बुधवार, 1 अगस्त 2018

तन्त्र-बाधा निवारण प्रयोग

तन्त्र-बाधा निवारण प्रयोग


     
        ॐ नित्यं शुद्धं निराभासं निराकारं निरंजनम्।
        नित्यबोधं चिदानन्दम् गुरूम् ब्रह्म नमाम्यहम्।।

        गुरु का जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि बिना गुरु के जीवन बिना माँझी के नाव और बिना लगाम के घोड़े जैसा है। अर्थात फिर जीवन सिर्फ खींचने के अलावा और कुछ नहीं है।

        क्योंकि यदि जीवन है तो सुख भी होंगे और दुःख भी होंगे। साधारण जीवन उनका होता है, जिन्हें कुछ नहीं पता नहीं रहता कि आखिर यह दुःख क्यों अचानक हमारे जीवन में आ रहे हैं? क्यों अचानक अच्छी सुखमय जिन्दगी नर्क बनती चली जा रही है?

        और फिर ऐसे अनेक प्रश्न उभरते हैं दिमाग में, और हम उलझते जाते हैं ऐसे अनेक झंझावातों में, क्योंकि गुरु नहीं है ना जीवन में जो उबार सके ऐसे कष्टों से, बता सके कि तन्त्र क्या होता है? और क्या होती है तन्त्र बाधा? मैंने अपने जीवन में ऐसे अनेक परिवार देखे हैं, जो बेचारे तन्त्र-बाधा के चलते मिटते चले गए, बर्बाद होते चले गए।

         तन्त्र-बाधा अत्यन्त ही दुखदायी है किसी के भी जीवन में, क्योंकि उसके बाद की ज़िन्दगी बड़ी कष्टदायी और नारकीय हो जाती है। जरा सोचिए, कि एक तन्त्र प्रयोग के बाद का जीवन कैसा होता है?

         जब अचानक गृह का मुखिया जिसके सहारे पूरा परिवार पल रहा हो, अचानक रोगग्रस्त होकर बिस्तर से लग जाए, घर में बेटी की शादी बार-बार टूट जाए, नौकरी योग्य पुत्र की योग्यता पर प्रश्नचिन्ह लग जाए, रुपये पैसे की आवक रुक जाए, सामाजिक प्रतिष्ठा दाँव पर लगी हो तो?

         तन्त्र प्रयोग करना एक अत्यन्त सरल प्रक्रिया है, किन्तु इसके बाद के जो परिणाम होते हैं, वे अत्यन्त भयानक होते हैं, क्योंकि इससे गुजरने वाला व्यक्ति या परिवार का जीवन नर्क की भाँति हो जाता है जो असहनीय होता है।

         कुछ ऐसी स्थितियाँ बन जाती हैं कभी-कभी -- जैसे अचानक घर मे भयावह वातावरण बन जाए, बच्चे अचानक डर कर बीमार रहने लगें, घर में कलह की स्थिति रहने लगे और एक अजीब-सा डर रहने लगे, तब समझना चाहिए कि निश्चित ही तन्त्र-बाधा हुई है।
  
    किन्तु क्या इसका कोई उपाय है?
 
         वैसे आप लोग अक्सर पढ़ते भी हैं कि तन्त्र-बाधा निवारण  दीक्षा, तन्त्र बाधा निवारण प्रयोग आदि। तान्त्रिक प्रयोग कोई भी कर सकता है, परन्तु उसके परिणाम व्यक्ति को गहराई से और पीड़ादायक भोगने पड़ते हैं। एक प्रकार से देखा जाए तो पूरी ज़िन्दगी अस्त-व्यस्त हो जाती है। हमला करने या तान्त्रिक प्रयोग करने की विद्या सीखने में बहुत साधना या मेहनत नहीं करना पड़ती है, परन्तु तान्त्रिक प्रयोग यदि हो गया तो उसे दूर करने के लिए कठिन साधना या सिद्धि की और अनुभवी व्यक्ति की जरूरत पड़ती ही है।

        चूँकि अभी हमारे समक्ष अत्यन्त विशिष्ट समय का आगमन हो रहा है, जबकि हम ऐसी ही किसी भी समस्या से ना केवल मुक्ति पा सकते हैं, अपितु अपने जीवन को ऐसी आने वाली समस्या से सुरक्षित भी कर सकते हैं। वह समय है सूर्य ग्रहण का,  है ना!  यह सूर्यग्रहण  ११ अगस्त  २०१८  को  घटित  होने  जा रहा है।

         सूर्य ग्रहण अर्थात जीवन से किसी भी ग्रहण को दूर कर प्रकाशित करने का समय। ग्रहणकाल मे की गई कोई भी साधना अत्यन्त तीव्रता से फलित होती है।  खगोल शास्त्रियों के अनुसार जब पृथ्वी और चन्द्रमा सूर्य की परिक्रमा करते हुए एक ही रेखा पर आ जाते हैं अर्थात् जब सूर्य और पृथ्वी के बीच चन्द्रमा आ जाता है तो उस काल खण्ड के समय सूर्य की किरणें पृथ्वी पर नहीं पहुँच पाती और पृथ्वीवासी को सूर्य का उतना भाग कटा हुआ दिखाई देता है,  उस समय (अवधि) को सोलर इकलिप्स या सूर्यग्रहण कहा जाता है।

         उच्चकोटि के साधक तो कई माह पूर्व से ही सूर्यग्रहण की प्रतीक्षा करते रहते हैं, क्योंकि सूर्यग्रहण में किया गया एक भी मन्त्र जाप १०० मन्त्र जापों के बराबर होता है और साधना में हुई त्रुटि या न्यूनता का प्रभाव शून्यवत् होता है। ऐसे सिद्धिप्रद दिव्य क्षणों में साधना सम्पन्न करने का विचार साधक के मानस में दैवीय प्रेरणा से ही बन पाता है।

         सूर्यग्रहण का प्रभाव चन्द्रग्रहण से कई गुना अधिक होता है, क्योंकि चन्द्रमा की रश्मियाँ अपनी स्वयं की नहीं होती, अपितु वह तो सूर्य के प्रतिबिम्ब के कारण ही चमकता प्रतीत होता है। इसलिए चन्द्रग्रहण के ठीक एक पक्ष बाद आने वाले इस सूर्यग्रहण पर प्रमाद वश, आलस्य वश या अन्य किसी कारण से कदापि भी इस साधना को सम्पन्न करने से नहीं चूकना चाहिए।

         यदि ऐसी स्थिति है तो भी और नहीं हैं तो भी, ताकि भविष्य को भी सुरक्षित कर सकें, कि ऐसा प्रयोग हो न सके या ऐसी स्थिति ही न बन पाए, तो भी हमें इस प्रयोग को करना ही चाहिए, हैं ना! क्योंकि मौका भी है और हमारी परम्परा भी, क्योंकि निखिल परम्परा के अनुसार हम कोई भी साधनात्मक अवसर को छोड़ते ही नहीं हैं।

साधना विधि :------------ 

          यह  साधना  आप  आने  वाले  सूर्यग्रहण  काल  में  सम्पन्न  करें।  ग्रहणकाल अपने  आप  में  एक  स्वयं  सिद्ध  मुहूर्त  होता है।  चूँकि ग्रहणकाल में विशेष पूजा नहीं की जाती,  अतः ग्रहणकाल में किसी भी विग्रह, यन्त्र या मूर्ति का हाथ से स्पर्श ना करें।

          इसके आवश्यक सामग्री हैं - एक नारियल, कुमकुम, काजल, काली हकीक माला या मूँगा माला और तीन दीये, जो कि सरसों के तेल के हों तो अति उत्तम या किसी भी प्रकार का तेल हो सकता है।

          स्नान कर दक्षिण मुख होकर आसन पर बैठ जाएं और मानसिक गुरु पूजन कर ४, ११ या १६ माला गुरुमन्त्र की जाप करें तथा गुरुमन्त्र समर्पित कर सद्गुरुदेवजी से आज्ञा लें और आशीर्वाद प्राप्त करें, फिर संकल्प लें। 
   
          अब अपने सामने भूमि पर कुमकुम को जल से गीला कर अधोमुखी त्रिकोण का निर्माण करें और त्रिकोण के तीनों कोनों पर तीन सरसों तेल के दीपक प्रज्वलित कर लें। उसके बाद नारियल को उस पर ऐसे स्थापित करें कि उसके पूँछ ऊपर की ओर हो।
          फिर काजल से निम्न मन्त्र बोलते हुए सात बिन्दियाँ नारियल पर लगावें -----

मन्त्र :-----------

 ।। ॐ ऐं ह्रीं मम समस्त तन्त्र दोष निवृत्तये ह्रीं ऐं फट् ।।

OM AING HREENG MAM SAMAST TANTRA DOSH NIVRITTYE HREENG AING PHAT.

          अब काली हकीक माला अथवा रुद्राक्ष या मूँगे की माला से इसी मन्त्र की ११ माला जाप करें।

          और इसके पश्चात गुरु मन्त्र की चार माला जाप कर सद्गुरुदेवजी से प्रार्थना करें कि यह साधना सफल हो और हमारे जीवन से तन्त्र-बाधा दूर हो और हम सदैव सुरक्षित रहें।

          साधना समाप्ति के बाद या दूसरे दिन नारियल को किसी सुनसान स्थान पर विसर्जित कर दें।

                     आपकी साधना सफल हो और आपकी मनोकामना पूर्ण हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।  

                     
इसी कामना के साथ!

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।


1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

Ye bahut hi bhari prayog hai