बुधवार, 21 मार्च 2018

संकटमोचन हनुमानाष्टक प्रयोग


संकटमोचन हनुमानाष्टक प्रयोग


          हनुमान जयन्ती समीप ही है। यह इस बार ३१ मार्च २०१८ को आ रही है। आप सभी को हनुमान जयन्ती की अग्रिम रूप से बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ!

          हनुमानजी अपने आप में पूर्ण समर्थ, सक्षम और सर्व व्यापक देवता हैं। श्री तुलसीदासजी स्वयं हनुमानजी के ऋणी हैं --- श्रीराम दर्शन और रोग-मुक्ति दोनों के लिए। हनुमान के चरित्र में ऐसा कोई रहस्य अवश्य है, जिससे कि साधकों को तुरन्त सफलता प्राप्त हो जाती है। मैंने जीवन में यह अनुभव किया है कि किसी भी प्रकार की रोग-मुक्ति के लिए हनुमान साधना अपने आप में पूर्ण और श्रेष्ठ साधना है।

          मानसिक और शारीरिक दोनों ही प्रकार के रोगों को समाप्त करने के लिए, जीवन में बुद्धि, बल, साहस एवं निर्भयता प्राप्त करने के लिए हनुमान साधना से बढ़कर कोई साधना नहीं है। आज का युग चंचल प्रवृत्ति का युग है। हम मन, वाणी और कर्म से चंचल एवं अधीर हो गए हैं। हम में पौरुषता और कर्मठता होनी चाहिए। वह आज के युग में कहीं पर भी दिखाई नहीं देती, इसीलिए जीवन में संयम प्राप्त करने के लिए और सभी दृष्टियों से पूर्णता प्रदान करने के लिए हनुमान साधना सर्वश्रेष्ठ और अद्वितीय है।

     हनुमान जो अणिमा आदि समस्त सिद्धियों को जानने वाले हैं, जो योग के क्षेत्र में अपने आप में पूर्ण हैं, जो सेवा की दृष्टि से पूरे संसार के लिए उदाहरण हैं और जो पूर्ण धन, यश तथा वैभव प्रदान करने में समर्थ हैं -----

अष्ट सिद्धि नवनिधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।

          वास्तव में ही हनुमान चंचल चित्त को स्थिर बनाने में समर्थ हैं। योग के द्वारा जो शक्ति और साहस प्राप्त होता है, वह हनुमानजी के द्वारा ही सम्भव है।

          मैंने अपने जीवन में अनेकों बार अनुभव किया है कि आर्थिक उन्नति के लिए, नवनिधि, अष्ट सिद्धि प्राप्त करने के लिए श्री हनुमानजी से बढ़कर और कोई समर्थ साधना नहीं है। चाहे कितना ही ऋण हो, यदि आगे दिया हुआ प्रयोग एक बार भी सम्पन्न कर लिया जाए तो निश्चय ही व्यक्ति ऋण से कुछ ही समय में मुक्त हो जाता है।

          अनेक बार तो मुझे ऐसा लगा कि यह प्रयोग होते-होते कार्य की सिद्धि होने लग जाती है। जीवन में बाधाएँ तो आती ही रहती है। परन्तु पूरे संसार में जितने प्रकार की साधनाएँ हैं, उन समस्त साधनाओं में इस कार्य के लिए हनुमानजी की साधना सबसे श्रेष्ठ और प्रमुख है। मेरे अपने जीवन में जब-जब भी बाधाएँ आईं, मैंने इसी प्रयोग को सम्पन्न किया और सम्पन्न होते-होते ही वातावरण कुछ इस प्रकार से बदल गया कि जो व्यक्ति प्रतिकूल थे, जो अधिकारी बात ही सुनना पसन्द नहीं करते थे, वे ही व्यक्ति और अधिकारी अनुकूलता प्रदर्शित करने लगे तथा आगे बढ़कर कार्य कर देते हैं। रोग-मुक्ति के लिए तो यह प्रयोग अपने आप में अद्वितीय है। मेरा तो अनुभव अब यह बना है कि चाहे कितना ही भीषण रोग हो, चाहे भौतिक व दैविक बाधाएँ हों, इस प्रयोग को सम्पन्न करने से उनका समाधान अवश्य हो जाता है।

                 यह प्रयोग मुझे बहुत समय पहले एक योगी से प्राप्त हुआ था। यह प्रयोग दिखने में अत्यन्त सरल हैपरन्तु इसका प्रभाव अपने आप में अचूक है। साधक को चाहिए कि हनुमान जयन्ती या हनुमान अष्टमी या मंगलवार की रात्रि को इस प्रयोग को निष्ठापूर्वक सम्पन्न करें।

         मेरे सम्पर्क में ऐसे अनेक साधक आए हैंजो प्रत्येक मंगलवार की रात्रि को यह प्रयोग सम्पन्न करते हैं और मैंने अनुभव किया है कि उनके जीवन में कभी किसी प्रकार की बाधा व्याप्त नहीं होतीभूत-प्रेतपिशाच आदि का भय नहीं रहतागृह बाधा या पितृदोष अपने आप में ही समाप्त हो जाते हैं और बहुत तेजी से उसका ऋण भी समाप्त होने लग जाता है तथा उसकी निरन्तर आर्थिक उन्नति होने लगती है।

साधना प्रयोग विधान :-----------

          इस प्रयोग को हनुमान जयन्ती,  हनुमान अष्टमी अथवा किसी भी मंगलवार के दिन सम्पन्न किया जा सकता है। जिस दिन यह प्रयोग सम्पन्न करना हो, साधक स्वयं लाल धोती पहिनकर दक्षिण दिशा की ओर मुख कर लाल आसन पर बैठ जाएं और सामने किसी बाजोट (चौकी) पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर भगवान महावीर हनुमानजी का चित्र या हनुमान यन्त्र या विग्रह स्थापित कर दे। उसके बाद धूप-अगरबत्ती जला लें
     
         फिर साधक सामान्य गुरुपूजन करे और गुरुमन्त्र का कम से कम एक माला जाप करे। इसके बाद साधक सदगुरुदेवजी से संकटमोचन हनुमानाष्टक प्रयोग सम्पन्न करने की अनुमति लें और उनसे साधना की पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करे।

         फिर साधक भगवान गणपतिजी का सामान्य पूजन करे और " वक्रतुण्डाय हुम्" मन्त्र का एक माला जाप करे। तत्पश्चात साधक भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करे।

                इसके बाद साधक को चाहिए कि वह संकल्प अवश्य लें। संकल्प में अपनी जो भी समस्या होजिस प्रकार की भी बाधा हो, जिसके निवारण के लिए आप यह प्रयोग कर रहे हैं, उसका उल्लेख अवश्य करें और उसकी निवृत्ति के लिए हनुमानजी से प्रार्थना करें

          इसके उपरान्त हनुमान यन्त्र या विग्रह या चित्र का सामान्य पूजन करें और लाल रंग के पुष्प चढ़ाएं। किसी भी मिष्ठान्न का भोग  लगाएं इसके बाद चित्र या विग्रह के सामने पाँच दीपक तेल के लगावें, उनमें किसी भी प्रकार के तेल का प्रयोग किया जा सकता है और सामने एक ताँबे के लोटे में पानी भरकर रख दें। फिर हनुमानजी का ध्यान करें -----

ॐ मनोजवं मारूततुल्य वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
     वातात्मजं वानर यूथ मुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये।।

          ध्यान सम्पन्न करने के बाद एक बार पुनः हनुमानजी के सामने अपनी समस्या का निवेदन करें और फिर निम्न प्रकार से अष्टक का उच्चारण करें।

          कार्यसिद्धि के लिए एक ही रात्रि में १०८ बार संकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ होना आवश्यक है।

संकटमोचन हनुमानाष्टक

॥ मत्तगयन्द ॥

बाल समय रबि भक्षी लियो तब तीनहुँ लोक भयो अँधियारो।
ताहि सों त्रास भयो जग को यह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आनि करी बिनती तब छाँड़ि दियो रबि कष्ट निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥१॥

बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि साप दियो तब चाहिय कौन बिचार बिचारो।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु सो तुम दास के सोक निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥२॥

अंगद के संग लेन गए सिय खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो।
हेरी थके तट सिन्धु सबै तब लाए सिया सुधि प्राण उबारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥३॥

रावण त्रास दई सिय को सब राक्षसी सों कही सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु जाए महा रजनीचर मारो।
चाहत सीय असोक सों आगि सु दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥४॥

बान लग्यो उर लछिमन के तब प्राण तजे सुत रावन मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो।
आनि सजीवन हाथ दिए तब लछिमन के तुम प्रान उबारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥५॥

रावन जुद्ध अजान कियो तब नाग कि फाँस सबै सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल मोह भयो यह संकट भारो।
आनि खगेस तबै हनुमान जु बंधन काटि सुत्रास निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥६॥

बंधु समेत जबै अहिरावन लै रघुनाथ पताल सिधारो।
देबिहिं पूजि भलि विधि सों बलि देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो।
जाये सहाए भयो तब ही अहिरावन सैन्य समेत संहारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥७॥

काज किये बड़ देवन के तुम बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को जो तुमसे नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु जो कछु संकट होए हमारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥८॥

दोहा

लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
वज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर॥

          पाठ सम्पन्न होने के बाद एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समस्त जाप एवं पूजन समर्पित कर दें। लोटे में जो जल रखा हुआ है, वह जल घर में छिड़क दें या घर में किसी को रोग हो तो उसे वह जल पिला दें।

          यह निश्चित समझे कि दूसरे दिन सुबह से ही अनुकूलता प्रारम्भ हो जाती है, किसी भी प्रकार का संकट निश्चय ही समाप्त हो जाता है।

          आपकी साधना सफल हो और आपकी मनोकामना पूर्ण हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।।

रविवार, 11 मार्च 2018

सर्व दोषनाशक दुर्गा साधना

सर्व दोषनाशक दुर्गा साधना


                    वासन्तीय (चैत्र) नवरात्रि पर्व समीप ही है। यह १८ मार्च २०१८ से आरम्भ हो रहा है। इसी दिन से हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत २०७५ भी शुरू हो रहा है। आप सभी को हिन्दू नववर्ष एवं चैत्र नवरात्रि की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          भगवती दुर्गा का रूप अपने आप में साधकों के मध्य हमेशा से ही अत्याधिक प्रचलित रहा है। बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है देवी दुर्गा। दुर्गा के कई रूपों की साधना तन्त्र ग्रन्थों में निहित है। देवी नित्य कल्याणमयी है तथा अपने साधकों पर अपनी आत्मीय दृष्टि सदैव रखती है।

                 जो दुर्गति का नाश करती हैं, वे ही भगवती दुर्गा है - इस बात का ज्ञान प्रत्येक साधक को है, किन्तु इस ज्ञान के उपरान्त भी क्यों नहीं सहज रूप से भगवती दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है। इसका भी रहस्य "दुर्गा" शब्द के विवेचन से मिल जाता है। "दुःखेन अष्टांगयोगकर्मोपासनारूपेण क्लेशेन गम्यते प्राप्यते या सा दुर्गा" अर्थात जो अष्टांगयोग, कर्म और उपासना रूपी दुःसाध्य साधन से प्राप्त होती है, वे ही भगवती दुर्गा है।

          दूसरी ओर यह भी नितान्त सत्य और आवश्यक है कि साधक अपने जीवन में दुर्गा की साधना मात्र एक साधना के रूप में ही नहीं वरन् प्रथम साधना के रूप में सिद्धिपूर्वक कर ले, क्योंकि जब तक भगवती दुर्गा की सिद्धि नहीं प्राप्त हो जाती, तब तक न तो जीवन के दुःख, तनाव, दारिद्रय, वैमनस्य आदि दुर्गतियों की समाप्ति होती है, न ही देवी साधना में प्रवेश का अधिकार मिल पाता है।

          इन्हीं दो सर्वथा विपरीत विचारों अर्थात भगवती दुर्गा की जीवन में परम आवश्यकता एवं भगवती दुर्गा की दुर्लभता का सामंजस्य करने की युक्ति ही नवरात्रि है और वह भी विशेष रूप से चैत्र नवरात्रि, क्योंकि इसी अवसर पर शिव-शक्ति के संयोग से वातावरण की चैतन्यता सामान्य दिनों से कुछ हटकर होती है। वसन्त पंचमी से प्रारम्भ होकर चैत्र नवरात्रि तक का सारा काल शिव-शक्ति के मिलन और आनन्द का पर्व ही है, जिसके ठीक मध्य में महाशिवरात्रि जैसा महापर्व आता है।

         साधकों ने इस प्रकार की अनेक कथाएँ पढ़ी-सुनी होंगी कि किसी अवसर विशेष पर भगवान शिव एवं माँ पार्वतीजी विचरण को निकले और माँ पार्वतीजी ने करूणार्द्र होकर भगवान शिव  से एक भक्त की सहायता करने के लिए प्रार्थना की तथा भगवान शिव को उसके भाग्य को विपरीत जाकर भी वैसा घटित भी करना पड़ा।

          ठीक इसी प्रकार भगवान शिव भी करूणार्द्र होकर भगवती से किसी असहाय, दुर्बल तथा दीन-हीन की मुक्ति की भी याचना करते ही हैं। भगवती दुर्गा के विषय में भगवान शिव की ही करूणा एवं युक्तियों से साधक का कल्याण हो पाता है।

         साधकों को एक सहज जिज्ञासा उत्पन्न हो सकती हैं कि माँ तो प्रत्येक दशा में करूणामय ही रहने वाली होती है, फिर उनकी दुर्गा स्वरूप में आराधना इतनी दुर्गम क्यों है? सहज साध्य क्यों नहीं है?

          इसका उत्तर भी स्पष्ट है कि भगवती दुर्गा अपने आप में तप एवं उग्रता की प्रचण्डमूर्ति है, जो भावगम्य कम, साधनागम्य अधिक है। इसका अत्यन्त सूक्ष्म रहस्य यह है कि भगवती दुर्गा अपने साधक को अपने सदृश ही बना देना चाहती है, क्योंकि जो जितना अधिक इष्टमय होगा, वह उतना ही अधिक अपने इष्ट के गुणों एवं तेजस्विता को ग्रहण कर पाएगा।

          साधना कोई जटिल रहस्य नहीं होता। जो जितना अधिक देवतामय या देवीमय बनता जाता है, वह साधना में उतना ही अधिक सफल होता जाता है।

          भगवती की साधना करना जीवन का एक अत्यधिक उच्च सोपान है। व्यक्ति अपने कर्म दोषों से जब तक मुक्त नहीं होता, तब तक उन्नति की गति मन्द रूप से ही चलती है, चाहे वह भौतिक क्षेत्र हो या आध्यात्मिक क्षेत्र हो। भौतिक रूप में चाहे हम कर्मफलों को प्राप्त कर दोषों का निवारण एक बार कर भी ले, लेकिन मानसिक दोषों तथा मन में जो उन दोषों का अंश रह गया है, उसका शमन भी उतना ही ज़रुरी है जितना भौतिक दोषों का निवारण।

          कई बार व्यक्ति अपने अत्यधिक परिश्रम के बाद भी सफलता को प्राप्त नहीं कर पाता है या फिर कोई न कोई बाधा व्यक्ति के सामने आ जाती है या फिर परिवारजनों से अचानक ही अनबन होती रहती है। इन सब के पीछे कहीं न कहीं व्यक्ति के वे दोष शामिल होते हैं, जो कि पाप कर्मों के आचरण से उन पर हावी हो जाते हैं, चाहे वह इस जन्म से सम्बन्धित हो या पूर्व जन्म के सन्दर्भ में।

          कर्म की गति न्यारी है, लेकिन साधना का भी अपने आप में एक विशेष महत्व है। साधना के माध्यम से हम अपने दोषों की समाप्ति कर सकते हैं, निवृति कर सकते हैं। इस प्रकार की साधनाओं में माँ भगवती की साधनाएँ आधार रूप रही है। भगवती की साधना मातृ स्वरुप में ही ज्यादातर की जाती है।

           इस महत्वपूर्ण साधना को सम्पन्न करने पर साधक की भौतिक तथा आध्यात्मिक गति मन्द से तीव्र हो जाती है, समस्त बाधाओं का निराकारण होता है तथा व्यक्ति अपने दोषों से मुक्त होकर निर्मल चित्तयुक्त बन जाता है। आगे के सभी कार्यों में देवी साधक की सहायता करती है तथा साधक का सतत् कल्याण होता रहता है।

साधना विधान :-----------

           इस साधना को करने के लिए साधक के पास शुद्ध पारद दुर्गा विग्रह हो तो ज्यादा अच्छा है, लेकिन यह सम्भव नहीं हो तो साधक को देवी दुर्गा की तस्वीर या मूर्ति को अपने सामने स्थापित करना चाहिए।

           इस साधना को नवरात्रि काल में सम्पन्न किया जाए तो अधिक उचित रहता है। फिर भी साधक इस साधना को किसी रविवार से शुरू कर सकता है। रात्रिकाल में ११ बजे के बाद इस साधना को शुरू करना चाहिए। साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल वस्त्र पहन लें और लाल आसन पर बैठ जाएं। साधक का मुख उत्तर दिशा की ओर रहे। सामने बाजोट या चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर पारद दुर्गा विग्रह अथवा माँ दुर्गा का चित्र तथा गुरु चित्र या गुरु यन्त्र स्थापित कर दे।

          सर्वप्रथम साधक पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का ध्यान करके सामान्य पूजन सम्पन्न करे और गुरुमन्त्र का चार माला जाप करे। फिर साधक सद्गुरुदेवजी से सर्व दोषनाशक दुर्गा साधना सम्पन्न करने हेतु मानसिक रूप से लें और उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए निवेदन करें।

          तत्पश्चात साधक भगवान गणपतिजी का स्मरण करके एक माला किसी भी गणपति मन्त्र का जाप करें और उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।

          तदुपरान्त साधक भगवान भैरवनाथजी का स्मरण करके किसी भी भैरव मन्त्र का एक माला जाप करे और उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

         इसके बाद साधक को साधना के पहले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए।

         संकल्प लेने के बाद साधक माँ भगवती दुर्गा देवी का सामान्य पूजन करे तथा नैवेद्य में कोई भी मिष्ठान्न अर्पित करें।

         संक्षिप्त पूजन के उपरान्त साधक निम्न मन्त्र की मूँगा माला से २४ माला जाप करे, साधक चाहे तो ५४ माला भी जाप कर सकता है।

मूल मन्त्र :-----------

          ।। ॐ दुं सर्वदोष शमनाय सिंहवासिनी नमः ।।

OM DUM SARV DOSH SHAMANAAY SINHAVAASINI NAMAH.

          मन्त्र जाप के उपरान्त समस्त जाप एक आचमनी जल छोड़कर माँ भगवती दुर्गा को समर्पित कर दें।

          यह साधना क्रम निरन्तर ११ दिनों तक रहे। नवरात्रि के दिनों में यह विधान नवमी तिथि तक सम्पन्न करे। सम्भव हो तो अन्तिम दिन साधक को मन्त्र जाप के बाद शुद्ध घी की १०८ आहुति इसी मन्त्र से अग्नि में प्रदान करे।

          साधना काल में कमल की सुगन्ध आने लगती है तथा सौभाग्यशाली साधकों को देवी बिम्बात्मक रूप से दर्शन भी देती है। साधना के दिनों में ही उत्तरोत्तर साधक का चित्त निर्मलता की ओर अग्रसर होता रहता है, जिसे साधक स्पष्ट रूप से अनुभव कर पाएगा।

                  आपकी साधना सफल हो और यह नवरात्रि आपके लिए मंगलमय हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

                 इसी कामना के साथ


ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।

गुरुवार, 8 मार्च 2018

तान्त्रोक्त नवदुर्गा साधना विधान

तान्त्रोक्त नवदुर्गा साधना विधान



                   वासन्तीय (चैत्र) नवरात्रि पर्व समीप ही है। यह १८ मार्च २०१८ से आरम्भ हो रहा है। इसी दिन से हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत २०७५ शुरू हो रहा है। आप सभी को हिन्दू नववर्ष एवं चैत्र नवरात्रि की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          नवरात्र चार प्रकार के होते हैं, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ होने वाले बासन्तीय नवरात्र शयन कहलाते हैं। आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरम्भ होने वाले शारदीय नवरात्र बोधन कहलाते हैं। इनके अतिरिक्त दो गुप्त नवरात्र भी होते हैं, प्रथम आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा से तथा द्वितीय माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होते हैं। चारों ही नवरात्रों में भगवती दुर्गा की आराधना होती है।

          श्रीमद्भागवत् पुराण में भी उल्लेख है कि भगवान श्रीराम को भी रावण को पराजित करने के लिए माँ भगवती की शरण में जाना ही पड़ा था। "नवशक्तिभिः संयुक्त नवरात्रं तदुच्यते" अर्थात देवी की शक्ति इस अवसर पर एक महाशक्ति का रूप धारण करती है, इसलिए इसे नवरात्रि कहते हैं। नवरात्रि में नवीन ऊर्जा साधक साधना से ही प्राप्त करता है।

          नवरात्रों में माँ भगवती दुर्गा देवी के पृथक-पृथक रूपों की पृथक-पृथक प्रकार से पूजा करने से साधक को पूर्ण फल प्राप्त होता है। देवी की नौ मूर्तियाँ हैं, जिन्हें नव दुर्गा कहते हैं। इनके पृथक-पृथक नाम हैं, जिनका उल्लेख विभिन्न ग्रन्थों में मिलता है तथा जिनकी पूजा-अर्चना करने का विधान भी विभिन्न विद्वानों व महात्माओं ने उल्लेखित किया है।

           नवरात्रि काल में साधारणतः नवदुर्गा  पूजा व साधनाएँ साधकजन किया करते हैं और उन्हीं नव दुर्गाओं के मन्त्र भी जपा करते हैं। किन्तु हम तान्त्रिक हैं और तान्त्रिक साधनाएँ ही करते हैं वैदिक साधना नहीं, क्योंकि भगवान शिव ने भी यही कहा है कि  कलियुग में केवल तान्त्रिक मन्त्र और साधनाएँ ही पूर्ण फल प्रदान करने में सक्षम होंगे।

          और इसी कारण ही अब की बार नवरात्रि में नवदुर्गाओं की जो तत्व है, उसी तत्व स्वरूपी महामाया शक्ति की उन विशिष्ट शक्तिओं की ही पूजा व जाप मन्त्र प्रस्तुत कर रहा हूँ।

          और यह सभी मन्त्र नवदुर्गा के मन्त्र से सर्वथा भिन्न है, क्योंकि मुझे लगता है कि नवदुर्गा के अर्थ को समझ कर अगर उसके सार तत्व को ही साधा जाए तो उत्तम होगा। क्योंकि तन्त्र यह कहता है कि यही वो नवनिधि है, जिसका उल्लेख शास्त्रों में आता है। माँ भगवती की कृपा से आप सब भी नवनिधि सम्पन्न हों, यही कामना करते हुए आप के सामने यह पोस्ट को रख रहा हूँ।

          इन शक्तिओं की मन्त्र साधना आप नवरात्रि के दौरान कर सकते हैं।

साधना विधान :----------

          यह साधना आप किसी भी नवरात्रि के प्रथम दिवस से आरम्भ कर सकते हैं। रात्रि काल में ९ बजे के बाद साधना शुरु की जा सकती है।

          साधक को चाहिए कि वह स्नान करके लाल वस्त्र धारण कर ले और लाल आसन पर उत्तर दिशा की ओर मुँह करके बैठ जाए। अब किसी बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी एवं माँ भगवती दुर्गा का चित्र स्थापित कर दें। चित्र के सामने किसी थाली में नौ दीपकों में शुद्ध घी डालकर स्थापित कर दें। इसके साथ ही धूप-अगरबत्ती भी प्रज्ज्वलित कर दें।

          सर्वप्रथम पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का संक्षिप्त पूजन करके गुरुमन्त्र की चार माला करें। फिर सद्गुरुदेवजी से तान्त्रोक्त नवदुर्गा साधना सम्पन्न करने की आज्ञा लेकर उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए निवेदन करें।

          इसके बाद भगवान गणपतिजी का स्मरण करके किसी भी गणपति मन्त्र का एक माला जाप करें। फिर भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          तदुपरान्त भगवान भैरवनाथजी का स्मरण करके "ॐ भं भैरवाय नमः" मन्त्र की एक माला जाप करें। फिर भगवान भैरवनाथजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          इसके बाद साधक को चाहिए कि वह साधना के पहले दिन संकल्प अवश्य लें। फिर प्रतिदिन संकल्प लेना आवश्यक नहीं है।

          अब थाली में स्थापित उन नौ दीपकों को माँ नवदुर्गा का स्वरूप मान कर सामान्य पूजन करें और यथाशक्ति भोग अर्पित करें।

          इसके बाद नवरात्रि के पहले दिन माँ भगवती शैलपुत्री के निम्नलिखित मन्त्र का रुद्राक्ष अथवा लाल चन्दन माला से २१ माला जाप करें। माँ शैलपुत्री, जो  त्रैलोक्य मोहन कार्य अर्थात तीनों लोकों को मोहित कर देने वाली शक्ति है -----

मन्त्र :----------

।। ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं सर्वजन मनोहारिणी नमः स्वाहा ।।

AYIEM HREEM KLEEM SHREEM SARVAJAN MANOHAARINNI NAMAH SWAAHA.

          २१ माला जाप के उपरान्त समस्त जाप एक आचमनी जल छोड़कर माँ भगवती नवदुर्गा को समर्पित कर दें।

          नवरात्रि के दूसरे दिन ऊपर बताई गई विधि अनुसार गुरुपूजन, गणपति पूजन, भैरव पूजन एवं नवदुर्गा पूजन सम्पन्न करके माँ भगवती ब्रह्मचारिणी के निम्न मन्त्र की उसी माला (रुद्राक्ष या लाल चन्दन) से २१ माला जाप करें। माँ ब्रह्मचारिणी, जो समस्त इच्छाओं को पूर्ण करने वाली शक्ति है -----

मन्त्र :----------

।। ऐं क्लीं सौः कामेश्वरीच्छा कामफल प्रदे देवी नमः स्वाहा ।।

AYIEM KLEEM SOUH KAAMESHWARI ICHCHHA KAAMPHAL PRADE DEVI NAMAH SWAHA.

          २१ माला जाप के पश्चात समस्त जाप एक आचमनी जल छोड़कर माँ भगवती नवदुर्गा को समर्पित कर दें।

          नवरात्रि के तीसरे दिन ऊपर बताई गई विधि अनुसार गुरुपूजन, गणपति पूजन, भैरव पूजन एवं नवदुर्गा पूजन सम्पन्न करके माँ भगवती चन्द्रघण्टा के नीचे दिए गए मन्त्र की उसी माला (रुद्राक्ष या लाल चन्दन) से २१ माला जाप करें। माँ चन्द्रघण्टा, जो समस्त प्रकार के पापों का हनन करने वाली शक्ति है -----

मन्त्र :----------

।। श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं सर्वपापसंहारिके देवी नमः स्वाहा ।।

SHREEM KLEEM HREEM AYIEM SARVPAAP SANHAARIKE DEVI NAMAH SWAAHA.

          २१ माला जाप के बाद समस्त जाप एक आचमनी जल छोड़कर माँ भगवती नवदुर्गा को समर्पित कर दें।

          नवरात्रि के चौथे दिन ऊपर बताई गई विधि अनुसार गुरुपूजन, गणपति पूजन, भैरव पूजन एवं नवदुर्गा पूजन सम्पन्न करके माँ भगवती कूष्माण्डा के नीचे दिए गए मन्त्र की उसी माला (रुद्राक्ष या लाल चन्दन) से २१ माला जाप करें। माँ कूष्माण्डा, जो सर्व सौभाग्य प्रदान करने वाली शक्ति है -----

मन्त्र :----------

।। ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौः सर्वसौभाग्य प्रदायिनी देवी नमः स्वाहा ।।

AYIEM HREEM SHREEM KLEEM SOUH SARVSOUBHAAGY PRADAAYINI DEVI NAMAH SWAAHA.

          २१ माला जाप के उपरान्त समस्त जाप एक आचमनी जल छोड़कर माँ भगवती नवदुर्गा को समर्पित कर दें।

          नवरात्रि के पाँचवें दिन ऊपर बताई गई विधि अनुसार गुरुपूजन, गणपति पूजन, भैरव पूजन एवं नवदुर्गा पूजन सम्पन्न करके माँ भगवती स्कन्दमाता के निम्नलिखित मन्त्र की उसी माला (रुद्राक्ष या लाल चन्दन) से २१ माला जाप करें। माँ स्कन्दमाता, जो समस्त प्रकार के कार्यों को सिद्ध करने वाली शक्ति है, चाहे वो शान्ति कर्म हो या मारण कर्म -----

मन्त्र :----------

।। ऐं ईं हौं सः कामत्रिपुराय नमः स्वाहा ।।

AYIEM EEM HOUM SAH KAAM TRIPURAAY NAMAH SWAAHA.

          २१ माला जाप के पश्चात समस्त जाप एक आचमनी जल छोड़कर माँ भगवती नवदुर्गा को समर्पित कर दें।

          नवरात्रि के छठवें दिन ऊपर बताई गई विधि अनुसार गुरुपूजन, गणपति पूजन, भैरव पूजन एवं नवदुर्गा पूजन सम्पन्न करके माँ भगवती कात्यायनी के निम्न मन्त्र की उसी माला (रुद्राक्ष या लाल चन्दन) से २१ माला जाप करें। माँ कात्यायनी, जो सर्व प्रकार से साधक की रक्षा करने वाली शक्ति है -----

मन्त्र :----------

।। ॐ ह्रीं महायक्षीश्वरी रक्षय रक्षय मम शत्रुणाम भक्षय भक्षय स्वाहा ।।

OM HREEM MAHAAYAKSHEESHWARI RAKSHAY RAKSHAY MAM SHATRUNNAAM BHAKSHAY BHAKSHAY SWAAHA.

          २१ माला जाप के बाद समस्त जाप एक आचमनी जल छोड़कर माँ भगवती नवदुर्गा को समर्पित कर दें।

          नवरात्रि के सातवें दिन ऊपर बताई गई विधि अनुसार गुरुपूजन, गणपति पूजन, भैरव पूजन एवं नवदुर्गा पूजन सम्पन्न करके माँ भगवती कालरात्रि के नीचे दिए गए मन्त्र की उसी माला (रुद्राक्ष या लाल चन्दन) से २१ माला जाप करें। माँ कालरात्रि, जो समस्त प्रकार के रोगों का नाश करने वाली शक्ति है -----

मन्त्र :----------

।। ॐ कालि कालि कालरात्रिके मम सर्व रोगान छिन्धि छिन्धि  भिन्दी भिन्दी भक्षय भक्षय नमः स्वाहा ।।

OM KAALI KAALI KAALRAATRIKE MAM SARVROGAAN CHHINDI CHHINDI BHINDI BHINDI BHAKSHAY BHAKSHAY NAMAH SWAAHA.

          २१ माला जाप के उपरान्त समस्त जाप एक आचमनी जल छोड़कर माँ भगवती नवदुर्गा को समर्पित कर दें।

          नवरात्रि के आठवें दिन ऊपर बताई गई विधि अनुसार गुरुपूजन, गणपति पूजन, भैरव पूजन एवं नवदुर्गा पूजन सम्पन्न करके माँ भगवती महागौरी के निम्नलिखित मन्त्र की उसी माला (रुद्राक्ष या लाल चन्दन) से २१ माला जाप करें। माँ महागौरी, जो समस्त प्रकार के आनन्द को देने वाली शक्ति है -----

मन्त्र :----------

।। ह्रीं क्लीं ॐ सर्व आनन्द प्रदायिने  नित्य मदद्रवे स्वाहा ।।

HREEM KLEEM OM SARV AANAND PRADAAYINE NITYA MADDRAVE SWAAHA.

          २१ माला जाप के पश्चात समस्त जाप एक आचमनी जल छोड़कर माँ भगवती नवदुर्गा को समर्पित कर दें।

          नवरात्रि के नौवें दिन ऊपर बताई गई विधि अनुसार गुरुपूजन, गणपति पूजन, भैरव पूजन एवं नवदुर्गा पूजन सम्पन्न करके माँ भगवती सिद्धिदात्री के निम्न मन्त्र की उसी माला (रुद्राक्ष या लाल चन्दन) से २१ माला जाप करें। माँ सिद्धिदात्री, जो समस्त प्रकार की सिद्धि प्रदान करने वाली देवी है -----

मन्त्र :----------

।। स्त्रीं हूँ  फट क्लीं ऐं तुरे तारे कुल्ले कुरु कुल्ले नमः स्वाहा ।।

STREEM HOOM PHAT KLEEM AYIEM TURE TAARE KULLE KURU KULLE NAMAH SWAAHA.

          २१ माला जाप के बाद समस्त जाप एक आचमनी जल छोड़कर माँ भगवती नवदुर्गा को समर्पित कर दें।

          साधना काल में साधक के गले में रुद्राक्ष होना अनिवार्य है। नौ दिनों तक लगातार इन्हीं दीपकों को प्रज्ज्वलित कर साधना करना होता है। यह दीपक बदलना नहीं है, बस बत्ती छोटी हो जाय तो उसे बदल देना चाहिए। इस प्रकार एक-एक करके नौ दिनों में नौ मन्त्रों का जाप पूरा हो जाता है।

          इसके बाद दशमी को सभी सामग्री, दीपक, फोटो को विसर्जन कर दें, माला को नहीं। किसी कुमारी कन्या को भोजन करवाकर उनसे आशीर्वाद लें या फिर किसी अनाथ आश्रम में पैसे दान कर दें। अगर आप किसी जरुरतमन्द को भी दान कर देते हैं तो भी विधान पूर्ण माना जाएगा।

          आपकी साधना सफल हो और यह नवरात्रि आपके लिए मंगलमय हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।।