथा ये ही शक्तियाँ मनुष्य के अन्दर तथा बाह्य दोनों रूप में विद्यमान हैं। मनुष्य के जीवन में होने वाली सभी घटनाओं का मुख्य कारण इन्हीं त्रिशक्तियों के सूक्ष्म रूप हैं।

क्रिया ज्ञान इच्छा  शक्तिः।

          अर्थात् शक्ति के तीन मूल स्वरूप हैं ------

(१) ज्ञान-शक्ति

      (२) इच्छा-शक्ति

      (३) क्रिया-शक्ति

          ज्ञानइच्छा तथा क्रिया के माध्यम से ही हमारा पूर्ण अस्तित्व बनता है, चाहे वह हमारे रोज़िन्दा जीवन की शुरूआत से लेकर अन्त हो या फिर हमारे सूक्ष्म से सूक्ष्म या वृहद से वृहद क्रियाकलाप। हमारे जीवन के सभी क्षण इन्हीं त्रिशक्ति के अनुरूप गतिशील रहते हैं।

वस्तुतः जैसा कि शास्त्रों में कहा गया है‚ मनुष्य शरीर ब्रह्माण्ड की एक अत्यन्त ही अद्भुत रचना है। लेकिन मनुष्य को अपनी शक्तियों का ज्ञान नहीं है, उसकी अनन्त क्षमताएँ सुप्त रूप में उसके भीतर ही विद्यमान होती है।  

          इसी प्रकार यह त्रिशक्ति का नियन्त्रण वस्तुतः हमारे हाथ में नहीं है और हमें इसका कोई ज्ञान भी नहीं होता है। लेकिन अगर हम सोच के देखें तो हमारा कोई भी सूक्ष्म से सूक्ष्म कार्य भी इन्हीं तीनों शक्तियों में से कोई एक शक्ति के माध्यम से ही सम्पादित होता है। योगीजन इन्हीं शक्तियों के विविध रूप को चेतन कर उनकी सहायता प्राप्त करते हुए ब्रह्माण्ड के मूल रहस्यों को जानने का प्रयत्न करते रहते हैं।

          न सिर्फ आध्यात्मिक जीवन में वरन् हमारे भौतिक जीवन के लिए भी इन शक्तियों का हमारी तरफ अनुकूल होना कितना आवश्यक है। यह सामन्य रूप से कोई भी व्यक्ति समझ ही सकता है। ज्ञान शक्ति एक तरफ आपको जीवन में किस प्रकार से आगे बढ़कर उन्नति कर सकते हैं‚ इस पक्ष की ओर विविध अनुकूलता दे सकती है।

          वहीं दूसरी ओर जीवन में प्राप्त ज्ञान का योग्य संचार कर विविध अनुकूलता की प्राप्ति कैसे करनी है तथा उनका उपभोग कैसे करना है‚ यह इच्छाशक्ति के माध्यम से समझा जा सकता है।

          क्रिया शक्ति हमें विविध पक्ष में गति देती है तथा किस प्रकार प्रस्तुत उपभोग को अपनी महत्तम सीमा तक हमें अनुकूलता तथा सुख प्रदान कर सकती है। यह तथ्य समझा देती है।

          प्रस्तुत साधना, इन्हीं त्रिशक्ति को चेतन कर देती है‚ जिससे साधक अपने जीवन के विविध पक्षों में स्वतः ही अनुकूलता प्राप्त करने लगता है, न ही सिर्फ भौतिक पक्ष में‚ बल्कि आध्यात्मिक पक्ष में भी।

          साधक के नूतन ज्ञान को प्राप्त करने तथा उसे समझने में अनुकूलता प्राप्त होने लगती है। किसी भी विषय को समझने में पहले से ज्यादा साधक अनुकूलता अनुभव करने लगता है। अपने अन्दर की विविध क्षमताओं तथा कलाओं के बारे में साधक को ज्ञान की प्राप्ति होती है, उसके लिए क्या योग्य और क्या अयोग्य हो सकता है? इसके सम्बन्ध में भी साधक की समझ बढ़ाने लगती है।

          इच्छाशक्ति की वृद्धि के साथ साधक को विविध प्रकार के उन्नति के सुअवसर प्राप्त होने लगते हैं तथा साधक को अपने ज्ञान का उपयोग किस प्रकार और कैसे करना है? यह समझ में आने लगता है। उदहारण के लिए किसी व्यक्ति के पास व्यापार करने का ज्ञान है‚ लेकिन उसके पास व्यापार करने की कोई क्षमता नहीं है या उस ज्ञान का व्यावहारिक प्रयोग हो नहीं पा रहा है तो इच्छाशक्ति के माध्यम से यह सम्भव हो जाता है।

          क्रियाशक्ति के माध्यम से साधक अपनी इच्छाशक्ति में गति प्राप्त करता है अर्थात किसी भी कार्य का ज्ञान है, उसको करने के लिए मौका भी है। लेकिन अगर वह क्रिया ही न हो‚ जो कि परिणाम की प्राप्ति करवा सकती है तो सब बेकार हो जाता है। क्रिया शक्ति उसी परिणाम तक साधक को ले जाती है तथा एक स्थिरता प्रदान करती है।

          त्रिशक्ति से सम्बन्धित यह तीव्र प्रयोग निश्चय ही एक गूढ़ प्रक्रिया है। वास्तव में अत्यन्त ही कम समय में साधक की तीनों शक्तियाँ चैतन्य होकर साधक के जीवन को अनुकूल बनाने की ओर प्रयासमय हो जाती है। इस प्रकार की साधना की अनिवार्यता को शब्दों के माध्यम से आँका नहीं जा सकता है‚ वरन इसे तो मात्र अनुभव ही किया जा सकता है। साधना प्रयोग का विधान कुछ इस प्रकार है -------

साधना विधान :------------

          इस साधना को साधक किसी भी शुभ दिन से शुरू कर सकता हैफिर भी यदि इसे किसी भी नवरात्रि में सम्पन्न किया जाए तो कहीं अधिक श्रेष्ठ होगा। साधना में समय रात्रिकाल में ९ बजे के बाद का रहे।

          साधक सर्वप्रथम स्नान आदि से निवृत होकर लाल वस्त्र को धारणकर लाल आसन पर बैठ जाए। साधक का मुख उत्तर दिशा की ओर रहे।

          अपने सामने बाजोट पर या किसी लकड़ी के पट्टे पर साधक को लाल वस्त्र बिछाकर उस पर गुरु चित्र/यन्त्र स्थापित करे। फिर साधक को सर्वप्रथम गुरुपूजन, गणेश-पूजन तथा भैरव-पूजन सम्पन्न करना चाहिए। 

          पहले सद्गुगुरुदेवजी का ध्यान कर पञ्चोपचारों से संक्षिप्त गुरुपूजन करे, फिर गुरुमन्त्र का जाप करे। गुरुमन्त्र की न्यूनतम चार माला जाप कर सद्गुरुदेवजी से साधना में सफलता के लिए प्रार्थना करे।

          इसके बाद साधक भगवान गणपतिजी एवं भगवान भैरव का स्मरण करके सामान्य पूजन करे। साधक चाहे तो मन्त्र जाप भी कर सकता है। फिर उनसे साधना की सफलता और निर्विघ्न पूर्णता के लिए निवेदन करे। 

          अब एक भोजपत्र या सफ़ेद कागज़ पर एक अधः त्रिकोण कुंकुंम से बनाना है तथा उसके तीनों कोण में बीजमन्त्रों को लिखना है। इस यन्त्र निर्माण के लिए साधक चाँदी की शलाका का प्रयोग करे तो उत्तम है। अगर यह सम्भव न हो तो साधक को अनार की कलम का प्रयोग करना चाहिए।

          साधक अब उस यन्त्र का सामान्य पूजन करे तथा दीपक प्रज्वलित करे। दीपक किसी भी तेल का हो सकता है।

          उसके बाद साधक निम्न मन्त्र की २१ माला मन्त्र जाप करे। इस मन्त्र जाप के लिए साधक “मूँगा माला” का प्रयोग करे।

मन्त्र :-----------

ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं फट्  

OM HREENG SHREENG KREENG PHAT.

          मन्त्र जाप के उपरान्त एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समस्त जाप माँ भगवती त्रिशक्ति को ही समर्पित कर दें।

          साधक अगले ८ दिन तक यह क्रम जारी रखे अर्थात कुल ९ दिन तक यह प्रयोग करना है।

          प्रयोग पूर्ण होने के बाद साधक उस यन्त्र को पूजा स्थान में ही स्थापित कर दे। माला को प्रवाहित नहीं किया जाता है। साधक उस माला का प्रयोग वापस इस मन्त्र की साधना के लिए कर सकता है तथा निर्मित किये गए यन्त्र के सामने ही मन्त्र जाप को किया जा सकता है।

          अन्तिम दिन साधक को यथा सम्भव छोटी बालिकाओं को भोजन कराना चाहिए तथा वस्त्र‚ दक्षिणा आदि देकर सन्तुष्ट करना चाहिए।

          आपकी साधना सफल हो और माँ भगवती का आपको आशीर्वाद प्राप्त हो। मैं पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी ऐसी कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिलजी को आदेश आदेश आदेश।।।

 

गुरुवार, 4 अप्रैल 2019

समस्त पाप-दोष, श्राप-दोष एवं कीलन-दोष समापन प्रयोग


समस्त पाप-दोष, श्राप-दोष एवं कीलन-दोष समापन प्रयोग


                  वासन्तीय (चैत्र) नवरात्रि पर्व समीप ही है। यह ६ अप्रैल २०१९ से आरम्भ हो रहा है। इसी दिन से हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत २०७६ भी शुरू हो रहा है। आप सभी को हिन्दू नववर्ष एवं चैत्र नवरात्रि की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          चैत्र नवरात्रि का यह पर्व ज्योतिषीय तथा खगोलीय दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस दौरान सूर्य का मेष राषि में प्रवेश होता है। सूर्य का यह राशि परिवर्तन हर राशि पर प्रभाव डालता है तथा इसी दिन से नववर्ष के पंचाग गणना की शुरुआत होती है। चैत्र नवरात्रि के यह नौ दिन इतने शुभ माने जाते हैं कि इन नौ दिनों में आप यदि कोई नया कार्य आरम्भ करना चाहते हैं, तो आपको किसी विशेष तिथि का इन्तजार करने की आवश्यकता नही है। आप पूरी चैत्र नवरात्रि के दौरान कभी भी कोई भी नया कार्य आरम्भ कर सकते हैं।

          इसके साथ ही ऐसी भी मान्यता है कि जो व्यक्ति बिना किसी लोभ के चैत्र नवरात्रि में महादुर्गा की पूजा करता है, वो जन्म-मरण के इस बन्धन से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है।

          माँ आद्या शक्ति की कृपा से मनुष्य में आत्मबल, दृढ़ विश्वास, दया, प्रेम, भक्ति जैसे सद्गुणों का विकास होता है। जीवन के इन्हीं मूल्यों को समझकर मनुष्य जीवन में सच्चा सुख, शान्ति, वैभव, धन, सम्पदा को प्राप्त करता है, अन्यथा इस संसार के दलदल से निकलना उसके लिए सम्भव नहीं है। इसलिए असम्भव को भी सम्भव कर दिखाने की शक्ति मनुष्य को देवी कृपा से ही प्राप्त होती है।

          नवरात्रि में पूजा उपासना का मुख्य उद्देश्य होता है माँ दुर्गा की आराधना, मनुष्य का तन-मन और इन्द्रियाँ संयमित होना। पूर्ण निष्ठा एवं श्रद्धा भाव से किए गए उपवास से मनुष्य का तन सन्तुलित होता है। मनुष्य के तन के संतुलित होने पर योग बल से मनुष्य की इन्द्रियाँ संयमित हो जाती है। इन्द्रियों के संयमित होने पर मनुष्य का मन देवी आराधना में स्थिर हो जाता है, जिसके बल पर मनुष्य को मनोवांछित लाभ की प्राप्ति हो सकती है, इसमें जरा भी संशय नहीं है।

          पुराणों में चैत्र नवरात्रि को विशेष महत्व दिया गया है, इसे आत्म शुद्धि और मुक्ति का आधार माना गया है। चैत्र नवरात्रि में माँ दुर्गा का पूजन करने से नकरात्मक ऊर्जा का खात्मा होता है और हमारे चारों ओर सकरात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

          क्या आपका जीवन किसी के श्राप से दूषित हो गया है या बँध गया है? आपको साधना या अनुष्ठान करने पर भी उसका लाभ नहीं मिल पा रहा है तो अवश्य ही आप बाधित है। श्राप दोष से मुक्ति केवल माँ भगवती दुर्गा की विशेष साधना से ही सम्भव है। आज मैं एक विशिष्ट प्रयोग दे रहा हूँ, जिसे सम्पन्न कर जीवन में श्राप-दोष एवं पाप-दोष से मुक्ति प्राप्त होती ही है। यह प्रयोग सिर्फ पाप-दोष ही समाप्त नहीं करता, बल्कि श्राप-दोष और कीलन-दोष भी नष्ट कर देता है।

साधना विधान :-----------

          यह प्रयोग किसी भी माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से अथवा आने वाली नवरात्रि के प्रथम दिवस से आरम्भ कर नौ दिन तक निरन्तर करें। इस प्रयोग को रात्रि में ही करना चाहिए।

         साधक को चाहिए कि वह स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल वस्त्र धारण कर लाल आसन पर उत्तर दिशा की ओर मुँह कर बैठ जाएं। अपने सामने एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर मां भगवती दुर्गा का चित्र अथवा विग्रह स्थापित करें। चित्र के पास ही गणेश एवं गुरु को स्थान दें। फिर शुद्ध घी का दीपक एवं धूप प्रज्ज्वलित कर दें।

          सबसे पहले साधक सामान्य गुरु-पूजन एवं गणेश-पूजन करके गुरु-मन्त्र का पाँच माला जाप करें। फिर भगवान गणेश और सद्गुरुदेवजी से साधना में पूर्ण सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          अब दाहिने हाथ में जल, अक्षत, पुष्प लेकर अपने नाम व गोत्र का उच्चारण कर समस्त पाप-दोष, श्राप-दोष एवं कीलन-दोष से मुक्ति का संकल्प लें और गणेशजी के पास रख दें।
  
          इसके बाद माँ भगवती दुर्गा का सामान्य पूजन कर भोग में मिष्ठान्न व फल अर्पित करें। फिर माँ भगवती से अपने समस्त पाप-दोष, श्राप-दोष एवं कीलन-दोष से मुक्ति के लिए निवेदन करें।

          फिर सर्वप्रथम निम्नलिखित उत्कीलन मन्त्र का १०८ बार जाप करें -----

॥ ॐ श्रीं श्रीं क्लीं हूं ॐ ऐं क्षोभय मोहय उत्कीलय उत्कीलय उत्कीलय ठं ठं ॐ ॥

          तत्पश्चात साधक निम्न विनियोग मन्त्र का उच्चारण करते एक आचमनी जल भूमि पर छोड़ दें -----

विनियोग :----------

ॐ अस्य श्रीचण्डिकाया ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापविमोचनमन्त्रस्य वशिष्ठ-नारदसंवाद-सामवेदाधिपतिब्रह्माण ऋषयः, सर्वैश्वर्कारिणी श्रीदुर्गादेवता, चरित्रत्रयं बीजं, ह्रीं शक्तिः त्रिगुणात्मस्वरूपचण्डिकाशापविमुक्तौ मम संकल्पित कार्यसिद्धयर्थे जपे विनियोगः।

          अब निम्नलिखित शापोद्धार मन्त्र का २१ बार जाप करें -----

॥ ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिका देव्यै शाप नाशानुग्रहं कुरु-कुरु स्वाहा ॥

          इसके बाद रुद्रयामल महातन्त्र के अन्तर्गत दुर्गाकल्प में कहे गए चण्डिका-शाप-विमोचन अष्टादश शक्ति मन्त्रों का २१-२१ बार जाप करना चाहिए।

अष्टादश शक्ति मन्त्र :----------

॥ ॐ ह्रीं रेतःस्वरूपिण्यै मधुकैटभमर्दिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१॥

॥ ॐ श्रीं बुद्धिस्वरूपिण्यै महिषासुरसैन्यनाशिन्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥२॥

॥ ॐ रं रक्तस्वरूपिण्यै महिषासुरमर्दिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥३॥

॥ ॐ क्षुं क्षुधास्वरूपिण्यै देववन्दितायै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥४॥

॥ ॐ छां छायास्वरूपिण्यै दूतसंवादिन्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥५॥

॥ ॐ शं शक्तिस्वरूपिण्यै धूम्रलोचनघातिन्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥६॥

॥ ॐ तृं तृषास्वरूपिण्यै चण्डमुण्डवधकारिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥७॥

॥ ॐ क्षां क्षान्तिस्वरूपिण्यै रक्तबीजवधकारिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥८॥

॥ ॐ जां जातिस्वरूपिण्यै निशुम्भवधकारिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥९॥

॥ ॐ लं लज्जास्वरूपिण्यै शुम्भवधकारिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१०॥

॥ ॐ शां शान्तिस्वरूपिण्यै देवस्तुत्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥११॥

॥ ॐ श्रं श्रद्धास्वरूपिण्यै सकलफलदात्र्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१२॥

॥ ॐ कां कान्तिस्वरूपिण्यै राजवरप्रदायै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१३॥

॥ ॐ मां मातृस्वरूपिण्यै अनर्गलमहिमसहितायै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१४॥

॥ ॐ ह्रीं श्रीं दुं दुर्गायै सं सर्वैश्वर्यकारिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१५॥

॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः शिवायै अभेद्यकवचस्वरूपिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१६॥

॥ ॐ क्रीं काल्यै कालि ह्रीं फट् स्वाहायै ऋग्वेदस्वरूपिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१७॥

॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वती स्वरूपिण्यै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गादेव्यै नमः ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१८॥

          साधक को प्रत्येक अष्टादश शक्ति मन्त्र का २१-२१ बार जप करना है।

          प्रत्येक अष्टादश शक्ति मन्त्र जप के बाद माँ भगवती दुर्गा के चरणों में एक लाल पुष्प अर्पित करते जाएं। इस प्रकार १८ पुष्प अर्पित करने चाहिए। अष्टादश शक्ति मन्त्रों के जप के पश्चात पुनः २१ बार शापोद्धार मन्त्र का जप करना है।

          इसके बाद पुनः १०८ बार उत्कीलन मन्त्र का जाप करना चाहिए।

          यह शक्ति प्रयोग अत्यन्त तीव्र और प्रभावकारी है। इन अष्टादश शक्तियों का जब आवाहन किया जाता है, तब शरीर और मन से श्राप, पाप एवं कीलन दोष का निराकरण होता ही है। उस समय एक ज्वलन शक्ति-सी उठती है, कुछ विचित्र-से भाव होने लगते हैं। साधक अपने आप को शान्त रखते हुए यह प्रयोग करें।

           अत्यन्त परिश्रम से आप सब के लिए जनकल्याण के उद्देश्य से उपरोक्त मन्त्रों को लिखा है। आशा करता हूँ कि आप सब अवश्य ही इस प्रयोग को करेंगे और लाभान्वित होंगे।

                 आपकी साधना सफल हो और यह नवरात्रि आपके लिए मंगलमय हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

                 इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।


रविवार, 31 मार्च 2019

दुर्गा रहस्य साधना

दुर्गा रहस्य साधना
  

                  वासन्तीय (चैत्र) नवरात्रि पर्व समीप ही है। यह ६ अप्रैल २०१९ से आरम्भ हो रहा है। इसी दिन से हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत २०७६ भी शुरू हो रहा है। आप सभी को हिन्दू नववर्ष एवं चैत्र नवरात्रि की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          जीवन में कब किस मोड़ पर शत्रु मिल जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। यह कोई जरूरी नहीं कि आज जो मित्र है, वह कल भी मित्र ही हो, क्योंकि जो आज तुम्हारा गहरा मित्र है, वही कल स्वार्थ के वशीभूत होकर तुम्हारा घोर शत्रु बन सकता है। यह सब तो समय का कुचक्र ही कहा जा सकता है, जहाँ एक पल में सुख है तो दूसरे ही पल दुःख भी है। जीवन पग-पग परिवर्तनशील है, न जाने कब, कौन-सी विकट परिस्थिति से गुजरना पड़ जाए। शत्रु तो हर मोड़ पर तैनात सैनिकों की तरह खड़े रहते हैं हमला करने के लिए, उस अचानक प्रहार से व्यक्ति संकट में फँस जाता है और उस प्रहार को झेल नहीं पाता, और ऐसी स्थिति में व्यक्ति निर्णय नहीं कर पाता कि अब वह क्या करें और क्या नहीं करें?

          मनुष्य के शत्रु एक नहीं हजारों होते हैं, जब तक वह एक को परास्त करता है, तब तक दूसरा उस पर वार कर देता है और इस सामाजिक संग्राम में युद्ध करते-करते उसकी शक्ति क्षीण होने लगती है, क्योंकि व्यक्ति इस जीवन रूपी संग्राम को अपनी शक्ति के बल पर नहीं जीत सकता। इसके लिए उसके पास दैविक बल होना आवश्यक है, मन्त्रसिद्धि होना आवश्यक है।

          महाभारत काल में श्रीकृष्ण ने गीता में यही कहा है कि हे, अर्जुन तुम युद्ध को शस्त्रों के माध्यम से नहीं जीत सकते। जब तक कि तुम्हारे पीछे दैविक बल नहीं होगा, जब तक कि तुम्हें मन्त्र सिद्धि नहीं होगी, इसलिए तुमने जो द्रोणाचार्य से मन्त्र सिद्धि प्राप्त की है, उस मन्त्र सिद्धि को स्मरण करते हुए गाण्डीव उठाओ, तभी तुम महाभारत युद्ध को जीत सकोगे। केवल धनुष और तीर चलाने से ही यह दुर्योधन, दुःशासन जैसे पापी समाप्त नहीं हो सकते, उसके लिए द्रोणाचार्य ने तुम्हें तीर चलाना ही नहीं सिखाया, अपितु मन्त्र शक्ति भी दी है।

          आए दिन के क्लेश, पति-पत्नी के आपसी झगड़े, रिश्तेदारों, भाई-बन्धुओं में आपसी मतभेद ये सब ईर्ष्या, वैमनस्य, प्रतिस्पर्धा और द्वेष के कारण ही होते हैं। व्यक्ति का जीना दुष्कर हो जाता है, भाई-भाई का दुश्मन हो जाता है, इन आपसी मतभेदों के कारण ही शत्रु व्यक्ति की उन्नति के रास्ते में बाधा उत्पन्न करने लगते हैं, इनसे वह मुक्त नहीं हो पाता। फलस्वरूप वह शारीरिक रूप से तो दुर्बल हो ही जाता है, साथ ही उसकी मानसिक शक्ति भी क्षीण हो जाती है और तब उसे एक ही मार्ग सूझता है, तरह-तरह के पण्डे साधुओं के पास जाकर टोने-टोटके करवाना, तन्त्र प्रयोगों का सहारा लेना और इसमें वह हजारों रुपए भी बर्बाद कर डालता है, किन्तु से कोई लाभ प्राप्त नहीं हो पाता। दर-दर की ठोकरें खाने के बाद वह हताश-निराश होकर हाथ पर हाथ धरकर बैठ जाता है और अपने भाग्य को कोसने लगता है।

          ऐसी स्थिति में साधना ही एकमात्र ऐसा प्रबलतम शस्त्र है, जिसके माध्यम से जीवन के समस्त शत्रुओं को परास्त कर जीवन के महासंग्राम में विजय प्राप्त की जा सकती है और वह भी पूर्णता के साथ। साधना, शक्ति का स्रोत है, जिससे व्यक्ति शारीरिक रूप से तो स्वस्थ और बलवान होता ही है, अपितु मानसिक रूप से भी वह पूर्ण स्वस्थ और बलवान हो जाता है, क्योंकि उसे साधना का बल, ओज और तेजस्विता जो प्राप्त हो जाती है, जो उसे जीवन के हर क्षेत्र में विजयी बनाने में सहायक सिद्ध होती है।

          यदि व्यक्ति के पास साधना का तेज, मन्त्र बल हो तो वह पराजित हो ही नहीं सकता, और यदि उसे उस अद्भुत एवं गोपनीय दुर्गा रहस्य का भली प्रकार से ज्ञान हो तो कोई दूसरी शक्ति ऐसी है ही नहीं, जो उसे परास्त कर सके।

          "दुर्गा रहस्य" से अपने जीवन में आने वाले हर शत्रु को, हर बाधा को, हर अड़चन को हमेशा-हमेशा के लिए दूर किया जा सकता है। फिर किसी टोने-टोटके की या तान्त्रिक प्रयोग की आवश्यकता शेष नहीं रह जाती, फिर उसे हर प्रकार के डर, भय से छुटकारा मिल जाता है, क्योंकि इस दुर्गा रहस्य को जानने के बाद उसे ऐसा महसूस होने लगता है, मानो कोई शक्ति हर क्षण उसके साथ हो और उसकी सहायता कर रही हो। वह अपने आप को सुरक्षित और निर्भय अनुभव करने लगता है, और उस शक्ति के माध्यम से ही उसमें दृढ़ता और विश्वास का जागरण होता है, जिसके फलस्वरूप उसमें शत्रुओं को परास्त करने की क्षमता स्वतः ही आने लगती है। लेकिन यह तभी सम्भव हो सकता है, जब उसे इस रहस्य का पूर्ण ज्ञान हो और इसके प्रति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो।

साधना विधान :-----------

           इसे आप किसी भी नवरात्रि के प्रथम दिवस से आरम्भ कर सकते हैं। यह साधना साधक को रात्रि ९ बजे के बाद ही सम्पन्न करना चाहिए। पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके बैठें। लाल  आसन का प्रयोग करें तथा लाल वस्त्र धारण करें। अपने सामने लाल वस्त्र से बाजोट पर "महादुर्गा यन्त्र" अथवा माँ भगवती दुर्गा का सुन्दर चित्र स्थापित करें। समस्त पूजन सामग्री को अपने पास रख लें।

          इस प्रयोग से पूर्व गुरु पूजन एवं पाँच माला गुरुमन्त्र जाप अनिवार्य है, क्योंकि समस्त साधनाओं के एकमात्र सूत्रधार गुरु ही हैं, जो प्रत्येक साधना में सफलता देते हैं।

          इसके पश्चात सामान्य गणपति पूजन और भैरव पूजन अवश्य करें और उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          इसके बाद साधना के प्रथम दिवस साधक को संकल्प अवश्य लेना चाहिए। इसके लिए साधक हाथ में जल लेकर अपने नाम व गोत्र का उच्चारण कर संकल्प ले कि मैं आज से दुर्गा रहस्य साधना का अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हूँ। मैं नित्य ९ दिनों तक श्रीदुर्गाआपदुद्धारक स्तोत्र के ११२ पाठ करूँगा। माँ! मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे इस स्तोत्र की सिद्धि प्रदान करे और मेरे ज्ञात-अज्ञात समस्त शत्रुओं का शीघ्र संहार हो।

         ऐसा कहकर जल को भूमि पर छोड़ दें।

         इसके बाद यन्त्र अथवा चित्र का कुमकुम, अक्षत व गुलाब की पँखुड़ियों से सामान्य पूजन करें। शुद्ध घी का हलवा बनाकर माँ भगवती दुर्गा को भोग लगाएं। पूरे साधना काल में घी का दीपक जलते रहना चाहिए।          

          फिर दोनों हाथ जोड़कर माँ भगवती दुर्गा का ध्यान करें -----

ॐ कालाभ्रामां कटाक्षैररिकुलभयदां मौलिबद्धेन्दुरेखाम्,
शङ्खं चक्रं कृपाणं त्रिशिखमपि करैरुद्वहन्तीं त्रिनेत्राम्।
सिंहस्कन्धाधिरूढां त्रिभुवनमखिलं तेजसा पूरयन्तीम्,
ध्यायेद् दुर्गां जयाख्यां त्रिदशपरिवृतां सेवितां सिद्धिकामैः॥
ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
 शरण्य त्र्यम्बके गौरि नारायणी नमोऽस्तुते॥

          इसके बाद साधक को चाहिए कि वह निम्न मन्त्र का १०८ बार जाप करे -----

॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय-ज्वालय ज्वल-ज्वल प्रज्वल-प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥

         अब निम्न स्तोत्र का ११२ बार पाठ करें, जो समस्त शत्रुओं का संहार करके साधक की मनोकामना को पूर्ण करता है -----

॥ श्रीदुर्गाआपदुद्धारक स्तोत्रम् ॥

नमस्ते शरण्ये शिवे सानुकम्पे नमस्ते जगद्व्यापिके विश्वरूपे।
नमस्ते जगद्वन्द्यपादारविन्दे नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥१॥
नमस्ते जगच्चिन्त्यमानस्वरूपे नमस्ते महायोगिविज्ञानरूपे।
नमस्ते नमस्ते सदानन्द रूपे नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥२॥
अनाथस्य दीनस्य तृष्णातुरस्य भयार्तस्य भीतस्य बद्धस्य जन्तोः।
त्वमेका गतिर्देवि निस्तारकर्त्री नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥३॥
अरण्ये रणे दारुणे शुत्रुमध्ये जले सङ्कटे राजगेहे प्रवाते।
त्वमेका गतिर्देवि निस्तार हेतुर्नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥४॥
अपारे महदुस्तरेऽत्यन्तघोरे विपत् सागरे मज्जतां देहभाजाम्।
त्वमेका गतिर्देवि निस्तारनौका नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥५॥
नमश्चण्डिके चण्डोर्दण्डलीलासमुत्खण्डिता खण्डलाशेषशत्रोः।
त्वमेका गतिर्विघ्नसन्दोहहर्त्री नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥६॥
त्वमेका सदाराधिता सत्यवादिन्यनेकाखिला क्रोधना क्रोधनिष्ठा।
इडा पिङ्गला त्वं सुषुम्ना च नाडी  नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥७॥
नमो देवि दुर्गे शिवे भीमनादे सदासर्वसिद्धिप्रदातृस्वरूपे।
विभूतिः सतां कालरात्रिस्वरूपे नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥८॥
शरणमसि सुराणां सिद्धविद्याधराणां मुनिमनुजपशूनां दस्यभिस्त्रासितानाम्।
नृपतिगृहगतानां व्याधिभिः पीडितानां त्वमसि शरणमेका देवि दुर्गे प्रसीद॥९॥

॥ फलश्रुति ॥
इदं स्तोत्रं मया प्रोक्तमापदुद्धारहेतुकम्।
त्रिसन्ध्यमेकसन्ध्यं वा पठनाद्धोरसङ्कटात्॥१०॥
मुच्यते नात्र सन्देहो भुवि स्वर्गे रसातले।
सर्वं वा श्लोकमेकं वा यः पठेद्भक्तिमान् सदा॥११॥
स सर्व दुष्कृतं त्यक्त्वा प्राप्नोति परमं पदम्।
पठनादस्य देवेशि किं न सिद्ध्यति भूतले॥१२॥
स्तवराजमिदं देवि सङ्क्षेपात्कथितं मया॥१३॥

                  ११२ पाठ के उपरान्त पुनः उपरोक्त मन्त्र १०८ जाप करें -----

॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय-ज्वालय ज्वल-ज्वल प्रज्वल-प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥

                 मन्त्र जाप के बाद एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समस्त जाप समर्पित कर दें। इस प्रकार नित्य नौ दिनों तक यह प्रयोग करना चाहिए।

        पहले पाठ में मूल स्तोत्र और फलश्रुति दोनों का पाठ करें। बीच के पाठों में मात्र मूल स्तोत्र का पाठ करें और अन्तिम पाठ में पुनः मूल स्तोत्र एवं फलश्रुति दोनों का पाठ करें। इस प्रकार आप १००८ पाठ को नवरात्रि काल के ९ दिनों में सम्पन्न कर सकते हैं।

        इस प्रयोग को करते समय बार-बार आसन से न उठें, क्योंकि शक्ति की उपासना में विघ्न आने की सम्भावना रहती है।

        यदि किसी कारणवश साधक नवरात्रि काल में इस प्रयोग को सम्पन्न नहीं कर पाए तो किसी भी महीने की पूर्णमासी अथवा रविवार के दिन से इस प्रयोग को शुरू किया जा सकता है।

        प्रयोग समाप्ति के बाद यन्त्र को नदी या कुएं में विसर्जित कर दें तथा चित्र को पूजा स्थान में ही रहने दें।

        यह दुर्गा रहस्य निश्चित ही साधक के सौभाग्य को जागृत करने वाला और शत्रु विनाश के लिए पूर्णतया लाभदायक माना जाता है। यह अद्वितीय एवं नवीन प्रयोग है, जो बाण की तरह अचूक है और लक्ष्य सिद्धि के लिए प्रसिद्ध माना गया है।

                 आपकी साधना सफल हो और यह नवरात्रि आपके लिए मंगलमय हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

                 इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।