पारद शिवलिंग साधना
श्रावण मास निकट ही है। यह २९ जुलाई
२०१८ से आरम्भ हो रहा है। आप सभी को शिव मास श्रावण मास की अग्रिम रूप से
बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ!
भगवान शिव ने "माहेश्वरी
तन्त्र" में माँ भगवती पार्वती को तन्त्र इत्यादि की व्याख्या करते हुए कहा
है कि इस संसार में मूर्ति रूप में पूजा करना प्रत्येक व्यक्ति के लिए सम्भव नहीं
होगा। वह अपनी कल्पना के अनुसार विभिन्न प्रकार की मूर्ति बनाएगा और इससे आगे जगत
में विशेष प्रकार का वाद-विवाद उत्पन्न होगा। अतः आने वाले कलियुग के लिए आवश्यक
है कि साधक मेरी लिंगाकार रूप में पूजा करें और इस लिंग का निर्माण वे मिट्टी से, धातु से, पारद से अथवा पवित्र नदियों में बहने वाले जल के पत्थरों के रूप में
प्राप्त कर उसे स्थापित कर,
पूजन कर सकते हैं। मेरा यह स्वरूप
मनुष्य में जीवनी शक्ति का प्रतीक होगा और वेदी, योनि रूप में सदैव तुम मेरे साथ रहोगी। जिस प्रकार मैं गले में हर
समय रुद्राक्ष माला और सर्प धारण किए रहता हूँ, उसी
प्रकार शिवलिंग पर रुद्राक्ष अर्पित किए जाएंगे और मेरे लिंग रूप के ऊपर सर्प
स्थापित रहेगा। संसार में बेल का वृक्ष मुझे विशेष प्रिय है और बिल्व पत्र ही ऐसी
वनस्पति है, जो त्रिदल स्वरूप होती है। केवल उसे
अर्पित करना ही मेरी प्रसन्नता के लिए पर्याप्त होगा।
भगवान शिव अत्यन्त ही सहजता से अपने
भक्तों की मनोकामना की पूर्ति करने के लिए तत्पर रहते हैं। भक्तों के कष्टों का
निवारण करने में वे अद्वितीय हैं। समुद्र मन्थन के समय सारे के सारे देवता अमृत के
आकांक्षी थे, लेकिन भगवान शिव के हिस्से में भयंकर
हलाहल विष आया। उन्होंने बड़ी सहजता से सारे संसार को समाप्त करने में सक्षम उस
विष को अपने कण्ठ में धारण किया तथा 'नीलकण्ठ' कहलाए। भगवान शिव को सबसे ज्यादा प्रिय
मानी जाने वाली क्रिया है --- 'अभिषेक'।
शिवलिंग पूजन में जलधारा से अभिषेक का
विशेष महत्व है। अभिषेक का शाब्दिक अर्थ है स्नान करना या कराना। शिवजी के अभिषेक
को रुद्राभिषेक भी कहा जाता है। रुद्राभिषेक का मतलब है भगवान रुद्र (शिव) का
अभिषेक करना। शास्त्रों के अनुसार अभिषेक कई प्रकार के बताए गए हैं। रुद्रमन्त्रों
द्वारा शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है, इसे
ही रुद्राभिषेक कहा जाता है। अभिषेक जलधारा से किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार
समुद्र मन्थन के समय दुर्लभ रत्नों के साथ ही भयंकर विष भी निकला था। इस विष की
वजह से समस्त सृष्टि पर प्राणियों का जीवन संकट में आ गया था। सृष्टि को बचाने के
लिए शिवजी ने इस विष का पान किया था। विष पान की वजह से शिवजी के शरीर में दाह
(गर्मी) का असर काफी तीव्र हो गया था। इस दाह (गर्मी) को खत्म करने के लिए ही
शिवलिंग पर लगातार जलधारा से अभिषेक करने की परम्परा प्रारम्भ हुई, जो आज भी चली आ रही है। जल से शिवजी को
शीतलता प्राप्त होती है और विष की गर्मी शान्त होती है। इससे प्रसन्न होकर वे अपने
भक्तों का हित करते हैं, इसलिए शिवलिंग पर विविध पदार्थों का
अभिषेक किया जाता है। शिवलिंग पर ऐसी कई चीजें अर्पित की जाती हैं, जिनकी तासीर ठण्डी होती है। ठण्डी
तासीर वाली चीजों से शिवजी को शीतलता प्राप्त होती है। जो भी भक्त नियमित रूप से
शिवलिंग पर जल अर्पित करता है, उसे
सभी सुख-सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। कार्यों में भाग्य का साथ भी मिलने लगता है।
सभी प्रकार के शिवलिंगों में पारद
शिवलिंग का अभिषेक सर्वोत्कृष्ट माना गया है। घर में पारद शिवलिंग का स्थापित होना
ही सुख, समृद्धि, शान्ति, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के लिए अत्यधिक
सौभाग्यशाली माना गया है। दुकान, ऑफिस
व फैक्टरी में व्यापार को बढ़ाने के लिए पारद शिवलिंग का पूजन एक अचूक उपाय है।
पारद शिवलिंग के मात्र दर्शन होना ही बड़े सौभाग्य की बात है। इसके लिए किसी
प्राणप्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं हैं। पर इसके ज्यादा लाभ उठाने के लिए पूजन-साधना
विधिवत् की जानी चाहिए।
सभी जानते हैं कि शिव पूजन में
सामान्यतः प्रत्येक व्यक्ति शिवलिंग पर जल या दूध चढ़ाता है। शिवलिंग पर इस प्रकार
द्रवों का अभिषेक 'धारा' कहलाता है। जल तथा दूध की धारा भगवान शिव को अत्यन्त प्रिय है।
पंचामृतेन वा गंगोदकेन वा अभावे, गोक्षीर युक्त कूपोदकेन च
कारयेत्।।
अर्थात पंचामृत से या फिर गंगा जल से
भगवान शिव को धारा का अर्पण किया जाना चाहिए। इन दोनों के अभाव में गाय के दूध को
कूएँ के जल के साथ मिश्रित कर के लिंग का अभिषेक करना चाहिए।
श्रावण मास में शिव अभिषेक का महत्व तो
विशेष है ही। इस मास में प्रतिदिन अभिषेक करना जीवन का सौभाग्य है। यह अभिषेक
पारदेश्वर शिवलिंग पर किया जाए तो साधना में सफलता शीघ्र प्राप्त होती है। इस हेतु
मन्त्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठायुक्त पारदेश्वर शिवलिंग आवश्यक है, इसके अतिरिक्त अन्य सामग्री दूध, घी, दही, शक्कर, कुमकुम, पुष्प, फल, नेवैद्य आदि की व्यवस्था कर लें और
नीचे वर्णित विधि के अनुसार पारदेश्वर शिवलिंग पर अभिषेक सम्पन्न करें -----
साधना विधान :------------
रात्रि में १० बजे पीले वस्त्र और
पीले ही आसन पर बैठकर यह साधना करनी है। सर्वप्रथम अपने सामने किसी पात्र में पारद
शिवलिंग को स्थापित करें। फिर पवित्रीकरण, आचमन
आदि करके गुरुपूजन एवं गणपति पूजन करना चाहिए। तत्पश्चात दोनों हाथ जोड़कर भगवान
शिव का ध्यान करें -----
ध्यान :-----------
ॐ ध्यायेन्नित्यम् महेशं रजतगिरिनिभं चारूचन्द्रावतन्सम्,
रत्नाकल्पोज्ज्व्लाङ्गं परशुमृगवराभीति हस्तं प्रसन्नम्।
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैव्याघ्रकृत्तिं वसानम्,
विश्वाद्यम् विश्ववन्द्यम् निखिल भयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्।।
ॐ पारदेश्वराय नमः, इदं ध्यानं समर्पयामि।
आवाहन :-----------
आगच्छ भगवन्! देव! स्थाने चात्र स्थिरो भव।
यावत् पूजां करिष्येऽहं तावत् सन्निधौ भव।।
ॐ पारदेश्वराय नमः, इदं आवाहनं समर्पयामि।
शिवलिंग पर पुष्प चढ़ाएं।
आसन :------------
अनेकरत्नसंयुक्तं नानामणि गणान्विताम्।
इदं हेममयं दिव्यं आसनं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ पारदेश्वराय नमः, इदं आसनं समर्पयामि।
शिवलिंग को बिल्वपत्र का आसन दें।
पाद्य :-----------
गङ्गोदकं निर्मलं च सर्वसौगन्ध्यसंयुतम्।
पादप्रक्षालनार्थाय दत्तं मे प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ पारदेश्वराय नमः, इदं पाद्यं समर्पयामि।
दो आचमनी जल चढ़ाएं।
अर्घ्य :-----------
गन्धपुष्पाक्षतैर्युक्तमर्घ्यं
सम्पादितं मया।
गृहाण भगवन् शम्भो
प्रसन्नो वरदो भव।।
ॐ पारदेश्वराय नमः, इदं अर्घ्यं समर्पयामि।
किसी पात्र में थोड़ा जल लेकर उसमें
चन्दन, पुष्प, अक्षत मिला लें और शिवलिंग पर चढ़ावें।
आचमन :-----------
कर्पूरेण सुगन्धेन
वासितं स्वादु शीतलम्।
तोयम् आचमनीयार्थं
गृहाण परमेश्वर ।।
ॐ पारदेश्वराय नमः, इदं आचमनीयं जलं
समर्पयामि।
कर्पूर से सुवासित शीतल जल चढ़ाएं।
स्नान :-----------
मन्दाकिन्यास्तु
यद्वारि सर्वपापहरं शुभम्।
तदिदं कल्पितं देव
स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ पारदेश्वराय नमः, इदं स्नानं समर्पयामि।
शिवलिंग को शुद्ध जल से स्नान कराएं।
स्नानान्ते आचमनीयं जलं
समर्पयामि।
शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।
दुग्धस्नान :----------
कामधेनु समुद्भूतं
सर्वेषां जीवनं परम्।
पावनं यज्ञहेतुश्च पयः
स्नानाय गृह्यताम्।।
ॐ पारदेश्वराय नमः, इदं पयः स्नानं
समर्पयामि।
दूध से शिवलिंग को स्नान कराएं।
दधिस्नान :----------
पयसस्तु समुद्भूतं
मधुराम्लं शशिप्रभम्।
दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं
प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ पारदेश्वराय नमः, इदं दधि स्नानं
समर्पयामि।
दही से शिवलिंग को स्नान कराएं।
घृतस्नान :----------
नवनीत समुत्पन्नं सर्व
सन्तोष कारकम्।
घृतं तुभ्यं
प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ पारदेश्वराय नमः,
इदं
घृत स्नानं समर्पयामि।
घी से शिवलिंग को स्नान कराएं।
मधुस्नान :----------
पुष्परेणु समुत्पन्नं
सुस्वादु मधुरं मधु।
तेजःपुष्टिकरं दिव्यं
स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ पारदेश्वराय नमः, इदं मधु स्नानं
समर्पयामि।
मधु (शहद) से शिवलिंग को स्नान कराएं।
शर्करास्नान :----------
इक्षुसार समुद्भूतां शर्करां पुष्टिदां
शुभाम्।
मलापहारिकां दिव्यां स्नानार्थं
प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ पारदेश्वराय नमः, इदं शर्करा स्नानं
समर्पयामि।
शर्करा (शक्कर/चीनी) से शिवलिंग को
स्नान कराएं।
शुद्धोदकस्नान :----------
शुद्धं यत् सलिलं
दिव्यं गङ्गाजलसमं स्मृतम्।
समर्पितं मया
भक्त्या शुद्धस्नानाय गृह्यताम्।।
ॐ पारदेश्वराय नमः, इदं शुद्धोदकस्नानं
समर्पयामि।
भगवान् पारदेश्वर को शुद्ध जल से स्नान
कराकर साफ वस्त्र से पोंछकर किसी पात्र में स्थापित कर दें। फिर चन्दन, चावल और पुष्प से पूजन करें। इसके बाद
खीर का भोग लगाएं। तत्पश्चात पुष्प और चावल लेकर निम्न मन्त्रों का उच्चारण करते
हुए शिवलिंग पर चढ़ाएं -----
ॐ भवाय नमः।
ॐ जगतपित्रे नमः।
ॐ रुद्राय नमः।
ॐ कालान्तकाय नमः।
ॐ नागेन्द्रहाराय नमः।
ॐ कालकण्ठाय नमः।
ॐ त्रिलोचनाय नमः।
ॐ पारदेश्वराय नमः।
इसके बाद किसी पात्र में पाँच बिल्व
पत्रों पर कुमकुम और अक्षत (चावल) रख कर भगवान पारदेश्वर को निम्न मन्त्र पढ़कर
अर्पित करें -----
ॐ त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्।
त्रिजन्म पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्।।
फिर किसी पात्र में गाय का कच्चा दूध
और जल मिलाकर रख लें तथा निम्न मन्त्र को बोलते हुए शिवलिंग पर प्रत्येक
मन्त्रोच्चारण के साथ एक आचमनी जल चढ़ाते जाएं -----
मन्त्र :-----------
।। ॐ शं शम्भवाय
पारदेश्वराय सशक्तिकाय नमः ।।
OM
SHAM SHAMBHVAAY PAARADESHVARAAY SASHAKTIKAAY NAMAH.
यह अभिषेक क्रिया सवा घण्टे तक निरन्तर
सम्पन्न करें। अभिषेक क्रिया सम्पन्न होने के बाद एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर
समस्त पूजन-अभिषेक कर्म भगवान पारदेश्वर को ही समर्पित कर दें।
श्रावण मास में यह शिवलिंग अभिषेक
प्रयोग प्रतिदिन सम्पन्न करें। यदि आपके लिए यह सम्भव न हो तो श्रावण मास में
पड़ने वाले प्रत्येक सोमवार को यह अभिषेक विधान करना ही चाहिए।
इस साधना को सम्पन्न करने के बाद भगवान
पारदेश्वर की अमोघ शक्ति एवं उनके दिव्य स्वरूप का लाभ प्राप्त होता है तथा
मनोवांछित कार्य की पूर्ति होती है।
यह एक अति महत्वपूर्ण साधना है, इसे हल्के में लेना पूज्यपाद
सद्गुरुदेव के प्रति अश्रद्धा होगी। अतः ध्यान रखें और पूर्ण भक्ति व श्रद्धा भाव
से पूजन एवं अभिषेक सम्पन्न करें। इस साधना के बाद पारद शिवलिंग का घर में स्थापन
अति सौभाग्य की बात है।
आपकी साधना सफल हो और भगवान शिव की
कृपा आप पर बनी रहे! मैं सद्गुरुदेव भगवान परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्दजी से आप
सबके कल्याण कामना करता हूँ।
इसी कामना के साथ
ॐ
नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।।
1 टिप्पणी:
🙏💓apko aur apke guru Ko mera pranam.
Guru Diksha ki mahima ke bare mein bhi bataye
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