शनिवार, 27 अप्रैल 2019

महामातंगी साधना

महामातंगी साधना

             अक्षय तृतीया पर्व समीप ही है। यह इस वर्ष १८ मार्च २०१८ को आ रहा है। इसी दिन मातंगी जयन्ती भी होती है। आप सभी को अग्रिम रूप से अक्षय तृतीया पर्व की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ!

         समस्त जगत जिस शक्ति से चलित है, उसी शक्ति की दस स्वरूप हैं ये दस महाविद्याएँ, जिनके नौवें क्रम में भगवती मातंगी का नाम आता है। भगवान शिव के मतंग रूप में उनकी अर्द्धांगिनी होने के कारण ही उनकी संज्ञा मातंगी रूप में विख्यात हुई।

         जीवन में भगवती मातंगी की साधना प्राप्त होना ही सौभाग्य का प्रतीक माना गया है। महर्षि विश्वामित्र ने तो यहाँ तक कहा है कि बाकी नौ महाविद्याओं का भी समावेश मातंगी साधना में स्वतः ही हो गया है। चाहे हम बाकी नौ साधनाएँ नहीं भी करें और केवल मातंगी साधना को ही सम्पन्न कर लें तो भी अपने आप में पूर्णता प्राप्त हो सकती है।

         इसीलिए तो शास्त्रों में मातंगी साधना की प्रशंसा में कहा गया है‚ कि -------

मातंगी मेवत्वं पूर्ण, मातंगी पूर्णत्व उच्चते।”

         इससे यह स्पष्ट होता है कि मातंगी एकमात्र श्रेष्ठतम साधना है और एकमात्र मातंगी ही पूर्णता दे सकती है।

         मातंगी शब्द जीवन के प्रत्येक पक्ष को उजागर करने की क्रिया के का नाम है, जिससे जीवन के दोनों ही पक्षों को पूर्णता मिलती है। परन्तु मातंगी साधना साधकों के मध्य विशेष रूप से जीवन के भौतिक पक्ष को सुधारने के लिए ही की जाती रही है।

         माना जाता है कि मातंगी देवी की आराधना सर्वप्रथम भगवान विष्णु ने की थी। तभी से वे सुखी, सम्पन्न, श्रीयुक्त तथा उच्च पद पर विराजित हैं। देवी की आराधना बौद्ध धर्म में भी की जाती हैं, किन्तु बौद्ध धर्म के प्रारम्भ में देवी का कोई अस्तित्व नहीं था। कालान्तर में देवी बौद्ध धर्म में मातागिरी नाम से जानी जाती है। तन्त्र विद्या के अनुसार देवी सरस्वती नाम से भी जानी जाती हैं, जो श्रीविद्या महात्रिपुरसुन्दरी के रथ की सारथी तथा मुख्य सलाहकार हैं।

          हम जीवन में सदैव मेहनत करते हैं तथा हमेशा यह प्रयत्न करते रहते हैं कि हमारा समाज तथा हमारा परिवार हमसे सदैव प्रसन्न रहे, परन्तु ऐसा होता नहीं है। उसका सबसे बड़ा कारण है कि हमारे पास बहुमत नहीं है। यहाँ बहुमत का अर्थ प्रसिद्धि से है, क्यूँकि जब तक हमें जीवन में प्रसिद्धि नहीं मिलती, हमारा कोई सम्मान नहीं करता है। दुनिया सर झुकाएगी तो ही परिवार भी हमें सम्मान देगा अन्यथा वो कहावत तो सुनी ही होगी, घर की मुर्गी दाल बराबर। और यदि आप प्रसिद्ध है तो लक्ष्मी भी आपके जीवन में आने को आतुर हो उठती है।

         प्रस्तुत साधना इसीलिए है। कुछ लाभ यहाँ लिख रहा हूँ, जो इस साधना से आपको प्राप्त होंगे -------

     १. इस साधना को सम्पन्न करने के बाद साधक अपने कार्य क्षेत्र में तथा समाज में ख्याति प्राप्त करता है। वह एक लोकप्रिय और यशस्वी व्यक्तित्व बन जाता है।

     २. साधना माँ मातंगी से सम्बन्धित है, अतः साधक को पूर्ण गृहस्थ सुख प्राप्त होता है तथा परिवार में सम्मान होता है। साधक को कुटुम्ब सुख, पुत्र, पुत्रियाँ, पत्नी, स्वास्थ्य, पूर्णायु आदि सभी कुछ प्राप्त होता है, जिससे उसका गृहस्थ जीवन पूर्ण माना जा सकता है।

     ३. माँ मातंगी में महालक्ष्मी समाहित है, अतः साधक का आर्थिक पक्ष मजबूत होता है। स्वास्थ्य, आय, धन, भवन सुख, वाहन सुख, राज्य सुख, यात्राएँ और विविध इच्छाओं की पूर्ति सब कुछ तो मातंगी अपने साधक को प्रदान कर देती है।

         यह केवल मैंने तीन लाभ ही लिखे हैं, परन्तु एक साधक होने के नाते आप सभी यह बात बखूबी जानते है कि कोई भी साधना मात्र लाभ ही नहीं देती है, बल्कि साधक का चहुँमुखी विकास करती है। साथ ही धैर्य तथा विश्वास परम आवश्यक है। अतः साधना साधना कर लाभ उठाएं तथा अपने जीवन को प्रगति प्रदान करें।

साधना विधि :-----------

         यह साधना अक्षय तृतीया या मातंगी जयन्ती अथवा मातंगी सिद्धि दिवस से आरम्भ की जा सकती है। ए तो अधिक श्रेष्ठ रहता है। इसके अतिरिक्त यह साधना किसी भी नवरात्रि के प्रथम दिन से अथवा किसी भी शुक्रवार से शुरू की जा सकती है। फिर भी अक्षय तृतीया से वैशाख पूर्णिमा के मध्य यह साधना सम्पन्न करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

         यह साधना रात्रि १० बजे के बाद शुरू करे या ब्रह्ममुहूर्त में भी की जा सकती है। आसन, वस्त्र सफ़ेद हो तथा आपका मुख उत्तर की ओर हो। सामने बजोट पर सफ़ेद वस्त्र बिछाएं और उस पर अक्षत से बीज मन्त्र “ह्रीं” लिखें, फिर उस पर माँ मातंगी का कोई भी यन्त्र या चित्र स्थापित करे। यह सम्भव न हो तो एक मिटटी के दीपक में तिल का तेल डालकर कर जलाएं और उसे स्थापित कर दें। इस दीपक को ही माँ का स्वरूप मानकर पूजन करना है। अगर अपने यन्त्र या चित्र स्थापित किया है तो घी का दीपक पूजन में लगाना होगा, जो सम्पूर्ण साधना काल में जलता रहे।

         सबसे पहले साधक को चाहिए कि वह समान्य गुरु पूजन करे और गुरुमन्त्र का चार माला जाप करे। फिर सद्गुरुदेवजी से महामातंगी साधना सम्पन्न करने के लिए मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लें और उनसे साधना की पूर्णता एवं सफलता के लिए निवेदन करें।

         तदुपरान्त भगवान गणपतिजी का संक्षिप्त पूजन करके “ॐ वक्रतुण्डाय हुम्” मन्त्र की एक माला जाप करें। फिर गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

         इसके बाद भगवान भैरवनाथजी का स्मरण करके “ॐ हूं भ्रं हूं मतंग भैरवाय नमः” मन्त्र की एक माला जाप करें और भगवान भैरवनाथजी से साधना की निर्बाध पूर्णता एवं सफलता के लिए निवेदन करें।

         तत्पश्चात साधक को साधना के पहले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए। संकल्प में अपनी मनोकामना का उच्चारण करें और उसकी पूर्ति के लिए माँ भगवती मातंगी से साधना में सफलता तथा आशीर्वाद प्रदान करने की प्रार्थना करें।

         इसके बाद साधक माँ भगवती मातंगी का सामान्य पूजन करे, भोग में सफ़ेद मिठाई अर्पित करे। साथ ही कोई भी इतर अर्पित करे। यदि अपने तेल का दीपक स्थापित किया है तो घी का दीपक लगाने की कोई जरुरत नहीं है। बाकी सारा क्रम वैसा ही रहेगा।

         पूजन के बाद माँ भगवती मातंगी से अपनी मनोकामना कहे एवं सफलता तथा आशीर्वाद प्रदान करने की प्रार्थना करे। फिर स्फटिक माला से निम्न मन्त्र की २१ माला करें -----

मन्त्र :-----------

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं महामातंगी प्रचितीदायिनी लक्ष्मीदायिनी नमो नमः

OM HREEM HREEM HREEM MAHAAMAATANGI PRACHITIDAAYINI LAKSHMIDAAYINI NAMO NAMAH.

         मन्त्र जाप के बाद अग्नि प्रज्वलित कर घी, तिल तथा अक्षत मिलकर १०८ आहुति प्रदान करे।

         अगले दिन दीपक हो तो विसर्जन कर दे। यन्त्र या चित्र हो तो पूजाघर में रख दे। प्रसाद स्वयं ग्रहण कर ले। इतर सँभाल कर रख ले, प्रतिदिन इसे लगाने से आकर्षण पैदा होता है। इस तरह यह एक दिवसीय साधना सम्पन्न होगी।

          कुछ दिनों में आप साधना का प्रभाव स्वयं अनुभव करने लग जाएंगे तो देर किस बात की? साधना करें तथा जीवन को पूर्णता प्रदान करें!

          आपकी साधना सफल हो और आपकी मनोकामना माँ भगवती पूर्ण करे! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्रीनिखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।

 

शनिवार, 13 अप्रैल 2019

हनुमान प्रत्यक्ष सिद्धि प्रयोग


हनुमान प्रत्यक्ष सिद्धि प्रयोग


          श्रीहनुमान जयन्ती निकट ही है। इस बार यह १९ अप्रैल २०१९ को आ रही है। आप सभी को श्रीहनुमान जयन्ती की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          हनुमान शक्तिशाली, पराक्रमी, संकटों का नाश करने वाले और दुःखों को दूर करने वाले महावीर हैं। इनके नाम का स्मरण ही साहस और शक्ति प्रदान करने वाला है।  एक कहावत है कि "घर का जोगी जोगिया और आन गाँव का सिद्ध" यह बात पवनपुत्र रुद्रावतार श्रीहनुमान के सम्बन्ध में लागू होती है। श्रीहनुमान साधना द्वारा कष्टों का निवारण जिस सरल और सहज भाव से हो सकता है, उतनी सरल कोई अन्य साधना नहीं है। फिर क्लिष्ट साधनाएँ क्यों की जाए, हनुमान साधनाएँ तो रामबाण साधनाएँ हैं।

          कई वर्ष पुरानी बात है। मेरे एक मित्र का नौकरी के लिए इण्टरव्यू था, मित्र बड़े परेशान और वास्तव में भयभीत थे, नौकरी की बहुत सख्त आवश्यकता थी। इण्टरव्यू के लिए बुलावा दो सौ से अधिक लोगों का था और चयन केवल पाँच का ही होना था। चिन्ता और अनिश्चय से मित्र बड़े व्याकुल थे, मैंने कहा कि इण्टरव्यू में भीतर जाने से पहले शान्त मन से केवल एक बार "हनुमान मन्त्र चमत्कारानुष्ठान" का पाठ अवश्य कर लेना। तब परीक्षार्थी तो पुस्तक टटोल रहे थे, परन्तु मेरे मित्र एक कुर्सी पर बैठकर "हनुमान मन्त्र चमत्कारानुष्ठान" का पाठ कर रहे थे। पाठ करने के बाद उनका नम्बर आया और वह सहज भाव से पूरे आत्मविश्वास के साथ भीतर गए, बिना किसी सिफारिश के उनका सेलेक्शन हो गया। यह श्रीहनुमान चमत्कार ही है।

          यह सिद्ध बात है कि कृष्णपक्ष में अर्धरात्रि के पश्चात शहर के किसी घने जंगल अथवा श्मशान में भी हनुमान मन्त्र, हनुमान चालीसा का पाठ करते हुए हनुमान साधक निकल जाएं तो सर्प, बिच्छू, जंगली जानवर तो क्या, भूत, प्रेत, पिशाच भी पास नहीं फटकते! मरणान्तक पीड़ा से व्याप्त कष्ट भोगते हुए रोगियों को हनुमान साधना से अभिमन्त्रित जल पिलाया है  और हनुमानजी की कृपा से वे पूर्ण स्वस्थ हुए हैं। ऐसा केवल हनुमानजी ही कर सकते हैं, वे अपने भक्तों को कष्ट में नहीं देख सकते। उनके लिए कुछ भी करना सहज सम्भव है, क्योंकि जो एक संजीवनी बूटी के लिए पूरा पहाड़ उठाकर ले जा सकते हैं, जो रावण जैसे महाप्रतापी का अहंकार चूर-चूर कर सकते हैं, ऐसे एकादश रूद्र की महिमा उनकी भक्ति करके ही जानी जा सकती है।

          श्रीहनुमान प्रतीक है ब्रह्मचर्य, बल, पराक्रम, वीरता, भक्ति, निडरता, सरलता और विश्वास के। शत्रु अथवा बाधा न छोटी होती है और न बड़ी, वह तो केवल व्यक्ति या घटना होती है और उस पर आत्मविश्वास द्वारा विजय प्राप्त की जा सकती है। और जो श्रीहनुमान का साधक है, उसके भीतर तो आत्मविश्वास, आत्मशक्ति छलकती रहती है। उसे ज्ञान है कि मेरी पीठ के पीछे प्रबल पराक्रम के देव बजरंगबली खड़े हैं, फिर मुझे काहे की चिन्ता!

हनुमान उपासना में कुछ आवश्यक तथ्य

     १. हनुमान मूर्ति को तिल में मिले हुए सिन्दूर का लेपन करना चाहिए।

     २. नैवेद्य में प्रातः गुड, नारियल का गोला व लड्डू, मध्याह्न में गुड़, घी और गेहूँ की रोटी का चूरमा अथवा मोटा रोट तथा रात्रि में आम, अमरूद अथवा केला नैवेद्य रूप में चढ़ाना श्रेष्ठ माना गया है।

     ३. पुष्पों में केवल लाल और पीले बड़े फूल जैसे कमल, हजारा, सूर्यमुखी, गेन्दा चढ़ाना चाहिए।

     ४. घी में भीगी हुई एक अथवा पाँच बत्तियों का दीपक जलाना चाहिए।

     ५. हनुमान साधना में ब्रह्मचर्य व्रत का पूर्ण रूप से पालन करें।

     ६. सम्भव हो तो कुएं के जल से स्नान करें।

      ७. हनुमान मन्त्र का जप बोलकर अर्थात आवाज के साथ हनुमान मूर्ति/चित्र में नेत्रों को देखते हुए किया जाता है।

     ८. अनिष्ट की इच्छा से हनुमान साधना नहीं करनी चाहिए।

     ९. श्रीहनुमान सेवा, पूजा के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं, अतः साधक को सेवा करके फल प्राप्ति की इच्छा रखनी चाहिए, पूजा में पूर्ण श्रद्धा और सेवा भाव होना चाहिए।

     १०. पूजा स्थान में भगवान राम व सीता का चित्र होना हनुमान जी को प्रियकर लगता है।

साधना विधान :-----------

          हनुमान जयन्ती हनुमान साधना का सिद्ध दिवस है। इस दिन संकल्प लेकर आरम्भ किया गया अनुष्ठान/साधना निष्फल नहीं जाती और साधक को अल्पकाल में ही परिणाम दृष्टिगोचर होने लगते हैं। आगे हनुमान प्रत्यक्ष सिद्धि साधना प्रस्तुत की जा रही है, जिसे इस दिन से अथवा किसी भी मंगलवार को आरम्भ किया जा सकता है।

          साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल वस्त्र धारण कर दक्षिणाभिमुख होकर वीरासन में बैठ जाएं। अपने सामने एक चौकी पर सिन्दूर छिड़क दें तथा उस पर हनुमानजी का चित्र स्थापित करें। अपने सामने लाल वस्त्र से ढँके बाजोट पर मन्त्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित "हनुमत यन्त्र" को किसी पात्र में स्थापित करें। यन्त्र पर सिन्दूर अच्छी तरह से लगा दें। फिर गुड़, घी, आटे से बनी हुई रोटी को मिलाकर लड्डू बनाकर उसका भोग लगावें।

         फिर दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प करें कि मैं अमुक नाम का व्यक्ति अमुक गोत्र अमुक प्रयोजन से यह अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हूँ। भगवान हनुमान मेरी साधना को स्वीकार कर मेरा मनोरथ सिद्ध करें। और फिर जल को भूमि पर छोड़ दें।

          इसके बाद श्रीहनुमानजी का सकाम ध्यान करें। दोनों आँखें बन्द कर कुछ देर तक उनके स्वरूप का स्मरण करें तथा उनके आशीर्वाद की कामना करें। हनुमान का ध्यान मन्त्र इस प्रकार है -----

ॐ अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनां अग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
मनोजवं मारुततुल्य वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानर यूथमुख्यं श्री रामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥

          ध्यान के पश्चात फिर निम्न मन्त्र का "मूँगा माला" से २१ माला मन्त्र जाप करें -----

मन्त्र :-----------

॥ ॐ नमो हनुमन्ताय आवेशय आवेशय स्वाहा ॥

OM NAMO HANUMANTAAY AAVESHAY AAVESHAY SWAAHA.

          मन्त्र जाप के बाद एक आचमनी जल छोड़कर समस्त जाप समर्पित कर दें। इसके तुरन्त बाद पूजा स्थान में वहीं भूमि पर ही सो जाएं। यह रात्रिकालीन साधना है। इस प्रकार नित्य ११ दिनों तक करें। जो नैवेद्य हनुमानजी के सामने रखा है, वह आठों प्रहर रखा रहे। अगले दिन रात्रि को वह नैवेद्य दूसरे पात्र में रख दें और नया नैवेद्य हनुमानजी को चढ़ा दें।

          यह निश्चित है कि ११ वें दिन हनुमानजी साधक को प्रत्यक्ष दर्शन देंगे और उसके प्रश्नों का उत्तर देंगे अथवा जिस निमित्त से यह प्रयोग किया गया है, वह कार्य निश्चय ही सम्पन्न होगा।

          जब यह प्रयोग पूरा हो जाए तो वह एकत्र किया हुआ नैवेद्य या तो किसी गरीब व्यक्ति को दे दें अथवा दक्षिण दिशा में घर के बाहर भूमि खोदकर उसे गाड़ दें।

          इसी प्रयोग से साधकों ने कई बड़ी-बड़ी विपत्तियों को सरलता से टाला है, भयंकर रोगों से छुटकारा पाया है, दण्ड पाये व्यक्ति को इस प्रयोग से निदान/छुटकारा मिल सका है, वास्तव में ही यह प्रयोग अपने आप में अचूक और अद्वितीय है।

           आपकी यह साधना सफल हो और भगवान हनुमानजी आपका मनोरथ सिद्ध करें! मैं सद्गुरुदेवजी से यही प्रार्थना करता हूँ।

           इसी कामना के साथ
 
ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश॥।

गुरुवार, 4 अप्रैल 2019

समस्त पाप-दोष, श्राप-दोष एवं कीलन-दोष समापन प्रयोग


समस्त पाप-दोष, श्राप-दोष एवं कीलन-दोष समापन प्रयोग


                  वासन्तीय (चैत्र) नवरात्रि पर्व समीप ही है। यह ६ अप्रैल २०१९ से आरम्भ हो रहा है। इसी दिन से हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत २०७६ भी शुरू हो रहा है। आप सभी को हिन्दू नववर्ष एवं चैत्र नवरात्रि की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          चैत्र नवरात्रि का यह पर्व ज्योतिषीय तथा खगोलीय दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस दौरान सूर्य का मेष राषि में प्रवेश होता है। सूर्य का यह राशि परिवर्तन हर राशि पर प्रभाव डालता है तथा इसी दिन से नववर्ष के पंचाग गणना की शुरुआत होती है। चैत्र नवरात्रि के यह नौ दिन इतने शुभ माने जाते हैं कि इन नौ दिनों में आप यदि कोई नया कार्य आरम्भ करना चाहते हैं, तो आपको किसी विशेष तिथि का इन्तजार करने की आवश्यकता नही है। आप पूरी चैत्र नवरात्रि के दौरान कभी भी कोई भी नया कार्य आरम्भ कर सकते हैं।

          इसके साथ ही ऐसी भी मान्यता है कि जो व्यक्ति बिना किसी लोभ के चैत्र नवरात्रि में महादुर्गा की पूजा करता है, वो जन्म-मरण के इस बन्धन से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है।

          माँ आद्या शक्ति की कृपा से मनुष्य में आत्मबल, दृढ़ विश्वास, दया, प्रेम, भक्ति जैसे सद्गुणों का विकास होता है। जीवन के इन्हीं मूल्यों को समझकर मनुष्य जीवन में सच्चा सुख, शान्ति, वैभव, धन, सम्पदा को प्राप्त करता है, अन्यथा इस संसार के दलदल से निकलना उसके लिए सम्भव नहीं है। इसलिए असम्भव को भी सम्भव कर दिखाने की शक्ति मनुष्य को देवी कृपा से ही प्राप्त होती है।

          नवरात्रि में पूजा उपासना का मुख्य उद्देश्य होता है माँ दुर्गा की आराधना, मनुष्य का तन-मन और इन्द्रियाँ संयमित होना। पूर्ण निष्ठा एवं श्रद्धा भाव से किए गए उपवास से मनुष्य का तन सन्तुलित होता है। मनुष्य के तन के संतुलित होने पर योग बल से मनुष्य की इन्द्रियाँ संयमित हो जाती है। इन्द्रियों के संयमित होने पर मनुष्य का मन देवी आराधना में स्थिर हो जाता है, जिसके बल पर मनुष्य को मनोवांछित लाभ की प्राप्ति हो सकती है, इसमें जरा भी संशय नहीं है।

          पुराणों में चैत्र नवरात्रि को विशेष महत्व दिया गया है, इसे आत्म शुद्धि और मुक्ति का आधार माना गया है। चैत्र नवरात्रि में माँ दुर्गा का पूजन करने से नकरात्मक ऊर्जा का खात्मा होता है और हमारे चारों ओर सकरात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

          क्या आपका जीवन किसी के श्राप से दूषित हो गया है या बँध गया है? आपको साधना या अनुष्ठान करने पर भी उसका लाभ नहीं मिल पा रहा है तो अवश्य ही आप बाधित है। श्राप दोष से मुक्ति केवल माँ भगवती दुर्गा की विशेष साधना से ही सम्भव है। आज मैं एक विशिष्ट प्रयोग दे रहा हूँ, जिसे सम्पन्न कर जीवन में श्राप-दोष एवं पाप-दोष से मुक्ति प्राप्त होती ही है। यह प्रयोग सिर्फ पाप-दोष ही समाप्त नहीं करता, बल्कि श्राप-दोष और कीलन-दोष भी नष्ट कर देता है।

साधना विधान :-----------

          यह प्रयोग किसी भी माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से अथवा आने वाली नवरात्रि के प्रथम दिवस से आरम्भ कर नौ दिन तक निरन्तर करें। इस प्रयोग को रात्रि में ही करना चाहिए।

         साधक को चाहिए कि वह स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल वस्त्र धारण कर लाल आसन पर उत्तर दिशा की ओर मुँह कर बैठ जाएं। अपने सामने एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर मां भगवती दुर्गा का चित्र अथवा विग्रह स्थापित करें। चित्र के पास ही गणेश एवं गुरु को स्थान दें। फिर शुद्ध घी का दीपक एवं धूप प्रज्ज्वलित कर दें।

          सबसे पहले साधक सामान्य गुरु-पूजन एवं गणेश-पूजन करके गुरु-मन्त्र का पाँच माला जाप करें। फिर भगवान गणेश और सद्गुरुदेवजी से साधना में पूर्ण सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          अब दाहिने हाथ में जल, अक्षत, पुष्प लेकर अपने नाम व गोत्र का उच्चारण कर समस्त पाप-दोष, श्राप-दोष एवं कीलन-दोष से मुक्ति का संकल्प लें और गणेशजी के पास रख दें।
  
          इसके बाद माँ भगवती दुर्गा का सामान्य पूजन कर भोग में मिष्ठान्न व फल अर्पित करें। फिर माँ भगवती से अपने समस्त पाप-दोष, श्राप-दोष एवं कीलन-दोष से मुक्ति के लिए निवेदन करें।

          फिर सर्वप्रथम निम्नलिखित उत्कीलन मन्त्र का १०८ बार जाप करें -----

॥ ॐ श्रीं श्रीं क्लीं हूं ॐ ऐं क्षोभय मोहय उत्कीलय उत्कीलय उत्कीलय ठं ठं ॐ ॥

          तत्पश्चात साधक निम्न विनियोग मन्त्र का उच्चारण करते एक आचमनी जल भूमि पर छोड़ दें -----

विनियोग :----------

ॐ अस्य श्रीचण्डिकाया ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापविमोचनमन्त्रस्य वशिष्ठ-नारदसंवाद-सामवेदाधिपतिब्रह्माण ऋषयः, सर्वैश्वर्कारिणी श्रीदुर्गादेवता, चरित्रत्रयं बीजं, ह्रीं शक्तिः त्रिगुणात्मस्वरूपचण्डिकाशापविमुक्तौ मम संकल्पित कार्यसिद्धयर्थे जपे विनियोगः।

          अब निम्नलिखित शापोद्धार मन्त्र का २१ बार जाप करें -----

॥ ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिका देव्यै शाप नाशानुग्रहं कुरु-कुरु स्वाहा ॥

          इसके बाद रुद्रयामल महातन्त्र के अन्तर्गत दुर्गाकल्प में कहे गए चण्डिका-शाप-विमोचन अष्टादश शक्ति मन्त्रों का २१-२१ बार जाप करना चाहिए।

अष्टादश शक्ति मन्त्र :----------

॥ ॐ ह्रीं रेतःस्वरूपिण्यै मधुकैटभमर्दिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१॥

॥ ॐ श्रीं बुद्धिस्वरूपिण्यै महिषासुरसैन्यनाशिन्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥२॥

॥ ॐ रं रक्तस्वरूपिण्यै महिषासुरमर्दिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥३॥

॥ ॐ क्षुं क्षुधास्वरूपिण्यै देववन्दितायै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥४॥

॥ ॐ छां छायास्वरूपिण्यै दूतसंवादिन्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥५॥

॥ ॐ शं शक्तिस्वरूपिण्यै धूम्रलोचनघातिन्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥६॥

॥ ॐ तृं तृषास्वरूपिण्यै चण्डमुण्डवधकारिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥७॥

॥ ॐ क्षां क्षान्तिस्वरूपिण्यै रक्तबीजवधकारिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥८॥

॥ ॐ जां जातिस्वरूपिण्यै निशुम्भवधकारिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥९॥

॥ ॐ लं लज्जास्वरूपिण्यै शुम्भवधकारिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१०॥

॥ ॐ शां शान्तिस्वरूपिण्यै देवस्तुत्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥११॥

॥ ॐ श्रं श्रद्धास्वरूपिण्यै सकलफलदात्र्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१२॥

॥ ॐ कां कान्तिस्वरूपिण्यै राजवरप्रदायै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१३॥

॥ ॐ मां मातृस्वरूपिण्यै अनर्गलमहिमसहितायै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१४॥

॥ ॐ ह्रीं श्रीं दुं दुर्गायै सं सर्वैश्वर्यकारिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१५॥

॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः शिवायै अभेद्यकवचस्वरूपिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१६॥

॥ ॐ क्रीं काल्यै कालि ह्रीं फट् स्वाहायै ऋग्वेदस्वरूपिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१७॥

॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वती स्वरूपिण्यै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गादेव्यै नमः ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१८॥

          साधक को प्रत्येक अष्टादश शक्ति मन्त्र का २१-२१ बार जप करना है।

          प्रत्येक अष्टादश शक्ति मन्त्र जप के बाद माँ भगवती दुर्गा के चरणों में एक लाल पुष्प अर्पित करते जाएं। इस प्रकार १८ पुष्प अर्पित करने चाहिए। अष्टादश शक्ति मन्त्रों के जप के पश्चात पुनः २१ बार शापोद्धार मन्त्र का जप करना है।

          इसके बाद पुनः १०८ बार उत्कीलन मन्त्र का जाप करना चाहिए।

          यह शक्ति प्रयोग अत्यन्त तीव्र और प्रभावकारी है। इन अष्टादश शक्तियों का जब आवाहन किया जाता है, तब शरीर और मन से श्राप, पाप एवं कीलन दोष का निराकरण होता ही है। उस समय एक ज्वलन शक्ति-सी उठती है, कुछ विचित्र-से भाव होने लगते हैं। साधक अपने आप को शान्त रखते हुए यह प्रयोग करें।

           अत्यन्त परिश्रम से आप सब के लिए जनकल्याण के उद्देश्य से उपरोक्त मन्त्रों को लिखा है। आशा करता हूँ कि आप सब अवश्य ही इस प्रयोग को करेंगे और लाभान्वित होंगे।

                 आपकी साधना सफल हो और यह नवरात्रि आपके लिए मंगलमय हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

                 इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।