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सोमवार, 11 दिसंबर 2017

सोमवती अमावस्या और सरल लघु प्रयोग

सोमवती अमावस्या और सरल लघु प्रयोग


           सोमवती अमावस्या समीप ही है। यह इस बार १८  दिसम्बर २०१७ को आ रही है। इस दिन भगवान शिव, विष्णु, पितृ दोष-कालसर्प दोष निवारण आदि से सम्बन्धित साधनाप्रयोग और विविध उपाय किए जा सकते हैं।

           हिन्दू पंचांग के अनुसार अमावस्या माह की ३० वीं और कृष्ण पक्ष की अन्तिम तिथि होती है। उस दिन आकाश में चन्द्रमा दिखाई नहीं देता, रात्रि में सर्वत्र गहन अन्धकार छाया रहता है। इस दिन का ज्योतिष एवं तन्त्र शास्त्र में अत्यधिक महत्व हैं। प्रत्येक माह एक अमावस्या आती है और हर सप्ताह में एक सोमवार। परन्तु ऐसा बहुत ही कम होता है जब अमावस्या और सोमवार एक ही दिन हो। सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या सोमवती अमावस्या कहलाती है। यह अनोखी तिथि साल में लगभग एक या दो बार ही आती है। यह अमावस्या स्नानदान के लिए शुभ और सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। 

           सोमवार भगवान चन्द्र को समर्पित दिन है। भगवान चन्द्र को शास्त्रों में मन का कारक माना गया है। अत: इस दिन अमावस्या पड़ने का अर्थ है कि यह दिन मन सम्बन्धी दोषों के समाधान के लिये अति उत्तम है। चूँकि हमारे शास्त्रों में चन्द्रमा को ही समस्त दैहिकदैविक और भौतिक कष्टों का कारक माना जाता है।

           सोमवती अमावस्या कलियुग के कल्याणकारी पर्वो में से एक है, लेकिन सोमवती अमावस्या को अन्य अमावस्याओं से अधिक पुण्य कारक मानने के पीछे भी शास्त्रीय और पौराणिक कारण हैं। सोमवार को भगवान शिव और चन्द्रमा का दिन कहा गया है। सोम यानि अमृत। अमावस्या और पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा का सोमांश यानि अमृतांश सीधे-सीधे पृथ्वी पर पड़ता है। शास्त्रों के अनुसार सोमवती अमावस्या पर चन्द्रमा का अमृतांश पृथ्वी पर सबसे अधिक मात्रा में पड़ता है।

           अमावस्या अमा और वस्या दो शब्दों से मिलकर बना है। शिव महापुराण में इस सन्धि विच्छेद को भगवान शिव ने माता पार्वती को समझाया था। क्योंकि सोम को अमृत भी कहा जाता है, अमा का अर्थ है एकत्र करना और वस्या वास को कहा गया है। यानि जिसमें सब एक साथ वास करते हों, वह अमावस्या अति पवित्र सोमवती अमावस्या कहलाती है। यह भी माना जाता है कि सोमवती अमावस्या में भक्तों को अमृत की प्राप्ति होती है।

           निर्णय सिंधु व्यास के वचनानुसार इस सोमवती अमावस्या का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व होता है। इस दिन मौन रहकर स्नान-ध्यान करने से सहस्र गोदान का पुण्य फल प्राप्त होता है। विवाहित स्त्रियों द्वारा इस दिन अपने पतियों की दीर्घायु की कामना के लिए व्रत का विधान है। हिन्दू धर्म शास्त्रों में इसे अश्वत्थ प्रदक्षिणा व्रत की भी संज्ञा दी गई है। अश्वत्थ यानि पीपल वृक्ष। इस दिन पीपल की सेवा, पूजा, परिक्रमा का अति विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार सोमवती अमावस्या में पीपल की छाया से, स्पर्श करने से और प्रदक्षिणा करने से समस्त पापों का नाश, अक्षय लक्ष्मी की प्राप्ति और आयु में वृद्धि होती है।

          पीपल के पूजन में दूध, दही, मीठा, फल, फूल, जल, जनेऊ जोड़ा चढ़ाने और दीप दिखाने से भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। कहते है कि पीपल के मूल में भगवान विष्णु, तने में भगवान शिव जी तथा अग्रभाग में भगवान ब्रह्मा जी का निवास है। इसलिए सोमवार को यदि अमावस्या हो तो पीपल के पूजन से अक्षय पुण्य, लाभ तथा सौभाग्य की वृद्धि होती है।

          सोमवती अमावस्या को अत्यन्त पुण्य तिथि माना जाता है। मान्यता है कि सोमवती अमावस्या के दिन किए गए किसी भी प्रकार के उपाय शीघ्र ही फलीभूत होते हैं। सोमवती अमावस्या के दिन उपाय करने से मनुष्यों को सभी तरह के शुभ फल प्राप्त होते हैं, अगर उनको कोई कष्ट है तो उसका शीघ्र ही निराकरण होता है और उस व्यक्ति तथा उसके परिवार पर आने वाले सभी तरह के संकट टल जाते हैं।

          सोमवती अमावस्या पर आजमाए जाने वाले कुछ टोटके या प्रयोग हैं, जिनका लाभ जरूर होता है। धन प्राप्ति, पितृदोष शान्ति, व्यापार की परेशानी, जीवन के कष्टों का अन्त, नौकरी में आने वाली बाधा आदि मिटाने के लिए अमावस्या को ये प्रयोग करने चाहिए। इनसे लाभ होता ही है।

धन प्राप्ति के टोटके

          १. तमाम प्रयासों के बाद भी आपको धन की प्राप्ति नहीं हो पा रही है तो आप अमावस्या को नारियल का एक प्रयोग आजमा सकते हैं। अमावस की रात एक पानी वाला नारियल, सूखा नहीं, लें। नारियल गोले के पाँच बराबर टुकड़े कर लीजिए। इन टुकड़ों को शिवजी की प्रतिमा, तस्वीर के सामने शाम के समय रख दें, फिर शिवजी को अपने सारे संकट बताएं। धन की बाधा से आपके क्या काम रूक रहे हैं? सब हाल उन्हें कहें।

          ध्यान रहे, यदि किसी अन्य का धन हड़पने या अन्य के प्रति द्वेष के भाव से यह प्रयोग बिल्कुल न करें। अपनी परेशानी और भगवान से सहायता की याचना करनी है, वह भी शुद्ध भाव से। रात के समय इन नारियल को खिड़की पर रख दें। सुबह उठते ही नारियल के टुकड़ों को घर से दूर कहीं रख आएं। धीरे-धीरे धन सम्बन्धी लाभ मिलने लगेगा।

          २. अमावस्या की रात नदी के बहते पानी पाँच लाल फूल और पाँच जलते हुए दीपक रखने चाहिए। इससे धनलाभ होता है।

          ३. अमावस्या की रात मन्दिर बन्द होने से पहले या घर के मन्दिर में पट बन्द करने से पहले एक घी का दीपक जलाएं। इससे धनलाभ मिलेगा।

जीवन की परेशानियाँ मिटाने के लिए टोटके

          १. परेशानियों से राहत का एक और टोटका है जो किसी भी अमावस्या को किया जाता है। महीने की शुरुआत में आप एक लाल धागा अपने गले में पहन लें। इसमें कोई ताबीज की जरूरत नहीं, बस एक लाल धागा हो। धागे को पूरे महीने भर गले में धारण किए रखें। अमावस्या की रात कहीं सुनसान में एक गड्ढा खोदकर उसे दबा दें। इससे आपकी परेशानियाँ धीरे-धीरे दूर होने लगेंगी। यदि पहले महीने में लाभ दिखे तो फिर इसे हर माह करें।

          २. किसी कुएं में अगर आप हर अमावस्या को एक चम्मच दूध डालते रहते हैं तो इससे आपके जीवन में सभी दुःख खत्म होने लगते हैं।

          ३. सोमवती अमावस्या को घर के मन्दिर में अथवा ईशान कोण में गाय के घी का एक दीपक संध्याकाल में अवश्य जलाएं। लाल रंग के धागे की बाती बनाएं और सम्भव हो तो घी में थोड़ा केसर डाल दें। इससे माँ लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और धन आगमन होता है।

          ४. किसी नदी तालाब पर जाकर मछलियों को शक्कर मिश्रित आटे की गोलियां खिलाएं। इससे घर में पैसे का आगमन शुरू होता है।

शत्रुबाधा शान्ति के लिए टोटका

      अमावस्या की रात यदि काले कुत्ते को तेल चुपड़ी रोटी खिलाई जाए और कुत्ता उसी समय यह रोटी खा लेता है तो इससे आपके सभी शत्रुओं का भाव परिवर्तित होना शुरू हो जाएगा। वे आपके प्रति द्वेष और आपको परेशान करने का भाव छोड़ देंगे। उसके बाद आप भी उन शत्रुओं को भूलते जाएं, उन्हें छेड़ें नहीं।

बेरोजगारी दूर करने के टोटके

          १. आप अगर लम्बे समय से बेरोजगार हैं, रोजगार में बाधा आ रही है तो अमावस्या की रात को एक छोटा-सा उपाय करके देखिए। एक नीम्बू को सुबह घर के मन्दिर में साफ करके रख दें। शाम को इसे अपने सिर से सात बार उतारकर चार बराबर भागों में काट लें। रात के समय चौराहे पर जाकर चारों दिशाओं में इसको फेंक दें। इससे रोजगार में आने वाली बाधा दूर होने लगेगी। यह उपाय भी चुपचाप करना चाहिए।

          २. अमावस्या के दिन मछलियों को आटे की गोलियाँ ज़रूर खिलाएं। इससे कई तरह के कष्ट खत्म होने लगेंगे।

कालसर्प दोष दूर करने का उपाय

          १. जिन्हें कालसर्प दोष बहुत सता रहा है, उनके लिए अमावस्या बहुत लाभकारी है। सुबह स्नान के पश्चात चाँदी से बने नाग नागिन की पूजा करें। सफ़ेद फूल के साथ इन्हें बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। इससे कालसर्प योग का दोष दूर होता है।

          २. अमावस्या की रात उस व्यक्ति के लिए काफी लाभदायक साबित हो सकती है, जिसे कालसर्प दोष है। घर में योग्य पुरोहित से अपने लिए या परिवार के लिए हवन करवाएं। शिवजी की पूजा करें।

पितृदोष शान्ति के लिए किए जाने वाले उपाय

          १. अमावस्या पितरों का दिन माना गया है। इस दिन घर के पितृगण का तर्पण करना चाहिए। घर में पूर्ण शुद्धि से बनाए भोजन का भोग उन्हें भेंट करना चाहिए। इससे पितर तृप्त होते हैं तथा आशीष देते हैं। यदि पितरों का आशीर्वाद नहीं मिल रहा है तो सारी पूजा-पाठ के बावजूद आपको अपेक्षित लाभ नहीं हो सकता, इसलिए पितरों की तृप्ति आवश्यक कही गई हैं।

          २. यदि पितर सन्तुष्ट एवं प्रसन्न हैं तो जीवन के सभी संकट दूर होते हैं। घर-परिवार में सुख शान्ति प्राप्त होती है। पितरों के निमित्त तर्पण के साथ ही साथ कुछ भोजन एवं अन्न निकाल देना चाहिए। यह भोजन पशुओं जैसे गाय, कौए, कुत्ते, जलचर जैसे मछली आदि को खिला दें। किसी दरिद्र को अन्न या भोजन भी दान कर सकते हैं। आपके सेवाभाव से पितरों को तृप्ति मिलती हैं। जब वे देखते हैं कि उनकी सन्तानें दयावान हैं, सभी जीवों पर दयालु हैं तो उनका मन प्रसन्न होता है।

          ३. सोमवती अमावस्या को पीपल के वृक्ष की पूजा करें। पेड़ को जनेऊ एवं अन्य पूजन सामग्री अर्पित करें। इसके बाद भगवान विष्णु के मन्त्र "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" का जाप करें। पीपल की सात परिक्रमा करें।

          ४. अमावस्या के दिन स्टील के लोटे में गाय का दूध, काले और सफेद तिल और थोड़ा जल मिला लें। इसे पीपल की जड़ में जल अर्पित करें।

          ५. सोमवती अमावस्या के दिन अपने पूर्वजों के नाम पर गरीबों, गाय, मछलियों आदि को भोजन, चारा आदि दें।

सर्वबाधा निवारण के उपाय

          १. सोमवती अमावस्या या किसी भी अमावस्या को भूखे लोगों को भोजन कराने का बड़ा महत्व कहा गया है। अमावस्या को अन्नदान यज्ञ के फल के जैसा होता है। कम से कम एक दरिद्र, भिखारी अथवा गाय को सामर्थ्यअनुसार तृप्तिभर भोजन कराएं, चारा खिलाएं।

          २. सोमवती अमावस्या पर दान का अनन्त फल है। इस दिन गरीबों, दरिद्रों, जरूरतमन्दों या सामने हाथ फैला देने वालों को कुछ न कुछ दान अवश्य करना चाहिए। इससे कुण्डली में जो ग्रह खराब फल दे रहे होते हैं, वे शान्त होते हैं।

          ३. सोमवती अमावस्या पर शिव मन्दिर में जाकर शिवलिंग पर जल एवं बेलपत्र चढ़ाएं। शिवलिंग के पास बैठकर "ओम नमः शिवाय" की एक माला अवश्य जाप करें। इससे कालसर्प योग का दोष भी खत्म हो जाता है।

     ४. अमावस्या की शाम को पीपल अथवा बरगद के पेड़ की पूजा करें। उसके नीचे देसी घी का दीपक जलाएं।


राशिअनुसार किए जाने वाले उपाय

            शास्त्रों में सोमवती अमावस्या को बहुत महत्व दिया गया है। सोमवती अमावस्या के दिन अगर कुछ खास टोने-टोटके किए जाएं तो इनसे विशेष फल की प्राप्ति होती है। वहीं अगर इन टोटकों को राशिअनुसार किया जाए तो ये जल्द ही अपना असर दिखाते हैं।

       आइए आपको बताते हैं, राशिअनुसार किए जाने वाले उपायों के बारे में -----

     मेष राशि : मेष राशि के जातक अमावस्या के दिन घर में हवन करवाएं और शिव की पूजा करें।

     वृष राशि : वृष राशि के जातक अमावस्या के दिन किसी कुए में एक चम्मच दूध डालें, लाभ होगा।

     मिथुन राशि : मिथुन राशि के जातक अमावस्या की रात एक पानी वाला नारियल लें और उसके पाँच बराबर टुकड़े करके शिवजी को अर्पित करें।

     कर्क राशि : अमावस्या की रात को कर्क राशि के जातक किसी मन्दिर में जाकर अभिमन्त्रित धागा लें और इसे पहन लें।

     सिंह राशि : सिंह राशि के जातक अमावस्या के दिन किसी काले कुत्ते को तेल लगी हुई रोटी खिलाएं, कष्टों का निवारण होगा।

     कन्या राशि : कन्या राशि के जातक अमावस्या की रात को एक नीम्बू अपने सर से सात बार उतारकर, चार बराबर भागों में काट कर किसी चौराहे पर रख दें। नौकरी, व्यवसाय में लाभ होगा।

     तुला राशि : तुला राशि के जातक अमावस्या के दिन मछलियों को आटे की गोलियाँ खिलाएं, कष्टों का निवारण होगा।

     वृश्चिक राशि : वृश्चिक राशि के जातक अमावस्या की रात को बहते नदी के पानी में पाँच लाल फूल और पाँच जलते हुए दीए छोड़ें, धन लाभ होगा।

     धनु राशि : धनु राशि के जातक अमावस्या की रात को मन्दिर में एक घी का दीया जलाएं, लाभ मिलेगा।

     मकर राशि : मकर राशि के जातक अमावस्या की रात को एक नीम्बू अपने सर से सात बार उतारकर, चार बराबर भागों में काट कर किसी चौराहे पर रख दें, नौकरी, व्यवसाय में लाभ होगा।

     कुम्भ राशि : कुम्भ राशि के जातक अमावस्या के दिन किसी काले कुत्ते को तेल लगी हुई रोटी खिलाएं, कष्टों का निवारण होगा।


     मीन राशि :मावस्या की रात को मीन राशि के जातक किसी मन्दिर में जाकर अभिमन्त्रित धागा लें और इसे पहन लें, लाभ होगा। 

               मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

               इसी कामना के साथ

        ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।

शुक्रवार, 6 अक्टूबर 2017

दीपावली और सरल लघु प्रयोग

दीपावली और सरल लघु प्रयोग


          दीपावली महापर्व समीप ही है। आप सभी को पंच दिवसीय दीपावली महापर्व की अग्रिम रूप से बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ!

          दीवाली, जिसे दीपावली के नाम से भी जाना जाता है, साल का सबसे प्रसिद्ध त्योहार है। दीवाली उत्सव धनतेरस से शुरू होता है और भैया दूज पर समाप्त होता है। अधिकतर प्रान्तों में दीवाली की अवधि पाँच दिनों की होती है, जबकि महाराष्ट्र में दीवाली उत्सव एक दिन पहले गोवत्स द्वादशी के दिन शुरू हो जाता है।

          इन पाँच दिनों के दीवाली उत्सव में विभिन्न अनुष्ठानों का पालन किया जाता है और देवी लक्ष्मी के साथ-साथ कई अन्य देवी देवताओं की पूजा की जाती है। हालाँकि दीवाली पूजा के दौरान देवी लक्ष्मी सबसे महत्वपूर्ण देवी होती हैं। पाँच दिनों के दीवाली उत्सव में अमावस्या का दिन सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है और इसे लक्ष्मी-पूजा, लक्ष्मी-गणेश पूजा और दीवाली-पूजा के नाम से जाना जाता है।

          दीवाली पूजा केवल परिवारों में ही नहीं, बल्कि कार्यालयों में भी की जाती है। पारम्परिक हिन्दु व्यवसायियों के लिए दीवाली पूजा का दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है। इस दिन स्याही की बोतल, कलम और नये बही-खातों की पूजा की जाती है। दवात और लेखनी पर देवी महाकाली की पूजा कर दवात और लेखनी को पवित्र किया जाता है और नये बही-खातों पर देवी सरस्वती की पूजा कर बही-खातों को भी पवित्र किया जाता है।

          दीवाली के दिन लक्ष्मी पूजा करने के लिए सबसे शुभ समय सूर्यास्त के बाद का होता है। सूर्यास्त के बाद के समय को प्रदोष कहा जाता है। प्रदोष के समय व्याप्त अमावस्या तिथि दीवाली पूजा के लिए विशेष महत्वपूर्ण होती है। अतः दीवाली पूजा का दिन अमावस्या और प्रदोष के इस योग पर ही निर्धारित किया जाता है। इसलिए प्रदोष काल का मुहूर्त लक्ष्मी पूजा के लिए सर्वश्रेस्ठ होता है और यदि यह मुहूर्त एक घटी के लिए भी उपलब्ध हो तो भी इसे पूजा के लिए प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

          शास्त्रों के अनुसार कुछ ऐसे उपाय बताए गए हैं, जो दीपावली के दिन करने पर बहुत जल्दी लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त की जा सकती है। यहाँ लक्ष्मी-कृपा पाने के लिए ५१ उपाय बताए जा रहे हैं और ये उपाय सभी राशि के लोगों द्वारा किए जा  सकते हैं। यदि आप चाहे तो इन उपायों में से एक से अधिक उपाय भी कर सकते हैं।

          १. दीपावली पर लक्ष्मी पूजन में हल्दी की गाँठ भी रखें। पूजन पूर्ण होने पर हल्दी की गाँठ को घर में उस स्थान पर रखें, जहाँ धन रखा जाता है।

          २. दीपावली के दिन यदि सम्भव हो सके तो किसी किन्नर से उसकी खुशी से एक रुपया लें और इस सिक्के को अपने पर्स में रखें। बरकत बनी रहेगी।

          ३. दीपावली के दिन घर से निकलते ही यदि कोई सुहागन स्त्री लाल रंग की पारम्परिक ड्रेस में दिख जाए तो समझ लें, आप पर महालक्ष्मी की कृपा होने वाली है। यह एक शुभ शकुन है। ऐसा होने पर किसी जरूरतमन्द सुहागन स्त्री को सुहाग की सामग्री दान करें।

          ४. दीपावली की रात में लक्ष्मी और कुबेर देव का पूजन करें और यहाँ दिए गए एक मन्त्र का जाप कम से कम १०८ बार अवश्य करें।
मन्त्र :----------

।। ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रववाय धन-धान्यधिपतये धन-धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा ।।

          ५. दीपावली पर लक्ष्मी पूजन के बाद घर के सभी कमरों में शंख और घण्टी बजाना चाहिए। इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा और दरिद्रता बाहर चली जाती है। माँ लक्ष्मी घर में आती हैं।

          ६. महालक्ष्मी के पूजन में गोमती चक्र भी रखना चाहिए। गोमती चक्र भी घर में धन सम्बन्धी लाभ दिलाता है।

          ७. दीपावली पर तेल का दीपक जलाएं और दीपक में एक लौंग डालकर हनुमानजी की आरती करें। किसी हनुमान मन्दिर जाकर ऐसा दीपक भी लगा सकते हैं।

          ८. रात को सोने से पहले किसी चौराहे पर तेल का दीपक जलाएं और घर लौटकर आ जाएं। ध्यान रखें पीछे पलटकर न देखें।

          ९. दीपावली के दिन अशोक के पेड़ के पत्तों से वन्दनद्वार बनाएं और इसे मुख्य दरवाजे पर लगाएं। ऐसा करने से घर की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाएगी।

          १०. किसी शिव मन्दिर जाएं और वहाँ शिवलिंग पर अक्षत यानि चावल चढ़ाएं। ध्यान रहें, सभी चावल पूर्ण होने चाहिए। खण्डित चावल शिवलिंग पर चढ़ाना नहीं चाहिए।

          ११. अपने घर के आसपास किसी पीपल के पेड़ के नीचे तेल का दीपक जलाएं। यह उपाय दीपावली की रात में किया जाना चाहिए। ध्यान रखें, दीपक लगाकर चुपचाप अपने घर लौट आए, पीछे पलटकर न देखें।

          १२. यदि सम्भव हो सके तो दीपावली की देर रात तक घर का मुख्य दरवाजा खुला रखें। ऐसा माना जाता है कि दिवाली की रात में महालक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और अपने भक्तों के घर जाती हैं।

          १३. महालक्ष्मी के पूजन में पीली कौड़ियाँ भी रखनी चाहिए। ये कौड़ियाँ पूजन में रखने से महालक्ष्मी बहुत ही जल्द प्रसन्न होती हैं। आपकी धन सम्बन्धी सभी परेशानियाँ खत्म हो जाएंगी।

          १४. दीपावली की रात लक्ष्मी पूजा करते समय एक थोड़ा बड़ा घी का दीपक जलाएं, जिसमें नौ बत्तियाँ लगाई जा सके। सभी ९ बत्तियाँ जलाएं और लक्ष्मी पूजा करें।

          १५. दीपावली की रात में लक्ष्मी पूजन के साथ ही अपनी दुकान, कम्प्यूटर आदि ऐसी चीज़ों की भी पूजा करें, जो आपकी कमाई का साधन हैं।

          १६. लक्ष्मी पूजन के समय एक नारियल लें और उस पर अक्षत, कुमकुम, पुष्प आदि अर्पित करें और उसे भी पूजा में रखें।

          १७. दीपावली के दिन झाड़ू अवश्य खरीदना चाहिए। पूरे घर की सफाई नई झाड़ू से करें। जब झाड़ू का काम न हो तो उसे छिपाकर रखना चाहिए।

          १८. इस दिन अमावस्या रहती है और इस तिथि पर पीपल के वृक्ष को जल अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने पर शनि के दोष और कालसर्प दोष समाप्त हो जाते हैं।

          १९. प्रथम पूज्य श्रीगणेशजी को दूर्वा अर्पित करें। दूर्वा की २१ गाँठ गणेशजी को चढ़ाने से उनकी कृपा प्राप्त होती है। दीपावली के शुभ दिन यह उपाय करने से गणेशजी के साथ महालक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती है।

          २०. दीपावली से प्रतिदिन सुबह घर से निकलने से पहले केसर का तिलक लगाएं। ऐसा हर रोज़ करें, महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होगी।

          २१. यदि सम्भव हो सके तो दीपावली पर किसी गरीब व्यक्ति को काले कम्बल का दान करें। ऐसा करने पर शनि और राहु-केतु के दोष शान्त होंगे और कार्यों में आ रही रुकावटें दूर हो जाएंगी।

          २२. महालक्ष्मी के पूजन में दक्षिणावर्ती शंख भी रखना चाहिए। यह शंख महालक्ष्मी को अतिप्रिय है। इसकी पूजा करने पर घर में सुख-शान्ति का वास होता है।

          २३. महालक्ष्मी के चित्र का पूजन करें, जिसमें लक्ष्मी अपने स्वामी भगवान विष्णु के पैरों के पास बैठी हैं। ऐसे चित्र का पूजन करने पर देवी बहुत जल्द प्रसन्न होती हैं।

          २४. दीपावली के पाँचों दिनों में घर में शान्ति बनाए रखें। किसी भी प्रकार का क्लेश, वाद-विवाद न करें। जिस घर में शान्ति रहती है, वहाँ देवी लक्ष्मी हमेशा निवास करती हैं।

          २५. दीपावली पर ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान करते समय नहाने के पानी में कच्चा दूध और गंगाजल मिलाएं। स्नान के बाद अच्छे वस्त्र धारण करें और सूर्य को जल अर्पित करें। जल अर्पित करने के साथ ही लाल पुष्प भी सूर्य को चढ़ाएं। किसी ब्राह्मण या जरूरतमन्द व्यक्ति को अनाज का दान करें। अनाज के साथ ही वस्त्र का दान करना भी श्रेष्ठ रहता है।

          २६. दीपावाली पर श्रीसूक्त एवं कनकधारा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। रामरक्षा स्तोत्र या हनुमान चालीसा या सुन्दरकाण्ड का पाठ भी किया जा सकता है।

          २७. महालक्ष्मी को तुलसी के पत्ते भी चढ़ाने चाहिए। लक्ष्मी पूजा में दीपक दाएं, अगरबत्ती बाएं, पुष्प सामने व नैवेद्य थाली दक्षिण में रखना श्रेष्ठ रहता है।

          २८. महालक्ष्मी के ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद् श्रीं ह्रीं श्रीं  ॐ महालक्ष्मयै नमः।” इस मन्त्र का जाप करें। मन्त्र जाप के लिए कमलगट्टे की माला का उपयोग करें। दीपावली पर कम से कम १०८ बार इस मन्त्र का जाप करें।

          २९. दीपावली से यह एक नियम रोज़ के लिए बना लें कि सुबह जब भी उठे तो उठते ही सबसे पहले अपनी दोनों हथेलियों का दर्शन करना चाहिए।

          ३०. दीपावली पर श्रीयन्त्र के सामने अगरबत्ती व दीपक लगाकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके कुश के आसन पर बैठें। फिर श्रीयन्त्र का पूजन करें और कमलगट्टे की माला से महालक्ष्मी के मन्त्र ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद् श्रीं ह्रीं श्रीं  ॐ महालक्ष्मयै नमः।” का जाप करें।

          ३१. किसी मन्दिर में झाड़ू का दान करें। यदि आपके घर के आसपास कहीं महालक्ष्मी का मन्दिर हो तो वहाँ गुलाब की सुगन्ध वाली अगरबत्ती का दान करें।

          ३२. घर के मुख्य द्वार पर कुमकुम से स्वस्तिक का चिह्न बनाएं। द्वार के दोनों ओर कुमकुम से ही शुभ-लाभ लिखें।

          ३३. लक्ष्मी पूजन में सुपारी रखें। सुपारी पर लाल धागा लपेटकर अक्षत, कुमकुम, पुष्प आदि पूजन सामग्री से पूजा करें और पूजन के बाद इस सुपारी को तिजोरी में रखें।

          ३४. दीपावली के दिन श्वेतार्क गणेश की प्रतिमा घर में लाएंगे तो हमेशा बरकत बनी रहेगी। परिवार के सदस्यों को पैसों की कमी नहीं आएगी।

          ३५. यदि सम्भव हो सके तो इस दिन किसी तालाब या नदी में मछलियों को आटे की गोलियाँ बनाकर खिलाएं। शास्त्रों के अनुसार इस पुण्य कर्म से बड़े-बड़े संकट भी दूर हो जाते हैं।

          ३६. घर में स्थित तुलसी के पौधे के पास दीपावली की रात में दीपक जलाएं। तुलसी को वस्त्र अर्पित करें।

          ३७. स्फटिक से बना श्रीयन्त्र दीपावली के दिन बाजार से खरीदकर लाएं। श्रीयन्त्र को लाल वस्त्र में लपेटकर तिजोरी में रखें। कभी भी पैसों की कमी नहीं होगी।

          ३८. दीपावली पर सुबह-सुबह शिवलिंग पर ताँबे के लोटे से जल अर्पित करें। जल में यदि केसर भी डालेंगे तो श्रेष्ठ रहेगा।

          ३९. जो लोग धन का संचय बढ़ाना चाहते हैं, उन्हें तिजोरी में लाल कपड़ा बिछाना चाहिए। इसके प्रभाव से धन का संचय बढ़ता है। महालक्ष्मी का ऐसा फोटो रखें, जिसमें लक्ष्मी बैठी हुईं दिखाई दे रही हैं।

          ४०. उपाय के अनुसार दीपावली के दिन ४ अभिमन्त्रित गोमती चक्र, ३ पीली कौड़ियाँ और ३ हल्दी गाँठों को एक पीले कपड़े में बाँधें। इसके बाद इस पोटली को तिजोरी में रखें। धन लाभ के योग बनने लगेंगे।

          ४१. यदि धन सम्बन्धी परेशानियों का सामना कर रहे हैं तो किसी भी श्रेष्ठ मुहूर्त में हनुमानजी का यह उपाय करें।
           उपाय के अनुसार किसी पीपल के वृक्ष का एक पत्ता तोड़ें। उस पत्ते पर कुमकुम या चन्दन से श्रीराम
लिखें। इसके बाद पत्ते पर मिठाई रखें और यह हनुमानजी को अर्पित करें। इस उपाय से भी धन लाभ होता है।

          ४४. एक बात का विशेष ध्यान रखें कि माह की हर अमावस्या पर पूरे घर की अच्छी तरह से साफ-सफाई की जानी चाहिए। साफ-सफाई के बाद घर में धूप-दीप-ध्यान करें। इससे घर का वातावरण पवित्र और बरकत देने वाला बना रहेगा।

          ४४. सप्ताह में एक बार किसी ज़रूरतमन्द सुहागिन स्त्री को सुहाग का सामना दान करें। इस उपाय से देवी लक्ष्मी तुरन्त ही प्रसन्न होती हैं और धन सम्बन्धी परेशानियों को दूर करती हैं। ध्यान रखें, यह उपाय नियमित रूप से हर सप्ताह करना चाहिए।

          ४५. यदि कोई व्यक्ति दीपावली के दिन किसी पीपल के वृक्ष के नीचे छोटा-सा शिवलिंग स्थापित करता है तो उसके जीवन में कभी भी कोई परेशानियाँ नहीं आएंगी। यदि कोई भयंकर परेशानियाँ चल रही होंगी तो वे भी दूर हो जाएंगी। पीपल के नीचे शिवलिंग स्थापित करके उसकी नियमित पूजा भी करनी चाहिए। इस उपाय से गरीब व्यक्ति भी धीरे-धीरे मालामाल हो जाता है।

          ४६. पीपल के ११ पत्ते तोड़ें और उन पर श्रीराम” का नाम लिखें। राम नाम लिखने के लिए चन्दन का उपयोग किया जा सकता है। यह काम पीपल के नीचे बैठकर करेंगे तो जल्दी शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं। राम नाम लिखने के बाद इन पत्तों की माला बनाएं और हनुमानजी को अर्पित करें।

          ४७. कलयुग में हनुमानजी शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता माने गए हैं। इनकी कृपा प्राप्त करने के लिए कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं। यदि पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ किया जाए तो यह चमत्कारी फल प्रदान करने वाला उपाय है।

          ४८. शनि दोषों से मुक्ति के लिए तो पीपल के वृक्ष के उपाय रामबाण हैं। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या के बुरे प्रभावों को नष्ट करने के लिए पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाकर सात परिक्रमा करनी चाहिए। इसके साथ ही शाम के समय पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक भी लगाना चाहिए।

          ४९. दीपावली से एक नियम हर रोज़ के लिए बना लें। आपके घर में जब भी खाना बने तो उसमें से सबसे पहली रोटी गाय को खिलाएं।

          ५०. शास्त्रों के अनुसार एक पीपल का पौधा लगाने वाले व्यक्ति को जीवन में किसी भी प्रकार का कोई दुख नहीं सताता है। उस इंसान को कभी भी पैसों की कमी नहीं रहती है। पीपल का पौधा लगाने के बाद उसे नियमित रूप से जल अर्पित करना चाहिए। जैसे-जैसे यह वृक्ष बड़ा होगा, आपके घर-परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ती जाएगी, धन बढ़ता जाएगा। पीपल के बड़े होने तक इसका पूरा ध्यान रखना चाहिए, तभी आश्चर्यजनक लाभ प्राप्त होंगे।

          ५१. दीपावली पर लक्ष्मी का पूजन करने के लिए स्थिर लग्न श्रेष्ठ माना जाता है। इस लग्न में पूजा करने पर महालक्ष्मी स्थाई रूप से घर में निवास करती हैं। पूजा में लक्ष्मी यन्त्र, कुबेर यन्त्र और श्रीयन्त्र रखना चाहिए। यदि स्फटिक का श्रीयन्त्र हो तो सर्वश्रेष्ठ रहता है। एकाक्षी नारियल, दक्षिणावर्त शंख, हत्थाजोड़ी की भी पूजा करनी चाहिए।

          आपके लिए यह दीपावली महापर्व मंगलमय हो और यह दीपावली आप के जीवन में धन-धान्य, सुख-समृद्धि, यश एवं अपार खुशियाँ लेकर आए। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए ऐसी ही कामना करता हूँ।

           इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।

शनिवार, 26 अगस्त 2017

ज्योतिषीय योग पितृदोष और निवारण के सरल उपाय

ज्योतिषीय योग पितृदोष और निवारण के सरल उपाय



          हिन्दू धर्म में ज्योतिष को वेदों का छठा अंग माना गया है और किसी व्यक्ति की जन्म-कुण्डली देखकर आसानी से इस बात का पता लगाया जा सकता है कि वह व्यक्ति पितृ दोष से पीड़ित है या नहीं। क्योंकि यदि व्यक्ति के पितर असन्तुष्ट होते हैं, तो वे अपने वंशजों की जन्म-कुण्डली में पितृ दोष से सम्बन्धित ग्रह-स्थितियों का सृजन करते हैं।

          भारतीय ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार जन्म-पत्री में यदि सूर्य-शनि या सूर्य-राहु का दृष्टि या युति सम्बन्ध हो और यह सम्बन्ध जन्म-कुण्डली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम भावों में से किसी एक भाव में हो तो इस प्रकार की जन्म-कुण्डली वाले जातक को पितृ दोष होता है। साथ ही कुण्डली के जिस भाव में यह योग होता है, उससे सम्बन्धित अशुभ फल ही प्राथमिकता के साथ घटित होते हैं।

          उदाहरण के लिए यदि सूर्य-राहु अथवा सूर्य-शनि का अशुभ योग प्रथम भाव में हो तो वह व्यक्ति अशान्त प्रकृति का होता है और उसे गुप्त चिन्ता, दाम्पत्य एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियाँ होती हैं, क्योंकि प्रथम भाव को ज्योतिष में लग्न कहते हैं और यह शरीर का प्रतिनिधित्व करता है।

          दूसरे भाव से धन, परिवार आदि के बारे में पता चलता है। इस भाव में यह योग बने तो धन व परिवार से सम्बन्धित परेशानियाँ जैसे कि पारिवारिक कलह, वैमनस्य व आर्थिक उलझनें होती हैं।

          चतुर्थ भाव से माता, वाहन, सम्पत्ति आदि के बारे में पता लगता है। इस भाव में यह योग हो तो भूमि, मकान, माता-पिता एवं गृह-सुख में कमी या कष्ट होते हैं।

          पंचम भाव में यह योग हो तो उच्च विद्या में विघ्न व सन्तान सुख में कमी होने के संकेत होते हैं।
        
          सप्तम भाव में यह योग हो तो यह योग वैवाहिक सुख व साझेदारी के व्यवसाय में कमी या परेशानी का कारण बनता है। 
     
          नवम भाव या नवम भाव का स्वामी यदि किसी भी तरह से राहु या केतु से ग्रसित है तो यह निश्चित रूप से पितृदोष होता है और भाग्योन्नति में बाधाएँ उत्पन्न करता है।

          पिता के स्थान दशम भाव का स्वामी ६, ८ या १२ वें भाव में चला जाए एवं गुरु पापी ग्रह प्रभावित या राशि में हो, साथ ही लग्न तथा पंचम भाव का स्वामी पाप ग्रहों से युति करे तो ऐसी कुण्डली पितृशाप दोष युक्त कहलाती है। ऐसी कुण्डली युक्त जातक को सर्विस या कार्य, सरकार व व्यवसाय सम्बन्धी परेशानियाँ होती हैं।

          प्रत्येक भावानुसार फल का विचार होता है। सूर्य यदि नीच में होकर राहु या शनि के साथ पड़ा हो तो पितृदोष ज्यादा होता है।

          किसी कुण्डली में लग्नेश ग्रह यदि कोण (६, ८ या १२ वें भाव) में स्थित हो तथा राहु लग्न भाव में हो तब भी पितृदोष होता है।

          पितृयोग कारक ग्रह पर यदि त्रिक (६, , १२) भावेश एवं भावों के स्वामी की दृष्टि अथवा युति का सम्बन्ध भी हो जाए तो अचानक वाहनादि के कारण दुर्घटना का भय, प्रेतबाधा, ज्वर, नेत्ररोग, तरक्की में रुकावट या बनते कार्यों में विघ्न, अपयश, धनहानि आदि अनिष्ट फल होते हैं। ऐसी स्थिति में रविवार की संक्रान्ति को लाल वस्तुओं का दान करने तथा पितरों का तर्पण करने से पितृ आदि दोषों की शान्ति होती है।

          चन्द्र-राहु, चन्द्र-केतु, चन्द्र-बुध, चन्द्र-शनि आदि योग भी पितृ दोष की भाँति मातृ दोष कहलाते हैं। इनमें चन्द्र-राहु एवं सूर्य-राहु योगों को ग्रहण योग तथा बुध-राहु को जड़त्व योग कहते हैं।

         इन योगों के प्रभावस्वरूप भी भावेश की स्थिति अनुसार ही अशुभ फल प्रकट होते हैं। सामान्यतः चन्द्र-राहु आदि योगों के प्रभाव से माता अथवा पत्नी को कष्ट, मानसिक तनाव, आर्थिक परेशानियाँ, गुप्त रोग, भाई-बन्धुओं से विरोध, अपने भी परायों जैसे व्यवहार रखें आदि फल घटित होते हैं।

          यदि आठवें या बारहवें भाव में गुरु-राहु का योग और पंचम भाव में सूर्य-शनि या मंगल आदि कू्र ग्रहों की स्थिति हो तो पितृदोष के कारण सन्तान कष्ट या सन्तान सुख में कमी रहती है।

          अष्टमेश पंचम भाव में तथा दशमेष अष्टम भाव में हो तो भी पितृदोष के कारण धन हानि अथवा सन्तान के कारण कष्ट होते हैं।

          यदि पंचमेश सन्तान कारक ग्रह राहु के साथ त्रिक भावों में हो तथा पंचम में शनि आदि कू्र ग्रह हो तो भी सन्तान सुख में कमी होती है।

          इसी प्रकार राहु अथवा शनि के साथ मिलकर अनेक अनिष्टकारी योग बनते हैं, जो पितृदोष की भाँति ही अशुभ फल प्रदान करते हैं।

          बृहत्पाराशर होरा शास्त्र में कुण्डली में इस प्रकार के शापित योग कहे गए हैं। इनमें पितृदोष श्राप, भ्रातृ श्राप,मातृ श्राप, प्रेम श्राप आदि योग प्रमुख हैं।

          अशुभ पितृदोषों योगों के प्रभाव स्वरूप जातक के स्वास्थ्य की हानि, सुख में कमी, आर्थिक संकट, आय में बरकत न होना, सन्तान कष्ट अथवा वंशवृद्धि में बाधा, विवाह में विलम्ब, गुप्त रोग, लाभ व उन्नति में बाधाएँ, तनाव आदि अशुभ फल प्रकट होते हैं।

          यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में सूर्य-राहू, सूर्य-शनि आदि योगों के कारण पितृदोष हो तो उसके लिए नारायण बलि, नाग पूजा, अपने दिवंगत पितरों का श्राद्ध, पितृ तर्पण, ब्रह्म भोज, दानादि कर्म करवाने चाहिए। पितृदोष निवारण के लिए अपने घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने दिवंगत पूर्वजों के फोटो लगाकर उन पर हार चढ़ाकर सम्मानित करना चाहिए तथा उनकी मृत्यु तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र एवं दक्षिणा सहित दान, पितृ तर्पण एवं श्राद्ध कर्म करने चाहिए।

हाथ में पितृदोष के लक्षण :––––––––––

          हाथ में पितृदोष को आसानी से नहीं खोजा जा सकता, बहुत से लक्षण देखने के बाद ही किसी आप किसी निष्कर्ष पर पहुँच  सकते हैं। फिर भी कुछ साधारण लक्षण हम आपको बताते हैं -----

१. सूर्य रेखा का टूटा हुआ होना

          हाथ में सूर्य पर्वत का बहुत कमज़ोर होना या सूर्य पर्वत पर रेखाओं का जाल होना पितृदोष को दर्शाता है। सूर्य की स्थिति हाथ में बहुत महत्वपूर्ण है। अकेले सूर्य के कमज़ोर होने से व्यक्ति के जीवन में बहुत बड़ा स्थान रिक्त रह जाता है। प्रसिद्धि, तरक्की, जीवन में भोग विलास के लिए जो पैसा चाहिए, जो सम्मान चाहिए, वह बिना सूर्य के नहीं मिल पाता।

२. हाथ में जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा, हृदय रेखा का मिलन

          अगर आपके हाथ में जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा, हृदय रेखा एक जगह पर मिल रही है तो यह भी पितृदोष की निशानी है। इस स्थिति में व्यक्ति आत्महत्या के लिए प्रेरित होता है। उसके विचार निराशावादी हो जाते हैं और जीवन में प्रगति बाधित होती है।

पितृदोष निवारण के सरल उपाय :----------



          वैसे तो कुण्डली में किस प्रकार का पितृदोष है, उस पितृदोष के प्रकार के हिसाब से ही पितृदोष शान्ति करवाना अच्छा होता है। लेकिन कुछ ऐसे सरल सामान्य उपाय भी हैं, जिनको करने से पितृदोष शान्त हो जाता है, ये उपाय निम्नलिखित हैं -----

          १. ब्रह्म पुराण (२२०/१४३ ) में पितृगायत्री मन्त्र दिया गया है, इस मन्त्र की प्रतिदिन १ माला या अधिक जाप करने से पितृदोष में अवश्य लाभ होता है।

मन्त्र :-----

।। ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः।।

          २. मार्कण्डेय पुराण (९४/३ -१३ ) में वर्णित इस चमत्कारी पितृ स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भी पितृ प्रसन्न होकर स्तुतिकर्ता की मनोकामना की पूर्ति करते हैं -----

पुराणोक्त पितृ स्तोत्र :----------

अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।१।।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान्नमस्यामि कामदान्।।२।।
मन्वादिनां च नेतारः सूर्याचन्दमसोस्तथा।
तान्नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्यूदधावपि।।३।।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृतांजलिः।।४।।
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येऽहं कृतांजलिः।।५।।
प्रजापतेः कश्यपाय सोमाय वरूणाय च।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृतांजलिः।।६।।
नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।७।।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।८।।
अग्निरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्।
अग्निषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः।।९।।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणः।।१०।।
तेभ्योऽखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः।
नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुजः।।११।।

विशेष :---

                   मार्कण्डेयपुराण में महात्मा रूचि द्वारा की गयी पितरों की यह स्तुति पितृस्तोत्र कहलाता है। पितरों की प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है। इस स्तोत्र की बड़ी महिमा है। श्राद्ध आदि के अवसरों पर ब्राह्मणों के भोजन के समय भी इसका पाठ करने-कराने का विधान है।

           ३. भगवान भोलेनाथ की तस्वीर या प्रतिमा के समक्ष बैठ कर या घर में ही भगवान भोलेनाथ का ध्यान कर निम्न  मन्त्र  की एक माला नित्य जाप करने से समस्त प्रकार के पितृदोष, संकट, बाधा आदि शान्त होकर शुभत्व की प्राप्ति होती है। मन्त्र जाप प्रातः या सायंकाल कभी भी कर सकते हैं।

मन्त्र :-----

।। ॐ तत्पुरुषाय विद्महे  महादेवाय च धीमहि तन्नो  रुद्रः प्रचोदयात् ।।

          ४. अमावस्या को पितरों के निमित्त पवित्रता पूर्वक बनाया गया भोजन तथा चावल बूरा, घी एवं एक रोटी गाय को खिलाने से पितृदोष शान्त होता है।

           ५. अपने माता-पिता, बुजुर्गों का सम्मान, भाई-बहिनों, सभी स्त्री कुल का आदर/सम्मान करने और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहने से पितर हमेशा प्रसन्न रहते हैं।

           ६. पितृदोष जनित सन्तान कष्ट को दूर करने के लिए हरिवंश पुराण का श्रवण करें या स्वयं नियमित रूप से पाठ करें।

           ७. प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती या सुन्दर काण्ड का पाठ करने से भी इस दोष में कमी आती है।

           ८. सूर्य पिता है, अतः ताँबे के लोटे में जल भर कर, उसमें लाल फूल, लाल चन्दन का चूरा, रोली आदि डाल कर सूर्य देव को अर्घ्य देकर ११ बार ॐ घृणि सूर्याय नमः मन्त्र का जाप करने से पितरों की प्रसन्नता एवं उनकी ऊर्ध्व गति होती है।

          ९. अमावस्या वाले दिन अवश्य अपने पूर्वजों के नाम दुग्ध, चीनी, सफ़ेद कपडा, दक्षिणा आदि किसी मन्दिर में अथवा किसी योग्य ब्राह्मण को दान करना चाहिए।

          १०. पितृपक्ष में पीपल की परिक्रमा  अवश्य करें। अगर प्रतिदिन यदि कोई व्यक्ति पीपल के पेड़ पर मीठा जल, मिष्ठान्न एवं जनेऊ अर्पित करते हुए ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मन्त्र का जाप करते हुए कम से कम सात या १०८ परिक्रमा करें। तत्पश्चात् अपने अपराधों एवं त्रुटियों के लिये क्षमा माँगे तो पितृ दोष से उत्पन्न समस्त समस्याओं का निवारण हो जाता है।

           ११. हर अमावस को अपने पितरों का ध्यान करते हुए पीपल पर कच्ची लस्सी, गंगाजल, थोड़े काले तिल, चीनी, चावल, जल, पुष्पादि चढ़ाते हुए "ॐ सर्व पितृ देवताभ्यो नमः" मन्त्र तथा पितृ सूक्त का पाठ करना शुभ होगा।

          मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।