नवरात्रि तन्त्र लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
नवरात्रि तन्त्र लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 4 अप्रैल 2019

समस्त पाप-दोष, श्राप-दोष एवं कीलन-दोष समापन प्रयोग


समस्त पाप-दोष, श्राप-दोष एवं कीलन-दोष समापन प्रयोग


                  वासन्तीय (चैत्र) नवरात्रि पर्व समीप ही है। यह ६ अप्रैल २०१९ से आरम्भ हो रहा है। इसी दिन से हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत २०७६ भी शुरू हो रहा है। आप सभी को हिन्दू नववर्ष एवं चैत्र नवरात्रि की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          चैत्र नवरात्रि का यह पर्व ज्योतिषीय तथा खगोलीय दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस दौरान सूर्य का मेष राषि में प्रवेश होता है। सूर्य का यह राशि परिवर्तन हर राशि पर प्रभाव डालता है तथा इसी दिन से नववर्ष के पंचाग गणना की शुरुआत होती है। चैत्र नवरात्रि के यह नौ दिन इतने शुभ माने जाते हैं कि इन नौ दिनों में आप यदि कोई नया कार्य आरम्भ करना चाहते हैं, तो आपको किसी विशेष तिथि का इन्तजार करने की आवश्यकता नही है। आप पूरी चैत्र नवरात्रि के दौरान कभी भी कोई भी नया कार्य आरम्भ कर सकते हैं।

          इसके साथ ही ऐसी भी मान्यता है कि जो व्यक्ति बिना किसी लोभ के चैत्र नवरात्रि में महादुर्गा की पूजा करता है, वो जन्म-मरण के इस बन्धन से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है।

          माँ आद्या शक्ति की कृपा से मनुष्य में आत्मबल, दृढ़ विश्वास, दया, प्रेम, भक्ति जैसे सद्गुणों का विकास होता है। जीवन के इन्हीं मूल्यों को समझकर मनुष्य जीवन में सच्चा सुख, शान्ति, वैभव, धन, सम्पदा को प्राप्त करता है, अन्यथा इस संसार के दलदल से निकलना उसके लिए सम्भव नहीं है। इसलिए असम्भव को भी सम्भव कर दिखाने की शक्ति मनुष्य को देवी कृपा से ही प्राप्त होती है।

          नवरात्रि में पूजा उपासना का मुख्य उद्देश्य होता है माँ दुर्गा की आराधना, मनुष्य का तन-मन और इन्द्रियाँ संयमित होना। पूर्ण निष्ठा एवं श्रद्धा भाव से किए गए उपवास से मनुष्य का तन सन्तुलित होता है। मनुष्य के तन के संतुलित होने पर योग बल से मनुष्य की इन्द्रियाँ संयमित हो जाती है। इन्द्रियों के संयमित होने पर मनुष्य का मन देवी आराधना में स्थिर हो जाता है, जिसके बल पर मनुष्य को मनोवांछित लाभ की प्राप्ति हो सकती है, इसमें जरा भी संशय नहीं है।

          पुराणों में चैत्र नवरात्रि को विशेष महत्व दिया गया है, इसे आत्म शुद्धि और मुक्ति का आधार माना गया है। चैत्र नवरात्रि में माँ दुर्गा का पूजन करने से नकरात्मक ऊर्जा का खात्मा होता है और हमारे चारों ओर सकरात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

          क्या आपका जीवन किसी के श्राप से दूषित हो गया है या बँध गया है? आपको साधना या अनुष्ठान करने पर भी उसका लाभ नहीं मिल पा रहा है तो अवश्य ही आप बाधित है। श्राप दोष से मुक्ति केवल माँ भगवती दुर्गा की विशेष साधना से ही सम्भव है। आज मैं एक विशिष्ट प्रयोग दे रहा हूँ, जिसे सम्पन्न कर जीवन में श्राप-दोष एवं पाप-दोष से मुक्ति प्राप्त होती ही है। यह प्रयोग सिर्फ पाप-दोष ही समाप्त नहीं करता, बल्कि श्राप-दोष और कीलन-दोष भी नष्ट कर देता है।

साधना विधान :-----------

          यह प्रयोग किसी भी माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से अथवा आने वाली नवरात्रि के प्रथम दिवस से आरम्भ कर नौ दिन तक निरन्तर करें। इस प्रयोग को रात्रि में ही करना चाहिए।

         साधक को चाहिए कि वह स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल वस्त्र धारण कर लाल आसन पर उत्तर दिशा की ओर मुँह कर बैठ जाएं। अपने सामने एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर मां भगवती दुर्गा का चित्र अथवा विग्रह स्थापित करें। चित्र के पास ही गणेश एवं गुरु को स्थान दें। फिर शुद्ध घी का दीपक एवं धूप प्रज्ज्वलित कर दें।

          सबसे पहले साधक सामान्य गुरु-पूजन एवं गणेश-पूजन करके गुरु-मन्त्र का पाँच माला जाप करें। फिर भगवान गणेश और सद्गुरुदेवजी से साधना में पूर्ण सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          अब दाहिने हाथ में जल, अक्षत, पुष्प लेकर अपने नाम व गोत्र का उच्चारण कर समस्त पाप-दोष, श्राप-दोष एवं कीलन-दोष से मुक्ति का संकल्प लें और गणेशजी के पास रख दें।
  
          इसके बाद माँ भगवती दुर्गा का सामान्य पूजन कर भोग में मिष्ठान्न व फल अर्पित करें। फिर माँ भगवती से अपने समस्त पाप-दोष, श्राप-दोष एवं कीलन-दोष से मुक्ति के लिए निवेदन करें।

          फिर सर्वप्रथम निम्नलिखित उत्कीलन मन्त्र का १०८ बार जाप करें -----

॥ ॐ श्रीं श्रीं क्लीं हूं ॐ ऐं क्षोभय मोहय उत्कीलय उत्कीलय उत्कीलय ठं ठं ॐ ॥

          तत्पश्चात साधक निम्न विनियोग मन्त्र का उच्चारण करते एक आचमनी जल भूमि पर छोड़ दें -----

विनियोग :----------

ॐ अस्य श्रीचण्डिकाया ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापविमोचनमन्त्रस्य वशिष्ठ-नारदसंवाद-सामवेदाधिपतिब्रह्माण ऋषयः, सर्वैश्वर्कारिणी श्रीदुर्गादेवता, चरित्रत्रयं बीजं, ह्रीं शक्तिः त्रिगुणात्मस्वरूपचण्डिकाशापविमुक्तौ मम संकल्पित कार्यसिद्धयर्थे जपे विनियोगः।

          अब निम्नलिखित शापोद्धार मन्त्र का २१ बार जाप करें -----

॥ ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिका देव्यै शाप नाशानुग्रहं कुरु-कुरु स्वाहा ॥

          इसके बाद रुद्रयामल महातन्त्र के अन्तर्गत दुर्गाकल्प में कहे गए चण्डिका-शाप-विमोचन अष्टादश शक्ति मन्त्रों का २१-२१ बार जाप करना चाहिए।

अष्टादश शक्ति मन्त्र :----------

॥ ॐ ह्रीं रेतःस्वरूपिण्यै मधुकैटभमर्दिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१॥

॥ ॐ श्रीं बुद्धिस्वरूपिण्यै महिषासुरसैन्यनाशिन्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥२॥

॥ ॐ रं रक्तस्वरूपिण्यै महिषासुरमर्दिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥३॥

॥ ॐ क्षुं क्षुधास्वरूपिण्यै देववन्दितायै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥४॥

॥ ॐ छां छायास्वरूपिण्यै दूतसंवादिन्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥५॥

॥ ॐ शं शक्तिस्वरूपिण्यै धूम्रलोचनघातिन्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥६॥

॥ ॐ तृं तृषास्वरूपिण्यै चण्डमुण्डवधकारिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥७॥

॥ ॐ क्षां क्षान्तिस्वरूपिण्यै रक्तबीजवधकारिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥८॥

॥ ॐ जां जातिस्वरूपिण्यै निशुम्भवधकारिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥९॥

॥ ॐ लं लज्जास्वरूपिण्यै शुम्भवधकारिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१०॥

॥ ॐ शां शान्तिस्वरूपिण्यै देवस्तुत्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥११॥

॥ ॐ श्रं श्रद्धास्वरूपिण्यै सकलफलदात्र्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१२॥

॥ ॐ कां कान्तिस्वरूपिण्यै राजवरप्रदायै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१३॥

॥ ॐ मां मातृस्वरूपिण्यै अनर्गलमहिमसहितायै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१४॥

॥ ॐ ह्रीं श्रीं दुं दुर्गायै सं सर्वैश्वर्यकारिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१५॥

॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः शिवायै अभेद्यकवचस्वरूपिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१६॥

॥ ॐ क्रीं काल्यै कालि ह्रीं फट् स्वाहायै ऋग्वेदस्वरूपिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१७॥

॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वती स्वरूपिण्यै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गादेव्यै नमः ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१८॥

          साधक को प्रत्येक अष्टादश शक्ति मन्त्र का २१-२१ बार जप करना है।

          प्रत्येक अष्टादश शक्ति मन्त्र जप के बाद माँ भगवती दुर्गा के चरणों में एक लाल पुष्प अर्पित करते जाएं। इस प्रकार १८ पुष्प अर्पित करने चाहिए। अष्टादश शक्ति मन्त्रों के जप के पश्चात पुनः २१ बार शापोद्धार मन्त्र का जप करना है।

          इसके बाद पुनः १०८ बार उत्कीलन मन्त्र का जाप करना चाहिए।

          यह शक्ति प्रयोग अत्यन्त तीव्र और प्रभावकारी है। इन अष्टादश शक्तियों का जब आवाहन किया जाता है, तब शरीर और मन से श्राप, पाप एवं कीलन दोष का निराकरण होता ही है। उस समय एक ज्वलन शक्ति-सी उठती है, कुछ विचित्र-से भाव होने लगते हैं। साधक अपने आप को शान्त रखते हुए यह प्रयोग करें।

           अत्यन्त परिश्रम से आप सब के लिए जनकल्याण के उद्देश्य से उपरोक्त मन्त्रों को लिखा है। आशा करता हूँ कि आप सब अवश्य ही इस प्रयोग को करेंगे और लाभान्वित होंगे।

                 आपकी साधना सफल हो और यह नवरात्रि आपके लिए मंगलमय हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

                 इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।


रविवार, 31 मार्च 2019

दुर्गा रहस्य साधना

दुर्गा रहस्य साधना
  

                  वासन्तीय (चैत्र) नवरात्रि पर्व समीप ही है। यह ६ अप्रैल २०१९ से आरम्भ हो रहा है। इसी दिन से हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत २०७६ भी शुरू हो रहा है। आप सभी को हिन्दू नववर्ष एवं चैत्र नवरात्रि की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          जीवन में कब किस मोड़ पर शत्रु मिल जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। यह कोई जरूरी नहीं कि आज जो मित्र है, वह कल भी मित्र ही हो, क्योंकि जो आज तुम्हारा गहरा मित्र है, वही कल स्वार्थ के वशीभूत होकर तुम्हारा घोर शत्रु बन सकता है। यह सब तो समय का कुचक्र ही कहा जा सकता है, जहाँ एक पल में सुख है तो दूसरे ही पल दुःख भी है। जीवन पग-पग परिवर्तनशील है, न जाने कब, कौन-सी विकट परिस्थिति से गुजरना पड़ जाए। शत्रु तो हर मोड़ पर तैनात सैनिकों की तरह खड़े रहते हैं हमला करने के लिए, उस अचानक प्रहार से व्यक्ति संकट में फँस जाता है और उस प्रहार को झेल नहीं पाता, और ऐसी स्थिति में व्यक्ति निर्णय नहीं कर पाता कि अब वह क्या करें और क्या नहीं करें?

          मनुष्य के शत्रु एक नहीं हजारों होते हैं, जब तक वह एक को परास्त करता है, तब तक दूसरा उस पर वार कर देता है और इस सामाजिक संग्राम में युद्ध करते-करते उसकी शक्ति क्षीण होने लगती है, क्योंकि व्यक्ति इस जीवन रूपी संग्राम को अपनी शक्ति के बल पर नहीं जीत सकता। इसके लिए उसके पास दैविक बल होना आवश्यक है, मन्त्रसिद्धि होना आवश्यक है।

          महाभारत काल में श्रीकृष्ण ने गीता में यही कहा है कि हे, अर्जुन तुम युद्ध को शस्त्रों के माध्यम से नहीं जीत सकते। जब तक कि तुम्हारे पीछे दैविक बल नहीं होगा, जब तक कि तुम्हें मन्त्र सिद्धि नहीं होगी, इसलिए तुमने जो द्रोणाचार्य से मन्त्र सिद्धि प्राप्त की है, उस मन्त्र सिद्धि को स्मरण करते हुए गाण्डीव उठाओ, तभी तुम महाभारत युद्ध को जीत सकोगे। केवल धनुष और तीर चलाने से ही यह दुर्योधन, दुःशासन जैसे पापी समाप्त नहीं हो सकते, उसके लिए द्रोणाचार्य ने तुम्हें तीर चलाना ही नहीं सिखाया, अपितु मन्त्र शक्ति भी दी है।

          आए दिन के क्लेश, पति-पत्नी के आपसी झगड़े, रिश्तेदारों, भाई-बन्धुओं में आपसी मतभेद ये सब ईर्ष्या, वैमनस्य, प्रतिस्पर्धा और द्वेष के कारण ही होते हैं। व्यक्ति का जीना दुष्कर हो जाता है, भाई-भाई का दुश्मन हो जाता है, इन आपसी मतभेदों के कारण ही शत्रु व्यक्ति की उन्नति के रास्ते में बाधा उत्पन्न करने लगते हैं, इनसे वह मुक्त नहीं हो पाता। फलस्वरूप वह शारीरिक रूप से तो दुर्बल हो ही जाता है, साथ ही उसकी मानसिक शक्ति भी क्षीण हो जाती है और तब उसे एक ही मार्ग सूझता है, तरह-तरह के पण्डे साधुओं के पास जाकर टोने-टोटके करवाना, तन्त्र प्रयोगों का सहारा लेना और इसमें वह हजारों रुपए भी बर्बाद कर डालता है, किन्तु से कोई लाभ प्राप्त नहीं हो पाता। दर-दर की ठोकरें खाने के बाद वह हताश-निराश होकर हाथ पर हाथ धरकर बैठ जाता है और अपने भाग्य को कोसने लगता है।

          ऐसी स्थिति में साधना ही एकमात्र ऐसा प्रबलतम शस्त्र है, जिसके माध्यम से जीवन के समस्त शत्रुओं को परास्त कर जीवन के महासंग्राम में विजय प्राप्त की जा सकती है और वह भी पूर्णता के साथ। साधना, शक्ति का स्रोत है, जिससे व्यक्ति शारीरिक रूप से तो स्वस्थ और बलवान होता ही है, अपितु मानसिक रूप से भी वह पूर्ण स्वस्थ और बलवान हो जाता है, क्योंकि उसे साधना का बल, ओज और तेजस्विता जो प्राप्त हो जाती है, जो उसे जीवन के हर क्षेत्र में विजयी बनाने में सहायक सिद्ध होती है।

          यदि व्यक्ति के पास साधना का तेज, मन्त्र बल हो तो वह पराजित हो ही नहीं सकता, और यदि उसे उस अद्भुत एवं गोपनीय दुर्गा रहस्य का भली प्रकार से ज्ञान हो तो कोई दूसरी शक्ति ऐसी है ही नहीं, जो उसे परास्त कर सके।

          "दुर्गा रहस्य" से अपने जीवन में आने वाले हर शत्रु को, हर बाधा को, हर अड़चन को हमेशा-हमेशा के लिए दूर किया जा सकता है। फिर किसी टोने-टोटके की या तान्त्रिक प्रयोग की आवश्यकता शेष नहीं रह जाती, फिर उसे हर प्रकार के डर, भय से छुटकारा मिल जाता है, क्योंकि इस दुर्गा रहस्य को जानने के बाद उसे ऐसा महसूस होने लगता है, मानो कोई शक्ति हर क्षण उसके साथ हो और उसकी सहायता कर रही हो। वह अपने आप को सुरक्षित और निर्भय अनुभव करने लगता है, और उस शक्ति के माध्यम से ही उसमें दृढ़ता और विश्वास का जागरण होता है, जिसके फलस्वरूप उसमें शत्रुओं को परास्त करने की क्षमता स्वतः ही आने लगती है। लेकिन यह तभी सम्भव हो सकता है, जब उसे इस रहस्य का पूर्ण ज्ञान हो और इसके प्रति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो।

साधना विधान :-----------

           इसे आप किसी भी नवरात्रि के प्रथम दिवस से आरम्भ कर सकते हैं। यह साधना साधक को रात्रि ९ बजे के बाद ही सम्पन्न करना चाहिए। पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके बैठें। लाल  आसन का प्रयोग करें तथा लाल वस्त्र धारण करें। अपने सामने लाल वस्त्र से बाजोट पर "महादुर्गा यन्त्र" अथवा माँ भगवती दुर्गा का सुन्दर चित्र स्थापित करें। समस्त पूजन सामग्री को अपने पास रख लें।

          इस प्रयोग से पूर्व गुरु पूजन एवं पाँच माला गुरुमन्त्र जाप अनिवार्य है, क्योंकि समस्त साधनाओं के एकमात्र सूत्रधार गुरु ही हैं, जो प्रत्येक साधना में सफलता देते हैं।

          इसके पश्चात सामान्य गणपति पूजन और भैरव पूजन अवश्य करें और उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          इसके बाद साधना के प्रथम दिवस साधक को संकल्प अवश्य लेना चाहिए। इसके लिए साधक हाथ में जल लेकर अपने नाम व गोत्र का उच्चारण कर संकल्प ले कि मैं आज से दुर्गा रहस्य साधना का अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हूँ। मैं नित्य ९ दिनों तक श्रीदुर्गाआपदुद्धारक स्तोत्र के ११२ पाठ करूँगा। माँ! मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे इस स्तोत्र की सिद्धि प्रदान करे और मेरे ज्ञात-अज्ञात समस्त शत्रुओं का शीघ्र संहार हो।

         ऐसा कहकर जल को भूमि पर छोड़ दें।

         इसके बाद यन्त्र अथवा चित्र का कुमकुम, अक्षत व गुलाब की पँखुड़ियों से सामान्य पूजन करें। शुद्ध घी का हलवा बनाकर माँ भगवती दुर्गा को भोग लगाएं। पूरे साधना काल में घी का दीपक जलते रहना चाहिए।          

          फिर दोनों हाथ जोड़कर माँ भगवती दुर्गा का ध्यान करें -----

ॐ कालाभ्रामां कटाक्षैररिकुलभयदां मौलिबद्धेन्दुरेखाम्,
शङ्खं चक्रं कृपाणं त्रिशिखमपि करैरुद्वहन्तीं त्रिनेत्राम्।
सिंहस्कन्धाधिरूढां त्रिभुवनमखिलं तेजसा पूरयन्तीम्,
ध्यायेद् दुर्गां जयाख्यां त्रिदशपरिवृतां सेवितां सिद्धिकामैः॥
ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
 शरण्य त्र्यम्बके गौरि नारायणी नमोऽस्तुते॥

          इसके बाद साधक को चाहिए कि वह निम्न मन्त्र का १०८ बार जाप करे -----

॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय-ज्वालय ज्वल-ज्वल प्रज्वल-प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥

         अब निम्न स्तोत्र का ११२ बार पाठ करें, जो समस्त शत्रुओं का संहार करके साधक की मनोकामना को पूर्ण करता है -----

॥ श्रीदुर्गाआपदुद्धारक स्तोत्रम् ॥

नमस्ते शरण्ये शिवे सानुकम्पे नमस्ते जगद्व्यापिके विश्वरूपे।
नमस्ते जगद्वन्द्यपादारविन्दे नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥१॥
नमस्ते जगच्चिन्त्यमानस्वरूपे नमस्ते महायोगिविज्ञानरूपे।
नमस्ते नमस्ते सदानन्द रूपे नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥२॥
अनाथस्य दीनस्य तृष्णातुरस्य भयार्तस्य भीतस्य बद्धस्य जन्तोः।
त्वमेका गतिर्देवि निस्तारकर्त्री नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥३॥
अरण्ये रणे दारुणे शुत्रुमध्ये जले सङ्कटे राजगेहे प्रवाते।
त्वमेका गतिर्देवि निस्तार हेतुर्नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥४॥
अपारे महदुस्तरेऽत्यन्तघोरे विपत् सागरे मज्जतां देहभाजाम्।
त्वमेका गतिर्देवि निस्तारनौका नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥५॥
नमश्चण्डिके चण्डोर्दण्डलीलासमुत्खण्डिता खण्डलाशेषशत्रोः।
त्वमेका गतिर्विघ्नसन्दोहहर्त्री नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥६॥
त्वमेका सदाराधिता सत्यवादिन्यनेकाखिला क्रोधना क्रोधनिष्ठा।
इडा पिङ्गला त्वं सुषुम्ना च नाडी  नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥७॥
नमो देवि दुर्गे शिवे भीमनादे सदासर्वसिद्धिप्रदातृस्वरूपे।
विभूतिः सतां कालरात्रिस्वरूपे नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥८॥
शरणमसि सुराणां सिद्धविद्याधराणां मुनिमनुजपशूनां दस्यभिस्त्रासितानाम्।
नृपतिगृहगतानां व्याधिभिः पीडितानां त्वमसि शरणमेका देवि दुर्गे प्रसीद॥९॥

॥ फलश्रुति ॥
इदं स्तोत्रं मया प्रोक्तमापदुद्धारहेतुकम्।
त्रिसन्ध्यमेकसन्ध्यं वा पठनाद्धोरसङ्कटात्॥१०॥
मुच्यते नात्र सन्देहो भुवि स्वर्गे रसातले।
सर्वं वा श्लोकमेकं वा यः पठेद्भक्तिमान् सदा॥११॥
स सर्व दुष्कृतं त्यक्त्वा प्राप्नोति परमं पदम्।
पठनादस्य देवेशि किं न सिद्ध्यति भूतले॥१२॥
स्तवराजमिदं देवि सङ्क्षेपात्कथितं मया॥१३॥

                  ११२ पाठ के उपरान्त पुनः उपरोक्त मन्त्र १०८ जाप करें -----

॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय-ज्वालय ज्वल-ज्वल प्रज्वल-प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥

                 मन्त्र जाप के बाद एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समस्त जाप समर्पित कर दें। इस प्रकार नित्य नौ दिनों तक यह प्रयोग करना चाहिए।

        पहले पाठ में मूल स्तोत्र और फलश्रुति दोनों का पाठ करें। बीच के पाठों में मात्र मूल स्तोत्र का पाठ करें और अन्तिम पाठ में पुनः मूल स्तोत्र एवं फलश्रुति दोनों का पाठ करें। इस प्रकार आप १००८ पाठ को नवरात्रि काल के ९ दिनों में सम्पन्न कर सकते हैं।

        इस प्रयोग को करते समय बार-बार आसन से न उठें, क्योंकि शक्ति की उपासना में विघ्न आने की सम्भावना रहती है।

        यदि किसी कारणवश साधक नवरात्रि काल में इस प्रयोग को सम्पन्न नहीं कर पाए तो किसी भी महीने की पूर्णमासी अथवा रविवार के दिन से इस प्रयोग को शुरू किया जा सकता है।

        प्रयोग समाप्ति के बाद यन्त्र को नदी या कुएं में विसर्जित कर दें तथा चित्र को पूजा स्थान में ही रहने दें।

        यह दुर्गा रहस्य निश्चित ही साधक के सौभाग्य को जागृत करने वाला और शत्रु विनाश के लिए पूर्णतया लाभदायक माना जाता है। यह अद्वितीय एवं नवीन प्रयोग है, जो बाण की तरह अचूक है और लक्ष्य सिद्धि के लिए प्रसिद्ध माना गया है।

                 आपकी साधना सफल हो और यह नवरात्रि आपके लिए मंगलमय हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

                 इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।

गुरुवार, 8 मार्च 2018

तान्त्रोक्त नवदुर्गा साधना विधान

तान्त्रोक्त नवदुर्गा साधना विधान



                   वासन्तीय (चैत्र) नवरात्रि पर्व समीप ही है। यह १८ मार्च २०१८ से आरम्भ हो रहा है। इसी दिन से हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत २०७५ शुरू हो रहा है। आप सभी को हिन्दू नववर्ष एवं चैत्र नवरात्रि की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          नवरात्र चार प्रकार के होते हैं, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ होने वाले बासन्तीय नवरात्र शयन कहलाते हैं। आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरम्भ होने वाले शारदीय नवरात्र बोधन कहलाते हैं। इनके अतिरिक्त दो गुप्त नवरात्र भी होते हैं, प्रथम आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा से तथा द्वितीय माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होते हैं। चारों ही नवरात्रों में भगवती दुर्गा की आराधना होती है।

          श्रीमद्भागवत् पुराण में भी उल्लेख है कि भगवान श्रीराम को भी रावण को पराजित करने के लिए माँ भगवती की शरण में जाना ही पड़ा था। "नवशक्तिभिः संयुक्त नवरात्रं तदुच्यते" अर्थात देवी की शक्ति इस अवसर पर एक महाशक्ति का रूप धारण करती है, इसलिए इसे नवरात्रि कहते हैं। नवरात्रि में नवीन ऊर्जा साधक साधना से ही प्राप्त करता है।

          नवरात्रों में माँ भगवती दुर्गा देवी के पृथक-पृथक रूपों की पृथक-पृथक प्रकार से पूजा करने से साधक को पूर्ण फल प्राप्त होता है। देवी की नौ मूर्तियाँ हैं, जिन्हें नव दुर्गा कहते हैं। इनके पृथक-पृथक नाम हैं, जिनका उल्लेख विभिन्न ग्रन्थों में मिलता है तथा जिनकी पूजा-अर्चना करने का विधान भी विभिन्न विद्वानों व महात्माओं ने उल्लेखित किया है।

           नवरात्रि काल में साधारणतः नवदुर्गा  पूजा व साधनाएँ साधकजन किया करते हैं और उन्हीं नव दुर्गाओं के मन्त्र भी जपा करते हैं। किन्तु हम तान्त्रिक हैं और तान्त्रिक साधनाएँ ही करते हैं वैदिक साधना नहीं, क्योंकि भगवान शिव ने भी यही कहा है कि  कलियुग में केवल तान्त्रिक मन्त्र और साधनाएँ ही पूर्ण फल प्रदान करने में सक्षम होंगे।

          और इसी कारण ही अब की बार नवरात्रि में नवदुर्गाओं की जो तत्व है, उसी तत्व स्वरूपी महामाया शक्ति की उन विशिष्ट शक्तिओं की ही पूजा व जाप मन्त्र प्रस्तुत कर रहा हूँ।

          और यह सभी मन्त्र नवदुर्गा के मन्त्र से सर्वथा भिन्न है, क्योंकि मुझे लगता है कि नवदुर्गा के अर्थ को समझ कर अगर उसके सार तत्व को ही साधा जाए तो उत्तम होगा। क्योंकि तन्त्र यह कहता है कि यही वो नवनिधि है, जिसका उल्लेख शास्त्रों में आता है। माँ भगवती की कृपा से आप सब भी नवनिधि सम्पन्न हों, यही कामना करते हुए आप के सामने यह पोस्ट को रख रहा हूँ।

          इन शक्तिओं की मन्त्र साधना आप नवरात्रि के दौरान कर सकते हैं।

साधना विधान :----------

          यह साधना आप किसी भी नवरात्रि के प्रथम दिवस से आरम्भ कर सकते हैं। रात्रि काल में ९ बजे के बाद साधना शुरु की जा सकती है।

          साधक को चाहिए कि वह स्नान करके लाल वस्त्र धारण कर ले और लाल आसन पर उत्तर दिशा की ओर मुँह करके बैठ जाए। अब किसी बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी एवं माँ भगवती दुर्गा का चित्र स्थापित कर दें। चित्र के सामने किसी थाली में नौ दीपकों में शुद्ध घी डालकर स्थापित कर दें। इसके साथ ही धूप-अगरबत्ती भी प्रज्ज्वलित कर दें।

          सर्वप्रथम पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का संक्षिप्त पूजन करके गुरुमन्त्र की चार माला करें। फिर सद्गुरुदेवजी से तान्त्रोक्त नवदुर्गा साधना सम्पन्न करने की आज्ञा लेकर उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए निवेदन करें।

          इसके बाद भगवान गणपतिजी का स्मरण करके किसी भी गणपति मन्त्र का एक माला जाप करें। फिर भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          तदुपरान्त भगवान भैरवनाथजी का स्मरण करके "ॐ भं भैरवाय नमः" मन्त्र की एक माला जाप करें। फिर भगवान भैरवनाथजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          इसके बाद साधक को चाहिए कि वह साधना के पहले दिन संकल्प अवश्य लें। फिर प्रतिदिन संकल्प लेना आवश्यक नहीं है।

          अब थाली में स्थापित उन नौ दीपकों को माँ नवदुर्गा का स्वरूप मान कर सामान्य पूजन करें और यथाशक्ति भोग अर्पित करें।

          इसके बाद नवरात्रि के पहले दिन माँ भगवती शैलपुत्री के निम्नलिखित मन्त्र का रुद्राक्ष अथवा लाल चन्दन माला से २१ माला जाप करें। माँ शैलपुत्री, जो  त्रैलोक्य मोहन कार्य अर्थात तीनों लोकों को मोहित कर देने वाली शक्ति है -----

मन्त्र :----------

।। ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं सर्वजन मनोहारिणी नमः स्वाहा ।।

AYIEM HREEM KLEEM SHREEM SARVAJAN MANOHAARINNI NAMAH SWAAHA.

          २१ माला जाप के उपरान्त समस्त जाप एक आचमनी जल छोड़कर माँ भगवती नवदुर्गा को समर्पित कर दें।

          नवरात्रि के दूसरे दिन ऊपर बताई गई विधि अनुसार गुरुपूजन, गणपति पूजन, भैरव पूजन एवं नवदुर्गा पूजन सम्पन्न करके माँ भगवती ब्रह्मचारिणी के निम्न मन्त्र की उसी माला (रुद्राक्ष या लाल चन्दन) से २१ माला जाप करें। माँ ब्रह्मचारिणी, जो समस्त इच्छाओं को पूर्ण करने वाली शक्ति है -----

मन्त्र :----------

।। ऐं क्लीं सौः कामेश्वरीच्छा कामफल प्रदे देवी नमः स्वाहा ।।

AYIEM KLEEM SOUH KAAMESHWARI ICHCHHA KAAMPHAL PRADE DEVI NAMAH SWAHA.

          २१ माला जाप के पश्चात समस्त जाप एक आचमनी जल छोड़कर माँ भगवती नवदुर्गा को समर्पित कर दें।

          नवरात्रि के तीसरे दिन ऊपर बताई गई विधि अनुसार गुरुपूजन, गणपति पूजन, भैरव पूजन एवं नवदुर्गा पूजन सम्पन्न करके माँ भगवती चन्द्रघण्टा के नीचे दिए गए मन्त्र की उसी माला (रुद्राक्ष या लाल चन्दन) से २१ माला जाप करें। माँ चन्द्रघण्टा, जो समस्त प्रकार के पापों का हनन करने वाली शक्ति है -----

मन्त्र :----------

।। श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं सर्वपापसंहारिके देवी नमः स्वाहा ।।

SHREEM KLEEM HREEM AYIEM SARVPAAP SANHAARIKE DEVI NAMAH SWAAHA.

          २१ माला जाप के बाद समस्त जाप एक आचमनी जल छोड़कर माँ भगवती नवदुर्गा को समर्पित कर दें।

          नवरात्रि के चौथे दिन ऊपर बताई गई विधि अनुसार गुरुपूजन, गणपति पूजन, भैरव पूजन एवं नवदुर्गा पूजन सम्पन्न करके माँ भगवती कूष्माण्डा के नीचे दिए गए मन्त्र की उसी माला (रुद्राक्ष या लाल चन्दन) से २१ माला जाप करें। माँ कूष्माण्डा, जो सर्व सौभाग्य प्रदान करने वाली शक्ति है -----

मन्त्र :----------

।। ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौः सर्वसौभाग्य प्रदायिनी देवी नमः स्वाहा ।।

AYIEM HREEM SHREEM KLEEM SOUH SARVSOUBHAAGY PRADAAYINI DEVI NAMAH SWAAHA.

          २१ माला जाप के उपरान्त समस्त जाप एक आचमनी जल छोड़कर माँ भगवती नवदुर्गा को समर्पित कर दें।

          नवरात्रि के पाँचवें दिन ऊपर बताई गई विधि अनुसार गुरुपूजन, गणपति पूजन, भैरव पूजन एवं नवदुर्गा पूजन सम्पन्न करके माँ भगवती स्कन्दमाता के निम्नलिखित मन्त्र की उसी माला (रुद्राक्ष या लाल चन्दन) से २१ माला जाप करें। माँ स्कन्दमाता, जो समस्त प्रकार के कार्यों को सिद्ध करने वाली शक्ति है, चाहे वो शान्ति कर्म हो या मारण कर्म -----

मन्त्र :----------

।। ऐं ईं हौं सः कामत्रिपुराय नमः स्वाहा ।।

AYIEM EEM HOUM SAH KAAM TRIPURAAY NAMAH SWAAHA.

          २१ माला जाप के पश्चात समस्त जाप एक आचमनी जल छोड़कर माँ भगवती नवदुर्गा को समर्पित कर दें।

          नवरात्रि के छठवें दिन ऊपर बताई गई विधि अनुसार गुरुपूजन, गणपति पूजन, भैरव पूजन एवं नवदुर्गा पूजन सम्पन्न करके माँ भगवती कात्यायनी के निम्न मन्त्र की उसी माला (रुद्राक्ष या लाल चन्दन) से २१ माला जाप करें। माँ कात्यायनी, जो सर्व प्रकार से साधक की रक्षा करने वाली शक्ति है -----

मन्त्र :----------

।। ॐ ह्रीं महायक्षीश्वरी रक्षय रक्षय मम शत्रुणाम भक्षय भक्षय स्वाहा ।।

OM HREEM MAHAAYAKSHEESHWARI RAKSHAY RAKSHAY MAM SHATRUNNAAM BHAKSHAY BHAKSHAY SWAAHA.

          २१ माला जाप के बाद समस्त जाप एक आचमनी जल छोड़कर माँ भगवती नवदुर्गा को समर्पित कर दें।

          नवरात्रि के सातवें दिन ऊपर बताई गई विधि अनुसार गुरुपूजन, गणपति पूजन, भैरव पूजन एवं नवदुर्गा पूजन सम्पन्न करके माँ भगवती कालरात्रि के नीचे दिए गए मन्त्र की उसी माला (रुद्राक्ष या लाल चन्दन) से २१ माला जाप करें। माँ कालरात्रि, जो समस्त प्रकार के रोगों का नाश करने वाली शक्ति है -----

मन्त्र :----------

।। ॐ कालि कालि कालरात्रिके मम सर्व रोगान छिन्धि छिन्धि  भिन्दी भिन्दी भक्षय भक्षय नमः स्वाहा ।।

OM KAALI KAALI KAALRAATRIKE MAM SARVROGAAN CHHINDI CHHINDI BHINDI BHINDI BHAKSHAY BHAKSHAY NAMAH SWAAHA.

          २१ माला जाप के उपरान्त समस्त जाप एक आचमनी जल छोड़कर माँ भगवती नवदुर्गा को समर्पित कर दें।

          नवरात्रि के आठवें दिन ऊपर बताई गई विधि अनुसार गुरुपूजन, गणपति पूजन, भैरव पूजन एवं नवदुर्गा पूजन सम्पन्न करके माँ भगवती महागौरी के निम्नलिखित मन्त्र की उसी माला (रुद्राक्ष या लाल चन्दन) से २१ माला जाप करें। माँ महागौरी, जो समस्त प्रकार के आनन्द को देने वाली शक्ति है -----

मन्त्र :----------

।। ह्रीं क्लीं ॐ सर्व आनन्द प्रदायिने  नित्य मदद्रवे स्वाहा ।।

HREEM KLEEM OM SARV AANAND PRADAAYINE NITYA MADDRAVE SWAAHA.

          २१ माला जाप के पश्चात समस्त जाप एक आचमनी जल छोड़कर माँ भगवती नवदुर्गा को समर्पित कर दें।

          नवरात्रि के नौवें दिन ऊपर बताई गई विधि अनुसार गुरुपूजन, गणपति पूजन, भैरव पूजन एवं नवदुर्गा पूजन सम्पन्न करके माँ भगवती सिद्धिदात्री के निम्न मन्त्र की उसी माला (रुद्राक्ष या लाल चन्दन) से २१ माला जाप करें। माँ सिद्धिदात्री, जो समस्त प्रकार की सिद्धि प्रदान करने वाली देवी है -----

मन्त्र :----------

।। स्त्रीं हूँ  फट क्लीं ऐं तुरे तारे कुल्ले कुरु कुल्ले नमः स्वाहा ।।

STREEM HOOM PHAT KLEEM AYIEM TURE TAARE KULLE KURU KULLE NAMAH SWAAHA.

          २१ माला जाप के बाद समस्त जाप एक आचमनी जल छोड़कर माँ भगवती नवदुर्गा को समर्पित कर दें।

          साधना काल में साधक के गले में रुद्राक्ष होना अनिवार्य है। नौ दिनों तक लगातार इन्हीं दीपकों को प्रज्ज्वलित कर साधना करना होता है। यह दीपक बदलना नहीं है, बस बत्ती छोटी हो जाय तो उसे बदल देना चाहिए। इस प्रकार एक-एक करके नौ दिनों में नौ मन्त्रों का जाप पूरा हो जाता है।

          इसके बाद दशमी को सभी सामग्री, दीपक, फोटो को विसर्जन कर दें, माला को नहीं। किसी कुमारी कन्या को भोजन करवाकर उनसे आशीर्वाद लें या फिर किसी अनाथ आश्रम में पैसे दान कर दें। अगर आप किसी जरुरतमन्द को भी दान कर देते हैं तो भी विधान पूर्ण माना जाएगा।

          आपकी साधना सफल हो और यह नवरात्रि आपके लिए मंगलमय हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।।