पितृ शान्ति साधना
हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आश्विन
मास की अमावस्या तक का समय श्राद्ध पक्ष कहलाता है। इस वर्ष श्राद्ध पक्ष का
प्रारम्भ ६ सितम्बर २०१७ (पूर्णिमा, मंगलवार)
से हो रहा है, जिसका समापन २० सितम्बर
(अमावस्या, बुधवार) को होगा। हिन्दू
धर्म के अनुसार इस दौरान पितरों की आत्मा की शान्ति के लिए तर्पण, श्राद्ध, पिण्डदान
आदि किया जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिन लोगों की कुण्डली में कालसर्प दोष अथवा पितृदोष हो, वे अगर श्राद्ध पक्ष में इस दोष के निवारण के लिए उपाय‚ पूजन व साधना करें तो शुभ फलों की प्राप्ति होती है तथा कालसर्प दोष अथवा पितृदोष के दुष्प्रभाव में कमी आती है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिन लोगों की कुण्डली में कालसर्प दोष अथवा पितृदोष हो, वे अगर श्राद्ध पक्ष में इस दोष के निवारण के लिए उपाय‚ पूजन व साधना करें तो शुभ फलों की प्राप्ति होती है तथा कालसर्प दोष अथवा पितृदोष के दुष्प्रभाव में कमी आती है।
विश्व
के लगभग सभी धर्मों में यह माना गया है कि मृत्यु के पश्चात् व्यक्ति की देह का तो
नाश हो जाता है, लेकिन
उनकी आत्मा
कभी भी नहीं मरती है। पवित्र गीता
के अनुसार जिस प्रकार स्नान के पश्चात् हम नवीन वस्त्र धारण करते हैं, उसी प्रकार
यह आत्मा भी मृत्यु के बाद एक देह को छोड़कर नवीन देह धारण करती है।
हमारे पित्तरों को भी सामान्य मनुष्यों की तरह सुख, दुख, मोह, ममता, भूख, प्यास आदि का अनुभव होता है। यदि पितृ योनि में गये व्यक्ति के लिये उसके परिवार के लोग श्राद्ध कर्म तथा श्रद्धा का भाव नहीं रखते हैं तो वह पित्तर अपने प्रियजनों से नाराज हो जाते हैं। सामान्यतः
इन पित्तरों के पास आलौकिक शक्तियाँ
होती है तथा यह अपने परिजनों एवं
वंशजों की सफलता व सुख-समृद्धि के लिये चिन्तित रहते हैं, जब
इनके प्रति श्रद्धा तथा धार्मिक
कर्म नहीं किये जाते हैं तो यह निर्बलता का अनुभव करते हैं तथा चाहकर भी
अपने परिवार की सहायता नहीं कर पाते हैं तथा यदि यह नाराज हो गये तो इनके
परिजनों को कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
पितृदोष
होने पर व्यक्ति को जीवन में तमाम
तरह की परेशानियाँ उठानी पड़ती है, जैसे घर में सदस्यों का बीमार रहना, मानसिक
परेशानी, सन्तान
का ना होना, कन्या
का अधिक होना या पुत्र का ना होना, पारिवारिक
सदस्यों में वैचारिक मतभेद
होना, जीविकोपार्जन
में अस्थिरता
या पर्याप्त आमदनी होने पर भी धन
का ना रूकना, प्रत्येक
कार्य में अचानक
रूकावटें आना, सिर
पर कर्ज़ का भार होना, सफलता
के करीब पहुँचकर भी असफल हो
जाना, प्रयास
करने पर भी मनवांछित फल का
ना मिलना, आकस्मिक
दुर्घटना की
आशंका तथा वृद्धावस्था में बहुत दुख प्राप्त होना आदि।
बहुत
से लोगों की कुण्डली
में कालसर्प योग भी देखा जाता है। वस्तुतः कालसर्प योग भी पितृ दोष के कारण
ही होता है, जिसकी
वजह से मनुष्य को जीवन
में तमाम मुसीबतों एवं अस्थिरता का सामना करना पड़ता है।
पितृ
दोष से सम्बन्धित ज्योतिषीय विवेचन पूर्व में प्रस्तुत किया जा चुका है। अब
प्रस्तुत है पितृ दोष निवारणार्थ सरल साधना विधि ----
पितृ शान्ति साधना
यह साधना किसी भी पूर्णिमा अथवा
अमावस्या को सम्पन्न करे या शनिवार को भी की जा सकती है।
समय शाम का होगा, सूर्यास्त के समय करे।
दिशा पूर्व हो, पीले वस्त्र धारण करे, आसन पीला हो। सामने बाजोट पर पीला
कपड़ा बिछाए और उस पर गुरु चित्र स्थापित कर
सामान्य पूजन करें। इसके बाद गुरुमन्त्र का कम
से कम चार माला जाप करें और उनसे पितृ शान्ति साधना सम्पन्न करने की आज्ञा लें।
फिर सद्गुरुदेवजी से साधना
की निर्बाध पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।
इसके बाद वहीं सामने एक शक्कर की ढेरी बनाएं, एक
सफ़ेद तिल की ढेरी बनाएं और एक कटोरी
में थोड़ा घी भी रखें। एक नारियल का
गोला भी रखें।
इसके बाद साधक को साधना के
पहिले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए। प्रतिदिन संकल्प लेने की आवश्यकता नहीं है।
संकल्प लेने के बाद सबसे
पहिले गायत्री मन्त्र का तीन माला (३२४ बार) जाप करें –––––
मन्त्र :-----
।। ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।।
OM BHOORBHUVAH SWAH TATSAVITURVARENNYAM BHARGO DEVASYA DHEEMAHI DHIYO YO NAH PRACHODADAAT.
इसके बाद सवा घण्टे तक बिना माला के निम्न मन्त्र
का जाप करें --
।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
।।
OM
NAMO BHAGWATE VAASUDEVAAY.
अन्त
में पितृ
स्तोत्र के ग्यारह पाठ सम्पन्न करें --–––
पुराणोक्त पितृ स्तोत्र
:----------
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।१।।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान्नमस्यामि कामदान्।।२।।
मन्वादिनां च नेतारः सूर्याचन्दमसोस्तथा।
तान्नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्यूदधावपि।।३।।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृतांजलिः।।४।।
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येऽहं कृतांजलिः।।५।।
प्रजापतेः कश्यपाय सोमाय वरूणाय च।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृतांजलिः।।६।।
नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।७।।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।८।।
अग्निरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्।
अग्निषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः।।९।।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणः।।१०।।
तेभ्योऽखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः।
नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुजः।।११।।
मन्त्र जाप के बाद सारे जाप एक आचमनी
जल भूमि पर छोड़कर पितरों को समर्पित कर दे। अब नारियल के गोले को ऊपर से थोड़ा-सा
काटकर उसमें बाजोट पर स्थापित तिल,शक्कर
और घी भर दे तथा गोले को फिर से बन्द कर दे। ऊपर नारियल के गोले का जो टुकड़ा काटा
था, उसी को लगाकर पुनः बन्द करे और आस पास
गीला आटा लगा दे, ताकि गोला खुले नहीं। इस गोले को जाकर किसी पीपल वृक्ष के नीचे
गाड़ दे और बिना पीछे मुड़े घर आ जाए। इस साधना से सभी पितृ तृप्त होते हैं और
साधक को आशीर्वाद देते हैं।
यह साधना एक दिवसीय है, लेकिन आप चाहे तो पितृ पक्ष या श्राद्ध
पक्ष में ३, ५, ७ या ११ दिन तक सम्पन्न कर सकते हैं। अधिक दिन तक करने की स्थिति में बाजोट
पर स्थापित शक्कर, तिल, घी, नारियल गोला को सुरक्षित रखने की
व्यवस्था पहले से ही कर ले,
क्योंकि चूहा आदि जन्तु क्षति पहुँचा
सकते हैं। मन्त्र जाप के पश्चात वाली सारी प्रक्रिया अन्तिम दिन कर ले।
समस्त पितृ आप व आपके परिवार पर
प्रसन्न होकर शुभ आशीर्वाद प्रदान करे। मैं सद्गुरुदेव भगवान
श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।
इसी कामना के साथ
ॐ
नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।
1 टिप्पणी:
जय श्री राम जय श्री राम
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