बुधवार, 21 फ़रवरी 2018

साबर भैरव तन्त्र प्रयोग

साबर भैरव तन्त्र प्रयोग



          होली पर्व समीप ही है। इस बार १ मार्च २०१८ को होलिका दहन होगा एवं २ मार्च २०१८ को धुलैंडी (होली) मनाई जाएगी। आप सभी को होली पर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          होली के पर्व को सभी साधनाओं के लिए श्रेष्ठ माना गया है। यह पर्व वर्ष में एक ही बार आता है, परन्तु साधकों को इस पर्व की प्रतीक्षा वर्ष भर रहती है। होली की रात्रि को साधना सम्पन्न करने पर निश्चय ही कार्य सिद्धि होती है। तन्त्र के ग्रन्थों में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि जो साधक साधना में पूर्ण सफलता, श्रेष्ठता व सिद्धि प्राप्त करना चाहता हो, उसे होली जैसे महत्वपूर्ण पर्व को व्यर्थ में गँवाना नहीं चाहिए।

          रूद्रयामल तन्त्र में कहा गया है कि यदि होली की रात्रि को किसी भी प्रकार की तान्त्रिक साधना सम्पन्न की जाए तो उसमें अवश्य ही सिद्धि मिलती है। संसार में ऐसी कोई साधना नहीं है जो होली की रात्रि को सिद्ध नहीं हो सकती। एक तरफ जहाँ यह पर्व तान्त्रिकों के लिए वरदान तुल्य है, वहीं साधकों के लिए भी यह दिन श्रेयस्कर व सिद्धिप्रद है। इस दिन साधना सम्पन्न करने पर सफलता अवश्य मिलती है।

          यूँ तो होली की रात्रि को मन्त्रात्मक व तन्त्रात्मक साधनाएँ सम्पन्न की ही जाती है, परन्तु जितना मन्त्र व तन्त्र साधना का महत्व है, उतना ही महत्व साबर मन्त्रों का भी है। साधक चाहे तो इस पर्व पर साबर मन्त्रों का उपयोग कर साधनाओं में सिद्धि सफलता प्राप्त कर सकता है। साबर साधनाओं का तात्पर्य उन मन्त्रों से है, जो मन्त्र संस्कृत में नहीं लिखे गए हैं, अपितु सरल भाषा में प्रकट हुए हैं। गुरू गोरखनाथ व उसके बाद को आचार्यों ने जनहित में साबर साधनाओं का प्रसार किया था। साबर साधनाओं के माध्यम से उसी प्रकार से सफलताएँ पाई जा सकती हैं, जिस प्रकार तन्त्र साधना से। यद्यपि ये मन्त्र दिखने में सरल, सामान्य व देवनागरी लिपि में लिखे हुए प्रतीत होते हैं, परन्तु इन मन्त्रों में इतनी क्षमता है कि ये सिद्धि प्रदान कर सकें।

          अनेक योगियों ने समय-समय पर साबर साधनाओं को अपनाया व इनसे विशेष सफलताएँ प्राप्त कीं। अधिकतर इनमें ऐसी साधनाएँ हैं, जो कम पढ़ा-लिखा साधक भी सम्पन्न कर सकता है। इन साधनाओं के लिए विशेष प्रकार के विधि-विधान, पूजन-अर्चन, माला या विशेष मन्त्र जप के प्रयोग की आवश्यकता नहीं होती। इनके कुछ क्रियात्मक पक्ष हैं, कुछ प्रयोग व मन्त्रों का जप करने पर तुरन्त सफलता प्राप्त हो जाती है।

          होली एक ऐसा दिवस होता है, जिस दिन तन्त्र अपने चरम पर होता है। आप में से कई साधकों ने इस दिन के लिए विधान माँगा था। अतः होली पर किये जाने वाला एक प्रयोग यहाँ दिया जा रहा है। इस प्रयोग के माध्यम से साधक अपनी दरिद्रता, रोग, शत्रु कष्ट आदि का निवारण कर सकता है।

         प्रस्तुत प्रयोग भगवान भैरव से सम्बन्धित है। अतः इसका प्रभाव भी अचूक है। मैंने कई बार कहा है कि जब भी आप कोई साधना करें तो उसे पूर्ण मनोभाव के साथ ही करे अन्यथा ना करें। क्यूँकि आसन पर बैठकर इष्ट की जगह संसार का ध्यान करेंगे तो सफलता सौ जन्मों तक प्राप्त नहीं होगी।अतः जब आप होली पर इस दिव्य प्रयोग को करें तो पूर्ण एकाग्रता के साथ ही करें। वैसे तो इस प्रयोग से सारे कार्य सिद्ध हो जाते हैं, जैसे :-----

१. दरिद्रता का नाश हो जाता है।
२. धन आगमन के मार्ग खुलने लगते हैं।
३. शत्रु द्वारा दिए जा रहे कष्टों से मुक्ति मिलती है।
४. गम्भीर रोग स्वतः शान्त हो जाते हैं।

          और जीवन से जुड़ी हर समस्या का निवारण इस एक दिवसीय साधना से हो जाता है। प्रस्तुत प्रयोग आपको १ मार्च २०१८ की रात्रि १० के बाद आरम्भ करना है।

साधना विधान :-----------

          सर्वप्रथम साधक स्नान कर उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठ जाएं। इस साधना में आसन एवं वस्त्र लाल रंग के प्रयुक्त होंगे। अपने सामने बाजोट पर लाल वस्त्र बिछा दें तथा उस पर पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का चित्र स्थापित स्थापित कर दें। गुरु चित्र के समक्ष काले तिल की एक ढेरी बना दें। इस पर एक सुपारी सिन्दूर से रंजित करके स्थापित करें। जिनके पास स्वर्णाकर्षण भैरव गुटिका हों, वे लोग गुटिका पर सिन्दूर लगाकर स्थापित करें। धूप-अगरबत्ती एवं तिल के तेल का प्रज्ज्वलित कर दें।

          अब सबसे पहले साधक पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का ध्यान करके संक्षिप्त गुरुपूजन सम्पन्न करें और गुरुमन्त्र का चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से साबर भैरव प्रयोग सम्पन्न करने हेतु मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लेकर उनसे साधना की पूर्णता तथा सफलता के लिए निवेदन करें।
      
         तदुपरान्त साधक भगवान गणपतिजी का स्मरण करके सामान्य गणेश पूजन सम्पन्न करे। फिर किसी भी गणपति मन्त्र का एक माला जाप करें और गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

         इसके बाद सुपारी या गुटिका का सामान्य पूजन करें। भोग में तले हुए पापड़, उड़द के ३ बड़े रखें। तत्पश्चात अपने जीवन से सभी बाधाओं की निवृत्ति हेतु तथा साधना मार्ग में प्रगति हेतु आप यह साधना कर रहे हैं, ऐसा संकल्प लें।

          अब साधक मन्त्र जाप आरम्भ करे। इसमें माला का प्रयोग नहीं होगा। जाप करते समय भैरव के समक्ष एक कटोरा रखे और अपने पास काले तिल, काली मिर्च, काले उड़द  तीनों को समान भाग में मिलाकर किसी अन्य पात्र में रखे। अब थोड़ी-सी सामग्री ले और अपने मस्तक पर स्पर्श कराएं। स्पर्श करते समय शाबर भैरव मन्त्र पढ़ते रहें, मन्त्र पूर्ण होते ही यह सामग्री भैरव के समक्ष रखे कटोरे में डाल दें। इस प्रकार यह क्रिया एक घण्टे तक करे।

साबर भैरव मन्त्र :-----------

    ।। हूं हूं हूं भैरो दरिद्रता नासै,
    रोग नासै, शत्रु नासै, नासै सगली  पीड़ा,
    सुख बरसे, सफल होय कारज डाले भैरो रक्षा घेरा,
    आदेश आदेश आदेश आदि गुरु को आदेश ।।

          जब मन्त्र जाप की क्रिया सम्पन्न हो जाए, तब भैरव के समक्ष कटोरे में जो सामग्री एकत्रित हुई है, उसे घी में मिला ले और मन्त्र पढ़ते हुए अग्नि में  १०८ आहुति प्रदान करे। सामग्री जरा भी न बचाए, अगर आहुति के बाद भी बच जाए तो बाद में सभी सामग्री अग्नि में डाल दे।

          भगवान भैरव से प्रार्थना कर आशीर्वाद प्राप्त करे और रात्रि में ही बाजोट पर बिछा वस्त्र, सुपारी, भोग की वस्तुएँ आदि किसी वृक्ष के नीचे रख आए। पीछे  मुड़कर न देखें, घर आकर स्नान करे। हवन की भस्म आदि भी अगले दिन कहीं विसर्जित कर दे।

          इस प्रकार यह प्रयोग सम्पन्न होता है। साधक को बाद में भी नित्य २१ बार मन्त्र का पाठ करना चाहिए। इससे प्रयोग की तीव्रता दिन-प्रतिदिन बढ़ती रहती है तथा प्रयोग से सम्बन्धित सभी लाभ साधक को शीघ्रता से प्राप्त होते है।

                   यदि आप स्वर्णकर्षण भैरव गुटिका का प्रयोग करें तो साधना के तुरन्त बाद गुटिका को नीम्बू और नमक मिश्रित जल में डुबो दे २४ घंटे के लिए। इसके बाद धोकर शिवलिंग से स्पर्श कराकर पुनः सुरक्षित रख ले। इसी गुटिका पर भविष्य में पुनः साधना की जा सकती है। 

          आप सभी की होली मंगलमय हो और आपकी साधना सफल हो। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ


ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।

बुधवार, 7 फ़रवरी 2018

अवधूतेश्वर कालेश चिन्तामणि साबर प्रयोग

अवधूतेश्वर कालेश चिन्तामणि साबर प्रयोग

          महाशिवरात्रि पर्व निकट ही है। यह १३ फरवरी २०१८ को आ रहा है। आप सभी को महाशिवरात्रि की अग्रिम रूप से बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ! 

         बहुधा व्यक्ति जीवन में बाधाओं से ग्रस्त होता है, जिसकी वजह से उसकी आर्थिक, सामाजिक, मानसिक, पारिवारिक स्थिति कमजोर होते जाती हैं और परिणाम स्वरूप व्यक्ति का जीवन पूरी तरह बर्बाद हो जाता है। हम अक्सर ऐसे में स्वयं को बाह्य बाधा से ग्रसित मान लेते हैं, किन्तु यह पूरी तरह सत्य नहीं होता है और अगर यह सत्य भी हुआ तो हमें यह ज्ञात नहीं हो पाता है कि यह बाधा किस प्रकार की है? क्यूँकि जीवन में पतन और अभाव के मूल ७ कारण होते हैं, जिनसे व्यक्ति ग्रसित होने पर उन्नति पथ से विचलित होकर विनाश के द्वार तक पहुँच कर अपना सब कुछ लुटा देता है। ये बाधाएँ बाह्य और आन्तरिक दोनों ही प्रकार की होती हैं, इनका सामूहिक शमन कर पाना किसी एक क्रिया से सम्भव नहीं होता है और हमें यह भी तो ज्ञात नहीं होता है कि यह किस प्रकार की बाधा है? जब हम इसके उपचार हेतु जानकारी चाहते हैं तो तथाकथित तान्त्रिक तन्त्रबाधा के नाम से लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं और व्यक्ति दुहरी मार से वैसे ही मर जाता है। क्यूँकि आवश्यक नहीं है कि जिनसे हम अपनी समस्या का समाधान चाहते हों, उन्हें यह ज्ञात भी हो कि इस समस्या का मूल क्या है? जिस प्रकार एक चिकित्सक चिकित्सा की सभी विधियों में पारंगत हो, ऐसा अनिवार्य नहीं है। 

         वही स्थिति तन्त्र में भी होती है अर्थात तन्त्र की सभी विधियों का ज्ञान एक ही तान्त्रिक को हो, ऐसा अनिवार्य नहीं है। किन्तु नाथ योगियों ने समाज के कल्याण के लिए निरन्तर साधनात्मक अन्वेषण का कार्य किया है और नूतन साधनात्मक पद्धतियों से साधकों को परिचित करवाया है। उसी क्रम में सिद्ध रेवणनाथ” का नाम आता है, जो कि तन्त्र के प्रकाण्ड विद्वान लंकाधिपति रावण का ही अवतार हैं और तन्त्र मार्ग के पथिक होने के कारण उन्होंने अपने प्रत्येक रूप से तन्त्र के विविध रहस्यों को आत्मसात् किया है और भगवान शिव के द्वारा अगम्य एवं कठिनतम साधनाओं को हस्तगत किया है। उसी क्रम में उन्होंने भगवान शिव के द्वारा इस पूर्ण तन्त्र बाधा और सप्तदोष नाशक अवधूतेश्वर कालेश चिन्तामणि साबरी प्रयोग के विधान को प्राप्त किया था।


         पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी ने कहा था कि इस मन्त्र के द्वारा जीवन को रसातल में पहुँचाने वाले ७ दोषों का नाश किया जा सकता है। ये सात दोष निम्न प्रकार के हैं -----

(१) अधिदैविक दोष :----- कभी-कभी साधक के कुलदेवी-देवता किसी कारण नाराज हो जाते हैं अर्थात यदि उनका उचित सम्मान न किया जाए या उनके पूजन क्रम में आलस्य व प्रमादवश शिथिलता कर दी जाए तो ऐसे में कुलदेवता का सुरक्षा चक्र मन्द हो जाता है या भंग हो जाता है। तब अभी तक उसे जो सुरक्षा व गति प्राप्त हो रही थी, वो समाप्त हो जाती है। फलस्वरूप साधक दुर्भाग्य की जकड में आ जाता है।

(२) इष्ट दोष :----- प्रत्येक मनुष्य किसी विशेष देवशक्ति का अंश लिए हुए होता है तथा इसी तथ्य पर उसके इष्ट का निर्धारण भी होता है, किन्तु बहुधा साधक को उसके इष्ट की जानकारी नहीं होती है और इसका ज्ञान मात्र सद्गुरु को ही होता है। किन्तु जब साधक उसे जानने की कोई जिज्ञासा ही नहीं रखता है, तब ऐसे में वो भ्रमवश या लालचवश किसी भी देवी-देवता को अपना इष्ट बना लेता है और ऐसे में आवश्यक नहीं है कि वो चयनित देवशक्ति उसकी मित्र ही हो। कभी-कभी पूर्वजन्म के संस्कारों के फलस्वरूप शत्रु देवशक्ति भी हो सकती है, क्यूँकि प्रत्येक साधक को कौन-सी देवशक्ति का साहचर्य मिलेगा या किसका गुण उसके प्राणगत रूप से मेल खाता है, इसका ज्ञान साधक को हो पाना कठिन ही होता है। तब साधक अतिरंजित घटनाओं को सुनकर या अधिक पाने के लालच में किसी भी शक्ति की आराधना करने लगता है और उसके मूल इष्ट उपेक्षित रह जाते हैं तथा साधक उनकी कृपा से वंचित रह जाता है। ऐसे में तब उसे लाभ के बजाय हानि होने लगती है और उसे ये अज्ञात कारण समझ में ही नहीं आता है।

(३) कर्मदोष :----- प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन में तीन प्रकार के कर्मों का परिणाम पाता है --- प्रारब्ध, संचित और क्रियमाण। मान लीजिए, आपने इस जीवन में लगातार पुण्यकर्म किये हैं, किन्तु जीवन में अभाव है कि जाने का नाम ही नहीं ले रहा। तब यह समझ में नहीं आता है कि आखिरकार हमसे ऐसी कौन-सी त्रुटि हुई है, जो जीवन में ना तो प्रसन्नता है, ना ही कोई उन्नति के चिन्ह ही। अब इसका ज्ञान उसे गुरु ही दे सकता है या फिर इसे उसकी कुण्डली द्वारा भी जाना जा सकता है। यह ज्ञात किया जा सकता है कि आखिरकार हम किन कर्मों का परिणाम झेल रहे हैं? क्या वे हमारे पूर्वजन्मों का परिणाम है या फिर संचित या वर्तमान के क्रियमाण कर्मों का?

(४) आधारदोष :----- कभी-कभी हमारी अवनति का कारण हमारा मोह, प्रेम या कर्त्तव्य भी हो जाता है। इसका अर्थ यह है कि हमारे सम्बन्ध में कोई ऐसा होता है, जो कि हमारा अत्यधिक स्नेही है और वो व्यक्ति जीवन में दुःख,अभाव या दुर्भाग्य से ग्रस्त होता है तथा हम उसकी उन्नति के लिए पूर्ण हृदय से प्रार्थना करते हैं, उसके कष्टों को दूर करने का प्रयत्न भी करते हैं, किन्तु हमें यह ज्ञात नहीं होता है कि कहीं न कहीं हमारे द्वारा किए जा रहे हस्तक्षेप का परिणाम हमारे दुर्भाग्य के रूप में हमारे सामने आ सकता है। अतः मोह जनित इस दोष से जो परिणाम प्राप्त होते हैं, वो इतने कष्टकारी और भयावह होते हैं कि हमारे साथ-साथ इस चक्की में हमारा परिवार भी पिसता जाता है और पूरे परिवार का विकास रुक जाता है तथा एक उदासी, बैचेनी का साम्राज्य परिवार में फैल जाता है। हमारे पूर्वजों के द्वारा किये गए बुरे कार्यों का परिणाम भी इसी श्रेणी में आता है, जो कि उनके प्रतिनिधि के रूप में हमें भोगना होता है, अर्थात पितृ दोष को भी हम इसी दोष के अन्तर्गत रखते हैं।

(५) शाप दोष :----- हमारे कर्मों के द्वारा किसी अन्य का हृदय दुखने से, उसका अहित होने से भी स्वयं के जीवन का योग दुर्भाग्य से युक्त हो जाता है। ब्रह्माण्ड भावों की तीव्रता से अछूता नहीं है और इसी कारण हमारे भाव साकार रूप में हमारे सामने आ जाते हैं। इसका सिद्धान्त यह है कि हमारे मन में चल रहे भाव का योग जैसे ही उस भाव विशेष के स्वामी काल क्षणों से होता है तो वे भाव, भाव ना रहकर साकार रूप में हमारे जीवन में प्रविष्ट हो जाते हैं। इसी कारण किसी के द्वारा पूर्ण शान्त हृदय से दिया गया आशीष और किसी के पीड़ित हृदय से निकली आह फलीभूत होती है और याद रखिए कि ब्रह्माण्ड नकारात्मकता को कहीं अधिक तीव्रता से स्वीकार भी करता है एवं उसके परिणाम को उससे कहीं अधिक तीव्रता से प्रदान भी करता है, क्यूँकि ऐसे में मात्र ऊर्जा का विखण्डन करना ही होता है जो कि सहज है अपेक्षाकृत सकारात्मक भावों से प्रेरित ऊर्जा के संलयन के। अर्थात आशीर्वाद फलीभूत होने में समय ले सकते है, किन्तु श्राप समय नहीं लेता है। इस दोष के अन्तर्गत वास्तुदोष भी आता है अर्थात जिस भूमि पर आप रह रहे हैं, परिस्थितियों, श्राप, काल या घटनाओं के कारण उसमें विकृति आ जाती है और वो भूमि, भवन निरन्तर नकारात्मक ऊर्जा छोड़ते हैं, जिससे दुर्भाग्य का साम्राज्य व्यक्ति विशेष के जीवन में समाहित हो जाता है।

(६) नवग्रह दोष :----- व्यक्ति के जन्म समय में ग्रहों की आधार स्थिति कैसी थी? नक्षत्रों का उस पर क्या प्रभाव पड़ रहा था? किस ग्रह के भुक्तफल को भोगते हुए उसका जन्म हुआ है? उन्नति प्रदायक ग्रहों के कमजोर होने से तथा शत्रु ग्रहों के बलवान होने से, ग्रहों की महादशा,अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर दशा, सूक्ष्मदशा तथा प्राणदशाओं के स्वामी का उस दशा विशेष में जातक के ऊपर क्या परिणाम होगा? उसे कितनी हानि या लाभ होगा? आदि तथ्य इसी प्रकार निर्धारित होते हैं। अतः इसका ज्ञान भी कुण्डली द्वारा किया जा सकता है।

(७) तन्त्र-बाधा दोष :----- आपकी निरन्तर उन्नति, परिवार में व्याप्त प्रसन्नता व आनन्द को देखकर या किसी शत्रुता के कारण कई ऐसे निकृष्ट कर्म विरोधियों द्वारा आपके विरुद्ध सम्पन्न कर दिए जाते हैं, जिससे सौभाग्य परिवार और स्वयं से कोसों दूर हो जाता है। तन्त्र की ये क्रिया करने में कोई विशेषज्ञता की आवश्यकता नहीं होती है या तो तीव्र तन्त्र बल से या फिर तन्त्र सामग्रियों का निकृष्ट काल और शक्तियों से योग कराकर पिशाच शक्तियों के द्वारा किसी का भी जीवन तहस-नहस किया जा सकता है। क्यूँकि भवन निर्माण में कुशलता और अनुभव की प्रधानता होती है, जहाँ अन्धाधुन्ध विनाश की बात है, वहाँ बिना किसी कुशलता के मात्र आप आँख मूँद कर भी पत्थर फेंकोगे तो कहीं न कहीं तो नुकसान होता ही है।

          उपरोक्त सात में से कोई भी एक कारण आपके और आपके परिवार तथा स्वजनों के दुर्भाग्य का कारण हो सकता है। आर्थिक रूप से टूटते जाना, पति या पत्नी का विपरीत हो जाना, सन्तान का गलत मार्ग पर बढ़ना, भ्रमित मानसिकता से गलत निर्णयों का उत्पन्न होना, गर्भपात या गर्भ का ना टिकना, अकाल दुर्घटना, शारीरक व्याधियों तथा रोगों का जन्म, साधना में असफलता, बदनामी, चिड़चिड़ाहट, गलत राह पर अग्रसर होना, मुकदमों में फँसे रहना, राज्य द्वारा निरन्तर बाधा उत्पन्न करना, अवसाद ग्रस्त होना, निरन्तर अवनति तथा दारिद्रय युक्त जीवन जीना आदि उपरोक्त दोषों का ही परिणाम है।

          अब ऐसे में हमें समझ में ही नहीं आता है कि आखिर हम उपाय क्या करें? हमें जो जैसा बता देता है, हम वैसा ही करते हैं और नतीजा ढाक के तीन पात वाला होता है। क्योंकि जब तक हमें समस्या का मूल कारण ही नहीं पाता होगा, तब तक उसका उचित समाधान नहीं किया जा सकता है, क्यूँकि पेटदर्द की औषधि से गले का दर्द तो ठीक नहीं किया जा सकता है।

          किन्तु अवधूतेश्वर कालेश चिन्तामणि साबरी प्रयोग के द्वारा उपरोक्त सातों स्थितियों पर पूर्ण नियन्त्रण पाया जा सकता है। वस्तुतः यह मन्त्र उन बीज मन्त्रों के द्वारा निर्मित हुआ है, जिनसे सभी प्रकार के दोषों का नाश होता है।

साधना विधान :-----------

          शिवरात्रि से होली तक इस प्रयोग को करने पर तीव्रता से लाभ प्राप्त किया जा सकता है, अन्य दिवसों में यह साधना २१ दिन की होती है, रात्रि के १०.३० से १२.४५ तक नित्य इसका जाप किया जाता है। इस साधना में कोई विनियोग या ध्यान नहीं किया जाता है, दक्षिण दिशा की ओर मुख करके काले आसन पर बैठ कर, काले वस्त्रों को धारण कर सामने बाजोट पर काला वस्त्र बिछाकर उस पर पारद शिवलिंग या कोई भी चैतन्य शिवलिंग की स्थापना स्टील के पात्र में की जाए। 

          साधक के लिए उचित होगा कि सर्वप्रथम सद्गुरुदेव, भगवान गणपति, भगवान भैरव और भगवान अघोर का पूजन कर उनसे इस साधना में सफलता की प्रार्थना की जाए तथा आज्ञा ली जाए। शिवलिंग के बाईं तरफ तेल के दीपक का स्थान होगा तथा दाहिनी तरफ ताम्रपात्र में जल का कलश स्थापित होगा। उस ताम्रपात्र में जो जल भरा जाएगा, वो सभी सदस्यों के द्वारा स्पर्श किया हुआ होना चाहिए अर्थात सभी परिवार के सदस्य उसमें पूर्ण स्वच्छ होकर थोड़ा-थोड़ा जल डालेंगे तथा पूर्ण बाधा नाश की प्रार्थना करेंगे।

          सबसे पहले पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का स्मरण करके सामान्य पूजन सम्पन्न करें और गुरुमन्त्र का चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से अवधूतेश्वर कालेश चिन्तामणि साबर प्रयोग सम्पन्न करने हेतु मानसिक रूप से आज्ञा लें और उनसे साधना की सफलता एवं पूर्णता के लिए निवेदन करें।

          इसके बाद साधक शिवलिंग का पूर्ण पूजन करे अर्थात अक्षत, पुष्प, धूप-दीप,भस्म, तिल के लड्डुओं के नैवेद्य द्वारा पूजन करे तथा काली हकीक माला या रुद्राक्ष माला द्वारा ७ माला निम्न मन्त्र का जाप करे। प्रत्येक माला की समाप्ति पर काले तिल, कालीमिर्च, सरसों और लौंग अर्पित कर दे।

।। ॐ पिशाचि पर्णशबरि सर्वोपद्रवनाशनि स्वाहा ।।

OM PISHAACHI PARNNASHABARI SARVOPDRAVNAASHNI SWAAHA.

          इस मन्त्र के जाप के बाद पूर्ण स्थिर चित्त होकर माला को धारण कर पुनः उपरोक्त सामग्री को निम्न मन्त्र के उच्चारण साथ धीरे-धीरे बिना किसी माला के जाप करते हुए शिवलिंग पर चढाते रहे, लगभग ४५ मिनट तक यह क्रिया करनी है -----

।। ॐ ह्लौं ग्लौं क्लीं ग्लीं ॐ फट् ।।

OM HLOUM GLOUM KLEEM GLEEM OM PHAT.

          इसके बाद फिर से पहले वाला मन्त्र ७ माला जप करते हुए सामग्री चढाएं -----

।। ॐ पिशाचि पर्णशबरि सर्वोपद्रवनाशनि स्वाहा ।।

          नित्य यही क्रम करना है, प्रतिदिन सामग्री को अलग कर पास में एक मिट्टी का पात्र रखकर उसमें डाल दे।

          जप काल में शरीर का तापमान बढ़ जाता है, सर दर्द करता है, साधना के प्रति उपेक्षा का भाव आता है, कँपकँपी तथा पसीना तीव्रता से निकलता है, भय लग सकता है। ऐसा लगता है, जैसे कोई और साथ में वहाँ पर है।

          यदि हम शिवरात्रि से यह प्रयोग करते हैं तो मात्र ७ दिन का ही यह प्रयोग है। जो भी सामग्री ७ दिनों में इकट्ठी हुई हो, उसे उसी काले कपडे में बाँध कर जप माला तथा नैवेद्य के सभी लड्डुओं समेत होली की रात्रि में होलिकाग्नि में दक्षिण की ओर मुँह करके डाल दे, साथ ही कुछ दक्षिणा अर्पित कर दे।

          यदि आप अन्य दिवसों में साधना कर रहे हैं तो २१ वें दिन किसी वीरान जगह पर अग्नि प्रज्वलित कर दक्षिण मुख होकर ये सामग्री डाल दे। जैसे ही हम सामग्री को अग्नि में अर्पित करते हैं तो चीत्कार और कोलाहल-सा सुनाई देने लगता है। घर आकर स्नान करें तथा कलश में जो जल है वो पूरे घर और सभी सदस्यों पर छिड़क दें।

          अगले दिन ३ कन्याओं तथा एक बालक को भोजन कराकर दक्षिणा देकर तृप्त कर दें। इस प्रकार यह अद्वितीय प्रयोग पूर्ण होता है।


          सद्गुरुदेवजी द्वारा प्रदत्त यह प्रयोग मेरा खुद का अनुभूत है और इससे तीव्र प्रयोग मैंने अभी तक नहीं देखा है। इसका लाभ मैंने उठाया है, अतः आप सभी भी इस प्रयोग से लाभ ले सकते हैं।

          आपकी साधना सफल हो। यह महाशिवरात्रि आपके लिए मंगलमय हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ 

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।।

शनिवार, 3 फ़रवरी 2018

चन्द्रमौलिश्वर साधना

चन्द्रमौलिश्वर साधना

            महाशिवरात्रि पर्व निकट ही है। यह इस बार १३ फरवरी २०१८ को आ रहा है। आप सभी को महागशिवरात्रि महापर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ! 

          मानव जीवन स्वतन्त्र नहीं है, क्योंकि उसका प्रत्येक कार्य ग्रहों से संचालित होता है। इसी कारणवश जब ग्रहों का विपरीत असर मानव पर पड़ता है तो उसे ज़रूरत से ज्यादा कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जिसके फलस्वरूप उसे विभिन्न प्रकार के कष्ट और दुःख भोगने पड़ते हैं।

          सम्पूर्ण जगत कुछ नियमों-उपनियमों से बँधा है। प्रत्येक मनुष्य के जीवन में जो कुछ भी घटित होता है, उन पर ग्रहों का प्रभाव निश्चित रूप से पड़ता ही है तथा पृथ्वी पर रहने वाली प्रत्येक वस्तु के साथ जो आकर्षण-विकर्षण ग्रहों के प्रभाव से बनता है, उसके प्रभाव से कोई बच नहीं सकता। यही कारण है कि मनुष्य चाहकर भी उन्नति की मंज़िल पर यदि बढ़ता है तो कुछ क्रूर ग्रह और पापी ग्रह उसकी कामयाबी के रास्ते का रोड़ा बन जाते हैं। अतः जीवन में यदि ग्रहों की दशा अच्छी रहती है तो हमारी कामयाबी भी हमारे साथ होती है।

          इसमें कोई दो राय नहीं कि मानव जीवन और भाग्य पर ग्रहों का प्रभाव बराबर रहता है। कई बार तो ऐसा होता है कि हम प्रयत्न करते हैं और जब सफलता हमसे दो-चार हाथ दूर रह जाती है, तो सारे किये-कराये काम पर पानी फिर जाता है। आपने कई बार यह अनुभव किया होगा कि प्रयत्न करने पर भी व्यापार में सफलता नहीं मिल पा रही है या जिस प्रकार से बिक्री बढ़नी चाहिए, उस प्रकार से नहीं बढ़ पा रही है अथवा घर में जो सुख-शान्ति होनी चाहिए, वह भी नहीं हो पा रही है। इसके अतिरिक्त भी कई छोटी-छोटी समस्याएँ है, जिनसे मानव व्यथित रहता है और प्रयत्न करने पर भी उसे सफलता नहीं मिल पाती।

          यों तो ग्रह किसी को भी नहीं छोड़ते, चाहे वह गरीब हो या अमीर या फिर देवता ही क्यों न हो? ऐसे अनेकों उदाहरण हैं हमारे सामने, जिनसे यह ज्ञात होता है कि ग्रहों का व्यक्ति के जीवन पर कितना अधिक प्रभाव पड़ता है? — श्रीराम को भी शनि की दशा से ग्रस्त होकर महल को छोड़कर वन में चौदह साल तक दर-दर भटकना पड़ा। यह बात और है कि वाल्मीकि ने भक्ति भाव पूर्वक उस वनवास को कुछ और नाम दे दिया, किन्तु सत्य यही है कि राम को भी जीवन में ग्रहों के दूषित प्रभाव के कारण चौदह साल तक जंगलों में रहकर जीवनयापन करना पड़ा।

          महात्मा बुद्ध को भी मंगल एवं राहु के दूषित प्रभाव से ग्रसित होकर अपना राजपाट छोड़कर उन सबसे संन्यास लेना पड़ा और राजा हरिशचन्द्र को भी शनि की साढ़े साती के प्रभाव के कारण अपना राज्य त्याग कर श्मशान में रहना पड़ा। यही नहीं अपितु उसके जीवन में एक समय ऐसा भी आया, जब वह अपने पुत्र की लाश पर कफ़न भी न डाल सका। इस प्रकार की अनेकों घटनाएँ हैं, जिनसे यह सिद्ध होता है कि इतने बड़े-बड़े महापुरुष भी ग्रहों के दूषित प्रभावों से बच नहीं पाए, भले ही इन घटनाओं को समाज में कोई और रूप दे दिया गया हो, किन्तु सत्य यही है कि ग्रहों के प्रभाव से ही उनकी यह गति हुई।

          ग्रहाधीनं जगत् सर्वम्” अर्थात् यह सारा संसार ग्रहों के अधीन है। क्योंकि वायुमण्डल में विचरण करने वाले ग्रह मात्र भ्रमणशील ग्रह नहीं है, अपितु उनका प्रभाव निश्चित रूप से मानव जीवन पर पड़ता ही है और जब इन ग्रहों का प्रभाव विपरीत होता है तो विभिन्न प्रकार की समस्याएँ खुद-ब-खुद मनुष्य के सामने आकर खड़ी हो जाती है।

          ग्रह नौ प्रकार के होते हैं --- सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु। यों तो आकाश में सैकड़ों ग्रह है, किन्तु मुख्य ग्रह नौ ही माने जाते हैं, जिनका प्रभाव जाने-अनजाने, चाहे-अनचाहे हमारे ऊपर पड़ता ही रहता है और इन्हीं ग्रहों के प्रभाव से हमें अपने जीवन में सफलता-असफलता मिलती रहती है। हर ग्रह का मानव जीवन पर अपना अलग-अलग प्रभाव पड़ता है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य को कई समस्याओं का सामना करना पड़ जाता है। इन नौ ग्रहों में भी पाँच ग्रह ऐसे हैं, जिनका प्रभाव प्रायः व्यक्ति पर देखने को मिलता ही है।

१. सूर्य — यदि सूर्य की दशा व्यक्ति को विपरीत फल दे तो उसे समाज में बदनामी, विश्वासघात एवं कष्टदायक जीवन बिताते हुए असफलताओं का शिकार होना पड़ता है।

२. मंगल — यदि मंगल की दशा अच्छी न हो तो व्यक्ति का जीवन कई प्रकार की उलझनों से ग्रस्त रहता है, जिससे उसे जीवन भर तनाव बना रहता है। यह ग्रह व्यक्ति को चोर या हत्यारा आदि भी बना देता है और जेल यात्रा करवाता है।

३. शुक्र — स्वप्न दोष, विवाह बाधा आदि इस ग्रह बाधा के कारण ही होता है।

४. शनि — शनि की दशा व्यक्ति को एक-एक पैसे का मोहताज बना देती है, जिसके कारण व्यक्ति का जीवन दरिद्रता और गरीबी में बीतने लगता है तथा वह शारीरिक, आर्थिक एवं मानसिक तनावों से ग्रस्त होकर मृत्यु तक को प्राप्त हो जाता है। इसके लिए एक्सीडेण्ट, राज्य छीन जाना, कोर्ट-कचहरी, डॉक्टरों आदि के चक्कर लगना, यह सब परेशानियाँ इस ग्रह बाधा के कारण ही मानव को झेलनी पड़ती है।

५. राहु — इस ग्रह दोष के कारण गृह कलह, आपसी मनमुटाव आदि अनेक प्रकार की समस्याओं से मनुष्य हर पल घिरा रहता है।

          इस प्रकार अन्य ग्रह भी अपना दूषित प्रभाव मानव जीवन पर डालते रहते हैं, जिनके चंगुल से बच निकलना एक मानव के लिए दुष्कर कार्य प्रतीत होता है। कईं व्यक्ति ढोंगी पण्डित-पुरोहितों के चंगुल में  फँसकर उपरोक्त समस्याओं को निवारण हेतु उनके द्वारा बताए गए उपायों को आजमाते हैं, परन्तु उनसे उन्हें कोई लाभ नहीं मिल पाता। अपने कार्यों की सिद्धि एवं सफलता के लिए वे उनसे कई प्रकार के छोटे-मोटे अनुष्ठान-प्रयोग भी  करवाते हैं, किन्तु फिर भी उसका अनुकूल फल उन्हें प्राप्त नहीं होता, तब उनका देवताओं आदि पर से विश्वास उठने लगता है। क्योंकि वे उन समस्याओं एवं परेशानियों का कारण नहीं जान पाते, जबकि इन आपदाओं-विपदाओं का मूल कारण “ग्रह बाधा” ही है।

          कुछ व्यक्ति ग्रह बाधा निवारण के लिए छोटे-मोटे टोने-टोटके, मन्त्र, अनुष्ठान भी करते रहते हैं, किन्तु उनसे समस्त ग्रह दोषों के मुक्ति नहीं प्राप्त हो सकती, वह तो भगवान चन्द्रमौलिश्वर की साधना-उपासना करने पर ही सम्भव है। यदि व्यक्ति अपने जीवन की समस्त बाधाओं, उलझनों एवं परेशानियों से छुटकारा पाना चाहता है, यदि वह जीवन में पूर्णतः सुखी एवं समृद्ध होना चाहता है, यदि वह समस्त ग्रह बाधा से मुक्ति पाना चाहता है तो उसे यह साधना अवश्य ही सम्पन्न करना चाहिए, वरन् आज जो आपके पास है वह भी बचा रहे, यह कोई ज़रूरी नहीं।

          वेदों, शास्त्रों, पुराणों आदि में भगवान शिव को ही चन्द्रमौलिश्वर कहा गया है -----

चन्द्रोद्भासितशेखरे स्मरहरे गंगाधरे शंकरे,

सर्पैर्भूषित कण्ठकर्णविवरे नेत्रोत्थ वैश्वानरे।

दन्तित्यक् कृत सुन्दराम्बर धरे त्रैलोक्य सारे हरे,

मोक्षार्थ कुरुचित्तवृत्तिमचलाम् अन्यैस्तु किं कर्मभिः॥

          अर्थात सिर पर अर्द्धचन्द्र को धारण किए हुए भगवान चन्द्रमौलिश्वर, जो कामदेव को भस्म करने वाले है, जिनके मस्तक से गंगा प्रवाहित हो रही है, कण्ठहार के रूप में सर्प को धारण किए हुए हैं, जिनके तृतीय नेत्र से वैश्वानर अग्नि निकल रही है। हस्ति चर्म को सुन्दर वस्त्र को रूप में धारण किए हुए तीनों लोकों में अद्वितीय भगवान शंकर, जो अपने इस रूप-गुण के कारण चन्द्रमौलिश्वर कहे जाते हैं, वे मेरे मन और बुद्धि को मोक्ष मार्ग की ओर प्रेरित करते हुए मेरे समस्त ग्रहजन्य दोषों को दूर करें।

          भगवान शिव अपने “चन्द्रमौलिश्वर” स्वरूप द्वारा ग्रहों के दूषित प्रभावों से व्यक्ति को या साधक को छुटकारा दिलाते हैं, क्योंकि भगवान चन्द्रमौलिश्वर देवाधिपति हैं, तन्त्रेश्वर हैं। अतः समस्त मन्त्र-तन्त्र भी उनके अधीन हैं। ऐसे भगवान चन्द्रमौलिश्वर की साधना तो प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में एक बार अवश्य ही सम्पन्न करनी चाहिए। इस साधना के बल पर वह व्यक्ति अपने जीवन में समस्त नीच ग्रहों के दूषित प्रभावों से मुक्ति प्राप्त कर उन ग्रहों को अपने अनुकूल बनाने में सफल हो जाता है और तब उसे जीवन में कभी भी किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं भोगना पड़ता।

          ग्रहों की दशा यदि सही रहे तो व्यक्ति के जीवन में उन्नति के स्रोत हमेशा के लिए खुले रहते हैं और वह कामयाबी की मंज़िल की ओर बढ़ते हुए अपने जीवन में पूर्ण सुखी एवं सम्पन्न हो जाता है। क्योंकि इस साधना-शक्ति के द्वारा वह एकबारगी ही अपनी समस्त परेशानियों एवं बाधाओं से मुक्ति पा लेता है।

साधना विधान :-----------

          रात्रिकालीन इस साधना में बैठने से पहले साधक स्नानादि करके पूर्णतया शुद्ध होकर पीली धोती धारण कर लें, ऊपर गुरु चादर ओढ़ लें तथा अपने सामने किसी लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछा दें। फिर आसन पर शान्तचित्त और दत्तचित्त होकर बैठ जाएं।

          इसके पश्चात तीन बार “ॐ” की ध्वनि का उच्चारण करें। फिर पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का ध्यान करें और गुरुमन्त्र का कम से कम चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से चन्द्रमौलिश्वर साधना सम्पन्न करने हेतु मानसिक रूप से आज्ञा लें और प्रार्थना करें कि मुझे समस्त परेशानियों से मुक्ति प्राप्त हो, ऐसा कहकर उनसे आशीर्वाद ग्रहण करें।

          इसके बाद भगवान गणपतिजी का स्मरण कर एक माला ॐ वक्रतुण्डाय हुं मन्त्र की जाप करें और गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          तत्पश्चात किसी ताम्रपात्र में कुमकुम से  लिखकर उसके ऊपर शुद्ध पारद शिवलिंग स्थापित कर दें और शिवलिंग के समक्ष एक पञ्चमुखी रुद्राक्ष भी स्थापित कर दें। फिर शिवलिंग का सामान्य पूजन करें और  ॐ नमः शिवाय मन्त्र की एक माला जाप  करें। 

          फिर पञ्चमुखी रुद्राक्ष पर कुंकुंम का तिलक लगाकर “ॐ चन्द्रमौलिश्वराय नमः” मन्त्र बोलते हुए उस पर ११ बार थोड़े-थोड़े चावल चढ़ाएं तथा ११-११ बार इसी मन्त्र का उच्चारण करते हुए क्रमशः काले तिल, काली सरसों, काली मिर्च अलग-अलग चढ़ाएं।

          साधना में धूप या अगरबत्ती जलाकर सरसों या तिल के तेल का दीपक अवश्य जलाएं। ध्यान रहे कि पूरे साधना काल में दीपक प्रज्ज्वलित रहे।

          फिर साधक मन ही मन भगवान शिव के चन्द्रमौलिश्वर स्वरूप को प्रणाम (नमस्कार) कर रुद्राक्ष माला से निम्न मन्त्र का ९ माला जाप करें -----

मन्त्र :-----------

ॐ शं चं चन्द्रमौलिश्वराय नमः

OM SHAM CHAM CHANDRAMOULISHWARAAAY NAMAH.

          जाप समाप्ति के बाद समस्त जाप एक आचमनी जल छोड़कर भगवान चन्द्रमौलिश्वर की ही समर्पित कर दें और गुरु आरती करें।

          फिर चैतन्य रुद्राक्ष पर चढ़ाई गई सामग्री को रात्रि के समय ही पूरे घर व दुकान तथा जो भी आपके आवासीय या व्यापारिक संस्थान हैं, सब जगह छिड़क दें, जिससे दुष्ट ग्रहों का प्रभाव दूर हो सके तथा भविष्य में भी उन ग्रह दोषों का प्रभाव न हो।

          इसके पश्चात रुद्राक्ष तथा माला को किसी नदी या तालाब में विसर्जित कर दें।

          यह साधना पूर्ण सफलतादायक है, जिसे पूर्ण श्रद्धा और लगन से करने की आवश्यकता है, तभी साधक को इससे निश्चित लाभ की प्राप्ति सम्भव है।

          आपकी साधना सफल हो और यह महाशिवरात्रि आपके लिए मंगलमय हो। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।


          इसी कामना के साथ 
ॐ नमो आदेश निखिलजी को आदेश आदेश आदेश।।।