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शनिवार, 13 अप्रैल 2019

हनुमान प्रत्यक्ष सिद्धि प्रयोग


हनुमान प्रत्यक्ष सिद्धि प्रयोग


          श्रीहनुमान जयन्ती निकट ही है। इस बार यह १९ अप्रैल २०१९ को आ रही है। आप सभी को श्रीहनुमान जयन्ती की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          हनुमान शक्तिशाली, पराक्रमी, संकटों का नाश करने वाले और दुःखों को दूर करने वाले महावीर हैं। इनके नाम का स्मरण ही साहस और शक्ति प्रदान करने वाला है।  एक कहावत है कि "घर का जोगी जोगिया और आन गाँव का सिद्ध" यह बात पवनपुत्र रुद्रावतार श्रीहनुमान के सम्बन्ध में लागू होती है। श्रीहनुमान साधना द्वारा कष्टों का निवारण जिस सरल और सहज भाव से हो सकता है, उतनी सरल कोई अन्य साधना नहीं है। फिर क्लिष्ट साधनाएँ क्यों की जाए, हनुमान साधनाएँ तो रामबाण साधनाएँ हैं।

          कई वर्ष पुरानी बात है। मेरे एक मित्र का नौकरी के लिए इण्टरव्यू था, मित्र बड़े परेशान और वास्तव में भयभीत थे, नौकरी की बहुत सख्त आवश्यकता थी। इण्टरव्यू के लिए बुलावा दो सौ से अधिक लोगों का था और चयन केवल पाँच का ही होना था। चिन्ता और अनिश्चय से मित्र बड़े व्याकुल थे, मैंने कहा कि इण्टरव्यू में भीतर जाने से पहले शान्त मन से केवल एक बार "हनुमान मन्त्र चमत्कारानुष्ठान" का पाठ अवश्य कर लेना। तब परीक्षार्थी तो पुस्तक टटोल रहे थे, परन्तु मेरे मित्र एक कुर्सी पर बैठकर "हनुमान मन्त्र चमत्कारानुष्ठान" का पाठ कर रहे थे। पाठ करने के बाद उनका नम्बर आया और वह सहज भाव से पूरे आत्मविश्वास के साथ भीतर गए, बिना किसी सिफारिश के उनका सेलेक्शन हो गया। यह श्रीहनुमान चमत्कार ही है।

          यह सिद्ध बात है कि कृष्णपक्ष में अर्धरात्रि के पश्चात शहर के किसी घने जंगल अथवा श्मशान में भी हनुमान मन्त्र, हनुमान चालीसा का पाठ करते हुए हनुमान साधक निकल जाएं तो सर्प, बिच्छू, जंगली जानवर तो क्या, भूत, प्रेत, पिशाच भी पास नहीं फटकते! मरणान्तक पीड़ा से व्याप्त कष्ट भोगते हुए रोगियों को हनुमान साधना से अभिमन्त्रित जल पिलाया है  और हनुमानजी की कृपा से वे पूर्ण स्वस्थ हुए हैं। ऐसा केवल हनुमानजी ही कर सकते हैं, वे अपने भक्तों को कष्ट में नहीं देख सकते। उनके लिए कुछ भी करना सहज सम्भव है, क्योंकि जो एक संजीवनी बूटी के लिए पूरा पहाड़ उठाकर ले जा सकते हैं, जो रावण जैसे महाप्रतापी का अहंकार चूर-चूर कर सकते हैं, ऐसे एकादश रूद्र की महिमा उनकी भक्ति करके ही जानी जा सकती है।

          श्रीहनुमान प्रतीक है ब्रह्मचर्य, बल, पराक्रम, वीरता, भक्ति, निडरता, सरलता और विश्वास के। शत्रु अथवा बाधा न छोटी होती है और न बड़ी, वह तो केवल व्यक्ति या घटना होती है और उस पर आत्मविश्वास द्वारा विजय प्राप्त की जा सकती है। और जो श्रीहनुमान का साधक है, उसके भीतर तो आत्मविश्वास, आत्मशक्ति छलकती रहती है। उसे ज्ञान है कि मेरी पीठ के पीछे प्रबल पराक्रम के देव बजरंगबली खड़े हैं, फिर मुझे काहे की चिन्ता!

हनुमान उपासना में कुछ आवश्यक तथ्य

     १. हनुमान मूर्ति को तिल में मिले हुए सिन्दूर का लेपन करना चाहिए।

     २. नैवेद्य में प्रातः गुड, नारियल का गोला व लड्डू, मध्याह्न में गुड़, घी और गेहूँ की रोटी का चूरमा अथवा मोटा रोट तथा रात्रि में आम, अमरूद अथवा केला नैवेद्य रूप में चढ़ाना श्रेष्ठ माना गया है।

     ३. पुष्पों में केवल लाल और पीले बड़े फूल जैसे कमल, हजारा, सूर्यमुखी, गेन्दा चढ़ाना चाहिए।

     ४. घी में भीगी हुई एक अथवा पाँच बत्तियों का दीपक जलाना चाहिए।

     ५. हनुमान साधना में ब्रह्मचर्य व्रत का पूर्ण रूप से पालन करें।

     ६. सम्भव हो तो कुएं के जल से स्नान करें।

      ७. हनुमान मन्त्र का जप बोलकर अर्थात आवाज के साथ हनुमान मूर्ति/चित्र में नेत्रों को देखते हुए किया जाता है।

     ८. अनिष्ट की इच्छा से हनुमान साधना नहीं करनी चाहिए।

     ९. श्रीहनुमान सेवा, पूजा के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं, अतः साधक को सेवा करके फल प्राप्ति की इच्छा रखनी चाहिए, पूजा में पूर्ण श्रद्धा और सेवा भाव होना चाहिए।

     १०. पूजा स्थान में भगवान राम व सीता का चित्र होना हनुमान जी को प्रियकर लगता है।

साधना विधान :-----------

          हनुमान जयन्ती हनुमान साधना का सिद्ध दिवस है। इस दिन संकल्प लेकर आरम्भ किया गया अनुष्ठान/साधना निष्फल नहीं जाती और साधक को अल्पकाल में ही परिणाम दृष्टिगोचर होने लगते हैं। आगे हनुमान प्रत्यक्ष सिद्धि साधना प्रस्तुत की जा रही है, जिसे इस दिन से अथवा किसी भी मंगलवार को आरम्भ किया जा सकता है।

          साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल वस्त्र धारण कर दक्षिणाभिमुख होकर वीरासन में बैठ जाएं। अपने सामने एक चौकी पर सिन्दूर छिड़क दें तथा उस पर हनुमानजी का चित्र स्थापित करें। अपने सामने लाल वस्त्र से ढँके बाजोट पर मन्त्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित "हनुमत यन्त्र" को किसी पात्र में स्थापित करें। यन्त्र पर सिन्दूर अच्छी तरह से लगा दें। फिर गुड़, घी, आटे से बनी हुई रोटी को मिलाकर लड्डू बनाकर उसका भोग लगावें।

         फिर दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प करें कि मैं अमुक नाम का व्यक्ति अमुक गोत्र अमुक प्रयोजन से यह अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हूँ। भगवान हनुमान मेरी साधना को स्वीकार कर मेरा मनोरथ सिद्ध करें। और फिर जल को भूमि पर छोड़ दें।

          इसके बाद श्रीहनुमानजी का सकाम ध्यान करें। दोनों आँखें बन्द कर कुछ देर तक उनके स्वरूप का स्मरण करें तथा उनके आशीर्वाद की कामना करें। हनुमान का ध्यान मन्त्र इस प्रकार है -----

ॐ अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनां अग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
मनोजवं मारुततुल्य वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानर यूथमुख्यं श्री रामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥

          ध्यान के पश्चात फिर निम्न मन्त्र का "मूँगा माला" से २१ माला मन्त्र जाप करें -----

मन्त्र :-----------

॥ ॐ नमो हनुमन्ताय आवेशय आवेशय स्वाहा ॥

OM NAMO HANUMANTAAY AAVESHAY AAVESHAY SWAAHA.

          मन्त्र जाप के बाद एक आचमनी जल छोड़कर समस्त जाप समर्पित कर दें। इसके तुरन्त बाद पूजा स्थान में वहीं भूमि पर ही सो जाएं। यह रात्रिकालीन साधना है। इस प्रकार नित्य ११ दिनों तक करें। जो नैवेद्य हनुमानजी के सामने रखा है, वह आठों प्रहर रखा रहे। अगले दिन रात्रि को वह नैवेद्य दूसरे पात्र में रख दें और नया नैवेद्य हनुमानजी को चढ़ा दें।

          यह निश्चित है कि ११ वें दिन हनुमानजी साधक को प्रत्यक्ष दर्शन देंगे और उसके प्रश्नों का उत्तर देंगे अथवा जिस निमित्त से यह प्रयोग किया गया है, वह कार्य निश्चय ही सम्पन्न होगा।

          जब यह प्रयोग पूरा हो जाए तो वह एकत्र किया हुआ नैवेद्य या तो किसी गरीब व्यक्ति को दे दें अथवा दक्षिण दिशा में घर के बाहर भूमि खोदकर उसे गाड़ दें।

          इसी प्रयोग से साधकों ने कई बड़ी-बड़ी विपत्तियों को सरलता से टाला है, भयंकर रोगों से छुटकारा पाया है, दण्ड पाये व्यक्ति को इस प्रयोग से निदान/छुटकारा मिल सका है, वास्तव में ही यह प्रयोग अपने आप में अचूक और अद्वितीय है।

           आपकी यह साधना सफल हो और भगवान हनुमानजी आपका मनोरथ सिद्ध करें! मैं सद्गुरुदेवजी से यही प्रार्थना करता हूँ।

           इसी कामना के साथ
 
ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश॥।

बुधवार, 21 मार्च 2018

संकटमोचन हनुमानाष्टक प्रयोग


संकटमोचन हनुमानाष्टक प्रयोग


          हनुमान जयन्ती समीप ही है। यह इस बार ३१ मार्च २०१८ को आ रही है। आप सभी को हनुमान जयन्ती की अग्रिम रूप से बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ!

          हनुमानजी अपने आप में पूर्ण समर्थ, सक्षम और सर्व व्यापक देवता हैं। श्री तुलसीदासजी स्वयं हनुमानजी के ऋणी हैं --- श्रीराम दर्शन और रोग-मुक्ति दोनों के लिए। हनुमान के चरित्र में ऐसा कोई रहस्य अवश्य है, जिससे कि साधकों को तुरन्त सफलता प्राप्त हो जाती है। मैंने जीवन में यह अनुभव किया है कि किसी भी प्रकार की रोग-मुक्ति के लिए हनुमान साधना अपने आप में पूर्ण और श्रेष्ठ साधना है।

          मानसिक और शारीरिक दोनों ही प्रकार के रोगों को समाप्त करने के लिए, जीवन में बुद्धि, बल, साहस एवं निर्भयता प्राप्त करने के लिए हनुमान साधना से बढ़कर कोई साधना नहीं है। आज का युग चंचल प्रवृत्ति का युग है। हम मन, वाणी और कर्म से चंचल एवं अधीर हो गए हैं। हम में पौरुषता और कर्मठता होनी चाहिए। वह आज के युग में कहीं पर भी दिखाई नहीं देती, इसीलिए जीवन में संयम प्राप्त करने के लिए और सभी दृष्टियों से पूर्णता प्रदान करने के लिए हनुमान साधना सर्वश्रेष्ठ और अद्वितीय है।

     हनुमान जो अणिमा आदि समस्त सिद्धियों को जानने वाले हैं, जो योग के क्षेत्र में अपने आप में पूर्ण हैं, जो सेवा की दृष्टि से पूरे संसार के लिए उदाहरण हैं और जो पूर्ण धन, यश तथा वैभव प्रदान करने में समर्थ हैं -----

अष्ट सिद्धि नवनिधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।

          वास्तव में ही हनुमान चंचल चित्त को स्थिर बनाने में समर्थ हैं। योग के द्वारा जो शक्ति और साहस प्राप्त होता है, वह हनुमानजी के द्वारा ही सम्भव है।

          मैंने अपने जीवन में अनेकों बार अनुभव किया है कि आर्थिक उन्नति के लिए, नवनिधि, अष्ट सिद्धि प्राप्त करने के लिए श्री हनुमानजी से बढ़कर और कोई समर्थ साधना नहीं है। चाहे कितना ही ऋण हो, यदि आगे दिया हुआ प्रयोग एक बार भी सम्पन्न कर लिया जाए तो निश्चय ही व्यक्ति ऋण से कुछ ही समय में मुक्त हो जाता है।

          अनेक बार तो मुझे ऐसा लगा कि यह प्रयोग होते-होते कार्य की सिद्धि होने लग जाती है। जीवन में बाधाएँ तो आती ही रहती है। परन्तु पूरे संसार में जितने प्रकार की साधनाएँ हैं, उन समस्त साधनाओं में इस कार्य के लिए हनुमानजी की साधना सबसे श्रेष्ठ और प्रमुख है। मेरे अपने जीवन में जब-जब भी बाधाएँ आईं, मैंने इसी प्रयोग को सम्पन्न किया और सम्पन्न होते-होते ही वातावरण कुछ इस प्रकार से बदल गया कि जो व्यक्ति प्रतिकूल थे, जो अधिकारी बात ही सुनना पसन्द नहीं करते थे, वे ही व्यक्ति और अधिकारी अनुकूलता प्रदर्शित करने लगे तथा आगे बढ़कर कार्य कर देते हैं। रोग-मुक्ति के लिए तो यह प्रयोग अपने आप में अद्वितीय है। मेरा तो अनुभव अब यह बना है कि चाहे कितना ही भीषण रोग हो, चाहे भौतिक व दैविक बाधाएँ हों, इस प्रयोग को सम्पन्न करने से उनका समाधान अवश्य हो जाता है।

                 यह प्रयोग मुझे बहुत समय पहले एक योगी से प्राप्त हुआ था। यह प्रयोग दिखने में अत्यन्त सरल हैपरन्तु इसका प्रभाव अपने आप में अचूक है। साधक को चाहिए कि हनुमान जयन्ती या हनुमान अष्टमी या मंगलवार की रात्रि को इस प्रयोग को निष्ठापूर्वक सम्पन्न करें।

         मेरे सम्पर्क में ऐसे अनेक साधक आए हैंजो प्रत्येक मंगलवार की रात्रि को यह प्रयोग सम्पन्न करते हैं और मैंने अनुभव किया है कि उनके जीवन में कभी किसी प्रकार की बाधा व्याप्त नहीं होतीभूत-प्रेतपिशाच आदि का भय नहीं रहतागृह बाधा या पितृदोष अपने आप में ही समाप्त हो जाते हैं और बहुत तेजी से उसका ऋण भी समाप्त होने लग जाता है तथा उसकी निरन्तर आर्थिक उन्नति होने लगती है।

साधना प्रयोग विधान :-----------

          इस प्रयोग को हनुमान जयन्ती,  हनुमान अष्टमी अथवा किसी भी मंगलवार के दिन सम्पन्न किया जा सकता है। जिस दिन यह प्रयोग सम्पन्न करना हो, साधक स्वयं लाल धोती पहिनकर दक्षिण दिशा की ओर मुख कर लाल आसन पर बैठ जाएं और सामने किसी बाजोट (चौकी) पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर भगवान महावीर हनुमानजी का चित्र या हनुमान यन्त्र या विग्रह स्थापित कर दे। उसके बाद धूप-अगरबत्ती जला लें
     
         फिर साधक सामान्य गुरुपूजन करे और गुरुमन्त्र का कम से कम एक माला जाप करे। इसके बाद साधक सदगुरुदेवजी से संकटमोचन हनुमानाष्टक प्रयोग सम्पन्न करने की अनुमति लें और उनसे साधना की पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करे।

         फिर साधक भगवान गणपतिजी का सामान्य पूजन करे और " वक्रतुण्डाय हुम्" मन्त्र का एक माला जाप करे। तत्पश्चात साधक भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करे।

                इसके बाद साधक को चाहिए कि वह संकल्प अवश्य लें। संकल्प में अपनी जो भी समस्या होजिस प्रकार की भी बाधा हो, जिसके निवारण के लिए आप यह प्रयोग कर रहे हैं, उसका उल्लेख अवश्य करें और उसकी निवृत्ति के लिए हनुमानजी से प्रार्थना करें

          इसके उपरान्त हनुमान यन्त्र या विग्रह या चित्र का सामान्य पूजन करें और लाल रंग के पुष्प चढ़ाएं। किसी भी मिष्ठान्न का भोग  लगाएं इसके बाद चित्र या विग्रह के सामने पाँच दीपक तेल के लगावें, उनमें किसी भी प्रकार के तेल का प्रयोग किया जा सकता है और सामने एक ताँबे के लोटे में पानी भरकर रख दें। फिर हनुमानजी का ध्यान करें -----

ॐ मनोजवं मारूततुल्य वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
     वातात्मजं वानर यूथ मुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये।।

          ध्यान सम्पन्न करने के बाद एक बार पुनः हनुमानजी के सामने अपनी समस्या का निवेदन करें और फिर निम्न प्रकार से अष्टक का उच्चारण करें।

          कार्यसिद्धि के लिए एक ही रात्रि में १०८ बार संकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ होना आवश्यक है।

संकटमोचन हनुमानाष्टक

॥ मत्तगयन्द ॥

बाल समय रबि भक्षी लियो तब तीनहुँ लोक भयो अँधियारो।
ताहि सों त्रास भयो जग को यह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आनि करी बिनती तब छाँड़ि दियो रबि कष्ट निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥१॥

बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि साप दियो तब चाहिय कौन बिचार बिचारो।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु सो तुम दास के सोक निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥२॥

अंगद के संग लेन गए सिय खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो।
हेरी थके तट सिन्धु सबै तब लाए सिया सुधि प्राण उबारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥३॥

रावण त्रास दई सिय को सब राक्षसी सों कही सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु जाए महा रजनीचर मारो।
चाहत सीय असोक सों आगि सु दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥४॥

बान लग्यो उर लछिमन के तब प्राण तजे सुत रावन मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो।
आनि सजीवन हाथ दिए तब लछिमन के तुम प्रान उबारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥५॥

रावन जुद्ध अजान कियो तब नाग कि फाँस सबै सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल मोह भयो यह संकट भारो।
आनि खगेस तबै हनुमान जु बंधन काटि सुत्रास निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥६॥

बंधु समेत जबै अहिरावन लै रघुनाथ पताल सिधारो।
देबिहिं पूजि भलि विधि सों बलि देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो।
जाये सहाए भयो तब ही अहिरावन सैन्य समेत संहारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥७॥

काज किये बड़ देवन के तुम बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को जो तुमसे नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु जो कछु संकट होए हमारो।
को नहीं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥८॥

दोहा

लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
वज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर॥

          पाठ सम्पन्न होने के बाद एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समस्त जाप एवं पूजन समर्पित कर दें। लोटे में जो जल रखा हुआ है, वह जल घर में छिड़क दें या घर में किसी को रोग हो तो उसे वह जल पिला दें।

          यह निश्चित समझे कि दूसरे दिन सुबह से ही अनुकूलता प्रारम्भ हो जाती है, किसी भी प्रकार का संकट निश्चय ही समाप्त हो जाता है।

          आपकी साधना सफल हो और आपकी मनोकामना पूर्ण हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।।

रविवार, 2 अप्रैल 2017

श्री हनुमान चालीसा सिद्धि

श्री हनुमान चालीसा सिद्धि



         श्रीराम नवमी और श्रीहनुमान जयन्ती निकट ही है। इस बार श्रीराम नवमी ५ अप्रैल २०१७ और श्रीहनुमान जयन्ती ११ अप्रैल २०१७ को आ रही है। आप सभी को श्रीराम नवमी और श्रीहनुमान जयन्ती की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

                  शास्त्रों के अनुसार कलयुग में हनुमानजी की भक्ति को सबसे रूरी, प्रथम और उत्तम बताया गया है। हनुमानजी की भक्ति सबसे सरल और जल्द ही फल प्रदान करने वाली मानी गई है। यह भक्ति जहाँ हमें भूत-प्रेत जैसी न दिखने वाली आपदाओं से बचाती है, वहीं यह ग्रह-नक्षत्रों के बुरे प्रभाव से भी बचाती है। हनुमानजी को मनाने के लिए और उनकी कृपा पाने के लिए सबसे सरल उपाय है हनुमान चालीसा का नित्य पाठ।

         हनुमान चालीसा के बारे में आज के युग में कौन व्यक्ति नहीं जानता? सन्त प्रवर गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित यह हनुमान चालीसा हिन्दी भाषी जगत् में सर्व प्रसिद्ध है। जिस प्रकार से श्रीरामचरित मानस का प्रचार-प्रसार है, उससे भी कहीं अधिक हनुमान चालीसा का है। प्रत्येक कल्याणकामी व्यक्ति के लिए बल, बुद्धि, विद्या इन तीनों की प्राप्ति परमावश्यक है। बलबुद्धिविद्या से रहित कोई भी व्यक्ति, जाति तथा राष्ट्र किसी भी प्रकार से सुखसमृद्धि का भाजन नहीं बन सकता और बलबुद्धिविद्या के स्रोत स्वयं रुद्रावतार भगवान् आंजनेय ही हैं। उनकी प्राप्ति के लिए उनके चरित्र चिन्तन के रूप में विरचित हनुमान चालीसा एक अमोघ साधन है।

         वस्तुतः हनुमान चालीसा एक विलक्षण साधना क्रम है, जिसमें कई सिद्धों की शक्ति एक साथ कार्य करती है। विविध साबर मन्त्रों के समूह सम यह चालीसा अनन्त शक्तियों से सम्पन्न है। अगर सूक्ष्म रूप से अध्ययन किया जाए तो यह हनुमानजी के ही मूल शिवस्वरुप के आदिनाथ स्वरुप की ही साबर अभ्यर्थना है। कानन कुण्डल, संकर सुवन, तुम्हारो मन्त्र, आपन तेज, गुरुदेव की नाईं, अष्टसिद्धि आदि विविध शब्द के बारे में साधक खुद ही अध्ययन कर विविध पदों के गूढ़ार्थ समझने की कोशिश करे तो कई प्रकार के रहस्य साधक के सामने उजागर हो सकते हैं।

         हनुमान चालीसा की साधना बड़ी ही सरल और सुगम है, थोड़े ही प्रयास से अल्पज्ञ बालक भी इसे याद कर सकता है। बालक, वृद्ध, स्त्री, पुरुष कोई भी श्रद्धायुक्त होकर प्रात:काल शौच और स्नान के पश्चात् श्रीहनुमान जी की मूर्ति के समक्ष मन्दिर में या घर में ही श्रीहनुमान जी के चित्र के सामने, हो सके तो अगरबत्ती जलाकर श्रीहनुमान जी का ध्यान करते हुए इस चालीसा का नित्यप्रति पाठ करें। इससे वह सब प्रकार की बाधाओं से मुक्त होकर सुखसमृद्धि का पात्र बनेगा, इसमें सन्देह नहीं।

         यदि आप मानसिक अशान्ति झेल रहे हैं, कार्य की अधिकता से मन अस्थिर बना हुआ है, घर-परिवार की कोई समस्या सता रही है तो ऐसे में इसके पाठ से चमत्कारिक फल प्राप्त होता है, इसमें कोई शंका या सन्देह नहीं है।

         जो व्यक्ति प्रतिदिन हनुमान चालीसा पढ़ता है, उसके साथ कभी भी कोई घटना-दुर्घटना नहीं होती। 

         हनुमान चालीसा की यह साधना सकाम प्रयोग तथा निष्काम प्रयोग दोनों ही रूपों में की जा सकती है। इसीलिए साधक को अनुष्ठान करने से पूर्व अपनी कामना का संकल्प लेना आवश्यक है। अगर साधक निष्काम भाव से यह प्रयोग कर रहा है तो संकल्प लेना आवश्यक नहीं है।

         साधक अगर सकाम रूप से साधना कर रहा है तो साधक को अपने सामने भगवान हनुमान का वीरभाव से युक्त चित्र स्थापित करना चाहिए अर्थात जिसमें वे पहाड़ को उठा कर ले जा रहे हों या असुरों का नाश कर रहे हों। लेकिन अगर निष्काम साधना करनी हो तो साधक को अपने सामने दासभाव युक्त हनुमान का चित्र स्थापित करना चाहिए अर्थात जिसमें वे ध्यान मग्न हों या फिर श्रीरामजी के चरणों में बैठे हुए हों।

         साधक को यह साधना क्रम एकान्त में करना चाहिए। अगर साधक अपने कमरे में यह क्रम कर रहा हो तो जाप के समय उसके साथ कोई और दूसरा व्यक्ति नहीं होना चाहिए। सकाम उपासना में वस्त्र लाल रहे, निष्काम में भगवे रंग के वस्त्रों का प्रयोग होता है।

         स्त्री साधिका हनुमान चालीसा या साधना नहीं कर सकती, यह मात्र मिथ्या धारणा ही है। कोई भी साधिका हनुमान साधना या प्रयोग सम्पन्न कर सकती है। मासिक रजस्वला समय में यह प्रयोग या कोई भी साधना नहीं की जा सकती है।

         आज सर्वजन हितार्थ श्री हनुमान चालीसा की साधना विधि प्रस्तुत की जा रही है, जो मुझ सहित अनेकानेक साधकों एवं हनुमान भक्तों द्वारा अनुभूत की हुई है।

साधना विधान :----------

           यह साधना साधक श्रीराम नवमीहनुमान जयन्ती अथवा किसी भी मंगलवार की रात्रि को शुरु कर सकता है तथा समय १० बजे के बाद का रहेगा। सर्वप्रथम साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल या भगवे वस्त्र धारण करके लाल आसन पर बैठ जाए। सकाम और निष्काम दोनों ही कार्यों में दिशा उत्तर ही रहेगी।

         साधक अपने समीप ही किसी पात्र में १०८ भुने हुए चने या १०८ तिल की रेवड़ियाँ रख ले। अब साधक अपने सामने किसी बाजोट पर लाल वस्त्र बिछा कर उस पर हनुमानजी का चित्र या यन्त्र या विग्रह और सदगुरुदेवजी का चित्र स्थापित करे। साथ ही भगवान गणपतिजी का विग्रह या प्रतीक रूप में एक सुपारी स्थापित करे। उसके बाद दीपक और धूप-अगरबत्ती जलाए।

         फिर साधक सामान्य गुरुपूजन करे और गुरुमन्त्र का कम से कम चार माला जाप करे। इसके बाद साधक सदगुरुदेवजी से हनुमान चालीसा साधना सम्पन्न करने की अनुमति ले और उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करे।

         फिर साधक भगवान गणपतिजी का सामान्य पूजन करे और " वक्रतुण्डाय हुम्" मन्त्र का एक माला जाप करे। तत्पश्चात साधक भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करे।

          इसके बाद साधक भगवान हनुमानजी का सामान्य पूजन करे। उन्हें सिन्दूर से तिलक करे और फिर धूप-दीप अर्पित करे। साधक को भोग में गुड़ तथा उबले हुए चने अर्पित करने चाहिए। साथ ही कोई भी फल अर्पित किया जा सकता है। साधक दीपक तेल या घी का लगा सकता है। साधक को आक के पुष्प या लाल रंग के पुष्प समर्पित करना चाहिए।

          इस क्रिया के बाद साधक "हं" बीज का उच्चारण कुछ देर करे तथा उसके बाद अनुलोम-विलोम प्राणायाम करे। प्राणायाम के बाद साधक हाथ में जल लेकर संकल्प करे तथा अपनी मनोकामना बोले। अगर कोई विशेष इच्छा के लिए साधना की जा रही हो तो साधक को संकल्प लेना चाहिए कि मैं अमुक नाम का साधक अमुक गोत्र अमुक गुरु का शिष्य होकर यह साधना अमुक कार्य के लिए कर रहा हूँ। भगवान हनुमान मुझे इस हेतु सफलता के लिए शक्ति तथा आशीर्वाद प्रदान करे।

          इसके बाद साधक राम रक्षा स्तोत्र का एक पाठ या "रां रामाय नमः" का यथासम्भव जाप करे। जाप के बाद साधक अपनी तीनों नाड़ियों अर्थात इडा, पिंगला तथा सुषुम्ना में श्री हनुमानजी को स्थापित मान कर उनका ध्यान करे ----------

अतुलित बलधामं हेमशैलाभ देहं,                                                                      दनुजवन कृशानुं ज्ञानिनां अग्रगण्यं।                                            सकल गुणनिधानं वानराणामधीशं,                                                                          रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि।।

          अब जो १०८ भुने हुए चने या तिल की रेवड़ियाँ आपने ली थी, वे अपने सामने एक कटोरी में रख लें तथा हनुमान चालीसा का जाप शुरू कर दे ———

श्रीहनुमान चालीसा

।। दोहा।।

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।                                                      बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवनकुमार।                                                                    बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

।। चौपाई।।

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।                                 राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।।

महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।                                          कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा।।

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै।।                                                शंकर सुवन केसरी नन्दन। तेज प्रताप महा जगबन्दन।।

विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।                                            प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। विकट रूप धरि लंक जरावा।                                  भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचन्द्र के काज सँवारे।।

लाय संजीवन लखन जियाये। श्री रघुबीर हरषि उर लाये।                                      रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं।।                        सनकादिक ब्रहमादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा।।

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते।।                                    तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना।।                                       जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं।।                               दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।                                                    सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डर ना।।

आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक तें काँपै।।                                                   भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।

नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।                                              संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।

सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा।।                                    और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै।।

चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।।                                             साधु सन्त के तुम रखवारे। असुर निकन्दन राम दुलारे।।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।                                     राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।।

तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दु:ख बिसरावै।।                                     अन्त काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई।।

और देवता चित्त न धरई। हनुमत् सेई सर्व सुख करई।।                                          संकट कटै मिटे सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

जय जय जय हनुमान गौसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।                                          जो शत बार पाठ कर कोई। छूटहिं  बन्दी महासुख होई।

जो यह पढ़ै हनुमान् चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।।                                 तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।

।। दोहा।।

पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।                                                                      राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

           इस साधना में आपको श्रीहनुमान चालीसा के १०८ पाठ करने हैं। आप हनुमान चालीसा पढ़ते जाएं और हर एक बार पाठ पूर्ण होने के बाद एक चना या रेवड़ी हनुमानजी के यन्त्र/चित्र/विग्रह को समर्पित करते जाएं। इस प्रकार १०८ बार पाठ करने पर १०८ चने या रेवड़ियाँ समर्पित करनी चाहिए।

                   १०८ पाठ पूरे होने के बाद साधक पुनः "हं" बीज का थोड़ी देर उच्चारण करे तथा जाप को हनुमानजी के चरणों में समर्पित कर दे।

         यह साधना २१ दिनों की है। साधक या तो लगातार २१ दिनों तक प्रतिदिन यह साधना करे या हर मंगलवार को कुल २१ मंगलवार तक यह साधना करे।
 
                    २१ वें दिन आपके द्वारा पूरे १०८ पाठ करके चने या तिल की रेवड़ी जब चढ़ा दी जाए, तब उसके बाद साधना पूर्ण होने पर अन्तिम दिन मन्दिर जाएं और भगवान हनुमानजी के दर्शन करे। साथ ही साथ साधना के दौरान भी आप हनुमत दर्शन करते रहें।

         साधक-साधिकाओं को यह साधना शुरू करने से एक दिन पूर्व से लेकर साधना समाप्त होने के एक दिन बाद तक कुल २३ दिन तक ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य है। लेकिन साधना २१ मंगलवार तक करने की स्थिति में प्रयोग के एक दिन पूर्वप्रयोग के दिन तथा प्रयोग के दूसरे दिन अर्थात कुल तीन दिन प्रति सप्ताह ब्रह्मचर्य पालन करना आवश्यक है।

          कुछ भी हो, कैसा भी संकट आए, आपने साधना शुरू कर दी तो छोड़ना नहीं। प्रभु आपकी परीक्षा भी ले सकते हैं। साधना से विचलित करेंगे ही, पर आप दृढ़ रहें, क्योंकि भक्ति में अटूट शक्ति है और एक बार आपने यह साधना कर ली तो जो आनन्द और जीवन में उत्साह का प्रवाह होगा - उसका वर्णन मैं अपनी तुच्छ बुद्धि से नहीं कर सकता। फिर भी इतना कह सकता हूँ कि इस साधना से निश्चित ही आप की अभिलाषा की पूर्ति होगी। क्योंकि तुलसीदास जी ने कहा है ना - "कवन सो काज कठिन जग माही, जो नही होहि तात तुम पाहि।"

          साधना का क्रम यही रहेगा, २१ दिन या २१ मंगलवार तक तथा प्रतिदिन जो १०८ चने या तिल की रेवड़ी आप ने प्रभु को अर्पण किए थे, वो आप ही को खाना है, किसी को देना नही है।

          आपकी यह श्रीहनुमान चालीसा साधना सफल हों और आपको भगवान हनुमानजी का आशीर्वाद प्राप्त हों ! मैं सदगुरुदेवजी से यही प्रार्थना करता हूँ।

         इसी कामना के साथ 
  
     ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश॥