सुदर्शन चक्र रक्षा साधना
प्राचीन मुख्य १०८ विज्ञान में कई ऐसे विज्ञान है, जिसके बारे में सामान्यजन को पता ही नहीं है। ऐसा ही एक विज्ञान है, जो कि प्रचलन में रहा था, वह था युद्ध विज्ञान। इस विज्ञान के अन्तर्गत व्यक्ति को अपनी शक्ति और सामर्थ्य बढ़ा कर किस प्रकार से आत्मरक्षण तथा पर-जन-रक्षण कर सके, इसकी शिक्षा दी जाती थी। साथ ही साथ शस्त्रों की तालीम भी दी जाती थी, जो कि सहायक रूप में शक्ति संचार का कार्य करते हैं। इस विज्ञान के अन्तर्गत यह भी बताया जाता था कि व्यक्ति किस प्रकार से भूमि तथा वायु में निहित शक्ति को संचारित कर के युद्ध कर सकता है।
इसके बाद साधक हाथ जोड़कर भगवान सुदर्शन चक्र का निम्नानुसार ध्यान करे -----
इसी कामना के साथ
ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।
रक्षा-बन्धन (राखी) पर्व निकट ही है। यह २६ अगस्त
२०१८ को आ रहा है। आप सभी को राखी पर्व की अग्रिम रूप से बहुत-बहुत हार्दिक
शुभकामनाएँ!
प्राचीन मुख्य १०८ विज्ञान में कई ऐसे विज्ञान है, जिसके बारे में सामान्यजन को पता ही नहीं है। ऐसा ही एक विज्ञान है, जो कि प्रचलन में रहा था, वह था युद्ध विज्ञान। इस विज्ञान के अन्तर्गत व्यक्ति को अपनी शक्ति और सामर्थ्य बढ़ा कर किस प्रकार से आत्मरक्षण तथा पर-जन-रक्षण कर सके, इसकी शिक्षा दी जाती थी। साथ ही साथ शस्त्रों की तालीम भी दी जाती थी, जो कि सहायक रूप में शक्ति संचार का कार्य करते हैं। इस विज्ञान के अन्तर्गत यह भी बताया जाता था कि व्यक्ति किस प्रकार से भूमि तथा वायु में निहित शक्ति को संचारित कर के युद्ध कर सकता है।
इस विज्ञान का ही बौद्ध काल में विस्तारण हुआ, जिसमें कई प्रकार के नवीन अन्वेषण कर मार्शलआर्ट आदि विविध ज्ञान कई
देशों में अमल में आया। इससे यह जाना जा सकता है कि उस समय जीव तथा भौतिक विज्ञान
का विशेषतम ज्ञान हमारे ऋषियों के पास था। जब इसी विज्ञान को तन्त्र पक्ष से जोड़ा
गया तो कई तन्त्र पद्धतियाँ अमल में आई, जिनका उद्देश्य युद्ध के
दौरान विजयश्री के लिए किया जा सके। सैन्य स्तम्भन, सैन्य मारण, राज्य मोहिनी, राजा वशीकरण जैसे प्रयोगों
को अमल में लाया गया। साथ ही साथ सबसे अत्यधिक महत्वपूर्ण, जिन साधनाओं का प्रचार हुआ, वह थी अस्त्र साधनाएँ।
हमारे शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि विविध
अस्त्रों का प्रयोग युद्ध में बराबर होता था, अग्नि, पावका, वरुण, नाग, अघोर, ब्रह्मा आदि विभिन्न अस्त्रों के बारे में विवरण मिलता है। इन सभी
अस्त्रों को साधनाओं के माध्यम से आज भी प्राप्त किया जा सकता है। देवी-देवताओं को
सिद्ध कर उनसे अस्त्र प्राप्त करने के विवरण हमारे ग्रन्थों में मिलते है। इसी
प्रकार विष्णु भगवान का अस्त्र सुदर्शन चक्र है। इन अस्त्रों को प्राप्त करने की
साधना अत्यधिक कठोर तथा श्रमसाध्य है तथा इसमें कई साल का समय साधक को लग सकता है।
लेकिन इन अस्त्रों से सम्बन्धित कई विविध लघु प्रयोग भी है, जिससे देवी देवता प्रसन्न होकर अपने अस्त्रों को साधक के पास भेज कर
उनका रक्षण करने की आज्ञा देते हैं। लेकिन यह दुष्कर प्रयोग बहुत ही मुश्किल से
प्राप्त होते हैं, यदा कदा मन्त्रों का विवरण
भी मिल जाए, लेकिन सम्बन्धित
प्रक्रियाएँ मिलना मुश्किल ही है।
सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु का प्रमुख शस्त्र है, इस चक्र से माध्यम से भगवान ने बहुत से दुष्टों का विनाश किया है। इस
चक्र की खास बात यह है कि यह चलाने के बाद अपने लक्ष्य पर पहुंचकर वापिस आ जाता
है। यह चक्र कभी भी नष्ट नहीं होता है। इस शस्त्र में अपार ऊर्जा है जिसका वर्णन
नहीं किया जा सकता है।
इस दिव्य चक्र की उत्पत्ति को लेकर कई कथाएँ सामने आती हैं, कुछ लोगों का मानना है कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश, बृहस्पति ने अपनी ऊर्जा एकत्रित
कर के इसकी उत्पत्ति की है। यह भी माना जाता है कि यह चक्र भगवान विष्णु ने भगवान
शिव की आराधना कर के प्राप्त किया है। लोग यह भी कहते
हैं कि महाभारत काल में अग्निदेव ने श्री कृष्ण को यह चक्र दिया था जिससे अनेकों
असुरों का संहार हुआ था।
सुदर्शन चक्र की सनातन हिन्दू धर्म में बहुत मान्यता है, जैसे वक़्त, सूर्य और ज़िन्दगी कभी
रुकती नहीं हैं, वैसे ही इसका भी कोई अन्त नहीं कर सकता। यह परमसत्य का प्रतीक है।
शिव पुराण के अनुसार साक्षात आदि शक्ति सुदर्शन चक्र में वास करती हैं।
सद्गुरुदेव ने अपने कई संन्यासी शिष्यों को इन
प्रक्रियाओं का ज्ञान दिया है। यह हमारा सौभाग्य है कि हमारे वरिष्ठ भाई-बहिनों के
पास इस प्रकार की साधनाएँ सुरक्षित हैं और वे इस गूढ़ ज्ञान से सम्पन्न है।
सद्गुरुदेव की कृपा से एक प्रयोग जो कि सुदर्शन चक्र से सम्बन्धित है, वह में आप सब के मध्य रखना चाहूँगा।
साधना विधान :-----------
चूँकि यह साधना साधक की
सुरक्षा से सम्बन्धित है। अतः आप इसे रक्षा-बन्धन (राखी) पर्व से आरम्भ करें। यदि
यह सम्भव न हो तो इस साधना को किसी भी शुभ दिन से शुरू किया जा सकता है।
रात्रिकाल में ११ बजे के
बाद साधक स्नान कर के सफ़ेद वस्त्रों को धारण कर सफ़ेद आसन पर बैठे और सामान्य
गुरुपूजन करके गुरुमन्त्र की चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से सुदर्शन चक्र
साधना सम्पन्न करने हेतु मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लेकर उनसे साधना की सफलता के
लिए निवेदन करें।
इसके बाद भगवान गणपतिजी का
स्मरण कर किसी भी गणपति मन्त्र का एक माला जाप करें और उनसे साधना की निर्विघ्न
पूर्णता के लिए प्रार्थना करें।
इस साधना में साधक को कुल ११,००० मन्त्र जाप करना है। साधक अपनी सामर्थ्य के अनुसार दिनों का चयन
कर अपना मन्त्र जाप पूरा कर लें, लेकिन मन्त्र जाप की संख्या
रोज़ एक समान और नियमित रहे। साधक चाहे तो एक दिन में भी मन्त्र जाप पूरा कर सकता
है।
तत्पश्चात साधक को साधना के
पहले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए। दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प लें कि “मैं अमुक नाम का साधक
गोत्र अमुक आज से सुदर्शन चक्र साधना शुरू कर रहा हूँ। मैं नित्य ७ दिनों तक १५
माला मन्त्र जाप सम्पन्न करूँगा। हे, सद्गुरुदेवजी! आपकी कृपा से मेरी यह साधना सफल हो, जिससे
कि मुझे और मेरे परिवार को सम्पूर्ण रूप से सुरक्षा प्राप्त हो सके और जीवन पूरी
तरह चिन्तामुक्त हो सके।”
आप चाहे तो ११ माला
प्रतिदिन के हिसाब से इस साधना को ११ दिनों में भी सम्पन्न कर सकते हैं। लेकिन
संकल्प में फिर आप वैसा ही उच्चारित करें।
इसके बाद साधक हाथ जोड़कर भगवान सुदर्शन चक्र का निम्नानुसार ध्यान करे -----
ॐ सुदर्शनं महावेगं गोविन्दस्य प्रियायुधम्‚
ज्वलत्पावकसङ्काशं
सर्वशत्रुविनाशनम्।
कृष्णप्राप्तिकरं
शश्वद्भक्तानां भयभञ्जनम्‚
सङ्ग्रामे
जयदं तस्माद्ध्यायेद्देवं सुदर्शनम्॥
फिर रुद्राक्ष माला से साधक
निम्न मन्त्र का जाप करें -----
मन्त्र :-----------
।। ॐ सुदर्शन चक्राय शीघ्र
आगच्छ मम् सर्वत्र रक्षय-रक्षय स्वाहा ।।
OM SUDARSHAN CHAKRAAY SHEEGHRA AAGACHCHH MAM SARVATRA
RAKSHAY-RAKSHAY SWAAHA.
मन्त्र जाप के पश्चात एक
आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समस्त जाप समर्पित कर दें।
इस प्रकार यह साधना आप
नित्य ७ अथवा ११ दिनों तक सम्पन्न करें। साधना समाप्ति के बाद साधक माला को धारण
किए रखे तथा आगामी दिनों में ग्रहणकाल के समय इस मन्त्र की ११ माला जाप फिर से करे
और शहद से अग्नि में १००८ आहुतियाँ इसी मन्त्र से अर्पित करे।
यह साधक का सौभाग्य होता है
कि उसे साधना काल के दौरान सुदर्शन चक्र के दर्शन हो जाए। यदि ऐसा होता है तो साधक को चाहिए कि
वह विनीत भाव से प्रणाम कर सुदर्शन चक्र से रक्षण के लिए प्रार्थना करे।
इसके बाद सुदर्शन चक्र साधक
के आसपास अप्रत्यक्ष रूप में रहता है तथा सर्व रूप से शत्रु तथा अनेक बाधाओं से
व्यक्ति का रक्षण करता ही रहता है। साधक का अहित करने का सामर्थ्य उसके शत्रुओं
में रहता ही नहीं है।
आपकी साधना सफल हो और आपकी मनोकामना पूर्ण हो! मैं सद्गुरुदेव
भगवानजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।
इसी कामना के साथ
ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।
3 टिप्पणियां:
सुन्दर जानकारी के लिए धन्यवाद
🙏bahut
dhanyavaad...
अतिसुंदर
जय श्री कृष्ण
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