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रविवार, 23 सितंबर 2018

पितृ-मुक्ति रसेश्वर प्रयोग

पितृ-मुक्ति रसेश्वर प्रयोग




          कल से श्राद्ध पक्ष शुरू हो रहा है। श्राद्धपक्ष में पितृदोष अथवा कालसर्पदोष के निवारण के लिए उपाय‚ पूजन व साधना की जाए तो शुभ फलों की प्राप्ति होती है तथा कालसर्प दोष अथवा पितृदोष के दुष्प्रभाव में कमी आती है।

          भगवान शिव का ही  एक नाम रसेश्वर  भी है। भारतीय  शास्त्रों  में  रस”  की  धारणा  पारद  से  की  गई है। रसविद्या का बड़ा महत्व माना गया है। “रसचण्डाशुः” नामक ग्रन्थ में कहा गया है –––––

शताश्वमेधेनकृतेन पुण्यं गोकोटिभि: स्वर्णसहस्रदानात।
नृणां भवेत् सूतकदर्शनेन यत्सर्वतीर्थेषु कृताभिषेकात्॥

          अर्थात सौ अश्वमेध यज्ञ करने के बाद, एक करोड़ गाय दान देने के बाद या स्वर्ण की एक हजार मुद्राएँ दान देने के पश्चात् तथा सभी तीर्थों के जल से अभिषेक (स्नान) करने के फलस्वरूप जो–जो पुण्य प्राप्त होता है, वही पुण्य केवल पारद के दर्शन मात्र से होता है।
          इसी तरह –––––

मूर्च्छित्वा हरितं रुजं बन्धनमनुभूय मुक्तिदो भवति।
अमरीकरोति हि मृतः कोऽन्यः करुणाकर: सूतात्॥


        जो मूर्छित होकर रोगों का नाश करता है, बद्ध होकर मनुष्य को मुक्ति प्रदान करता है, और मृत होकर मनुष्य को अमर करता है, ऐसा दयालु पारद के अतिरिक्त अन्य कौन हो सकता है? अर्थात कोई नहीं।

            रसतन्त्र सदा से मनुष्य के लिए आकर्षण का विषय रहा है, क्यूँकि यह एक ऐसा विषय है जो साधक को सब कुछ दे देने में समर्थ है। किन्तु जितनी इस क्षेत्र में  दिव्यता है, उतना ही परिश्रम भी है। रस तन्त्र के साधकों ने समय-समय पर समाज के समक्ष कई साधनाएँ रखी जो कि अपने आप में अद्भूत है।आज भी हम पारद से जुड़ी कई-कई साधनाएँ सम्पन्न करते हैं तथा उसके लाभ को अपने जीवन में अनुभूत करते है। ऐसी कोई साधना नहीं है जो "पारद विज्ञान" से दूर रही हो, चाहे महालक्ष्मी हो या कुबेर प्रयोग हो या स्वर्णाकर्षण साधना ही क्यों न हो? सभी पारद के माध्यम से कई-कई बार सम्पन्न की गई है। जहाँ हम पारद विग्रह के माध्यम से देवी-देवता, इतर योनि आदि को आकर्षित कर प्रसन्न कर सकते हैं, वहीं इन दिव्य विग्रहों पर साधना कर आप पितृदोष से मुक्त होकर पितरों की कृपा के पात्र भी बन सकते हैं।

           प्रश्न उठता है कि क्या यह सम्भव है कि हम पारद शिवलिंग के माध्यम से पितृ शान्ति कर सकें? क्या पारद शिवलिंग के माध्यम से पितरों की कृपा प्राप्त की जा सकती है?

           जी, हाँ! पारद में अद्भूत आकर्षण है, जो शेषनाग को भी अपनी ओर खींच ले। नागकन्याओं  का सम्मोहन कर उन्हें अपने समक्ष आने पर विवश कर दे तो फिर पितृ क्यों आकर्षित नहीं होंगे भला!

          सामान्य रूप से हम पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण आदि का सहारा लेते हैं और यह अत्यन्त प्राचीन विधान भी है, जिसके अन्तर्गत पिण्ड दान, तर पिण्डी आदि भी आती है। उसी प्रकार रसतन्त्र के ज्ञानी हमें पारद के क्षेत्र में भी पितरों के कई-कई विधान प्रदान करते है। उनमें से ही एक साधना है, जिसे रस क्षेत्र में पितृ-मुक्ति रसेश्वर प्रयोग के नाम से जाना जाता है।  यह  तो  नाम से ही ज्ञात होता है कि प्रस्तुत विधान पितरों की मुक्ति से सम्बन्ध रखता है।

                       मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार गति पाता है। उसी अनुसार उसे पुनः गर्भ में भेज दिया जाता है, ताकि वो अपने कर्मों का भोग कर मुक्ति प्राप्त कर सके। परन्तु कभी-कभी कर्म अधिक दूषित होने पर मनुष्य को गर्भ की भी प्राप्ति नहीं होती है और उसे अन्य योनियों में भटकना पड़ता है, जिन्हें हम भूत, प्रेत या पिशाच आदि नामों से जानते हैं। इसके अतिरिक्त यदि मनुष्य इन सबसे बच भी जाए तो उसकी आत्मा ब्रह्माण्ड में अतृप्त रहकर मुक्ति की चाह में विचरण करती रहती है और अपने वंशजों को कष्ट पहुँचाती रहती है।

          ताकि वे इन कष्टों से व्यथित होकर उनकी मुक्ति का उपाय करे। प्रस्तुत साधना आज इसी विषय पर है, जिसके करने मात्र से पितृ मुक्त हो जाते हैं। यदि परिवार का कोई सदस्य किसी अन्य योनि में कष्ट भोग रहा हो तो उसे मुक्ति मिलती है तथा वो सद्गति पाता है। जब पितृ सद्गति को प्राप्त कर लेते हैं तो वंशजों की प्रगति निश्चित है, क्यूँकि अब पितरों की ओर से दी जा रही बाधा सदा-सदा के लिए समाप्त हो जाती है। यह प्रयोग पारद शिवलिंग पर किया जाता है, क्यूँकि साधना के मध्य पारद पितरों का आकर्षण करता है और उन्हें खींचकर साधक के कक्ष तक लाता है। साधना के अन्त में इसी पितृ साधना का समस्त पुण्य लेकर पितृ लोक की ओर विदा लेते हैं तथा मुक्ति के मार्ग की ओर बढ़  जाते हैं। इसके साथ ही साधक को आशीर्वाद देते हैं, जिससे साधक आध्यात्मिक तथा भौतिक दोनों ही सुख प्राप्त करता है।

          भाइयों/बहिनों! साधना को सम्पन्न कर आप अपने पितरों के ऋण से मुक्त होने का प्रयत्न करें, जिन्होंने आपको जन्म दिया है, जिनके कारण आपका अस्तित्व है, उन्हें समस्त कष्टों से मुक्त कर उन्हें सद्गति प्रदान करवाएं। इससे बड़ा उपहार और कोई नहीं होगा जो आप अपने पितरों को दे सकें। सभी साधकों के लिए प्रस्तुत है पितृ-मुक्ति रसेश्वर प्रयोग।




साधना विधान :-----------

          यह प्रयोग आप पितृपक्ष में पूर्णिमा अथवा सोमवार से शुरु कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त इसे किसी भी माह की पूर्णिमा से या सोमवार से आरम्भ किया जा सकता है। इस साधना को प्रातः ४ बजे से ९ बजे के मध्य ही कर सकते है।

          स्नान करने के पश्चात श्वेत वस्त्र धारण कर श्वेत आसन पर दक्षिण की ओर मुख करके बैठ जाए। सामने बाजोट पर श्वेत वस्त्र बिछाकर उस पर ताम्र या स्टील की थाली रखे। अब इस थाली में काले तिल और सफ़ेद तिल मिलाकर  एक ढेरी बना दे। अब पारद शिवलिंग को पहले दूध तथा फिर जल से स्नान कराकर स्वच्छ वस्त्र से पोंछकर इस ढेरी पर स्थापित कर दे।

          इसके बाद सद्गुरुदेवजी तथा गणपतिजी का सामान्य पूजन कर गुरुमन्त्र की चार माला तथा गणपति मन्त्र की एक माला जाप करे। तत्पश्चात सद्गुरुदेवजी से पितृ-मुक्ति रसेश्वर प्रयोग सम्पन्न करने हेतु मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लेकर उनसे साधना की सफलता के लिए प्रार्थना करे।

          तदुपरान्त साधक को साधना के पहले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए। इसके लिए हाथ में जल लेकर संकल्प करे कि मैं यह पितृ-मुक्ति रसेश्वर प्रयोग अपने पितरों की शान्ति तथा उनकी मुक्ति हेतु कर रहा हूँ तथा पितृ-दोष से मुक्ति एवं पितृ-शान्ति के लिए कर रहा हूँ। भगवान पारदेश्वर मेरी मनोकामना को पूर्ण करे तथा मुझे साधना में सफलता प्रदान करे।

           और हाथ के जल जमीन पर छोड़ दे।

          इसके बाद भगवान पारदेश्वर का सामान्य पूजन करे तथा शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करे। भोग में केसर मिश्रित खीर भगवान पारदेश्वर को अर्पित करे।

          अब नीचे कुछ मन्त्र दिए जा रहे हैं, सभी का आपको १०८ बार उच्चारण करना है और जिस मन्त्र के आगे जो सामग्री लिखी गई है वो सामग्री पारदेश्वर शिवलिंग पर अर्पित करना है। अर्थात एक बार मन्त्र पढ़ना है और सामग्री अर्पित करना है। इसी प्रकार हर मन्त्र को १०८ बार पढ़कर सामग्री अर्पण करते जाना है।

ॐ भूत मुक्तेश्वराय नमः।      (काले तिल)
ॐ प्रेत मुक्तेश्वराय नमः।      (सफ़ेद तिल)
ॐ पिशाच मुक्तेश्वराय नमः।        (जौ)
ॐ श्मशानेश्वराय नमः।        (गाय के कण्डे या लकड़ी से बनी भस्म)
ॐ सर्व मुक्तेश्वराय नमः।       (सफ़ेद तथा काले तिल का मिश्रण)
ॐ पितृ मुक्तेश्वराय नमः।      (सफ़ेद तिल, काले तिल तथा जौ का मिश्रण)
  रसेश्वराय नमः।            (दूध मिश्रित जल को पुष्प से छीटें)

          इसके बाद साधक को रुद्राक्ष माला से निम्न मन्त्र की ७ माला जाप करना चाहिए -----

मन्त्र :-----------

।। ॐ हरिहर पितृ-मुक्तेश्वर पारदेश्वराय नमः ।।

OM HARIHAR PITRI-MUKTESHWAR PAARADESHWARAAY NAMAH.

          प्रत्येक माला की समाप्ति के बाद साधक को थोड़े अक्षत लेकर पारदेश्वर पर अर्पण कर देना चाहिए।

          जब मन्त्र जाप पूर्ण हो जाए, तब सम्पूर्ण पूजन एवं जाप एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर भगवान् शिव को अर्पित कर दे तथा उनसे पितृ-शान्ति, पितृ-मुक्ति तथा पितृ-दोष निवारण की प्रार्थना करे।

          भोग की खीर नित्य गाय को खिला दे तथा साधना के बाद पुनः स्नान करे। इसी प्रकार यह साधना को ३ दिन करे।

          साधना समाप्ति के बाद पारदेश्वर को स्नान कराकर पूजा घर में ही स्थापित कर दे तथा समस्त समग्री जो पात्र में एकत्रित हुई है, उन्हें बाजोट पर बिछे वस्त्र में बाँधकर किसी पीपल वृक्ष के नीचे गाड़ दे। यदि यह सम्भव न हो तो वृक्ष के नीचे रख आए, परन्तु प्रयत्न यही करे कि सारी सामग्री गाड़ दी जाए। इस प्रकार यह दिव्य विधान पूर्ण होता है।

            निःसन्देह इस साधना से साधक के सभी पितृ इस प्रयोग से तृप्त होकर साधक को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। पितृ-दोष का नाश होता है, पितृ-शान्ति हो जाती है तथा पितरों को सद्गति प्राप्त होती है। कुपित हुए पितृ शान्त होकर साधक को आर्थिक, दैहिक तथा मानसिक बल प्रदान कर सुखी करते है।

          साधक भाइयों! प्रयोग को स्वयं सम्पन्न कर अनुभव करे तथा अपने पितरों के प्रति अपने कर्त्तव्य का पालन करे।

                     आपको साधना में सफलता प्राप्त हो तथा भगवान पारदेश्वर आपके पितरों को शान्ति प्रदान करे!

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।



सोमवार, 28 अगस्त 2017

पितृ शान्ति साधना

पितृ शान्ति साधना


      हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक का समय श्राद्ध पक्ष कहलाता है। इस वर्ष श्राद्ध पक्ष का प्रारम्भ ६ सितम्बर २०१७ (पूर्णिमामंगलवार) से हो रहा हैजिसका समापन २० सितम्बर (अमावस्याबुधवार) को होगा। हिन्दू धर्म के अनुसार  इस दौरान पितरों की आत्मा की शान्ति के लिए तर्पणश्राद्धपिण्डदान आदि किया जाता है।

           
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिन लोगों की कुण्डली में कालसर्प दोष अथवा पितृदोष होवे अगर श्राद्ध पक्ष में इस दोष के निवारण के लिए उपाय‚ पूजन व साधना करें तो शुभ फलों की प्राप्ति होती है तथा कालसर्प दोष अथवा  पितृदोष  के दुष्प्रभाव में कमी आती है।

            विश्व के लगभग सभी धर्मों में यह माना गया है कि मृत्यु के पश्चात् व्यक्ति की देह का तो नाश हो जाता हैलेकिन उनकी आत्मा कभी भी नहीं मरती है। पवित्र गीता के अनुसार जिस प्रकार स्नान के पश्चात् हम नवीन वस्त्र धारण करते हैंउसी प्रकार यह आत्मा भी मृत्यु के बाद एक देह को छोड़कर नवीन देह धारण करती है।


            हमारे पित्तरों को भी सामान्य मनुष्यों की तरह सुखदुखमोहममताभूखप्यास आदि का अनुभव होता है। यदि पितृ योनि में गये व्यक्ति के लिये उसके परिवार के लोग श्राद्ध कर्म तथा श्रद्धा का भाव नहीं रखते हैं तो वह पित्तर अपने प्रियजनों से नाराज हो जाते हैं। सामान्यतः इन पित्तरों के पास आलौकिक शक्तियाँ होती है तथा यह अपने परिजनों एवं वंशजों की सफलता व सुख-समृद्धि के लिये चिन्तित रहते हैंजब इनके प्रति श्रद्धा तथा धार्मिक कर्म नहीं किये जाते हैं तो यह निर्बलता का अनुभव करते हैं तथा चाहकर भी अपने परिवार की सहायता नहीं कर पाते हैं तथा यदि यह नाराज हो गये तो इनके परिजनों को कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।


            पितृदोष होने पर व्यक्ति को जीवन में तमाम तरह की परेशानियाँ उठानी पड़ती हैजैसे घर में सदस्यों का बीमार रहनामानसिक परेशानीसन्तान का ना होनाकन्या का अधिक होना या पुत्र का ना होनापारिवारिक सदस्यों में वैचारिक मतभेद होनाजीविकोपार्जन में अस्थिरता या पर्याप्त आमदनी होने पर भी धन का ना रूकनाप्रत्येक कार्य में अचानक रूकावटें आनासिर पर कर्ज़ का भार होनासफलता के करीब पहुँचकर भी असफल हो जानाप्रयास करने पर भी मनवांछित फल का ना मिलनाआकस्मिक दुर्घटना की आशंका तथा वृद्धावस्था में बहुत दुख प्राप्त होना आदि।


          बहुत से लोगों की कुण्डली में कालसर्प योग भी देखा जाता है। वस्तुतः कालसर्प योग भी पितृ दोष के कारण ही होता हैजिसकी वजह से मनुष्य को जीवन में तमाम मुसीबतों एवं अस्थिरता का सामना करना पड़ता है।


            पितृ दोष से सम्बन्धित ज्योतिषीय विवेचन पूर्व में प्रस्तुत किया जा चुका है। अब प्रस्तुत है पितृ दोष निवारणार्थ सरल साधना विधि ----

पितृ शान्ति साधना

             यह साधना किसी भी पूर्णिमा अथवा अमावस्या को सम्पन्न करे या शनिवार को भी की जा सकती है।

             समय शाम का होगा, सूर्यास्त के समय करे।

             दिशा पूर्व हो, पीले वस्त्र धारण करे, आसन पीला हो। सामने बाजोट पर पीला कपड़ा बिछाए और उस पर गुरु चित्र स्थापित कर सामान्य पूजन करेंइसके बाद गुरुमन्त्र का कम से कम चार माला जाप करें और उनसे पितृ शान्ति साधना सम्पन्न करने की आज्ञा लें। फिर सद्गुरुदेवजी से साधना की निर्बाध पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

             इसके बाद वहीं सामने एक शक्कर की ढेरी बनाएं, एक सफ़ेद तिल की ढेरी बनाएं और एक कटोरी में थोड़ा घी भी रखें। एक नारियल का गोला भी रखें

             इसके बाद साधक को साधना के पहिले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए। प्रतिदिन संकल्प लेने की आवश्यकता नहीं है।

             संकल्प लेने के बाद सबसे पहिले गायत्री मन्त्र का तीन माला (३२४ बार) जाप करें –––––

मन्त्र :-----

      ।। ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।।

OM BHOORBHUVAH SWAH TATSAVITURVARENNYAM BHARGO DEVASYA DHEEMAHI DHIYO YO NAH PRACHODADAAT.

             इसके बाद सवा घण्टे तक बिना माला के निम्न मन्त्र का जाप करें --

                 ।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।।

             OM NAMO BHAGWATE VAASUDEVAAY.

             अन्त में पितृ स्तोत्र के ग्यारह पाठ सम्पन्न करें --–––

पुराणोक्त पितृ स्तोत्र :----------

अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।१।।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान्नमस्यामि कामदान्।।२।।
मन्वादिनां च नेतारः सूर्याचन्दमसोस्तथा।
तान्नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्यूदधावपि।।३।।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृतांजलिः।।४।।
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येऽहं कृतांजलिः।।५।।
प्रजापतेः कश्यपाय सोमाय वरूणाय च।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृतांजलिः।।६।।
नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।७।।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।८।।
अग्निरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्।
अग्निषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः।।९।।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणः।।१०।।
तेभ्योऽखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः।
नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुजः।।११।।

             मन्त्र जाप के बाद सारे जाप एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर पितरों को समर्पित कर दे। अब नारियल के गोले को ऊपर से थोड़ा-सा काटकर उसमें बाजोट पर स्थापित तिल,शक्कर और घी भर दे तथा गोले को फिर से बन्द कर दे। ऊपर नारियल के गोले का जो टुकड़ा काटा था, उसी को  लगाकर पुनः बन्द करे और आस पास गीला आटा लगा दे, ताकि गोला खुले नहीं। इस गोले को जाकर किसी पीपल वृक्ष के नीचे गाड़ दे और बिना पीछे मुड़े घर आ जाए। इस साधना से सभी पितृ तृप्त होते हैं और साधक को आशीर्वाद देते हैं।

              यह साधना एक दिवसीय है, लेकिन आप चाहे तो पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष में , , या ११ दिन तक सम्पन्न कर सकते हैं। अधिक दिन तक करने की स्थिति में बाजोट पर स्थापित शक्कर, तिल, घी, नारियल गोला को सुरक्षित रखने की व्यवस्था पहले से ही कर ले, क्योंकि चूहा आदि जन्तु क्षति पहुँचा सकते हैं। मन्त्र जाप के पश्चात वाली सारी प्रक्रिया अन्तिम दिन कर ले।

             समस्त पितृ आप व आपके परिवार पर प्रसन्न होकर शुभ आशीर्वाद प्रदान करे।  मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

               इसी कामना के साथ


ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।

शनिवार, 26 अगस्त 2017

ज्योतिषीय योग पितृदोष और निवारण के सरल उपाय

ज्योतिषीय योग पितृदोष और निवारण के सरल उपाय



          हिन्दू धर्म में ज्योतिष को वेदों का छठा अंग माना गया है और किसी व्यक्ति की जन्म-कुण्डली देखकर आसानी से इस बात का पता लगाया जा सकता है कि वह व्यक्ति पितृ दोष से पीड़ित है या नहीं। क्योंकि यदि व्यक्ति के पितर असन्तुष्ट होते हैं, तो वे अपने वंशजों की जन्म-कुण्डली में पितृ दोष से सम्बन्धित ग्रह-स्थितियों का सृजन करते हैं।

          भारतीय ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार जन्म-पत्री में यदि सूर्य-शनि या सूर्य-राहु का दृष्टि या युति सम्बन्ध हो और यह सम्बन्ध जन्म-कुण्डली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम भावों में से किसी एक भाव में हो तो इस प्रकार की जन्म-कुण्डली वाले जातक को पितृ दोष होता है। साथ ही कुण्डली के जिस भाव में यह योग होता है, उससे सम्बन्धित अशुभ फल ही प्राथमिकता के साथ घटित होते हैं।

          उदाहरण के लिए यदि सूर्य-राहु अथवा सूर्य-शनि का अशुभ योग प्रथम भाव में हो तो वह व्यक्ति अशान्त प्रकृति का होता है और उसे गुप्त चिन्ता, दाम्पत्य एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियाँ होती हैं, क्योंकि प्रथम भाव को ज्योतिष में लग्न कहते हैं और यह शरीर का प्रतिनिधित्व करता है।

          दूसरे भाव से धन, परिवार आदि के बारे में पता चलता है। इस भाव में यह योग बने तो धन व परिवार से सम्बन्धित परेशानियाँ जैसे कि पारिवारिक कलह, वैमनस्य व आर्थिक उलझनें होती हैं।

          चतुर्थ भाव से माता, वाहन, सम्पत्ति आदि के बारे में पता लगता है। इस भाव में यह योग हो तो भूमि, मकान, माता-पिता एवं गृह-सुख में कमी या कष्ट होते हैं।

          पंचम भाव में यह योग हो तो उच्च विद्या में विघ्न व सन्तान सुख में कमी होने के संकेत होते हैं।
        
          सप्तम भाव में यह योग हो तो यह योग वैवाहिक सुख व साझेदारी के व्यवसाय में कमी या परेशानी का कारण बनता है। 
     
          नवम भाव या नवम भाव का स्वामी यदि किसी भी तरह से राहु या केतु से ग्रसित है तो यह निश्चित रूप से पितृदोष होता है और भाग्योन्नति में बाधाएँ उत्पन्न करता है।

          पिता के स्थान दशम भाव का स्वामी ६, ८ या १२ वें भाव में चला जाए एवं गुरु पापी ग्रह प्रभावित या राशि में हो, साथ ही लग्न तथा पंचम भाव का स्वामी पाप ग्रहों से युति करे तो ऐसी कुण्डली पितृशाप दोष युक्त कहलाती है। ऐसी कुण्डली युक्त जातक को सर्विस या कार्य, सरकार व व्यवसाय सम्बन्धी परेशानियाँ होती हैं।

          प्रत्येक भावानुसार फल का विचार होता है। सूर्य यदि नीच में होकर राहु या शनि के साथ पड़ा हो तो पितृदोष ज्यादा होता है।

          किसी कुण्डली में लग्नेश ग्रह यदि कोण (६, ८ या १२ वें भाव) में स्थित हो तथा राहु लग्न भाव में हो तब भी पितृदोष होता है।

          पितृयोग कारक ग्रह पर यदि त्रिक (६, , १२) भावेश एवं भावों के स्वामी की दृष्टि अथवा युति का सम्बन्ध भी हो जाए तो अचानक वाहनादि के कारण दुर्घटना का भय, प्रेतबाधा, ज्वर, नेत्ररोग, तरक्की में रुकावट या बनते कार्यों में विघ्न, अपयश, धनहानि आदि अनिष्ट फल होते हैं। ऐसी स्थिति में रविवार की संक्रान्ति को लाल वस्तुओं का दान करने तथा पितरों का तर्पण करने से पितृ आदि दोषों की शान्ति होती है।

          चन्द्र-राहु, चन्द्र-केतु, चन्द्र-बुध, चन्द्र-शनि आदि योग भी पितृ दोष की भाँति मातृ दोष कहलाते हैं। इनमें चन्द्र-राहु एवं सूर्य-राहु योगों को ग्रहण योग तथा बुध-राहु को जड़त्व योग कहते हैं।

         इन योगों के प्रभावस्वरूप भी भावेश की स्थिति अनुसार ही अशुभ फल प्रकट होते हैं। सामान्यतः चन्द्र-राहु आदि योगों के प्रभाव से माता अथवा पत्नी को कष्ट, मानसिक तनाव, आर्थिक परेशानियाँ, गुप्त रोग, भाई-बन्धुओं से विरोध, अपने भी परायों जैसे व्यवहार रखें आदि फल घटित होते हैं।

          यदि आठवें या बारहवें भाव में गुरु-राहु का योग और पंचम भाव में सूर्य-शनि या मंगल आदि कू्र ग्रहों की स्थिति हो तो पितृदोष के कारण सन्तान कष्ट या सन्तान सुख में कमी रहती है।

          अष्टमेश पंचम भाव में तथा दशमेष अष्टम भाव में हो तो भी पितृदोष के कारण धन हानि अथवा सन्तान के कारण कष्ट होते हैं।

          यदि पंचमेश सन्तान कारक ग्रह राहु के साथ त्रिक भावों में हो तथा पंचम में शनि आदि कू्र ग्रह हो तो भी सन्तान सुख में कमी होती है।

          इसी प्रकार राहु अथवा शनि के साथ मिलकर अनेक अनिष्टकारी योग बनते हैं, जो पितृदोष की भाँति ही अशुभ फल प्रदान करते हैं।

          बृहत्पाराशर होरा शास्त्र में कुण्डली में इस प्रकार के शापित योग कहे गए हैं। इनमें पितृदोष श्राप, भ्रातृ श्राप,मातृ श्राप, प्रेम श्राप आदि योग प्रमुख हैं।

          अशुभ पितृदोषों योगों के प्रभाव स्वरूप जातक के स्वास्थ्य की हानि, सुख में कमी, आर्थिक संकट, आय में बरकत न होना, सन्तान कष्ट अथवा वंशवृद्धि में बाधा, विवाह में विलम्ब, गुप्त रोग, लाभ व उन्नति में बाधाएँ, तनाव आदि अशुभ फल प्रकट होते हैं।

          यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में सूर्य-राहू, सूर्य-शनि आदि योगों के कारण पितृदोष हो तो उसके लिए नारायण बलि, नाग पूजा, अपने दिवंगत पितरों का श्राद्ध, पितृ तर्पण, ब्रह्म भोज, दानादि कर्म करवाने चाहिए। पितृदोष निवारण के लिए अपने घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने दिवंगत पूर्वजों के फोटो लगाकर उन पर हार चढ़ाकर सम्मानित करना चाहिए तथा उनकी मृत्यु तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र एवं दक्षिणा सहित दान, पितृ तर्पण एवं श्राद्ध कर्म करने चाहिए।

हाथ में पितृदोष के लक्षण :––––––––––

          हाथ में पितृदोष को आसानी से नहीं खोजा जा सकता, बहुत से लक्षण देखने के बाद ही किसी आप किसी निष्कर्ष पर पहुँच  सकते हैं। फिर भी कुछ साधारण लक्षण हम आपको बताते हैं -----

१. सूर्य रेखा का टूटा हुआ होना

          हाथ में सूर्य पर्वत का बहुत कमज़ोर होना या सूर्य पर्वत पर रेखाओं का जाल होना पितृदोष को दर्शाता है। सूर्य की स्थिति हाथ में बहुत महत्वपूर्ण है। अकेले सूर्य के कमज़ोर होने से व्यक्ति के जीवन में बहुत बड़ा स्थान रिक्त रह जाता है। प्रसिद्धि, तरक्की, जीवन में भोग विलास के लिए जो पैसा चाहिए, जो सम्मान चाहिए, वह बिना सूर्य के नहीं मिल पाता।

२. हाथ में जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा, हृदय रेखा का मिलन

          अगर आपके हाथ में जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा, हृदय रेखा एक जगह पर मिल रही है तो यह भी पितृदोष की निशानी है। इस स्थिति में व्यक्ति आत्महत्या के लिए प्रेरित होता है। उसके विचार निराशावादी हो जाते हैं और जीवन में प्रगति बाधित होती है।

पितृदोष निवारण के सरल उपाय :----------



          वैसे तो कुण्डली में किस प्रकार का पितृदोष है, उस पितृदोष के प्रकार के हिसाब से ही पितृदोष शान्ति करवाना अच्छा होता है। लेकिन कुछ ऐसे सरल सामान्य उपाय भी हैं, जिनको करने से पितृदोष शान्त हो जाता है, ये उपाय निम्नलिखित हैं -----

          १. ब्रह्म पुराण (२२०/१४३ ) में पितृगायत्री मन्त्र दिया गया है, इस मन्त्र की प्रतिदिन १ माला या अधिक जाप करने से पितृदोष में अवश्य लाभ होता है।

मन्त्र :-----

।। ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः।।

          २. मार्कण्डेय पुराण (९४/३ -१३ ) में वर्णित इस चमत्कारी पितृ स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भी पितृ प्रसन्न होकर स्तुतिकर्ता की मनोकामना की पूर्ति करते हैं -----

पुराणोक्त पितृ स्तोत्र :----------

अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।१।।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान्नमस्यामि कामदान्।।२।।
मन्वादिनां च नेतारः सूर्याचन्दमसोस्तथा।
तान्नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्यूदधावपि।।३।।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृतांजलिः।।४।।
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येऽहं कृतांजलिः।।५।।
प्रजापतेः कश्यपाय सोमाय वरूणाय च।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृतांजलिः।।६।।
नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।७।।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।८।।
अग्निरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्।
अग्निषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः।।९।।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणः।।१०।।
तेभ्योऽखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः।
नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुजः।।११।।

विशेष :---

                   मार्कण्डेयपुराण में महात्मा रूचि द्वारा की गयी पितरों की यह स्तुति पितृस्तोत्र कहलाता है। पितरों की प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है। इस स्तोत्र की बड़ी महिमा है। श्राद्ध आदि के अवसरों पर ब्राह्मणों के भोजन के समय भी इसका पाठ करने-कराने का विधान है।

           ३. भगवान भोलेनाथ की तस्वीर या प्रतिमा के समक्ष बैठ कर या घर में ही भगवान भोलेनाथ का ध्यान कर निम्न  मन्त्र  की एक माला नित्य जाप करने से समस्त प्रकार के पितृदोष, संकट, बाधा आदि शान्त होकर शुभत्व की प्राप्ति होती है। मन्त्र जाप प्रातः या सायंकाल कभी भी कर सकते हैं।

मन्त्र :-----

।। ॐ तत्पुरुषाय विद्महे  महादेवाय च धीमहि तन्नो  रुद्रः प्रचोदयात् ।।

          ४. अमावस्या को पितरों के निमित्त पवित्रता पूर्वक बनाया गया भोजन तथा चावल बूरा, घी एवं एक रोटी गाय को खिलाने से पितृदोष शान्त होता है।

           ५. अपने माता-पिता, बुजुर्गों का सम्मान, भाई-बहिनों, सभी स्त्री कुल का आदर/सम्मान करने और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहने से पितर हमेशा प्रसन्न रहते हैं।

           ६. पितृदोष जनित सन्तान कष्ट को दूर करने के लिए हरिवंश पुराण का श्रवण करें या स्वयं नियमित रूप से पाठ करें।

           ७. प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती या सुन्दर काण्ड का पाठ करने से भी इस दोष में कमी आती है।

           ८. सूर्य पिता है, अतः ताँबे के लोटे में जल भर कर, उसमें लाल फूल, लाल चन्दन का चूरा, रोली आदि डाल कर सूर्य देव को अर्घ्य देकर ११ बार ॐ घृणि सूर्याय नमः मन्त्र का जाप करने से पितरों की प्रसन्नता एवं उनकी ऊर्ध्व गति होती है।

          ९. अमावस्या वाले दिन अवश्य अपने पूर्वजों के नाम दुग्ध, चीनी, सफ़ेद कपडा, दक्षिणा आदि किसी मन्दिर में अथवा किसी योग्य ब्राह्मण को दान करना चाहिए।

          १०. पितृपक्ष में पीपल की परिक्रमा  अवश्य करें। अगर प्रतिदिन यदि कोई व्यक्ति पीपल के पेड़ पर मीठा जल, मिष्ठान्न एवं जनेऊ अर्पित करते हुए ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मन्त्र का जाप करते हुए कम से कम सात या १०८ परिक्रमा करें। तत्पश्चात् अपने अपराधों एवं त्रुटियों के लिये क्षमा माँगे तो पितृ दोष से उत्पन्न समस्त समस्याओं का निवारण हो जाता है।

           ११. हर अमावस को अपने पितरों का ध्यान करते हुए पीपल पर कच्ची लस्सी, गंगाजल, थोड़े काले तिल, चीनी, चावल, जल, पुष्पादि चढ़ाते हुए "ॐ सर्व पितृ देवताभ्यो नमः" मन्त्र तथा पितृ सूक्त का पाठ करना शुभ होगा।

          मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।