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सोमवार, 19 नवंबर 2018

काल भैरव साधना

काल भैरव साधना



          कालभैरव जयन्ती समीप ही है। यह २९ नवम्बर २०१८ को आ रही है। आप सभी को कालभैरव जयन्ती की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          प्रत्येक व्यक्ति अपने अन्दर तेजस्विता और प्रचण्डता  को भी आत्मसात कर सके, यह सम्भव है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के दो प्रमुख पहलू होते हैं अच्छा-बुरा, उल्टा-सीधा, तेज-धीमा, सौम्य-उग्र। और उसका व्यक्तित्व तभी पूर्णतायुक्त होता है, जब वह दोनों पहलुओं से परिपूर्ण हो। जहाँ उसके अन्दर ममत्व, प्यार, दया जैसी सौम्य भावनाएँ होनी आवश्यक हैं, वहीं पौरुष, प्रचण्डता, तेजस्विता जैसी स्थितियाँ भी होनी अत्यावश्यक है।

          कृष्ण के बारे में प्रसिद्ध है कि जहाँ उनकी एक आँख में करुणा, ममता, प्रेम, अपनत्व झलकता रहता था, तो वहीं उनकी दूसरी आँख में प्रचण्डता, शत्रु-दमन एवं क्रोध की स्थिति रहती थी और इन्हीं दोनों के समग्र रूप ने उन्हें "योगेश्वरमय पुरुषोत्तम" बनाया।

          काल भैरव ऐसे ही प्रचण्ड देव हैं, जिनकी आराधना-साधना से व्यक्ति के अन्दर स्वतः ही एक ऐसा अग्नि स्फुलिंग स्थापित हो जाता है कि उसका सारा शरीर शक्तिमय हो जाता है, ओजस्विता एवं दिव्यता से दिव्यता से परिपूर्ण हो जाता है और वह अपने जीवन में प्रत्येक प्रकार की चुनौती को मुस्कुरा कर झेलने तथा उस पर विजय पाने की क्षमता प्राप्त कर लेता है।

          ऋषियों ने जब साधनाओं का निर्माण किया तो छोटी से छोटी साधना भी उनके अनुभव पर ही आधारित थी। जब उन्होंने काल भैरव के लिए अष्टमी तिथि निर्धारित की और वह भी कृष्ण पक्ष की, तो उसके पीछे एक गूढ़ चिन्तन था। प्रथम तो काल भैरव एक ऐसे देव हैं, जो कि व्यक्ति के झूठे व्यक्तित्व को नष्ट कर उसे सभी अष्टपाशों से मुक्त करते हैं और चूँकि सभी अष्टपाश अज्ञान रूपी अंधकार से निर्मित होते हैं, अतः इनकी साधना के लिए कृष्ण पक्ष की अष्टमी को निर्धारित किया गया।

          काल भैरव का रूप मनोहर है, उनका शरीर दिव्य, तेजस्वी एवं सम्मोहक है। उनके एक हाथ में मनुष्य का खप्पर, जो कि नवीन चेतना का प्रतीक है, स्थित है। दूसरे हाथ में यम पाश है, जो मृत्यु पर विजय का द्योतक है। तीसरे हाथ में खडग अष्टपाशों को काटने के लिए तथा चौथा वरमुद्रा में उठा हाथ सर्व स्वरूप में मंगल और आनंद का प्रतीक है।

          वैसे साधना के दौरान काल भैरव साधक की कई प्रकार से परीक्षा लेते हैं और कई बार तो विकराल रूप धारण कर उनके समक्ष उपस्थित हो जाते हैं। पर साधक को इतना ख्याल रखना चाहिए कि काल भैरव केवल बाह्य रूप में ही भयंकर है, उनका अन्तः स्वरूप तो अमृत तत्व से आपूरित और साधक का हित चाहने वाला ही है। अतः साधक को ऐसी किसी भी परिस्थिति के उत्पन्न होने पर इस साधना से विचलित होने या डरने की जरा भी आवश्यकता नहीं है।

          प्राचीन ग्रन्थों में विवरण मिलता है कि अगर सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी यह साधना सफलतापूर्वक सम्पन्न कर लेता है, तो ऐसे व्यक्ति के जीवन में यदि अकाल मृत्यु या दुर्घटना का योग हो, तो वह स्वतः ही मिट जाता है और कुण्डली में स्थित कुप्रभावी ग्रह भी शान्त हो जाते हैं, जिससे उसकी सफलता का मार्ग प्रशस्त होने लगता है।

          ऐसे व्यक्ति का सारा शरीर एक दिव्य आभा से युक्त हो जाता है। मित्रगण हमेशा उसके चारो ओर मँडराते रहते हैं और उसकी हर बात का पालन करने के लिए तत्पर रहते हैं। शत्रु उसके समक्ष आते ही समर्पण मुद्रा में प्रस्तुत हो जाते हैं और साधक के आज्ञापालक बन जाते हैं। वह कभी भी युद्ध, विवाद, मुकदमे आदि में पराजित नहीं होता। इस साधना से व्यक्ति के अष्टपाश नष्ट होते हैं।

          काल भैरव "काल" के देवता हैं, अतः उनकी साधना सम्पन्न करने वाले साधक को स्वतः ही त्रिकाल स्वरूप में भूत, भविष्य, वर्तमान का ज्ञान होने लगता है, जिससे वह पहले से ही भविष्य के लिए उचित योजनाएँ बना लेता है। वह पहले से ही जान जाता है कि यह व्यक्ति मेरे लिए सहयोगी होगा कि नहीं, यह कार्य मेरे लिए अनुकूल होगा या नहीं। साथ ही साथ धन, मान, पद, प्रतिष्ठा, वैभव उसके जीवन में उसके साथ-साथ चलते हैं और वह सामान्य जीवन से ऊपर उठकर देवत्व की ओर अग्रसर होता है।

साधना विधान :-----------

          यह साधना एक दिवसीय है। इस साधना को काल भैरव अष्टमी, पुष्य नक्षत्र दिवस को या किसी भी रविवार को सम्पन्न करें।

          साधक रात्रि में स्वच्छ काले वस्त्र धारण कर काला आसन या कम्बल बिछाकर दक्षिणाभिमुख होकर यह साधना सम्पन्न करें। साधक अपने माथे पर काजल की बिन्दी भी लगाएं।

          अपने पूजा स्थान को साफ कर लकड़ी के बाजोट पर काला वस्त्र बिछाकर, उस पर काले तिल से अष्टदल कमल बनाएं, कमल के मध्य में "कालभैरव यन्त्र" स्थापित करें। प्रत्येक दल पर एक-एक सुपारी रखें।

          साधना से पूर्व साधक को सामान्य गुरुपूजन करके कम से कम चार माला गुरुमन्त्र की जाप करनी चाहिए और फिर सद्गुरुदेवजी से कालभैरव साधना सम्पन्न करने हेतु मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लेकर उनसे साधना की सफलता के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।

          इसके बाद भगवान गणपति का स्मरण कर संक्षिप्त पूजन करें और एक माला गणपति मन्त्र का जाप कर उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता के लिए निवेदन करे।

          तत्पश्चात यन्त्र का पूजन सिन्दूर, अक्षत तथा लाल पुष्प से करें, साथ ही प्रत्येक सुपारी पर भी सिन्दूर, अक्षत तथा पुष्प चढ़ाएं। तेल का दीपक लगाएं, दीपक में चार बत्तियाँ हो, धूप भी जला लें।

                     "काली हकीक माला" को हाथ में लेकर उस पर सिन्दूर तथा पुष्प चढ़ाएं। फिर निम्न मन्त्र का उच्चारण करते हुए ५१ माला मन्त्र जाप सम्पन्न करें -----

मन्त्र :-----------

॥ ॐ क्रीं क्रीं कालभैरवाय फट् ॥

OM  KREEM  KREEM  KAALBHAIRAVAAY  PHAT.

          साधना समाप्ति के अगले दिन यन्त्र, माला तथा सुपारी उसी वस्त्र में लपेटकर नदी में यह कहते हुए प्रवाहित कर दें -----

         "हे, कालभैरव! आप समस्त प्रकार से मेरी रक्षा करें। मेरे शत्रुओं को परास्त करें तथा मुझ पर अपनी कृपा कर मुझे सर्व सुख और सम्पदा से युक्त करें।"

         ऐसा करने पर यह साधना पूर्ण होती है तथा साधक कालभैरव की तेजस्विता को अपने अन्दर समाहित कर अकाल मृत्यु, चिन्ताओं, बाधाओं को दूर करता हुआ निर्भरता व निडरता युक्त जीवन व्यतीत करने में समर्थ होता है।

          आपकी साधना सफल हो और भगवान कालभैरव आपकी मनोकामना पूरी करे! मैं सद्गुरुदेव भगवानजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिलजी को आदेश आदेश आदेश ॥

बुधवार, 21 फ़रवरी 2018

साबर भैरव तन्त्र प्रयोग

साबर भैरव तन्त्र प्रयोग



          होली पर्व समीप ही है। इस बार १ मार्च २०१८ को होलिका दहन होगा एवं २ मार्च २०१८ को धुलैंडी (होली) मनाई जाएगी। आप सभी को होली पर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          होली के पर्व को सभी साधनाओं के लिए श्रेष्ठ माना गया है। यह पर्व वर्ष में एक ही बार आता है, परन्तु साधकों को इस पर्व की प्रतीक्षा वर्ष भर रहती है। होली की रात्रि को साधना सम्पन्न करने पर निश्चय ही कार्य सिद्धि होती है। तन्त्र के ग्रन्थों में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि जो साधक साधना में पूर्ण सफलता, श्रेष्ठता व सिद्धि प्राप्त करना चाहता हो, उसे होली जैसे महत्वपूर्ण पर्व को व्यर्थ में गँवाना नहीं चाहिए।

          रूद्रयामल तन्त्र में कहा गया है कि यदि होली की रात्रि को किसी भी प्रकार की तान्त्रिक साधना सम्पन्न की जाए तो उसमें अवश्य ही सिद्धि मिलती है। संसार में ऐसी कोई साधना नहीं है जो होली की रात्रि को सिद्ध नहीं हो सकती। एक तरफ जहाँ यह पर्व तान्त्रिकों के लिए वरदान तुल्य है, वहीं साधकों के लिए भी यह दिन श्रेयस्कर व सिद्धिप्रद है। इस दिन साधना सम्पन्न करने पर सफलता अवश्य मिलती है।

          यूँ तो होली की रात्रि को मन्त्रात्मक व तन्त्रात्मक साधनाएँ सम्पन्न की ही जाती है, परन्तु जितना मन्त्र व तन्त्र साधना का महत्व है, उतना ही महत्व साबर मन्त्रों का भी है। साधक चाहे तो इस पर्व पर साबर मन्त्रों का उपयोग कर साधनाओं में सिद्धि सफलता प्राप्त कर सकता है। साबर साधनाओं का तात्पर्य उन मन्त्रों से है, जो मन्त्र संस्कृत में नहीं लिखे गए हैं, अपितु सरल भाषा में प्रकट हुए हैं। गुरू गोरखनाथ व उसके बाद को आचार्यों ने जनहित में साबर साधनाओं का प्रसार किया था। साबर साधनाओं के माध्यम से उसी प्रकार से सफलताएँ पाई जा सकती हैं, जिस प्रकार तन्त्र साधना से। यद्यपि ये मन्त्र दिखने में सरल, सामान्य व देवनागरी लिपि में लिखे हुए प्रतीत होते हैं, परन्तु इन मन्त्रों में इतनी क्षमता है कि ये सिद्धि प्रदान कर सकें।

          अनेक योगियों ने समय-समय पर साबर साधनाओं को अपनाया व इनसे विशेष सफलताएँ प्राप्त कीं। अधिकतर इनमें ऐसी साधनाएँ हैं, जो कम पढ़ा-लिखा साधक भी सम्पन्न कर सकता है। इन साधनाओं के लिए विशेष प्रकार के विधि-विधान, पूजन-अर्चन, माला या विशेष मन्त्र जप के प्रयोग की आवश्यकता नहीं होती। इनके कुछ क्रियात्मक पक्ष हैं, कुछ प्रयोग व मन्त्रों का जप करने पर तुरन्त सफलता प्राप्त हो जाती है।

          होली एक ऐसा दिवस होता है, जिस दिन तन्त्र अपने चरम पर होता है। आप में से कई साधकों ने इस दिन के लिए विधान माँगा था। अतः होली पर किये जाने वाला एक प्रयोग यहाँ दिया जा रहा है। इस प्रयोग के माध्यम से साधक अपनी दरिद्रता, रोग, शत्रु कष्ट आदि का निवारण कर सकता है।

         प्रस्तुत प्रयोग भगवान भैरव से सम्बन्धित है। अतः इसका प्रभाव भी अचूक है। मैंने कई बार कहा है कि जब भी आप कोई साधना करें तो उसे पूर्ण मनोभाव के साथ ही करे अन्यथा ना करें। क्यूँकि आसन पर बैठकर इष्ट की जगह संसार का ध्यान करेंगे तो सफलता सौ जन्मों तक प्राप्त नहीं होगी।अतः जब आप होली पर इस दिव्य प्रयोग को करें तो पूर्ण एकाग्रता के साथ ही करें। वैसे तो इस प्रयोग से सारे कार्य सिद्ध हो जाते हैं, जैसे :-----

१. दरिद्रता का नाश हो जाता है।
२. धन आगमन के मार्ग खुलने लगते हैं।
३. शत्रु द्वारा दिए जा रहे कष्टों से मुक्ति मिलती है।
४. गम्भीर रोग स्वतः शान्त हो जाते हैं।

          और जीवन से जुड़ी हर समस्या का निवारण इस एक दिवसीय साधना से हो जाता है। प्रस्तुत प्रयोग आपको १ मार्च २०१८ की रात्रि १० के बाद आरम्भ करना है।

साधना विधान :-----------

          सर्वप्रथम साधक स्नान कर उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठ जाएं। इस साधना में आसन एवं वस्त्र लाल रंग के प्रयुक्त होंगे। अपने सामने बाजोट पर लाल वस्त्र बिछा दें तथा उस पर पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का चित्र स्थापित स्थापित कर दें। गुरु चित्र के समक्ष काले तिल की एक ढेरी बना दें। इस पर एक सुपारी सिन्दूर से रंजित करके स्थापित करें। जिनके पास स्वर्णाकर्षण भैरव गुटिका हों, वे लोग गुटिका पर सिन्दूर लगाकर स्थापित करें। धूप-अगरबत्ती एवं तिल के तेल का प्रज्ज्वलित कर दें।

          अब सबसे पहले साधक पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का ध्यान करके संक्षिप्त गुरुपूजन सम्पन्न करें और गुरुमन्त्र का चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से साबर भैरव प्रयोग सम्पन्न करने हेतु मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लेकर उनसे साधना की पूर्णता तथा सफलता के लिए निवेदन करें।
      
         तदुपरान्त साधक भगवान गणपतिजी का स्मरण करके सामान्य गणेश पूजन सम्पन्न करे। फिर किसी भी गणपति मन्त्र का एक माला जाप करें और गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

         इसके बाद सुपारी या गुटिका का सामान्य पूजन करें। भोग में तले हुए पापड़, उड़द के ३ बड़े रखें। तत्पश्चात अपने जीवन से सभी बाधाओं की निवृत्ति हेतु तथा साधना मार्ग में प्रगति हेतु आप यह साधना कर रहे हैं, ऐसा संकल्प लें।

          अब साधक मन्त्र जाप आरम्भ करे। इसमें माला का प्रयोग नहीं होगा। जाप करते समय भैरव के समक्ष एक कटोरा रखे और अपने पास काले तिल, काली मिर्च, काले उड़द  तीनों को समान भाग में मिलाकर किसी अन्य पात्र में रखे। अब थोड़ी-सी सामग्री ले और अपने मस्तक पर स्पर्श कराएं। स्पर्श करते समय शाबर भैरव मन्त्र पढ़ते रहें, मन्त्र पूर्ण होते ही यह सामग्री भैरव के समक्ष रखे कटोरे में डाल दें। इस प्रकार यह क्रिया एक घण्टे तक करे।

साबर भैरव मन्त्र :-----------

    ।। हूं हूं हूं भैरो दरिद्रता नासै,
    रोग नासै, शत्रु नासै, नासै सगली  पीड़ा,
    सुख बरसे, सफल होय कारज डाले भैरो रक्षा घेरा,
    आदेश आदेश आदेश आदि गुरु को आदेश ।।

          जब मन्त्र जाप की क्रिया सम्पन्न हो जाए, तब भैरव के समक्ष कटोरे में जो सामग्री एकत्रित हुई है, उसे घी में मिला ले और मन्त्र पढ़ते हुए अग्नि में  १०८ आहुति प्रदान करे। सामग्री जरा भी न बचाए, अगर आहुति के बाद भी बच जाए तो बाद में सभी सामग्री अग्नि में डाल दे।

          भगवान भैरव से प्रार्थना कर आशीर्वाद प्राप्त करे और रात्रि में ही बाजोट पर बिछा वस्त्र, सुपारी, भोग की वस्तुएँ आदि किसी वृक्ष के नीचे रख आए। पीछे  मुड़कर न देखें, घर आकर स्नान करे। हवन की भस्म आदि भी अगले दिन कहीं विसर्जित कर दे।

          इस प्रकार यह प्रयोग सम्पन्न होता है। साधक को बाद में भी नित्य २१ बार मन्त्र का पाठ करना चाहिए। इससे प्रयोग की तीव्रता दिन-प्रतिदिन बढ़ती रहती है तथा प्रयोग से सम्बन्धित सभी लाभ साधक को शीघ्रता से प्राप्त होते है।

                   यदि आप स्वर्णकर्षण भैरव गुटिका का प्रयोग करें तो साधना के तुरन्त बाद गुटिका को नीम्बू और नमक मिश्रित जल में डुबो दे २४ घंटे के लिए। इसके बाद धोकर शिवलिंग से स्पर्श कराकर पुनः सुरक्षित रख ले। इसी गुटिका पर भविष्य में पुनः साधना की जा सकती है। 

          आप सभी की होली मंगलमय हो और आपकी साधना सफल हो। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ


ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।

शनिवार, 23 दिसंबर 2017

आदित्य भैरव सायुज्य कृत्या प्रयोग

आदित्य भैरव सायुज्य कृत्या प्रयोग




          नववर्ष २०१८ समीप ही है। एक साधक को चाहिए कि वह नववर्ष का आरम्भ पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी द्वारा बताए गए साधनात्मक तरीके से करे, जिससे कि सम्पूर्ण नववर्ष उसके और उसके परिवार के लिए सौभाग्यदायक, समृद्धिदायक और आरोग्यदायक हो। आप सभी को नववर्ष २०१८ की अग्रिम रूप से  ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ। 
      
         वह दिन जब हम जीवन का प्रारम्भ करते हैं, हम सभी के लिए नववर्ष कहलाता है। मान्यताओं, संस्कारों और तथ्यों के आधार पर एक सामान्य वर्ष में कई बार नववर्ष मनाया जाता है, जैसे नवरात्रि को हिन्दू संस्कृति का तो भिन्न-भिन्न प्रान्तों के अपने नववर्ष होते हैं तो स्वयं का जन्मदिन भी व्यक्ति विशेष के लिए नववर्ष ही होता है और मानव चिन्तन सदैव इस ओर रहा है कि कैसे हम अपने मनोवांछित को प्राप्त कर न्यूनताओं को समाप्त कर सके और सार्थक कर सके अपना नववर्ष।

         सदगुरुदेव हमेशा नववर्ष के अवसर पर साधकों को विलक्षणता प्रदान करने वाले नवीन तथ्यों से परिचित तो करवाते ही थे, साथ ही साथ दिव्यपात श्रेणी की विभिन्न दीक्षाओं को भी उन्होंने देना प्रारम्भ किया था, जिससे साधक सामान्य न होकर अद्भुत हो जाए। परन्तु १९९८ के बाद वे सारे क्रम ही लुप्त हो गए और अन्य कोई उन तथ्यों को समझा पाए, ऐसा सम्भव ही नहीं था। हमारे विभिन्न ज्ञात और लुप्त तन्त्र ग्रन्थ प्रमाण हैं  उन उच्चस्तरीय साधनाओं के जिनका प्रयोग कर साधक अपनी जीवन शैली में आमूलचूल परिवर्तन कर सकता है और वर्ष भर के लिए श्रेष्ठता तो प्राप्त कर ही सकता है। ऐसा ही एक ग्रन्थ है गुह्य रहस्य पद्धतिजो पूरी तरह दिनों, महीनों और वर्षों को अनुकूल बनाने तथा गतिमान वर्ष, माह एवं दिवस के अधिष्ठाता ग्रह, देवशक्ति, मातृका और मुन्था को वश में करके स्वयं का भाग्य लेखन करने की गुह्यतम पद्धति पर आधारित है पूरा ग्रन्थ ही २२८ प्रयोगों से युक्त है, भिन्न-भिन्न दिवसों और माहों के अपने-अपने प्रयोग हैं। परन्तु उन सब में जो सभी के लिए प्रभावकारी पद्धति है, उसी का विवेचन मैं इस लेख में कर रहा हूँ।

         इस प्रयोग को दो तरीकों से किया जा सकता है
१. या तो जब सामूहिक मान्यताओं के आधार पर नववर्ष प्राम्भ हो तब।
२. या जब साधक का जन्मदिवस हो या उसकी पारिवारिक या धार्मिक मान्यताओं के आधार पर जब नववर्ष प्रारम्भ होता हो।

          चाहे आप किसी भी क्रम को मानते हो, तब भी आप दो तरीके से इस प्रयोग को कर सकते हैं
१. या तो सूर्योदय के समय का आश्रय लेकर साधना की जाए।
२. या फिर जिस समय साधक का जन्म हुआ हो,  उस समय पर इसे सम्पन्न किया जाए। भले ही आप १ जनवरी को इसका प्रयोग कर रहे हो, परन्तु तब भी आप इसे इन दोनों में से किसी भी समय पर कर सकते हैं, अर्थात मान लीजिए कि किसी का जन्म २४ अगस्त को रात्रि में ९.३५ पर हुआ है, तब ऐसे में साधक १ जनवरी को ही या तो सूर्योदय के समय इस साधना को कर सकता है या फिर रात्रि में ९.३५ पर। दोनों ही समय प्रभावकारी हैं और इसमें कोई दोष नहीं है।

          आप चाहे आत्मविश्वास की मजबूती चाहते हों या फिर रोजगार की प्राप्ति या वृद्धि, सम्मान चाहते हों या फिर सन्तान-सुख या सन्तान या परिवार का आरोग्य, आर्थिक उन्नति चाहते हों या कार्य में सफलता, जीवन में प्रेम की अभिलाषा हो या फिर विदेश यात्रा का स्वयं के भाग्य में अंकन, प्रयोग सभी अभिलाषाओं की पूर्ति करता है।

          गुरु मन्त्र की १६ माला अनिवार्य हैं,  उन्हीं क्षणों में साधक के द्वारा इस प्रयोग को करने से पहले,  तभी यह प्रयोग पूर्णता प्रदान करता है।

साधना विधान :-----------

          आप अपनी मान्यताओं के आधार पर जिस भी नववर्ष के प्रारम्भ में इस साधना को करना चाहे, उस सुबह सूर्योदय के पहले उठकर स्नान कर ले और श्वेत वस्त्र धारण कर भगवान सूर्य को अर्घ्य प्रदान करे। अर्घ्य पात्र में जल भर कर और उसको पहले सामने रखकर २१-२१ बार निम्न मन्त्रों से अभिमन्त्रित कर लें

ॐ आदित्याय नमः।
ॐ मित्राय नमः।
ॐ भाष्कराय नमः।
ॐ रवये नमः।
ॐ खगाय नमः।
ॐ पूषाय नमः।
ॐ ग्रहाधिपत्ये नमः।

          इसके बाद ही उस जल से अर्घ्य प्रदान करें। तत्पश्चात साधना कक्ष में स्वयं या परिवार के साथ बैठकर सदगुरुदेव और भगवान गणपति का पूजन करें।

          आज जिस गुरु ध्यान मन्त्र का प्रयोग होता है, वह भी इस अवसर विशेष के साथ योगित है। सद्गुरुदेव पूजन से पूर्व निम्न ध्यान मन्त्र का ७ बार उच्चारण करें

अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानांजनशलाकया।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरुवै नमः।।

          तत्पश्चात पंचोपचार विधान या सुविधाजनक रूप से पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का पूजन करें, फिर १६ माला गुरुमन्त्र की जाप करें। इसके बाद सद्गुरुदेवजी से आदित्य  भैरव  सायुज्य  कृत्या साधना सम्पन्न  की आज्ञा लें। फिर उनसे साधना की  निर्बाध  पूर्णता  और  सफलता  एवं संवत्सर की  शुभता के  लिए प्रार्थना करें

         तदुपरान्त  भगवान गणपति का सामान्य पूजन करें और  एक माला किसी  भी  गणपति  मन्त्र  का जाप  करें। फिर भगवान गणपतिजी  से  साधना की  निर्विघ्न  पूर्णता  और  सफलता  के  लिए प्रार्थना करें

         इसके बाद उनकी साक्षी में ही  हाथ में जल लेकर उपरोक्त साधना में सफलता की प्रार्थना करें और संकल्प लें।

         यदि आप परिवार के साथ पूजन कर रहे हैं तब भी और यदि आप अकेले पूजन कर रहे हैं तब भी किसी भी पारिवारिक सदस्य या आत्मीय के नाम से संकल्प ले सकते हैं।

          जितने सदस्य यह प्रयोग कर रहे हैं उन सभी के लिए एक-एक घृत का दीपक लगेगा। जिस बाजोट पर गुरु यन्त्र या चित्र रखा हो, उस बाजोट पर श्वेत वस्त्र बिछाना है और सदगुरुदेव के चित्र के सामने आदित्य भैरव यन्त्र का निर्माण अष्टगन्ध से करना है और जहाँ पर लिखा है वहाँ पर घी का दीपक जलाना है। फिर उस यन्त्र और दीपक का पंचोपचार पूजन कर खीर का भोग लगाना है।

                                               
         यदि आप अपने परिवार के अन्य सदस्यों या अपने आत्मीयों को भी इसका प्रभाव देना चाहते हों तो यन्त्र के चारों ओर १ व्यक्ति के लिए १ दीपक घी का प्रज्वलित कर सकते हैं और स्वयं की ११ माला की समाप्ति पर प्रत्येक व्यक्ति की तरफ से ३-३ माला उनके नाम का संकल्प लेकर जाप कर सकते हैं।

                   माला गुरु रहस्य माला या स्फटिक, रुद्राक्ष या सफ़ेद हकीक की हो सकती है। अन्य मालाओं में मूँगा या शक्ति माला का चयन भी किया जा सकता है। पूर्ण एकाग्र भाव से निम्न मन्त्र की ११ (ग्यारह) माला जाप करना है -----

मन्त्र :---------

।। ॐ ह्रीं श्रीं आदित्य भैरवाय सौभाग्यं प्रसीद प्रसीद ह्रीं ह्रीं कृत्याय श्रीं ह्रीं ॐ।।

OM HEENG SHREEM AADITYA BHAIRVAAY SOUBHAGYAM PRASEED PRASEED HREENG HREENG KRITYAAY SHREEM HREENG OM.

          मन्त्र जाप के उपरान्त समस्त जाप एक आचमनी जल छोड़कर भगवान भैरवनाथजी को समर्पित कर दें  तत्पश्चात गुरु आरती सम्पन्न कर उस खीर के भोग को सपरिवार ग्रहण किया जा सकता है।

          इस प्रकार यह साधना विधान एक दिवसीय ही है, किन्तु आप चाहें तो इसे कम से कम ११ दिन तक सम्पन्न कर सकते हैं 

          नवीन संवत्सर की उपलब्धियों को आप अपने जीवन में स्वतः ही देखेंगे।

          इस प्रयोग के द्वारा आप सभी को अपने अभीष्ट की प्राप्ति हो और आपकी अशुभता एवं दुर्भाग्य की समाप्ति होकर न्यूनताओं का नाश हो। साथ ही नववर्ष आपके लिए मंगलमय हो। ऐसी ही मैं सद्गुरुदेव भगवान श्रीनिखिलेश्वरानन्दजी से प्रार्थना करता हूँ।

                इसी कामना  के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश ॥