रविवार, 5 अगस्त 2018

नागपंचमी के सरल प्रयोग

नागपंचमी के सरल प्रयोग


              नागपंचमी पर्व निकट ही है। इस बार नागपंचमी १५ अगस्त २०१८ को आ रही है। आप सभी को नागपंचमी पर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ।

         यूँ तो प्रत्येक मास की शुक्ल पक्ष वाली पंचमी का अधिष्ठाता नागों को बतलाया गया है, पर श्रावण शुक्ला पंचमी एक विशेष महत्व रखती है। शायद ही कोई हो, जो नाग/सर्प से अपरिचित होगा। लगभग हर जगह देखने को मिल जाते हैं ये सर्प। नाग हमेशा से ही एक रहस्य में लिपटे हुए रहे हैं इनके विषय में फैली अनेक किंवदन्तियों के कारण। जैसे नाग इच्छाधारी होते हैं, मणि धारण करते हैं, मौत का बदला लेते हैं आदि-आदि। पर जो भी हो, सर्प छेड़ने या परेशान करने पर ही काटते हैं। आप अपने रास्ते जाइए, साँप अपने रास्ते चला जाएगा। हाँ, कभी मार्ग भटककर अचानक इनका घर में आ जाना डर का कारण हो सकता है, पर ऐसे में या किसी भी परिस्थिति में इन साँपों को मारना नहीं चाहिए। कोशिश यही करनी चाहिए कि इनको एक सुरक्षित स्थान पर छोड़ दिया जाए।
 
          सर्प विष से विविध प्रकार की महत्वपूर्ण औषधियों का निर्माण किया जाता है, विशेष रूप से होम्योपैथी की दवाइयों में। हमारे हिन्दू धर्मग्रन्थों में भी नागों का वर्णन मिलता है, कहीं भगवान नागेश्वर शिव के गले के आभूषण के रूप में तो कहीं भगवान विष्णु के शेषनाग के रूप में। ऐसी मान्यता है कि शेषनाग ही श्रीरामचंद्र जी के भ्राता लक्ष्मण जी के रूप में अवतरित हुए थे।  द्वापर युग में कालिय नाम के नाग का मर्दन श्रीकृष्ण द्वारा किया गया था और तारा महाविद्या को भी सर्पों के आभूषणों से युक्त बतलाया गया है। यज्ञोपवीत का संस्कार करते समय भी उसमें रुद्रादि देवों के साथ साथ "सर्पानावाहयामि" कहकर सर्पों का आवाहन किया जाता है, ताकि यज्ञोपवीत भली प्रकार द्विज की रक्षा कर सके।

          साँप को दूध पिलाना गलत है। कहीं-कहीं इस दिन कुप्रथा के चलते भूखे रखे गए साँपों को जबरन दूध पिलाकर मारा जाता है, क्योंकि साँप दूध नहीं पीते। यदि पी भी लें तो पाचन न होने से या प्रत्यूर्जता से उनकी मृत्यु हो जाती है। एक भ्रान्ति-सी फैली हुई है कि शास्त्रों में नाग को दूध पिलाने को कहा गया है, जबकि ऐसा नहीं है। यदि कहीं ऐसी प्रथा हो तो उसमें शास्त्रों का दोष नहीं है, ऐसा करने वालों या उनके पूर्वजों द्वारा ही अपने मन से उस प्रथा को जोड़ा गया है, यह समझें। शास्त्रों में तो पंचमी को नागों को दूध से स्नान करवाने को कहा गया है, वह भी जरूरी नहीं कि नाग असली हो, ताँबे या गोबर या मिट्टी से बने नाग का ही स्नान/अभिषेक किया जाना चाहिए। पुराणों के अनुसार किसी भी पंचमी तिथि को, जो नागों को दुग्धस्नान करवाता है, उसके कुल को वासुकि, तक्षक, कालिय, मणिभद्र, ऐरावत, धृतराष्ट्र, कर्कोटक तथा धनञ्जय ये सभी नाग अभयदान देते हैं।

          इस सम्बन्ध में श्रीकृष्ण द्वारा युधिष्ठिर को कही गयी एक कथा है कि एक बार राक्षसों व देवताओं ने मिलकर जब सागर मन्थन किया था तो उच्चैःश्रवा नामक अतिशय श्वेत घोड़ा निकला, जिसे देख नागमाता कद्रू ने अपनी सपत्नी/सौत विनता से कहा कि, “देखो! यह अश्व श्वेतवर्ण का है, परन्तु इसके बाल काले दिखाई पड़ रहे हैं।" तब विनता बोली, “यह अश्व न तो सर्वश्वेत है, न काला है और न ही लाल रंग का।यह सुनकर कद्रू बोली, “अच्छा? तो मेरे साथ शर्त करो कि यदि मैं इस अश्व के बालों को कृष्णवर्ण का दिखा दूँ तो तुम मेरी दासी हो जाओगी और यदि नहीं दिखा सकी तो मैं तुम्हारी दासी हो जाऊँगी।विनता ने शर्त स्वीकार कर ली और फिर वो दोनों क्रोध करती हुई अपने-अपने स्थानों को चली गयीं। कद्रू ने अपने पुत्रों को सारा वृत्तान्त कह सुनाया और कहा, “पुत्रों! तुम अश्व के बालों के समान सूक्ष्म होकर उच्चैःश्रवा के शरीर से लिपट जाओ, जिससे यह कृष्ण वर्ण का दिखने लगेगा और मैं शर्त जीतकर विनता को दासी बना सकूँगी।

               यह सुन नाग बोले, “माँ! यह छल तो हम लोग नहीं करेंगे, चाहे तुम्हारी जीत हो या हार। छल से जीतना बहुत बड़ा अधर्म है।पुत्रों के ऐसे वचन सुनकर कद्रू ने क्रुद्ध होकर कहा, “तुमलोग मेरी आज्ञा नहीं मानते हो, इसलिए मैं तुम्हें शाप देती हूँ कि तुम सब, पाण्डवों के वंश में उत्पन्न राजा जनमेजय के सर्पयज्ञ में अग्नि में जल जाओगे।नागगण, नागमाता का यह शाप सुन बहुत घबड़ाये और वासुकि को साथ लेकर ब्रह्माजी को सारी बात कह सुनाई। ब्रह्मा जी ने कहा, “वासुके! चिन्ता न करो। यायावर वंश का बहुत बड़ा तपस्वी जरत्कारू नामक ब्राह्मण होगा, जिसके साथ तुम अपनी जरत्कारू नाम की बहिन का विवाह कर देना और वह जो भी कहे, उसका वचन स्वीकार कर लेना। उनका पुत्र आस्तीक उस यज्ञ को रोक कर तुम लोगों की रक्षा करेगा।यह सुन वासुकि आदि नाग प्रसन्न होकर उन्हें प्रणाम कर अपने लोक को चले गए।

                   कालान्तर में  जब  जनमेजय  के नागयज्ञ  में  करोड़ों  नाग भस्म   गए‚ सर्पराज  वासुकि  के  भाँजे  तथा  मनसा  देवी  के  पुत्र  आस्तीक मुनि ने नागों की सहायता की थी और  नागयज्ञ  रुकवाया  थाजिस  दिन  नागयज्ञ  रोका  गया‚  उस  दिन  पंचमी तिथि ही  थी। इसलिए  पंचमी तिथि नागों  को  अत्यन्त प्रिय है। यह तिथि नागों को आनन्दित कर देने वाली हैशास्त्रों में इसेनागानन्दकरी” तिथि कहा गया है। अतः उस दाह की व्यथा को दूर करने के लिए ही गाय के दुग्ध द्वारा नाग प्रतिमा को स्नान कराने की मान्यता है जिससे व्यक्ति को सर्प का भय नहीं रहता,  इसीलिए यह दंष्ट्रोद्धार पंचमी भी कहलाती है।
        
         धर्म ग्रन्थों के अनुसार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी” का पर्व मनाया जाता है। कतिपय स्थानों यथा राजस्थानबंगाल में श्रावण कृष्ण (बदी) पंचमी को  नाग देवताओं की पूजा की जाती है। इस पर्व पर प्रमुख नाग मन्दिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और भक्त नागदेवता के दर्शन व पूजन करते हैं। सिर्फ मन्दिरों में ही नहीं बल्कि घर-घर में इस दिन नाग देवता की पूजा करने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि जो भी इस दिन श्रद्धा व भक्ति से नागदेवता का पूजन करता है, उसे व उसके परिवार को कभी भी सर्प भय नहीं होता। 
          
         शुक्ल एवं कृष्ण दोनों ही पक्षों की पंचमी तिथि क स्वामी  सर्पदेव हैं।  नागपंचमी नागों/सर्पों के अस्तित्व की रक्षा का प्रतीक जात है। इसलिए  नागपंचमी  के दिन  भूमि नहीं खोदनी चाहिए और खेत नहीं जोतना चाहिए। सँपेरों के पास बन्दी साँपों की पूजा करके उन साँपों को जंगल में छुड़वा देना चाहिए। इस  बार  यह  १५ अगस्त  २०१८  को आ रही है।  नागपंचमी   सर  पर आगे इसी लेख में दो  सरल  साधना  प्रयोग  दिए जा  रहे   हैंइन  प्रयोगों  को  कोई भी व्यक्ति स्त्री हो या पुरुष‚ सम्पन्न कर सकता है।

                १. भय बाधा नाशक और रक्षा प्राप्ति प्रयोग

                  आमतौर पर नागपंचमी के पर्व को महिलाओं का ही पर्व माना जाता है, जो कि बिल्कुल गलत है। ना  वास्तव में कुण्डलिनी शक्ति के स्वरूप हैं। यह विशेष पर्व कुण्डलिनी शक्ति की उपासना का पर्व है। इस पर्व पर छोटा-मोटा कुण्डलिनी जागरण प्रयोग कर व्यक्ति किसी भी प्रकार की भय बाधा से मुक्ति पा सकता है।

                  इसका विधान भी अत्यन्त सरल है -----

                  नागपंचमी के दिन प्रातः जल्दी उठकर सूर्योदय के साथ सबसे पहले शिव पूजा सम्पन्न करनी चाहिए। शिव पूजा में शिवजी जी का ध्यान कर शिवलिंग पर दूध मिश्रित जल चढ़ायें और एक माला “ॐ नमः शिवाय  मन्त्र का जाप अवश्य करें। नाग पूजा में साधक अपने स्थान पर भी पूजा सम्पन्न कर सकता है और किसी देवालय में भी।

                  किसी धातु का बना छोटा-सा नाग का स्वरूप ले लें या फिर एक सफेद कागज पर नाग देवता का चित्र बना लें। इसे अपने पूजा स्थान में सामने सिन्दूर से रँगे चावलों पर स्थापित करें और एक पात्र में दूध नैवेद्य स्वरूप रखें। सर्वप्रथम अपने सद्गुरुदेव जी का ध्यान कर, सर्प भय निवृति हेतु प्रार्थना करें। तत्पश्चात नागदेवता का ध्यान करें कि -

                 हे नागदेव! मेरे समस्त भय, मेरी समस्त पीड़ाओं का नाश करें, मेरे शरीर में अहंकार रूपी विष को दूर करें, मेरे शरीर में व्याप्त क्रोध रूपी विष से मेरी रक्षा करें!

                इसके बाद नागदेव के चित्र पर सिन्दूर का लेप करें तथा इसी सिन्दूर से अपने स्वयं को तिलक लगायें। इस के बाद अग्र लिखित मन्त्र का १०८ बार पाठ करते हुये नाग देवता तथा कुण्डलिनी शक्ति का ध्यान करें।

मन्त्र :-----------

जरत्कारूर्जगद्गौरी मनसा सिद्धयोगिनी।                               वैष्णवी नागभगिनी शैवी नागेश्वरी तथा ।।
जरत्कारूप्रिया स्तीकमाता विषहरेति च।                
महाज्ञानयुता चैव सा देवी विश्वपूजिता।।
द्वादशैतानि नमानि पूजाकाले तु यः पठेत्।                                तस्य नागभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।

                थोड़ी देर शान्त होकर बैठ जायें तथा “ॐ नमः शिवाय का जाप करते रहें। इससे भय का नाश होता है और बड़ी से बड़ी बाधा से लड़ने की शक्ति प्राप्त होती है।

                पूजन के बाद नागदेव के सम्मुख रखे दूध को प्रसाद स्वरूप स्वयं ग्रहण करें। यदि यह दूध किसी अस्वस्थ व्यक्ति को पिलाया जाये, तो उसे दिन-प्रतिदिन स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होगा। यदि कोई किसी पुराने रोग से पीड़ित हो तो यह प्रयोग दिन तक करें, लेकिन पूजन से पहले अस्वस्थ व्यक्ति के नाम से संकल्प अवश्य लें। इस पूजा का प्रभाव इतना अनुकूल रहता है कि विशेष कार्य पर जाते समय नागदेव का ध्यान कर, यदि आप प्रबल से प्रबल शत्रु के पास भी चले जाते हैं, तो वह शत्रु आप से सद्व्यवहार ही करेगा, हानि देने की बात तो ही दूर रही।

     २. सन्तान प्राप्ति का नाग शान्ति प्रयोग

                जो स्त्रियाँ नागपंचमी के दिन नागदेव का विधि-विधान सहित पूजन करती हैं, उनकी सन्तान प्राप्ति की कामना अवश्य पूर्ण होती है। स्त्रियों को अपनी सन्तान रक्षा हेतु भी नाग शान्ति प्रयोग करना चाहिये। नागपंचमी के दिन सांयकाल शिव का ध्यान करते हुए नाग देव का पूजन करना चाहिए। इसमें पूजन तो ऊपर दी गई विधि के अनुसार ही करना है, किन्तु अन्तर केवल इतना ही है, कि सन्तान प्राप्ति तथा रक्षा हेतु आगे दिये मन्त्र का १०८ बार जाप करें ------

मन्त्र :----------

  अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शंखपालं धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सन्तान प्राप्यते सन्तान रक्षा तथा।
सर्वबाधा नास्ति सर्वत्र सिद्धि र्भवेत्।।

               यह प्रयोग नागपंचमी से लेकर सात दिन तक सम्पन्न करें। इस प्रयोग को करने से भयबाधा व सन्तान की कामना पूर्ति अवश्य होती है।

           आपकी साधना सफल हो और आपकी मनोकामना पूर्ण हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ। 

                    
इसी कामना के साथ!

नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।

कोई टिप्पणी नहीं: