बुधवार, 13 सितंबर 2017

नवरात्रि नवदुर्गा साधना प्रयोग

नवरात्रि नवदुर्गा साधना प्रयोग



         आश्विन मासीय नवरात्रि पर्व समीप ही है। यह नवरात्रि पर्व २१ सितम्बर २०१७ से आरम्भ हो रहा है और इसका समापन २१ सितम्बर २०१७ को हो रहा है। ३० सितम्बर २०१७ को विजय दशमी अर्थात् दशहरा पर्व आ रहा है। आप सभी को शारदीय नवरात्रि पर्व एवं दशहरा पर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ! 

           नवरात्रि तो रात्रि का पर्व है, जैसा कि इसके शब्द से ही स्पष्ट है। रात्रि का अर्थ हैजीवन्तता, चैतन्यता, उल्लासमयता और यह प्राप्त हो सकता है साधनात्मक बल से प्राप्त संचित शक्ति को अपने अन्दर समाहित करने पर।

          शक्ति को जानना ही पर्याप्त नहीं होता, शक्ति को जीवन में परिचय कराना ही पर्याप्त नहीं होता, शक्ति को जीवन में उतारना और उतारने के साथ-साथ उसे किस प्रकार से नियन्त्रित किया जाए, यह आवश्यक है।

          नवरात्रि का अर्थ यह नहीं है कि हम रात्रि को जागरण करें, भजन-कीर्तन आदि करके दिन काट दें। नवरात्रि का तात्पर्य है कि जब प्रकृति निःस्तब्ध हो, शान्त हो, उन क्षणों का हम भली-भाँति उपयोग करें, उन क्षणों को अपने जीवन में उतारें और वह सब कुछ प्राप्त कर लें, जो सामान्यतः प्रयत्नपूर्वक भी सम्भव नहीं हो पा रहा हो।

          शास्त्रों में कहा गया है कि साधक इस शक्ति पर्व पर वह सब कुछ प्राप्त कर लें, जो उसके भाग्य में नहीं लिखा है, क्योंकि हम ॠषि पुत्र हैं, शक्ति पुत्र हैं। अगर ऐसा न होता तो नवरात्रि रची ही न जाती, दुर्गा के विग्रह की पूजा-अर्चना क्यों की जाती? यह प्रतीक है, हमें स्मरण दिलाने का कि हम शस्त्र धारिणी दुर्गा के तेजस्वी पुत्र हैं तथा हमें इस नवरात्रि पर्व पर साधना रूपी शस्त्र को उठाकर अपने जीवन के दुःखों को जड़ से काट देना है और हम समर्थ हैं, यदि नौ दिन तक विशिष्ट मुहूर्तों का लाभ उठाकर उन शास्त्रों के माध्यम से जीवन के अभावों से मुक्त हो सकें।

१. जीवन में सुख हो, पूर्णतः स्वस्थ हो।
२. धनागम के स्रोत खुल सकें-व्यापार में वृद्धि हो, नौकरी में उन्नति प्राप्त हो।
३. पुत्र-सुख की प्राप्ति हो।
४. भवन-निर्माण एवं वाहन-सुख की प्राप्ति हो सकें।
५. शत्रु परास्त हों।
६. स्त्री-पुरुष दोनों ही अखण्ड भाग्यवान बन सकें।
७. भाग्योदय हो।
८. राज्य-सम्मान, राजनीतिक श्रेष्ठता व सफलता प्राप्ति के अवसर प्राप्त हो सकें।
९. समस्त मनोवांछित कार्यों की पूर्ति हो।

          उपरोक्त नौ बिन्दु ही सही अर्थों में नवरात्रि पर्व की मूल भावना है। नवरात्रि का तो एक-एक दिन प्रयोग करने वाला है, जब साधनाओं में सफलता मिलने लगती है और वह सब कुछ भी पूरा होने लगता है, जैसा आप चाहते हैं।

           केवल मात्र नौ दिनों तक एक ही मन्त्र को जपने से वह सब कुछ प्राप्त नहीं हो जाता, उसके लिए तो दुर्गा के नौ रूपों यथा १. शैलपुत्री, २. ब्रह्मचारिणी, ३. चन्द्रघण्टा, ४. कूष्माण्डा, ५. स्कन्दमाता, ६. कात्यायनी, ७. कालरात्रि, ८. महागौरी, ९. सिद्धिदात्री की साधना-उपासना करनी ही होगी। तभी वह सब कुछ प्राप्त हो सकेगा, जो जीवन में आवश्यक है, महत्वपूर्ण है।

          नवरात्रि पर्व तो अपने आप में ही एक दिव्य पर्व होता है, समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने का। यह नवरात्रि तो माँ दुर्गा द्वारा उत्पन्न नौ शक्तियों से सम्बन्धित दिवस हैं, जिनकी साधना करने से शीघ्र लाभ होता ही है। शास्त्रों में भी दुर्गा के स्वरूपों की विवेचना करते हुए कहा गया है ---

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी,
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च,
सप्तमं कालरात्रि च महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्रि च नवदुर्गा प्रकीर्तितः।।

          आजकल जो नवरात्रि मनाई जाती है, उसमें "जय अम्बे जय जगदम्बे" करते-करते हम नौ दिन यूँ ही काट देते हैं और उसका कोई अर्थ ही नहीं रह जाता। अगर इसको सार्थक बनाना है तो साधना के पक्ष को लेना ही होगा, जीवन में उतारना ही होगा, तभी जीवन में जीवन्तता एवं जागृति आ सकेगी, तभी आनन्द प्राप्त हो सकेगा।

          नवरात्रि की इन्हीं सद्भावनाओं को एक समृद्धि पर्व बना देने के लिए लिए, अपने जीवन में उतार लेने के लिए एवं स्थायी रूप से घटना बना देने के लिए साधक को चाहिए कि वह इस पर्व का लाभ उठाकर अपने जीवन को पूर्ण कर लें और जब ऐसा हो जाता है, तब समस्त भौतिक स्थितियाँ उस साधक के सामने हाथ बाँधे खड़ी रहती हैं।

नवरात्रि प्रयोग विधान :----------

          साधकों को चाहिए कि वे प्रातः या रात्रि, किसी एक समय को निश्चित करके ही इन प्रयोगों को सम्पन्न करें। स्नान आदि से निवृत्त होकर साधक पश्चिम या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके पीले वस्त्र धारण कर पीले आसन पर बैठकर, पीले वस्त्र यदि न हो तो अन्य किसी भी रंग के वस्त्र धारण कर, गुरु चादर ओढ़कर ही प्रयोग सम्पन्न करें।

          इसके पश्चात सामने किसी बाजोट या चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर माँ भगवती नवदुर्गा का चित्र स्थापित करें। चित्र के समक्ष पीले वस्त्र पर कुमकुम से अनार या चमेली की कलम अथवा चाँदी की शलाका द्वारा निम्न नवदुर्गा शक्ति यन्त्र का निर्माण करें -----



          यन्त्र निर्माण के पश्चात यन्त्र के नौ खानों में चावल की नौ ढेरियाँ बनाएं। फिर प्रत्येक ढेरी पर मौलि बाँधकर नौ सुपारी स्थापित कर दें। तत्पश्चात शुद्ध घी का दीपक प्रज्ज्वलित कर  दें।

          साधना सम्पन्न करने से पूर्व सर्वप्रथम साधक अपने इष्ट परमपूज्य सद्गुरुदेवजी का ध्यान करें और गुरुमन्त्र का कम से कम चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से नवदुर्गा साधना प्रयोग सम्पन्न करने की आज्ञा लें और उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          इसके बाद भगवान गणपतिजी का स्मरण करें तथा गणेश मन्त्र का एक माला जाप करें। फिर गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          तत्पश्चात साधक भगवान भैरवनाथजी का स्मरण करके एक माला भैरव मन्त्र का जाप करें। फिर भैरवनाथजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          इसके बाद साधक अपने बाईं ओर कुमकुम  से स्वस्तिक का चिह्न बनाकर उस पर अक्षत की ढेरी बनाकर उस पर जल से भरा कलश स्थापित कर दें।  अब निम्न मन्त्र बोलते हुए कलश के चारों ओर कुमकुम से चार तिलक (बिन्दी) लगाएं -----

ॐ पूर्वे ऋग्वेदाय नमः।
ॐ उत्तरे यजुर्वेदाय नमः।
ॐ पश्चिमे सामवेदाय नमः।
ॐ दक्षिणे अथर्ववेदाय नमः।
चतुर्वेदं आवाहयामि स्थापयामि नमः।

             फिर निम्न श्लोक बोलते हुए कलश में जल डालें -----

ॐ गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेSस्मिन सन्निधिं कुरु।।

             अब निम्न श्लोक का उच्चारण करते हुए कलश में कुमकुम या चन्दन डालें -----

ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्य पुष्टां करीषिणीं।
     ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम्।।

          "अक्षतान् समर्पयामि नमः" बोलकर कलश में अक्षत अर्पित करें।

           फिर निम्न श्लोक बोलकर कलश में एक सुपारी अर्पित करें -----

ॐ याः फलिनीर्या अफला अपुष्पायाश्च पुष्पिणीः।
     बृहस्पतिः प्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व (गूं) हसः।।

           फिर कलश में ५ या ११ आम के अथवा अशोक के पत्ते लगाकर एक नारियल को कलावे से बाँधकर कलश पर स्थापित कर दें। कलश और नारियल पर भी कुमकुम से स्वस्तिक का चिह्न अवश्य बना दें।  फिर कलश को चन्दनअक्षतधूपदीपपुष्प और नैवेद्य समर्पित करें। तत्पश्चात हाथ जोड़कर प्रार्थना करें -----

        ॐ कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः समाश्रितः।
    मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः।।
    कुक्षौ तु सागराः सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धरा।
    ऋग्वेदोSथ यजुर्वेदः सामवेदो ह्यथर्वणः।।
    अंगैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिताः।
    अत्र गायत्री सावित्री शान्तिः पुष्टिकरी तथा।।
     सर्वे समुद्राः सरितस्तीर्थानि जलदा नदाः।
     आयान्तु देवपूजार्थम् दुरितक्षयकारकाः।।
      गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
       नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेSस्मिन सन्निधिं कुरु।।
    ॐ कलशस्थ देवता अपां पतये नमः।।
          
          इसके बाद साधक हाथ में जल लेकर मनोकामना की पूर्ति हेतु संकल्प लें, फिर साधना सम्पन्न करें।
    
          तत्पश्चात साधक माँ भगवती नवदुर्गा के चित्र एवं सभी नौ सुपारियों का कुमकुम, अक्षत, धूप, दीप, फल, फूल आदि से सामान्य पूजन सम्पन्न करें।

          ध्यान रहे कि दीपक शुद्ध घी का ही हो और अखण्ड रूप से नौ दिन तक जलता रहे, बुझे नहीं, यह आवश्यक है।

          साधक पूरे नौ दिन तक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करे, एक समय ही भोजन करे, ज़मीन पर ही सोएं, दिन में निद्रा अधिक न लें, यथासम्भव बातचीत कम ही करे तो ज्यादा उचित रहेगा।
        
१. शैलपुत्री प्रयोग

          यह दुर्गा का प्रथम उदात्तमयी शक्तिपुँज स्वरूप है, जो साधक को अभीष्ट प्रदान करती है। अखण्ड सौभाग्य प्राप्ति के लिए तथा स्त्री-पुरुष दोनों के लिए यह प्रयोग उपादेय है। अतः इसीलिए नवरात्रि के इस प्रथम दिवस को "अखण्ड सौभाग्यवती दिवस" कहा गया है।

          साधकों को चाहिए कि वे नवरात्रि के पहले दिन माँ भगवती शैलपुत्री निम्नानुसार ध्यान करें -----

ॐ वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखराम्।
   वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
   या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्रीरूपेण संस्थिता।
   नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

          फिर निम्न मन्त्र का एक माला जाप करें -----

मन्त्र :----------

।। ॐ ऐं अखण्ड सौभाग्यं शैलपुत्रीं देहि साधय स्वाहा ।।

OM AYIEM AKHAND SAUBHAAGYAM SHAIPUTREEM DEHI SAADHAY SWAAHAA.

२. ब्रह्मचारिणी दुर्गा प्रयोग

          कईं बार अनेक कारणों से व्यक्ति को कठोर परिश्रम करने के उपरान्त भी अपने कार्यों में सफलता नहीं मिलती। वह जो भी कार्य अपने हितार्थ के लिए करता है, उसका विपरीत ही फल उसे प्राप्त होता है और अन्त में वह हताश होकर अपने जीवन को भार स्वरूप समझने लगता है।

          ऐसे व्यक्तियों के लिए शास्त्रों में विशिष्ट ब्रह्मचारिणी दुर्गा प्रयोग वर्णित है, जिसके द्वारा व्यक्ति सहज ही कठिनाइयों को पार करता हुआ पूर्ण भाग्योदय लाभ प्राप्त करता है।

          साधक को चाहिए कि वह नवरात्रि के दूसरे दिन माँ भगवती ब्रह्मचारिणी का निम्नानुसार ध्यान करें -----

ॐ दधाना करपद्माभ्यां अक्षमाला कमण्डलूम्।
   देवी प्रसीदतु मयी ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
   या देवी सर्वभूतेषु ब्रह्मचारिणीरूपेण संस्थिता।
   नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

        फिर निम्न मन्त्र की एक माला जाप करें -----

मन्त्र :----------

।। ॐ श्रीं पूर्ण भाग्योदयं ब्रह्मचारिण्यै श्रीं नमः।।

OM SHREEM POORNN BHAGYODAYAM BRAHMACHARINNYEI SHREEM NAMAH.

३. चन्द्रघण्टा प्रयोग

          व्यक्ति के पास धन भले ही हो न हो, किन्तु स्वास्थ्य आवश्यक है, क्योंकि स्वस्थ होने पर ही वह समस्त भोगों का भोग कर सकता है। अस्वस्थ व्यक्ति को सभी लोग भार या बोझ समझते हैं और उसे उपेक्षा की दृष्टि से देखते हैं। इस कारण से बीमार व्यक्ति जहाँ शारीरिक रूप से कमज़ोर रहता है, वहीं जीवन में सफलता भी प्राप्त नहीं कर सकता।

          माँ दुर्गा से उत्पन्न चन्द्रघण्टा शक्ति की साधना सभी रोग और व्याधियों को नष्ट करने में सहायक है। नवरात्रि के तीसरे दिन जो व्यक्ति इस साधना को सम्पन्न कर लेता है, निम्न मन्त्र का एक माला जाप कर लेता है, वह आरोग्य होकर पूर्ण सफलता प्राप्त कर लेता है।

          साधक पहले माँ भगवती चन्द्रघण्टा का निम्न प्रकार से ध्यान करें -----

ॐ पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
   प्रसादं तनुते महयं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।
   या देवी सर्वभूतेषु चन्द्रघण्टारूपेण संस्थिता।
   नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

         फिर निम्न मन्त्र का एक माला जाप करें -----

मन्त्र :----------

।। ॐ क्लीं रोगान् रोधय चन्द्रघण्टायै क्लीं फट् ।।

OM KLEEM ROGAAN RODHAY CHANDRAGHANNTAAYEI KLEEM PHAT.

४. कूष्माण्ड सिद्धि प्रयोग

         कूष्माण्ड ब्रह्माण्ड भेदन प्रयोग है अर्थात ब्रह्माण्ड से सब कुछ प्राप्त कर लेना। ब्रह्माण्ड से जो रश्मियाँ निकलती हैं, निम्न मन्त्र का जाप करने पर उनसे शरीर सौन्दर्य युक्त हो जाता है, उसके शरीर का पूर्ण रूप से कायाकल्प हो जाता है। जिसके शरीर में सौन्दर्य नहीं है, आकर्षण नहीं है, वह व्यक्ति अभागा ही है।

        साधक नवरात्रि के चौथे दिन माँ भगवती कूष्माण्डा का निम्नानुसार ध्यान करें -----

ॐ सुरा सम्पूर्ण कलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे।।
या देवी सर्वभूतेषु चन्द्रघण्टारूपेण संस्थिता।
  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

        फिर निम्न मन्त्र की एक माला जाप करें -----

मन्त्र :----------

।। ॐ क्लीं कूष्माण्डे कायाकल्पं क्लीं ॐ ।।

OM KLEEM KOOSHMAANDE KAAYAAKALPAM KLEEM OM.

५. स्कन्दमाता सिद्धि प्रयोग

          यदि किसी के पुत्र उत्पन्न नहीं हो रहा हो तो समाज उस स्त्री को जीने नहीं देता और उसे घृणा की नज़रों से देखता है। साथ ही यह भी कोई ज़रूरी नहीं कि पुत्र-प्राप्ति होने पर भी सुख प्राप्त हो ही। इसीलिए शास्त्रों में, वेदों में इस प्रयोग का गोपनीय ढंग से उल्लेख किया गया है, वही प्रयोग यहाँ साधकों के लाभार्थ हेतु दिया जा रहा है, जिसे नवरात्रि के पाँचवें दिन, जो कि पुत्रेष्टि दिवस के नाम से प्रसिद्ध है, सम्पन्न करने पर पुत्र-सुख प्राप्त होता ही है।

          साधक पहले माँ भगवती स्कन्दमाता का निम्न प्रकार से ध्यान करें -----

ॐ सिंहासनागता नित्यं पद्माश्रित करद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
या देवी सर्वभूतेषु स्कन्दमातारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

          फिर निम्न मन्त्र की एक माला जाप करें -----

मन्त्र :----------

।। ॐ ऐं ह्रीं पुत्रान् देहि ह्रीं ऐं फट् ।।

OM AYIEM HREEM PUTRAAN DEHI HREEM AYIEM PHAT.

६. कात्यायनी सिद्धि साफल्य प्रयोग

          कात्यायनी प्रयोग अपने आप में अत्यधिक तीक्ष्ण एवं दिव्यतम प्रयोग है, जिसका प्रयोग करने पर निश्चित लाभ होता ही है। इस प्रयोग को किए हुए सैकड़ों साधक साक्षी है, जो इससे लाभान्वित हुए हैं।

        कात्यायनी पूर्ण सौन्दर्यमयी है, इच्छाओं की पूर्ति करने वाली है, अर्थात साधक जो सोचे, वह हो जाए, इसके लिए साधक को निम्न मन्त्र का जाप करना चाहिए।

        सर्वप्रथम साधक माँ भगवती कात्यायनी का निम्नानुसार ध्यान करें -----

ॐ चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलावरवाहना।
   कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
   या देवी सर्वभूतेषु कात्यायनीरूपेण संस्थिता।
   नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

        फिर निम्न मन्त्र का एक माला जाप सम्पन्न करें -----

मन्त्र :----------

।। क्रीं कात्यायनी क्रीं नमः।।

KREEM KAATYAAYANI KREEM NAMAH.

७. कालरात्रि दुर्गा प्रयोग

          शत्रु का होना जीवन में सबसे दुःखदायी है, एक शत्रु के रहते हुए भी जीवन कण्टकाकीर्ण हो जाता है। जीवन में शत्रु का होना स्वाभाविक है, और ऐसी स्थिति में इस प्रयोग की आवश्यकता होती ही है। क्योंकि कालरात्रि दुर्गा शत्रु का संहार करने वाली देवी हैं, जो कि साधक को बल प्रदान कर शत्रुओं से उसकी रक्षा करती है तथा शत्रुओं को परास्त करने में सहायक सिद्ध होती ही है।

         अतः नवरात्रि के सातवें दिन माँ भगवती कालरात्रि का निम्न प्रकार से ध्यान करें -----

ॐ करालवदनां घोरां मुक्तकेशीं चतुर्भुजाम्।
कालरात्रिं करालिकां दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम्॥
दिव्यं लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्।
अभयं वरदां चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम्॥
या देवी सर्वभूतेषु कालरात्रिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

         फिर साधक को निम्न मन्त्र का एक माला जाप साधक करना ही चाहिए -----

मन्त्र :----------

।। ॐ फट् शत्रुन् साधय घातय ॐ ।।

OM PHAT SHATRUN SAADHAY GHAATAY OM.

८. महागौरी सिद्धिदायक प्रयोग

          दुर्गा की आठवीं शक्ति पूर्ण महालक्ष्मी स्वरूपा हैं, जो साधक को वाहन, भवन-निर्माण एवं नवनिधियों की प्राप्ति कराने में सहायक है।

        यह भगवती दुर्गा की सौम्य साधना है, जो सरलता से एक माला जाप करके सम्पन्न की जा सकती है।

          सर्वप्रथम साधक नवरात्रि के आठवें दिन माँ भगवती महागौरी का निम्नानुसार ध्यान करें -----

ॐ श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेतांबर धरा शुचिः।
   महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा।।
   या देवी सर्वभूतेषु महागौरीरूपेण संस्थिता।
   नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

         फिर साधक को निम्न मन्त्र का एक माला जाप करना ही चाहिए -----

मन्त्र :----------

।। ॐ नवनिधि गौरी महादेवायै नमः।।

OM NAVNIDHI GAURI MAHADEVAAYEI NAMAH.

९. सिद्धिदात्री प्रयोग

          हर व्यक्ति  की यह आकांक्षा होती है कि वह उच्च से उच्च पद को प्राप्त करे, जहाँ पर भी वह कार्यरत है, उसका नाम समस्त देश में फैले और वह कुछ ऐसा करे, जिससे उसकी कीर्ति दिनों-दिन बढ़ती ही जाए।

         जो लोग राजनीति में है, उन्हें भी अपना भाग्य अनिश्चित-सा लगता है, कब, क्या स्थिति उत्पन्न हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। अतः यश, सम्मान, ऐश्वर्य-प्राप्ति, उच्च पद प्राप्ति हेतु शास्त्रों में इस महत्वपूर्ण साधना का उल्लेख किया गया है।

         नवरात्रि का यह अन्तिम दिवस "सिद्धिदायक श्रेष्ठ तान्त्रिक दिवस" के रूप में भी मनाया जाता है। अतः इस दिन कैसी भी तन्त्र साधना हो, सफलता मिलती ही है।

                    सबसे पहले साधक माँ भगवती सिद्धिदात्रि का ध्यान निम्न प्रकार से करें -----

ॐ सिद्ध गन्धर्व यक्षाद् यौर सुरैरमरै रपि।
सेव्यमाना सदाभूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।
या देवी सर्वभूतेषु सिद्धिदात्रिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

         साधकों को चाहिए कि वे निम्न मन्त्र की एक माला जाप करें -----

मन्त्र :----------

।। ह्रीं ऐं ऐं ह्रीं सिद्धिदात्र्यै स्वाहा ।।

HREEM AYIEM AYIEM HREEM SIDDHIDAATRYEI SWAAHAA.

         जहाँ ये साधनाएँ भौतिक मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु सहायक हैं, वहीं ये आध्यात्मिक स्तर पर भी साधक के लिए विशेष लाभदायक सिद्ध होती है। इन साधनाओं को सम्पन्न करके साधक आध्यात्म की श्रेष्ठ ऊँचाइयों को भी छू लेता है।

                इन साधनाओं में नित्य एक माला मन्त्र जाप ही पर्याप्त है। यदि साधक की इच्छा हो तो वह ११ या २१ माला मन्त्र जाप भी कर सकता है, यदि उसके कार्यों में रूकावट ना आ रही हो तो।

                साधना काल में साधक दुकान, फैक्ट्री आदि किसी भी स्थान पर स्वतन्त्र रूप से आ जा सकता है। ऐसा कोई नियम नहीं है कि घर में ही रहकर नौ दिन तक साधना सम्पन्न करनी है, वह अपने सभी कार्य भली-भाँति पूर्ण कर सकता है, किन्तु साधना का समय निश्चित होना चाहिए।

        साधना समाप्ति के पश्चात २१ दिन तक साधना सामग्री को लाल कपड़े में बाँधकर रखने के पश्चात २२ वें दिन किसी तालाब, नदी या कुए में विसर्जित कर दें। यदि ऐसा सम्भव न हो तो किसी मन्दिर में चढ़ा आए। इस साधना को घर की कोई भी सदस्य सम्पन्न कर सकता है, उसे लाभ प्राप्त होगा ही।


       यह नवरात्रि आपके लिए मंगलमय हो। आपकी साधना सफल हो और माँ भगवती नवदुर्गा देवी का आपको आशीष प्राप्त हो। मैं सद्गुरुदेव भगवानजी से ऐसी ही प्रार्थना करता हूँ।

                इसी कामना के साथ

              ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।