मंगलवार, 4 सितंबर 2018

चिन्तामणि गणपति साधना

चिन्तामणि गणपति साधना


                  गणेश चतुर्थी पर्व समीप ही है। इस  वर्ष गणेशोत्सव १३ सितम्बर  २०१८ से आरम्भ हो रहा है। आप सभी को गणेश चतुर्थी पर्व और गणेशोत्सव की अग्रिम रूप से बहुतबहुत हार्दिक शुभकामनाएँ!

                   भगवान शंकर और पार्वतीजी के पुत्र श्रीगणेश को गणपति, विनायक, लम्बोदर, वक्रतुण्ड, महोदर, एकदन्त तथा गजानन आदि अनेक नामों से सम्बोधित किया जाता है। सभी देवताओं में सर्वप्रथम पूज्य श्री गणेश सभी सिद्धियों के प्रदाता और विघ्न विनाशक हैं। इसीलिए हिन्दू धर्म में प्रत्येक कार्य शुरू करते समय सफलता पाने के लिए गणेश भगवान की पूजा की जाती है।  सनातन संस्कृति के अनुयायी बिना गणेश पूजन किए कोई शुभ व मांगलिक कार्य आरम्भ नहीं करते। निश्चित ही वह अति विशिष्ट ही होगा, जिसने तैंतीस करोड़ देवताओं में प्रथम स्थान प्राप्त किया है।

          बुद्धि के विशेष प्रतिनिधि होने से गणपति का महत्व काफी बढ़ जाता है। विभिन्न धार्मिक क्षेत्रों में गणपति के विषय में विस्तृत वर्णन किया गया है। तन्त्र शास्त्रों में भी इनकी महिमा का वर्णन है। इनमें गणेश साधना द्वारा अनेक प्रयोग विधान  बताये गये हैं, जो साधकों  के  लिए  बहुत ही उपयोगी हैं।

          त्रिपुरासुर के वध के लिए जिसकी आराधना स्वयं महेश यानि भगवान शिव करते हैं, महिषासुर के नाश के लिए जिसकी तपस्या स्वयं आदि शक्ति भगवती करती हैं, वह गणाध्यक्ष विनायक कोई भी कार्य सम्पादन का एक मात्र अधिष्ठाता होगा ही। प्रभु श्रीविष्णु रामावतार में विवाह प्रसंग के समय बड़े मनोभाव से भगवान गणेश की पूजा करते हैं तो माता पार्वती एवं बाबा भोले नाथ ने भी अपने विवाह से पहले श्रीगणेश की सर्वप्रथम पूजा-अर्चना की। मानव में सात चक्र होते हैं, जिसमें सबसे प्रथम है- मूलाधार चक्र। इस मूलाधार चक्र को भी गणेश चक्र के नाम से ख़्याति प्राप्त है।

          मूलाधार चक्र को शक्ति व ज्ञान की गति का अधिष्ठान बताया गया है। ऐसा ही विलक्षण दर्शन गणेश के चरित्र से प्राप्त होता है। इसलिए अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड नायक, परमब्रह्म, असाधारण प्रतिभावान यह गणपति ही हैं, विष्णु महाकैटभ के संहार और ब्रह्मा सृष्टि के कार्य सिद्धि लिए गणेश उपासना यूँ ही नहीं करते। वस्तुतः प्राचीन उपासना क्रम में पंच देवोपासना का निर्देश मिलता है। इस उपासना भेद में भी श्री गणेश को अपना स्थान प्राप्त हुआ है।

          ऐसा कौन-सा विषय है, जहाँ श्रीगणेश की कोई भूमिका न रही हो। विधि का विधान के सन्दर्भ में जो चर्चा हम और आप करते हैं, उसके निर्देशक प्रतिरूप भगवान गणपति ही हैं। अतः कुछ देने में यदि कोई सामर्थ्यवान है तो वह गणपति ही है। अतः यहाँ चिन्तामणि गणपति साधना दी जा रही है, जो कि एक पूज्यपाद सद्गुरुदेव प्रदत्त जीवनोपयोगी साधना है।

          चिन्तामणि गणपति प्रयोग भारतीय मन्त्र शास्त्र का श्रेष्ठतम और गोपनीय प्रयोग है। जो यद्यपि लघु दिखाई देता है, परन्तु उसका प्रभाव तुरन्त, अचूक और अद्वितीय है।  यों तो भगवान गणपतिजी से सम्बन्धित सैकड़ों साधनाएँ भारतीय तन्त्र-मन्त्र ग्रन्थों में वर्णित हैं,  परन्तु यह साधना अन्यतम है। जब भी, जिसने भी इस प्रयोग को किया है, उसे पूर्ण और निश्चित सफलता मिली है।

          प्रसिद्ध दण्ड स्वामी अलक्ष्यानन्दजी समस्त साधु समाज में चर्चित व्यक्तित्व रहे हैं। उनकी दाहिनी आँख की पुतली में पारद गणपति का विग्रह हर समय विद्यमान रहता है। साधना काल में आँख की कोर से इस गणपति विग्रह को निकाल कर ले साधना सम्पन्न करते हैं और फिर पुनः आँख की कोर में ही स्थापित कर देते हैं।

          पिछले दिनों स्वामीजी ने कृपा करके इस प्रयोग को समझाया था,  जो कि साधकों एवं पाठकों के लिए उनकी तरफ से वरदान स्वरूप है।

साधना विधान :------------

           यह  साधना  आप  गणेश  चतु्र्थी से आरम्भ करें। यदि यह सम्भव न हो तो इसका प्रारम्भ अधिमास,  चैत्र,  आषाढ़ अथवा किसी भी मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से करना चाहिए। इस दिन ताँबे की प्लेट में पारद गणपति की स्थापना करें, जो विजय गणपति मन्त्र से सिद्ध हों।

           इसके बाद सर्वप्रथम संक्षिप्त गुरुपूजन सम्पन्न करें और गुरुमन्त्र की कम से कम चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से चिन्तामणि गणपति साधना सम्पन्न करने की अनुमति लें और उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          इसके बाद साधना के पहले दिन साधक को संकल्प अवश्य लेना चाहिए। फिर साधक दाहिने हाथ में जल लेकर निम्न सन्दर्भ का उच्चारण करें -----

         ॐ अत्र द्य अमुक वर्षे अमुक मासे शुक्ल पक्षे अमुक तिथौ अमुक वासरे मम् अमुक कामना (कामना बोलें) सिद्धयर्थे लक्ष्मी प्राप्त्यर्थे श्रीचिन्तामणि गणपति प्रयोगमहं करिष्ये।

           और फिर हाथ में लिए हुए जल को भूमि पर छोड़ दें।

           तदुपरान्त गणपतिजी की मूर्ति को पहले पंचामृत से तथा उसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराएं। फिर बाजोट पर पीले अथवा केसरिया रंग का वस्त्र बिछाकर, उसके ऊपर कुमकुम मिश्रित चावल से स्वस्तिक का निर्माण करें। उसके मध्य में चावल की ढेरी बनाकर उसके ऊपर पारद गणपति को स्थापित कर दें। गणपतिजी को चन्दन,  अक्षत,  पुष्प,  धूप-दीप,  यज्ञोपवीत तथा पीत वस्त्र से अलंकृत कर पुष्प बार पहनाएं। तत्पश्चात उनके सामने मोतीचूर (बूँदी के लड्डू) का नैवेद्य रखकर गायत्री मन्त्र का जाप करते हुए जल चढ़ाएं।

          उसके बाद निम्न मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणपतिजी का ध्यान करें -----

ॐ गणानां त्वां गणपति गूं हवामहे, प्रियाणां त्वां प्रियपति गूं हवामहे।
निधिनां त्वां निधिपति गूं हवामहे, व्वसोमम् आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्।।

          इसके उपरान्त निम्नलिखित मूलमन्त्र का कमलगट्टे की माला से ग्यारह हज़ार बार जाप करें -----

मूलमन्त्र :----------

।। ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं चिन्तामणि गणपतये वांछितार्थं पूरय पूरय लक्ष्मीदायक ऋद्धिं वृद्धिं कुरु कुरु सर्वसौख्यं सौभाग्यं कुरु कुरु श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ ।।

OM SHREEM HREEM SHREEM CHINTAAMANNI GANNPAYAYE VAANCHHITAARTHAM POORAY POORAY LAKSHMIDAAYAK RIDDHIM VRIDDHIM KURU KURU SARVASAUKHYAM SAUBHAAGYAM KURU KURU SHREEM HREEM SHREEM OM.

          नित्य जाप की संख्या और समय एक समान रखना चाहिए। जहाँ तक सम्भव हो सके, यह प्रयोग रात्रि के समय ही करना चाहिए तथा गणपति के सम्मुख रखे गए नैवेद्य को स्वयं ग्रहण करने के बाद बालों और घर के अन्य व्यक्तियों को देना चाहिए।

          जाप के पश्चात उसी स्थान पर अपना बिस्तर बिछाकर सोना चाहिए। साधना काल में सत्य बोलना चाहिए, क्रोध नहीं करना चाहिए, सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए, मिर्च-खटाई युक्त भोजन नहीं ग्रहण करना चाहिए। यदि सम्भव हो तो स्वयं ही भोजन बनाकर ग्रहण करना चाहिए अथवा कोई स्नान कर स्वच्छ धुले वस्त्र धारण कर भोजन बनावे तो उसके हाथों का बना भोजन ग्रहण करना चाहिए। जप के पश्चात स्वयं ग्रहण करने वाला नैवेद्य भोजन के समय से पहले ग्रहण कर लें।

          ग्यारह हज़ार मन्त्र जाप समाप्त होने के पश्चात हो सके तो तिल, नारियल, शक्कर, घी से दशांश अर्थात ग्यारह माला का होम करना चाहिए तथा दो या अधिक ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।

          जब तक यह प्रयोग चलता रहे, तब तक साधक सात्विक भोजन तथा ब्रह्मचर्य आदि का पालन करना चाहिए।

          यह प्रयोग मनोवांछित कामना या सिद्धि हेतु किया जाता है। धन की प्राप्ति हेतु, चाहे जैसा संकट या बाधा आई हो, उस विघ्न से मुक्त होने या मन की कोई भी इच्छा पूर्ण करने हेतु यह प्रयोग किया जा सकता है। जिस संकल्प की पूर्ति करनी हो, उसका पहले संकल्प बोलना चाहिए।

          प्रयोग समाप्ति पर पारद गणपति को अपने साधना स्थान में स्थापित कर दें तथा माला को नदी में विसर्जित कर दें।

          सद्गुरुदेवजी की कृपा से आपकी साधना सफल हो और आपकी मनोकमना पूर्ण हो! मैं सद्गुरुदेव भगवानजी से ऐसी ही प्रार्थना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।