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सोमवार, 9 अक्टूबर 2017

पद्मावती साधना

पद्मावती साधना


          पंंच दिवसीय दीपावली महापर्व समीप ही हैै। इस वर्ष १७ अक्टूबर २०१७ धन तेेेरस सेे इसका आरम्भ हो रहा है और २१ अक्टूबर २०१७ को भाई दूूज केे दिन इसका समापन होगा। आप सभी को दीपावली महापर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

         तन्त्र कोई क्रिया धर्म या पद्धति नहीं है, अपितु व्यवस्थित रूप से मन्त्र साधना और सिद्धि प्राप्त करने का अधिकार है। ब्राह्मण ग्रन्थों में तन्त्र जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही महत्वपूर्ण बौद्ध और जैन ग्रन्थों में भी है, बल्कि जैन धर्म में तो तन्त्र को प्रमुखता दी गई है।

          जैन ग्रन्थों के अध्ययन से पता चलता है कि मानसिक शान्ति एवं आत्मा की पवित्रता पर जितना ज़ोर दिया है, उतना ही तन्त्र साधना पर भी महत्व प्रदर्शित किया है। श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही सम्प्रदायों तन्त्रात्मक मन्त्र पद्धति को विशेष महत्व दिया है।

          पद्मावती साधना मूलतः जैन साधना है, यद्यपि इसका उल्लेख "मन्त्र महार्णव" एवं अन्य तान्त्रिक-मान्त्रिक ग्रन्थों में भी आया है, परन्तु इसका सांगोपांग विस्तार से विवेचन जैन ग्रन्थों में ही पाया जाता है। जैन समाज में दीपावली की रात्रि को देवी पद्मावती की साधना-पूजन तो प्रत्येक व्यक्ति करता ही है।

          वस्तुतः रहस्य की बात यही है कि पद्मावती साधना एवं पूजन पद्धति के प्रभाव से ही आज जैन सम्प्रदाय के लोग समाज में उच्च पदों पर आसीन है अथवा बड़े-बड़े उद्योगों व व्यापारों में संलग्न हैं। प्रतिष्ठा और सम्पदा तो जैसे इन्हें विरासत से ही मिलती है।

          जैन धर्म मूलतः अहिंसा, शान्ति, प्रेम, सदाचार और आध्यात्मिक ज्ञान का प्रेरक धर्म रहा है, परन्तु इसके उपरान्त भी पद्मावती साधना के महत्व तो जैन मुनियों ने मुक्त कण्ठ से स्वीकारा है तथा इसके बारे में कहा है कि पद्मावती साधना तो अत्यन्त उच्चकोटि की साधना है, जिसे प्रत्येक गृहस्थ को सम्पन्न करनी ही चाहिए। चाहे वह किसी भी जाति की हो, धर्म का हो, देवी की कृपा तो उसे प्राप्त होती ही है।

          एक उच्चकोटि के जैन उद्योगपति से बातचीत करने के प्रसंग में उन्होंने स्पष्ट किया कि दीपावली की रात्रि को हम लक्ष्मी पूजन अवश्य करते हैं और पण्डित बुलाते भी हैं, परन्तु पण्डितजी के जाने के बाद अर्द्ध रात्रि को बिल्कुल गोपनीय ढंग से पद्मावती साधना और पद्मावती पूजन विधि-विधान के साथ करते हैं तथा इसी साधना के बल पर हमारा सारा समाज इतना अधिक समृद्ध एवं व्यापारिक दृष्टि से पूर्ण है।

          इस साधना को कोई भी जाति या वर्ग का साधक सम्पन्न कर सकता है, परन्तु मैंने अनुभव किया है कि व्यापार वृद्धि, आर्थिक उन्नति एवं सभी दृष्टियों से पूर्णता प्राप्त करने में इससे श्रेष्ठ न तो अन्य कोई मन्त्र है और न कोई साधना विधि ही। इसका प्रभाव और चमत्कार तुरन्त प्राप्त होता है एवं इससे शीघ्र सिद्धि अनुभव होती है।

          जिन लोगों का व्यापार गति नहीं पकड़ पाता है अथवा किसी भी कारण से व्यापार में हानि होने लगती है तो ऐसे लोगों  को माँ भगवती पद्मावती की साधना करनी चाहिए।

साधना विधान :-----------

          माँ पद्मावती के किसी भी मन्त्र में मुख्य रूप से मृत्तिका (मिट्टी) के मनकों का प्रयोग होता है। अतः दीपावली से पहले ही चिकनी मिट्टी को गीला करके उसकी ११९ गोलियाँ बनाकर सुखा लें।

          दीपावली की रात्रि में स्नान आदि से निवृत्त होकर सफ़ेद वस्त्र धारण कर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके सफ़ेद आसन पर बैठ जाएं। अपने सामने सफ़ेद वस्त्र से ढँके बाजोट पर गुरु चित्र, गुरु यन्त्र या गुरु चरण पादुका, जो भी आपके पास उपलब्ध हो, उसे स्थापित करें। इसके साथ ही चित्र, यन्त्र या पादुका समक्ष बाजोट पर ही जौ की एक ढेरी बनाकर उस पर एक शुद्ध घी का दीपक जलाएं। फिर धूप-अगरबत्ती जलाकर संक्षिप्त गुरुपूजन सम्पन्न करें।
          इसके बाद गुरुमन्त्र मन्त्र की कम से कम चार माला जाप करें और पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी से पद्मावती साधना सम्पन्न करने की अनुमति लेकर उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          तदुपरान्त सामान्य गणपति पूजन करके एक माला किसी भी गणपति मन्त्र का जाप करें। फिर भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          इसके पश्चात भगवान भैरवनाथजी का स्मरण करके एक माला किसी भी भैरव मन्त्र का जाप करें और उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          तत्पश्चात साधक को साधना के पहले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए। इसके बाद हर रोज़ संकल्प लेने की आवश्यकता नहीं होती है।

          आपने जौ की ढेरी पर जिस दीपक की स्थापना की है, उसको माँ भगवती पद्मावती मानकर सामान्य पूजन करें। तीव्र सुगन्ध की धूप-अगरबत्ती जलाकर एक रूई के फाहे पर कमल का इत्र डालकर अर्पित करें। साथ ही कोई भी मिठाई भोग में अर्पित करें।

           फिर साधक को चाहिए कि वह नीचे लिखे मन्त्र का जाप आरम्भ करें -----

मन्त्र :----------

।। ॐ नमो पद्मावती पद्मनेत्रा वज्र वज्रांकुशी प्रत्यक्षं भवति ।।

OM NAMO PADMAVATI PADMANETRA VAJRA VAJRANKUSHI PRATYAKSHAM BHAVATI.

          इस मन्त्र का कम से कम ११ माला जाप नित्य करना है। जाप के उपरान्त एक आचमनी जल छोड़कर सम्पूर्ण जाप माँ भगवती पद्मावतीजी को समर्पित कर दें।

          यह क्रम नियमित रूप से ४३ दिन तक नित्य सम्पन्न करना है। ४३ दिन के बाद भी आप अपनी सामर्थ्य के अनुसार जाप कर सकते हैं।

          इस साधना में ऊपर बताई गई विधि अनुसार बनाई गई मिट्टी की गोलियों का उपयोग मन्त्र जाप की संख्या स्मरण रखने के लिए किया जाएगा। इसके लिए आप एक जगह पर १०८ गोलियां और दूसरी जगह पर ११ गोलियां रख लें। जब आप एक बार १०८ की संख्या में मन्त्र जाप कर लें तो ११ गोलियों में से एक गोली हटा दें, जिससे आपको याद रहे कि आपने एक माला जाप कर लिया है। फिर आप पुनः उन्हीं १०८ गोलियों से मन्त्र जाप करें। इस प्रकार आप नित्य ११ माला जाप करने में गोलियों का प्रयोग कर सकते हैं।

          इस प्रकार आप यदि ४३ दिन तक इस मन्त्र का जाप सम्पन्न कर लेंगे तो फिर आपके समस्त कार्य सिद्ध होते चले जाएंगे।

          इस मन्त्र प्रयोग से आप कुछ ही समय में अपने व्यापार में परिवर्तन अनुभव करेंगे। जिस गति से आपका व्यापार उन्नति करेगा, उसके बारे में आपने स्वप्न में भी नहीं सोचा होगा। जिस कामना से आपने यह प्रयोग सम्पन्न किया है, माँ भगवती पद्मावतीजी की कृपा से उसके प्रत्यक्ष परिणाम मिलने लगेंगे।

          यह दीपावली पर्व आपके लिए मंगलमय हो, सुख-समृद्धि दायक हो और हर क्षेत्र में उन्नति प्रदायक हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।

रविवार, 8 अक्टूबर 2017

व्यापार वृद्धिकारक तन्त्र-बन्धन मुक्ति प्रयोग

व्यापार वृद्धिकारक तन्त्र-बन्धन मुक्ति प्रयोग


          दीपावली महापर्व समीप ही है। आप सभी को पंच दिवसीय दीपावली महापर्व की अग्रिम रूप से बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ!

          जिस प्रकार देवता हैं तो दानव भी हैं, अच्छाई है तो बुराई भी है, मनुष्य हैं तो राक्षस भी हैं, प्रत्यक्ष है तो अप्रत्यक्ष भी है, उसी प्रकार षटकर्मों अर्थात आकर्षण, वशीकरण, उच्चाटन, स्तम्भन, विद्वेषण और मारण आदि में अच्छे कर्म भी हैं तो बुरे भी, जिन्हें मनुष्य अपने स्वार्थ हेतु उपयोग में लाता है और अच्छे-बुरे की सीमा को भी लाँघ जाता है। इन षटकर्मों में स्तम्भन ही बन्धन है। इसका प्रयोग कर किसी की शक्ति, कार्य, व्यापार, प्रगति आदि को कुण्ठित या अवरुद्ध कर दिया जाता है।

          साधारण शब्दों में बन्धन का अर्थ है बाँध देना। प्रत्यक्ष तौर पर बाँध देने की क्रिया को बाँधना कहते हैं, परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से बाँधना बन्धन कहलाता है। अधिकतर लोगों को ऐसा लगता है कि बन्धन की क्रिया केवल तान्त्रिक ही कर सकते हैं और यह तन्त्र से सम्बन्धित है, परन्तु वास्तविकता इसके विपरीत है। किसी कार्य विशेष के मार्ग को अभिचार क्रिया से अवरुद्ध कर देना ही बन्धन है।

          कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि जिस प्रकार रस्सी से बाँध देने से व्यक्ति असहाय होकर कुछ कर नहीं पाता, ठीक उसी प्रकार किसी व्यक्ति, घर, परिवार, व्यापार आदि को तन्त्र-मन्त्र आदि द्वारा अदृश्य रूप से बाँध दिया जाए तो उसे ऐसा लगता है कि उसकी प्रगति रुक गई है और घर-परिवार संकटों से घिर गया है। गृहकलह, व्यापार-नुकसान, तालेबन्दी, नौकरी का छूट जाना आदि ऐसा कई संकट हो सकते हैं।

          बहुत से लोग खुद को बँधा-बँधा महसूस करते हैं। कुछ लोग किसी के दबाव में रहते हैं और कुछ किसी के प्रभाव में। कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि इतना कर्म करने के बाद भी कोई परिणाम नहीं मिल रहा है। उन्हें ऐसा लगता है कि जैसे किसी ने प्रगति को बाँध रखा है। कुछ लोग जेल में नहीं है, फिर भी किसी न किसी बन्धन में रहते हैं। कुछ लोगों पर कोर्ट में मुकदमा चल रहा है तो कुछ पर कर्ज का बन्धन है। ऐसे में जिन्दगी ऐसी लगती है, जैसे किसी ने बाँधकर पटक दिया हो। कहीं से भी कोई रास्ता नजर नहीं आता।

          व्यापार अथवा कार्य बन्धन किसी व्यक्ति विशेष के व्यापार, दुकान, फैक्ट्री या व्यापारिक स्थल को बाँधना व्यापार बन्धन अथवा कार्य बन्धन कहलाता है। इससे उस व्यापारी का व्यापार चैपट हो जाता है। ग्राहक उसकी दुकान पर नहीं चढ़ते और शनैः शनैः वह व्यक्ति अपने काम धंधे से हाथ धो बैठता है।

          व्यापार-बन्धन एक ऐसी समस्या है, जो यदि किसी व्यापारी के साथ कर दी जाए तो उसे भारी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, अत्यधिक आर्थिक हानि उठाना पड़ जाती है, उसका सारा व्यापार चौपट हो जाता है और उसे अपना सम्पूर्ण भविष्य अन्धकारमय नज़र आने लगता है।

          इस समस्या से मुक्ति के लिए और व्यापार वृद्धि के लिए एक साबर मन्त्र साधना प्रयोग दिया जा रहा है। वैसे तो यह प्रयोग दीपावली की रात्रि में एक बार करने से ही पूर्ण फल देता है, परन्तु यदि आपने इस मन्त्र का जाप लगातार ४३ दिन तक सम्पन्न कर लिया तो फिर आपका व्यवसाय ऐसी गति आगे बढ़ेगा, जिसकी आपको उम्मीद ही न होगी। साथ ही भविष्य में आपके व्यापार पर कोई तान्त्रिक क्रिया भी कार्य ही नहीं करेगी।

साधना विधान :----------

          इसके लिए साधक को चाहिए कि वह दीपावली से एक दिन पहले किसी ऐसे वट वृक्ष की खोज कर लें, जो कि न तो किसी शिव मन्दिर के प्रांगण में स्थित हो और न ही किसी श्मशान में हो।

          जब ऐसा वट वृक्ष मिल जाए, तब धूप-दीप, अगरबत्ती, रोली या कुमकुम, दुग्ध व थोड़ा-सा गुड़ के साथ काली उड़द, सरसों तथा अक्षत (चावल) अपने साथ लेकर वहाँ जाएं। उस वट वृक्ष के समीप जाकर थोड़े-सी सरसों, काले उड़द तथा अक्षत हाथ में लेकर निम्नलिखित मन्त्र का तीन बार उच्चारण करें -----

ॐ वेतालाश्च पिशाचाश्च राक्षसाश्च सरीसृपाः।
    अपसर्पन्तु ते सर्वे वृक्षादिस्माच्छिवाज्ञया॥

          फिर सरसों, उड़द व अक्षत के मिश्रण को वृक्ष के चारों ओर बिखेर दें।

          इसके बाद वृक्ष के मूल में धूप-अगरबत्ती और शुद्ध घी का दीपक प्रज्ज्वलित कर पूजा करें। फिर रोली (कुमकुम), अक्षत तथा एक सिक्का वहाँ रख करके वृक्ष को निमन्त्रण देते हुए कहें कि हे! वृक्षराज, मैं कल प्रातः आपके पत्रों (पत्तों) को लेने आऊँगा। मैं इस समय आपको निमन्त्रण देता हूँ, आपके द्वारा प्रदान किए गए पत्र (पत्ते) मेरे सारे कार्य सिद्ध करें तथा मुझे बल दें, आयु दें और सर्व सिद्धि दें। कृपया मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान करें।

          यह कहकर दूध एवं प्रसाद (गुड़) अर्पित कर दें। इसके बाद साधक वृक्ष देवता को प्रणाम करके घर वापिस
 आ जाएं।

          अगले दिन अर्थात दीपावली को प्रातःकाल स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण कर पुनः वृक्ष के निकट जाए और वृक्ष देवता को प्रणाम करके निम्न मन्त्र का उच्चारण करें -----

ॐ नमस्ते अमृत सम्भूते बल वीर्य विवर्द्धिनी।
     बलं आयुश्च मे देहि पापान्मे त्राहि दूरतः॥

          इसके बाद पुनः धूप-दीप अर्पित करें। फिर वृक्ष देवता से पत्र (पत्ते) लेने की अनुमति लेकर ६ (छः) पत्ते तोड़कर ले आएं। घर वापिस आते समय सारे रास्ते निम्न मन्त्र का जाप करते रहें -----

॥ ॐ नमो भैरवाय महासिद्धि प्रदायकाय आपदुत्तरणाय हुं फट् ॥

          घर आकर उन पत्तों को पहले गंगाजल से धोकर शुद्ध कर लें। फिर केसर एवं पीले चन्दन में गंगाजल मिलाकर स्याही बनाएं। फिर अनार की कलम से पत्तों पर निम्न मन्त्र लिखें और माँ भगवती लक्ष्मी की तस्वीर के समक्ष रख दें।

          इसके बाद साधक पूजन आरम्भ करने से पहले कुछ पीली सरसों निम्न मन्त्र को पाँच बार पढ़कर अभिमन्त्रित कर लें एवं पूजा कक्ष में चारों ओर बिखेर दें और पूजन आरम्भ कर दें।

॥ हूं हूं ह्रीं ह्रीं कालिके घोरदंष्ट्रे प्रचण्ड  चण्डनायिके  दानवान दारय हन हन शरीरे महाविघ्न छेदय छेदय स्वाहा हूं फट् ॥

          फिर साधक सर्वप्रथम सामान्य गुरुपूजन करे और गुरुमन्त्र का कम से कम चार माला जाप करे। इसके बाद साधक सदगुरुदेवजी से व्यापार वृद्धि एवं तन्त्र-बन्धन मुक्ति साबर साधना सम्पन्न करने की अनुमति ले और उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करे।

          फिर साधक भगवान गणपतिजी का सामान्य पूजन करे और ॐ वक्रतुण्डाय हुम्” मन्त्र का एक माला जाप करे। तत्पश्चात साधक भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करे।

          फिर साधक संक्षिप्त भैरवपूजन सम्पन्न करे और  ॐ भं भैरवाय नमः” मन्त्र की एक माला जाप करे। फिर भगवान भैरवजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।

          इसके बाद साधक को साधना के पहिले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए। फिर पुनः प्रतिदिन संकल्प लेने की आवश्यकता नहीं होती है।

          फिर साधक माँ भगवती लक्ष्मीजी का यथाशक्ति षोडशोपचार अथवा पंचोपचार पूजन सम्पन्न करें। साथ ही वटवृक्ष के पत्तों का भी पूजन करें।

          जब दीपावली पूजन हो जाए तो साधक पूर्व अथवा पश्चिम (जिस ओर आपने दीपावली की पूजन किया है) की ओर मुख कर लाल अथवा गुलाबी आसन पर बैठकर रुद्राक्ष, लाल चन्दन अथवा मूँगे की माला से मन्त्र जाप आरम्भ करें -----

साबर मन्त्र :-----------

  श्री शुक्ले महाशुक्ले कमलदल निवासिनी महालक्ष्म्यै नमो नमःलक्ष्मी माई सत्य की सवाईआवो चेतो करो भलाईना करो तो सात समुद्रों की दुहाईऋद्धि-सिद्धि खाओगी तो नवनाथ चौरासी सिद्धों की दुहाई ॥

OM SHRI SHUKLE MAHAASHUKLE KAMALDAL NIVAASINI MAHAALAKSHMYEI NAMO NAMAH, LAKSHMI MAAI SATYA KI SAVAAI, AAVO CHETO KARO BHALAAI, NA KARO TO SAAT SAMUDRON KI DUHAAI, RIDDHI-SIDDHI KHAAOGI TO NAVANAATH CHAURAASI SIDDHON KI DUHAAI.

          इस मन्त्र का ११ माला जाप करना है। इसके बाद एक आचमनी जल छोड़कर समस्त जाप माँ भगवती लक्ष्मी जी को समर्पित कर दें और प्रणाम करके उठ जाएं।

          अगले दिन पुनः पत्तों को धूप-दीप अर्पित कर मन्त्र का जाप करें। इस प्रकार से साधक लगातार ४३ दिन तक मन्त्र जाप करते रहें।

         अन्तिम दिन जाप के उपरान्त पत्तों को कपूर को साथ जलाकर उनकी राख बना लें और राख को किसी चाँदी की डिब्बी में डालकर बन्द कर दें।

          ४४ वें दिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन कराएं और यथाशक्ति दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद ग्रहण करें। चाँदी की डिब्बी को गल्ले में ही रख दें, साथ ही थोड़ी-सी राख अपने गल्ले में भी डाल दें।

          अब साधक जब भी अपना व्यापारिक संस्थान खोले तो अन्य पूजा के बाद डिब्बी के समक्ष उपरोक्त मन्त्र का ११ बार उच्चारण करें। इस प्रयोग से साधक की समस्याओं का समाधान होने लगेगा।

           आपके लिए यह दीपावली महापर्व मंगलमय हो और यह दीपावली आप के जीवन में धन-धान्य, सुख-समृद्धि, यश एवं अपार खुशियाँ लेकर आए। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए ऐसी ही कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।

शनिवार, 7 अक्टूबर 2017

रावणकृत लक्ष्मी आबद्ध प्रयोग

रावणकृत लक्ष्मी आबद्ध प्रयोग



                 पंच दिवसीय दीपावली महापर्व समीप ही है। इस वर्ष १७ अक्टूबर २०१७ धन तेरस से इसका आरम्भ हो रहा है और २१ अक्टूबर २०१७ को भाई दूज के दिन इसका समापन होगा। आप सभी को दीपावली महापर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

         रावण का नाम सुनते ही आपके मन में ख्याल आता होगा कि यह तो वही है, जिसने माता सीता का अपहरण किया था और खुद का सर्वनाश कर लिया।

         रावण रामायण का एक केन्द्रीय प्रतिचरित्र है। रावण लंका का राजा था। वह अपने दस सिरों के कारण भी जाना जाता था, जिसके कारण उसका नाम दशानन भी था। किसी भी कृति के लिए नायक के साथ ही सशक्त खलनायक का होना अति आवश्यक है। रामकथा में रावण ऐसा पात्र है, जो राम के उज्ज्वल चरित्र को उभारने का काम करता है। किञ्चित मान्यतानुसार रावण में अनेक गुण भी थे। सारस्वत ब्राह्मण पुलस्त्य ऋषि का पौत्र और विश्रवा ऋषि का पुत्र रावण एक परम शिव भक्त, उद्भट राजनीतिज्ञ, महापराक्रमी योद्धा, अत्यन्त बलशाली, शास्त्रों का प्रखर ज्ञाता, प्रकाण्ड विद्वान पण्डित एवं महाज्ञानी था। रावण के शासन काल में लङ्का का वैभव अपने चरम पर था, इसीलिए उसकी लङ्कानगरी को सोने की लङ्का अथवा सोने की नगरी भी कहा जाता है।

          रावण में कितना ही राक्षसत्व क्यों न हो, उसके गुणों को विस्मृत नहीं किया जा सकता। ऐसा माना जाता हैं कि रावण शङ्कर भगवान का बड़ा भक्त था। वह महातेजस्वी, प्रतापी, पराक्रमी, रूपवान तथा विद्वान था।

          वाल्मीकि उसके गुणों को निष्पक्षता के साथ स्वीकार करते हुए उसे चारों वेदों का विश्वविख्यात ज्ञाता और महान विद्वान बताते हैं। वे अपनी कृति "रामायण" में हनुमान का रावण के दरबार में प्रवेश के समय लिखते हैं -----

अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युति:।
अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता॥

          आगे वे लिखते हैं --- "रावण को देखते ही हनुमान मुग्ध हो जाते हैं और कहते हैं कि रूप, सौन्दर्य, धैर्य, कान्ति तथा सर्वलक्षणयुक्त होने पर भी यदि इस रावण में अधर्म बलवान न होता तो यह देवलोक का भी स्वामी बन जाता।"

          रावण जहाँ दुष्ट था और पापी था, वहीं उसमें शिष्टाचार और ऊँचे आदर्श वाली मर्यादाएँ भी थीं। राम के वियोग में दुःखी सीता से रावण ने कहा है --- "हे सीते! यदि तुम मेरे प्रति काम-भाव नहीं रखती तो मैं तुझे स्पर्श नहीं कर सकता।"

          शास्त्रों के अनुसार वन्ध्या, रजस्वला, अकामा आदि स्त्री को स्पर्श करने का निषेध है, अतः अपने प्रति अकामा सीता को स्पर्श न करके रावण शास्त्रोचित मर्यादा का ही आचरण करता है।

          वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस दोनों ही ग्रन्थों में रावण को बहुत महत्त्व दिया गया है। राक्षसी माता और ऋषि पिता की सन्तान होने के कारण सदैव दो परस्पर विरोधी तत्त्व रावण के अन्तःकरण को मथते रहते हैं।

          बहुत ही कम लोग जानते हैं कि रावण असल में भगवान् शिव का अंश था। एक मुनि थे, जो कि शिवजी के रुद्रांश थे, जिनका नाम "मुण्डिकेश" ऋषि था, वे एक बहुत बड़े औघड़ नाथ थे। उन्होंने ही रावण के रूप में जन्म लिया था और बहुत से लोग कहते है कि रावण शरीर छोड़ने के बाद शिव में विलीन हो गए थे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है, वे वापस अपने ऋषि के शरीर में आ गए थे। (जिनकी कुण्डलिनी जागृत है, साधकगण  इस सत्य की जाँच कर सकते हैं।)

          वास्तव में रावण अपने आप में तन्त्र का अद्भुत  जानकार था। उसने ऋषि कुल में उत्पन्न होकर उच्चकोटि की तन्त्र साधनाएँ सम्पन्न की और अपने घर-परिवार को ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण लङ्का राज्य को धन-धान्य, वैभव और समृद्धि से सम्पन्न कर दिया था। "रावण संहिता" में इस प्रयोग को दुर्लभ और महत्वपूर्ण बताया गया है।

साधना विधान :----------

          यह साधना प्रयोग कार्तिक मास के किसी भी शुभ मुहूर्त में आरम्भ करें, यथा-धन तेरस, दीपावली, शुक्लपक्ष की तृतीया, किसी भी शुक्रवार आदि। इसके अलावा किसी भी माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया या शुक्रवार से इस साधना को शुरू किया जा सकता है। साधक इस दिन रात्रि को स्नान कर लाल वस्त्र पहन कर उत्तर दिशा की ओर मुँह करके बैठ जाएं और सामने किसी बाजोट पर सफेद वस्त्र बिछाकर उसपर माँ भगवती लक्ष्मी का चित्र स्थापित करें। चित्र के समक्ष सफेद वस्त्र पर ही कुमकुम या केशर या सिन्दूर से निम्न प्रकार का लक्ष्मी आबद्ध यन्त्र बनाएं -----


         अब सबसे पहले साधक सद्गुरुदेवजी का सामान्य पूजन सम्पन्न करके गुरुमन्त्र की चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से रावणकृत लक्ष्मी साधना सम्पन्न करने की अनुमति लें और उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

         इसके बाद साधक संक्षिप्त गणपति पूजन सम्पन्न करके एक माला किसी भी गणपति मन्त्र का जाप करें। फिर भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

         तदुपरान्त साधक सामान्य भैरवपूजन सम्पन्न करें और एक माला किसी भी भैरव मन्त्र का जाप करें। फिर भगवान भैरवनाथजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

         इसके बाद साधक को साधना के पहले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए। फिर प्रतिदिन संकल्प लेने की आवश्यकता नहीं होती है।

          फिर उपरोक्त लक्ष्मी आबद्ध यन्त्र की पूजा करें, इस यन्त्र पर अक्षत और पुष्प चढ़ाएं।

          इसके बाद पहले से ही प्राप्त किए हुए "नौ लक्ष्मी वरवरद" प्रत्येक कोष्ठक में एक-एक स्थापित कर दें। ये नौ लक्ष्मी वरवरद नौ सिद्धियों के प्रतीक हैं, जो रावणकृत "ऋषि प्रयोग" से मन्त्रसिद्ध प्राणप्रतिष्ठायुक्त हों।

          यदि आपके पास उपरोक्त सामग्री उपलब्ध नहीं है तो भी आप चिन्ता न करें। आप लक्ष्मी आबद्ध यन्त्र के प्रत्येक खाने में एक-एक कमलगट्टा रख दें।

          इसके बाद प्रत्येक "लक्ष्मी वरवरद" अथवा कमलगट्टे की जल, कुमकुम, अक्षत और पुष्प से पूजन करें। फिर कमलगट्टा माला या महाशंङ्ख माला या किसी भी माला से निम्न मन्त्र की २१ माला जाप करें।

रावणकृत लक्ष्मी आबद्ध मन्त्र :----------

 ।। ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं श्रीं ह्रीं श्रीं वर वरद लक्ष्मी आबद्ध आबद्ध फट् ।।

OM  HREEM SHREEM HREEM SHREEM  HREEM SHREEM VAR VARAD LAXMI AABADDH AABADDH PHAT.

         मन्त्र जाप के उपरान्त एक आचमनी जल छोड़कर समस्त जाप माँ भगवती लक्ष्मी को समर्पित कर दें। 

         यह साधना कम से कम ११ दिन तक सम्पन्न करना चाहिए। अन्तिम दिन मन्त्र जाप समाप्त होने पर अथवा अगले दिन सभी ९ "लक्ष्मी वरवरद" अथवा ९ कमलगट्टे किसी धागे में पिरोकर या सफेद कपड़े की पोटली में बाँधकर मकान या घर के मुख्य द्वार पर टाँग दें अथवा घर में किसी भी स्थान पर टाँग दें, जिससे कि उनको हवा स्पर्श करती रहे। ये "लक्ष्मी वरवरद" अथवा कमलगट्टे दुकान के मुख्य द्वार पर लटकाए या टाँगे जा सकते हैं।

          जितने समय तक इनको स्पर्श कर हवा घर में या दुकान में प्रवेश करेगी, तब तक निरन्तर आर्थिक, व्यापारिक उन्नति होती रहेगी। प्रयत्न यह करना चाहिए कि धागा मज़बूत हो और पूरे वर्ष भर ये लक्ष्मी वरवरद अथवा कमलगट्टे टँगे रहने चाहिए, जिससे कि इनसे स्पर्श कर वायु घर में या दुकान में प्रविष्ट होती रहे।

          इस साधना को सम्पन्न करने के बाद जीवन में आकस्मिक धन का प्रवाह आरम्भ हो जाता है। अगर जो लोग व्यक्ति घर से बाहर जाकर काम करते  है, वो इसके सामने ११ बार मन्त्र पढ़कर अगरबत्ती लगाकर निकले, धनहानि नहीं होगी।

          वास्तव में यह एक दुर्लभ और महत्वपूर्ण प्रयोग है, जो साधकों को ठीक समय पर सम्पन्न करना ही चाहिए।

          यह दीपावली पर्व आपके लिए मंगलमय हो, सुख-समृद्धि दायक हो और हर क्षेत्र में उन्नति प्रदायक हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।