शनिवार, 25 अगस्त 2018

कृष्ण सरस्वती साधना


कृष्ण सरस्वती साधना


         श्रीकृष्ण जन्माष्टमी निकट ही है। यह २ सितम्बर २०१८ को आ रही है। आप सभी को जन्माष्टमी पर्व की अग्रिम रूप ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          भगवान विष्णु के अवतरण प्रत्येक युग में सम्भव हुए हैं और होते रहेंगे, किन्तु भगवान श्रीकृष्ण जैसा अवतरण दुर्लभ ही हुआ है तथा इस बात की पुष्टि केवल जनसामान्य की भावनाओं के आधार पर ही नहीं वरन् शास्त्रीय आधार पर भी की जा सकती है, जहाँ सभी शास्त्रों ने एकमत होकर श्रीकृष्ण अवतरण को ही सम्पूर्ण माना है, जीवन के भौतिक पक्षों के प्रति भी और जीवन के आध्यात्मिक पक्षों के प्रति भी। भगवान श्रीकृष्ण की प्रचलित छवि में उन्हें ईश्वर तो माना गया, किन्तु उनके साथ जुड़े साधना पक्ष और उनकी प्रबल आध्यात्मिकता की उपेक्षा कर दी गई, जबकि इस बात के पूर्ण प्रमाण मिलते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण कुशल तन्त्रवेत्ता और साधक भी थे, जिन्होंने शिष्य रूप में अपने गुरु सान्दीपनि के आश्रम में रहकर अनेक साधनाओं को सीखा था।

          वस्तुतः कृष्ण "शब्द" ही अपने आप में जीवन का अत्यन्त गम्भीर रहस्य समेटे हैं। इस शब्द में जहाँ "क" काम का सूचक है, वहीं "ऋ" श्रेष्ठ शक्ति का प्रतीक है, "ष" षोडश कलाओं का रहस्य समेटे हैं तो "ण" निर्वाण का बोध कराने में समर्थ है और इस प्रकार "कृष्ण" शब्द का तात्पर्य है, जो सामर्थ्य पूर्वक पूर्ण भोग व मोक्ष दोनों में समान गति बनाए रखे तथा इसी कारण भगवान श्रीकृष्ण की साधना-आराधना अपने आप में सम्पूर्ण साधना कही गई।

          भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी अनेक कथाओं के पीछे भी उनके साधक होने की कथा ही निहित है, जिसे अलौकिकता का आवरण दे दिया गया है और उनसे जुड़ा साधना पक्ष भुला दिया गया है। अनेक राक्षसों का वध या अपने गुरु के मृत पुत्र को जीवित करना जैसी अनेक घटनाएँ उनकी इसी विलक्षणता की परिचायक है और ऐसे अलौकिक युगपुरुष के जन्म का अवसर तो स्वतः सिद्ध मुहूर्त है ही।

          क्या आपके बच्चे पढ़ाई में कमजोर हैं? क्या आपका मन अशान्त रहता है? घर में प्रसनता की कमी है?  क्या आप ज्ञान प्राप्ति चाहते हैं, जिससे एक नई  रोशनी पैदा हो और घर में प्रेम पूर्ण वातावरण बने, जिससे प्रसन्न होकर आपका हृदय खुशी से भर उठे, बुद्धि का विकास हो और सभी ओर से प्रसन्नता  के सन्देश मिले। यह हर कोई चाहता है कि उसे दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हो। मैं अपने स्वयं के द्वारा परखी हुई या यह कहूँ कि पूर्ण रूप से अनुभूत की हुई साधना कृष्ण सरस्वती साधनासाबर विधि से दे रहा हूँ।

                    मुझे आशा है कि आप इस साधना का लाभ अवश्य प्राप्त करेंगे। यह साधना आपकी बुद्धि का विकास करेगी और मन में एक नवीन शक्ति का संचार करेगी। यह एक ओर जहाँ बच्चों में ज्ञान का विकास करती है, वही दूसरी ओर मन में असीम शान्ति भी देती है। आत्मचिन्तन का मार्ग खोल देती है। दिल में प्रेम के अंकुर को प्रस्फुटित कर चेतना को विकसित करती है, क्योंकि श्रीकृष्ण प्रेम का ही रूप है।

        यह मन्त्र उच्चकोटि के सन्तों द्वारा दिया गया है और आपके लाभ  के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है।

साधना विधान :-----------

          इस साधना को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से आरम्भ करें। इसके अलावा इसे बसन्त पंचमी अथवा किसी भी शुक्लपक्ष के गुरुवार से शुरू किया जा सकता है। इस साधना के लिए तिथि पूर्णिमा, पंचमी एवं अष्टमी विशेष रूप से फलदायी है।

          इस साधना के लिए सुबह का समय उत्तम है, लेकिन यह साधना रात्रि ७ बजे से १० बजे के मध्य भी की जा सकती है। साधना हेतु वस्त्र पीले रंग के उत्तम है, लेकिन सफ़ेद वस्त्र भी धारण किए जा सकते हैं। आसन पीला या सफ़ेद रंग का ही लें। साधना में दिशा उत्तर रहेगी।

          साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर साधना के निमित्त बैठ जाए। अपने बाजोट पर पीला वस्त्र बिछा लें। उस पर पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी, भगवान श्रीकृष्ण एवं माँ सरस्वती के चित्र स्थापित कर लें। शुद्ध घी का दीपक और धूप-अगरबत्ती प्रज्ज्वलित कर दें।

          सबसे पहले सद्गुरुदेवजी का सामान्य पूजन करें और साबर कृष्ण सरस्वती मन्त्र को एक कागज़ पर लिखकर उनके श्रीचरणों में रख दें। फिर गुरुमन्त्र की चार माला जाप के पश्चात् गुरुदेव से साधना की आज्ञा लेते हुए मन्त्र ग्रहण करें। अर्थात कागज़ उठाकर मन्त्र बोलकर तीन बार पढ़ें। मन्त्र पढ़ते समय ऐसी भावना करें कि जैसे सद्गुरुदेवजी आपको मन्त्र दे रहे हैं और आप मन्त्र ग्रहण कर रहे हैं। इस तरह मन्त्र दीक्षा पूर्ण हो जाती है और गुरुजी का साधना के लिए आशीर्वाद भी मिल जाता है।

          गुरुपूजन के पश्चात भगवान गणेशजी का, फिर माँ सरस्वती का पूजन करें और अन्त में कृष्ण भगवान का पूजन कर सफलता के लिए प्रार्थना करें। पूजन में गंगाजल, कुमकुम, अक्षत, पीले पुष्प, फल, मिश्री, मेवा आदि का प्रयोग करें। भोग में दूध का बना मिष्ठान्न अर्पित करें, यदि खीर हो तो अति उत्तम होगा। इस साधना में शुद्ध घी का दीपक जलाना आवश्यक है, जो साधना काल में पूरे समय जलता रहना चाहिए।

          इसके बाद मन्त्र जप शुरू कर सकते हैं। यह ११ दिन की साधना है। जाप के लिए माला सफेद हकीक की लें, अगर ना मिले तो एक घण्टा जाप कर सकते हैं, मिल जाए तो बहुत उत्तम होगा। आपको नित्य  ११ माला मन्त्र जाप करना है।

साबर मन्त्र :-----------

   ।। उठ सरस्वती दीपक बालो, हरिमन्दिर से हुए चानन,
    गुरु के ज्ञान ध्यान, पैज पत रखे आप श्री कृष्ण भगवान ।।

UTH SARASWATI DEEPAK BAALO HARIMANDIR SE HUYE CHAANAN
GURU KE GYAAN DHYAAN PAIJ PAT RAKHE AAP SHRIKRISHNA BHAGWAAAN.

          अगर हो सके तो दीपक की स्थिर लौ पर त्राटक करते हुए जाप करें। इस साधना के लिए यन्त्र की आवश्यकता नहीं है।

          मन्त्र जाप समाप्त होने के बाद एक आचमनी जल छोड़कर समस्त जाप समर्पित कर दे। इस प्रकार यह साधना ११ दिनों तक सम्पन्न करे।

          ११ वें दिन खीर का भोग बनाएं और पूजन करें। साधना पूर्ण होने पर खीर का भोग अर्पित करें। उसमें थोड़ा-सा शहद मिला कर जाप के वक़्त सामने अपने पास रखें। बाद में खीर अपने बच्चों को और पत्नी सहित स्वयं या घर के छोटे-बड़े सभी सदस्यों को वितरित कर दें और सद्गुरुदेवजी को धन्यवाद दें तथा सफलता की प्रार्थना करें। माला आप स्वयं पहन लें या बच्चे को पहना दें।

          आपकी साधना सफल हो और भगवान श्रीकृष्ण व माँ सरस्वती आपकी मनोकामना पूरी करे! मैं सद्गुरुदेव भगवानजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।

शुक्रवार, 24 अगस्त 2018

भयनाशक महाकाली साधना

भयनाशक महाकाली साधना

          श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व समीप ही है। यह २ सितम्बर २०१८ को आ रहा है। इसी दिन माँ भगवती आद्याकाली जयन्ती भी है। आप सभी को जन्माष्टमी एवं माँ भगवती काली जयन्ती की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          दस महाविद्याओं में काली का प्रथम स्थान है। महाभागवत के अनुसार महाकाली ही मुख्य हैं और उनके उग्र तथा सौम्य दो रूपों में से ही अनेक रूप धारण करने वाली दस महाविद्याएँ हैं। भगवान शिव की शक्तियाँ ये महाविद्याएँ अनन्त सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं। माना जाता है कि महाकाली या काली ही समस्त विद्याओं की आदि हैं अर्थात उनकी विद्यामय विभूतियाँ ही महाविद्याएँ हैं। ऐसा लगता है कि महाकाल की प्रियतमा काली ही अपने दक्षिण और वाम रूपों में दस महाविद्याओं के नाम से विख्यात हुईं। बृहन्नीलतन्त्र में कहा गया है कि रक्त और कृष्ण भेद से काली ही दो रूपों में अधिष्ठित हैं। कृष्णा का नाम दक्षिणा और रक्तवर्णा का नाम सुन्दरी है।

          कालिका पुराण में कथा आती है कि एक बार हिमालय पर अवस्थित मतंग मुनि के आश्रम में जाकर देवताओं ने महामाया की स्तुति की। स्तुति से प्रसन्न होकर मतंगवनिता के रूप में भगवती ने देवताओं को दर्शन दिया और पूछा कि तुम लोग किसकी स्तुति कर रहे हो! उसी समय देवी के शरीर से काले पहाड़ के समान वर्ण वाली एक और दिव्य नारी का प्राकट्य हुआ। उस महातेजस्विनी ने स्वयं ही देवताओं की ओर से उत्तर दिया कि ये लोग मेरा ही स्तवन कर रहे हैं। वे काजल के समान कृष्णा थी, इसलिए उनका नाम काली पड़ा।

          दुर्गा सप्तशती के अनुसार एक बार शुम्भ-निशुम्भ के अत्याचार से व्यथित होकर देवताओं ने हिमालय पर जाकर देवी सूक्त से देवी की स्तुति की, तब गौरी की देह से कौशिकी का प्राकट्य हुआ। कौशिकी के अलग होते ही अम्बा पार्वती का स्वरूप कृष्ण हो गया, जो काली नाम से विख्यात हुई। काली को नीलरूपा होने के कारण तारा भी कहते हैं। नारद-पाँचरात्र के अनुसार एक बार काली के मन में आया कि वे पुन: गौरी हो जाएं। यह सोचकर वे अन्तर्धान हो गईं। शिवजी ने नारद जी से उनका पता पूछा, नारद जी ने उनसे सुमेरु के उत्तर में देवी के प्रत्यक्ष उपस्थित होने की बात कही। शिवजी की प्रेरणा से नारदजी वहाँ गए, उन्होंने देवी से शिवजी के साथ विवाह का प्रस्ताव रखा। प्रस्ताव सुनकर देवी क्रुद्ध हो गईं और उनकी देह से एक अन्य षोडशी विग्रह प्रकट हुआ तथा उससे छाया विग्रह त्रिपुरभैरवी का प्राकट्य हुआ।

          काली उपासना में सम्प्रदायगत भेद हैं, प्राय: दो रूपों में इनकी उपासना का प्रचलन है। भव-बन्धन-मोचन में काली की उपासना सर्वोत्कृष्ट कही जाती है। शक्ति-साधना के दो पीठों में काली की उपासना श्याम-पीठ पर करने योग्य है। भक्ति मार्ग में किसी भी रूप में उन महामाया की उपासना फलप्रदान करने वाली है, परन्तु सिद्धि के लिए उनकी उपासना वीर भाव से की जाती है। साधना के द्वारा जब अहन्ता, ममता और भेद-बुद्धि का नाश होकर साधक में पूर्ण शिशुत्व का उदय हो जाता है, तब काली का श्रीविग्रह साधक के समक्ष प्रकट हो जाता है। उस समय भगवती काली की छबि अवर्णनीय होती है। कज्जल के पहाड़ के समान, दिग्वसना, मुक्तकुन्तला, शव पर आरूढ़, मुण्डमाला धारिणी भगवती काली का प्रत्यक्ष दर्शन साधक को कृतार्थ कर देता है।

          तान्त्रिक-मार्ग में यद्यपि काली की उपासना दीक्षागम्य है, तथापि अनन्य शरणागति के द्वारा उनकी कृपा किसी को भी प्राप्त हो सकती है। मूर्त्ति, मन्त्र अथवा गुरु द्वारा उपदिष्ट किसी भी आधार पर भक्ति भाव से, मन्त्र-जाप, पूजा, होम और पुरश्चरण करने से भगवती काली प्रसन्न हो जाती हैं। उनकी प्रसन्नता से साधक को सहज ही सम्पूर्ण अभीष्टों की प्राप्ति हो जाती है।

          हमारे साधक भाइयों के मन में सदा उग्र साधना करने की लालसा रहती ही है। परन्तु कई बार दूसरे साधकों से साधना के उग्र अनुभव सुनकर वे डर जाते हैं और इसी कारण  साधना करने का विचार ही मन से त्याग देते हैं। एक बात यहाँ कहना चाहूँगा कि हम सिर्फ दूसरों से साधना लें, परन्तु अनुभव स्वयं करें, क्यूँकि हर साधक का अनुभव एक जैसा नहीं होता है। और डरते रहेंगे तो साधना कैसे होगी? यह तो वही बात हुई ना कि मैं तैरना तो चाहता हूँ, पर समुन्दर में जाऊँगा नहीं, क्योंकि मुझे पानी से डर लगता है। किनारे पर रहकर तो चार युग भी बीत जाए तो भी हम तैर न सकेंगे। अतः सागर में  कूदने की हिम्मत जुटाएं और कूद जाएं, तैरना स्वयं आ जाएगा।

          प्रस्तुत साधना साधक के जीवन से उग्र साधनाओं का भय समाप्त कर उसे निडर बनाती है। उग्र साधनाओं में साधक निर्भय होकर साधना कर पाता  है। साथ ही इस साधना के प्रभाव से साधक के ज्ञात-अज्ञात शत्रुओं का भी नाश होता है।अतः देर कैसी? माँ काली की इस साधना को सम्पन्न कर निर्भय हो जाएं, ताकि माँ को गर्व हो आपको अपनी सन्तान कहने में।

साधना  विधि :-----------

          यह साधना आप काली जयन्ती को सम्पन्न करें। यदि आपके लिए यह सम्भव न हो तो किसी भी माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी को सम्पन्न करें। समय रात्रि के १० बजे के बाद का हो। आसन तथा वस्त्र आपके लाल हो या काले। आपका मुख उत्तर की ओर हो। यदि  आपके आसन वस्त्र लाल है तो माला मूँगे की हो या रुद्राक्ष की, अगर काले हैं तो काले हकीक की माला से जाप होंगे। अपने सामने माँ भगवती काली का कोई भी चित्र या यन्त्र स्थापित  करे।

          अब गुरु पूजन कर चार माला गुरुमन्त्र की जाप करे तथा सद्गुरुदेवजी से महाकाली साधना सम्पन्न करने हेतु गुरु-आज्ञा लें और उनसे सफलता की प्रार्थना करे।

          फिर गणेश पूजन तथा भैरव पूजन सम्पन्न करे। क्रमशः एक माला गणपति मन्त्र का और उसके बाद एक माला कालभैरव मन्त्र की जाप करे।

           अब माँ भगवती महाकाली सामान्य का पूजन करे, तिल के तेल का दीपक लगाएं, जो कि मिट्टी के दीपक में हो। भोग में कोई भी फल या मिठाई अर्पण करें, जो साधक को स्वयं ग्रहण करना होगी। हाथ में जल लेकर संकल्प ले कि मैं अमुक नाम का साधक गोत्र अमुक आज से अपने आन्तरिक एवं बाह्य सभी प्रकार के भय की समाप्ति के लिये भयनाशक महाकाली साधना के २१००० मन्त्र जाप का अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हूँ। माँ भगवती महाकाली एवं सद्गुरुदेव श्रीनिखिलेश्वरानन्दजी मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे सफलता प्रदान करे तथा मेरे जीवन में व्याप्त समस्त प्रकार के भय का समापन कर मुझे अभयता का वरदान दे।

          इसके बाद २१ माला निम्न मन्त्र की जाप करें -----

मन्त्र :-----------

॥ ॐ क्रीं क्रीं महाकाली भयनिवारिणी सर्वशक्तिदात्री क्रीं क्रीं नमः ॥

OM KREENG KREENG MAHAAKAALI BHAYNIVAARINI SARVSHAKTIDAATRI KREENG KREENG NAMAH.

          उसके बाद घी में पञ्च मेवा मिलाकर १०८ आहुति दें। अन्त में एक अनार फोड़कर उसका रस हवन कुण्ड में निचोड़ दें तथा अनार भी उसी में डाल दें।

          इस तरह यह एक दिवसीय साधना सम्पन्न होती है।  आप स्वयं इसके प्रभाव को अनुभव करने लगेंगे। साधक चाहे तो बार-बार इस साधना को कर सकता है, जिससे इसका प्रभाव बना रहे। माला का विसर्जन न करे। यह अन्य साधना में प्रयोग की जा सकती है।

          आपकी साधना सफल हो और आपको माँ भगवती काली की कृपा प्राप्त हो! मैं सद्गुरुदेव भगवानजी आप सबके मंगल कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।

शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

सुदर्शन चक्र रक्षा साधना

सुदर्शन चक्र रक्षा साधना




                रक्षा-बन्धन (राखी) पर्व निकट ही है। यह २६ अगस्त २०१८ को आ रहा है। आप सभी को राखी पर्व की अग्रिम रूप से बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ!

                प्राचीन मुख्य १०८ विज्ञान में कई ऐसे विज्ञान हैजिसके बारे में सामान्यजन को पता ही नहीं है। ऐसा ही एक विज्ञान हैजो कि प्रचलन में रहा थावह था युद्ध विज्ञान। इस विज्ञान के अन्तर्गत व्यक्ति को अपनी शक्ति और सामर्थ्य बढ़ा कर किस प्रकार से आत्मरक्षण तथा पर-जन-रक्षण कर सकेइसकी शिक्षा दी जाती थी। साथ ही साथ शस्त्रों की तालीम भी दी जाती थीजो कि सहायक रूप में शक्ति संचार का कार्य करते हैं। इस विज्ञान के अन्तर्गत यह भी बताया जाता था कि व्यक्ति किस प्रकार से भूमि तथा वायु में निहित शक्ति को संचारित कर के युद्ध कर सकता है।

               इस विज्ञान का ही बौद्ध काल में विस्तारण हुआजिसमें कई प्रकार के नवीन अन्वेषण कर मार्शलआर्ट आदि विविध ज्ञान कई देशों में अमल में आया। इससे यह जाना जा सकता है कि उस समय जीव तथा भौतिक विज्ञान का विशेषतम ज्ञान हमारे ऋषियों के पास था। जब इसी विज्ञान को तन्त्र पक्ष से जोड़ा गया तो कई तन्त्र पद्धतियाँ अमल में आईजिनका उद्देश्य युद्ध के दौरान विजयश्री के लिए किया जा सके। सैन्य स्तम्भनसैन्य मारणराज्य मोहिनीराजा वशीकरण जैसे प्रयोगों को अमल में लाया गया। साथ ही साथ सबसे अत्यधिक महत्वपूर्णजिन साधनाओं का प्रचार हुआवह थी अस्त्र साधनाएँ।

               हमारे शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि विविध अस्त्रों का प्रयोग युद्ध में बराबर होता थाअग्निपावकावरुणनागअघोरब्रह्मा आदि विभिन्न अस्त्रों के बारे में विवरण मिलता है। इन सभी अस्त्रों को साधनाओं के माध्यम से आज भी प्राप्त किया जा सकता है। देवी-देवताओं को सिद्ध कर उनसे अस्त्र प्राप्त करने के विवरण हमारे ग्रन्थों में मिलते है। इसी प्रकार विष्णु भगवान का अस्त्र सुदर्शन चक्र है। इन अस्त्रों को प्राप्त करने की साधना अत्यधिक कठोर तथा श्रमसाध्य है तथा इसमें कई साल का समय साधक को लग सकता है। लेकिन इन अस्त्रों से सम्बन्धित कई विविध लघु प्रयोग भी हैजिससे देवी देवता प्रसन्न होकर अपने अस्त्रों को साधक के पास भेज कर उनका रक्षण करने की आज्ञा देते हैं। लेकिन यह दुष्कर प्रयोग बहुत ही मुश्किल से प्राप्त होते हैंयदा कदा मन्त्रों का विवरण भी मिल जाएलेकिन सम्बन्धित प्रक्रियाएँ मिलना मुश्किल ही है।

                 सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु का प्रमुख शस्त्र हैइस चक्र से माध्यम से भगवान ने बहुत से दुष्टों का विनाश किया है। इस चक्र की खास बात यह है कि यह चलाने के बाद अपने लक्ष्य पर पहुंचकर वापिस आ जाता है। यह चक्र कभी भी नष्ट नहीं होता है। इस शस्त्र में अपार ऊर्जा है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। 

                इस दिव्य चक्र की उत्पत्ति को लेकर कई कथाएँ सामने आती हैंकुछ लोगों का मानना है कि ब्रह्माविष्णुमहेशबृहस्पति ने अपनी ऊर्जा एकत्रित कर के इसकी उत्पत्ति की है। यह भी माना जाता है कि यह चक्र भगवान विष्णु ने भगवान शिव की आराधना कर के प्राप्त किया है। लोग यह भी कहते हैं कि महाभारत काल में अग्निदेव ने श्री कृष्ण को यह चक्र दिया था जिससे अनेकों असुरों का संहार हुआ था।

             सुदर्शन चक्र की सनातन हिन्दू धर्म में बहुत मान्यता हैजैसे वक़्तसूर्य और ज़िन्दगी कभी रुकती नहीं हैंवैसे ही इसका भी कोई अन्त नहीं कर सकता। यह परमसत्य का प्रतीक है। शिव पुराण के अनुसार साक्षात आदि शक्ति सुदर्शन चक्र में वास करती हैं। 

             सद्गुरुदेव ने अपने कई संन्यासी शिष्यों को इन प्रक्रियाओं का ज्ञान दिया है। यह हमारा सौभाग्य है कि हमारे वरिष्ठ भाई-बहिनों के पास इस प्रकार की साधनाएँ सुरक्षित हैं और वे इस गूढ़ ज्ञान से सम्पन्न है। सद्गुरुदेव की कृपा से एक प्रयोग जो कि सुदर्शन चक्र से सम्बन्धित हैवह में आप सब के मध्य रखना चाहूँगा।

साधना विधान :-----------

           चूँकि यह साधना साधक की सुरक्षा से सम्बन्धित है। अतः आप इसे रक्षा-बन्धन (राखी) पर्व से आरम्भ करें। यदि यह सम्भव न हो तो इस साधना को किसी भी शुभ दिन से शुरू किया जा सकता है।

          रात्रिकाल में ११ बजे के बाद साधक स्नान कर के सफ़ेद वस्त्रों को धारण कर सफ़ेद आसन पर बैठे और सामान्य गुरुपूजन करके गुरुमन्त्र की चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से सुदर्शन चक्र साधना सम्पन्न करने हेतु मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लेकर उनसे साधना की सफलता के लिए निवेदन करें।

          इसके बाद भगवान गणपतिजी का स्मरण कर किसी भी गणपति मन्त्र का एक माला जाप करें और उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता के लिए प्रार्थना करें।

          इस साधना में साधक को कुल ११,००० मन्त्र जाप करना है। साधक अपनी सामर्थ्य के अनुसार दिनों का चयन कर अपना मन्त्र जाप पूरा कर लेंलेकिन मन्त्र जाप की संख्या रोज़ एक समान और नियमित रहे। साधक चाहे तो एक दिन में भी मन्त्र जाप पूरा कर सकता है।

          तत्पश्चात साधक को साधना के पहले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए। दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प लें कि मैं अमुक नाम का साधक गोत्र अमुक आज से सुदर्शन चक्र साधना शुरू कर रहा हूँ। मैं नित्य ७ दिनों तक १५ माला मन्त्र जाप सम्पन्न करूँगा। हेसद्गुरुदेवजी! आपकी कृपा से मेरी यह साधना सफल होजिससे कि मुझे और मेरे परिवार को सम्पूर्ण रूप से सुरक्षा प्राप्त हो सके और जीवन पूरी तरह चिन्तामुक्त हो सके।

          आप चाहे तो ११ माला प्रतिदिन के हिसाब से इस साधना को ११ दिनों में भी सम्पन्न कर सकते हैं। लेकिन संकल्प में फिर आप वैसा ही उच्चारित करें।

           इसके बाद साधक हाथ जोड़कर भगवान सुदर्शन चक्र का निम्नानुसार ध्यान करे -----

  सुदर्शनं महावेगं गोविन्दस्य प्रियायुधम्‚
ज्वलत्पावकसङ्काशं सर्वशत्रुविनाशनम्।
कृष्णप्राप्तिकरं शश्वद्भक्तानां भयभञ्जनम्‚
सङ्ग्रामे जयदं तस्माद्ध्यायेद्देवं सुदर्शनम्॥

          फिर रुद्राक्ष माला से साधक निम्न मन्त्र का जाप करें -----

मन्त्र :-----------

।। ॐ सुदर्शन चक्राय शीघ्र आगच्छ मम् सर्वत्र रक्षय-रक्षय स्वाहा ।।

OM SUDARSHAN CHAKRAAY SHEEGHRA AAGACHCHH MAM SARVATRA RAKSHAY-RAKSHAY SWAAHA.

          मन्त्र जाप के पश्चात एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समस्त जाप समर्पित कर दें। 
          इस प्रकार यह साधना आप नित्य ७ अथवा ११ दिनों तक सम्पन्न करें। साधना समाप्ति के बाद साधक माला को धारण किए रखे तथा आगामी दिनों में ग्रहणकाल के समय इस मन्त्र की ११ माला जाप फिर से करे और शहद से अग्नि में १००८ आहुतियाँ इसी मन्त्र से अर्पित करे।

          यह साधक का सौभाग्य होता है कि उसे साधना काल के दौरान  सुदर्शन चक्र के दर्शन हो जाए। यदि ऐसा होता है तो साधक को चाहिए कि वह विनीत भाव से प्रणाम कर सुदर्शन चक्र से रक्षण के लिए प्रार्थना करे।

          इसके बाद सुदर्शन चक्र साधक के आसपास अप्रत्यक्ष रूप में रहता है तथा सर्व रूप से शत्रु तथा अनेक बाधाओं से व्यक्ति का रक्षण करता ही रहता है। साधक का अहित करने का सामर्थ्य उसके शत्रुओं में रहता ही नहीं है।

          आपकी साधना सफल हो और आपकी मनोकामना पूर्ण हो! मैं सद्गुरुदेव भगवानजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।       

         
इसी कामना के साथ 

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।

रविवार, 5 अगस्त 2018

नागपंचमी के सरल प्रयोग

नागपंचमी के सरल प्रयोग


              नागपंचमी पर्व निकट ही है। इस बार नागपंचमी १५ अगस्त २०१८ को आ रही है। आप सभी को नागपंचमी पर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ।

         यूँ तो प्रत्येक मास की शुक्ल पक्ष वाली पंचमी का अधिष्ठाता नागों को बतलाया गया है, पर श्रावण शुक्ला पंचमी एक विशेष महत्व रखती है। शायद ही कोई हो, जो नाग/सर्प से अपरिचित होगा। लगभग हर जगह देखने को मिल जाते हैं ये सर्प। नाग हमेशा से ही एक रहस्य में लिपटे हुए रहे हैं इनके विषय में फैली अनेक किंवदन्तियों के कारण। जैसे नाग इच्छाधारी होते हैं, मणि धारण करते हैं, मौत का बदला लेते हैं आदि-आदि। पर जो भी हो, सर्प छेड़ने या परेशान करने पर ही काटते हैं। आप अपने रास्ते जाइए, साँप अपने रास्ते चला जाएगा। हाँ, कभी मार्ग भटककर अचानक इनका घर में आ जाना डर का कारण हो सकता है, पर ऐसे में या किसी भी परिस्थिति में इन साँपों को मारना नहीं चाहिए। कोशिश यही करनी चाहिए कि इनको एक सुरक्षित स्थान पर छोड़ दिया जाए।
 
          सर्प विष से विविध प्रकार की महत्वपूर्ण औषधियों का निर्माण किया जाता है, विशेष रूप से होम्योपैथी की दवाइयों में। हमारे हिन्दू धर्मग्रन्थों में भी नागों का वर्णन मिलता है, कहीं भगवान नागेश्वर शिव के गले के आभूषण के रूप में तो कहीं भगवान विष्णु के शेषनाग के रूप में। ऐसी मान्यता है कि शेषनाग ही श्रीरामचंद्र जी के भ्राता लक्ष्मण जी के रूप में अवतरित हुए थे।  द्वापर युग में कालिय नाम के नाग का मर्दन श्रीकृष्ण द्वारा किया गया था और तारा महाविद्या को भी सर्पों के आभूषणों से युक्त बतलाया गया है। यज्ञोपवीत का संस्कार करते समय भी उसमें रुद्रादि देवों के साथ साथ "सर्पानावाहयामि" कहकर सर्पों का आवाहन किया जाता है, ताकि यज्ञोपवीत भली प्रकार द्विज की रक्षा कर सके।

          साँप को दूध पिलाना गलत है। कहीं-कहीं इस दिन कुप्रथा के चलते भूखे रखे गए साँपों को जबरन दूध पिलाकर मारा जाता है, क्योंकि साँप दूध नहीं पीते। यदि पी भी लें तो पाचन न होने से या प्रत्यूर्जता से उनकी मृत्यु हो जाती है। एक भ्रान्ति-सी फैली हुई है कि शास्त्रों में नाग को दूध पिलाने को कहा गया है, जबकि ऐसा नहीं है। यदि कहीं ऐसी प्रथा हो तो उसमें शास्त्रों का दोष नहीं है, ऐसा करने वालों या उनके पूर्वजों द्वारा ही अपने मन से उस प्रथा को जोड़ा गया है, यह समझें। शास्त्रों में तो पंचमी को नागों को दूध से स्नान करवाने को कहा गया है, वह भी जरूरी नहीं कि नाग असली हो, ताँबे या गोबर या मिट्टी से बने नाग का ही स्नान/अभिषेक किया जाना चाहिए। पुराणों के अनुसार किसी भी पंचमी तिथि को, जो नागों को दुग्धस्नान करवाता है, उसके कुल को वासुकि, तक्षक, कालिय, मणिभद्र, ऐरावत, धृतराष्ट्र, कर्कोटक तथा धनञ्जय ये सभी नाग अभयदान देते हैं।

          इस सम्बन्ध में श्रीकृष्ण द्वारा युधिष्ठिर को कही गयी एक कथा है कि एक बार राक्षसों व देवताओं ने मिलकर जब सागर मन्थन किया था तो उच्चैःश्रवा नामक अतिशय श्वेत घोड़ा निकला, जिसे देख नागमाता कद्रू ने अपनी सपत्नी/सौत विनता से कहा कि, “देखो! यह अश्व श्वेतवर्ण का है, परन्तु इसके बाल काले दिखाई पड़ रहे हैं।" तब विनता बोली, “यह अश्व न तो सर्वश्वेत है, न काला है और न ही लाल रंग का।यह सुनकर कद्रू बोली, “अच्छा? तो मेरे साथ शर्त करो कि यदि मैं इस अश्व के बालों को कृष्णवर्ण का दिखा दूँ तो तुम मेरी दासी हो जाओगी और यदि नहीं दिखा सकी तो मैं तुम्हारी दासी हो जाऊँगी।विनता ने शर्त स्वीकार कर ली और फिर वो दोनों क्रोध करती हुई अपने-अपने स्थानों को चली गयीं। कद्रू ने अपने पुत्रों को सारा वृत्तान्त कह सुनाया और कहा, “पुत्रों! तुम अश्व के बालों के समान सूक्ष्म होकर उच्चैःश्रवा के शरीर से लिपट जाओ, जिससे यह कृष्ण वर्ण का दिखने लगेगा और मैं शर्त जीतकर विनता को दासी बना सकूँगी।

               यह सुन नाग बोले, “माँ! यह छल तो हम लोग नहीं करेंगे, चाहे तुम्हारी जीत हो या हार। छल से जीतना बहुत बड़ा अधर्म है।पुत्रों के ऐसे वचन सुनकर कद्रू ने क्रुद्ध होकर कहा, “तुमलोग मेरी आज्ञा नहीं मानते हो, इसलिए मैं तुम्हें शाप देती हूँ कि तुम सब, पाण्डवों के वंश में उत्पन्न राजा जनमेजय के सर्पयज्ञ में अग्नि में जल जाओगे।नागगण, नागमाता का यह शाप सुन बहुत घबड़ाये और वासुकि को साथ लेकर ब्रह्माजी को सारी बात कह सुनाई। ब्रह्मा जी ने कहा, “वासुके! चिन्ता न करो। यायावर वंश का बहुत बड़ा तपस्वी जरत्कारू नामक ब्राह्मण होगा, जिसके साथ तुम अपनी जरत्कारू नाम की बहिन का विवाह कर देना और वह जो भी कहे, उसका वचन स्वीकार कर लेना। उनका पुत्र आस्तीक उस यज्ञ को रोक कर तुम लोगों की रक्षा करेगा।यह सुन वासुकि आदि नाग प्रसन्न होकर उन्हें प्रणाम कर अपने लोक को चले गए।

                   कालान्तर में  जब  जनमेजय  के नागयज्ञ  में  करोड़ों  नाग भस्म   गए‚ सर्पराज  वासुकि  के  भाँजे  तथा  मनसा  देवी  के  पुत्र  आस्तीक मुनि ने नागों की सहायता की थी और  नागयज्ञ  रुकवाया  थाजिस  दिन  नागयज्ञ  रोका  गया‚  उस  दिन  पंचमी तिथि ही  थी। इसलिए  पंचमी तिथि नागों  को  अत्यन्त प्रिय है। यह तिथि नागों को आनन्दित कर देने वाली हैशास्त्रों में इसेनागानन्दकरी” तिथि कहा गया है। अतः उस दाह की व्यथा को दूर करने के लिए ही गाय के दुग्ध द्वारा नाग प्रतिमा को स्नान कराने की मान्यता है जिससे व्यक्ति को सर्प का भय नहीं रहता,  इसीलिए यह दंष्ट्रोद्धार पंचमी भी कहलाती है।
        
         धर्म ग्रन्थों के अनुसार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी” का पर्व मनाया जाता है। कतिपय स्थानों यथा राजस्थानबंगाल में श्रावण कृष्ण (बदी) पंचमी को  नाग देवताओं की पूजा की जाती है। इस पर्व पर प्रमुख नाग मन्दिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और भक्त नागदेवता के दर्शन व पूजन करते हैं। सिर्फ मन्दिरों में ही नहीं बल्कि घर-घर में इस दिन नाग देवता की पूजा करने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि जो भी इस दिन श्रद्धा व भक्ति से नागदेवता का पूजन करता है, उसे व उसके परिवार को कभी भी सर्प भय नहीं होता। 
          
         शुक्ल एवं कृष्ण दोनों ही पक्षों की पंचमी तिथि क स्वामी  सर्पदेव हैं।  नागपंचमी नागों/सर्पों के अस्तित्व की रक्षा का प्रतीक जात है। इसलिए  नागपंचमी  के दिन  भूमि नहीं खोदनी चाहिए और खेत नहीं जोतना चाहिए। सँपेरों के पास बन्दी साँपों की पूजा करके उन साँपों को जंगल में छुड़वा देना चाहिए। इस  बार  यह  १५ अगस्त  २०१८  को आ रही है।  नागपंचमी   सर  पर आगे इसी लेख में दो  सरल  साधना  प्रयोग  दिए जा  रहे   हैंइन  प्रयोगों  को  कोई भी व्यक्ति स्त्री हो या पुरुष‚ सम्पन्न कर सकता है।

                १. भय बाधा नाशक और रक्षा प्राप्ति प्रयोग

                  आमतौर पर नागपंचमी के पर्व को महिलाओं का ही पर्व माना जाता है, जो कि बिल्कुल गलत है। ना  वास्तव में कुण्डलिनी शक्ति के स्वरूप हैं। यह विशेष पर्व कुण्डलिनी शक्ति की उपासना का पर्व है। इस पर्व पर छोटा-मोटा कुण्डलिनी जागरण प्रयोग कर व्यक्ति किसी भी प्रकार की भय बाधा से मुक्ति पा सकता है।

                  इसका विधान भी अत्यन्त सरल है -----

                  नागपंचमी के दिन प्रातः जल्दी उठकर सूर्योदय के साथ सबसे पहले शिव पूजा सम्पन्न करनी चाहिए। शिव पूजा में शिवजी जी का ध्यान कर शिवलिंग पर दूध मिश्रित जल चढ़ायें और एक माला “ॐ नमः शिवाय  मन्त्र का जाप अवश्य करें। नाग पूजा में साधक अपने स्थान पर भी पूजा सम्पन्न कर सकता है और किसी देवालय में भी।

                  किसी धातु का बना छोटा-सा नाग का स्वरूप ले लें या फिर एक सफेद कागज पर नाग देवता का चित्र बना लें। इसे अपने पूजा स्थान में सामने सिन्दूर से रँगे चावलों पर स्थापित करें और एक पात्र में दूध नैवेद्य स्वरूप रखें। सर्वप्रथम अपने सद्गुरुदेव जी का ध्यान कर, सर्प भय निवृति हेतु प्रार्थना करें। तत्पश्चात नागदेवता का ध्यान करें कि -

                 हे नागदेव! मेरे समस्त भय, मेरी समस्त पीड़ाओं का नाश करें, मेरे शरीर में अहंकार रूपी विष को दूर करें, मेरे शरीर में व्याप्त क्रोध रूपी विष से मेरी रक्षा करें!

                इसके बाद नागदेव के चित्र पर सिन्दूर का लेप करें तथा इसी सिन्दूर से अपने स्वयं को तिलक लगायें। इस के बाद अग्र लिखित मन्त्र का १०८ बार पाठ करते हुये नाग देवता तथा कुण्डलिनी शक्ति का ध्यान करें।

मन्त्र :-----------

जरत्कारूर्जगद्गौरी मनसा सिद्धयोगिनी।                               वैष्णवी नागभगिनी शैवी नागेश्वरी तथा ।।
जरत्कारूप्रिया स्तीकमाता विषहरेति च।                
महाज्ञानयुता चैव सा देवी विश्वपूजिता।।
द्वादशैतानि नमानि पूजाकाले तु यः पठेत्।                                तस्य नागभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।

                थोड़ी देर शान्त होकर बैठ जायें तथा “ॐ नमः शिवाय का जाप करते रहें। इससे भय का नाश होता है और बड़ी से बड़ी बाधा से लड़ने की शक्ति प्राप्त होती है।

                पूजन के बाद नागदेव के सम्मुख रखे दूध को प्रसाद स्वरूप स्वयं ग्रहण करें। यदि यह दूध किसी अस्वस्थ व्यक्ति को पिलाया जाये, तो उसे दिन-प्रतिदिन स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होगा। यदि कोई किसी पुराने रोग से पीड़ित हो तो यह प्रयोग दिन तक करें, लेकिन पूजन से पहले अस्वस्थ व्यक्ति के नाम से संकल्प अवश्य लें। इस पूजा का प्रभाव इतना अनुकूल रहता है कि विशेष कार्य पर जाते समय नागदेव का ध्यान कर, यदि आप प्रबल से प्रबल शत्रु के पास भी चले जाते हैं, तो वह शत्रु आप से सद्व्यवहार ही करेगा, हानि देने की बात तो ही दूर रही।

     २. सन्तान प्राप्ति का नाग शान्ति प्रयोग

                जो स्त्रियाँ नागपंचमी के दिन नागदेव का विधि-विधान सहित पूजन करती हैं, उनकी सन्तान प्राप्ति की कामना अवश्य पूर्ण होती है। स्त्रियों को अपनी सन्तान रक्षा हेतु भी नाग शान्ति प्रयोग करना चाहिये। नागपंचमी के दिन सांयकाल शिव का ध्यान करते हुए नाग देव का पूजन करना चाहिए। इसमें पूजन तो ऊपर दी गई विधि के अनुसार ही करना है, किन्तु अन्तर केवल इतना ही है, कि सन्तान प्राप्ति तथा रक्षा हेतु आगे दिये मन्त्र का १०८ बार जाप करें ------

मन्त्र :----------

  अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शंखपालं धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सन्तान प्राप्यते सन्तान रक्षा तथा।
सर्वबाधा नास्ति सर्वत्र सिद्धि र्भवेत्।।

               यह प्रयोग नागपंचमी से लेकर सात दिन तक सम्पन्न करें। इस प्रयोग को करने से भयबाधा व सन्तान की कामना पूर्ति अवश्य होती है।

           आपकी साधना सफल हो और आपकी मनोकामना पूर्ण हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ। 

                    
इसी कामना के साथ!

नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।