गुरुवार, 27 अप्रैल 2017

बगलामुखी साधना

बगलामुखी साधना



                 माँ भगवती बगलामुखी जयन्ती निकट ही है।  इस बार माँ भगवती बगलामुखी जयन्ती  ३ मई २०१७ को आ रही है। आप सभी को माँ भगवती बगलामुखी जयन्ती  की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ।

           शाक्त सम्प्रदाय के तन्त्र ग्रन्थों में दस महाविद्याओं की उपासना का विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है। ये महाविद्याएँ सिद्ध मानी गयी हैं। इनके मन्त्र स्वतः सिद्ध हैं। इनका जप पुरश्चरण करके साधक सब कुछ प्राप्त कर सकता है। दस महाविद्याओं में अष्टम् महाविद्या बगलामुखी है।

         बगलामुखी महाविद्या दस महाविद्याओं में से एक है। तन्त्र शास्त्र में इन्हें ब्रह्मास्त्र विद्या, षट्कर्माधार विद्या, स्तम्भिनी विद्या, त्रैलोक्य स्तम्भिनी विद्या, मन्त्र संजीवनी विद्या, प्राणी प्रज्ञापहारिका आदि कईं नामों से अभिहित किया गया है। माता बगलामुखी साधक के मनोरथों को पूरा करती हैं। जो व्यक्ति माँ बगलामुखी की पूजा-उपासना करता है, उसका अहित या अनिष्ट चाहने वालों का शमन स्वतः ही हो जाता है। माँ भगवती बगलामुखी की साधना से व्यक्ति स्तम्भन, आकर्षण, वशीकरण, विद्वेषण, मारण, उच्चाटन आदि के साथ अपनी मनचाही कामनाओं की पूर्ति करने में समर्थ होता है।

         दुर्लभ ग्रन्थ मन्त्र महार्णव  में लिखा है कि

ब्रह्मास्त्रं च प्रवक्ष्यामि सदयः प्रत्यय कारणम्।                                                           यस्य स्मरण मात्रेण पवनोऽपि स्थिरायते॥

          बगलामुखी मन्त्र को सिद्ध करने के बाद मात्र स्मरण से ही प्रचण्ड पवन भी स्थिर हो जाता है। भगवती बगलामुखी को पीताम्बराभी कहा गया है। इसलिए इनकी साधना में पीले वस्त्रों, पीले फूलों व पीले रंग का विशेष महत्व है, किन्तु साधक के मन में यह प्रश्न उठता है कि इस सर्वाधिक प्रचण्ड महाविद्या भगवती बगलामुखी का विशेषण पीताम्बरा क्यों? वह इसलिए कि यह पीताम्बर पटधारी भगवान् श्रीमन्नारायण की अमोघ शक्ति एवं उनकी शक्तिमयी सहचरी हैं।

          सांख्यायन तन्त्र के अनुसार बगलामुखी को सिद्घ विद्या कहा गया है। इसी तन्त्र के अनुसार कलौ जागर्ति पीताम्बरा अर्थात् कलियुग के तमाम संकटों के निराकरण में भगवती पीताम्बरा की साधना उत्तम मानी गई है। अतः आधि-व्याधि से त्रस्त मानव माँ पीताम्बरा की साधना कर अत्यन्त विस्मयोत्पादक अलौकिक सिद्घियों को अर्जित कर अपनी समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण कर सकता है।

          तन्त्र में वही स्तम्भन शक्ति बगलामुखी के नाम से जानी जाती है, जिसे ब्रह्मास्त्रके नाम से भी जाना जाता है। ऐहिक या पारलौकिक, देश अथवा समाज में अरिष्टों के दमन और शत्रुओं के शमन में बगलामुखी के मन्त्र के समान कोई मन्त्र फलदायी नहीं है। चिरकाल से साधक इन्हीं महादेवी का आश्रय लेते आ रहे हैं। इनके बड़वामुखी, जातवेदमुखी, उल्कामुखी, ज्वालामुखी तथा बृहद्भानुमुखी पाँच मन्त्र भेद हैं। कुण्डिका तन्त्र  में बगलामुखी के जप के विधान पर विशेष प्रकाश डाला गया है। मुण्डमाला तन्त्रमें तो यहाँ तक कहा गया है कि इनकी सिद्धि के लिए नक्षत्रादि विचार और कालशोधन की भी आवश्यकता नहीं है। बगला महाविद्या ऊर्ध्वाम्नाय के अनुसार ही उपास्य हैै। इस आम्नाय में शक्ति केवल पूज्या मानी जाती है, भोग्या नहीं।

          भगवती बगलामुखी महारुद्र की शक्ति हैं। इस शक्ति की आराधना करने से साधक के शत्रुओं का शमन तथा कष्टों का निवारण होता है। यों तो बगलामुखी देवी की उपासना सभी कार्यों में सफलता प्रदान करती है, परन्तु विशेष रूप से युद्ध, विवाद, शास्त्रार्थ, मुकदमे और प्रतियोगिता में विजय प्राप्त करने, अधिकारी या मालिक को अनुकूल करने, अपने ऊपर हो रहे अकारण अत्याचार से बचने और किसी को सबक सिखाने के लिए बगलामुखी देवी का वैदिक अनुष्ठान सर्वश्रेष्ठ, प्रभावी एवं उपयुक्त होता है। असाध्य रोगों से छुटकारा पाने, बन्धनमुक्त होने, संकट से उबरने और नवग्रहों के दोष से मुक्ति के लिए भी इस मन्त्र की साधना की जा सकती है।

          बगलामुखी अत्यन्त तीव्र शत्रुहन्ता, दारिद्र्यहन्ता, समृद्धिप्रदाता एवं साधकों के लिए मातृ स्वरूपा हैं। बगलामुखी साधना शत्रुओं पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की साधना है। साधना की प्रचण्डता और तीव्रता इतनी अधिक है कि साधक जिस किसी को भी शत्रु मानता हो, उस पर उसे विजय प्राप्त होती ही है। यह आवश्यक नहीं कि शत्रु कोई व्यक्ति ही हो, जो भी व्यक्ति अथवा परिस्थिति आपके तनाव का कारण है, वही आपके शत्रु हैं।

          यदि आपके किसी शत्रु ने आप पर तन्त्र प्रयोग करवाया हो तो भी इस साधना से वह बाधा समाप्त हो जाती है। बगलामुखी अपने साधक के शत्रुओं के सभी प्रयासों को निष्फल कर देती हैं। शत्रुनाशिनी श्री बगलामुखी का परिचय भौतिक रूप में शत्रुओं का शमन करने की इच्छा रखने वाली तथा आध्यात्मिक रूप में परमात्मा की संहार शक्ति हैं। पीताम्बरा विद्या के नाम से विख्यात बगलामुखी की साधना प्रायः शत्रु भय से मुक्ति और वाक् सिद्धि के लिए की जाती है।

           बगलामुखी साधना की पूर्णता के लिए तीन महत्वपूर्ण नियम बताए गए हैं, जो कि इस प्रकार हैं ---

१. साधना काल में पीले वस्त्र ही धारण करने चाहिए।
२. ब्रह्मचर्य व्रत का पूर्णता के साथ पालन हो और भूमि शयन करें तथा दिन में एक  समय भोजन करें।
३. पीले रंग की हकीक माला या हल्दी की माला का ही प्रयोग करें।

साधना विधान :----------

          यह साधना बगलामुखी जयन्ती, किसी भी कृष्ण पक्ष की अष्टमी, गुरुवार, रविवार अथवा मंगलवार से शुरू की जा सकती है। इस साधना को रात्रि १० बजे  के बाद ही प्रारम्भ करना चाहिए। साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर पश्चिम या दक्षिण दिशा की तरफ मुँह करके पीले आसन पर बैठ जाए। अपने सामने किसी बाजोट पर बगलामुखी देवी का चित्र एवं यन्त्र और पूज्यपाद सद्गुरुदेव का चित्र या विग्रह स्थापित करें। इसके साथ ही गणपति और भैरव के प्रतीक रूप में दो सुपारी क्रमशः अक्षत एवं काले तिल की ढेरी पर स्थापित कर दें।

          अब सबसे पहले साधक शुद्ध घी का दीपक प्रज्ज्वलित कर धूप-अगरबत्ती भी लगा दे। फिर सामान्य गुरुपूजन सम्पन्न करें तथा गुरुमन्त्र की कम से कम चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से बगलामुखी साधना सम्पन्न करने की अनुमति लें और उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          इसके बाद साधक संक्षिप्त गणपति पूजन सम्पन्न करें और ॐ वक्रतुण्डाय हुम् मन्त्र का एक माला जाप करें। फिर भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          तत्पश्चात साधक सामान्य भैरवपूजन सम्पन्न करें और ॐ हौं जूं सः मृत्युंजय भैरवाय नमः मन्त्र का एक माला जाप करें। फिर भगवान मृत्युंजय भैरवजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

           इसके बाद साधना के पहले दिन साधक को संकल्प अवश्य लेना चाहिए। इसके लिए दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प लें कि मैं अमुक नाम का साधक अमुक गौत्र परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्दजी का शिष्य होकर आज से श्री बगलामुखी साधना का अनुष्ठान प्रारम्भ कर रहा हूँ। मैं नित्य २१ दिनों तक ५१ माला मन्त्र जाप करूँगा। हेमाँ! आप मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे इस मन्त्र की सिद्धि प्रदान करें और इसकी ऊर्जा को आप मेरे भीतर स्थापित कर दें।

          ऐसा कह कर हाथ में लिया हुआ जल जमीन पर छोड़ देना चाहिए। इसके बाद प्रतिदिन संकल्प लेने की आवश्यकता नहीं है।

          तदुपरान्त साधक माँ भगवती बगलामुखी चित्र और यन्त्र का सामान्य पूजन करे। हल्दी, पीले अक्षत से पूजन कर पीले रंग के पुष्प चढ़ाएं और पीले रंग के ही मिष्ठान्न का भोग लगाएं।

          फिर साधक दाहिने हाथ में जल लेकर निम्न विनियोग मन्त्र पढ़ें ---

विनियोग :-----

                   ॐ अस्य श्रीबगलामुखी मन्त्रस्य नारद ऋषिः बृहतीच्छन्दः बगलामुखी देवता ह्लीं बीजं स्वाहा शक्तिः ॐ कीलकं श्रीबगलामुखी वर प्रसाद सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादि न्यास :-----

 ॐ नारद ऋषये नमः शिरसि।           (सिर को स्पर्श करें)
ॐ बृहतीच्छन्दः नमः मुखे।              (मुख को स्पर्श करें)   
ॐ बगलामुखी देवतायै नमः हृदि।             (हृदय को स्पर्श करें)
ॐ ह्लीं बीजाय नमः गुह्ये।             (गुह्य स्थान को स्पर्श करें)
ॐ स्वाहा शक्तये नमः पादयोः।            (पैरों को स्पर्श करें)
ॐ ॐ कीलकाय नमः नाभौ।               (नाभि को स्पर्श करें)
ॐ श्रीबगलामुखी वर प्रसाद सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे। (सभी अंगों को स्पर्श करें)

कर न्यास :-----

ॐ ॐ ह्लीं अँगुष्ठाभ्याम् नमः।           (दोनों तर्जनी उंगलियों से दोनों अँगूठे को स्पर्श करें)
ॐ बगलामुखी तर्जनीभ्याम् नमः।               (दोनों अँगूठों से दोनों तर्जनी उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ सर्वदुष्टानां मध्यमाभ्याम् नमः।           (दोनों अँगूठों से दोनों मध्यमा उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ वाचं मुखं पदं स्तम्भय अनामिकाभ्याम् नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों अनामिका उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ जिह्वां कीलय कनिष्ठिकाभ्याम् नमः।    (दोनों अँगूठों से दोनों कनिष्ठिका उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा करतलकर पृष्ठाभ्याम् नमः। (परस्पर दोनों हाथों को स्पर्श करें)

हृदयादि न्यास :-----

ॐ ॐ ह्लीं हृदयाय नमः।               (हृदय को स्पर्श करें)
ॐ बगलामुखी शिरसे स्वाहा।               (सिर को स्पर्श करें)
ॐ सर्वदुष्टानां शिखायै वषट्।              (शिखा को स्पर्श करें)
ॐ वाचं मुखं पदं स्तम्भय कवचाय हुम्। (भुजाओं को स्पर्श करें)
ॐ जिह्वां कीलय नेत्रत्रयाय वौषट्।           (नेत्रों को स्पर्श करें)
ॐ बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा अस्त्राय फट्। (सिर से घूमाकर तीन बार ताली बजाएं)

व्यापक न्यास :-----

          श्री बगलामुखी देवी के मूल मन्त्र से तीन बार व्यापक न्यास करें ---

ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा।

पीठ शक्तियों का पूजन :-----

          निम्न मन्त्रों का उच्चारण करते  हुए हल्दी से रँगे हुए अक्षत यन्त्र पर अर्पित करते जाएं ---

ॐ जयायै नमः।
ॐ विजयायै नमः।
ॐ अजितायै नमः।
ॐ अपराजितायै नमः।
ॐ स्तम्भिन्यै नमः।
ॐ जृम्भिण्यै नमः।
ॐ मोहिन्यै नमः।
ॐ आकर्षिण्यै नमः।
ॐ मंगलायै नमः।
ॐ ह्लीं सर्वशक्ति कमलासनाय श्री पीताम्बरायाः योग पीठात्मने नमः।

                 इसके बाद साधक हाथ जोड़कर निम्न सन्दर्भ का उच्चारण करते हुए माँ भगवती बगलामुखी का ध्यान करें ---

ध्यान :-----

ॐ मध्ये सुधाब्धि मणिमण्डप रत्नवेदी सिंहासनो परिगतां परिपीतवर्णाम्।
पीताम्बराभरण माल्याविभूषितांगीं देवीं नमामि धृतमुद्गर वैरिजिह्वाम्।।
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं वामेन शत्रुं परिपीडयन्तीम्।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि।।

                 इस प्रकार ध्यान करने के बाद साधक बगला गायत्री मन्त्र का इक्कीस बार जाप करें ---

।। ॐ ह्लीं बगलामुखि विद्महे दुष्टस्तम्भिनि धीमहि तन्नो शक्तिः प्रचोदयात् ।।

                फिर साधक महारुद्र मन्त्र का इक्कीस बार जाप करें ---

।। ॐ नमो भगवते महारुद्राय हुं फट् स्वाहा ।।

               इसके बाद साधक भगवती बगलामुखी के मूलमन्त्र का ५१ माला जाप करें ---

मूल मन्त्र :----------

।। ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा ।।

OM HLEEM BAGLAAMUKHI SARVA DUSHTAANAAM VAACHAM MUKHAM PADAM STAMBHAY JIHVAAM KEELAY BUDDHIM VINAASHAY HLEEM OM SWAAHA.

               मन्त्र जाप के उपरान्त साधक निम्न सन्दर्भ का उच्चारण करने के बाद एक आचमनी जल छोड़कर सम्पूर्ण जाप भगवती बगलामुखी को समर्पित कर दें।

ॐ गुह्यातिगुह्य गोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपं।
     सिद्धिर्भवतु मे देवि! त्वत्प्रसादान्महेश्वरि।।

               इस प्रकार यह साधना क्रम साधक नित्य २१ दिनों तक निरन्तर सम्पन्न करें।

               यह साधना कोई भी साधक सम्पन्न कर सकता है, परन्तु कईं बार साधना के बीच में भयानक दृश्य भी दिखाई दे जाते हैं या भयंकर अनुभव होने लगते हैं, इसलिए प्रत्येक साधक को चाहिए कि वह साधना से पूर्व और साधना के अन्त में तान्त्रोक्त गुरु कवच अथवा श्री निखिलेश्वरानन्द कवच का ५-५ बार पाठ अवश्य कर लिया करें।

       बाईसवें दिन बगलामुखी यन्त्र एवं माला को जल में विसर्जित कर दें। चित्र को पूजा-स्थल में ही स्थापित रहने दें।

               वास्तव में ही इस कलिकाल में भगवती बगलामुखी की साधना श्रेष्ठ एवं उच्चकोटि की है, जिसके माध्यम से हम सभी प्रकार के शत्रुओं पर पूर्णता के साथ विजय प्राप्त कर सकते हैं और किसी व्यक्ति के लिए यह साधना सम्पन्न कर उसके जीवन की समस्या मिटा सकते हैं।

      आपकी साधना सफल हो और माँ भगवती बगलामुखी का आपको आशीष प्राप्त हो। मैं सद्गुरुदेव भगवानजी से ऐसी ही प्रार्थना करता हूँ।

         इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।


शुक्रवार, 21 अप्रैल 2017

मातंगी साधना

मातंगी साधना


          अक्षय तृतीया  पर्व  निकट  ही है। बहुत कम लोगों को यह ज्ञात हैं कि वैशाख शुक्ल तृतीया अथवा अक्षय तृतीया के दिन मातंगी जयन्तीहोती है और वैशाख पूर्णिमा को मातंगी सिद्धि दिवसहोता है। आप  सभी को अक्षय तृतीया  पर्व  की  ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ।

          वर्तमान युग में मानव जीवन के प्रारम्भिक पड़ाव से अन्तिम पड़ाव तक भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रयत्नशील रहता है। व्यक्ति जब तक भौतिक जीवन का पूर्णता से निर्वाह नहीं कर लेता है, तब तक उसके मन में आसक्ति का भाव रहता ही है और जब इन इच्छाओं की पूर्ति होगी, तभी वह आध्यात्मिकता के क्षेत्र में उन्नति कर सकता है। मातंगी महाविद्या साधना एक ऐसी साधना है, जिससे आप भौतिक जीवन को भोगते हुए आध्यात्म की ऊँचाइयों को छू सकते हैं।

          मातंगी महाविद्या दस महाविद्याओं में नवम् स्थान पर अवस्थित होकर श्रीकुल के अन्तर्गत मानी जाने वाली महाविद्या है। इनकी साधना अत्यन्त सौभाग्यप्रद मानी जाती है, क्यूँकि यह केवल साधना ही नहीं अपितु सही अर्थों में पूरे जीवन को ही आमूलचूल परिवर्तित कर देने की ऐतिहासिक घटना है।

          मातंगी महाविद्या साधना से साधक को पूर्ण गृहस्थ-सुख, शत्रुओं का नाश, भोग-विलास, अपार सम्पदा, वाक्-सिद्धि, कुण्डलिनी जागरण ,अपार सिद्धियाँ, काल-ज्ञान, इष्ट-दर्शन आदि प्राप्त होते ही हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि मातंगी साधना पूर्णता की साधना है । जिसने माँ मातंगी को सिद्ध कर लिया, फिर उसके जीवन में कुछ अन्य सिद्ध करना शेष नहीं रह जाता।

          माँ मातंगी आदि सरस्वती है, जिस पर माँ मातंगी की कृपा होती है, उसे स्वतः ही सम्पूर्ण वेदों, पुराणों, उपनिषदों आदि का ज्ञान हो जाता है, उसकी वाणी में दिव्यता आ जाती है, फिर साधक को मन्त्र एवं साधना याद करने की जरुरत नहीं रहती, उसके मुख से स्वतः ही धाराप्रवाह मन्त्र उच्चारण होने लगता है।

          जब वह बोलता है तो हजारों-लाखों की भीड़ मन्त्र मुग्ध-सी उसके मुख से उच्चारित वाणी को सुनती रहती है। साधक की ख्याति सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में फैल जाती है। कोई भी उससे शास्त्रार्थ में विजयी नहीं हो सकता, वह जहाँ भी जाता है विजय प्राप्त करता ही है।

          मातंगी साधना से वाक्-सिद्धि की प्राप्ति होती है, प्रकृति साधक के सामने हाथ जोड़े खडी रहती है, साधक जो बोलता है वो सत्य होता ही है। माँ मातंगी साधक को वह विवेक प्रदान करती है कि फिर साधक पर कुबुद्धि हावी नहीं होती, उसे दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है और ब्रह्माण्ड के समस्त रहस्य साधक के सामने प्रत्यक्ष होते ही हैं।

          माँ मातंगी को उच्छिष्ट चाण्डालिनी भी कहते हैं, इस रूप में माँ साधक के समस्त शत्रुओं एवं विघ्नों का नाश करती है, फिर साधक के जीवन में ग्रह या अन्य बाधा का कोई असर नहीं होता। जिसे संसार में सब ठुकरा देते हैं, जिसे संसार में कहीं पर भी आसरा नहीं मिलता, उसे माँ उच्छिष्ट चाण्डालिनी अपनाती है और साधक को वह शक्ति प्रदान करती है, जिससे ब्रह्माण्ड की समस्त सम्पदा साधक के सामने तुच्छ-सी नजर आती है।

          महर्षि विश्वमित्र ने यहाँ तक कहा है कि मातंगी साधना में बाकि नौ महाविद्याओं का समावेश स्वतः ही हो गया है माँ मातंगी जी की साधना जो साधक कर लेता है, वह तो गर्व से कह सकता है कि मेरा यह आध्यात्मिक जीवन व्यर्थ नहीं गया।

                     अतः आप भी माँ मातंगी की साधना को करें, जिससे आप जीवन में पूर्ण बन सके।

साधना विधि :----------

          यह साधना मातंगी जयन्ती, मातंगी सिद्धि दिवस अथवा किसी भी सोमवार के दिन से शुरू की जा सकती है। यह साधना रात्रिकालीन है और इसे रात्रि में ९ बजे के बाद शुरु करना चाहिए।

          सर्वप्रथम साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल वस्त्र पहिनकर पश्चिम दिशा की ओर मुख करके लाल आसन पर बैठ जाए। अपने सामने बाजोट पर लाल वस्त्र बिछा ले। इस साधना में माँ मातंगी का चित्र, यन्त्र और लाल मूँगा माला का महत्व बताया गया है, परन्तु सामग्री उपलब्ध ना हो तो किसी ताँबे की प्लेट में स्वास्तिक बनाए और उस पर एक सुपारी स्थापित कर दे और उसे ही यन्त्र मानकर स्थापित कर दे। आपके पास मातंगी का चित्र ना हो तो आप ''माताजी'' का ही मातंगी स्वरुप में पूजन करे, माताजी तो स्वयं ही ''जगदम्बा'' है और माला के विषय में स्फटिक माला, लाल हकीक माला, मूँगा मालारुद्राक्ष माला में से किसी भी माला का उपयोग हो सकता है।

          सबसे पहले साधक शुद्ध घी का दीपक प्रज्ज्वलित कर धूप-अगरबत्ती भी लगा दे। फिर सामान्य गुरुपूजन सम्पन्न करे और गुरुमन्त्र का चार माला जाप कर ले। फिर सद्गुरुदेवजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।

          इसके बाद साधक संक्षिप्त गणेशपूजन सम्पन्न करे और "ॐ वक्रतुण्डाय हूं" मन्त्र की एक माला जाप करे। फिर भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।

          फिर साधक संक्षिप्त भैरवपूजन सम्पन्न करे और  "ॐ हूं भ्रं हूं मतंग भैरवाय नमः" मन्त्र की एक माला जाप करे। फिर भगवान  मतंग भैरवजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।

         इसके बाद साधक को साधना के पहिले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए।  साधक दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प लें कि  मैं अमुक नाम का साधक गोत्र अमुक आज से श्री मातंगी  साधना  का अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हूँ। मैं नित्य २१ दिनों तक ५१ माला मन्त्र जाप करूँगा। माँ ! मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे मन्त्र की सिद्धि प्रदान करे तथा इसकी ऊर्जा को मेरे भीतर स्थापित कर दे।

                   इसके बाद  साधक भगवती मातंगी का सामान्य पूजन करे। कुमकुम, अक्षत, पुष्प आदि से पूजा करके कोई भी मिष्ठान्न भोग में अर्पित करे।

         फिर साधक निम्न विनियोग का उच्चारण कर एक आचमनी जल भूमि पर छोड़ दे ---

विनियोग :-----

       ॐ अस्य मन्त्रस्य दक्षिणामूर्ति ऋषिः विराट् छन्दः मातंगी देवता ह्रीं बीजं हूं शक्तिः क्लीं कीलकं सर्वाभीष्ट सिद्धये जपे विनियोगः।


ऋष्यादिन्यास :-----

ॐ दक्षिणामूर्ति ऋषये नमः शिरसि।      (सिर को स्पर्श करें)
विराट् छन्दसे नमः मुखे।              (मुख को स्पर्श करें)
मातंगी देवतायै नमः हृदि।            (हृदय को स्पर्श करें)
ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये।                (गुह्य स्थान को स्पर्श करें)
हूं शक्तये नमः पादयोः।              (पैरों को स्पर्श करें)
क्लीं कीलकाय नमः नाभौ।            (नाभि को स्पर्श करें)
विनियोगाय नमः सर्वांगे।             (सभी अंगों को स्पर्श करें)

करन्यास :-----

ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः।         (दोनों तर्जनी उंगलियों से दोनों अँगूठे को स्पर्श करें)
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः।          (दोनों अँगूठों से दोनों तर्जनी उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः।         (दोनों अँगूठों से दोनों मध्यमा उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः।        (दोनों अँगूठों से दोनों अनामिका उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।     (दोनों अँगूठों से दोनों कनिष्ठिका उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः। (परस्पर दोनों हाथों को स्पर्श करें)

हृदयादिन्यास :-----

ॐ ह्रां हृदयाय नमः।      (हृदय को स्पर्श करें)
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा।      (सिर को स्पर्श करें)
ॐ ह्रूं शिखायै वषट्।      (शिखा को स्पर्श करें)
ॐ ह्रैं कवचाय हूं।         (भुजाओं को स्पर्श करें)
ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्।      (नेत्रों को स्पर्श करें)
ॐ ह्रः अस्त्राय फट्।       (सिर से घूमाकर तीन बार ताली बजाएं)

ध्यान :-----

       फिर हाथ जोड़कर माँ भगवती मातंगी का ध्यान  करें -----

ॐ श्यामांगी शशिशेखरां त्रिनयनां वेदैः करैर्बिभ्रतीं,                                                        पाशं खेटमथांकुशं दृढमसिं नाशाय भक्तद्विषाम्।                      रत्नालंकरणप्रभोज्ज्वलतनुं भास्वत्किरीटां शुभां,                                                       मातंगी मनसा स्मरामि सदयां सर्वार्थसिद्धिप्रदाम्।।

       इस प्रकार ध्यान करने के बाद साधक निम्न मन्त्र का ५१ माला जाप करे -----

मन्त्र :-----------

।। ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा ।।

OM HREEM KLEEM HOOM MAATANGYEI PHAT SWAAHAA.

      यह साधना दिखने में ही साधारण हो सकती है, परन्तु यह मन्त्र साधना अत्यन्त तीव्र है। मातंगी महाविद्या साधना विश्व की सर्वश्रेष्ठ साधना है, जो साधक के दुर्भाग्य को भी बदलकर उसे भाग्यवान बना देती है। आज तक इस साधना में किसी को असफलता नहीं मिली है। मन्त्र जाप के पश्चात मातंगी कवच का एक पाठ अवश्य ही करे।

मातंगी कवच

श्रीदेव्युवाच

साधु-साधु महादेव! कथयस्व सुरेश्वर!                                                                        मातंगी कवचं दिव्यं सर्वसिद्धिकरं नृणाम्।।१।।

श्री ईश्वर उवाच

श्रृणु देवि! प्रवक्ष्यामि मातंगीकवचं शुभम्।                                                           गोपनीयम् महादेवि! मौनी जापं समाचरेत्।।२।।

विनियोगः-----

             ॐ अस्य श्रीमातंगीकवचस्य श्री दक्षिणामूर्तिः ऋषिः विराट् छन्दो मातंगी देवता चतुर्वर्ग सिद्धये जपे विनियोगः।

मूल कवच

ॐ शिरो मातंगिनी पातु भुवनेशी तु चक्षुषी।                                                                      तोडला कर्ण युगलं त्रिपुरा वदनं मम।।३।।

पातु कण्ठे महामाया हृदि माहेश्वरी तथा।                                                                त्रिपुष्पा पार्श्वयोः पातु गुदे कामेश्वरी मम।।४।।

ऊरुद्वये तथा चण्डी जंघयोश्च हरप्रिया।                                                                महामाया पादयुग्मे सर्वांगेषु कुलेश्वरी।।५।।

अंगं प्रत्यंगकं चैव सदा रक्षतु वैष्णवी।                                                                  ब्रह्मरन्ध्रे सदा रक्षेन्मातंगीनामसंस्थिता।।६।।

रक्षेन्नित्यं ललाटे सा महापिशाचिनीति च।                                                                नेत्रयोः सुमुखी रक्षेद्देवी रक्षतु नासिकाम्।।७।।

महापिशाचिनीं पायान्मुखे रक्षतु सर्वदा                                                                      लज्जा रक्षतु मां दन्ताञ्चोष्ठौ सम्मार्जनीकरा।।८।।

चिबुके कण्ठदेशे च ठकारत्रितयं पुनः।                                                                             स-विसर्गं महादेवि! हृदयं पातु सर्वदा।।९।।

नाभिं रक्षतु मां लोला कालिकावतु लोचने।                                                                    उदरे पातु चामुण्डा लिंगे कात्यायनी तथा।।१०।।

उग्रतारा गुदे पातु पादौ रक्षतु चाम्बिका।                                                                      भुजौ रक्षतु शर्वाणीं हृदयं चण्डभूषणा।।११।।

जिह्वायां मातृका रक्षेत्पूर्वे रक्षतु पुष्टिका।                                                                 विजया दक्षिणे पातु मेधा रक्षतु वारुणे।।१२।।

नैर्ऋत्यां सुदया रक्षेद्वायव्यां पातु लक्ष्मणा।                                                            ऐशान्यां रक्षेन्मां देवी मातंगी शुभकारिणी।।१३।।

रक्षेत्सुरेशी चाग्नेये बगला पातु चोत्तरे।                                                                       ऊर्घ्वं पातु महादेवि देवानां हितकारिणी।।१४।।

पाताले पातु मां नित्यं वशिनी विश्वरूपिणी।                                                                प्रणवं च ततो माया कामबीजं च कूर्चकं।।१५।।

मातंगिनी ङेयुतास्त्रं वह्निजाया वधिर्मनुः।                                                     सार्द्धैकादशवर्णा सा सर्वत्र पातु मां सदा।।१६।।

फलश्रुति

इति ते कथितं देवि! गुह्याद्गुह्यतरं परम्।                                                     त्रैलोक्यमंगलं नाम कवचं देवदुर्लभम्।।१७।।

यः इदं प्रपठेन्नित्यं जायते सम्पदालयम्।                                                     परमैश्वर्यमतुलं प्राप्नुयान् नात्र संशयः।।१८।।

गुरुमभ्यर्च्य विधिवत् कवचं प्रपठेद् यदि।                                                                       ऐश्वर्यं सु-कवित्वं च वाक्सिद्धिं लभते ध्रुवम्।।१९।।

नित्यं तस्यं तु मातंगी महिला मंगलं चरेत्।                                                               ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च ये देवाः सुरसत्तमाः।।२०।।

ब्रह्मराक्षसवेतालाः ग्रहाद्यां भूतजातयः।                                                                            तं दृष्टवा साधकं देवि! लज्जायुक्ता भवन्ति ते।।२१।।

कवचं धारयेद्यस्तु सर्वासिद्धिं लभेदध्रुवम्।                                                           राजानोऽपि च दासत्वं षट्कर्माणि च साधयेत्।।२२।।

सिद्धो भवति सर्वत्र किमन्यैर्बहुभाषितैः।                                                                           इदं कवचमज्ञात्वा मातंगीं यो भजेन्नरः।।२३।।

अल्पायुर्निर्धनो मूर्खो भवत्येव न संशयः।                                                                       गुरौ भक्तिः सदा कार्या कवचे च दृढा मतिः।।२४।।

तस्मै मातंगिनी देवी सर्वसिद्धिं प्रयच्छति।।२५।।

           मन्त्र जाप के पश्चात समस्त जाप एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर माँ भगवती मातंगी को ही समर्पित कर दें।

      साधक को यह साधना क्रम नित्य २१ दिनों तक करना चाहिए।

          २१ वें दिन कम से कम घी की १०८ आहुति अग्नि में अर्पित करे। इस तरह से यह साधना पूर्ण होती है।

           इस तरह यह साधना सम्पन्न होती है। कुछ दिनों में ही आप साधना का प्रभाव स्वयं अनुभव करने लग जाएंगे। तो देर किस बात की, साधना करे तथा जीवन को पूर्णता प्रदान करे।

     आपकी साधना सफल हो और माँ भगवती मातंगी का आपको आशीष प्राप्त हो मैं सद्गुरुदेव भगवानजी से ऐसी ही प्रार्थना करता हूँ

      इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।