शुक्रवार, 1 दिसंबर 2017

दत्तात्रेय आवाहन साधना

दत्तात्रेय आवाहन साधना


          भगवान श्रीदत्तात्रेय जयन्ती निकट ही है। यह इस वर्ष  दिसम्बर २०१७ को आ रही है। आप सभी को भगवान श्रीदत्तात्रेय जयन्ती की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

           भगवान श्री दत्तात्रेय तन्त्रजगत और पूर्ण साधना जगत की एक ऐसी महानतम विभूति तथा पूर्ण शक्ति सम्पन्न देव हैजिनकी कृपा-प्राप्ति साधकों के मध्य एक उच्चकोटि का भाग्य ही माना जाता है। नाथ सम्प्रदाय के महासिद्ध जिनकी साधना ज्ञान की थाह पाना सम्भव ही नहीं है। ऐसे ज्ञानपुँज के समक्ष  कईं ब्रह्माण्डीय पुरुष भी अपना सिर हमेशा झुका कर जिनकी अभ्यर्थना करते होंउस दिव्य देव श्री भगवान दत्तात्रेय के विषय में क्या कोई लेखनी लिख सकती है?

          भगवान दत्तात्रेय का नाम हिन्दू जनमानस में और हिन्दू साधना परम्परा में समान रूप से बहुत आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। इन्हें गुरु और भगवान दोनों का दर्जा प्राप्त है। दत्तात्रेय शीघ्र कृपा करने वाले देवता कहे जाते हैं। भगवान दत्तात्रेय ब्रह्मा जी के मानस पुत्र ऋषि अत्रि और कर्दम ऋषि की कन्या तथा सांख्य शास्त्र के प्रवर्तक कपिल देव की बहन सती अनुसुइया के पुत्र थे।

           कई ग्रन्थों में यह बताया गया है कि ऋषि अत्रि और अनुसूइया के तीन पुत्र हुए। ब्रह्माजी के अंश से चन्द्रमाशिवजी के अंश से दुर्वासा ऋषिभगवान विष्णु के अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ। कहीं-कहीं यह उल्लेख भी मिलता है कि भगवान दत्तात्रेय ही ब्रह्माविष्णु और शिव के सम्मिलित अवतार हैं।अत्रि ऋषि की पत्नी माता अनुसुइया पर प्रसन्न होकर तीनों देवों ब्रह्माविष्णु और महेश ने उन्हें वरदान दियाजिससे माता अनुसुइया के तीन पुत्र हुएब्रह्मा के अंश से चन्द्रमा ,शंकर के अंश से दुर्वासा तथा विष्णु के अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ। कहीं कहीं यह भी उल्लेख मिलता है कि दत्तात्रेय ही ब्रह्माविष्णु और शिव के सम्मिलित अवतार हैं। इन्हीं के आविर्भाव की तिथि दत्तात्रेय जयन्ती कहलाती है।

           परम भक्त वत्सल दत्तात्रेय भगवान भक्त के स्मरण करते ही उसके पास पहुँच जाते हैंइसीलिए इन्हें स्मृतिगामी तथा स्मृतिमात्रानुगन्ता भी कहा गया है। यह तन्त्र विद्या के परम आचार्य है। भगवान दत्त जी के नाम पर दत्त सम्प्रदाय दक्षिण भारत में विशेष प्रसिद्ध है। इन्हें महा अवधूत भी कहा जाता है।

         हिन्दू धर्म के त्रिदेव ब्रह्माविष्णु और महेश की प्रचलित विचारधारा के विलय के लिए ही भगवान दत्तात्रेय ने जन्म लिया थाइसीलिए उन्हें त्रिदेव का स्वरूप भी कहा जाता है। दत्तात्रेय को शैवपन्थी शिव का अवतार और वैष्णवपन्थी विष्णु का अंशावतार मानते हैं। दत्तात्रेय को नाथ सम्प्रदाय की नवनाथ परम्परा का भी अग्रज माना गया है। यह भी मान्यता है कि रसेश्वर सम्प्रदाय के प्रवर्तक भी दत्तात्रेय थे। भगवान दत्तात्रेय से वेद और तन्त्र मार्ग का विलय कर एक ही सम्प्रदाय निर्मित किया था।

          दत्तात्रेय के प्रमुख तीन शिष्य थेवो तीनों ही राजा थे। दो यौद्धा जाति से थे तो एक असुर जाति से। उनके शिष्यों में भगवान परशुराम का भी नाम लिया जाता है। तीन सम्प्रदाय (वैष्णवशैव और शाक्त) के संगम स्थल के रूप में भारतीय राज्य त्रिपुरा में उन्होंने शिक्षा-दीक्षा दी। इस त्रिवेणी के कारण ही प्रतीकस्वरूप उनके तीन मुख दर्शाए जाते हैंजबकि उनके तीन मुख नहीं थे।

          मान्यता अनुसार दत्तात्रेय ने परशुरामजी को श्रीविद्या-मन्त्र प्रदान की थी। यह मान्यता है कि शिवपुत्र कार्तिकेय को दत्तात्रेय ने अनेक विद्याएँ दी थी। भक्त प्रह्लाद को अनासक्ति-योग का उपदेश देकर उन्हें श्रेष्ठ राजा बनाने का श्रेय दत्तात्रेय को ही जाता है। दूसरी ओर मुनि सांकृति को अवधूत मार्गकार्तवीर्यार्जुन को तन्त्र विद्या एवं नागार्जुन को रसायन विद्या इनकी कृपा से ही प्राप्त हुई थी। गुरु गोरखनाथ को आसनप्राणायाममुद्रा और समाधि-चतुरंग योग का मार्ग भगवान दत्तात्रेय की भक्ति से प्राप्त हुआ।

          त्रिदेव अर्थात ब्रह्माविष्णु और महेश की सम्मिलित शक्ति से सम्पन्न भगवान दत्तात्रेय योगविद्या तथा तन्त्र विद्या के पूर्णतम ज्ञाता है। इन्हीं की प्रेरणा के फलस्वरुप नाथयोगियों ने लोकभाषा में करोड़ों शाबर मन्त्रों की रचना की तथा उनको जनसाधारण के मध्य पहुँचाया। ना सिर्फ इतना हीबल्कि इन मन्त्रों के माध्यम से व्यक्ति महासिद्धों की शक्तियों के साथ-साथ देव शक्ति तथा इतरयोनि की शक्तियों के सहयोग से अपनी सामान्य से सामान्य बाधाओं के साथ-साथ उच्चतम से उच्चतम आध्यात्मिक धरातल का स्पर्श कर सकेऐसे प्रयोगों का आविष्कार इस महान ऋषि ने किया।
   
         अघोर साधनाओं के आदि साधक तथा मुख्य प्रचारक कई हज़ारों वर्षों से सशरीर इस पृथ्वी पर विद्यमान हैजिनका स्थान दत्तपहाड़ी गिरनार श्रृंखला में है तथा कई साधकों ने उनके सशरीर दर्शन का सौभाग्य भी प्राप्त किया है। सेकड़ों वर्षों से समय-समय पर कई सिद्ध गुरु अपने शिष्यों के मध्य ऐसे प्रयोग प्रदान करते थेजिसके माध्यम से भगवान दत्तात्रेय का आशीर्वचन उनको प्राप्त हो तथा अपने भौतिक और आध्यात्मिक जीवन में वे सक्षमता को प्राप्त कर सके। लेकिन ऐसे प्रयोग दुर्लभ और गुरुगम्य ही रहेजो कि जनसामन्य तक नहीं पहुँच पाए। यूँ तो भगवान दत्तात्रेय से सम्बन्धित कई गुप्त विधान हैंजिसके माध्यम से साधक उनके प्रत्यक्ष दर्शन कर सकता हैलेकिन वे विधान अति असहजश्रमसाध्य तथा कठिन है जिसमें साधक को एक निश्चित जीवन क्रम कई दिनों या महीनों तक अपनाना पड़ता हैजो कि आज के युग में साधारणतः सम्भव नहीं है।

          लेकिन इन प्रयोगों में एक प्रयोग ऐसा भी हैजो कि सिर्फ एक रात्रि में ही सम्पन्न हो जाता हैजिसके माध्यम से साधक उसी रात्रि में स्वप्न में भगवान दत्तात्रेय के दर्शन प्राप्त कर प्रत्यक्ष कृपादृष्टि का साक्षी बन जाता है। अगर साधक की कोई समस्या है तो उसका निराकरण भी उसे इस प्रयोग के माध्यम से प्राप्त हो सकता हैजिसमें स्वयं भगवान दत्तात्रेय उनको मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। इस विशेष प्रयोग को पारदशिवलिंग के माध्यम से पूर्ण सम्पन्न किया जाता है। जब बात पारद के विषय में की जाती है तो इसका अर्थ किसी भी प्रकार के विग्रह का विज्ञापन नहीं होता हैअपितु जिन्होंने भी सद्गुरुदेव के प्रवचनों को सुना होसमझा हो तो उन्हें पता ही होगा कि मात्र पारद से ही पूर्णता प्राप्ति सम्भव है। अरे! जब अन्तिम तन्त्र अर्थात पारद तन्त्र का प्रयोग ही स्वयं की साधना उन्नति के लिए किया जाए तो असफलता भला कैसे मिलेगी?

साधना विधान :------------  
       
           इस प्रयोग को साधक दत्तात्रेय जयन्ती अथवा किसी भी गुरुवार को या किसी भी शुभ दिन शुरू कर सकता है।

          साधक रात्रि में ही इस प्रयोग को कर सकता है। साधक स्नान आदि से निवृत्त हो करलाल वस्त्र को धारण करे तथा लाल आसन पर बैठ जाए। साधक का मुख उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए। 

          सर्वप्रथम साधक को सामान्य गुरुपूजन करना चाहिए तथा गुरुमन्त्र का कम से कम चार माला जाप अवश्य करना चाहिए। फिर सद्गुरुदेवजी से श्रीदत्तात्रेय आवाहन साधना सम्पन्न करने की अनुमति लेकर उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें। 

           इसके बाद साधक को भगवान गणपतिजी का स्मरण करके एक माला किसी भी गणपति मन्त्र का जाप करना चाहिए। फिर गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

         इसके बाद साधक को चाहिए कि वह साधना के पहले दिन संकल्प अवश्य करें।

         साधक को अपने सामने एक बाजोट पर विशुद्ध पारद से निर्मित प्राण प्रतिष्ठित तथा चैतन्य पारदशिवलिंग को स्थापित करना चाहिए। पारदशिवलिंग के पास ही भगवान दत्तात्रेय का चित्र या यन्त्र रखे। साधक भगवान दत्तात्रेय के यन्त्र या चित्र का पूजन करेउसके बाद साधक पारद शिवलिंग का पूजन सम्पन्न करे।

          साधक को पूजन में गुग्गल का धूप प्रज्ज्वलित करना चाहिए। दीपक तेल का हो। साधक भोग के लिए किसी भी वस्तु का प्रयोग कर सकता है।

          पारदशिवलिंग का पूजन करने के बाद साधक रुद्राक्ष माला से निम्न मन्त्र की २१ (इक्कीस) माला मन्त्र का जाप करे ------

मन्त्र :-----------

।। ॐ द्रां द्रीं द्रूं दत्तात्रेयाय स्वप्ने प्रकट-प्रकट अवतर-अवतर नमः।।

OM DRAAM DREEM DROOM DATTATREYAAY SWAPNE PRAKAT-PRAKAT AVATAR-AVATAR NAMAH.

          मन्त्रजाप पूर्ण होने पर साधक समस्त जाप भगवान दत्तात्रेय को एक आचमनी जल छोड़कर समर्पित कर दें। फिर भगवान श्रीदत्तात्रेयजी का वन्दन करे तथा स्वप्न में प्रकट होने के लिए प्रार्थना करे और माला को अपने तकिये के नीचे रख कर सो जाए।

         यह साधना एक दिवसीय ही है, आप चाहे तो इसे ग्यारह दिनों तक भी सम्पन्न कर सकते हैं।

          इस प्रकार करने से भगवान दत्तात्रेय साधक को रात्रि में स्वप्न में दर्शन देते हैं तथा उसकी जिज्ञासा को शान्त करते हैं। साधक माला को कई बार उपयोग में ला सकता है।

          आपकी साधना सफल हो। पूज्यपाद सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी आपके समस्त अभीष्टों को पूर्ण करें। मैं ऐसी ही उनके श्री चरणों में प्रार्थना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ


ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।।

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