सोमवार, 28 अगस्त 2017

पितृ शान्ति साधना

पितृ शान्ति साधना


      हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक का समय श्राद्ध पक्ष कहलाता है। इस वर्ष श्राद्ध पक्ष का प्रारम्भ ६ सितम्बर २०१७ (पूर्णिमामंगलवार) से हो रहा हैजिसका समापन २० सितम्बर (अमावस्याबुधवार) को होगा। हिन्दू धर्म के अनुसार  इस दौरान पितरों की आत्मा की शान्ति के लिए तर्पणश्राद्धपिण्डदान आदि किया जाता है।

           
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिन लोगों की कुण्डली में कालसर्प दोष अथवा पितृदोष होवे अगर श्राद्ध पक्ष में इस दोष के निवारण के लिए उपाय‚ पूजन व साधना करें तो शुभ फलों की प्राप्ति होती है तथा कालसर्प दोष अथवा  पितृदोष  के दुष्प्रभाव में कमी आती है।

            विश्व के लगभग सभी धर्मों में यह माना गया है कि मृत्यु के पश्चात् व्यक्ति की देह का तो नाश हो जाता हैलेकिन उनकी आत्मा कभी भी नहीं मरती है। पवित्र गीता के अनुसार जिस प्रकार स्नान के पश्चात् हम नवीन वस्त्र धारण करते हैंउसी प्रकार यह आत्मा भी मृत्यु के बाद एक देह को छोड़कर नवीन देह धारण करती है।


            हमारे पित्तरों को भी सामान्य मनुष्यों की तरह सुखदुखमोहममताभूखप्यास आदि का अनुभव होता है। यदि पितृ योनि में गये व्यक्ति के लिये उसके परिवार के लोग श्राद्ध कर्म तथा श्रद्धा का भाव नहीं रखते हैं तो वह पित्तर अपने प्रियजनों से नाराज हो जाते हैं। सामान्यतः इन पित्तरों के पास आलौकिक शक्तियाँ होती है तथा यह अपने परिजनों एवं वंशजों की सफलता व सुख-समृद्धि के लिये चिन्तित रहते हैंजब इनके प्रति श्रद्धा तथा धार्मिक कर्म नहीं किये जाते हैं तो यह निर्बलता का अनुभव करते हैं तथा चाहकर भी अपने परिवार की सहायता नहीं कर पाते हैं तथा यदि यह नाराज हो गये तो इनके परिजनों को कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।


            पितृदोष होने पर व्यक्ति को जीवन में तमाम तरह की परेशानियाँ उठानी पड़ती हैजैसे घर में सदस्यों का बीमार रहनामानसिक परेशानीसन्तान का ना होनाकन्या का अधिक होना या पुत्र का ना होनापारिवारिक सदस्यों में वैचारिक मतभेद होनाजीविकोपार्जन में अस्थिरता या पर्याप्त आमदनी होने पर भी धन का ना रूकनाप्रत्येक कार्य में अचानक रूकावटें आनासिर पर कर्ज़ का भार होनासफलता के करीब पहुँचकर भी असफल हो जानाप्रयास करने पर भी मनवांछित फल का ना मिलनाआकस्मिक दुर्घटना की आशंका तथा वृद्धावस्था में बहुत दुख प्राप्त होना आदि।


          बहुत से लोगों की कुण्डली में कालसर्प योग भी देखा जाता है। वस्तुतः कालसर्प योग भी पितृ दोष के कारण ही होता हैजिसकी वजह से मनुष्य को जीवन में तमाम मुसीबतों एवं अस्थिरता का सामना करना पड़ता है।


            पितृ दोष से सम्बन्धित ज्योतिषीय विवेचन पूर्व में प्रस्तुत किया जा चुका है। अब प्रस्तुत है पितृ दोष निवारणार्थ सरल साधना विधि ----

पितृ शान्ति साधना

             यह साधना किसी भी पूर्णिमा अथवा अमावस्या को सम्पन्न करे या शनिवार को भी की जा सकती है।

             समय शाम का होगा, सूर्यास्त के समय करे।

             दिशा पूर्व हो, पीले वस्त्र धारण करे, आसन पीला हो। सामने बाजोट पर पीला कपड़ा बिछाए और उस पर गुरु चित्र स्थापित कर सामान्य पूजन करेंइसके बाद गुरुमन्त्र का कम से कम चार माला जाप करें और उनसे पितृ शान्ति साधना सम्पन्न करने की आज्ञा लें। फिर सद्गुरुदेवजी से साधना की निर्बाध पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

             इसके बाद वहीं सामने एक शक्कर की ढेरी बनाएं, एक सफ़ेद तिल की ढेरी बनाएं और एक कटोरी में थोड़ा घी भी रखें। एक नारियल का गोला भी रखें

             इसके बाद साधक को साधना के पहिले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए। प्रतिदिन संकल्प लेने की आवश्यकता नहीं है।

             संकल्प लेने के बाद सबसे पहिले गायत्री मन्त्र का तीन माला (३२४ बार) जाप करें –––––

मन्त्र :-----

      ।। ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।।

OM BHOORBHUVAH SWAH TATSAVITURVARENNYAM BHARGO DEVASYA DHEEMAHI DHIYO YO NAH PRACHODADAAT.

             इसके बाद सवा घण्टे तक बिना माला के निम्न मन्त्र का जाप करें --

                 ।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।।

             OM NAMO BHAGWATE VAASUDEVAAY.

             अन्त में पितृ स्तोत्र के ग्यारह पाठ सम्पन्न करें --–––

पुराणोक्त पितृ स्तोत्र :----------

अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।१।।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान्नमस्यामि कामदान्।।२।।
मन्वादिनां च नेतारः सूर्याचन्दमसोस्तथा।
तान्नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्यूदधावपि।।३।।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृतांजलिः।।४।।
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येऽहं कृतांजलिः।।५।।
प्रजापतेः कश्यपाय सोमाय वरूणाय च।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृतांजलिः।।६।।
नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।७।।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।८।।
अग्निरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्।
अग्निषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः।।९।।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणः।।१०।।
तेभ्योऽखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः।
नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुजः।।११।।

             मन्त्र जाप के बाद सारे जाप एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर पितरों को समर्पित कर दे। अब नारियल के गोले को ऊपर से थोड़ा-सा काटकर उसमें बाजोट पर स्थापित तिल,शक्कर और घी भर दे तथा गोले को फिर से बन्द कर दे। ऊपर नारियल के गोले का जो टुकड़ा काटा था, उसी को  लगाकर पुनः बन्द करे और आस पास गीला आटा लगा दे, ताकि गोला खुले नहीं। इस गोले को जाकर किसी पीपल वृक्ष के नीचे गाड़ दे और बिना पीछे मुड़े घर आ जाए। इस साधना से सभी पितृ तृप्त होते हैं और साधक को आशीर्वाद देते हैं।

              यह साधना एक दिवसीय है, लेकिन आप चाहे तो पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष में , , या ११ दिन तक सम्पन्न कर सकते हैं। अधिक दिन तक करने की स्थिति में बाजोट पर स्थापित शक्कर, तिल, घी, नारियल गोला को सुरक्षित रखने की व्यवस्था पहले से ही कर ले, क्योंकि चूहा आदि जन्तु क्षति पहुँचा सकते हैं। मन्त्र जाप के पश्चात वाली सारी प्रक्रिया अन्तिम दिन कर ले।

             समस्त पितृ आप व आपके परिवार पर प्रसन्न होकर शुभ आशीर्वाद प्रदान करे।  मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

               इसी कामना के साथ


ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।

शनिवार, 26 अगस्त 2017

ज्योतिषीय योग पितृदोष और निवारण के सरल उपाय

ज्योतिषीय योग पितृदोष और निवारण के सरल उपाय



          हिन्दू धर्म में ज्योतिष को वेदों का छठा अंग माना गया है और किसी व्यक्ति की जन्म-कुण्डली देखकर आसानी से इस बात का पता लगाया जा सकता है कि वह व्यक्ति पितृ दोष से पीड़ित है या नहीं। क्योंकि यदि व्यक्ति के पितर असन्तुष्ट होते हैं, तो वे अपने वंशजों की जन्म-कुण्डली में पितृ दोष से सम्बन्धित ग्रह-स्थितियों का सृजन करते हैं।

          भारतीय ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार जन्म-पत्री में यदि सूर्य-शनि या सूर्य-राहु का दृष्टि या युति सम्बन्ध हो और यह सम्बन्ध जन्म-कुण्डली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम भावों में से किसी एक भाव में हो तो इस प्रकार की जन्म-कुण्डली वाले जातक को पितृ दोष होता है। साथ ही कुण्डली के जिस भाव में यह योग होता है, उससे सम्बन्धित अशुभ फल ही प्राथमिकता के साथ घटित होते हैं।

          उदाहरण के लिए यदि सूर्य-राहु अथवा सूर्य-शनि का अशुभ योग प्रथम भाव में हो तो वह व्यक्ति अशान्त प्रकृति का होता है और उसे गुप्त चिन्ता, दाम्पत्य एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियाँ होती हैं, क्योंकि प्रथम भाव को ज्योतिष में लग्न कहते हैं और यह शरीर का प्रतिनिधित्व करता है।

          दूसरे भाव से धन, परिवार आदि के बारे में पता चलता है। इस भाव में यह योग बने तो धन व परिवार से सम्बन्धित परेशानियाँ जैसे कि पारिवारिक कलह, वैमनस्य व आर्थिक उलझनें होती हैं।

          चतुर्थ भाव से माता, वाहन, सम्पत्ति आदि के बारे में पता लगता है। इस भाव में यह योग हो तो भूमि, मकान, माता-पिता एवं गृह-सुख में कमी या कष्ट होते हैं।

          पंचम भाव में यह योग हो तो उच्च विद्या में विघ्न व सन्तान सुख में कमी होने के संकेत होते हैं।
        
          सप्तम भाव में यह योग हो तो यह योग वैवाहिक सुख व साझेदारी के व्यवसाय में कमी या परेशानी का कारण बनता है। 
     
          नवम भाव या नवम भाव का स्वामी यदि किसी भी तरह से राहु या केतु से ग्रसित है तो यह निश्चित रूप से पितृदोष होता है और भाग्योन्नति में बाधाएँ उत्पन्न करता है।

          पिता के स्थान दशम भाव का स्वामी ६, ८ या १२ वें भाव में चला जाए एवं गुरु पापी ग्रह प्रभावित या राशि में हो, साथ ही लग्न तथा पंचम भाव का स्वामी पाप ग्रहों से युति करे तो ऐसी कुण्डली पितृशाप दोष युक्त कहलाती है। ऐसी कुण्डली युक्त जातक को सर्विस या कार्य, सरकार व व्यवसाय सम्बन्धी परेशानियाँ होती हैं।

          प्रत्येक भावानुसार फल का विचार होता है। सूर्य यदि नीच में होकर राहु या शनि के साथ पड़ा हो तो पितृदोष ज्यादा होता है।

          किसी कुण्डली में लग्नेश ग्रह यदि कोण (६, ८ या १२ वें भाव) में स्थित हो तथा राहु लग्न भाव में हो तब भी पितृदोष होता है।

          पितृयोग कारक ग्रह पर यदि त्रिक (६, , १२) भावेश एवं भावों के स्वामी की दृष्टि अथवा युति का सम्बन्ध भी हो जाए तो अचानक वाहनादि के कारण दुर्घटना का भय, प्रेतबाधा, ज्वर, नेत्ररोग, तरक्की में रुकावट या बनते कार्यों में विघ्न, अपयश, धनहानि आदि अनिष्ट फल होते हैं। ऐसी स्थिति में रविवार की संक्रान्ति को लाल वस्तुओं का दान करने तथा पितरों का तर्पण करने से पितृ आदि दोषों की शान्ति होती है।

          चन्द्र-राहु, चन्द्र-केतु, चन्द्र-बुध, चन्द्र-शनि आदि योग भी पितृ दोष की भाँति मातृ दोष कहलाते हैं। इनमें चन्द्र-राहु एवं सूर्य-राहु योगों को ग्रहण योग तथा बुध-राहु को जड़त्व योग कहते हैं।

         इन योगों के प्रभावस्वरूप भी भावेश की स्थिति अनुसार ही अशुभ फल प्रकट होते हैं। सामान्यतः चन्द्र-राहु आदि योगों के प्रभाव से माता अथवा पत्नी को कष्ट, मानसिक तनाव, आर्थिक परेशानियाँ, गुप्त रोग, भाई-बन्धुओं से विरोध, अपने भी परायों जैसे व्यवहार रखें आदि फल घटित होते हैं।

          यदि आठवें या बारहवें भाव में गुरु-राहु का योग और पंचम भाव में सूर्य-शनि या मंगल आदि कू्र ग्रहों की स्थिति हो तो पितृदोष के कारण सन्तान कष्ट या सन्तान सुख में कमी रहती है।

          अष्टमेश पंचम भाव में तथा दशमेष अष्टम भाव में हो तो भी पितृदोष के कारण धन हानि अथवा सन्तान के कारण कष्ट होते हैं।

          यदि पंचमेश सन्तान कारक ग्रह राहु के साथ त्रिक भावों में हो तथा पंचम में शनि आदि कू्र ग्रह हो तो भी सन्तान सुख में कमी होती है।

          इसी प्रकार राहु अथवा शनि के साथ मिलकर अनेक अनिष्टकारी योग बनते हैं, जो पितृदोष की भाँति ही अशुभ फल प्रदान करते हैं।

          बृहत्पाराशर होरा शास्त्र में कुण्डली में इस प्रकार के शापित योग कहे गए हैं। इनमें पितृदोष श्राप, भ्रातृ श्राप,मातृ श्राप, प्रेम श्राप आदि योग प्रमुख हैं।

          अशुभ पितृदोषों योगों के प्रभाव स्वरूप जातक के स्वास्थ्य की हानि, सुख में कमी, आर्थिक संकट, आय में बरकत न होना, सन्तान कष्ट अथवा वंशवृद्धि में बाधा, विवाह में विलम्ब, गुप्त रोग, लाभ व उन्नति में बाधाएँ, तनाव आदि अशुभ फल प्रकट होते हैं।

          यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में सूर्य-राहू, सूर्य-शनि आदि योगों के कारण पितृदोष हो तो उसके लिए नारायण बलि, नाग पूजा, अपने दिवंगत पितरों का श्राद्ध, पितृ तर्पण, ब्रह्म भोज, दानादि कर्म करवाने चाहिए। पितृदोष निवारण के लिए अपने घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने दिवंगत पूर्वजों के फोटो लगाकर उन पर हार चढ़ाकर सम्मानित करना चाहिए तथा उनकी मृत्यु तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र एवं दक्षिणा सहित दान, पितृ तर्पण एवं श्राद्ध कर्म करने चाहिए।

हाथ में पितृदोष के लक्षण :––––––––––

          हाथ में पितृदोष को आसानी से नहीं खोजा जा सकता, बहुत से लक्षण देखने के बाद ही किसी आप किसी निष्कर्ष पर पहुँच  सकते हैं। फिर भी कुछ साधारण लक्षण हम आपको बताते हैं -----

१. सूर्य रेखा का टूटा हुआ होना

          हाथ में सूर्य पर्वत का बहुत कमज़ोर होना या सूर्य पर्वत पर रेखाओं का जाल होना पितृदोष को दर्शाता है। सूर्य की स्थिति हाथ में बहुत महत्वपूर्ण है। अकेले सूर्य के कमज़ोर होने से व्यक्ति के जीवन में बहुत बड़ा स्थान रिक्त रह जाता है। प्रसिद्धि, तरक्की, जीवन में भोग विलास के लिए जो पैसा चाहिए, जो सम्मान चाहिए, वह बिना सूर्य के नहीं मिल पाता।

२. हाथ में जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा, हृदय रेखा का मिलन

          अगर आपके हाथ में जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा, हृदय रेखा एक जगह पर मिल रही है तो यह भी पितृदोष की निशानी है। इस स्थिति में व्यक्ति आत्महत्या के लिए प्रेरित होता है। उसके विचार निराशावादी हो जाते हैं और जीवन में प्रगति बाधित होती है।

पितृदोष निवारण के सरल उपाय :----------



          वैसे तो कुण्डली में किस प्रकार का पितृदोष है, उस पितृदोष के प्रकार के हिसाब से ही पितृदोष शान्ति करवाना अच्छा होता है। लेकिन कुछ ऐसे सरल सामान्य उपाय भी हैं, जिनको करने से पितृदोष शान्त हो जाता है, ये उपाय निम्नलिखित हैं -----

          १. ब्रह्म पुराण (२२०/१४३ ) में पितृगायत्री मन्त्र दिया गया है, इस मन्त्र की प्रतिदिन १ माला या अधिक जाप करने से पितृदोष में अवश्य लाभ होता है।

मन्त्र :-----

।। ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः।।

          २. मार्कण्डेय पुराण (९४/३ -१३ ) में वर्णित इस चमत्कारी पितृ स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भी पितृ प्रसन्न होकर स्तुतिकर्ता की मनोकामना की पूर्ति करते हैं -----

पुराणोक्त पितृ स्तोत्र :----------

अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।१।।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान्नमस्यामि कामदान्।।२।।
मन्वादिनां च नेतारः सूर्याचन्दमसोस्तथा।
तान्नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्यूदधावपि।।३।।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृतांजलिः।।४।।
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येऽहं कृतांजलिः।।५।।
प्रजापतेः कश्यपाय सोमाय वरूणाय च।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृतांजलिः।।६।।
नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।७।।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।८।।
अग्निरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्।
अग्निषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः।।९।।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणः।।१०।।
तेभ्योऽखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः।
नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुजः।।११।।

विशेष :---

                   मार्कण्डेयपुराण में महात्मा रूचि द्वारा की गयी पितरों की यह स्तुति पितृस्तोत्र कहलाता है। पितरों की प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है। इस स्तोत्र की बड़ी महिमा है। श्राद्ध आदि के अवसरों पर ब्राह्मणों के भोजन के समय भी इसका पाठ करने-कराने का विधान है।

           ३. भगवान भोलेनाथ की तस्वीर या प्रतिमा के समक्ष बैठ कर या घर में ही भगवान भोलेनाथ का ध्यान कर निम्न  मन्त्र  की एक माला नित्य जाप करने से समस्त प्रकार के पितृदोष, संकट, बाधा आदि शान्त होकर शुभत्व की प्राप्ति होती है। मन्त्र जाप प्रातः या सायंकाल कभी भी कर सकते हैं।

मन्त्र :-----

।। ॐ तत्पुरुषाय विद्महे  महादेवाय च धीमहि तन्नो  रुद्रः प्रचोदयात् ।।

          ४. अमावस्या को पितरों के निमित्त पवित्रता पूर्वक बनाया गया भोजन तथा चावल बूरा, घी एवं एक रोटी गाय को खिलाने से पितृदोष शान्त होता है।

           ५. अपने माता-पिता, बुजुर्गों का सम्मान, भाई-बहिनों, सभी स्त्री कुल का आदर/सम्मान करने और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहने से पितर हमेशा प्रसन्न रहते हैं।

           ६. पितृदोष जनित सन्तान कष्ट को दूर करने के लिए हरिवंश पुराण का श्रवण करें या स्वयं नियमित रूप से पाठ करें।

           ७. प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती या सुन्दर काण्ड का पाठ करने से भी इस दोष में कमी आती है।

           ८. सूर्य पिता है, अतः ताँबे के लोटे में जल भर कर, उसमें लाल फूल, लाल चन्दन का चूरा, रोली आदि डाल कर सूर्य देव को अर्घ्य देकर ११ बार ॐ घृणि सूर्याय नमः मन्त्र का जाप करने से पितरों की प्रसन्नता एवं उनकी ऊर्ध्व गति होती है।

          ९. अमावस्या वाले दिन अवश्य अपने पूर्वजों के नाम दुग्ध, चीनी, सफ़ेद कपडा, दक्षिणा आदि किसी मन्दिर में अथवा किसी योग्य ब्राह्मण को दान करना चाहिए।

          १०. पितृपक्ष में पीपल की परिक्रमा  अवश्य करें। अगर प्रतिदिन यदि कोई व्यक्ति पीपल के पेड़ पर मीठा जल, मिष्ठान्न एवं जनेऊ अर्पित करते हुए ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मन्त्र का जाप करते हुए कम से कम सात या १०८ परिक्रमा करें। तत्पश्चात् अपने अपराधों एवं त्रुटियों के लिये क्षमा माँगे तो पितृ दोष से उत्पन्न समस्त समस्याओं का निवारण हो जाता है।

           ११. हर अमावस को अपने पितरों का ध्यान करते हुए पीपल पर कच्ची लस्सी, गंगाजल, थोड़े काले तिल, चीनी, चावल, जल, पुष्पादि चढ़ाते हुए "ॐ सर्व पितृ देवताभ्यो नमः" मन्त्र तथा पितृ सूक्त का पाठ करना शुभ होगा।

          मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।

बुधवार, 16 अगस्त 2017

गजमुख गणपति साधना

 गजमुख गणपति साधना


         गणेश चतुर्थी पर्व निकट ही है। इस  वर्ष गणेशोत्सव २५ अगस्त  २०१७ से शुरु हो रहा है। आप सभी को गणेश चतुर्थी पर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

         हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार गणेश चतुर्थी मनाया जाता है। गणेश पुराण में वर्णित कथाओं के अनुसार इसी दिन समस्त विघ्न बाधाओं को दूर करने वाले, कृपा के सागर तथा भगवान शंकर और माता पार्वती के पुत्र श्री गणेश जी का आविर्भाव हुआ था।

          मंगलमूर्ति और प्रथम पूज्य भगवान गणेश को संकटहरण भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस चतुर्थी के दिन व्रत रखने और भगवान गणेश की पूजा करने से जहाँ सभी कष्ट दूर हो जाते हैं, वहीं समस्त इच्छाओं और कामनाओं की पूर्ति भी होती है। पौराणिक मान्यता है कि दस दिवसीय इस उत्सव के दौरान भगवान शिव और पार्वती के पुत्र गणेश पृथ्वी पर रहते हैं। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है। उन्हें बुद्धि, समृद्धि और वैभव का देवता मान कर उनकी पूजा की जाती है।


          गणेशोत्सव की शुरुआत हिन्दू कैलेंडर के अनुसार भादों माह में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से होती है। इस दिन को गणेश चतुर्थी कहा जाता है। दस दिन तक गणपति पूजा के बाद आती है अनंत चतुर्दशी, जिस दिन यह उत्सव समाप्त होता है। पूरे भारत में गणेशोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है।

                आप सभी के घर में विघ्नहर्ता भगवान गणपतिजी पधारेंगे और आप सभी को उनकी सेवा का अवसर प्राप्त होगा। साथ ही मोदक अर्थात लड्डू खाने का भी मौका मिलेगा, किन्तु मोदक का स्वाद लेने के साथ ही आपको साधना का अमृतपान भी करना चाहिए। क्योंकि ऐसा सुअवसर साल में एक बार ही आता है। अतः इस अवसर को हाथ से ना जाने दें।

                 गजमुख गणपति साधना प्रयोग उन साधकों को करना चाहिए, जो हर छोटी-छोटी बात से चिन्तित हो जाते हैं। वास्तव में यह प्रयोग समस्त चिन्ताओं से मुक्त कर देने वाला प्रयोग है। साथ ही अथक परिश्रम के बाद भी यदि आप प्रगति नहीं कर पा रहे हैं तो यह प्रयोग आपको आपके परिश्रम का पूरा लाभ दिलवाएगा। जिन्हें मान-सम्मान की प्राप्ति न होती हो तथा जिनके द्वारा किए गए कार्यों का कोई कुछ मूल्य ना समझता हो तो यह साधना आपके लिए ही है। इस साधना से भगवान गणपतिजी की कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में व्याप्त विघ्न और बाधाएँ समाप्त हो जाते हैं। अतः उपरोक्त सभी लाभों को प्राप्त करने के लिए गजमुख गणपति साधना अवश्य करें।

साधना विधि :—————

          साधना गणेश चतुर्थी से आरम्भ करें और यह साधना आपको गणेश विसर्जन के दिन तक करना है। समय का कोई बन्धन नहीं है, बस नित्य एक ही समय अवश्य रखें, उसमें परिवर्तन न करे। जहाँ तक सम्भव हो, आसन-वस्त्र पीले ही रखें अन्यथा कोई भी आसन-वस्त्र प्रयोग में लिए जा सकते हैं।

          घर में जहाँ पर आप गणपति जी की स्थापना करेंगे, वहीं पर आपको यह साधना करनी है। भगवान गणपतिजी की प्रतिमा के साथ ही पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का चित्र अथवा विग्रह भी स्थापित कर दें। फिर शुद्ध घी का दीपक और धूप-अगरबत्ती प्रज्ज्वलित कर दें।

          अब सबसे पहले सद्गुरुदेवजी का सामान्य पूजन सम्पन्न करें और गुरुमन्त्र का चार माला जाप करें। इसके बाद सद्गुरुदेवजी से गजमुख गणपति साधना सम्पन्न करने की अनुमति लें और उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          इसके बाद साधक को साधना के पहिले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए।

                  साधक दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प लें कि मैं अमुक नाम का साधक गोत्र अमुक आज से गजमुख गणपति साधना आरम्भ कर रहा हूँ। मैं नित्य ११ दिनों तक २१ माला मन्त्र जाप सम्पन्न करूँगा। भगवान गजमुख गणपतिजी मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे मन्त्र की सिद्धि प्रदान करे तथा मेरे जीवन में जो भी बाधा रूकावट या नकारात्मक ऊर्जा व्याप्त हो उसे समाप्त कर दीजिएजिससे कि मेरे जीवन में सम्पूर्ण रूप से प्रगति हो सके और जीवन पूरी तरह चिन्तामुक्त हो सके।

          इसके बाद आप भगवान गणपतिजी का पंचोपचार पूजन करें। शुद्ध घी का दीपक जलाएं और यथाशक्ति नैवेद्य अर्पित करें।

          अब एक नारियल लें और उस पूरे नारियल पर हल्दी का लेप लगा दें। यह लेप आपको हल्दी को घी में घोलकर बनाना है। लेप लगा देने के बाद एक ही प्रकार के पाँच सिक्के लें। फिर नारियल और पाँचों सिक्कों को एक पीले कपड़े में बाँधकर पोटली बना लें। यह पोटली गणपति जी के सामने रख दें।

          अब आप हर रोज़ रुद्राक्ष माला, स्फटिक माला अथवा मूँगा माला से निम्न मन्त्र की २१ माला जाप करें  ———

मन्त्र :—————

     ।। ॐ गं श्रीं ग्लौं श्रीं गजमुख गणपतये नमः।।

 OM GAM SHREEM GLOUM SHREEM GAJMUKH GANNPATAYE NAMAH.

                    मन्त्र जाप के बाद हर रोज़ हवन के लिए किसी पात्र में अग्नि जला लें और १०८ मखानों को घी में मिलाकर १०८ आहुति प्रदान करें। यह संक्षिप्त हवन इस साधना का आवश्यक अंग है।

           अन्तिम दिन भगवान गणपति जी को अपने परिवार की रीति अनुसार विदा कर दीजिए। पीले कपड़े की पोटली को किसी मन्दिर में रख आएं अथवा गणपति विसर्जन के समय कोई निर्धन या भिखारी मिल जाए तो उसे दे सकते हैं।

          यह प्रयोग अत्यन्त सरल है, परन्तु इसका प्रभाव अचूक है। अतः प्रत्येक साधक को इसे करना ही चाहिए।

          भगवान लम्बोदर आपको तथा आपके सम्पूर्ण परिवार को अपना आशीर्वाद प्रदान करे और आपके जीवन से सभी विघ्नों का नाश हो। मैं सद्गुरुदेव भगवानजी से ऐसी ही प्रार्थना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ


ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।