गुरुवार, 5 जुलाई 2018

साबर धूमावती साधना


साबर धूमावती साधना


          आषाढ़ मासीय गुप्त नवरात्रि समीप है। यह १३ जुलाई २०१८ से शुरू हो रही है। आप सभी को गुप्त नवरात्रि की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          धूमावती देवी दस महाविद्याओं में सातवें स्थान पर मानी जाती हैं। इनकी उत्पत्ति बारे में दो कथाएँ प्रचलित हैं, पहली कथा तो यह है कि जब सती ने पिता के यज्ञ में स्वेच्छा से स्वयं को जलाकर भस्म कर दिया तो उनके जलते हुए शरीर से जो धुआँ निकला, उससे माँ धूमावती का जन्म हुआ, इसलिए वो हमेशा उदास रहती हैं। यानि धूमावती धुएँ के रूप में सती का भौतिक स्वरूप है। सती का जो कुछ बचा रहा, वह मात्र उदास धुआँ ही है।

          दूसरी कथा के अनुसार एक बार सती भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर विचरण कर रही थीं, तभी उन्हें जोरों की भूख लगी। उन्होंने महादेवजी से अपनी क्षुधा का निवारण करने का निवेदन किया। कई बार भोजन माँगने पर भी जब भगवान शिव ने उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया, तब उन्होंने महादेव को ही उठाकर निगल लिया। उनके शरीर से धूम्र राशि निकली। शिवजी ने उस समय पार्वती जी से कहा कि आपकी सुन्दर मूर्त्ति धूएँ से ढँक जाने के कारण धूमावती या धूम्रा कही जाएगी।

          धूमावती महाशक्ति अकेली हैं तथा स्वयं नियन्त्रिका है। इनका कोई स्वामी नहीं है, इसलिए इसे विधवा कहा गया है। दुर्गा सप्तशती के अनुसार इन्होंने ही प्रतिज्ञा की थी, "जो मुझे युद्ध में जीत लेगा तथा मेरा गर्व दूर कर देगा, वही मेरा पति होगा। ऐसा कभी नहीं हुआ, अत: यह कुमारी हैं, यह धन या पतिरहित हैं अथवा अपने पति महादेव को निगल जाने के कारण विधवा हैं।

          नारदपाँचरात्र के अनुसार इन्होंने अपने शरीर से उग्रचण्डिका को प्रकट किया था, जो सैकड़ों गीदड़ियों की तरह आवाज करने वाली थी। शिव को निगलने का तात्पर्य है, उनके स्वामित्व का निषेध। असुरों के कच्चे माँस से इनकी अंगभूता शिवाएँ तृप्त हुईं, यही इनकी भूख का रहस्य है। इनके ध्यान में इन्हें विवर्ण, चंचल, काले रंगवाली, मैले कपड़े धारण करने वाली, खुले केशों वाली, विधवा, काकध्वज वाले रथ पर आरूढ़, हाथ में सूप धारण किये, भूख-प्यास से व्याकुल तथा निर्मम आँखों वाली बताया गया है।

          धूमावती की उपासना विपत्ति-नाश, रोग-निवारण, युद्ध-जय, उच्चाटन तथा मारण आदि के लिये की जाती है। शाक्त प्रमोद में कहा गया है कि इनके उपासक पर दुष्टाभिचार का प्रभाव नहीं पड़ता है। संसार में रोग-दु:ख के कारण चार देवता हैं। ज्वर, उन्माद तथा दाह रुद्र के कोप से, मूर्च्छा, विकलांगता यम के कोप से, धूल, गठिया, लकवा, वरुण के कोप से तथा शोक, कलह, क्षुधा, तृषा आदि निरऋति के कोप से होते हैं। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार धूमावती और निरऋति एक हैं। यह लक्ष्मी जी की ज्येष्ठा है, अत: ज्येष्ठा नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्ति जीवन भर दु:ख भोगता है।

          तन्त्र ग्रन्थों के अनुसार धूमावती उग्रतारा ही हैं, जो धूम्रा होने से ही धूमावती कही जाती हैं। दुर्गासप्तशती में वाभ्रवी और तामसीना से इन्हीं की चर्चा की गई है। ये प्रसन्न होकर रोग और शोक को नष्ट कर देती हैं तथा कुपित होने पर समस्त सुखों और कामनाओं को नष्ट कर देती हैं। इनकी शरणागति से विपत्तिनाश तथा सम्पन्नता प्राप्त होती है।

          ऋग्वेदोक्त रात्रिसूक्त में इन्हें सुतराकहा गया है। सुतरा का अर्थ सुखपूर्वक तारनेयोग्य है। तारा या तारिणी को इनका पूर्वरूप बतलाया गया है। इसलिए आगमों में इन्हें अभाव और संकट को दूर कर सुख प्रदान करने वाली भूति कहा गया है। धूमावती स्थिरप्रज्ञता की प्रतीक है। इनका काकध्वज वासनाग्रस्त मन है, जो निरन्तर अतृप्त रहता है। जीव की दीनावस्था भूख, प्यास, कलह, दरिद्रता आदि इसकी क्रियाएँ हैं अर्थात वेद की शब्दावली में धूमावती कद्रु है, जो वृत्रासुर आदि को पैदा करती है।
 
          आज यहाँ मैं माँ भगवती धूमावतीजी का साबर मन्त्र दे रहा हूँ, जो समस्त प्रकार के कल्याण हेतु शीघ्र फलदायी है। मन्त्र जाप के माध्यम से शत्रु बाधा एवं सभी प्रकार के कष्टों से राहत मिलती है।

साधना विधि :-----------

           यह साधना नवरात्रि काल में पहले दिन से आरम्भ करे। यह साधना ११ दिन की है। साधना में साधक के आसन-वस्त्र काले रंग के हो और दिशा दक्षिण मुख रहेगी। रात्रि ९ बजे के बाद साधक साधना के निमित्त बैठे। अपने सामने काले वस्त्र पर धूमावती चित्र स्थापित करें और गूगल धूप जला लें। इस साधना में चमेली के तेल का दीपक जलाए, जो साधना काल में बुझना नहीं चाहिए।

          पहले सामान्य गुरुपूजन करके गुरुमन्त्र की चार माला जाप करें और सद्गुरुदेवजी से साबर धूमावती साधना सम्पन्न करने हेतु मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लें तथा उनसे साधना की सफलता के लिए निवेदन करें।

          फिर भगवान गणपतिजी का स्मरण करके एक माला गणपति मन्त्र का जाप करें और उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          इसके बाद साधक को साधना के पहले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए।

          तत्पश्चात माँ धूमावती का सामान्य पूजन काजल, अक्षत, भस्म (राख) आदि से करें और किसी भी मिष्ठान्न का भोग लगाएं।

          फिर साधक काली हकीक माला से निम्नलिखित साबर मन्त्र की ११ माला जाप करें ----- 
 
साबर धूमावती मन्त्र :-----------

।। ओम नमो आदेश गुरूजी को,
  धूमावती माई भूख से व्याकुल, ग्रहण करो शत्रु मेरे,
  शिव की माया धूम्र का शरीर, हरो सब कष्ट मेरे,
  दुहाई महादेव की ।।

          मन्त्र का जाप समाप्त होने के बाद समस्त जाप माँ धूमावती को ही एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समर्पित कर दें।

          इस प्रकार यह साधना नित्य ११ दिनों तक सम्पन्न करना चाहिए।

          बारहवें दिन हवन करके एक अनार का बलि देना है। हवन में मन्त्र से १०८ बार आहुति देना चाहिए। हवन सामग्री में सिर्फ घी का प्रयोग करे।

          यह मन्त्र अत्यन्त तीव्र है। इसका प्रभाव शीघ्र ही देखने को मिलता है।

          आपकी साधना सफल हो और आपकी मनोकामना पूर्ण हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्दजी के आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

           इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।।


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