रविवार, 30 जुलाई 2017

रक्षा बन्धन प्रयोग

रक्षा बन्धन प्रयोग


                     रक्षा बन्धन अर्थात राखी पर्व समीप ही है। यह पर्व इस वर्ष ७ अगस्त २०१७ को आ रहा है। आप सभी को रक्षा बन्धन पर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ।

          रक्षा बन्धन का पर्व आते ही सभी व्यक्तियों के हृदय में एक भावनात्मक सम्बन्ध उत्पन्न हो जाता है। रक्षा बन्धन का पर्व भारत में अत्यधिक महत्व रखता है, इस पर्व का अर्थ अन्य पर्वों से हटकर है। न तो यह किसी मठ से सम्बन्धित है और न ही किसी विशेष सम्प्रदाय से, अपितु सभी धर्मों में इस पर्व को अति सम्मानजनक स्थान प्राप्त है और सभी धर्मों में इसको अत्यधिक उल्लास के साथ सम्पन्न किया जाता है। इस पर्व का उद्देश्य है - "रक्षा"। रक्षा, इस शब्द के पीछे उनका उद्देश्य यही था कि व्यक्ति अपनी रक्षा स्वयं करें, सामाजिक रूप से भी तथा आर्थिक रूप से भी।

          रक्षा बन्धन के पर्व पर बहिनें अपने भाई के हाथ में रक्षा सूत्र बाँधती हैं, जिसका अर्थ है कि भाई अपनी बहिन की मान, मर्यादा, यश, प्रतिष्ठा की रक्षा करेगा और बहिनें अपने भाई की लम्बी आयु तथा श्रेष्ठ जीवन एवं सभी तरह से सम्पन्न जीवन की कामना करती है। आज के आधुनिक युग में तो रक्षा बन्धन की मात्र यही परिभाषा कह गई है।

          जब भी बहिन अपने भाई के हाथ में राखी बाँधती है तो भाई स्वयं को उसका रक्षक मान बैठता है, परन्तु -----
     ---क्या वह इतना सक्षम होता है कि हर मुसीबत से अपनी तथा उसके जीवन की रक्षा कर सके?
    ---यदि वह इतना सक्षम नहीं होता तो इस पर्व का अर्थ क्या है?
    --- फिर इसका मूल उद्देश्य क्या है?

          हमारे महर्षियों ने इस पर्व की रचना मात्र इसी उद्देश्य से तो नहीं की होगी, बल्कि इसकी रचना के पीछे उनका कोई विशेष उद्देश्य रहा होगा। हम लोग इसका मूल उद्देश्य भूलकर इसे केवल धागों का ही बन्धन मान बैठे हैं। इस पर्व की रचना के पीछे उनका मुख्य उद्देश्य यह रहा होगा कि व्यक्ति स्वयं के जीवन की सम्पूर्ण सुरक्षा के साथ ही साथ अपने सम्बन्धियों के जीवन की भी सुरक्षा कर सके।

          इस विशिष्ट दिवस पर जो कि रक्षा बन्धन के नाम से सुशोभित है, ग्रह-नक्षत्रों का एक विशेष सम्बन्ध स्थापित होता है, जिसके कारण दिव्य शक्तियों से युक्त रश्मियाँ इस दिवस विशेष में पृथ्वी को आच्छादित कर लेती हैं। इसी कारण ऋषियों ने इस दिवस को एक पावन पर्व के रूप में स्थापित किया, क्योंकि इस विशिष्ट मुहूर्त में यदि अपने इष्ट की अथवा अपने गुरु द्वारा निर्देशित साधना की जाए तो वर्ष पर्यन्त सुरक्षा का उपाय प्राप्त होता है।

          पुरातन काल की तरह आधुनिक काल में भी व्यक्ति अपनी शारीरिक, आर्थिक व सामाजिक रूप से सम्पूर्ण सुरक्षा के लिए प्रयत्न करता रहता है और अपने जीवन की सम्पूर्ण सुरक्षा के लिए उपाय ढूँढता रहता है। इसके लिए वह समस्त प्रकार की आपदाओं को समाप्त करना चाहता है और भौतिक संसाधनों के साथ ही साथ दैवीय सहायता भी प्राप्त करने का प्रयास करता है। इसी कारण वह व्रत-उपवास रखता है, मन्दिरों में जाता है, पूजा-पाठ तथा साधनाएँ सम्पन्न करता है।

          जैसा कि ऊपर स्पष्ट किया गया है कि रक्षा बन्धन की रचना व्यक्ति की असुरक्षा की भावना को समाप्त करने के लिए ही की गई है। इस विशेष दिवस पर व्यक्ति साधना सम्पन्न करके अपने जीवन को दैवीय सुरक्षा प्रदान कर सकता है।

         अपने जीवन को सुरक्षा प्रदान करना व्यक्ति का धर्म ही है। यदि व्यक्ति जीवन में अपने आपको सुरक्षित अनुभव नहीं करता है तो स्वाभाविक रूप से उसकी आधी ऊर्जा उन भयास्पद परिस्थितियों से जूझने में ही समाप्त हो जाती है। भयग्रस्त रहने के कारण व्यक्ति का व्यक्तित्व शनैः-शनैः समाप्त होने लगता है।

          यदि भयातुर व्यक्ति में सुरक्षा की भावना उत्पन्न हो जाए तो वह साहस कर उन परिस्थितियों से भी जूझ जाता है, जिनके विचार से भी कभी उसकी शक्ति क्षीण हो जाती थी।

          व्यक्ति सुरक्षा के प्रति कितना अधिक सचेष्ट रहता है, इसका उदाहरण महाभारत जैसे ग्रन्थ में स्पष्टता से देखने को मिलता है। महाभारत युद्ध का निर्धारण हो चुका था, कौरव और पाण्डव अपनी-अपनी रणनीति तैयार कर रहे थे। कौरवों की ओर महान योद्धा भीष्म, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य आदि थे, जबकि पाण्डवों की ओर कुछ गिने-चुने व्यक्ति ही थे। श्रीकृष्ण पाण्डवों के पक्ष में थे और वे उन्हें विजय दिलाने के लिए प्रयत्नशील थे। युद्ध के आरम्भ में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उसकी सुरक्षा के लिए एक साधना सम्पन्न करवाई थी, जिसके कारण उन्हें युद्ध में निरन्तर दैवीय सहायता प्राप्त होती रही और वे युद्ध में विजयी हुए।

          साधना द्वारा अपने आपको सुरक्षित करने का विधान अति प्राचीन तथा प्रामाणिक है।

साधना विधान :-----------

          इस साधना को आप रक्षा बन्धन के दिन अथवा किसी भी मास की पूर्णिमा को प्रारम्भ कर सकते हैं। इस साधना में आवश्यक सामग्री "सर्व रक्षाकारी यन्त्र" तथा "सफ़ेद हकीक माला" है।

          यदि साधना सामग्री उपलब्ध न हो तो भी आप इस साधना को पारद शिवलिंग पर सम्पन्न कर सकते हैं। यह साधना ग्यारह दिवसीय है और किसी भी समय सम्पन्न की जा सकती है।

          सर्वप्रथम साधक स्नान करके पीले वस्त्र धारण कर लाल अथवा पीले आसन पर बैठ जाएं। अपने सामने बाजोट पर पीला या सफ़ेद वस्त्र  बिछाकर उसपर पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का चित्र स्थापित करें। चित्र सामने किसी ताम्रपात्र में यन्त्र अथवा पारद शिवलिंग स्थापित कर दें। फिर घी का दीपक प्रज्ज्वलित कर धूप-अगरबत्ती जला दें।

          इसके बाद पहले सामान्य गुरुपूजन करके गुरुमन्त्र की कम से कम चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से रक्षा बन्धन प्रयोग सम्पन्न करने की अनुमति लें और उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          तत्पश्चात संक्षिप्त गणपति पूजन सम्पन्न करें और एक माला गणेश मन्त्र का जाप करें। फिर भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          इसके बाद साधना के पहले दिन साधक को संकल्प अवश्य लेना चाहिए।

          तदुपरान्त साधक यन्त्र अथवा शिवलिंग का पूजन कुमकुम, पुष्प तथा अक्षत से करें और नैवेद्य अर्पित करें। यन्त्र या शिवलिंग के समक्ष एक जलपात्र रखें।

          फिर साधक सफ़ेद हकीक माला अथवा रुद्राक्ष माला से निम्न मन्त्र की नित्य २१ माला जाप करें -----

मन्त्र :----------
          ।। ॐ रं रुद्राय रं ॐ फट् ।।

                    OM RAM RUDRAAY RAM OM PHAT.

          मन्त्र जाप समाप्त होने के बाद जलपात्र का थोड़ा-सा जल लेकर स्वयं पर छिड़क दें तथा बचा हुआ जल किसी पौधे की जड़ में डाल दें।

         इस प्रकार यह साधना क्रम नित्य ग्यारह दिनों तक सम्पन्न करें।

         साधना समाप्ति के बाद यन्त्र तथा माला को किसी रविवार को दिन नदी में प्रवाहित कर दें। यदि आपने शिवलिंग पर साधना सम्पन्न की है, तो उस शिवलिंग को पूजा स्थान में स्थापित कर दें।

          आपकी साधना निखिल कृपा से सफल हो। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

                      इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।

बुधवार, 19 जुलाई 2017

नागपंचमी पूजन साधना

नागपंचमी पूजन साधना



           नागपंचमी पर्व निकट ही है। इस बार नागपंचमी २८ जुलाई २०१७ को आ रही है। आप सभी को नागपंचमी पर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ।

            हमारे धर्म ग्रन्थों में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पूजा का विधान है। पुराणों के अनुसार नागों की अनेक जातियाँ और प्रजातियाँ हैं। भविष्य पुराण में नागों के लक्षण, नाम, स्वरूप एवं जातियों का विस्तार से वर्णन मिलता है। मणिधारी तथा इच्छाधारी नागों का भी उल्लेख मिलता है।

           श्रावणमास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी का त्यौहार नागों को समर्पित है। इस त्यौहार पर व्रत पूर्वक नागों का अर्चन-पूजन होता है। व्रत के साथ एक बार भोजन करने का नियम है। पूजा में पृथ्वी पर नागों का चित्रांकन किया जाता है। स्वर्ण, रजत, काष्ठ या मृत्तिका से नाग बनाकर पुष्प, गन्ध, धूप-दीप एवं विविध नैवेद्यों से नागों का पूजन होता है।

           नाग अथवा सर्प पूजा की परम्परा पूरे भारतवर्ष में प्राचीनकाल से रही है। प्रत्येक गाँव में ऐसा स्थान अवश्य होता है, जिसमें नाग देव की प्रतिमा बनी होती है और उसका पूजन किया जाता है।

           धर्मग्रन्थों के अनुसार नागपंचमी के दिन नाग अर्थात सर्प के दर्शन व उसके पूजन का विशेष फल मिलता है। जो भी व्यक्ति नागपंचमी के दिन नाग की पूजा करता है, उसे कभी भी नाग अर्थात साँप का भय नहीं होता और न ही उसके परिवार में किसी को नागों द्वारा काटे जाने का भय सताता है। 

           नागपंचमी का पर्व मनाए जाने के पीछे जो कथा प्रचलित है, वह संक्षेप में इस प्रकार है --- 


           एक किसान जब अपने खेतों में हल चला रहा था, उस समय उसके हल से कुचल कर एक नागिन के तीन बच्चे मर गए। अपने बच्चों को मरा देखकर क्रोधित नागिन ने किसान, उसकी पत्नी और लड़कों को डँस लिया। जब वह किसान की कन्या को डँसने गई, तब उसने देखा कि किसान की कन्या दूध का कटोरा रखकर नागपंचमी का व्रत कर रही है। यह देख नागिन प्रसन्न हो गई। उसने कन्या से वर माँगने को कहा। किसान कन्या ने अपने माता-पिता और भाइयों को जीवित करने का वर माँगा। नागिन ने प्रसन्न होकर किसान परिवार को जीवित कर दिया और तभी से यह परम्परा चली आ रही है कि श्रावण शुक्ल पंचमी को नागदेवता का पूजन करने से किसी प्रकार का कष्ट और भय नहीं रहता।

क्या नाग देवता हैं?

             जिस प्रकार मनुष्य योनि है, उसी प्रकार नाग भी योनि भी है। प्राचीन कथाओं में उल्लेख मिलता है कि पहले नागों का स्वरूप मनुष्य की भाँति होता था, लेकिन नागों को विष्णु की अनन्य भक्ति के कारण वरदान प्राप्त होकर इनका स्वरूप बदल दिया गया और इनका स्थान विष्णु की शय्या के रूप में हो गया। नाग ही ऐसे देव हैं, जिन्हें विष्णु का साथ हर समय मिलता है और भगवान शंकर के गले में शोभा पाते हैं। भगवान भास्कर (सूर्य) के रथ के अश्व भी नाग का ही स्वरूप हैं।




             भय एक ऐसा भाव है, जिससे कि बली से बली व्यक्ति, बुद्धिमान से बुद्धिमान व्यक्ति भी अपने को शक्तिहीन समझता है। कोई अपने शत्रुओं से भय खाता है, कोई अपने अधिकारी से भय खाता है, कोई भूत-प्रेत से भयभीत रहता है। भयभीत व्यक्ति उन्नति की राह पर कदम नहीं बढ़ा सकता है। भय का नाश और भय पर विजय प्राप्त करना प्रत्येक मनुष्य के लिए आवश्यक है और नाग, सर्प देवता भय के प्रतीक हैं। इसलिए इनकी पूजा का विधान हर जगह मिलता है।

              इस बार यह पर्व २८ जुलाई २०१७ शुक्रवार को है। इस दिन नाग देवता की पूजा किस प्रकार करें, इसकी विधि इस प्रकार है -----

पूजन विधि :----------

             नागपंचमी के दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर अपने आसन पर बैठ जाएं। अब सबसे पहले सामान्य गुरुपूजन सम्पन्न करके गुरुमन्त्र की चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से नागपंचमी पूजन एवं साधना सम्पन्न करने की अनुमति लें और उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

            इसके बाद भगवान गणपतिजी का स्मरण करके एक माला गणेश मन्त्र की जाप करें और उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

            इसके बाद भगवान शंकर का ध्यान करें -----

ॐ ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतन्सम्,
रत्नाकल्पोज्ज्वलांगं परशुमृग वराभीतिहस्तं प्रसन्नम्।
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानम्,
विश्वाद्यं विश्ववन्द्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्।।

          फिर दूध मिश्रित जल से शिवलिंग का अभिषेक करके संक्षिप्त शिवपूजन करें और "ॐ नमः शिवाय" मन्त्र की एक माला जाप करें। फिर भगवान शिव से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

            इसके बाद नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा (सोने, चाँदी या ताँबे से निर्मित) को किसी ताँबा की प्लेट में स्थापित करके उसके सामने २१ बार निम्न मन्त्र बोलें ------

ॐ अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शंखपाल धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात:काले विशेषत:।।
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।

            इसके बाद व्रत-उपवास एवं पूजा-उपासना का संकल्प लें। नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा को दूध से स्नान करवाएं। इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर गन्ध, पुष्प, धूप, दीप से पूजन करें तथा सफेद मिठाई का भोग लगाएं।

            इसके बाद प्रार्थना करें ------

सर्वेनागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले।।
ये च हेलिमरीचिवस्था येन्तरे दिवि संस्थिता।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।                                                                              ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।

          प्रार्थना के बाद निम्न नाग गायत्री मन्त्र का यथाशक्ति १०८ अथवा १००८ बार
 जाप करें ------

।। ॐ नागकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात् ।।

           इसके बाद सर्प सूक्त का पाठ करें ------

सर्पसूक्तः
ब्रह्मलोकुषु ये सर्पा: शेषनाग पुरोगमा:
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥१॥

विष्णुलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥२॥

काद्रवेयाश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणाः।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥३॥

इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षको प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥४॥

सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिताः।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥५॥

मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥६॥

समुद्रतीरे ये सर्पाः ये सर्पाः जलवासिन:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥७॥

रसातलेषु च ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥८॥

सर्पसत्रे तु ये सर्पा: आस्तिकेन च रक्षिताः।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥९॥

धर्मलोकेषु  च ये सर्पा: वैतरण्यां समाश्रिताः।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥१०॥

पर्वताणां  च ये सर्पा: दरीसन्धिषु  संस्थिताः।                           नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥११॥

खाण्डवस्य तथा दाहे स्वर्गं ये च समाश्रिताः।                         नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥१२॥

पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये  साकेतवासिनः
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥१३॥

सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसन्ति  सर्वे स्वच्छन्दाः।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥१४॥

ग्रामे वा यदिवारण्ये ये सर्पा: प्रचरन्ति च।                                                        नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥१५॥

            नागदेवता की आरती करें और प्रसाद बाँट दें। इस प्रकार पूजन करने से नागदेवता प्रसन्न होते हैं और हर मनोकामना पूरी करते हैं।

विशेष :----------

            यदि जातक की कुण्डली में कालसर्प दोष या पितृ दोष विद्यमान है, तो ऐसे जातक को उपरोक्त पूजन विधान अवश्य सम्पन्न करना चाहिए।

            हालांकि यह पूजन विधान एक दिवसीय ही है। कालसर्प दोष या पितृ दोष से युक्त कुण्डली वाले जातक इसे ११ या २१ दिनों तक सम्पन्न कर सकते हैं। इस विधान को सम्पन्न करने से कालसर्प अथवा पितृ दोष के दुष्प्रभाव न्यून हो जाते हैं।

           आपकी साधना सफल हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

               इसी कामना के साथ

         ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।


सोमवार, 3 जुलाई 2017

महामृत्युंजय तन्त्र के सिद्ध प्रयोग

महामृत्युंजय तन्त्र के सिद्ध प्रयोग




         श्रावण मास समीप ही है। इस बार यह मास १० जुलाई २०१७ से आरम्भ हो रहा है। चूँकि श्रावण मास  शिव आराधनासाधना  के लिए  श्रेष्ठ  माह है‚ अतः इसे शिव मास भी कहा जाता है। आप सभी को श्रावण मास की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

                "महामृत्युंजय मन्त्र" भगवान शिव का सबसे बड़ा मन्त्र माना जाता है। हिन्दू धर्म में इस मन्त्र को प्राण रक्षक और महामोक्ष प्रदाता मन्त्र कहा जाता है। मान्यता है कि महामृत्युंजय मन्त्र से शिवजी को प्रसन्न करने वाले जातक से मृत्यु भी डरती है। इस मन्त्र को सिद्ध करने वाला जातक निश्चित ही मोक्ष को प्राप्त करता है। भगवान शिव को कालों का काल महाकाल कहा जाता है। मृत्यु अगर निकट आ जाए और आप महाकाल के महामृत्युंजय मन्त्र का जाप करने लगे तो यमराज की भी हिम्मत नहीं होती है कि वह भगवान शिव के भक्त को अपने साथ ले जाए।

        इस मन्त्र की शक्ति से जुड़ी कई कथाएँ  शास्त्रों और पुराणों में मिलती है, जिनमें बताया गया है कि इस मन्त्र के जाप से गम्भीर रूप से बीमार व्यक्ति स्वस्थ हो गए और मृत्यु के मुँह में पहुँच चुके व्यक्ति भी दीर्घायु का आशीर्वाद पा गए। यही कारण है कि ज्योतिषी और पण्डित बीमार व्यक्तियों को एवं ग्रह दोषों से पीड़ित व्यक्तियों को महामृत्युंजय मन्त्र जाप करवाने की सलाह देते हैं। शिव को अति प्रसन्न करने वाला मन्त्र है महामृत्युंजय मन्त्र। लोगों कि धारणा है कि इसके जाप से व्यक्ति की मृत्यु नहीं होती, परन्तु यह पूरी तरह सही अर्थ नहीं है।

        महामृत्युंजय का अर्थ है, महामृत्यु पर विजय अर्थात् व्यक्ति की बार-बार मृत्यु ना हो, वह मोक्ष को प्राप्त हो जाए। उसका शरीर स्वस्थ होधन एवं मान की वृद्धि तथा वह जन्म मृत्यु के बन्धन से मुक्त हो जाए। महामृत्युञ्जय मन्त्र यजुर्वेद के रूद्र अध्याय स्थित एक मन्त्र है। इसमें शिव की स्तुति की गई है। शिव को मृत्यु को जीतने वालामाना जाता है। कहा जाता है कि यह मन्त्र भगवान शिव को प्रसन्न कर उनकी असीम कृपा प्राप्त करने का माध्यम है। इस मन्त्र का सवा लाख बार निरन्तर जाप करने से आने वाली अथवा मौजूदा बीमारियाँ तथा अनिष्टकारी ग्रहों का दुष्प्रभाव तो समाप्त होता ही हैइस मन्त्र के माध्यम से अटल मृत्यु तक को टाला जा सकता है।

        हमारे वैदिक शास्त्रों और पुराणों में असाध्य रोगों से मुक्ति और अकाल मृत्यु से बचने के लिए महामृत्युंजय जाप करने का विशेष उल्लेख मिलता है। महामृत्युंजय भगवान शिव को खुश करने का मन्त्र है। इसके प्रभाव से इन्सान मौत के मुँह में जाते-जाते बच जाता हैमरणासन्न रोगी भी महाकाल शिव की अद्भुत कृपा से जीवन पा लेता है। बीमारीदुर्घटनाअनिष्ट ग्रहों के प्रभावों से दूर करनेमौत को टालने और आयु बढ़ाने के लिए सवा लाख महामृत्युंजय मन्त्र जाप करने का विधान है।

       शिव के साधक को न तो मृत्यु का भय रहता हैन रोग कान शोक का। शिव तत्व उनके मन को भक्ति और शक्ति का सामर्थ्य देता है। शिव तत्व का ध्यान महामृत्युंजय के रूप में किया जाता है। इस मन्त्र के जाप से शिव की कृपा प्राप्त होती है। सतयुग में मूर्ति पूजा कर सकते थेपर अब कलयुग में सिर्फ मूर्ति पूजन काफी नहीं है। भविष्य पुराण में यह बताया गया है कि महामृत्युंजय मन्त्र का रोज़ जाप करने से उस व्यक्ति को अच्छा स्वास्थ्यधनसमृद्धि और लम्बी उम्र मिलती है।

       यहाँ  सर्वजन हितार्थ  महामृत्युंजय तन्त्र  के विविध  प्रयोग  प्रस्तुत  किए जा रहे  हैं। इन प्रयोगों के द्वारा महादेव शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं तथा उनके आशीर्वाद स्वरूप अकाल मृत्यु से मुक्ति प्राप्त होती है।  आरोग्य (पूर्ण स्वस्थ शरीर) की प्राप्तिग्रह-नक्षत्र दोषनाड़ी दोषमांगलिक दोषशत्रु-षडाष्टक दोषविधुरदोष, वैधव्य दोषअधिक कष्ट देने वाले असाध्य रोग और मृत्यु तुल्य मानसिक एवं शारीरिक कष्टों का निवारण होता है, प्रारब्धकर्मसंचित कर्म और वर्तमान कर्मों का नाश होता है।

      
१    सूर्य ग्रह-शान्ति,  सुख-समृद्धि तथा ऐश्वर्य-प्राप्ति के लिए

      प्रत्येक  रविवार को एक ताँबे के पात्र में जल लेकर उसमें गुड और लाल चन्दन मिलाकर उस जल से भगवान शिव का जलाभिषेक करें तथा महामृत्युंजय मन्त्र  का जाप करें।

महामृत्युंजय मन्त्र :------

।। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।

      इस प्रयोग से आपके घर में सुख समृद्धि आएगी, ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी, लक्ष्मी का वास होगा तथा सूर्य ग्रह शांत होंगे।

        २. मनोकामना पूर्ति के लिए

       महादेव शिव को श्रावण सोमवार के दिन अथवा शिवरात्रि के दिन १०८ निम्बुओं  की माला बनाकर पहनाएं तथा अमावस के दिन उस निम्बुओं  की माला को उतारकर निम्बुओं  को अलग-अलग कर दें। महामृत्युंजय के मन्त्र के साथ निम्बुओं  का हवन करने से कोई एक मनोकामना की पूर्ति होती है।

महामृत्युंजय मन्त्र :------

।। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।

        ३. अचानक आए संकट के नाश के लिए

      महामृत्युंजय का जाप करने  के साथ जायफल की आहुति देने से सभी रोगों का नाश होता है और अचानक आई हुई विपदा का निवारण होता है।

महामृत्युंजय मन्त्र :------

।। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।

       ४. सभी रोगों के नाश और उत्तम स्वास्थ प्राप्ति के लिए

      यदि कोई व्यक्ति भयंकर रोग से ग्रसित हो तो उसे इस रोग से मुक्ति दिलाने के लिए महामृत्युंजय मन्त्र का जाप करते हुए भगवान शिव के पारद शिवलिंग  का प्रतिदिन सवा घंटे तक जलाभिषेक करना चाहिए तथा उसके बाद अभिषेक किये हुए जल का थोड़ा-सा पानी हर रोज रोगी को पिलाना चाहिए। इस प्रयोग से रोगी का बहुत ही पुराना रोग या मृत्यु के समान कष्ट देने वाला रोग भी समाप्त हो जाता है।

महामृत्युंजय मन्त्र :------

।। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।

     ५.  स्वास्थ लाभ के लिए

     सर्वप्रथम आप तान्त्रिक महामृत्युञ्जय मन्त्र के १,३७,५०० मन्त्र जाप का अनुष्ठान करके मन्त्र सिद्धि प्राप्त करें। तत्पश्चात जब कभी कोई नजर दोष से पीडित बच्चेटोने-टोटकों से या तान्त्रिक क्रिया से परेशान कोई व्यक्ति आए तो उसे मोरपंख से झाड़ा (झाड़नी) देने से समस्त समस्याओं का समाधान हो जाएगा।

तान्त्रिक महामृत्युंजय मन्त्र :------

।। ॐ भूः भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् स्वः भुवः भूः ॐ।।

      ६. धन-लाभ की प्राप्तिव्यापार में लाभउत्तम विद्या की प्राप्ति तथा तीव्र बुद्धि की प्राप्ति के लिए

      प्रत्येक बुधवार को काँसे का पात्र लेकर उसमें जल के साथ दहीशक्कर तथा घी मिलाकर शिवलिंग का जलाभिषेक करने से असीम धन की प्राप्ति होती है, व्यापार में लाभ होता हैउत्तम विद्या की प्राप्ति होती है व बुद्धि तीव्र होती है।

महामृत्युंजय मन्त्र :------

।। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।

      ७. पुत्र-प्राप्ति  एवं  सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति के लिए

      प्रति मंगलवार को ताँबे के पात्र में जल में गुड मिलाकर लाल फूल डालकर मृत्युञ्जंय मन्त्र जाप करते हुए शिवलिंग पर चढ़ानें से सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति, पुत्र की प्राप्ति और स्वास्थ्य लाभ व शत्रुओं का नाश तथा मंगल ग्रह की शान्ति होती है।

महामृत्युंजय मन्त्र :------

।। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।

       ८. विवाह, सन्तान तथा भौतिक सुख-शान्ति प्राप्ति के लिए

    प्रत्येक शुक्रवार को चाँदी या स्टील के बर्तन में जल,  दूधदहीघीमिश्री व शक़्कर आदि मिलाकर महामृत्युंजय का जाप करते हुए  शिव को अर्पित करने से तुरन्त विवाह का योग बनता हैसन्तान की प्राप्ति होती है तथा भौतिक सुख प्राप्त होता है।

महामृत्युंजय मन्त्र :------

।। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।

      ९. उत्तम विद्या, धनधान्य और पुत्र-पौत्र सुख व मनोंकामना की पूर्ति के लिए

     प्रति गुरूवार को काँसे या पीतल के पात्र में जल में हल्दी मिला कर मृत्युञ्जय मन्त्र का  जाप करते हुए शिवलिंग पर चढ़ाने से उत्तम विद्या की प्राप्तिधनधान्य तथा पुत्र-पौत्र आदि की प्राप्ति और बृहस्पति (गुरू) ग्रह की शान्ति होती है।

महामृत्युंजय मन्त्र :------

।। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।

     १०. रोगी के स्वास्थ्य लाभ के लिए

     शिव मन्दिर में जाकर शिवलिंग के पास आसन लगाकर कर बैठें तथा अपने समीप जल से भरा एक ताँबे का पात्र रखे तथा पाँच माला महामृत्युंजय मन्त्र का जाप करें। प्रत्येक माला के जाप के बाद उस जल से भरे ताँबे  के कलश में फुक मारते जाएं। इस तरह पाँच माला जाप के साथ उस जल से भरे ताँबे के पात्र में पाँच बार फूँक मारे। इसके बाद उस जल को रोगी को पिलाएं। यह अचूक उपाय है तथा इस के द्वारा रोगी के स्वास्थ में आश्चर्यजनक लाभ होगा।

महामृत्युंजय मन्त्र :------

।। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।

     ११. मानसिक कष्ट, शत्रु भयआर्थिक संकट निवारण और धनधान्यव्यापार की वृद्धि, राज्य प्राप्ति के लिए

     शनिवार को बादाम तेल और जैतुन तेल में गुलाब एवं चन्दन इत्र मिलाकर, एक चौमुखा (चार बत्ती वाला) दीपक शिव मन्दिर में जलाकर, लोहे या स्टील के पात्र में सरसो का तेल भरकर मृत्युञ्जय मन्त्र का जाप करते हुए शिवलिंग पर चढ़ाने  से मानसिक कष्ट का निवारण होता हैशत्रुओं का नाश होता हैव्यापार में उन्नति या नौकरी में उन्नति होती है,   धनधान्य की वृद्धि होती हैअपने कार्य क्षेत्र में राज्य की प्राप्ति होती है।

महामृत्युंजय मन्त्र :------

।। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।

    १२. मानसिक शान्ति और मनोकामना की पूर्ति के लिए

      प्रति सोमवार को चाँदी अथवा स्टील के पात्र में जल में दूध, सफेद तिल्ली और शक्कर मिलाकर मृत्युञ्जय मन्त्र का जाप करते हुए शिवलिंग पर चढ़ाने से मानसिक शान्ति और मनोकामना की पूर्ति तथा चन्द्र ग्रह की शान्ति होती है।

महामृत्युंजय मन्त्र :------


।। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।

    यहाँ  जो  महमृत्युंज्य तन्त्र के विविध प्रयोग प्रस्तुत  किए गए हैं‚ वे सभी स्वयं सिद्ध हैं, जिनका प्रयोग बहुत ही सरल है तथा इन मन्त्र प्रयोगों द्वारा अति शीघ्र फल की प्राप्ति होती है

      मैं  सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

           इसी कामना के साथ


        ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।