बुधवार, 25 जनवरी 2017

सरस्वती बीजमन्त्र साधना

बीजोक्त सरस्वती स्थापन साधना


          माघ मासीय गुप्त नवरात्रि एवं माँ भगवती सरस्वती जयन्ती अर्थात वसन्त पंचमी समीप ही है। आप सभी को गुप्त नवरात्रि एवं वसन्त पंचमी की अग्रिम रूप से बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ!

          गुप्त नवरात्रि २८ जनवरी २०१७ से आरम्भ हो रही है और वसन्त पंचमी १ फरवरी २०१७ को आ रही है। 

           हम सदैव साधना करते रहते हैं। कोई महाविद्या की तो कोई भैरव की,परन्तु बहुत कम लोग है, जो सरस्वती माँ की साधना की ओर ध्यान देते हैं। जबकि अगर माँ सरस्वती की कृपा हमें मिल जाए तो संसार का कोई ज्ञान नहीं है, जो हमें प्राप्त न हो सके, चाहे वह तन्त्र का ज्ञान हो या कोई और ज्ञान। परन्तु कुछ लोगों के सिवा सभी साधक सरस्वती साधना को बहुत हल्के में लेते हैं और यदि करते भी हैं तो कितना ? सिर्फ एक या दो माला पर ही आकर रुक जाते हैं और समझ लेते हैं कि बस हो गयी माँ प्रसन्न। परन्तु ऐसा नहीं है, हमें सरस्वती साधना को गम्भीरता से लेना होगा, क्यूँकि संसार का हर शब्द, हर मन्त्र, हर ज्ञान सरस्वती के बिना शून्य है।

           प्रस्तुत साधना माँ सरस्वती की बीजमन्त्र साधना है, जिसे बीजोक्त सरस्वती स्थापन साधना के नाम से जाना जाता है। इस साधना से माँ सरस्वती की कृपा तो प्राप्त होती ही है। साथ ही माँ के बीजमन्त्र " ऐं"  में जो शक्ति विद्यमान है, वह साधक की बुद्धि में स्थापित हो जाती है। अब सोचिए जब बीज मन्त्र की शक्ति आपकी बुद्धि में समाहित हो जाए तो क्या बाकी रह जाता है। साधक ज्ञान मार्ग में निरन्तर प्रगति करता ही है। अधिक लिखने से कोई लाभ नहीं है। आप स्वयं साधना करे और लाभ प्राप्त करे।

साधना विधि :---

           साधना वसन्त पंचमी से प्रारम्भ करे। इसके अलावा इसे किसी भी सोमवार से आरम्भ किया जा सकता है। समय रात्रि  के बाद का रहे या यह ब्रह्म मुहूर्त में भी की जा सकती है। आसन वस्त्र सफ़ेद हो तथा आपका मुख उत्तर या पूर्व की ओर हो। अपने सामने बाजोट पर एक सफ़ेद वस्त्र बिछाएं और माँ सरस्वती का कोई भी चित्र और सद्गुरुदेवजी का चित्र अथवा गुरु पादुका स्थापित कर दें। 

           अब सबसे पहले सामान्य गुरुपूजन सम्पन्न करके गुरुमन्त्र की चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से सरस्वती बीज मन्त्र साधना सम्पन्न करने की अनुमति लें और उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें। 

           इसके बाद भगवान गणपतिजी का स्मरण करके एक माला गणेश मन्त्र की जाप करें और उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें। 

            इसके पश्चात साधक को साधना के पहले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए। 


            इसके लिए साधक दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प करे कि मैं अमुक पिता का नाम अमुक गोत्र अमुक परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्दजी गुरुजी का शिष्य होकर आज से सरस्वती बीज मन्त्र साधना का अनुष्ठान प्रारम्भ कर रहा हूँ। मैं ११ दिनों तक नित्य १०८ माला मन्त्र जाप सम्पन्न करूँगा। हे, माँ! आप मेरी इस साधना को स्वीकार कर मुझे सिद्धि प्रदान करें और इसकी ऊर्जा को आप मेरी बुद्धि में स्थापित कर दें।

           इसके बाद चित्र के ठीक सामने कुमकुम से कपड़े के ऊपर ही मैथुन चक्र का निर्माण करे, पर यह ज्यादा बड़ा न हो।  मैथुन चक्र की आकृति निम्नानुसार है -----


          अब मैथुन चक्र पर केसर मिश्रित चावल की ढेरी बनाएं और उस ढेरी पर सरस्वती यन्त्र स्थापित करे। सरस्वती यन्त्र  की आकृति निम्नानुसार है -----

 

            इस यन्त्र का निर्माण अष्टगन्ध की स्याही से अनार या चाँदी की कलम से करे। भोज पत्र या सादे कागज़ पर इसे बना ले।

           अब यन्त्र के सामने ५ चावल की ढेरी बनाएं एक ही लाइन में और उन पर एक-एक सुपारी स्थापित करें। हर सुपारी पर केसर या कुमकुम की स्याही से बीजमन्त्र  "ऐं" का अंकन करें। फिर माँ सरस्वती का सामान्य पूजन करें और यन्त्र का भी पूजन करें। घी का दीपक जलाएं। भोग में खीर या पञ्च मेवा अर्पण करें, जो कि साधना के बाद स्वयं खाना है।

           अब निम्न मन्त्र पढ़ते हुए सुपारी पर कुमकुम अर्पण करे -----

ॐ मेधा स्वामिनी नमः।
ॐ शक्ति दात्री नमः।
ॐ बीज स्वरूपिणी नमः।

           हर मन्त्र को २१ बार पढ़े और सुपारी पर कुमकुम अर्पण करें। कुमकुम अर्पण करते समय अपने बाएँ हाथ के अँगूठे से आज्ञा चक्र वाली जगह पर निरन्तर स्पर्श करते रहें। सिर्फ स्पर्श करना है, दबाना नहीं है।

           इसके बाद सरस्वती के बीज मन्त्र की १०८ माला जाप करें  ----

बीज मन्त्र :----

                     ।। ऐं ।।
      
                     AYING.

           हर माला के बाद सुपारी पर चढ़ाए हुए कुमकुम को मस्तक पर लगाना है और यह क्रम हर सुपारी के साथ करना है अर्थात एक माला के बाद पहली सुपारी से कुमकुम ले, दूसरी के बाद दूसरी सुपारी से ले। इस तरह यह क्रम जारी रखे। जप के बाद सद्गुरुदेव तथा माँ से प्रार्थना करे।

           इसी तरह यह साधना आपको ग्यारह दिनों तक सम्पन्न करनी है। सोमवार से शुरु करने की दशा में अगले सोमवार के पश्चात गुरुवार तक करनी होगी।

           साधना समाप्ति के बाद यन्त्र पूजाघर में रख ले। अन्य सामग्री कपड़ा, चावल, सुपारी किसी देवी मन्दिर में दक्षिणा के साथ अर्पण कर दें। आप स्वयं साधना के बाद इसका प्रभाव अनुभव करने लगेंगे। तो देर कैसी?  साधना कर लाभ प्राप्त करे और माँ के बीज मन्त्र की शक्ति को बुद्धि में स्थापित करे।

          आपकी सरस्वती साधना सद्गुरुदेव निखिलेश्वरानन्दजी की कृपा से सफल हो और माँ भगवती सरस्वती का आपको पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त हो। मैं पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी से ऐसी ही प्रार्थना करता हूँ। 

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।

मंगलवार, 24 जनवरी 2017

साबर सरस्वती साधना

            माघ मासीय गुप्त नवरात्रि एवं माँ भगवती सरस्वती जयन्ती अर्थात वसन्त पञ्चमी समीप ही है। आप सभी को गुप्त नवरात्रि एवं वसन्त पञ्चमी की अग्रिम रूप से बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ!

            गुप्त नवरात्रि २८ जनवरी २०१७ से आरम्भ हो रही है और वसन्त पंचमी १ फरवरी २०१७ को आ रही है। 

           भगवती शारदा विद्याबुद्धिज्ञान एवं वाणी की अधिष्ठात्री तथा सर्वदा शास्त्र-ज्ञान देने वाली देवी हैं। हमारे हिन्दू धर्मग्रन्थों में इन्हीं माँ वागीश्वरी की जयन्ती वसन्त पञ्चमी के दिन बतलाई गई है। माघ मास के शुक्ल पक्ष की पञ्चमी को मनाया जाने वाला यह सारस्वतोत्सव या सरस्वती-पूजन अनुपम महत्त्व रखता है। सरस्वती माँ का मूलस्थान शशाङ्क-सदन अर्थात् अमृतमय प्रकाश-पुञ्ज है। जहाँ से वे अपने उपासकों के लिये निरन्तर पचास अक्षरों के रूप में ज्ञानामृत की धारा प्रवाहित करती हैं। शुद्ध ज्ञानमय व आनन्दमय विग्रह वाली माँ वागीश्वरी का तेज दिव्य व अपरिमेय है और इनकी ही शब्दब्रह्म के रूप में स्तुति की जाती हैं।

          श्रीमद्देवीभागवत  श्रीदुर्गासप्तशती में आद्याशक्ति द्वारा महाकालीमहालक्ष्मी व महासरस्वती के नाम से तीन भागों में विभक्त होने की कथा जगद्विख्यात है। सत्त्वगुण-सम्पन्ना भगवती सरस्वती के अनेक नाम हैंजिनमें वाक्वाणीगीःधृतिभाषाशारदावाचाधीश्वरीवागीश्वरीब्राह्मीगौसोमलतावाग्देवी और वाग्देवता आदि अधिक प्रसिद्ध हैं।
          अमित तेजस्विनी व अनन्त गुणशालिनी देवी सरस्वती की पूजा एवं आराधना के लिये निर्धारित शारदा माँ का आविर्भाव-दिवसमाघ शुक्ल पञ्चमी श्रीपञ्चमी के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस दिन माँ की विशेष अर्चना-पूजा व व्रतोत्सव द्वारा इनके सान्निध्य प्राप्ति की साधना की जाती है। शास्त्रों में सरस्वती देवी की इस वार्षिक पूजा के साथ ही बालकों के अक्षरारम्भ-विद्यारम्भ की तिथियों पर भी सरस्वती-पूजन का विधान बताया गया है। बुध ग्रह की माता होने से हर बुधवार को की गयी माँ शारदा की आराधना बुध ग्रह की अनुकूलता व माँ सरस्वती की प्रसन्नता दोनों प्राप्त कराती है। सच्चे श्रद्धालु आराधक की निष्कपट भक्ति से अति प्रसन्न होने पर देवी सरस्वतीजी ऐसी कृपा बरसाती हैं कि उसकी वाणी सिद्ध हो जाती है जो कुछ कहा जायवही सत्य हो जाता है।

             सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरुपिणि।

            विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा॥
          माता सरस्वती की कृपा के बिना मनुष्य ही नहीं अपितु हर जीव अधूरा ही है। क्यूँकि यही वह आदिशक्ति हैजो सब को विचार करने की शक्ति प्रदान करती हैस्मरण-शक्ति प्रदान करती है। जिज्ञासा के भाव भी सरस्वती की ही कृपा से जाग्रत होते हैं। अधिक लिखने की आवश्यकता ही नहीं हैक्यूँकि माता सरस्वती का जीवन में क्या महत्व हैयह सभी जानते है।
          माँ सरस्वती की साधना का सबसे उत्तम दिवस वसन्त पंचमी निकट ही है और ऐसे श्रेष्ठ समय का आप सभी लाभ उठाना चाहते होंगे। अतः आप  सभी के लिए आज साबर सरस्वती साधना प्रयोग दिया जा रहा है।
          इस प्रयोग के माध्यम से साधक माँ सरस्वती की कृपा का पात्र बन सकता है। मलीन होती बुद्धि को निर्मल किया जा सकता है। जिन साधकों की स्मरण-शक्ति दुर्बल होती जा रही है। उन्हें इस प्रयोग के माध्यम से बल मिलता है तथा साधक ज्ञानमार्ग में प्रगति प्राप्त करता है। अब अधिक लिखने से कोई लाभ नहीं हैक्यूँकि माँ की कृपा से सभी परिचित है।

साधना विधान :------------

           यह प्रयोग आप बसन्त पंचमी के दिन प्रातः ४ से ११ बजे के मध्य कर सकते है या सन्ध्या ७ से ९ बजे के मध्य भी किया जा सकता है। आप इस साधना में श्वेत वस्त्र धारण कर श्वेत आसन पर पूर्व की ओर मुख कर बैठें।

           अपने सामने बाजोट रखकर उसपर श्वेत वस्त्र बिछा दें तथा माँ भगवती सरस्वती का कोई भी चित्र एवं पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का चित्र या विग्रह स्थापित करें। फिर साधक सर्वप्रथम सामान्य गुरुपूजन करे और गुरुमन्त्र का कम से कम चार माला जाप करे। इसके बाद साधक सदगुरुदेवजी से साबर सरस्वती साधना सम्पन्न करने की अनुमति ले और उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करे।

          फिर साधक भगवान गणपतिजी का सामान्य पूजन करे और  वक्रतुण्डाय हुम्” मन्त्र का एक माला जाप करे। तत्पश्चात साधक भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करे।

          फिर साधक संक्षिप्त भैरवपूजन सम्पन्न करे और ॐ भं भैरवाय नमः मन्त्र की एक माला जाप करे। फिर भगवान भैरवजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करे।

          इसके बाद साधक को साधना के पहिले संकल्प अवश्य लेना चाहिए।

          इसके बाद बाजोट पर जो सफेद वस्त्र बिछाया है‚ उस पर अक्षत से वस्त्र पर एक स्वस्तिक बनाएं। उस स्वस्तिक के मध्य एक पानी वाला नारियल रखें। नारियल पर सिन्दूर से बीजमन्त्र ऐं लिखकर ही स्थापित करें। अब स्वस्तिक के चारों कोनों पर एक-एक दीपक रखकर प्रज्ज्वलित कर दें। दीपक मिट्टी के होने चाहिए और तिल का तेल दीपक में डालें।

          अब नारियल का सामान्य पूजन करेंसरस्वती माता का प्रतीक मानकर। भोग में खीर अर्पित करेंजिसे बाद में पूरे परिवार को दिया जा सकता है। स्मरण रखेंआप जो पञ्चोपचार पूजन करेंगेउसमें एक घी का दीपक अलग से प्रज्वलित करना है और पाँचों दीपक साधना पूर्ण होने तक जलना चाहिए।
          इसके बाद आप सरस्वती साबर मन्त्र का बिना माला के जाप करें और थोड़े-थोड़े अक्षत नारियल पर अर्पित करते जाएं।

साबर सरस्वती मन्त्र :-----------

           ॐ नमो सारसूति माई,

            मेधा बड़े करो सवाई,

            अमृत बरसे बुद्धि का,

            बाजे डंका सुद्धि का,

            आदेश आदेश आदेश शिव गोरख जोगी को आदेश ॥

          यह क्रिया आपको कम से कम एक घण्टे तक करनी होगी। इससे अधिक करना या न करना साधक की इच्छा पर निर्भर करता है। जब यह क्रिया पूर्ण हो जाए तो माँ से पुनः आशीर्वाद देने की प्रार्थना करें।
          मन्त्र जैसा लिखा गया है वैसा ही जाप करेंविधि या मन्त्र में अपनी इच्छा से कोई परिवर्तन न करें।     
          यदि आपने साधना सुबह की हैं तो शाम को सारी सामग्री अक्षतवस्त्रमिटटी के दीपक आदि किसी मन्दिर में रख दें या किसी वृक्ष के नीचे रख आएं। यदि आपने  साधना शाम को की हैं तो यह क्रिया अगले दिन करें।
          इस प्रकार यह लघु परन्तु दिव्य प्रयोग सम्पन्न होता है तथा माँ की कृपा से साधक की मेधा-शक्ति का विकास होता है।
          आप सभी साधना में सफलता प्राप्त करे और आपको माँ सरस्वती की पूर्ण कृपा एवं आशीर्वाद प्राप्त हो।
          इसी कामना के साथ
ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।

शनिवार, 21 जनवरी 2017

गुप्त नवरात्रि और माँ दुर्गा साधना प्रयोग

गुप्त नवरात्रि और माँ दुर्गा साधना प्रयोग


          माघ मासीय गुप्त नवरात्रि निकट ही है। आप सभी  को गुप्त नवरात्रि की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          गुप्त नवरात्रि में साधना करने से फल अत्यन्त लाभदायक और तीव्र गति से प्राप्त होता है। यह इस वर्ष दिनांक २८.०१.२०१७ से शुरु होकर दिनांक ०५.०२.२०१७ तक रहेगी।

         वैसे तो नवरात्रि में साधक अपनी सुविधा अनुसार कभी भी साधना कर सकता है, लेकिन नीचे दिए गए समय में करे तो साधना तीव्र गति से पूर्ण होती है और जल्दी ही फल की प्राप्ति होती है।

१. ब्रम्ह महूर्त में - सुबह ४ बजे से ६ बजे तक।
२. रात्रि १० बजे, ११ बजे या रात्रि १२ बजे के बाद।

कुछ प्रयोग और साधनाएँ

          हर इन्सान को अलग-अलग परेशानियों का सामना करना पड़ता है, किसी को प्यार नहीं मिलता तो किसी के पास पैसों की हमेशा तंगी बनी रहती है, किसी इन्सान की अभिलाषा या इच्छा पूरी नहीं होती। इन सब कारणों के लिए ही मैं आज कुछ अलग-अलग प्रयोग प्रस्तुत कर रहा हूँ। साधक अपनी इच्छा अनुसार प्रयोग चुन कर उसे सम्पन्न कर सकता है। साधक एक से अधिक प्रयोग भी कर सकता है। शक्ति साधनाओं का गुप्त नवरात्री के पर्व में अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान होता है तो माँ की साधना करना अधिक लाभप्रद होगा। देवी शक्ति इस पर्व में चैतन्य होने के कारण साधना में सफलता मिलती ही है, इसमें कोई दो राय नहीं है।

१. धन प्राप्ति के लिए माँ भुवनेश्वरी साधना प्रयोग

मन्त्र :---

।।श्रीं ह्रीं श्रीं।।


SHREEM HREEM SHREEM.

          प्रयोग रात्रि में १० बजे के बाद कभी भी आरम्भ कर सकते हैं। दिशा उत्तर या पूर्व रहेगी। वस्त्र और आसान सफ़ेद रंग के होंगे। ऊपर दिए गए मन्त्र की ५१ मालाओं का जाप स्फटिक माला से करना है। अपने सामने माँ भुवनेश्वरी का चित्र स्थापित कर दें और उनका पूजन करके हाथ जोड़कर निम्नानुसार  ध्यान करें-

ॐ उद्यद्दिनद्युतिं इन्दुकिरीटां तुंगकुचां नयनत्रययुक्तां।

स्मेरमुखीं वरदांकुशपाशाभीति करां प्रभजे भुवनेशीम्।।

          फिर मन्त्र जाप आरम्भ कर दें। मन्त्र जाप खत्म होने पर हो सके तो १०१ बार शुद्ध घी से हवन कर दें।

          यह प्रयोग एक ही दिन का है, लेकिन अगर आप चाहे तो पूरे ९ दिन तक कर सकते हैं। अगर आप ९ दिन तक यह साधना कर लेते हैं तो आपको सभी दिशाओं से शुभ सन्देश जल्द ही प्राप्त होते हैं। साधना पूरी होते ही आपको धन-प्राप्ति के नए मार्ग मिलने लगेंगे और आपके ऊपर माँ की कृपा दृष्टी बनी रहेगी।

२. माँ चण्डिका बाधा निवारक साधना

मन्त्र :--- 

।।ओम् चण्डिके फूं।।


OM CHANDIKE PHOOM.

          प्रयोग ९ रात्रि का है। यह प्रयोग रात्रि १२ बजे के बाद से कभी भी शुरू कर सकते हैं। दिशा दक्षिण रहेगी। आसन और वस्त्र लाल रंग के इस्तेमाल करें। माँ चण्डिका की तस्वीर अपने सामने स्थापित कर उनका कुमकुम से पूजन करें और सरसों के तेल का दिया जलाएं। माला काली हकीक की इस्तेमाल करें और ऊपर दिए हुए मन्त्र का ३१ माला जाप करें। जाप खत्म होने पर १०१ बार सरसों के तेल से हवन करें।

          इस प्रयोग से घर में किसी भी प्रकार की बाधाएँ हो तो उनका नाश हो जाता है और विजय की प्राप्ति होती है।

. देवी कृपा प्राप्ति हेतु चामुण्डा प्रयोग

          इस साधना को रात्रि में १० बजे के बाद शुरू करें। इसमें २ सुपारी को लेकर एक को काजल से पोत दें और दूसरी को सिन्दूर से। दोनों को इस तरह स्थापित करना है कि वह एक दूसरे को स्पर्श करती रहे और जुडी रहे। यह देवी चामुण्डा के दोनों रूपों का प्रतीक है। इनका पूजन करें और इसके बाद चामुण्डा मूलमन्त्र का ५१ माला जाप करें। इसे स्फटिक माला या किसी भी माला से जाप किया जा सकता है। इसमें वस्त्र और आसन लाल रहे, दिशा पूर्व रहे।

मन्त्र :--- 

।।ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चे।।


AYING HREENG KLEENG CHAMUNDAAYE VICHCHE.

          यह प्रयोग कमसे कम ५ दिन तक करते रहना चाहिए और किसी भी स्थिति में डरना नहीं चाहिए।आप चाहे तो इसे नौ दिन तक सम्पन्न कर सकते है। यूँ इस साधना को साहसिक व्यक्ति ही सम्पन्न करे तो ज्यादा उपयुक्त है।

          अगर योग्य रूप से इस साधना को किया जाए तो देवी ५ दिन में बिम्बात्मक रूप में दर्शन देती ही है और देवी की कृपा बनी रहती है।

४. माँ दुर्गा सिद्ध बाधा-मुक्ति, धन-पुत्रादि प्राप्ति मन्त्र प्रयोग

मन्त्र :---

।।ॐ सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वितः

मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः।।

          इस मन्त्र का जाप रोज १ माला करें। साधक चाहे तो मन्त्र जाप बढ़ा सकता है। यह क्रम ९ दिन तक नित्य रहें। आसन और वस्त्र लाल हों, माला स्फटिक की या रुद्राक्ष की हों। समय रात्रि १० बजे के बाद या सुबह ४ बजे के बाद रहें। इस प्रयोग से मनुष्य की सारी बाधाओं का नाश होता है और धन-धान्य,पुत्रादि की प्राप्ति होती है।

५. माँ दुर्गा सर्वकल्याणकारी मन्त्र प्रयोग

 मन्त्र :--- 

।।ॐ सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके

शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते।।

          यह माँ दुर्गा का सर्वकल्याणकारी एवं सिद्ध मन्त्र है और उनको अति प्रिय है। कोई भी शुभ काम करने से पूर्व इस मन्त्र का जप किया जाता है। इस मन्त्र का जप रोज १ या १ से आधिक माला करें।यह क्रम नौ दिन तक नित्य रहें। आसन-वस्त्र लाल रहें, जाप स्फटिक या रुद्राक्ष माला से करें। समय रात्रि १० बजे के बाद या सुबह ४ बजे का रहे।

६. दारिद्रय-दु:ख विनाश मन्त्र प्रयोग 

मन्त्र :--- 

।।ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि
  दारिद्र्य दुःख भयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता।।

          यथासम्भव मन्त्र जाप करें, १ से अधिक माला जाप करें तो अत्यधिक प्रभावशाली रहेगा। माला कोई भी इस्तेमाल करे तो चलेगा। आसन और वस्त्र लाल ही रहे। रात्रि १० और ब्रम्ह-मुहूर्त में सुबह ४ बजे जाप करे तो अत्यधिक लाभप्रद सिद्ध होगा।

७. तान्त्रोक्त चामुण्डा नवार्ण वशीकरण प्रयोग

मन्त्र :--- 


।। वषट् ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे वषट् "अमुकं " मे वश्यं कुरु कुरु स्वाहा ।।

          वशीकरण का नाम सुनते ही लोग इसे खराब नजर से देखते हैं। अतः इन लोगों को लगता है कि वशीकरण का अर्थ है काला जादू। वशीकरण का अर्थ है किसी को अपने अनुकूल बनाना, उसका मन फेरना और उसमें अपने प्रति प्यार का भाव जगाना। लेकिन कई लोग इस विद्या का गलत उपयोग करते हैं, जिसके कारण वशीकरण कर्म का नाम खराब हो गया है।

          हर इन्सान किसी ना किसी से प्यार करता ही है। हर इन्सान को किसी ना किसी से इज्ज़त या सम्मान की आशा होती है। संगठन में काम करने वाले कर्मचारियों को अपने सहकर्मियों से मदद और इज्ज़त की आशा होती है। इन सभी कारणों के लिए और आपसी प्रेम-सम्बन्ध बढ़ाने के लिए इस नवार्ण मन्त्र का प्रयोग आपके लिए लाभप्रद होगा।

          यह मन्त्र माँ चामुण्डा का स्वयं सिद्ध तान्त्रोक्त मन्त्र है, इसका गलत उपयोग कदापि ना करे। अतः यह आपको हानि पहुँचा सकता है।

            मन्त्र जाप से पहले स्नान कर लें, शुद्ध हो जाएं और लाल वस्त्र पहन लें, फिर अपने घर में किसी शान्त स्थान पर लाल आसन बिछा कर बैठ जाएं। सर्वप्रथम गणेश पूजन करें और एक माला "ॐ गं गणपतये नमः" मन्त्र का जाप करें। फिर गुरु पूजन करें और एक माला गुरुमन्त्र का जाप करें। अगर गुरु ना बनाया हो तो आप भगवान शिव को गुरु मान कर उनका पूजन करें और एक माला "ओम नमः शिवाय" मन्त्र जाप करें। फिर गणेश जी और अपने गुरु से साधना में सफलता हेतु आशीर्वाद लें। इसके बाद माँ दुर्गा का चित्र और माँ दुर्गा का सिद्ध यन्त्र अपने सामने स्थापित कर दें, उनका पंचोपचार पूजन करें, माँ को कुमकुम लगाएं, सरसों के तेल का दिया जलाएं, अगरबत्ती या धूप जलाएं तथा तत्पश्चात जिसको वश में करना है, उसका कोई चित्र अपने सामने रख दें, अगर चित्र ना हो तो उस व्यक्ति का मन ही मन ध्यान करते रहें और मन्त्र जपें। पूर्ण श्रद्धा भाव से एक ही बैठक में ऊपर दिए गए मन्त्र की २१ मालाएँ जाप करें। "अमुक" की जगह उस व्यक्ति का नाम लें, जिसको आप वश में करना चाहते हैं। मन्त्र जाप के समय अपने आसन से उठे नहीं और सिर्फ उसका ही ध्यान करें, जिसको आप वश में करना चाहते हैं। मन्त्र जाप पूरा होने पर माँ के चरणों में मन्त्र जाप समर्पित कर दें और उनसे साधना में सफलता की प्रार्थना करें।

            इस प्रयोग के शुरुआत और आखिर में अगर आप माँ दुर्गा के सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्र का सम्पुट लगाएं तो यह अत्यधिक प्रभावशाली हो जाता है। इसके लिए आप गणेश और गुरु पूजन के बाद एक पाठ एवं अन्त में जाप पूरा होने के बाद कुञ्जिका स्तोत्र का एक पाठ करना ना भूले।

           यह प्रयोग नवरात्रि काल में सतत नौ दिनों तक किया जाना चाहिए, तभी साधना का सम्पूर्ण लाभ मिल पाएगा।   

८. सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्र प्रयोग 

          सुबह में ९ बार और रात्रि में ९ बार सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्र का पाठ करने से इंसान की हर अभिलाषा हर इच्छा निश्चित ही पूरी होती है।

          स्नानादि कर पवित्र हो जाएं, फिर गणेश और गुरु पूजन कर लें तथा एक-एक माला गणेश एवं गुरुमन्त्र का जाप करें। उसके बाद माँ चामुण्डा (माँ दुर्गा) का पूजन कर लें।
          फिर माँ के चित्र और यन्त्र के सामने " ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे" की १ माला जाप कर लें। उसके पश्चात माँ दुर्गा के सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्र का ९ बार पाठ करें।

सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्रम्

                    शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत् ।।१।।
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ।।२।।
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् ।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ।।३।।
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति ।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम् ।
पाठमात्रेण संसिद्धयेत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् ।।४।।

                    अथ मन्त्र:

।।ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट स्वाहा।।

                   इति मन्त्रः 

नमस्ते रुद्ररुपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि ।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ।।१।।
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि ।।२।।
जाग्रतं हि महादेवी जपं सिद्धं कुरुष्व मे ।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ।।३।।
क्लींकारी कामरुपिण्यै बीजरूपे नमोस्तुते ।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी ।।४।।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि ।।५।।
धां धीं धूं धुर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी ।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवी शां शीं शूं मे शुभं कुरु ।।६।।
हुं हुं हुंकाररुपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी ।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ।।७।।
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धीजाग्रं धीजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ।।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ।।८।।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे ।।

                    फलश्रुति

इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्ति हेतवे ।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ।।
यस्तु कुंजिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत् ।
न तस्य जायते सिद्धिः अरण्ये रोदनं यथा ।।

। इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं सम्पूर्णम् ।


          
          इसके बाद पुन: एक माला  " ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे"  मन्त्र की जाप करें।

          ऊपर दिए गए किसी भी प्रयोग को करने से पहले सारे नियमों का पालन करें। स्नान करके ही प्रयोग को करने बैठें, जितना हो सके उतना लाल रंग का इस्तेमाल करें। सभी प्रयोगों में एक समय हल्का भोजन, भूमि शयन, ब्रम्हचर्यव्रत का पालन, यथासम्भव कम वार्तालाप का पालन करे। घर में चप्पल न पहने और चमड़े का स्पर्श न करे। देवी को नित्य ताजे फल का भोग लगाएं। 

           हर प्रयोग के पहले और पूरा होने के बाद सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्र का सम्पुट लगाना ना भूले। इससे आपका प्रयोग और शक्तिशाली बन जाता है। प्रयोग के आखिर में नियम अनुसार हवन जरुर करें।

          आज के लिए बस इतना ही 

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।