रविवार, 26 फ़रवरी 2017

होली और तन्त्र प्रयोग

 होली और तन्त्र प्रयोग



               सम्पूर्ण वर्ष के महत्वपूर्ण दिवसों में दारुण रात्रि, जो कि होलिका दहन के दिन को कहा गया है। महोरात्रि यानि महाशिव रात्रि, मोहरात्रि यानि कृष्णजन्माष्टमी और महानिशा यानि दिवाली की रात को कहा जाता है। इसके अलावा विशिष्ट दिनों में जो कि दीर्घकालीन दिवस हैं, वे नवरात्री (दोनों), होलिकाष्टक, श्रावणमास और तन्त्र मास या तन्त्र दिवस हैं। इस तरह हमारे पास साधनाओं के लिए बहुत समय मिलता है।

                इसी क्रम में अति विशिष्ट और महत्वपूर्ण दिवसों की शुरुआत हो चुकी है तन्त्र मास के, जो कि महाशिवरात्रि से प्रारम्भ होकर धुरेंडी तक चलते हैं।  साधकों के लिए ही तो इस तरह के दिवस की उपयोगिता होती है, क्योंकि साधक ही उस क्षण विशेष को जानकर, समझ कर इसका उपयोग करने से नहीं चूकते। वे जानते हैं कि जो कार्य अन्य दिनों में सम्भव ना हो, वो सब कार्य या सिद्धि इन विशेष दिवसों में सम्पन्न हो ही जाते हैं।

              सदगुरुदेव ने इस विषय पर अनेक बार समझाया है, क्षण के महत्व को, समय के महत्व को, कि एक साधक कैसे उस क्षण को पकड़ कर उसका सदुपयोग करता है, कैसे वो उस क्षण को अपने लिए प्रभावकारी बना लेता है, अनेकों बार गुरुदेव भजन रोककर या समयानुसार समय देखकर दीक्षाएँ और प्रयोग करवा दिया करते थे। तो क्यों ना हम भी उन क्षणों को पकड़ने की कला सीखें? क्यों ना हम भी उस समय का सदुपयोग करें?

            तन्त्र दिवस और उस पर होलिकाष्टक है ना विशिष्ट समय तो पकड़ लीजिए उन क्षणों को, और कर लीजिए आसान राह जिंदगी की।  क्योंकि यही वो समय है जिसका साधक, विशेषकर तन्त्र साधक, बड़ी बेसब्री से इन्तज़ार करते हैं। क्योंकि यही वो समय होता है जब हमें हमारा अभीष्ट बिलकुल सामने दिखाई देता है, बस आवश्यकता है उसे पकड़ने की।

             तन्त्र मास और होलिकाष्टक के स्वर्णिम अवसर पर करने योग्य कुछ सरल साधना प्रयोग यहाँ दिए जा रहे हैं। इन समस्त प्रयोगों को महाशिवरात्रि से नवरात्रि तक पूरे तन्त्र मास में कभी भी सम्पन्न किया जा सकता है।

. तन्त्र-बाधा (अभिचार-कर्म) निवारक प्रयोग

                होली की रात्रि में या किसी अन्य सिद्ध मुहूर्त में लकड़ी के बाजोट (चौकी) पर लाल वस्त्र बिछाकर, उस पर ताँबे के पात्र में जल भरकर, पान का एक पत्ता उसमें डाल कर रख दें। ताँबे के पात्र को काले तिल की ढेरी पर स्थापित करें। सरसों के तेल का दीपक जला लें। फिर निम्न मन्त्र की २१ माला जाप करें---

मन्त्र :---


।। ॐ आं ह्रीं क्रों ऐं ।।

               इस प्रकार यह प्रयोग लगातार तीन दिन तक करें। अन्तिम दिन ताँबे के पात्र में रखे अभिमन्त्रित जल को पूरे घर में पान के पत्ते से छिड़काव करें। जल की कुछ मात्रा घर का प्रत्येक सदस्य ग्रहण करे तो तन्त्र-बाधा शान्त होती है। काले तिलों को शनिवार के दिन बहते जल में विसर्जित कर दें।

. सर्व उपद्रव नाशन प्रयोग

               यदि आपके कार्यों में लगातार बाधाएँ आ रही हों अथवा आपके घर में अचानक ही किसी प्रकार की कोई अप्रिय घटनाएँ घटित होती हों, जिसके कारण बड़ी हानि उठानी पड़ती हो अथवा आपको लगता हो कि आपके घर पर कोई ऊपरी चक्कर है अथवा किसी ने कोई बन्दिश करवा दी है तो आप इस उपाय के माध्यम से उपरोक्त सभी समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं।

              होली की रात्रि में आप घर के किसी शुद्ध स्थान पर गोबर से लीपकर उस पर अष्टदल बनाएं। फिर उस पर एक बाजोट रखकर लाल वस्त्र बिछाएं। लाल वस्त्र पर अभिमन्त्रित ३ लघु नारियल तथा श्रीहनुमान यन्त्र को स्थान दें। इसके बाद एक पात्र में थोड़ा-सा गाय का कच्चा दूध रखें तथा अलग से पंचगव्य रखें। फिर नारियल व यन्त्र पर रोली से तिलक करके प्रभु श्री हनुमान जी से अपनी समस्या के समाधान का निवेदन करें और गुड़ का भोग लगाएं। तत्पश्चात शुद्ध घी के दीपक के साथ चन्दन की अगरबत्ती व गुग्गुल की धूप अर्पित करें। फिर ताँबे की प्लेट पर रोली से  "ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्" मन्त्र लिखें।  फिर एक सामान्य नारियल को फोड़कर (पधारकर) उसके पानी को अपने साधना स्थल पर छिड़क दें और नारियल को प्लेट के पास रख दें।

               फिर मूँगे की माला से निम्न मन्त्र की तीन माला जाप करें -

मन्त्र :---


।। ॐ घण्टाकर्णो महावीर सर्व उपद्रव नाशन कुरु-कुरु स्वाहा ।।

                मन्त्र जाप समाप्त होने के बाद प्रणाम करके बाहर आ जाएं। गाय के दूध को अपने घर के चारों ओर घूमते हुए धारा के रूप में बिखराकर कवच जैसा बना दें और पंचगव्य से मुख्य द्वार को लीप दें।

              अगले दिन स्नान करके प्रभु को भोग व धूप-दीप अर्पित करके घण्टाकर्ण मन्त्र की पुनः तीन माला का जाप करें। इस प्रकार यह क्रिया लगातार ग्यारह दिन तक करें। ग्यारहवें दिन मन्त्र जाप के बाद १४-१८ वर्ष के किसी लड़के को भोजन कराकर दक्षिणा और वस्त्र आदि दें। फिर उसके चरण स्पर्श कर उसे विदा करें। उसके जाने के बाद लाल वस्त्र में लघु नारियल, यन्त्र और टूटा नारियल रखकर एक पोटली का रूप दें। उसको किसी लकड़ी के डिब्बे में रखकर अपने घर में कहीं भी गड्ढा खोदकर दबा दें। अब ताँबे की जिस प्लेट में आपने प्रभु श्रीहनुमान जी का मन्त्र लिखा था, उसमें गंगाजल डालकर धो लें और उस जल को अपने घर में छिड़क दें।

              यदि आप किसी फ्लैट में रहते हैं, जहाँ आपको पोटली दबाने का कोई स्थान न मिले तो अपने फ्लैट के पास किसी कच्चे स्थान पर भी दबा सकते हैं।

             इस उपाय से कुछ ही समय बाद आप चमत्कारिक परिवर्तन अनुभव करेंगे।

            यदि यह उपाय आप होली पर नहीं कर पाते हैं तो शुक्लपक्ष के प्रथम मंगलवार से आरम्भ करें। सभी समस्याएँ दूर हो जाएंगी।

. सर्व कार्य सिद्धि प्रयोग

                यदि आपका कोई कार्य रुका हुआ है अथवा कार्यों में अचानक ही कोई रुकावट आ जाती है तो आप होलाष्टक के प्रथम  दिवस पर २१ अभिमन्त्रित गोमती चक्र व एक हत्थाजोड़ी लेकर लाल वस्त्र के ऊपर रखकर धूप-दीप से पूजन करें। फिर निम्न मन्त्र का ११ माला जाप करें –

मन्त्र :---


।।ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं श्रीं श्रीं श्रीं सर्व कार्य सिद्धि देहि मे फट् स्वाहा।।

              यह प्रयोग लगातार सात दिन तक करें।  इस प्रकार सम्पूर्ण सामग्री अभिमन्त्रित हो जाने के बाद किसी चाँदी की डिब्बी में हत्थाजोड़ी को एवं लकड़ी की डिब्बी में गोमती चक्र को सिन्दूर के साथ रख दें। इस उपाय से आप आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ कार्यों में आनेवाली रुकावटों से भी मुक्ति पा लेंगे।

. इच्छित व्यक्ति वशीकरण प्रयोग

                यदि आप किसी को अपने वश में करना चाहते हैं तो होली की रात्रि में होलिका दहन से पहले चाँदी के कप अथवा गिलास में ताजा जल भर लें। उसमें थोड़ी-सी मिश्री मिला लें तथा ११ बार होली की परिक्रमा करें। प्रत्येक परिक्रमा में उस व्यक्ति को अपने वश में करने तथा पूर्ण कार्य सिद्धि के लिए होलिका माता से निवेदन करें। फिर जल को घर लाकर किसी लाल कपड़े पर स्थापित करें और उसका धूप-दीप से पूजन करें। फिर निम्न मन्त्र की स्फटिक माला से तीन माला जाप करें –

मन्त्र :---


।। ॐ ह्रीं ह्रीं फ्रीं ।।

                 फिर अपने हाथ से उस गिलास या कप का स्पर्श कर कार्य सिद्धि का पुनः निवेदन करें। इसके बाद पुनः एक माला मन्त्र जाप करें। प्रत्येक मन्त्र उच्चारण बाद जल में फूँक मारें। इस जल को २४ घण्टे के भीतर ही उस व्यक्ति को पिला देना चाहिए। वह व्यक्ति वशीभूत होकर आपके इच्छित कार्य को सम्पन्न कर देगा।

. धनदायक सरल प्रयोग

                होली की रात्रि में होलिका दहन से पहले आप अपने घर के पूजा-स्थान में लाल या पीले आसन पर बैठकर माँ लक्ष्मी को रोली और लाल गुलाल मिलाकर तिलक करें। शुद्ध घी का दीपक व धूप-अगरबत्ती करके कोई पीला प्रसाद अर्पित करें। इसके बाद माँ के चरणों में पीला गुलाल एवं तीन अभिमन्त्रित गोमती चक्र अर्पित करें। फिर माँ लक्ष्मी के चित्र अथवा प्रतिमा के समक्ष कमलगट्टे की माला से निम्न मन्त्र का पाँच माला जाप करें ---

मन्त्र :---


।। ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमलवासिन्यै नमः ।।

                जाप पूर्ण होने के बाद प्रणाम करके उठ जाएं।

               अगले दिन माँ लक्ष्मी के चरणों से पीला गुलाल व तीनों गोमती चक्र उठाकर एक लाल वस्त्र में बाँधकर घर के किसी शुद्ध स्थान अथवा तिजोरी में रख दें। इस उपाय से एक वर्ष के लिए माँ लक्ष्मी के चरण आपके घर में उस पोटली में ही रहेंगे और आपको वर्षभर धन की कमी नहीं होगी।

                 दूसरे साल आप पुनः इस प्रयोग को फिर से उपरोक्त विधि से सम्पन्न करें। इस प्रयोग को करने से पहले अर्थात् होली के एक दिन पूर्व पिछले साल वाली पोटली को धूप-अगरबत्ती अर्पित करें। जब अगरबत्ती पूरी तरह जल जाए, तब उस पोटली को जल में प्रवाहित कर दें। इसके स्थान पर पुनः यह प्रयोग करने के बाद नयी पोटली बनाकर एक वर्ष के लिए रख दें। यदि आप इस प्रयोग को प्रत्येक साल होली के सुअवसर पर करते रहेंगे तो फिर माँ लक्ष्मी जी की कृपा आप पर हमेशा ही बनी रहेगी।

. संकटमोचन हनुमन्त प्रयोग

               यदि आप पर कोई संकट है, तो तन्त्र मास के किसी मंगलवार के दिन से नीचे लिखे हनुमान मन्त्र का विधि-विधान से जाप आरम्भ करें—

मन्त्र :


।। ॐ नमो हनुमते रूद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा ।।

जप विधि :

           सुबह जल्दी उठकर सर्वप्रथम स्नान आदि नित्यकर्म से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहनें। इसके बाद अपने माता-पिता, गुरु, इष्ट व कुलदेवता को नमन कर कुश अथवा लाल ऊन के आसन पर बैठें। पारद हनुमान प्रतिमा अथवा हनुमान चित्र के सामने इस मन्त्र का नित्य तीन माला जाप करेंगे तो विशेष फल मिलता है। जाप के लिए लाल हकीक की माला का प्रयोग करें।

              यह प्रयोग ग्यारह दिन तक नियमित रूप से सम्पन्न करें। हनुमान जी की कृपा से सभी प्रकार के संकट दूर हो जाएंगे।

. कार्यक्षेत्र में शत्रु-षडयन्त्र नाशन प्रयोग

               कभी-कभी हमारे आसपास या हमारे कार्य स्थान पर कोई न कोई हमारे विरुद्ध षडयन्त्र रच रहा होता है। इसका असर हमारे काम और मन दोनों पर पड़ता है।

               इस प्रयोग से उस इन्सान के सभी क्रियाकलापों पर पाबन्दी लग जाती है। यह प्रयोग बीज मन्त्रों से युक्त है, अतः पूर्ण सावधानी से करना चाहिए।

              शनिवार रात्रि ८ बजे के बाद शिव मन्दिर में जाएं। हनुमानी सिन्दूर में उपले की राख मिला कर उसे पानी में घोंट कर स्याही बना लें। अब शिव मन्दिर में शिवलिंग के सामने ही एक भोजपत्र अथवा कागज पर इस स्याही से एवं अनार की कलम से यह मन्त्र शत्रु के नाम के साथ लिखें ---

मन्त्र :---


।। हूं ह्रौं हूं ह्रीं हूं फट् अमुक हूं ह्रौं हूं ह्रीं हूं फट् ।।

              फिर इसी मन्त्र की ३ माला जाप करें।

               चाहे तो आप यह जाप घर पर कर सकते हैं, परन्तु कागज वाली क्रिया आपको शिवलिंग के सामने ही करनी होगी। जिनके पास पारद शिवलिंग हैं, वे घर पर ही सारी क्रिया कर सकते हैं।

              इस प्रयोग को शनिवार-रविवार-सोमवार-मंगलवार कुल चार दिन करना है। कागज पर नाम व मन्त्र लिखने वाली क्रिया मात्र शनिवार को ही करनी है। अन्तिम दिन अर्थात मंगलवार को जाप के बाद इस कागज को किसी वीरान जगह गड्ढा खोदकर गाड़ देना चाहिए।

             इस चार दिनों के प्रयोग को बार-बार करना चाहिए ताकि आपकी ऊर्जा का विस्तार हो सके। अमुक की जगह शत्रु का नाम लिखना एवं जाप के मध्य बोलना चाहिए।

            प्रयोग का दुरुपयोग न करे अन्यथा स्वयं को ही हानि होगी।

आज के लिए बस इतना ही।

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।

शनिवार, 25 फ़रवरी 2017

होली पर करने योग्य सरल प्रयोग

    होली पर करने योग्य सरल प्रयोग




                   होलिका दहन की रात्रि साधकों और तान्त्रिकों के लिए तो महत्वपूर्ण होती ही है, परन्तु आम व्यक्तियों के लिए भी कम महत्वपूर्ण नहीं होती। क्योंकि इस दिन व्यक्ति अपनी बहुत-सी या किसी भी समस्या का निदान साधनाओं या छोटे-छोटे प्रयोगों द्वारा कर सकता है। साधनाएँ बहुत लम्बी होती हैं और हर व्यक्ति के पास इतना समय नहीं होता कि ज़्यादा समय साधनाओं में दे सके। हालाँकि इस दिन की गई एक माला मन्त्र जाप का प्रभाव लगभग सौ माला के बराबर होता है, इसलिए साधक और तान्त्रिक लोग इस मुहूर्त का बहुत बेसब्री से इन्तज़ार करते हैं। जिस से कम समय और श्रम में लम्बी साधनाएँ भी सिद्ध कर सकें।
                    यहाँ हम कुछ ऐसे ही लघु प्रयोग देने जा रहे हैं, जिनके द्वारा सामान्य व्यक्ति भी अपने दैनिक जीवन में आने वाली कई समस्याओं का समाधान खुद कर सकते हैं, बस ज़रूरत है तो श्रद्धा और विश्वास से इन लघु प्रयोगों को करने की।
                   महाशिवरात्रि से लेकर चैत्र मास की नवरात्रि तक के समय को "तन्त्र माह" कहा जाता है। इस समयावधि में यदि इन प्रयोगों को सम्पन्न किया जाए तो इनका पूर्ण लाभ साधक को अवश्य ही प्राप्त होता है। अतः आप प्रयोग सम्पन्न करें और लाभ उठाएं।

खण्ड ()  होली का मूल प्रयोग

                    होलिका दहन की रात्रि में होलिका दहन के समय घर का प्रत्येक सदस्य होलिका को शुद्ध घी में भिगोकर दो लौंग, एक बताशा और एक पान का पत्ता डण्ठल सहित अर्पित करे, होली की ११ परिक्रमाएँ करें, एक सूखा नारियल भी अर्पित करें। परिक्रमा करते समय नया अनाज (जौ या गेहूँ)भी बाली सहित होलिकाग्नि को समर्पित करते रहें। कुमकुम, गुलाल और प्रसाद आदि भी अर्पित करें।
                     यदि आप घर पर भी होलिका दहन करते हैं तो मुख्य होली में से एक जलती लकड़ी घर पर लाकर नवग्रह की समिधाओं (लकड़ियों)एवं गाय के गोबर से बने उपलों (कहीं-कहीं गोबर से बल्ग़ुरियाँ बनाकर भी उपलों की जगह जलाई जाती हैं) से घर पर होली प्रज्ज्वलित करना चाहिए और ऊपर जो प्रयोग दिया है, उसे मुख्य होली पर ना करके घर पर भी कर सकते हैं। घर का प्रत्येक सदस्य शुद्ध घी में भिगोकर दो लौंग, एक बताशा और पान का एक पत्ता, एक सूखा नारियल अर्पित करें और फिर होली की ११ परिक्रमाएँ  घर के सभी सदस्य करें। यह होली का मूल प्रयोग है।

खण्ड ()  होली पर करने योग्य टोटके

        १. यदि किसी ने आपके व्यवसाय अथवा निवास पर किसी प्रकार की कोई तन्त्र क्रिया करवा रखी है तो आप यह उपाय अवश्य करें। होली की रात्रि में जिस स्थान पर होलिका दहन हो, उस स्थान पर एक गड्ढा खोदकर उसमें ११ अभिमन्त्रित धनकारक कौड़ियाँ दबा दें। अगले दिन कौड़ियों को निकालकर व्यवसाय स्थल की मिट्टी के साथ नीले वस्त्र में बाँधकर बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। तन्त्र क्रिया नष्ट हो जाएगी।
विशेष :— यदि आपके लिए उपरोक्तानुसार प्रयोग करना सम्भव न हो पाए तो इसे दूसरे रूप में भी किया जा सकता है। होलिका दहन के पश्चात कण्डे, झाड़ियाँ तथा अन्य सामग्री को जलाने से जो राख बनती है, उसमें से थोड़ी राख किसी पात्र में डालकर घर ले आएं। निवास स्थान के बाहर फर्श, आँगन आदि पर अभिमन्त्रित 11 कौड़ियाँ रखकर उसके ऊपर लाई गई राख डाल दें। सुबह राख में से कौड़ियों को निकाल लें। राख को भी समेटकर किसी कपड़े में बाँध लें। अब बहते हुए जल में पहले कौड़ियों को प्रवाहित करें और फिर राख को भी जल में बहा दें। यह उपाय अत्यन्त प्रभावी है, जो शीघ्र परिणाम देता है।

       २.  यदि आप किसी ग्रह की पीड़ा भोग रहे हैं तो होलिका दहन के समय आपको देशी घी में भिगोकर दो लौंग, एक बताशा और एक पान का पत्ता होलिकाग्नि में अर्पित करना चाहिए। अगले दिन होली की थोड़ी-सी भस्म (राख) लाकर अपने शरीर पर पूरी तरह मल लें और एक घण्टे बाद गरम पानी से स्नान कर लें। आप ग्रह-पीड़ा से तो मुक्त होंगे ही, साथ ही यदि आप पर किसी ने कोई अभिचार प्रयोग  किया है, तो आप उस से भी मुक्त हो जाएंगे। ऐसा करना सम्भव ना हो तो होली के बाद कोई भी सर्वार्थ सिद्धि योग, जिस दिन पड़ता हो, उस दिन होली की राख को बहते जल या किसी नदी या तालाब में विसर्जित कर दें। आप ग्रह बाधा से मुक्त हो जाएँगे।

       ३. व्यवसाय में सफलता के लिए आपके निवास के पास जब होली जल जाए, तब आप होलिका की थोड़ी-सी अग्नि ले आएं। फिर अपने निवास अथवा व्यवसाय स्थल अथवा दुकान के आग्नेय कोण में उस अग्नि की मदद से सरसों के तेल का दीपक जला दें। इस दीपक की मदद से एक दूसरा दीपक जलाएं और इसे मुख्य द्वार के बाहर रख दें। जब दीपक जलकर ठण्डे हो जाएं, तब इन्हें उठाकर किसी चौराहे पर ले जाकर फोड़ दें और बिना पीछे मुड़कर देखे सीधे घर वापस आ जाएं। भीतर आने से पहले अपने हाथ—पाँव अवश्य धो लें। इस उपाय से आपके निवास व व्यवसाय स्थल अथवा दुकान की सारी नकारात्मक ऊर्जा जलकर समाप्त हो जाएगी। इससे आपके व्यवसाय अथवा दुकान में आर्थिक सफलता मिलेगी।

      ४. यदि आपके परिवार अथवा परिचितों में से कोई व्यक्ति अधिक समय से अस्वस्थ हो तो उसके लिए यह उपाय लाभकारी होगा।
                   होली की रात्रि में सफ़ेद वस्त्र में ११ अभिमन्त्रित गोमती चक्र, नागकेसर के २१ जोड़े तथा ११ धनकारक कौड़ियाँ बाँध लें। कपड़े पर हरसिंगार तथा चन्दन का इत्र लगाकर रोगी पर से सात बार उसारकर किसी शिव मन्दिर में अर्पित कर दें। व्यक्ति तुरन्त स्वस्थ होने लगेगा। यदि बीमारी गम्भीर हो तो यह क्रिया शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से आरम्भ करके लगातार सात सोमवार तक करते रहें।

      ५. यदि आप अपना कोई विशेष कार्य सिद्ध करना चाहते हों अथवा  कोई व्यक्ति गम्भीर रूप से रोगग्रस्त हो तो होली की रात्रि में किसी काले कपड़े में काली हल्दी तथा खोपरे में चीनी का बूरा भरकर पोटली बनाकर पीपल के वृक्ष के नीचे गड्ढा खोदकर दबा दें। फिर पीपल के वृक्ष को आटे से बना सरसों के तेल का दीपक, धूप-अगरबत्ती तथा मीठा जल अर्पित करें। फिर हाथ जोड़कर रोगमुक्ति हेतु अथवा अपने किसी  विशेष कार्य सिद्धि हेतु मानसिक रूप से प्रार्थना करें। इसके बाद ८ अभिमन्त्रित गोमती चक्र पीपल के वृक्ष पर ही छोड़कर पीछे देखे बिना ही घर आ जाएं। शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार को पीपल के वृक्ष के समक्ष जाकर सिर्फ़ उपरोक्त प्रकार से दीपक व धूप-अगरबत्ती करके छोड़े गए गोमती चक्र ले आएं। जब तक कार्य सिद्ध न हो, वे गोमती चक्र अपनी ज़ेब में ही रखें अथवा जो व्यक्ति रोगग्रस्त हो, उसके सिरहाने रख दें। कुछ ही समय में आपके कार्य सिद्ध होने लगेंगे अथवा अस्वस्थ व्यक्ति स्वास्थ्य-लाभ करेगा।

       ६. यदि आप किसी प्रकार की आर्थिक समस्या से ग्रस्त हैं, तो होली पर यह उपाय अवश्य करें। होली की रात्रि में चन्द्रोदय होने के बाद अपने निवास की छत पर अथवा किसी खुले स्थान पर आ जाएं। फिर चन्द्रदेव का स्मरण करते हुए चाँदी की एक प्लेट में सूखे छुहारे तथा कुछ मखाने रखकर शुद्ध घी के दीपक के साथ धूप एवं अगरबत्ती अर्पित करें। अब दूध से अर्घ्य प्रदान करें। अर्घ्य के बाद कोई सफेद प्रसाद तथा केसर मिश्रित साबूदाने की खीर अर्पित करें। भगवान चन्द्रदेव से आर्थिक संकट दूर कर समृद्धि प्रदान करने का निवेदन करें। बाद में प्रसाद और मखानों को बच्चों में बाँट दें। आप प्रत्येक पूर्णिमा को चन्द्रदेव को दूध का अर्घ्य अवश्य दें। कुछ ही दिनों में आप अनुभव करेंगे कि आर्थिक संकट दूर होकर समृद्धि बढ़ रही है।

       ७.  यदि शनि ग्रह के कारण आपको परेशानियाँ आ रही हैं या कार्यों में व्यवधान आ रहा है तो होली के दिन, होलिका दहन के समय काले घोड़े की नाल या शुद्ध लोहे का छल्ला बनवाकर होली की दो परिक्रमाएँ करने के बाद होलिकाग्नि में डाल दें। दूसरे दिन होलिकाग्नि शान्त हो जाने बाद उस छल्ले को निकाल कर ले आएं। उस छल्ले को कच्चे दूध (गाय का हो तो उत्तम) एवं शुद्ध जल से धोकर शनिवार के दिन सायंकाल या शनि की होरा में दाहिने हाथ की मध्यमा अँगुली में शनिदेव जी का मन्त्र पढ़ते हुए धारण कर लें। आपकी परेशानियाँ और व्यवधान धीरे-धीरे दूर हो जाएंगे।

       ८.  इस उपाय को अगर होली की रात कर में लिया जाए तो इसके प्रभाव से आप कभी भी आर्थिक समस्या में नहीं आएंगे। इसके लिए होली की रात्रि में सबसे पहले अपने घर में तथा यदि कोई व्यावसायिक प्रतिष्ठान हो तो वहाँ भी शाम को सूर्यास्त होने के पूर्व दीयाबत्ती अवश्य करें। घर व प्रतिष्ठान की सारी लाइट जला दें। घर के पूजा-स्थल के सामने खड़े होकर लक्ष्मी जी का कोई भी मन्त्र ११ बार मानसिक रूप से जपें। फिर घर या प्रतिष्ठान की कोई भी कील लाकर जिस स्थान पर होली जलनी है, वहाँ की मिट्टी में दबा दें। अगले दिन  उस कील को निकालकर मुख्यद्वार के बाहर की मिट्टी में दबा दें। इस उपाय से आपके घर या प्रतिष्ठान में किसी भी तरह की नकारात्मक शक्ति का प्रवेश नहीं होगा और आप आर्थिक संकट में भी कभी नहीं आएँगे।
विशेष :— यदि यह करना सम्भव ना हो तो आप इसे इस तरह भी कर सकते हैं कि होली की रात्रि में होली जलने के बाद आप बनने वाली थोड़ी गर्म राख घर ले आएं। फिर घर के मुख्य द्वार के अन्दर की तरफ ज़मीन पर कील रख कर उसके ऊपर होली की राख डाल दें और ऊपर से किसी चीज़ से ढँक दें। दूसरे दिन कील को उपरोक्त विधि के अनुसार प्रयोग करें और राख को जल में प्रवाहित कर दें। इस से भी आपको उपरोक्तानुसार समुचित लाभ प्राप्त होगा।

       ९.  यदि आपको बार-बार आर्थिक हानि हो रही हो तो आप होलिका दहन की शाम को अपने मुख्य द्वार की चौखट पर दो मुखी आटे का दीपक बनाएं। फिर चौखट पर थोड़ा-सा गुलाल छिड़क कर, दीपक जलाकर उस पर रख दें। दीपक जलाते समय मानसिक रूप से अपनी आर्थिक हानि रोकने की प्रार्थना ईश्वर से अवश्य करें। दीपक ठण्डा हो जाने पर उसे जलती होलिकाग्नि में डाल दें।

       १०.  अगर आपको ऐसा लगता है कि किसी व्यक्ति ने आप पर या परिवार के किसी सदस्य पर कोई बड़ा तन्त्र-प्रयोग करवाया है तो मूल प्रयोग को करने के साथ ही थोड़ी मिश्री भी होलिकाग्नि में समर्पित करें। अगले दिन होली की राख लाकर, चाँदी के ताबीज़ में भर कर लाल या पीले धागे में, गले में धारण करें या करवाएं।

       ११.  यदि आपके धन को कोई व्यक्ति वापिस नहीं कर रहा है तो जिस दिन होलिका दहन होना है, उस दिन होली जलने वाले स्थान पर जाकर, उस स्थान पर अनार की लकड़ी की कलम से उस व्यक्ति का नाम लिख कर, होलिका माता से अपने धन की वापसी की प्रार्थना करते हुए उसके नाम पर हरा गुलाल इस प्रकार छिड़क दें, जिस से पूरा नाम गुलाल से ढँक जाए अर्थात नाम दिखाई ना दे। इस उपाय के बाद कुछ ही समय में वह आपके धन को वापिस कर देगा।

              १२. आपने देखा होगा कि किसी निवास या व्यवसाय स्थल पर अचानक ही कुछ अजीबो-गरीब घटनाएँ घटित होती हैं अथवा उस स्थान पर जो व्यक्ति प्रवेश करता है, उसके मन में डर के साथ अजीब-सी घुटन होने लगती है अथवा बिना बात के नुकसान या झगड़े होने लगते हैं। यदि आपके साथ ऐसा कुछ होता है, तो समझ जाएं कि आप पर अथवा उस स्थान पर किसी प्रकार की कोई ऊपरी बाधा का प्रभाव है। जब तक आप उस बाधा से मुक्ति नहीं पा लेंगे, तब तक आप ऐसे ही परेशान होते रहेंगे । इस बाधा से मुक्ति पाने के लिए आप यह उपाय अवश्य करें।
                        जिस स्थान पर यह बाधा है, उस स्थान के सर्वाधिक निकट जो भी वृक्ष हो, उसको देखें। यदि पीपल का वृक्ष हो, तो बहुत अच्छा है। होली के पूर्व शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार को अँधेरा होने पर आप उस स्थान पर जाएं, जिस स्थान पर वृक्ष है। फिर ताँबे के एक पात्र में दूध में थोड़ी-सी शक्कर मिश्रित करें और खोए के तीन लड्डू, थोड़ी-सी साबूदाने की खीर, ११ हरी इलायची, २१ बताशे, दूध से बनी थोड़ी-सी कोई भी अन्य मिठाई तथा एक सूखे खोपरे में बूरा भरकर उसके मध्य लौंग का एक जोड़ा रखकर उस वृक्ष की जड़ में अर्पित करें। साथ ही २१ अगरबत्ती भी अर्पित करें। यही क्रिया किसी मन्दिर में लगे हुए पीपल के वृक्ष पर भी करें। प्रथम बार के प्रयोग से ही आप परिवर्तन अनुभव करेंगे। यदि समस्या अधिक है, तो यह क्रिया ३, ५, ७ या ११ सोमवार तक करें। आप निश्चित रुप से ऊपरी बाधा से मुक्ति पा लेंगे। परन्तु इतना ध्यान रखें कि बाधा से मुक्ति के बाद आप प्रभु श्री हनुमानजी के नाम पर कुछ दान अवश्य करें।

                १३. यदि आपको ऐसा लगे कि आपके निवास अथवा व्यवसाय स्थल पर कोई ऊपरी बाधा है, तो आप इस उपाय द्वारा उस बाधा से मुक्ति पा सकते हैं।
होली की रात्रि में गाय के गोबर से एक दीपक बनाएं। इसके बाद उसमें सरसों का तेल, लौंग का जोड़ा, थोड़ा-सा गुड़ और काले तिल डाल दें। फिर दीपक को अपने मुख्य द्वार के बिल्कुल मध्य स्थान पर रख दें। द्वार की चौखट के बाहर आठ सौ ग्राम काली साबूत उड़द को फैला दें।
अब द्वार के अन्दर आकर दीपक को जला दें और द्वार बन्द कर दें। अगले दिन  ठण्डा दीपक उठाकर घर के बाहर रख दें और झाड़ू की मदद से सारी उड़द को समेट लें। फिर ठण्डा दीपक और उड़द को बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। तत्पश्चात् घर वापस आ जाएं तथा हाथ-पैर धोकर ही घर में प्रवेश करें। इसके बाद आप अगले शनिवार से पुनः यही क्रिया लगातार तीन शनिवार करें। यदि आपको लगे कि बाधा अधिक बड़ी है, तो अगले शुक्ल पक्ष से पुनः तीन बार यह क्रिया दोहराएं। कार्य सिद्ध हो जाने पर शनिवार को ही किसी भी पीपल के वृक्ष में मीठे जल के साथ धूप-दीप अर्पित करें। इस उपाय द्वारा आप ऊपरी बाधा से मुक्ति पा लेंगे।

       १४.  धन-संचय के लिए होली के दिन कौड़ी का पूजन कर लाल वस्त्र में बाँध कर किसी अलमारी या संदूक में रख दें। इस दिन जो व्यक्ति कौड़ी अपने पास रखता है, उसे वर्ष भर आर्थिक अनुकूलता बनी रहती है।

खण्ड ()  होली पर करने योग्य लघु प्रयोग

       १. आजीविका या नौकरी प्राप्ति के लिए होली की रात्रि में काले तिल के २१ दाने दाहिने हाथ में लेकर होलिका दहन के पूर्व ८ परिक्रमा करें। परिक्रमा करते समय निम्न मन्त्र का मानसिक जाप करते रहें---
मन्त्र :---

।। ॐ फ्रां फ्रीं सः ।।
                  जब परिक्रमा पूर्ण हो जाए तो काले तिलों को चाँदी के ताबीज़ में भर कर होली की रात्रि को ही गले में धारण कर लेने से नौकरी में आने वाले व्यवधान दूर होते हैं। इण्टरव्यू में भी यह पहन कर जाएं, सफलता मिलेगी।

       २. शत्रु-बाधा निवारण के लिए होली की रात्रि में काँसे की थाली में कनेर के ११ पुष्प तथा गूगल की ११ गोलियाँ रख कर जलती हुई होली में नीचे दिए मन्त्र को पढ़ते हुए जलती होलिका में डाल दें---
मन्त्र :----

।। ॐ ह्रीं हुम् फट् ।।

       ३. धन-प्राप्ति के लिए  अथवा आर्थिक कष्ट दूर करने के लिए होली वाले दिन कमलगट्टा की माला लेकर होली की परिक्रमा करते हुए निम्न श्रीयन्त्र के मन्त्र को १०८ बार जाप करें---
मन्त्र :----

।। ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः ।।

                   मन्त्र जाप पूर्ण होने पर माला पहन कर होली के समीप गौ-घृत का दीपक जलाकर घर लौट आएं, फिर एक माला नित्य इस मन्त्र की करते रहें। जल्दी ही धन-प्राप्ति के योग बनेंगे।

      ४. स्वास्थ्य लाभ के लिए होलिका दहन के समय होली की ११ परिक्रमा करते हुए निम्न मन्त्र का जाप मन ही मन में करना चाहिए ---
मन्त्र :---
।। ॐ देहि सौभाग्यं आरोग्यं, देहि में परमं सुखम्।

रूपं देहि, जयं देहि, यशो देहि, द्विशो जहि।।

                 होली के बाद नित्य प्रातः इस मन्त्र का कम से कम ११ बार अवश्य जाप करें।

      ५. यदि आप पर किसी प्रकार का कोई कर्ज है, तो आप होली की रात्रि में यह उपाय करके कर्ज से मुक्ति पा सकते हैं। आप निवास के पास जिस स्थान पर होली जलनी हो, उस स्थान पर एक छोटा-सा गड्ढा खोदकर उसमें तीन अभिमन्त्रित गोमती चक्र तथा तीन धनकारक कौड़ियाँ दबा दें। फिर मिट्टी में लाल गुलाल व हरा गुलाल मिलाकर उस गड्ढे को भर दें। फिर गड्ढे के ऊपर पीले गुलाल से कर्जदार का नाम लिखकर उसके ऊपर एक पान का पत्ता रखकर उस पर कोई एक सिक्का, एक छोटी-सी कील एवं एक सुपारी रख दें। अब जब होली जले, तब आप एक पान के पत्ते पर ३ बतासे, घी में डुबोया हुआ एक जोड़ा लौंग, तीन बड़ी इलायची, थोड़े-से काले तिल, पीली सरसों, एक सुपारी व गुड़ की एक डली रखकर पीला गुलाल या सिन्दूर छिड़क दें। अब इसे एक दूसरे पान के पत्ते से ढँक दें और उस पर ७ गोमती चक्र रखें।
                   अब आप सात परिक्रमा करते हुए प्रत्येक बार निम्न मन्त्र का जाप करके एक-एक गोमती चक्र होलिका में डालते जाएं -
।। ल्रीं ल्रीं फ्रीं फ्रीं अमुक कर्ज विनश्यते फट् स्वाहा ।।

                   यहाँ अमुक के स्थान पर कर्जदार का नाम लें। परिक्रमा करने के बाद प्रणाम करके घर वापस आ जाएं। अगले दिन जाकर सर्वप्रथम तीन अगरबत्ती दिखाकर गड्ढे में से सामग्री निकाल लें और थोड़ी-सी गुलाल मिश्रित मिट्टी भी ले लें। फिर सभी को किसी नदी में प्रवाहित कर दें। कुछ ही समय में कर्ज मुक्ति के मार्ग निर्मित होने लगेंगे।

      ६. यदि आप आर्थिक संकट से ग्रस्त हैं, तो जिस स्थान पर होलिका जलती हो, उस स्थान पर गड्ढा खोदकर अपनी मध्यमा अँगुली के लिए बनने वाले छल्ले की मात्रा के अनुसार चाँदी, पीतल, लोहा, लाल गुलाल व ११ लौंग मिलाकर दबा दें। फिर मिट्टी से ढँककर पील गुलाल से स्वस्तिक का चिह्न बनाएं। जब आप होलिका पूजन को जाएं, तो पान के एक पत्ते पर कपूर, थोड़ी-सी हवन सामग्री, शक्कर, शुद्ध घी में डुबोया हुआ लौंग का जोड़ा काले तिल, पीली सरसों तथा ७  बताशे रखें। दूसरे पान के पत्ते से उस पत्ते को ढँक दें। फिर सात बार परिक्रमा करते हुए ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मन्त्र का जाप करते  रहेंप्रत्येक परिक्रमा के पश्चात एक बताशा अग्नि में डालते रहें। परिक्रमा समाप्त होने पर सारी सामग्री होलिका में अर्पित कर दें तथा पूजन के बाद प्रणाम करके घर वापस आ जाएं। 
                    अगले दिन पान के पत्ते वाली सारी नई सामग्री ले जाकर पुनः यही क्रिया करें। जो धातुएँ आपने दबाई हैं, उनको निकाल लाएं। फिर किसी सुनार से तीनों धातुओं को मिलाकर अपनी मध्यमा अँगुली के माप का छल्ला बनवा लें। १५ दिन बाद आने वाले शुक्ल पक्ष के गुरुवार को छल्ला धारण कर लें। जब तक आपके पास यह छल्ला रहेगा, तब तक आप कभी भी आर्थिक संकट में नहीं आएंगे।

       ७.  यदि आप किसी से शत्रुता समाप्त करना चाहते हैं अथवा किसी से प्रेमभाव अधिक करना चाहते हैं तो आप होलिका दहन की दूसरी रात्रि को १२ बजे के बाद अनार की कलम से होली की राख में शत्रु का नाम लिखें और बाएँ हाथ से मिटा दें। पुनः उसी स्थान पर एक उर्ध्वमुखी त्रिकोण बनाकर उसके बीच में  "ह्रीं" लिख कर यन्त्र बनाएं। उसके बाद वहाँ से कुछ राख लेकर वापस आ जाएं। यह राख शत्रु के सिर पर डालते ही उसकी शत्रुता समाप्त हो जाएगी। यदि प्रेमभाव के लिए आपने उपाय किया है आप से प्रेमभाव अधिक कर लेगा। यन्त्र का स्वरूप इस प्रकार है —
                                             

आज के लिए बस इतना ही।

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।                        

रविवार, 12 फ़रवरी 2017

नीलकण्ठ महादेव प्रयोग

नीलकण्ठ महादेव प्रयोग

          महाशिवरात्रि पर्व समीप ही है। यह महापर्व इस बार २४ फरवरी २०१७ को आ रहा है। आप सभी को महाशिवरात्रि पर्व की अग्रिम रूप से बहुत सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          तन्त्र के दो मुख्य स्तम्भ शिव और शक्ति हैं। इन्हीं के आधार पर ही शैव तथा शाक्त तन्त्र की रचना हुई है। भगवान शिव के सम्बन्ध में क्या कोई साधक की सम्पूर्ण अभिव्यक्ति कभी हो सकती है? शिव के विषय में कुछ भी कहना या लिखना अनन्त काल तक भी सम्भव नहीं हो पाएगा, क्योंकि ईर्ष्या रखने वाले देवताओं से हमेशा उपेक्षित रहने पर भी उन्होंने हमेशा सब के कल्याण की भावना रखते हुए पूर्ण देवत्व से युक्त बने रहे। वहीं उनकी अभेद दृष्टि देव वर्ग तथा राक्षस वर्ग दोनों के लिए समान रही। भोलेपन का सब से सर्वोत्तम स्वरुप भोलेनाथ भी यही है तो वहीं दूसरी ओर महाकाल रूप में वे विनाश का पूर्ण स्वरुप। उनकी विविधता अनन्त है और यही विविधता उनकी पूर्णता को भी दर्शाती है। क्योंकि अपने साधकों के कल्याण के लिए वे हमेशा उपस्थित रहते ही हैं। भावप्रधान होने के कारण वे शीघ्र ही प्रसन्न भी हो जाते हैं तथा मनोवांछित वरदान की प्राप्ति भी तो इनके माध्यम से ही सम्पन्न होती है।

          इसीलिए प्रायः पुराणों में उदाहरण प्राप्त होते हैं कि शिव की उपासना से ही विविध देवता तथा विविध दैत्यों ने भोग तथा मोक्ष दोनों ही क्षेत्रों में पूर्णता को प्राप्त किया। तान्त्रिक क्षेत्र में तो इनकी उपासना के विविध मार्गों के सम्बन्ध में विविध तन्त्रचार्यों ने कई-कई बार कहा है। अघोर, कापालिक, कश्मीरी शैव, लिंगायत, कालमुख, लाकुल इत्यादि कई-कई प्रचलित मत शैव साधनाओं के लिए प्रसिद्ध है तथा इन विविध मार्गों में शैव साधनाओं के सम्बन्ध में अद्भुत से अद्भुत विधान शामिल है। इस प्रकार भगवान शिव के विविध स्वरूपों की तान्त्रिक उपासना तथा प्रयोग पद्धति में विविधता अपने आप में समुद्र की तरह ही है, जिसकी हर एक बूँद अमूल्य है। क्योंकि उनकी कृपा प्राप्त होने का अर्थ ही तो पूर्णता की ओर गतिशील होना ही  है।                

          भगवान शिव का ऐसा ही एक दिव्य स्वरुप है नीलकण्ठ इसके पीछे की पौराणिक कथा विश्व विख्यात है, लेकिन कथा का सार भगवान शिव का सामर्थ्य तथा कल्याण की भावना को प्रदर्शित करता है। वस्तुतः यह विशुद्ध चक्र का प्रतीक भी है, जिसके माध्यम से निरन्तर आन्तरिक रूप से शरीर की शुद्धि होती है तथा अनावश्यक तत्व अर्थात विष को शरीर से अलग करने की प्रक्रिया होती है। यह प्रतीक इस बात का भी सूचक है कि भगवान शिव का यह स्वरुप मनुष्य के जीवन के सभी विष को दूर कर जीवन में पूर्ण सुख-भोग की प्राप्ति करा सकते हैं। भगवान शिव के इसी नीलकण्ठ स्वरुप से सम्बन्धित कई प्रयोग है, लेकिन गृहस्थ साधकों के लिए प्रस्तुत प्रयोग ज्यादा अनुकूल है।

          इस प्रयोग के माध्यम से साधक को शत्रुओं से रक्षण प्राप्त होता है, अगर साधक के विरुद्ध कोई षड्यन्त्र हो रहा है तो साधक उससे सुरक्षित निकल जाता है तथा किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती। साथ ही साथ आकस्मिक रूप से आने वाली बाधा के समय भी साधक को पूर्ण रक्षण प्राप्त होता है। किसी भी प्रकार की यात्रा आदि में अकस्मात या अकालमृत्यु का भय नहीं रहता। साधक के जीवन में उन्नति प्राप्त होती है, भौतिक दृष्टि से भी सम्पन्नता को प्राप्त करने के लिए यह प्रयोग साधक को विशेष अनुकूलता प्रदान करता है। इस प्रकार प्रयोग से साधक को कई लाभों की प्राप्ति हो सकती है। साथ ही साथ यह सहज प्रयोग भी है, इसलिए इस प्रयोग को करने में नए साधकों को भी किसी भी प्रकार की कोई समस्या नहीं होती है।

साधना विधान :------------

          यह साधना साधक महाशिवरात्रि के दिन से शुरू करे। इसके अलावा इस साधना को किसी भी सोमवार से शुरू किया जा सकता है। समय दिन या रात्रि का कोई भी रहेलेकिन रोज समय एक ही रहे। यह इक्कीस दिनों की साधना है।

          सबसे पहले साधक स्नान आदि से निवृत होकर सफ़ेद वस्त्रों को धारण करेसफ़ेद आसन पर उत्तर दिशा की तरफ मुख कर बैठ जाएं। साधक अपने सामने भगवान नीलकण्ठ का कोई यन्त्र या चित्र स्थापित करे। अगर यह प्रयोग साधक पारदशिवलिंग पर सम्पन्न करे तो श्रेष्ठ रहता है।
          अब सर्वप्रथम आप सद्गुरुदेवजी का सामान्य पूजन सम्पन्न करें और गुरुमन्त्र का चार माला जाप करें। इसके बाद सद्गुरुदेवजी से नीलकण्ठ महादेव साधना सम्पन्न करने की अनुमति लें और उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।
           फिर भगवान गणपतिजी का संक्षिप्त पूजन करें और ॐ गं गणपतये नमः” मन्त्र की एक माला जाप करें। इसके बाद भगवान गणपतिजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।
          इसके बाद साधक को साधना के पहिले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए। प्रतिदिन संकल्प लेने की आवश्यकता नहीं है।

          इसके बाद साधक भगवान नीलकण्ठ महादेव का सामान्य पूजन सम्पन्न करे। धूपदीपपुष्पअक्षत आदि से संक्षिप्त पूजन कीजिए। इसके बाद दूध से बने नैवेद्य का भोग अर्पित कीजिए। इसके बाद साधक न्यास करे -------

कर-न्यास :------------

प्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः।       (दोनों तर्जनी उंगलियों से दोनों अँगूठे को स्पर्श करें)

प्रीं तर्जनीभ्यां नमः।         (दोनों अँगूठों से दोनों तर्जनी उंगलियों को स्पर्श करें)

प्रूं मध्यमाभ्यां नमः।         (दोनों अँगूठों से दोनों मध्यमा उंगलियों को स्पर्श करें)

प्रैं  अनामिकाभ्यां नमः।       (दोनों अँगूठों से दोनों अनामिका उंगलियों को स्पर्श करें)

प्रौं कनिष्टकाभ्यां नमः।      (दोनों अँगूठों से दोनों कनिष्ठिका उंगलियों को स्पर्श करें) 

प्रः करतल करपृष्ठाभ्यां नमः।  (परस्पर दोनों हाथों को स्पर्श करें)

अङ्ग-न्यास :------------

प्रां हृदयाय नमः।               (हृदय को स्पर्श करें)  

प्रीं शिरसे स्वाहा।               (सिर को स्पर्श करें)

प्रूं शिखायै वषट्।               (शिखा को स्पर्श करें)

प्रैं कवचाय हूम्।                (भुजाओं को स्पर्श करें) 

प्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्।             (नेत्रों को स्पर्श करें)

प्रः अस्त्राय फट्।               (सिर से घूमाकर तीन बार ताली बजाएं)

          इसके बाद साधक भगवान नीलकण्ठ का ध्यान करते हुए निम्न सन्दर्भ का उच्चारण करे -------

ॐ बालार्कयुततेजसं धृतजटाजूटेन्दु खण्डोज्ज्वलं,

   नागेन्द्रैः कृतभूषणं जपवटीं शूलं कपालं करैः।

   खटवांगं दधतं त्रिनेत्रविलसत्पंचाननं सुन्दरं,

   व्याघ्रत्वक् परिधानमब्जनिलयं श्रीनीलकण्ठं भजे॥

         इस प्रकार ध्यान के पश्चात साधक निम्न मन्त्र की ६१ माला मन्त्र जाप करे। यह मन्त्र जाप रुद्राक्ष की माला से होना चाहिए।

मन्त्र :------------

॥ ॐ प्रों न्रीं ठः ॥

OM PROM NREEM THAH.

          मन्त्र जाप के उपरान्त साधक निम्न श्लोक का उच्चारण करने के बाद एक आचमनी जल छोड़कर सम्पूर्ण जाप भगवान नीलकण्ठ महादेव को समर्पित कर दें और सफलता के लिए सदगुरुदेव तथा भगवान शिव से प्रार्थना करे।
ॐ गुह्यातिगुह्य गोप्त्रा त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम्।
   सिद्धिर्भवतु मे देव! त्वत् प्रसादान् महेश्वरः
         इस प्रकार यह साधना क्रम साधक नित्य २१ दिनों तक निरन्तर सम्पन्न करें।

         साधक को माला का विसर्जन नहीं करना है। यह माला साधक भविष्य में किसी भी शिव साधना में उपयोग कर सकता है।

             आपकी साधना सफल हो और भगवान नीलकण्ठ महादेव का आपको आशीष प्राप्त हो। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी आप सबके लिए से ऐसी ही प्रार्थना करता हूँ।
         इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।


असाध्य रोगनाशक रसेश्वर शिव साधना

असाध्य रोगनाशक रसेश्वर शिव साधना


          महाशिवरात्रि पर्व समीप ही है। यह महापर्व इस बार २४ फरवरी २०१७ को आ रहा है। आप सभी को महाशिवरात्रि पर्व की अग्रिम रूप से बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ! 

            हमारी देह ईश्वर की ओर से हमें सबसे बड़ा वरदान है। क्यूँकि अगर देह में कोई रोग उत्पन्न हो जाए तो हम धन, वैभव, सुख आदि का भोग नहीं कर पाते हैं और कई बार रोग बहुत दीर्घ रूप धारण कर लेते हैं, कई उपचार किए जाएं, औषधि ली जाएं, किन्तु वे प्रभाव नहीं दिखाती है और जब रोग किसी भी उपाय से ठीक नहीं होता है तो उसे असाध्य रोग घोषित कर दिया जाता है।

            परन्तु इतिहास साक्षी है कि भारत भूमि पर कुछ भी असाध्य नहीं रहा है। यहाँ के ऋषि-मुनि-ज्ञानियों ने तो ब्रह्माण्ड तक का भेदन कर दिया तो रोग की उनके समक्ष कोई कीमत ही नहीं है। संसार में सर्वप्रथम कायाकल्प पर अगर किसी ने चर्चा की तो वह हमारे भारत के ऋषि-मुनि आदि ने ही की। आयु के प्रभाव तक को रोक दिया गया था प्राचीन भारत में और इस क्षेत्र में कई-कई शोध किए हमारे साधकों तथा सन्तों ने। आयुर्वेद और पारद के माध्यम से ऋषि-मुनियों ने असाध्य से असाध्य रोगो को ठीक करके दिखाया है। यही नहीं बल्कि पारद के माध्यम से कायाकल्प तक करने में समर्थ रहा है रस तन्त्र। यही कारण है कि आज भी उच्चकोटि की औषधि में संस्कारित पारद भस्म का प्रयोग किया जाता है, जो कि देह को रोगों से मुक्त करती है।
  
           इसी पारद को जब विग्रह में परिवर्तित कर दिया जाता है तब वह देह को रोग मुक्त करता है, साथ ही मनुष्य को अपनी ऊर्जा से सींच कर उसे आध्यात्मिक तथा साधनात्मक प्रगति प्रदान करता है। रोग-मुक्ति के लिए भगवान रसेश्वर के कई विधान रस क्षेत्र में प्राप्त होते हैं और अन्य उपाय से ये अधिक श्रेष्ठ भी होते हैं। उसका मुख्य कारण यह है कि पारद में औषधीय तत्व भी विद्यमान होते हैं अर्थात जब आप रसेश्वर पर कोई क्रिया करते हैं तो आपको दो मार्गों से लाभ प्राप्त होने लगता है। प्रथम मन्त्र के माध्यम से उसमें स्थित ऊर्जा को आप अपने भीतर समाहित कर लेते हैं और दूसरा उसके स्पर्श में आई हर वस्तु औषधि में परिवर्तित हो जाती है।

           विशेषकर वीर्य से सम्बन्धित दोषों में तो रस विधान ब्रह्मास्त्र की तरह कार्य करता  है।

          अतः असाध्य रोगों से भयभीत न होकर उसका उपाय कर भयमुक्त तथा निरोगी बने। आइए, जानते हैं इस दिव्य विधान को।

साधना विधान :----------

          यह साधना आप महाशिवरात्रि के दिन से आरम्भ करें। इसके अलावा इस साधना को किसी भी सोमवार से शुरू किया जा सकता है। समय रात्रि या दिन का कोई भी समय आप सुविधा अनुसार चयन कर सकते हैं। आसन और वस्त्र का भी इस साधना में कोई बन्धन नहीं है। 

          सर्वप्रथम आप स्नान कर उत्तर या पूर्व की ओर मुख कर बैठ जाएं। सामने बाजोट पर एक श्वेत वस्त्र बिछा दें और उस पर कोई भी पात्र रख दें।  इस पात्र में शुद्ध संस्कारित एवं प्राणप्रतिष्ठित पारद शिवलिंग स्थापित करें। इसके साथ ही पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का चित्र भी स्थापित करें। साथ ही धूप-अगरबत्ती एवं घी या तिल के तेल का दीपक प्रज्ज्वलित कर दें।

          सर्वप्रथम संक्षिप्त गुरुपूजन सम्पन्न करें और चार माला गुरुमन्त्र का जाप करें। इसके बाद सद्गुरुदेवजी से असाध्य रोग निवारण  रसेश्वर  शिव  साधना सम्पन्न करने की आज्ञा प्राप्त करें और साधना की निर्बाध पूर्णता एवं सफलता के लिए उनसे प्रार्थना करें।

          फिर साधक सामान्य गणपति पूजन सम्पन्न करें। इसके बाद  एक माला गणपति मन्त्र का जाप करें और साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए उनसे प्रार्थना करें।

          तत्पश्चात साधना के पहिले दिन साधक को संकल्प अवश्य लेना चाहिए। प्रतिदिन संकल्प लेना आवश्यक नहीं है।

          फिर भगवान रसेश्वर का सामान्य पंचोपचार पूजन करें। शुद्ध घृत या तिल के तेल का दीपक लगाएं। भोग में कोई भी मिठाई अर्पित करें। इसे नित्य साधना के बाद रोगी को ही खाना है।

          अब आपको निम्न मन्त्र को पढ़ते हुए रसेश्वर पर थोड़े-थोड़े अक्षत अर्पित करते जाना है---

                     ।। ॐ रुद्राय फट् ।।

        कुल १०८ बार आपको उपरोक्त मन्त्र को पढ़ते हुए अक्षत अर्पित करना है।  इसके बाद रुद्राक्ष माला से निम्न मन्त्र की ११ माला जाप करें ----

मूल मन्त्र :------------

॥ ॐ ह्रां ह्रां ऐं जूं सः मृत्युंजयाय रसेश्वराय सर्व रोग शान्तिं कुरु कुरु नमः ‌॥
          OM  HRAAM  HRAAM  AYIM  JOOM  SAH  MRITYUNJAYAAY  RASESHWARAAY  SARVA  ROG  SHAANTIM  KURU  KURU  NAMAH.

           फिर  ११ माला पूर्ण हो जाने के बाद आपको पुनः शिवलिंग पर निम्न मन्त्र पढ़ते हुए अक्षत अर्पित करना है----

          ।। ॐ हूं सर्व रोगनाशाय रसेश्वराय हूं फट् ।।

           यह क्रिया कुल १०८ बार करनी है।  इसके बाद पुनः रोग नाश हेतु भगवान रसेश्वर से प्रार्थना करें। 

           उपरोक्त क्रम आपको ११ दिवस करना है।  रसेश्वर पर आप जो अक्षत अर्पित करेंगे, उन्हें नित्य एक पात्र में अलग से एकत्रित करते जाएं और साधना समाप्ति के बाद सभी अक्षत शिव मन्दिर में दान कर दें कुछ दक्षिणा के साथ।

           बाद में नित्य मूलमन्त्र जिसका आपने  रुद्राक्ष माला  पर जाप किया है, उसे २१ बार या एक माला जाप करके जल अभिमन्त्रित कर ले और ग्रहण कर लें। 

          यह साधना अन्य किसी के लिए भी संकल्प लेकर कर सकते हैं।  जिन लोगों के पास पारद निर्मित  महारोगनाशक गुटिका है, वे लोग इस साधना में उस गुटिका को शिवलिंग पर रख दें और ११ दिनों के बाद रोगी उसे लाल धागे में धारण कर लें। लगातार गुटिका के स्पर्श से और अधिक लाभ होगा।

          बाकी साधना आप पूर्ण विश्वास से करें, आपको अवश्य लाभ होगा।

          आपकी साधना सफल हो और आप सभी निरोगी हों! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ  

          इसी कामना के साथ!

        ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।