मंगलवार, 12 जुलाई 2022

शिवलोक रहस्य साधना

 शिवलोक रहस्य साधना

          भगवान शिव प्रिय मास श्रावण मास निकट ही है। इसे शिव मास भी कहा जाता है। यह १४ जुलाई २०२२ से आरम्भ हो रहा है। आप सभी को शिव मास श्रावण मास की अग्रिम रूप से बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ!

          हमारे पुराणों में कई प्रकार के लोक-लोकान्तरों का उल्लेख मिलता है‚ जैसे देवलोक‚ यक्षलोक‚ गन्धर्वलोक‚ ब्रह्मलोक‚ शिवलोक‚ इन्द्रलोक आदि। वस्तुतः मुझे लगता था‚ कि हमारे पुराणों में जो भी लिखा है‚ वह सत्य है‚ लेकिन संकेतात्मक रूप में विविध उल्लेख अवश्य मिलता है। कहानियों के पीछे कई प्रकार के मत या विचारधारा तथा लक्ष्य हो सकते हैं‚ जिन्हें मात्र उस विषय में गहरी शोध के बाद समझा जा सकता है। जैसे कि मार्कण्डेय पुराण में स्थित दुर्गाशप्तशती पूर्ण तान्त्रोक्त विधानों का संग्रह है। सामान्य व्यक्ति को वह सिर्फ एक कहानी ही प्रतीत हो सकती है और लोक-लोकान्तरों के विषय में भी लोगों की यही धारणा बनी‚ कि वह मात्र कहानियाँ ही है। लेकिन ऐसा नहीं है‚ हमारे तन्त्र ग्रन्थों में बराबर कई ऐसी साधनाओं के विधान दिए हैं‚ जिसके माध्यम से कुछ दिनों में व्यक्ति सूक्ष्म रूप से लोक-लोकान्तरों की यात्रा कर सकता है।

          जीवन का यह दिव्य सौभाग्य ही है‚ कि हम उन लोक में जाएं‚ वहाँ के निवासियों को देखें‚ उनके साथ वार्तालाप करें‚ वहाँ की दिव्यता का आनन्द उठाएं‚ वहाँ के सौन्दर्य को आत्मसात करें। देवताओं के जिन लोकों का उल्लेख हैं‚ वहाँ वे देवता सशरीर निवास करते हैं‚ उनके दर्शन कर‚ आशीष पाकर जीवन को दिव्य बनाएं। कुछ ऐसा ही चिन्तन लेकर मैं भी जुट गया इस दिशा में और साधना के अन्तिम दिन जो भी अनुभूतियाँ हुई‚ उन दिव्य अनुभूतियों को कोई भी लेखनी लिख नहीं सकती। सामान्य व्यक्तियों के लिए यह भी एक कहानी ही हो सकती है। 

          लेकिन जिन्होंने अपने सद्गुरुदेवजी के साथ समय बिताया है तथा उनके चरण कमलों में साधना ज्ञान को प्राप्त किया है‚ वह भलीभाँति समझ सकता है‚ कि साधना के माध्यम से कुछ भी असम्भव नहीं है। शिवलोक भी ऐसा ही एक लोक है‚ जिसका विवरण कई पुराणों में बार-बार प्राप्त होता है। यहाँ तक कि इस लोक में भगवान सदाशिव का स्थायी निवास भी बताया गया है। इसकी भौतिक स्थिति पर कई प्रकार के वाद-विवाद हो सकते हैं। किसी कल्पना की तरह ही यह लोक अत्यधिक दिव्यता युक्त है। बर्फीले वातावरण में प्रकृति अपने पूर्ण श्रृंगार के साथ इस लोक में स्थायी रहती है। साथ ही साथ कई श्रेष्ठ योगी‚ जिन्होंने अपने साधना बल से इसमें प्रवेश किया है‚ वे इधर-उधर विचरण करते हुए नज़र आते हैं‚ तो किसी तरफ शिव के सहायक गणों की भी आवाजाही रहती है। 

          जिसमें वीरभद्र तथा भैरव भी शामिल होते हैं। आगे के स्थान में जहाँ पर अपने आप ही “ॐ” नाद का गुँजरण होता रहता है‚ वहाँ पर एक अत्यधिक मनोहर स्थान पर उच्च वेदी पर भगवान सदाशिव अपने पूर्ण रूप में हमेशा विद्यमान रहते हैं। सामने कई योगी‚ महायोगी तथा अन्य सेवकगण एवं लोक-लोकान्तर से आए शिवभक्त शिव अर्चना में भाव विभोर होकर मग्न ही रहते हैं।

          क्या होगा इससे बड़ा सौभाग्य कि देवताओं की प्रत्यक्ष पूजा की जाए। योगीजन समाधि मग्न होते हैं। सौभाग्यशाली भी होते हैं कुछ एक‚ जिन्हें भगवान सदाशिव अपने श्रीमुख से खुद ही आशीर्वाद देते हैं। कल्पना से भी परे अगर कोई मधुर अनुभव होगा तो वह यही होगा। इस शिवलोक में प्रवेश साधना के माध्यम से मिल सकता है। इस अत्यधिक दुर्लभ विधान को प्राप्त करने के लिए क्या-क्या करना पड़ा था? यह तो पूरी एक अलग कहानी है‚ लेकिन मेरे सभी भाईयों/बहिनों के मध्य मैं इस विधान को भी रखना चाहूँगा‚ ताकि सब अपना जीवन दिव्यता की ओर अग्रसर कर सके तथा देख सके‚ कि साधना में आज भी कितनी शक्ति है? 

साधना विधान :------------ 

          इस साधना को श्रावण मास में सोमवार के दिन रात्रिकाल में १० बजे के बाद शुरू करना चाहिए। साधक को अपने सामने विशुद्ध प्राण-प्रतिष्ठित पारदेश्वर की स्थापना करनी चाहिए तथा उसका पूर्ण पूजन करें‚ धतूरे के फूल अर्पित करें। साधक का मुख उत्तर की तरफ होना चाहिए तथा कमरे में दूसरा कोई व्यक्ति न हो। 

          पूजन के बाद साधक मन्त्र का पूर्ण श्रद्धा के साथ जाप करें। इसके लिए रुद्राक्ष माला पर मन्त्र जाप हो। साधक के वस्त्र काले या फिर सफ़ेद रंग के हो। वस्त्रों के रंग का ही आसन हो। साधक को पहले एक माला लघु अघोर मन्त्र की करनी चाहिए। 

लघु अघोर मन्त्र :------------ 

॥ ॐ अघोरेभ्यो घोरेभ्यो नमः ॥

OM AGHOREBHYO GHOREBHYO NAMAH.

          इसके बाद साधक दिव्य शिवलोक मन्त्र की ५१ (इकावन) माला मन्त्र जाप करें -----

दिव्य शिवलोक मन्त्र :------------ 

॥ ॐ शिवे त्वं लोक प्रसीद अघोरेश्वर्ये दिव्य दर्शय आत्मदृष्टि जाग्रयामि फट् ॥

OM SHIVE TWAM LOK PRASEED AGHORESHWARYE DIVYA DARSHAY AATMADRISHTI JAAGRAYAAMI PHAT. 

          मन्त्र जाप समाप्ति पर शिव को ही मन्त्र जाप समर्पित कर दें। इसके बाद साधक वहीं पर सो जाए। यह क्रम साधक अगले १४ दिनों तक (कुल १५ दिन) चालू रखें। 

          अन्तिम रात्रि को सोने के बाद अपने सूक्ष्म शरीर से शिवलोक में निश्चित रूप से प्रवेश करता है तथा भगवान सदाशिव के दर्शन को कर लेता है। माला को प्रवाहित न करें‚ उसे पूजा स्थान में स्थापित कर दें। 

               आपकी साधना सफल हो और आपकी मनोकामना पूर्ण हो! मैं पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी से आप सबके लिए ऐसी  ही कामना करता हूँ। 

               इसी कामना के साथ

        ॐ नमो आदेश निखिलजी को आदेश आदेश आदेश।।।

शनिवार, 2 जुलाई 2022

गुरु आत्म-स्थापन साधना

 गुरु आत्म-स्थापन साधना

      

           उच्चकोटि के साधकों एवं शिष्यों के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्व गुरुपूर्णिमा समीप ही है। इस बार गुरुपूर्णिमा १३ जुलाई २०२२ को आ रही है। आप सभी को गुरुपूर्णिमा पर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ।

          शिष्य जब समर्पण भाव में आ जाता है और वह गुरु के साथ एकाकार होने के लिए मन-मस्तिष्क एवं हृदय से दृढ़ हो जाता है, तो गुरु शिष्य के साथ आत्मलीन होकर उसे अपना सम्पूर्ण प्यार उड़ेल देते हैं।

          परम पूज्य सद्गुरुदेव डॉ. नारायणदत्त श्रीमालीजी, जो हम सबके सद्गुरुदेव हैं एवं हमारे प्राणप्रिय हैं। उन्होंने अपनी क्रिया द्वारा यह भौतिक देह भले ही छोड़ दी हो, वे सिद्धाश्रम में पूज्य श्रीनिखिलेश्वरानन्द स्वरूप में विराजमान हैं और आत्मिक रूप से हम सबके मध्य ही तो स्थित हैं।

          मात्र शिष्यों के कल्याण के लिए ही वे आए और उनकी नज़र में प्रत्येक शिष्य समान ही रहा, चाहे वह एक वर्ष से जुड़ा हो या दस वर्ष से या दस दिन से या अभी भी जुड़ने का मानस बना रहा हो, तभी तो करुणा से वशीभूत होकर वे यह साधना दे गए, जिसको सम्पन्न कर आप हर समय गुरु की सान्निध्यता अनुभव कर सकते हैं।

          एकलव्य गुरु द्रोण के आश्रम से काफी दूर जंगलों में रहता था। उसने वहाँ गुरु की मूर्ति स्थापित कर अभ्यास जारी रखा। गुरु द्रोण सदैव उस मूर्ति में प्राण स्वरूप में विराजमान रहते थे और एकलव्य को प्रेरणा दिया करते थे। यह रहस्य केवल एकलव्य और गुरु द्रोण ही जानते थे। सशरीर रूप में कभी सामने न आकर भी एकलव्य को मात्र धनुर्विद्या में ही नहीं, अपितु अपना सर्वस्व ज्ञान देकर पूर्ण कर दिया।

          प्रस्तुत गुरु आत्म-स्थापन साधना पूज्य द्रोणाचार्य द्वारा एकलव्य को दी गई साधना का परिवर्द्धित रूप है, जिससे साधक गुरु-कृपा प्राप्ति के लिए तीव्रता से अग्रसर हो सके और उन्हें गुरुदेव के सानिध्य का अहसास होना प्रारम्भ हो जाए। एकलव्य ने भी साधना के द्वारा ही गुरु द्रोण की सूक्ष्म उपस्थिति को साकार किया था। आवश्यकता है तो मात्र इस साधना को पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास से सम्पन्न करने की।

          अभी तक यह साधना गोपनीय ही रही है, परन्तु अब वर्तमान समय को देखते हुए, शिष्यों की तड़प और बेचैनी का अनुभव करते हुए, उनकी वेदना को समझते हुए ही इस साधना को उजागर किया जा रहा है। 

साधना विधान :------------

          इस साधना को गुरु पूर्णिमा अथवा शुक्लपक्ष के किसी भी गुरुवार अथवा किसी भी मास की २१ तारीख अथवा किसी भी मास के गुरु श्रद्धाञ्जलि समर्पण दिवस (शुक्लपक्ष की नवमी) से प्रारम्भ किया जा सकता है। स्नान आदि से निवृत्त होकर उत्तराभिमुख होकर पूजा स्थल में एक श्वेत वस्त्र बिछाकर सद्गुरुदेवजी का एक चैतन्य चित्र स्थापित करें। चित्र ऐसा हो, जिसे आप स्नान करा सकें, विधिवत पूजन कर सकें, तिलक लगा सकें। ऐसा भव्य चित्र हर समय आपके पूजा स्थान में स्थापित रहे। इस चित्र के साथ ही सिद्धाश्रम चेतनायुक्त गुरु आत्म यन्त्रभी स्थापित करें।

          उसके बाद सद्गुरुदेवजी के ललाट, कान, कण्ठ, हृदय स्थान, नाभि, दोनों भुजाओं पर चन्दन से तिलक करें। यह तिलक बिन्दी स्वरूप हो, तत्पश्चात गुरु चित्र पर सुगन्धित माल्य अर्पण करें। तदनन्तर निम्न मन्त्र का १०५ बार उच्चारण करते हुए गुरु चित्र और यन्त्र पर अक्षत चढ़ाते हुए गुरुदेव का आवाहन करें -------

आवाहयामि आत्म स्वरूपम्, आवाहयामि प्राण स्वरूपम्।

आवाहयामि मम देह चिन्त्यं, गुरुत्वं शरण्यं गुरुत्वं शरण्यम्॥

          अब आप अपने सामने एक कटोरी में चन्दन लेकर उसे अपने शरीर के अंगों (ललाट, कान, कण्ठ, हृदय स्थान, नाभि, दोनों भुजाओं) पर लगाएं और निम्न मन्त्र का उच्चारण करें। इन मन्त्रों के उच्चारण के साथ ही गुरुदेव को अपने हृदय स्थान पर विराजमान होने का भाव रखें -------- 

ॐ कूर्माय नमः। ॐ आधार शक्तयै नमः। ॐ पृथिव्यै नमः। ॐ धर्माय नमः। ॐ ज्ञानाय नमः। ॐ सवित्रालाय नमः। ॐ ऐश्वर्याय नमः। ॐ विकारमयकेशरेभ्यो नमः। ॐ पञ्चाशर्णाबीजाद्याकर्णिकायै नमः। ॐ वैराग्याय नमः। अनैश्वर्याय नमः। ॐ अनन्ताय नमः। ॐ सर्वतत्वात्मकाय नमः। ॐ आनन्दकन्द कन्दाय नमः। ॐ प्रकृतिमयपत्रेभ्यो नमः।

          चूँकि आप दीक्षित शिष्य हैं और नित्य गुरुमन्त्र का जाप करते हैं। अतः मन्त्र जाप से पूर्व जिस माला से गुरुमन्त्र जाप करते हैं, उस माला से गुरुमन्त्र की ४ माला जाप करें। इसके बाद गुरु सिद्धि मालासे २१ माला गुरु आत्मस्थापन मन्त्र का जाप करें -------

गुरु आत्मस्थापन मन्त्र :------------

॥ ॐ ह्रीं क्लीं गुरुत्व आत्म ऐक्यं ह्रीं फट् ॥

OM HREEM KLEEM GURUTVA AATMA AIKYAM HREEM PHAT. 

          यह २१ दिन की साधना है और इसे प्रातःकाल अथवा रात्रि में ही सम्पन्न करना चाहिए। मन्त्र जाप के बाद साधक को दस मिनट शवासन में लेट जाना चाहिए। ऐसा करने से मनोरम प्राकृतिक दृश्य दिखाई दे सकते हैं। इस साधना से अनेक प्रकार के अनुभव होते हैं।

          २१ दिन के बाद माला को जल में प्रवाहित कर दें और यन्त्र को पूजा स्थान में स्थापित कर दें। बाद में भी इस मन्त्र का नित्य १५-२० मिनट तक जाप करने के पश्चात शवासन करें। धीरे-धीरे साधक को गुरुदेव की उपस्थिति का अनुभव होने लगेगा, आपके मन में उमड़ रहे प्रश्नों का उत्तर भी मिलने लगेगा, जीवन में साहस और निडरता आ जाएगी।

          आपकी यह साधना सफल हो! मैं पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी से आप सबके लिए ऐसी कामना करता हूँ।

               इसी कामना के साथ

        ॐ नमो आदेश निखिलजी को आदेश आदेश आदेश।।।