शुक्रवार, 24 अगस्त 2018

भयनाशक महाकाली साधना

भयनाशक महाकाली साधना

          श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व समीप ही है। यह २ सितम्बर २०१८ को आ रहा है। इसी दिन माँ भगवती आद्याकाली जयन्ती भी है। आप सभी को जन्माष्टमी एवं माँ भगवती काली जयन्ती की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          दस महाविद्याओं में काली का प्रथम स्थान है। महाभागवत के अनुसार महाकाली ही मुख्य हैं और उनके उग्र तथा सौम्य दो रूपों में से ही अनेक रूप धारण करने वाली दस महाविद्याएँ हैं। भगवान शिव की शक्तियाँ ये महाविद्याएँ अनन्त सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं। माना जाता है कि महाकाली या काली ही समस्त विद्याओं की आदि हैं अर्थात उनकी विद्यामय विभूतियाँ ही महाविद्याएँ हैं। ऐसा लगता है कि महाकाल की प्रियतमा काली ही अपने दक्षिण और वाम रूपों में दस महाविद्याओं के नाम से विख्यात हुईं। बृहन्नीलतन्त्र में कहा गया है कि रक्त और कृष्ण भेद से काली ही दो रूपों में अधिष्ठित हैं। कृष्णा का नाम दक्षिणा और रक्तवर्णा का नाम सुन्दरी है।

          कालिका पुराण में कथा आती है कि एक बार हिमालय पर अवस्थित मतंग मुनि के आश्रम में जाकर देवताओं ने महामाया की स्तुति की। स्तुति से प्रसन्न होकर मतंगवनिता के रूप में भगवती ने देवताओं को दर्शन दिया और पूछा कि तुम लोग किसकी स्तुति कर रहे हो! उसी समय देवी के शरीर से काले पहाड़ के समान वर्ण वाली एक और दिव्य नारी का प्राकट्य हुआ। उस महातेजस्विनी ने स्वयं ही देवताओं की ओर से उत्तर दिया कि ये लोग मेरा ही स्तवन कर रहे हैं। वे काजल के समान कृष्णा थी, इसलिए उनका नाम काली पड़ा।

          दुर्गा सप्तशती के अनुसार एक बार शुम्भ-निशुम्भ के अत्याचार से व्यथित होकर देवताओं ने हिमालय पर जाकर देवी सूक्त से देवी की स्तुति की, तब गौरी की देह से कौशिकी का प्राकट्य हुआ। कौशिकी के अलग होते ही अम्बा पार्वती का स्वरूप कृष्ण हो गया, जो काली नाम से विख्यात हुई। काली को नीलरूपा होने के कारण तारा भी कहते हैं। नारद-पाँचरात्र के अनुसार एक बार काली के मन में आया कि वे पुन: गौरी हो जाएं। यह सोचकर वे अन्तर्धान हो गईं। शिवजी ने नारद जी से उनका पता पूछा, नारद जी ने उनसे सुमेरु के उत्तर में देवी के प्रत्यक्ष उपस्थित होने की बात कही। शिवजी की प्रेरणा से नारदजी वहाँ गए, उन्होंने देवी से शिवजी के साथ विवाह का प्रस्ताव रखा। प्रस्ताव सुनकर देवी क्रुद्ध हो गईं और उनकी देह से एक अन्य षोडशी विग्रह प्रकट हुआ तथा उससे छाया विग्रह त्रिपुरभैरवी का प्राकट्य हुआ।

          काली उपासना में सम्प्रदायगत भेद हैं, प्राय: दो रूपों में इनकी उपासना का प्रचलन है। भव-बन्धन-मोचन में काली की उपासना सर्वोत्कृष्ट कही जाती है। शक्ति-साधना के दो पीठों में काली की उपासना श्याम-पीठ पर करने योग्य है। भक्ति मार्ग में किसी भी रूप में उन महामाया की उपासना फलप्रदान करने वाली है, परन्तु सिद्धि के लिए उनकी उपासना वीर भाव से की जाती है। साधना के द्वारा जब अहन्ता, ममता और भेद-बुद्धि का नाश होकर साधक में पूर्ण शिशुत्व का उदय हो जाता है, तब काली का श्रीविग्रह साधक के समक्ष प्रकट हो जाता है। उस समय भगवती काली की छबि अवर्णनीय होती है। कज्जल के पहाड़ के समान, दिग्वसना, मुक्तकुन्तला, शव पर आरूढ़, मुण्डमाला धारिणी भगवती काली का प्रत्यक्ष दर्शन साधक को कृतार्थ कर देता है।

          तान्त्रिक-मार्ग में यद्यपि काली की उपासना दीक्षागम्य है, तथापि अनन्य शरणागति के द्वारा उनकी कृपा किसी को भी प्राप्त हो सकती है। मूर्त्ति, मन्त्र अथवा गुरु द्वारा उपदिष्ट किसी भी आधार पर भक्ति भाव से, मन्त्र-जाप, पूजा, होम और पुरश्चरण करने से भगवती काली प्रसन्न हो जाती हैं। उनकी प्रसन्नता से साधक को सहज ही सम्पूर्ण अभीष्टों की प्राप्ति हो जाती है।

          हमारे साधक भाइयों के मन में सदा उग्र साधना करने की लालसा रहती ही है। परन्तु कई बार दूसरे साधकों से साधना के उग्र अनुभव सुनकर वे डर जाते हैं और इसी कारण  साधना करने का विचार ही मन से त्याग देते हैं। एक बात यहाँ कहना चाहूँगा कि हम सिर्फ दूसरों से साधना लें, परन्तु अनुभव स्वयं करें, क्यूँकि हर साधक का अनुभव एक जैसा नहीं होता है। और डरते रहेंगे तो साधना कैसे होगी? यह तो वही बात हुई ना कि मैं तैरना तो चाहता हूँ, पर समुन्दर में जाऊँगा नहीं, क्योंकि मुझे पानी से डर लगता है। किनारे पर रहकर तो चार युग भी बीत जाए तो भी हम तैर न सकेंगे। अतः सागर में  कूदने की हिम्मत जुटाएं और कूद जाएं, तैरना स्वयं आ जाएगा।

          प्रस्तुत साधना साधक के जीवन से उग्र साधनाओं का भय समाप्त कर उसे निडर बनाती है। उग्र साधनाओं में साधक निर्भय होकर साधना कर पाता  है। साथ ही इस साधना के प्रभाव से साधक के ज्ञात-अज्ञात शत्रुओं का भी नाश होता है।अतः देर कैसी? माँ काली की इस साधना को सम्पन्न कर निर्भय हो जाएं, ताकि माँ को गर्व हो आपको अपनी सन्तान कहने में।

साधना  विधि :-----------

          यह साधना आप काली जयन्ती को सम्पन्न करें। यदि आपके लिए यह सम्भव न हो तो किसी भी माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी को सम्पन्न करें। समय रात्रि के १० बजे के बाद का हो। आसन तथा वस्त्र आपके लाल हो या काले। आपका मुख उत्तर की ओर हो। यदि  आपके आसन वस्त्र लाल है तो माला मूँगे की हो या रुद्राक्ष की, अगर काले हैं तो काले हकीक की माला से जाप होंगे। अपने सामने माँ भगवती काली का कोई भी चित्र या यन्त्र स्थापित  करे।

          अब गुरु पूजन कर चार माला गुरुमन्त्र की जाप करे तथा सद्गुरुदेवजी से महाकाली साधना सम्पन्न करने हेतु गुरु-आज्ञा लें और उनसे सफलता की प्रार्थना करे।

          फिर गणेश पूजन तथा भैरव पूजन सम्पन्न करे। क्रमशः एक माला गणपति मन्त्र का और उसके बाद एक माला कालभैरव मन्त्र की जाप करे।

           अब माँ भगवती महाकाली सामान्य का पूजन करे, तिल के तेल का दीपक लगाएं, जो कि मिट्टी के दीपक में हो। भोग में कोई भी फल या मिठाई अर्पण करें, जो साधक को स्वयं ग्रहण करना होगी। हाथ में जल लेकर संकल्प ले कि मैं अमुक नाम का साधक गोत्र अमुक आज से अपने आन्तरिक एवं बाह्य सभी प्रकार के भय की समाप्ति के लिये भयनाशक महाकाली साधना के २१००० मन्त्र जाप का अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हूँ। माँ भगवती महाकाली एवं सद्गुरुदेव श्रीनिखिलेश्वरानन्दजी मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे सफलता प्रदान करे तथा मेरे जीवन में व्याप्त समस्त प्रकार के भय का समापन कर मुझे अभयता का वरदान दे।

          इसके बाद २१ माला निम्न मन्त्र की जाप करें -----

मन्त्र :-----------

॥ ॐ क्रीं क्रीं महाकाली भयनिवारिणी सर्वशक्तिदात्री क्रीं क्रीं नमः ॥

OM KREENG KREENG MAHAAKAALI BHAYNIVAARINI SARVSHAKTIDAATRI KREENG KREENG NAMAH.

          उसके बाद घी में पञ्च मेवा मिलाकर १०८ आहुति दें। अन्त में एक अनार फोड़कर उसका रस हवन कुण्ड में निचोड़ दें तथा अनार भी उसी में डाल दें।

          इस तरह यह एक दिवसीय साधना सम्पन्न होती है।  आप स्वयं इसके प्रभाव को अनुभव करने लगेंगे। साधक चाहे तो बार-बार इस साधना को कर सकता है, जिससे इसका प्रभाव बना रहे। माला का विसर्जन न करे। यह अन्य साधना में प्रयोग की जा सकती है।

          आपकी साधना सफल हो और आपको माँ भगवती काली की कृपा प्राप्त हो! मैं सद्गुरुदेव भगवानजी आप सबके मंगल कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।

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