रविवार, 21 जनवरी 2018

दरिद्रता नाशक भुवनेश्वरी साधना

दरिद्रता नाशक भुवनेश्वरी साधना
(ग्रहण काल का अचूक प्रयोग)


          अगर मन्त्र साधना उपयुक्त समय अथवा दिवस पर की जाए तो उसका प्रभाव स्वतः ही कई गुना बढ़ जाता है। अतः साधना क्षेत्र में विभिन्न दिवसों का महत्व विस्तार पूर्वक समझाया गया है और इस बात पर विशेष बल दिया गया है कि महोरात्रि (शिवरात्रि), क्रूर रात्रि (होली), मोह रात्रि (जन्माष्टमी) एवं काल रात्रि (दीपावली), कुछ ऐसे विशेष पर्व हैं, जो कि साधना के क्षेत्र में अद्वितीय है, जिनका महत्व हर योगी, यति, साधक भली प्रकार से जानता एवं समझता है।

          परन्तु जहाँ हमारे शास्त्रों ने इन जैसे अनेक पर्वों को सराहा है, प्राथमिकता दी है, वहीं उन्होंने कुछ विशेष पर्वों को अति शुभ एवं साधना और तन्त्र क्षेत्र में सर्वोपरि माना है। ये पर्व हैं सूर्य ग्रहण तथा चन्द्र ग्रहण।

          ग्रहण की महत्ता इसलिए सर्वाधिक है, क्योंकि उस समय कुछ इस प्रकार का गुरुत्वाकर्षण प्रभाव पैदा होता है, जो साधना से प्राप्त होने वाले फल को कईं गुना बढ़ा देता है।

          ग्रहण काल के दौरान किए गए मन्त्र जाप सामान्य रूप से किए गए लाख जपों के बराबर होते हैं। उस दिन दी गई एक आहुति भी हज़ार आहुतियों के समान फल देती है।

          इस बार चन्द्र ग्रहण ३१ जनवरी २०१८ को है और चूँकि ज्योतिष के अनुसार चन्द्र एवं सूर्य मुख्य ग्रह है। अतः इस काल का मानव जीवन के साथ-साथ समस्त संसार पर भी निश्चित प्रभाव पड़ता है।

          चन्द्रमा मन, भावना, कल्पना शक्ति, ऐश्वर्य, संगीत, कला, धन, वैभव, सौन्दर्य, माधुर्य, तीव्र बुद्धि, चरित्र, यश, कीर्ति आदि का ग्रह है। अतः इसके द्वारा जब ग्रहण निर्मित होता है तो उपरोक्त बातों का प्राप्ति के लिए व्यक्ति चाहे तो इस दिवस का लाभ उठाकर उचित साधना सम्पन्न कर सकता है और इच्छित सफलता प्राप्त कर सकता है।

         वैसे तो ग्रहण के अवसर पर सम्पन्न करने के लिए शास्त्रों में अनेक विधान प्राप्त होते हैं, लेकिन जब बात आती है दरिद्रता नाश एवं धन-वैभव प्राप्ति की, तो माँ भगवती भुवनेश्वरी का नाम सबसे पहले आता है। यहाँ दरिद्रता नाशक भुवनेश्वरी साधना विधि प्रस्तुत की जा रही है।

          यह तो नाम से ही स्पष्ट है कि यह साधना कितनी महत्वपूर्ण है? जिस पर माँ भुवनेश्वरी की कृपा हो जाए, वह कभी दरिद्र नहीं रह सकता। क्यूँकि माँ कभी अपनी सन्तान को दुःखी नहीं देख सकती है। अतः ज्यादा न लिखते हुए विधान दे रहा हूँ।

साधना विधान :-----------

          यह साधना किसी भी ग्रहण काल (चन्द्र ग्रहण अथवा सूर्य ग्रहण) में की जा सकती है। साधक को चाहिए कि वह ग्रहण काल में स्नान कर सफ़ेद वस्त्र धारण करे और उत्तर दिशा की ओर मुख करके सफ़ेद आसन पर बैठ जाए।

          अब अपने सामने किसी बाजोट पर सफ़ेद वस्त्र बिछाए और उस पर पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का चित्र स्थापित करे। चित्र के समक्ष अक्षत से बीज मन्त्र "ह्रीं" लिखे और उस पर एक कोई भी रुद्राक्ष स्थापित करे।

          फिर सर्वप्रथम संक्षिप्त गुरुपूजन सम्पन्न करें और गुरुमन्त्र का एक माला जाप करके पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी से दरिद्रता नाशक भुवनेश्वरी साधना सम्पन्न करने की आज्ञा लें। फिर उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए निवेदन करें।

           इसके बाद भगवान गणपतिजी का स्मरण करके एक माला किसी गणपति मन्त्र का जाप करें। फिर गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          इसके बाद भगवान भैरवनाथजी का स्मरण करके एक माला किसी भी भैरव मन्त्र का एक माला जाप करें। फिर भैरवनाथजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          अब जो रुद्राक्ष आपने स्थापित किया है, उसका सामान्य पूजन करें। फिर निम्न मन्त्र को पढ़ते जाएं और थोड़े-से अक्षत रुद्राक्ष पर अर्पण करते जाएं। यह क्रिया आपको २१ बार करनी है। अर्थात २१ बार मन्त्र पढ़ना होंगे और २१ बार अक्षत भी अर्पण करने होंगे।

।। ॐ ह्रीं भुवनेश्वरी इहागच्छ इहतिष्ठ इहस्थापय मम सकल दरिद्रय नाशय नाशय ह्रीं ॐ ।।

          अब पुनः रुद्राक्ष का सामान्य पूजन करके कोई भी मिठाई का भोग लगाएं, तिल के तेल का दीपक लगाएं। फिर बिना किसी माला के निम्न मन्त्र का लगातार २ घण्टे तक जाप करें और जाप करते वक़्त लगातार थोड़े अक्षत रुद्राक्ष पर अर्पण करते रहें -----

मूल मन्त्र :-----------

।। हूं हूं ह्रीं ह्रीं दारिद्रय नाशिनी भुवनेश्वरी ह्रीं ह्रीं हूं हूं फट् ।।

HOOM HOOM HREEM HREEM DAARIDRAY NAASHINI BHUVANESHWARI HREEM HREEM HOOM HOOM PHAT.

          साधना समाप्ति के बाद एक आचमनी जल छोड़कर समस्त जाप माँ भगवती भुवनेश्वरी को ही समर्पित कर दें।

          साधना के बाद भोग स्वयं खा लें और रुद्राक्ष को जल से स्नान कराकर लाल धागे में पिरो लें। फिर इस रुद्राक्ष को गले में धारण कर लें। साधना में प्रयुक्त हुए सारे अक्षत उसी वस्त्र में बाँध कर कुछ दक्षिणा के साथ देवी मन्दिर में रख आएं और दरिद्रता नाश के लिए माँ भगवती से प्रार्थना कर लें।

          यह साधना अद्भूत है। अतः स्वयं साधना सम्पन्न कर अनुभव प्राप्त करें। मन्त्र में जो बीजाक्षर प्रयुक्त हुए हैं, उन सभी बीजाक्षरों में मकार का उच्चारण होगा।

          आपकी साधना सफल हो और माँ भगवती भुवनेश्वरी आप सबका कल्याण कल्याण करे। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

            इसी कामना के साथ


ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।।

बुधवार, 10 जनवरी 2018

बन्धन-मुक्ति साबर मातंगी साधना

बन्धन-मुक्ति साबर मातंगी साधना

          माघ मासान्तर्गत आनेवाली गुप्त नवरात्रि निकट ही है। यह नवरात्रि १७ जनवरी २०१८ से शुरू हो रही है। आप सभी को गुप्त नवरात्रि की अग्रिम रूप से बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ!

          सामान्यत: लोग वर्ष में पड़ने वाले केवल दो नवरात्रियों के बारे में ही जानते हैं  “चैत्र” या “वासन्तिक नवरात्रि” एवं “आश्विन” या “शारदीय नवरात्रि” जबकि इसके अतिरिक्त दो और नवरात्रि भी होती हैंजिनमें विशेष कामनाओं की सिद्धि की जाती है। कम लोगों को इसका ज्ञान होने के कारण या इसके छिपे हुए होने के कारण ही इसको “गुप्त नवरात्रि” कहते हैं। वर्ष में दो बार गुप्त नवरात्रि आती हैं — माघ मास के शुक्ल पक्ष व आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में। इस प्रकार कुल मिला कर वर्ष में चार नवरात्रि होती हैं। यह चारों ही नवरात्रियाँ ऋतु परिवर्तन के समय मनाये जाती हैं। इस विशेष अवसर पर अपनी विभिन्न मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए पूजा-पाठ आदि किये जाते हैं।

          गुप्त नवरात्रियों का बड़ा ही महत्त्व बताया गया है। गुप्त नवरात्रि मनाने और इनकी साधना का विधान “देवी भागवत” एवं अन्य धार्मिक ग्रन्थों में मिलता है। श्रृंगी ऋषि ने गुप्त नवरात्रियों के महत्त्व को बतलाते हुए कहा है कि “जिस प्रकार वासन्तिक नवरात्रि में भगवान विष्णु की पूजा और शारदीय नवरात्रि में देवी शक्ति की नौ देवियों की पूजा की प्रधानता रहती हैउसी प्रकार गुप्त नवरात्रियाँ दस महाविद्याओं की होती हैं। यदि कोई इन महाविद्याओं के रूप में शक्ति की उपासना करें तो जीवन धन-धान्यराज्य सत्ता और ऐश्वर्य से भर जाता है।”

          मानव के समस्त रोगदोष एवं कष्टों के निवारण के लिए गुप्त नवरात्रि से बढ़कर कोई साधना काल नहीं हैं। श्रीवर्चस्वआयुआरोग्य और धन प्राप्ति के साथ ही शत्रु संहार के लिए गुप्त नवरात्रि में अनेक प्रकार के अनुष्ठान व व्रत-उपवास के विधान शास्त्रों में मिलते हैं। इन अनुष्ठानों के प्रभाव से मानव को सहज ही सुख व अक्षय ऎश्वर्य की प्राप्ति होती है।

          दुर्गावरिवस्या” नामक ग्रन्थ में तो स्पष्ट लिखा है कि साल में दो बार आने वाली गुप्त नवरात्रियों में भी माघ में पड़ने वाली गुप्त नवरात्रि मानव को न केवल आध्यात्मिक बल ही प्रदान करती हैंबल्कि इन दिनों में संयम-नियम व श्रद्धा के साथ माता दुर्गा की उपासना करने वाले व्यक्ति को अनेक सुख व साम्राज्य भी प्राप्त होते हैं। “शिवसंहिता” के अनुसार ये नवरात्रियाँ भगवान शंकर और आदिशक्ति माँ पार्वती की उपासना के लिए भी श्रेष्ठ हैं। गुप्त नवरात्रियों को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने से कई बाधाएँ समाप्त हो जाती हैंजैसे - विवाह बाधातन्त्र बाधाग्रह दोष आदि।

          सतयुग में चैत्र नवरात्रित्रेता में आषाढ़ नवरात्रिद्वापर में माघ नवरात्रि और कलयुग में आश्विन नवरात्रि की साधना-उपासना का विशेष महत्व रहता है। ऐसी मान्यता है कि यदि कोई नास्तिक भी परिहासवश इस समय मन्त्र साधना कर ले तो उसे भी फल सफलता के रूप में अवश्य ही मिलता है। यही इस गुप्त नवरात्रि की महिमा है। “मार्कण्डेय पुराण” में इन चारों नवरात्रियों में शक्ति के साथ-साथ इष्ट की आराधना का भी विशेष महत्व बतलाया गया है।

          गुप्त नवरात्रि के पावन अवसर पर साधक भाई-बहिनों के लिए साबर बन्धन-मुक्ति मातंगी साधना प्रस्तुत की जा रही है। वास्तव में यह साधना साधक को सभी प्रकार के बन्धनों से मुक्त करती है। चाहे वह गृह बन्धन हो या तन्त्र बन्धन हो या ग्रह दोष हो या पितृदोष हो या किसी भी प्रकार का कार्य बन्धन आदि हो तो इस साधना को करने से वह बन्धन तो दूर होता ही है, साथ ही किसी तान्त्रिक द्वारा किया गया बन्धन भी हट जाता है और साधक सुख-शान्ति की अनुभूति करता है।

           यह साधना बहुत ही तीक्ष्ण है। इसे बहुत सारे साधकों ने परखा है। यह मेरी स्वयं की अनुभूत की हुई साधना है। इस साधना के बहुत सारे लाभ हैं। यह आपके जीवन में आने वाली विकट परिस्थितियों को भी आपके अनुकूल कर देती है। पितृ-बाधा से मुक्ति दिलाती हैग्रह-बाधा को शान्त करती हैकई बार तो साधना करते-करते पितृ-आत्माओं से साक्षात्कार भी हो जाता है और कई बार उनकी अगर कोई इच्छा अधूरी रह गई हो तो वे स्वप्न या किसी भी माध्यम से बता देते हैं। कई साधकों को तो इससे मातंगी का प्रत्यक्ष दर्शन भी हुआ है। यह आपकी निष्ठा पर निर्भर करता है। इससे रुके हुए काम स्वयं चलने लग जाते हैं। आमदनी के नए आयाम शुरू हो जाते हैं।

साधना विधि :----------

          इसे नवरात्रि में किया जाए तो ज्यादा उचित है। फिर भी आप किसी भी शुक्लपक्ष की प्रथम तिथि से शुरू करके पूर्णिमा तक कर सकते हैं। आप सर्वप्रथम स्नान आदि से निवृत्त होकर शुद्ध  लाल वस्त्र पहनकर लाल आसन पर बैठ जाएं। अपने सामने बाजोट पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर अक्षत की एक ढेरी बनाएं। अब शुद्ध घी की ज्योत (दीपक) जलाकर अक्षत की ढेरी पर स्थापित कर दें। इस ज्योत को ही माँ मातंगी मानकर पूजन करना है। इसके साथ ही पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का चित्र भी स्थापित करे। अब आप शुद्ध घी का दीपक जला लें और साथ ही धूप-अगरबत्ती लगा दें।

          इसके बाद आप गुरु पूजन करें। मातंगी साबर मन्त्र को किसी कागज़ पर लिख कर गुरु चरणों में अर्पित करें और सामान्य गुरुपूजन सम्पन्न कर गुरुमन्त्र का चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से मन्त्र प्रदान करने की प्रार्थना कर मातंगी साबर मन्त्र ग्रहण करें और तीन बार मन्त्र का उच्चारण करें। इस प्रकार मन्त्र दीक्षा हो जाती है।

          फिर आप भगवान श्री गणेशजी का स्मरण कर भोग के लिए दो लड्डू ज्योत के पास रखें और एक पात्र में जल भी रख दें। अब किसी भी गणेश मन्त्र का एक माला जाप कर गणेशजी से साधना की सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          इसके बाद आपने जो ज्योत (घी का दीपक) स्थापित की हैउसको माँ मातंगी मानकर सामान्य पूजा करें। भोग में आप शुद्ध मिठाई भी अर्पित कर सकते हैं। यदि ऐसा सम्भव ना हो तो किसी भी माता के मन्दिर में जाकर जाप कर सकते हैं। वहाँ ज्योत में घी डाल सकते हैं।

          आप चाहे तो “मातंगी यन्त्र” को भी अपने सामने स्थापित कर सकते हैं। यन्त्र का पूजन पञ्चोपचार से कर लें। सर्वप्रथम यन्त्र को दूध से स्नान करा लें। फिर शुद्ध जल से स्नान कराएं और कपड़े से साफ कर बाजोट पर लाल रंग का वस्त्र बिछा कर उस पर यन्त्र की स्थापना करें। यन्त्र का पूजन कुंकुंमफूलधूपदीपनैवेद्य के लिए मिठाई और फल से करें।

          फिर निम्न मन्त्र का ज्योत के सामने मात्र १०८ बार मन्त्र जाप कर लें। आप चाहें तो ३२४ बार (तीन माला) भी जाप कर सकते हैंवह आपकी इच्छा पर निर्भर है।

साबर मन्त्र :----------

॥ ॐ नमोस्तुते भगवते पार्श्व चन्द्राधरेन्द्र पद्मावती सहिताये मे अभीष्ट सिद्धिदुष्ट ग्रह भस्म भक्ष्यम् स्वाहास्वामी प्रसादे कुरू कुरू स्वाहाहिल हिली मातंगनी स्वाहास्वामी प्रसादे कुरू कुरू स्वाहा ॥

OM NAMOSTUTE BHAGWATE PAARSHWA CHANDRADHARENDRA PADMAVATI SAHITAAYE ME ABHISHTA SIDDHI, DUSHTA GRAH BHASMA BHAKSHYAM SWAAHA, SWAMI PRASAADE KURU KURU SWAAHA, HIL HILI MATANGANI SWAAHA, SWAMI PRASAADE KURU KURU SWAAHA.

          नवरात्रि में नौ दिन जाप करना है और अन्य दिनों में पन्द्रह दिनों तक जाप करना है।

          साधना समाप्ति पर हवन सामग्री में घी और शक्कर मिला कर हवन करना है। पूर्णिमा को हवन के लिए आम की लकड़ी जलाकर १०८ आहुति डालें और नवरात्रि में सम्पन्न करने वाले साधक नवमी तिथि को हवन कर सकते हैं।

          हवन के लिए किसी पात्र में अग्नि जलाकर घी से प्रथम पाँच आहुति प्रजापति के नाम से डालें और फिर गुरु मन्त्र की आहुति डालें। उसके बाद नवग्रहों के नाम की और अन्त में मातंगी साबर मन्त्र की १०८ आहुति डालें। हवन के बाद एक सूखे नारियल में छेद करके उस में घी डालें और उसे मौली बाँध कर उसका पूर्ण आहुति के रूप में पूजन करें। तिलक आदि लगाएं और खड़े हो कर अपने परिवार के सभी सदस्यों का हाथ लगाकर अग्नि में प्रार्थना करते हुए अर्पित कर दें। फिर जो भी आपने भोग बनाया हैउसे अर्पित करें और गुरु आरती सम्पन्न कर सभी सदस्यों को प्रसाद वितरित करें।

           साधना पूरी होने पर समस्त पूजन सामग्री जलप्रवाह कर दें। माला गले में पहन लें और यन्त्र पूजन-स्थान में स्थापित कर लें।

          आपकी यह साधना सफल हो और माँ भगवती मातंगी आप सबका कल्याण करे। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

              इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।

 

शुक्रवार, 5 जनवरी 2018

मकर संक्रान्ति और दरिद्रता नाशक सूर्य प्रयोग

मकर संक्रान्ति और दरिद्रता नाशक सूर्य प्रयोग



               मकर संक्रान्ति पर्व समीप ही है। यह १४ जनवरी २०१८ को आ रहा है। आप सभी को मकर संक्रान्ति पर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

               हमारे पवित्र पुराणों के अनुसार मकर संक्रान्ति का पर्व ब्रह्माविष्णुमहेशगणेशआद्यशक्ति और सूर्य की आराधना एवं उपासना का पावन व्रत हैजो तन-मन-आत्मा को शक्ति प्रदान करता है। सन्त-महर्षियों के अनुसार इसके प्रभाव से प्राणी की आत्मा शुद्ध होती हैसंकल्प शक्ति बढ़ती हैज्ञान तन्तु विकसित होते हैंमकर संक्रान्ति इसी चेतना को विकसित करने वाला पर्व है। यह सम्पूर्ण भारत वर्ष में किसी न किसी रूप में आयोजित ही होता है।

              पुराणों के अनुसार मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य अपने पुत्र शनि के घर एक महीने के लिए जाते हैंक्योंकि मकर राशि का स्वामी शनि है। हालाँकि ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्य और शनि का तालमेल सम्भव नहींलेकिन इस दिन सूर्य खुद अपने पुत्र के घर जाते हैं। इसलिए पुराणों में यह दिन पिता-पुत्र के सम्बन्धों में निकटता की शुरुआत के रूप में देखा जाता है।

               इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अन्त करके युद्ध समाप्ति की घोषणा की थीउन्होंने सभी असुरों के सिरों को मन्दार पर्वत में दबा दिया था। इसलिए यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।

              एक अन्य पुराण के अनुसार गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद इस दिन गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थीइसलिए मकर संक्रान्ति पर गंगा सागर में मेला लगता है।

              विष्णु धर्मसूत्र में कहा गया है कि पितरों की आत्मा की शान्ति के लिए एवं स्व स्वास्थ्यवर्द्धन तथा सर्वकल्याण के लिए तिल के छः प्रयोग पुण्यदायक एवं फलदायक होते हैं। (१) तिल जल से स्नान करना, (२) तिल दान करना, (३) तिल से बना भोजन करना, (४) जल में तिल अर्पण करना, (५) तिल से आहुति देना, (६) तिल का उबटन लगाना।

               सूर्य के उत्तरायण होने के बाद से देवों की ब्रह्म मुहूर्त उपासना का पुण्यकाल प्रारम्भ हो जाता हैइस काल को ही परा-अपरा विद्या की प्राप्ति का काल कहा जाता हैइसे साधना का सिद्धिकाल भी कहा गया है। इस काल में देव प्रतिष्ठागृह निर्माणयज्ञ कर्म आदि पुनीत कर्म किए जाते हैंमकर संक्रान्ति के एक दिन पूर्व से ही व्रत उपवास में रहकर योग्य को दान देना चाहिए।

               रामायण काल से भारतीय संस्कृति में दैनिक सूर्य पूजा का प्रचलन चला आ रहा है। राम कथा में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा नित्य सूर्य पूजा का उल्लेख मिलता है। रामचरित मानस में ही भगवान श्री राम द्वारा पतंग उड़ाए जाने का भी उल्लेख मिलता है। मकर संक्रान्ति का जिक्र वाल्मिकी रचित रामायण में भी मिलता है।

                राजा भगीरथ सूर्यवंशी थेजिन्होंने भगीरथ तप साधना के परिणाम स्वरूप पापनाशिनी गंगा को पृथ्वी पर लाकर अपने पूर्वजों को मोक्ष प्रदान करवाया था। राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों का गंगाजलअक्षततिल से श्राद्ध तर्पण किया थातब से माघ मकर संक्रान्ति स्नान और मकर संक्रान्ति श्राद्ध तर्पण की प्रथा आज तक प्रचलित है।

                कपिल मुनि के आश्रम पर जिस दिन माँ गंगे का पदार्पण हुआ थावह मकर संक्रान्ति का दिन थापावन गंगा जल के स्पर्श मात्र से राजा भगीरथ के पूर्वजों को स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी। कपिल मुनि ने वरदान देते हुए कहा था --- "मातु गंगे त्रिकाल तक जन-जन का पापहरण करेंगी और भक्तजनों की सात पीढ़ियों को मुक्ति एवं मोक्ष प्रदान करेंगीगंगा जल का स्पर्शपानस्नान और दर्शन सभी पुण्यदायक फल प्रदान करेगा।"

                महाभारत में पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया थाउनका श्राद्ध संस्कार भी सूर्य की उत्तरायण गति में हुआ था। फलतः आज तक पितरों की प्रसन्नता के लिए तिल अर्घ्य एवं जल तर्पण की प्रथा मकर संक्रान्ति के अवसर पर प्रचलित है।

                 सूर्य की सातवीं किरण भारत वर्ष में आध्यात्मिक उन्नति की प्रेरणा देने वाली हैसातवीं किरण का प्रभाव भारत वर्ष में गंगा-जमुना के मध्य अधिक समय तक रहता है। इस भौगोलिक स्थिति के कारण ही हरिद्वार और प्रयाग में माघ मेला अर्थात मकर संक्रान्ति या पूर्ण कुम्भ तथा अर्द्धकुम्भ के विशेष उत्सव का आयोजन होता है।

दरिद्रता नाशक सूर्य प्रयोग

                 मकर संक्रान्ति  पर्व के शुभ एवं पावन अवसर पर आप सभी साधक भाइयों और बहिनों के लिए एक आसान साधना प्रयोग दिया जा रहा है। यह प्रयोग भगवान सूर्यदेव से सम्बन्धित है और अपने आप में यह पूरी तरह दरिद्रता नाशक प्रयोग है। इसे सम्पन्न करने से धनागम के नये स्रोत खुल जाते हैंआर्थिक परेशानियाँ खत्म हो जाती है।  आप भी इस अत्यन्त सरल साधना को सम्पन्न करके अपने जीवन से दरिद्रता नाम के अभिशाप को जड़-मूल मिटा सकते हैं।

               हर साधना धैर्य और विश्वास से किए जाने  पर ही परिणाम देती है। अतः साधना में अति शीघ्रता अच्छी बात नहीं है। ऐसा करके केवल हम अपना समय व्यर्थ ही बर्बाद करते हैंकोई लाभ नहीं उठा पाते हैं। अतः इस उच्चकोटि के प्रयोग को आप पूर्ण धैर्य और विश्वास के साथ करेआपको अवश्य ही लाभ होगा।

साधना विधान :----------

              यह साधना आप मकर सक्रान्ति के दिन से शुरू करें। यदि आप इस दिन शुरु न  कर पाए तो आप किसी भी रविवार को आरम्भ कर सकते हैं।

              प्रतिदिन एक ताम्रपात्र में पुष्पअक्षतचन्दन मिलाकर नीमवृक्ष की जड़ में चढ़ाएं और वहीं खड़े होकर सर्वप्रथम सूर्य गायत्री मन्त्र का १०८ बार पाठ करें।

सूर्य गायत्री :----------

।।ॐ आदित्याय विद्महे भास्कराय धीमहि तन्नो भानुहु प्रचोदयात् ।।

OM  AADITYAAY  VIDMAHE  BHAASKSRAAY  DHEEMAHI  TANNO  BHAANUHU  PRACHODAYAAT.

             इसके बाद निम्न सूर्य स्तवन का ११ बार पाठ करें-----

ॐ नमः सहस्त्र बाहवे आदित्याय नमो नमः।
नमस्ते पद्महस्ताय वरुणाय नमो नमः।।१।।
नमस्तिमिरनाशाय श्री सूर्याय नमो नमः।
नमः सहस्त्रजिह्वाय भानवे च नमो नमः।।२।।
त्वं च ब्रह्मा त्वं च विष्णु रुद्रस्त्वं च नमो नमः।
त्वमग्निसर्वभूतेषु वायुस्त्वं च नमो नमः।।३।।।
सर्वगः सर्वभूतेषु न हि किंचित् त्वयं विना।
चराचरे जगतस्मिन सर्वदेहे व्यवस्थितः।।४।।

            इसके पश्चात पुनः सूर्य गायत्री मन्त्र का १०८ बार पाठ करें ------

।।ॐ आदित्याय विद्महे भास्कराय धीमहि तन्नो भानुहु प्रचोदयात् ।।

          यह साधना ४५ दिनों तक निरन्तर करते रहें।

          इस साधना से जन्म जन्मान्तर की दरिद्रता का नाश हो जाता है।

          इस साधना में कोई नियम या वस्त्रमालाआसन का बन्धन नहीं है।

         आपकी साधना सफल हों और मनोकामना पूर्ण हो। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

        आज के लिए बस इतना ही।


ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश।।