श्री हनुमान चालीसा सिद्धि
श्रीराम नवमी और श्रीहनुमान जयन्ती निकट ही है। इस बार श्रीराम नवमी ५ अप्रैल २०१७ और श्रीहनुमान जयन्ती ११ अप्रैल २०१७ को आ रही है। आप सभी को श्रीराम नवमी और श्रीहनुमान
जयन्ती की अग्रिम
रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!
शास्त्रों के अनुसार कलयुग में हनुमानजी की भक्ति को
सबसे ज़रूरी, प्रथम और उत्तम बताया गया है। हनुमानजी
की भक्ति सबसे सरल और जल्द ही फल प्रदान करने वाली मानी गई है। यह भक्ति जहाँ हमें
भूत-प्रेत जैसी न दिखने वाली आपदाओं से बचाती है, वहीं यह ग्रह-नक्षत्रों के बुरे प्रभाव से भी बचाती है। हनुमानजी को मनाने के लिए और उनकी कृपा पाने के लिए सबसे सरल उपाय है हनुमान चालीसा का
नित्य पाठ।
हनुमान चालीसा के बारे में आज के युग
में कौन व्यक्ति नहीं जानता? सन्त
प्रवर गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित यह हनुमान चालीसा हिन्दी भाषी जगत् में सर्व
प्रसिद्ध है। जिस प्रकार से श्रीरामचरित मानस का प्रचार-प्रसार है, उससे भी कहीं अधिक हनुमान चालीसा का
है। प्रत्येक कल्याणकामी व्यक्ति के लिए बल, बुद्धि, विद्या इन तीनों की प्राप्ति परमावश्यक
है। बल–बुद्धि–विद्या से रहित कोई भी व्यक्ति, जाति
तथा राष्ट्र किसी भी प्रकार से सुख–समृद्धि
का भाजन नहीं बन सकता और बल–बुद्धि–विद्या के स्रोत स्वयं रुद्रावतार
भगवान् आंजनेय ही हैं। उनकी प्राप्ति के लिए उनके चरित्र चिन्तन के रूप में विरचित
हनुमान चालीसा एक अमोघ साधन है।
वस्तुतः हनुमान चालीसा एक विलक्षण
साधना क्रम है, जिसमें कई सिद्धों की शक्ति एक साथ
कार्य करती है। विविध साबर मन्त्रों के समूह सम यह चालीसा अनन्त शक्तियों से
सम्पन्न है। अगर सूक्ष्म रूप से अध्ययन किया जाए तो यह हनुमानजी के ही मूल शिवस्वरुप के
आदिनाथ स्वरुप की ही साबर अभ्यर्थना है। कानन कुण्डल, संकर सुवन, तुम्हारो मन्त्र, आपन तेज, गुरुदेव की नाईं, अष्टसिद्धि
आदि विविध शब्द के बारे में साधक खुद ही अध्ययन कर विविध पदों के गूढ़ार्थ समझने
की कोशिश करे तो कई प्रकार के रहस्य साधक के सामने उजागर हो सकते हैं।
हनुमान चालीसा की साधना बड़ी ही सरल
और सुगम है, थोड़े ही प्रयास से अल्पज्ञ बालक भी
इसे याद कर सकता है। बालक,
वृद्ध, स्त्री, पुरुष कोई भी श्रद्धायुक्त होकर
प्रात:काल शौच और स्नान के पश्चात् श्रीहनुमान जी की मूर्ति के समक्ष मन्दिर में
या घर में ही श्रीहनुमान जी के चित्र के सामने, हो
सके तो अगरबत्ती जलाकर श्रीहनुमान जी का ध्यान करते हुए इस चालीसा का नित्यप्रति
पाठ करें। इससे वह सब प्रकार की बाधाओं से मुक्त होकर सुख–समृद्धि का पात्र बनेगा, इसमें सन्देह नहीं।
यदि आप मानसिक अशान्ति झेल रहे हैं, कार्य की अधिकता से मन अस्थिर बना हुआ
है, घर-परिवार की कोई समस्या सता रही है तो
ऐसे में इसके पाठ से चमत्कारिक फल प्राप्त होता है, इसमें कोई शंका या सन्देह नहीं है।
जो व्यक्ति प्रतिदिन हनुमान चालीसा
पढ़ता है, उसके साथ कभी भी कोई घटना-दुर्घटना
नहीं होती।
हनुमान चालीसा की यह साधना सकाम प्रयोग तथा
निष्काम प्रयोग दोनों ही रूपों में की जा सकती है। इसीलिए साधक को अनुष्ठान करने
से पूर्व अपनी कामना का संकल्प लेना आवश्यक है। अगर साधक निष्काम भाव से यह प्रयोग
कर रहा है तो संकल्प लेना आवश्यक नहीं है।
साधक अगर सकाम रूप से साधना कर रहा
है तो साधक को अपने सामने भगवान हनुमान का वीरभाव से युक्त चित्र स्थापित करना
चाहिए अर्थात जिसमें वे पहाड़ को उठा कर ले जा रहे हों या असुरों का नाश कर रहे
हों। लेकिन अगर निष्काम साधना करनी हो तो साधक को अपने सामने दासभाव युक्त हनुमान
का चित्र स्थापित करना चाहिए अर्थात जिसमें वे ध्यान मग्न हों या फिर श्रीरामजी के
चरणों में बैठे हुए हों।
साधक को यह साधना क्रम एकान्त में
करना चाहिए। अगर साधक अपने कमरे में यह क्रम कर रहा हो तो जाप के समय उसके साथ कोई
और दूसरा व्यक्ति नहीं होना चाहिए। सकाम उपासना में वस्त्र लाल रहे, निष्काम में भगवे रंग के वस्त्रों का
प्रयोग होता है।
स्त्री साधिका हनुमान चालीसा या साधना
नहीं कर सकती, यह मात्र मिथ्या धारणा ही है। कोई भी
साधिका हनुमान साधना या प्रयोग सम्पन्न कर सकती है। मासिक रजस्वला समय में यह
प्रयोग या कोई भी साधना नहीं की जा सकती है।
आज सर्वजन हितार्थ श्री हनुमान चालीसा
की साधना विधि प्रस्तुत की जा रही है, जो
मुझ सहित अनेकानेक साधकों एवं हनुमान भक्तों द्वारा अनुभूत की हुई है।
साधना विधान :----------
यह
साधना साधक श्रीराम नवमी, हनुमान जयन्ती अथवा किसी भी मंगलवार की रात्रि को शुरु कर सकता है तथा
समय १० बजे के बाद का रहेगा। सर्वप्रथम साधक स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल या
भगवे वस्त्र धारण करके लाल आसन पर बैठ जाए। सकाम और निष्काम दोनों ही कार्यों में
दिशा उत्तर ही रहेगी।
साधक अपने समीप ही किसी पात्र में
१०८ भुने हुए चने या १०८ तिल की रेवड़ियाँ रख ले। अब साधक अपने सामने किसी बाजोट
पर लाल वस्त्र बिछा कर उस पर हनुमानजी का चित्र या यन्त्र या विग्रह और
सदगुरुदेवजी का चित्र स्थापित करे। साथ ही भगवान गणपतिजी का विग्रह या प्रतीक रूप
में एक सुपारी स्थापित करे। उसके बाद दीपक और धूप-अगरबत्ती जलाए।
फिर साधक सामान्य गुरुपूजन करे और
गुरुमन्त्र का कम से कम चार माला जाप करे। इसके बाद साधक सदगुरुदेवजी से हनुमान
चालीसा साधना सम्पन्न करने की अनुमति ले और उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं
सफलता के लिए प्रार्थना करे।
फिर साधक भगवान गणपतिजी का सामान्य
पूजन करे और "ॐ वक्रतुण्डाय हुम्" मन्त्र का एक माला जाप करे। तत्पश्चात
साधक भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए
प्रार्थना करे।
इसके बाद साधक भगवान हनुमानजी का
सामान्य पूजन करे। उन्हें सिन्दूर से तिलक करे और फिर धूप-दीप अर्पित करे। साधक को
भोग में गुड़ तथा उबले हुए चने अर्पित करने चाहिए। साथ ही कोई भी फल अर्पित किया
जा सकता है। साधक दीपक तेल या घी का लगा सकता है। साधक को आक के पुष्प या लाल रंग
के पुष्प समर्पित करना चाहिए।
इस क्रिया के बाद साधक "हं" बीज का उच्चारण कुछ देर करे तथा उसके
बाद अनुलोम-विलोम प्राणायाम करे। प्राणायाम के बाद साधक हाथ में जल लेकर संकल्प
करे तथा अपनी मनोकामना बोले। अगर कोई विशेष इच्छा के लिए साधना की
जा रही हो तो साधक को संकल्प लेना चाहिए कि “मैं अमुक नाम का साधक अमुक गोत्र अमुक गुरु का शिष्य होकर यह
साधना अमुक कार्य के लिए कर रहा हूँ। भगवान हनुमान मुझे इस हेतु सफलता के लिए
शक्ति तथा आशीर्वाद प्रदान करे।”
इसके बाद साधक राम रक्षा
स्तोत्र का एक पाठ या "रां
रामाय नमः" का
यथासम्भव जाप करे। जाप के बाद साधक अपनी तीनों नाड़ियों अर्थात इडा, पिंगला तथा सुषुम्ना में श्री हनुमानजी
को स्थापित मान कर उनका ध्यान करे ----------
ॐ अतुलित बलधामं हेमशैलाभ
देहं, दनुजवन कृशानुं
ज्ञानिनां अग्रगण्यं। सकल गुणनिधानं
वानराणामधीशं, रघुपति प्रियभक्तं
वातजातं नमामि।।
अब जो १०८ भुने हुए चने या तिल की
रेवड़ियाँ आपने ली थी, वे अपने सामने एक कटोरी में रख लें तथा
हनुमान चालीसा का जाप शुरू कर दे ———
श्रीहनुमान चालीसा
।। दोहा।।
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि। बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन–कुमार। बल बुद्धि बिद्या देहु
मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
।। चौपाई।।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।। राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।। कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै।। शंकर सुवन केसरी नन्दन। तेज प्रताप महा जगबन्दन।।
विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।। प्रभु चरित्र सुनिबे को
रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। विकट रूप धरि लंक जरावा।। भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचन्द्र के काज सँवारे।।
लाय संजीवन लखन जियाये। श्री रघुबीर हरषि उर लाये।। रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं।। सनकादिक ब्रहमादि मुनीसा। नारद सारद
सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते।। तुम उपकार सुग्रीवहिं
कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना।। जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं।। दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।। सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक तें काँपै।। भूत पिसाच निकट नहिं
आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरन्तर हनुमत बीरा।। संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा।। और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।। साधु सन्त के तुम
रखवारे। असुर निकन्दन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।। राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दु:ख बिसरावै।। अन्त काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि–भक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई। हनुमत् सेई सर्व सुख करई।। संकट कटै मिटे सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जय जय जय हनुमान गौसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की
नाईं। जो शत बार पाठ कर कोई। छूटहिं बन्दी महासुख होई।
जो यह पढ़ै हनुमान् चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।। तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।
।। दोहा।।
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप। राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
इस
साधना में आपको श्रीहनुमान चालीसा के १०८ पाठ करने हैं। आप हनुमान चालीसा पढ़ते
जाएं और हर एक बार पाठ पूर्ण होने के बाद एक चना या रेवड़ी हनुमानजी के
यन्त्र/चित्र/विग्रह को समर्पित करते जाएं। इस प्रकार १०८ बार पाठ करने पर १०८ चने
या रेवड़ियाँ समर्पित करनी चाहिए।
१०८ पाठ पूरे होने के बाद साधक पुनः "हं" बीज का थोड़ी देर उच्चारण करे तथा जाप को हनुमानजी के चरणों में
समर्पित कर दे।
यह साधना २१ दिनों की है। साधक या तो
लगातार २१ दिनों तक प्रतिदिन यह साधना करे या हर मंगलवार को कुल २१ मंगलवार तक यह
साधना करे।
२१ वें दिन आपके द्वारा पूरे १०८ पाठ करके चने
या तिल की रेवड़ी जब चढ़ा दी जाए, तब
उसके बाद साधना पूर्ण होने पर अन्तिम दिन मन्दिर जाएं और भगवान हनुमानजी के दर्शन
करे। साथ ही साथ साधना के दौरान भी आप हनुमत दर्शन करते रहें।
साधक-साधिकाओं को यह साधना शुरू करने से
एक दिन पूर्व से लेकर साधना समाप्त होने के एक दिन बाद तक कुल २३ दिन तक ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य है। लेकिन साधना २१ मंगलवार तक करने की स्थिति
में प्रयोग के एक दिन पूर्व, प्रयोग के दिन तथा प्रयोग के दूसरे दिन
अर्थात कुल तीन दिन प्रति सप्ताह ब्रह्मचर्य पालन करना आवश्यक है।
कुछ भी हो, कैसा भी संकट आए, आपने साधना शुरू कर दी तो छोड़ना नहीं।
प्रभु आपकी परीक्षा भी ले सकते हैं। साधना से विचलित करेंगे ही, पर आप दृढ़ रहें, क्योंकि भक्ति में अटूट शक्ति है और एक
बार आपने यह साधना कर ली तो जो आनन्द और जीवन में उत्साह का प्रवाह होगा - उसका
वर्णन मैं अपनी तुच्छ बुद्धि से नहीं कर सकता। फिर भी इतना कह सकता हूँ कि इस
साधना से निश्चित ही आप की अभिलाषा की पूर्ति होगी। क्योंकि तुलसीदास जी ने कहा है
ना - "कवन सो काज कठिन जग माही, जो नही होहि तात तुम
पाहि।"
साधना का क्रम यही रहेगा, २१
दिन या २१ मंगलवार तक तथा प्रतिदिन जो १०८ चने या तिल की रेवड़ी आप ने
प्रभु को अर्पण किए थे, वो आप ही को खाना है, किसी को देना नही है।
आपकी यह श्रीहनुमान
चालीसा साधना सफल हों और आपको भगवान हनुमानजी का आशीर्वाद प्राप्त हों ! मैं सदगुरुदेवजी से यही प्रार्थना करता हूँ।
इसी
कामना के साथ
ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश॥
6 टिप्पणियां:
Saturday September ye sdhna sure karsakte he kya sir
कर सकते हैं!
Bhagat ji kya Me navratri Me kar sakta hu 9dino tak
इतनी दुर्लभ जानकारी साझा की आपने। धन्यवाद।।
श्री हनुमान चालीसा गीत हिंदी में साझा करने के लिए धन्यवाद। हनुमान चालीसा खुद को प्रेरित करने की शक्ति हिंदू मंत्र है|
हनुमान जी को सबसे ज्यादा कोई पाठ पसंद है वो है हनुमान चालीसा का महत्व हिन्दू धर्म में अत्यंत है , हर हनुमंत भक्त को हर दिन एक बार हनुमान चालीसा का पाठ करना ही चाहिए .
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