शनिवार, 1 जून 2019

तान्त्रोक्त धूमावती साधना


तान्त्रोक्त धूमावती साधना



          धूमावती जयन्ती समीप ही है। यह १० जून २०१९ को आ रही है। आप सभी को धूमावती जयन्ती की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          मन्त्र महार्णव, मन्त्र महोदधि, तन्त्रसार इत्यादि ग्रन्थों में दस महाविद्याओं की साधना पर विशेष बल दिया गया है। विस्तार से यह स्पष्ट किया गया है कि व्यक्ति अपनी आवश्यकता अनुसार कैसे शक्ति सिद्धि प्राप्त कर सकता है? कौन-सी शक्ति की साधना करने से किस प्रकार का अभीष्ट फल प्राप्त होगा? काली, तारा, छिन्नमस्ता, भुवनेश्वरी, भैरवी, षोडशी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला प्रत्येक महाविद्या का विस्तृत विवेचन है।

           दस महाविद्याओं की साधना करना जीवन की श्रेष्ठतम उपलब्धि मानी जाती है। यह दस प्रकार की शक्तियों की प्रतीक होती है और महत्वपूर्ण अवसर पर जीवन में जिस शक्ति तत्व की कमी होती है, उस कमी को पूरा करने के लिए महाविद्या साधना-उपासना करना जीवन का सौभाग्य माना जाता है।

          दस महाविद्याओं के क्रम में धूमावती सप्तमी महाविद्या है, यह शत्रु का भक्षण करने वाली महाशक्ति और दुःखों की निवृत्ति करने वाली है। बुरी शक्तियों से पराजित न होना और विपरीत स्थितियों को अपने अनुकूल बना देने की शक्ति साधक को इनकी साधना से ही प्राप्त होती है।

          धूमावती दस महाविद्याओं में से एक है, जिस प्रकार "तारा" बुद्धि और समृद्धि की, "त्रिपुर सुन्दरी" पराक्रम एवं सौभाग्य की सूचक मानी जाती है, उसी प्रकार "धूमावती" शत्रुओं पर प्रचण्ड वज्र की तरह प्रहार करने वाली मानी जाती है। वह अपने आराधक को अप्रतिम बल प्रदान करने वाली देवी है, जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही रूपों में सहायक सिद्ध होती ही है, यदि पूर्ण निष्ठा व विश्वास के साथ धूमावती साधना को सम्पन्न कर लिया जाए तो।

          महाविद्याओं का कोई भी रूप हो, फिर वो चाहे महाकाली हों, तारा हों या कमला हों, अपने आप में पूर्ण होता है। यह सभी उसी पराशक्ति आद्याशक्ति के ही तो विभिन्न रूप हैं। जब वो स्वयं अपनी कल्पना मात्र से इस सृष्टि का सृजन, पालन और संहार कर सकती हैं तो उसी परम पूर्ण के यह महाविद्या रूपी रूप कैसे अपूर्ण होंगे, इनमें भी तो निश्चित ही वही विशिष्टता होंगी ही, ना!

          महाविद्याओं के पृथक-पृथक १० रूपों को उनके जिन गुणों के कारण पूजा जाता है, वास्तव में वो उन्हें जनसामान्य को ना होने देने की गोपनीयता ही है, जो पुरातनकाल से सिद्धों और साधकों की परम्परा में चलती चली आई है। जब कोई साधक गुरु के संरक्षण में पूर्ण समर्पण के साथ साधना के लिए जाता है तो परीक्षा के बाद उसे इन शक्तियों की ब्रह्माण्डीयता से परिचित कराया जाता है और तब सभी कुँजियाँ उसके हाथ में सौंप दी जाती हैं। तभी उसे ज्ञात होता है कि सभी महाविद्याएँ सर्वगुणों से परिपूर्ण है और वे अपने साधक को सब कुछ देने का सामर्थ्य रखती हैं अर्थात यदि माँ कमला धन प्रदान करने वाली शक्ति के रूप में साध्य हैं तो उनके कई गोपनीय रूप शत्रु मर्दन और ज्ञान से आपूरित करने वाले भी हैं।

          अब यह तो गुरु पर निर्भर करता है कि वो कब इन तथ्यों को अपने शिष्य को सौंपता है और यह शिष्य पर है कि वह अपने समर्पण से कैसे सद्गुरुदेव के हृदय को जीतकर उनसे इन कुँजियों को प्राप्त करता है। वास्तव में सत, रज और तम गुणों से युक्त ध्यान, दिशा, वस्त्र, काल और विधि पर ही उस शक्तियों के गुण परिवर्तन की क्रिया आधारित होती है। किसी भी महाविद्या को पूर्ण रूप से सिद्ध कर लेने के लिए साधक को एक अलग ही जीवनचर्या, आहार-विहार और खान-पान का आश्रय लेना पड़ता है, किन्तु जहाँ मात्र उनकी कृपा प्राप्त करनी हो तो यह नियम थोड़े सरल हो जाते हैं और यह हम सब जानते हैं कि विगलित कण्ठ से माँ को पुकारने पर वो आती ही हैं।

          माँ धूमावती के साथ भी ऐसा ही है, जनसामान्य या सामान्य साधक उन्हें मात्र अलक्ष्मी और विनाश की देवी ही मानते हैं, किन्तु जिनकी प्रज्ञा का जागरण हुआ हो वे जानते हैं कि आखिर इस महाविद्या का बाह्य परिवेश यदि इतना वृद्ध बनाया गया है तो क्या वह वृद्ध दादी या नानी माँ का परिवेश उन्हीं की भाँति वात्सल्यमयता से युक्त नहीं होगा।

          नीचे की पंक्तियों में माँ भगवती धूमावती से सम्बन्धित ऐसा ही साधना प्रयोग दिया जा रहा है, जिसे सम्पन्न करने पर ना सिर्फ जीवन में पूर्ण अनुकूलता प्राप्त हो जाती है, अपितु शत्रुओं से मुक्ति, आर्थिक उन्नति, कार्य क्षेत्र में सफलता, प्रभावकारी व्यक्तित्व और कुण्डलिनी जागरण जैसे लाभ भी प्राप्त होते हैं। विनाश और संहार के कथनों से परे यह गुण भी हम माँ भगवती धूमावती की साधना से स्पष्ट रूप से देख सकते हैं।

साधना विधान :----------

          यह साधना धूमावती जयन्ती पर सम्पन्न करे अथवा इसे धूमावती सिद्धि दिवस या किसी भी रविवार को भी किया जा सकता है। यह साधना रात्रि में ही १० बजे के बाद की जाती है। स्नान करके बगैर तौलिए से शरीर को पोंछे या तो वैसे ही शरीर को सुखा लिया जाए या धोती के ऊपर धारण किए जाने वाले अंग वस्त्र से हल्के-हल्के शरीर सुखा लिया जाए और साधना के निमित्त सफ़ेद वस्त्र या बहुत हल्का पीला वस्त्र  धारण कर लिया जाए। ऊपर का अंगवस्त्र भी सफ़ेद या हल्का पीला ही होगा। धोती और अंगवस्त्र के अतिरिक्त कोई अन्तर्वस्त्र प्रयोग नहीं किया जाए। साधक-साधिका दोनों के लिए यही नियम है, महिला ऊपर साड़ी के रंग का ही ब्लाउज पहन सकती हैं। आसन सफ़ेद होगा, दिशा दक्षिण होगी।

          सर्वप्रथम पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का सामान्य पंचोपचार पूजन करें और गुरुमन्त्र का कम से कम चार माला जाप करें। फिर उनसे तान्त्रोक्त धूमावती साधना सम्पन्न करने हेतु मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लेकर साधना की पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          तत्पश्चात भगवान गणपतिजी का स्मरण करके एक माला गणपति मन्त्र का जाप करें। फिर उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए निवेदन करें।

          इसके बाद एक पृथक बाजोट पर सफ़ेद वस्त्र बिछाकर एक लोहे या स्टील के पात्र में काजल से धूं बीज का अंकन करके उसके ऊपर एक सुपारी स्थापित कर दें और हाथ जोड़कर निम्न ध्यान मन्त्र का ११ बार उच्चारण करे

धूम्रा मतिव सतिव पूर्णात सा सायुग्मे।
सौभाग्यदात्री सदैव करुणामयि:।। 

          इसके बाद उस सुपारी को माँ धूमावती का रूप मानते हुए, अक्षत, काजल, भस्म (धूपबत्ती या अगरबत्ती की राख, गोबर के उपलों की राख या पहले हुए किसी भी हवन की भस्म), काली मिर्च और तेल के दीपक से और उबाली हुई उड़द तथा फल के नैवेद्य द्वारा उनका पूजन करे। (यथाॐ धूं धूं धूमावत्यै अक्षत समर्पयामि, ॐ धूं धूं धूमावत्यै कज्जलं समर्पयामि...आदि आदि)

          तत्पश्चात उस पात्र के दाहिने अर्थात अपने बायीं ओर एक मिटटी या लोहे का छोटा पात्र स्थापित कर उसमें सफ़ेद तिलों की ढेरी बनाकर उसके ऊपर एक दूसरी सुपारी स्थापित करे और निम्न ध्यान मन्त्र का ५ बार उच्चारण करते हुए माँ धूमावती के भैरव अघोर रूद्र का ध्यान करे

त्रिपाद हस्तं नयनं नीलांजनं चयोपमम्।
शूलासि सूची हस्तं च घोर दंष्ट्राटट् हासिनम्।।

          और उस सुपारी का पूजन काले तिल, अक्षत, धूप-दीप तथा गुड़ से करे तथा काले तिल डालते हुए ॐ अघोर रुद्राय नमःमन्त्र का २१ बार उच्चारण करे। इसके बाद बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ से निम्न मन्त्र का ५ बार उच्चारण करते हुए पूरे शरीर पर छिड़के

धूमावती मुखं पातु  धूं धूं स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्यसुन्दरी।।
कल्याणी हृदये पातु हसरीं नाभि देशके।
सर्वांग पातु देवेशी निष्कला भगमालिना।।
सुपुण्यं कवचं दिव्यं यः पठेदभक्ति संयुतः।
सौभाग्यमतुलं प्राप्य जाते देवीपुरं ययौ।।

           इसके बाद जिस थाली में माँ धूमावती की स्थापना की थी, उस सुपारी को अक्षत और काली मिर्च मिलाकर निम्न मन्त्र की आवृत्ति ११ बार कीजिए अर्थात क्रम से हर मन्त्र ११-११ बार बोलते हुए अक्षत मिश्रित काली मिर्च डालते रहे।
उदाहरण -----         भद्रकाल्यै नमः।

          मन्त्र को ११ बार बोलते हुए अक्षत और साबुत काली मिर्च का मिश्रण अर्पित करे, फिर दूसरा मन्त्र ११ बार बोलते हुए पुनः मिश्रण चढाएं। फिर क्रमशः तीसरा मन्त्र, चौथा, पाँचवाँ, छठवाँ, सातवाँ और आठवाँ मन्त्र ११-११ बार बोलते हुए अक्षत और काली मिर्च का मिश्रण अर्पित करते जाएं -----

  भद्रकाल्यै नमः।
  महाकाल्यै नमः।
  डमरूवाद्यकारिणीदेव्यै नमः।
  स्फारितनयनादेव्यै नमः।
  कटंकितहासिन्यै नमः।
  धूमावत्यै नमः।
  जगतकर्त्री नमः।
  शूर्पहस्तायै नमः।

          इसके बाद  निम्न मन्त्र का जाप रुद्राक्ष माला से ५१ माला करें, यथासम्भव एक बार में ही यह जाप हो सके तो अतिउत्तम  होगा

मन्त्र :-------------

          ।। ॐ  धूं धूं धूमावत्यै फट् स्वाहा ।।

OM DHOOM DHOOM DHOOMAVATYAI PHAT SWAAHA.

          मन्त्र जाप के बाद मिट्टी या लोहे के हवन कुण्ड (हवन कुण्ड ना हो तो कोई भी कटोरा, कढ़ाई, तवा आदि भी लिया जा सकता है) में लकड़ी जलाकर १०८ बार घी व काली मिर्च के द्वारा आहुति डाल दें। आहुति के दौरान ही आपको आपके आसपास एक तीव्रता का अनुभव हो सकता है और पूर्णाहुति के साथ अचानक मानो सब कुछ शान्त हो जाता है। इसके बाद आप पुनः स्नान करके ही सोने के लिए जाए और दूसरे दिन सुबह आप सभी सामग्री को बाजोट पर बिछे वस्त्र के साथ ही विसर्जित कर दें। जाप माला को कम से कम २४ घण्टे नमक मिश्रित जल में डुबाकर रखे और फिर साफ़ जल से धोकर तथा उसका पूजन कर अन्य कार्यों में प्रयोग करें। यदि बाद में भी कभी इस प्रयोग को करना हो तो नवीन सामग्री (माला छोड़कर) से उपरोक्त सारी प्रक्रिया पुनः करना पड़ेगा। इस प्रयोग को करने पर स्वयं ही अनुभव हो जाएगा कि आपने किया क्या है? कैसे परिस्थितियाँ आपके अनुकूल हो जाती है, यह तो स्वयं अनुभव करने वाली बात है।

          आपकी साधना सफल हो और आपकी मनोकामना पूर्ण हो। मैं सद्गुरुदेव भगवान परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्दजी के आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।।

शनिवार, 27 अप्रैल 2019

महामातंगी साधना

महामातंगी साधना

             अक्षय तृतीया पर्व समीप ही है। यह इस वर्ष १८ मार्च २०१८ को आ रहा है। इसी दिन मातंगी जयन्ती भी होती है। आप सभी को अग्रिम रूप से अक्षय तृतीया पर्व की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ!

         समस्त जगत जिस शक्ति से चलित है, उसी शक्ति की दस स्वरूप हैं ये दस महाविद्याएँ, जिनके नौवें क्रम में भगवती मातंगी का नाम आता है। भगवान शिव के मतंग रूप में उनकी अर्द्धांगिनी होने के कारण ही उनकी संज्ञा मातंगी रूप में विख्यात हुई।

         जीवन में भगवती मातंगी की साधना प्राप्त होना ही सौभाग्य का प्रतीक माना गया है। महर्षि विश्वामित्र ने तो यहाँ तक कहा है कि बाकी नौ महाविद्याओं का भी समावेश मातंगी साधना में स्वतः ही हो गया है। चाहे हम बाकी नौ साधनाएँ नहीं भी करें और केवल मातंगी साधना को ही सम्पन्न कर लें तो भी अपने आप में पूर्णता प्राप्त हो सकती है।

         इसीलिए तो शास्त्रों में मातंगी साधना की प्रशंसा में कहा गया है‚ कि -------

मातंगी मेवत्वं पूर्ण, मातंगी पूर्णत्व उच्चते।”

         इससे यह स्पष्ट होता है कि मातंगी एकमात्र श्रेष्ठतम साधना है और एकमात्र मातंगी ही पूर्णता दे सकती है।

         मातंगी शब्द जीवन के प्रत्येक पक्ष को उजागर करने की क्रिया के का नाम है, जिससे जीवन के दोनों ही पक्षों को पूर्णता मिलती है। परन्तु मातंगी साधना साधकों के मध्य विशेष रूप से जीवन के भौतिक पक्ष को सुधारने के लिए ही की जाती रही है।

         माना जाता है कि मातंगी देवी की आराधना सर्वप्रथम भगवान विष्णु ने की थी। तभी से वे सुखी, सम्पन्न, श्रीयुक्त तथा उच्च पद पर विराजित हैं। देवी की आराधना बौद्ध धर्म में भी की जाती हैं, किन्तु बौद्ध धर्म के प्रारम्भ में देवी का कोई अस्तित्व नहीं था। कालान्तर में देवी बौद्ध धर्म में मातागिरी नाम से जानी जाती है। तन्त्र विद्या के अनुसार देवी सरस्वती नाम से भी जानी जाती हैं, जो श्रीविद्या महात्रिपुरसुन्दरी के रथ की सारथी तथा मुख्य सलाहकार हैं।

          हम जीवन में सदैव मेहनत करते हैं तथा हमेशा यह प्रयत्न करते रहते हैं कि हमारा समाज तथा हमारा परिवार हमसे सदैव प्रसन्न रहे, परन्तु ऐसा होता नहीं है। उसका सबसे बड़ा कारण है कि हमारे पास बहुमत नहीं है। यहाँ बहुमत का अर्थ प्रसिद्धि से है, क्यूँकि जब तक हमें जीवन में प्रसिद्धि नहीं मिलती, हमारा कोई सम्मान नहीं करता है। दुनिया सर झुकाएगी तो ही परिवार भी हमें सम्मान देगा अन्यथा वो कहावत तो सुनी ही होगी, घर की मुर्गी दाल बराबर। और यदि आप प्रसिद्ध है तो लक्ष्मी भी आपके जीवन में आने को आतुर हो उठती है।

         प्रस्तुत साधना इसीलिए है। कुछ लाभ यहाँ लिख रहा हूँ, जो इस साधना से आपको प्राप्त होंगे -------

     १. इस साधना को सम्पन्न करने के बाद साधक अपने कार्य क्षेत्र में तथा समाज में ख्याति प्राप्त करता है। वह एक लोकप्रिय और यशस्वी व्यक्तित्व बन जाता है।

     २. साधना माँ मातंगी से सम्बन्धित है, अतः साधक को पूर्ण गृहस्थ सुख प्राप्त होता है तथा परिवार में सम्मान होता है। साधक को कुटुम्ब सुख, पुत्र, पुत्रियाँ, पत्नी, स्वास्थ्य, पूर्णायु आदि सभी कुछ प्राप्त होता है, जिससे उसका गृहस्थ जीवन पूर्ण माना जा सकता है।

     ३. माँ मातंगी में महालक्ष्मी समाहित है, अतः साधक का आर्थिक पक्ष मजबूत होता है। स्वास्थ्य, आय, धन, भवन सुख, वाहन सुख, राज्य सुख, यात्राएँ और विविध इच्छाओं की पूर्ति सब कुछ तो मातंगी अपने साधक को प्रदान कर देती है।

         यह केवल मैंने तीन लाभ ही लिखे हैं, परन्तु एक साधक होने के नाते आप सभी यह बात बखूबी जानते है कि कोई भी साधना मात्र लाभ ही नहीं देती है, बल्कि साधक का चहुँमुखी विकास करती है। साथ ही धैर्य तथा विश्वास परम आवश्यक है। अतः साधना साधना कर लाभ उठाएं तथा अपने जीवन को प्रगति प्रदान करें।

साधना विधि :-----------

         यह साधना अक्षय तृतीया या मातंगी जयन्ती अथवा मातंगी सिद्धि दिवस से आरम्भ की जा सकती है। ए तो अधिक श्रेष्ठ रहता है। इसके अतिरिक्त यह साधना किसी भी नवरात्रि के प्रथम दिन से अथवा किसी भी शुक्रवार से शुरू की जा सकती है। फिर भी अक्षय तृतीया से वैशाख पूर्णिमा के मध्य यह साधना सम्पन्न करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

         यह साधना रात्रि १० बजे के बाद शुरू करे या ब्रह्ममुहूर्त में भी की जा सकती है। आसन, वस्त्र सफ़ेद हो तथा आपका मुख उत्तर की ओर हो। सामने बजोट पर सफ़ेद वस्त्र बिछाएं और उस पर अक्षत से बीज मन्त्र “ह्रीं” लिखें, फिर उस पर माँ मातंगी का कोई भी यन्त्र या चित्र स्थापित करे। यह सम्भव न हो तो एक मिटटी के दीपक में तिल का तेल डालकर कर जलाएं और उसे स्थापित कर दें। इस दीपक को ही माँ का स्वरूप मानकर पूजन करना है। अगर अपने यन्त्र या चित्र स्थापित किया है तो घी का दीपक पूजन में लगाना होगा, जो सम्पूर्ण साधना काल में जलता रहे।

         सबसे पहले साधक को चाहिए कि वह समान्य गुरु पूजन करे और गुरुमन्त्र का चार माला जाप करे। फिर सद्गुरुदेवजी से महामातंगी साधना सम्पन्न करने के लिए मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लें और उनसे साधना की पूर्णता एवं सफलता के लिए निवेदन करें।

         तदुपरान्त भगवान गणपतिजी का संक्षिप्त पूजन करके “ॐ वक्रतुण्डाय हुम्” मन्त्र की एक माला जाप करें। फिर गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

         इसके बाद भगवान भैरवनाथजी का स्मरण करके “ॐ हूं भ्रं हूं मतंग भैरवाय नमः” मन्त्र की एक माला जाप करें और भगवान भैरवनाथजी से साधना की निर्बाध पूर्णता एवं सफलता के लिए निवेदन करें।

         तत्पश्चात साधक को साधना के पहले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए। संकल्प में अपनी मनोकामना का उच्चारण करें और उसकी पूर्ति के लिए माँ भगवती मातंगी से साधना में सफलता तथा आशीर्वाद प्रदान करने की प्रार्थना करें।

         इसके बाद साधक माँ भगवती मातंगी का सामान्य पूजन करे, भोग में सफ़ेद मिठाई अर्पित करे। साथ ही कोई भी इतर अर्पित करे। यदि अपने तेल का दीपक स्थापित किया है तो घी का दीपक लगाने की कोई जरुरत नहीं है। बाकी सारा क्रम वैसा ही रहेगा।

         पूजन के बाद माँ भगवती मातंगी से अपनी मनोकामना कहे एवं सफलता तथा आशीर्वाद प्रदान करने की प्रार्थना करे। फिर स्फटिक माला से निम्न मन्त्र की २१ माला करें -----

मन्त्र :-----------

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं महामातंगी प्रचितीदायिनी लक्ष्मीदायिनी नमो नमः

OM HREEM HREEM HREEM MAHAAMAATANGI PRACHITIDAAYINI LAKSHMIDAAYINI NAMO NAMAH.

         मन्त्र जाप के बाद अग्नि प्रज्वलित कर घी, तिल तथा अक्षत मिलकर १०८ आहुति प्रदान करे।

         अगले दिन दीपक हो तो विसर्जन कर दे। यन्त्र या चित्र हो तो पूजाघर में रख दे। प्रसाद स्वयं ग्रहण कर ले। इतर सँभाल कर रख ले, प्रतिदिन इसे लगाने से आकर्षण पैदा होता है। इस तरह यह एक दिवसीय साधना सम्पन्न होगी।

          कुछ दिनों में आप साधना का प्रभाव स्वयं अनुभव करने लग जाएंगे तो देर किस बात की? साधना करें तथा जीवन को पूर्णता प्रदान करें!

          आपकी साधना सफल हो और आपकी मनोकामना माँ भगवती पूर्ण करे! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्रीनिखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।

 

शनिवार, 13 अप्रैल 2019

हनुमान प्रत्यक्ष सिद्धि प्रयोग


हनुमान प्रत्यक्ष सिद्धि प्रयोग


          श्रीहनुमान जयन्ती निकट ही है। इस बार यह १९ अप्रैल २०१९ को आ रही है। आप सभी को श्रीहनुमान जयन्ती की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          हनुमान शक्तिशाली, पराक्रमी, संकटों का नाश करने वाले और दुःखों को दूर करने वाले महावीर हैं। इनके नाम का स्मरण ही साहस और शक्ति प्रदान करने वाला है।  एक कहावत है कि "घर का जोगी जोगिया और आन गाँव का सिद्ध" यह बात पवनपुत्र रुद्रावतार श्रीहनुमान के सम्बन्ध में लागू होती है। श्रीहनुमान साधना द्वारा कष्टों का निवारण जिस सरल और सहज भाव से हो सकता है, उतनी सरल कोई अन्य साधना नहीं है। फिर क्लिष्ट साधनाएँ क्यों की जाए, हनुमान साधनाएँ तो रामबाण साधनाएँ हैं।

          कई वर्ष पुरानी बात है। मेरे एक मित्र का नौकरी के लिए इण्टरव्यू था, मित्र बड़े परेशान और वास्तव में भयभीत थे, नौकरी की बहुत सख्त आवश्यकता थी। इण्टरव्यू के लिए बुलावा दो सौ से अधिक लोगों का था और चयन केवल पाँच का ही होना था। चिन्ता और अनिश्चय से मित्र बड़े व्याकुल थे, मैंने कहा कि इण्टरव्यू में भीतर जाने से पहले शान्त मन से केवल एक बार "हनुमान मन्त्र चमत्कारानुष्ठान" का पाठ अवश्य कर लेना। तब परीक्षार्थी तो पुस्तक टटोल रहे थे, परन्तु मेरे मित्र एक कुर्सी पर बैठकर "हनुमान मन्त्र चमत्कारानुष्ठान" का पाठ कर रहे थे। पाठ करने के बाद उनका नम्बर आया और वह सहज भाव से पूरे आत्मविश्वास के साथ भीतर गए, बिना किसी सिफारिश के उनका सेलेक्शन हो गया। यह श्रीहनुमान चमत्कार ही है।

          यह सिद्ध बात है कि कृष्णपक्ष में अर्धरात्रि के पश्चात शहर के किसी घने जंगल अथवा श्मशान में भी हनुमान मन्त्र, हनुमान चालीसा का पाठ करते हुए हनुमान साधक निकल जाएं तो सर्प, बिच्छू, जंगली जानवर तो क्या, भूत, प्रेत, पिशाच भी पास नहीं फटकते! मरणान्तक पीड़ा से व्याप्त कष्ट भोगते हुए रोगियों को हनुमान साधना से अभिमन्त्रित जल पिलाया है  और हनुमानजी की कृपा से वे पूर्ण स्वस्थ हुए हैं। ऐसा केवल हनुमानजी ही कर सकते हैं, वे अपने भक्तों को कष्ट में नहीं देख सकते। उनके लिए कुछ भी करना सहज सम्भव है, क्योंकि जो एक संजीवनी बूटी के लिए पूरा पहाड़ उठाकर ले जा सकते हैं, जो रावण जैसे महाप्रतापी का अहंकार चूर-चूर कर सकते हैं, ऐसे एकादश रूद्र की महिमा उनकी भक्ति करके ही जानी जा सकती है।

          श्रीहनुमान प्रतीक है ब्रह्मचर्य, बल, पराक्रम, वीरता, भक्ति, निडरता, सरलता और विश्वास के। शत्रु अथवा बाधा न छोटी होती है और न बड़ी, वह तो केवल व्यक्ति या घटना होती है और उस पर आत्मविश्वास द्वारा विजय प्राप्त की जा सकती है। और जो श्रीहनुमान का साधक है, उसके भीतर तो आत्मविश्वास, आत्मशक्ति छलकती रहती है। उसे ज्ञान है कि मेरी पीठ के पीछे प्रबल पराक्रम के देव बजरंगबली खड़े हैं, फिर मुझे काहे की चिन्ता!

हनुमान उपासना में कुछ आवश्यक तथ्य

     १. हनुमान मूर्ति को तिल में मिले हुए सिन्दूर का लेपन करना चाहिए।

     २. नैवेद्य में प्रातः गुड, नारियल का गोला व लड्डू, मध्याह्न में गुड़, घी और गेहूँ की रोटी का चूरमा अथवा मोटा रोट तथा रात्रि में आम, अमरूद अथवा केला नैवेद्य रूप में चढ़ाना श्रेष्ठ माना गया है।

     ३. पुष्पों में केवल लाल और पीले बड़े फूल जैसे कमल, हजारा, सूर्यमुखी, गेन्दा चढ़ाना चाहिए।

     ४. घी में भीगी हुई एक अथवा पाँच बत्तियों का दीपक जलाना चाहिए।

     ५. हनुमान साधना में ब्रह्मचर्य व्रत का पूर्ण रूप से पालन करें।

     ६. सम्भव हो तो कुएं के जल से स्नान करें।

      ७. हनुमान मन्त्र का जप बोलकर अर्थात आवाज के साथ हनुमान मूर्ति/चित्र में नेत्रों को देखते हुए किया जाता है।

     ८. अनिष्ट की इच्छा से हनुमान साधना नहीं करनी चाहिए।

     ९. श्रीहनुमान सेवा, पूजा के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं, अतः साधक को सेवा करके फल प्राप्ति की इच्छा रखनी चाहिए, पूजा में पूर्ण श्रद्धा और सेवा भाव होना चाहिए।

     १०. पूजा स्थान में भगवान राम व सीता का चित्र होना हनुमान जी को प्रियकर लगता है।

साधना विधान :-----------

          हनुमान जयन्ती हनुमान साधना का सिद्ध दिवस है। इस दिन संकल्प लेकर आरम्भ किया गया अनुष्ठान/साधना निष्फल नहीं जाती और साधक को अल्पकाल में ही परिणाम दृष्टिगोचर होने लगते हैं। आगे हनुमान प्रत्यक्ष सिद्धि साधना प्रस्तुत की जा रही है, जिसे इस दिन से अथवा किसी भी मंगलवार को आरम्भ किया जा सकता है।

          साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल वस्त्र धारण कर दक्षिणाभिमुख होकर वीरासन में बैठ जाएं। अपने सामने एक चौकी पर सिन्दूर छिड़क दें तथा उस पर हनुमानजी का चित्र स्थापित करें। अपने सामने लाल वस्त्र से ढँके बाजोट पर मन्त्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित "हनुमत यन्त्र" को किसी पात्र में स्थापित करें। यन्त्र पर सिन्दूर अच्छी तरह से लगा दें। फिर गुड़, घी, आटे से बनी हुई रोटी को मिलाकर लड्डू बनाकर उसका भोग लगावें।

         फिर दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प करें कि मैं अमुक नाम का व्यक्ति अमुक गोत्र अमुक प्रयोजन से यह अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हूँ। भगवान हनुमान मेरी साधना को स्वीकार कर मेरा मनोरथ सिद्ध करें। और फिर जल को भूमि पर छोड़ दें।

          इसके बाद श्रीहनुमानजी का सकाम ध्यान करें। दोनों आँखें बन्द कर कुछ देर तक उनके स्वरूप का स्मरण करें तथा उनके आशीर्वाद की कामना करें। हनुमान का ध्यान मन्त्र इस प्रकार है -----

ॐ अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनां अग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
मनोजवं मारुततुल्य वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानर यूथमुख्यं श्री रामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥

          ध्यान के पश्चात फिर निम्न मन्त्र का "मूँगा माला" से २१ माला मन्त्र जाप करें -----

मन्त्र :-----------

॥ ॐ नमो हनुमन्ताय आवेशय आवेशय स्वाहा ॥

OM NAMO HANUMANTAAY AAVESHAY AAVESHAY SWAAHA.

          मन्त्र जाप के बाद एक आचमनी जल छोड़कर समस्त जाप समर्पित कर दें। इसके तुरन्त बाद पूजा स्थान में वहीं भूमि पर ही सो जाएं। यह रात्रिकालीन साधना है। इस प्रकार नित्य ११ दिनों तक करें। जो नैवेद्य हनुमानजी के सामने रखा है, वह आठों प्रहर रखा रहे। अगले दिन रात्रि को वह नैवेद्य दूसरे पात्र में रख दें और नया नैवेद्य हनुमानजी को चढ़ा दें।

          यह निश्चित है कि ११ वें दिन हनुमानजी साधक को प्रत्यक्ष दर्शन देंगे और उसके प्रश्नों का उत्तर देंगे अथवा जिस निमित्त से यह प्रयोग किया गया है, वह कार्य निश्चय ही सम्पन्न होगा।

          जब यह प्रयोग पूरा हो जाए तो वह एकत्र किया हुआ नैवेद्य या तो किसी गरीब व्यक्ति को दे दें अथवा दक्षिण दिशा में घर के बाहर भूमि खोदकर उसे गाड़ दें।

          इसी प्रयोग से साधकों ने कई बड़ी-बड़ी विपत्तियों को सरलता से टाला है, भयंकर रोगों से छुटकारा पाया है, दण्ड पाये व्यक्ति को इस प्रयोग से निदान/छुटकारा मिल सका है, वास्तव में ही यह प्रयोग अपने आप में अचूक और अद्वितीय है।

           आपकी यह साधना सफल हो और भगवान हनुमानजी आपका मनोरथ सिद्ध करें! मैं सद्गुरुदेवजी से यही प्रार्थना करता हूँ।

           इसी कामना के साथ
 
ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश॥।