रविवार, 6 अगस्त 2017

श्रीकृष्ण पूजन साधना

श्रीकृष्ण पूजन साधना 



               श्रीकृष्ण जन्माष्टमी निकट ही है। इस बार जन्माष्टमी १४ अगस्त २०१७ को आ रही है। आप सभी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ।

              जन्माष्टमी पर्व कृष्ण की उपासना का पर्व है। इस अवसर पर हम कृष्ण के बाल रूप की वन्दना करते हुए उनके आशीर्वाद की कामना करते हैं। कृष्ण के बाल रूप से लेकर उनका पूरा जीवन कर्म की प्रधानता को ही लक्षित करता है। अपने मामा कंस का वध करके कृष्ण ने यह उदाहरण पेश किया कि रिश्तों से बड़ा कर्तव्य होता है। कर्तव्य परायणता की यही सीख कृष्ण ने रणभूमि में अर्जुन को भी दी, जो अपनों के निर्बाध वध से आहत होकर अपने कर्तव्य से विमुख हो चले थे। गीता आज भी हमारे धर्मग्रन्थों में सर्वोत्तम ग्रन्थ है, जो जीवन के झंझावात में आपके हर सवाल का जवाब देती है। कृष्ण हमारी तमाम अन्य धार्मिक उपासनाओं से इस प्रकार अलग हैं कि कृष्ण के उपदेश आज के व्यावहारिक जीवन के अनुरूप और व्यावहारिक लगते हैं।

             जन्माष्टमी के त्यौहार में भगवान विष्णु की श्री कृष्ण के रूप में, उनकी जयन्ती के अवसर पर प्रार्थना की जाती है। हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार कृष्ण का जन्म मथुरा के असुर राजा कंस का अन्त करने के लिए हुआ था। कृष्ण ने ही संसार को गीताका ज्ञान भी दिया, जो हर इंसान को भय मुक्त रहने का मन्त्र देती है। इस उत्सव में कृष्ण के जीवन की घटनाओं की याद को ताजा करने व राधा जी के साथ उनके प्रेम का स्मरण करने के लिए रास लीला की जाती है।

             जब-जब असुरों के अत्याचार बढ़े हैं और धर्म का पतन हुआ है, तब-तब भगवान ने पृथ्वी पर अवतार लेकर सत्य और धर्म की स्थापना की है। इसी कड़ी में भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि के समय अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में भगवान कृष्ण ने अवतार लिया। चूँकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे, इसलिए इस दिन को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी अथवा जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इस दिन स्त्री-पुरुष रात्रि बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मन्दिरों में झाँकियाँ सजाई जाती हैं और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है।

            श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी की मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में देवकी व श्रीवसुदेव के पुत्ररूप में हुआ था। ऐसी मान्यता है कि जन्माष्टमी का सफल पूजन करने से मनुष्य का कल्याण होता ही है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अर्द्धरात्रि में हुआ था, इसलिए इस दिन सुबह से लेकर रात्रि तक श्रीकृष्ण भक्ति में हर कोई डूब जाता है। इसी पवित्र तिथि पर बताई जा रही है, भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित व्रत और पूजा की सरलतम विधि। आप भी भगवान की पूजन साधना करें और कृष्ण भक्ति में निमग्न हो जाएं।

            श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की रात्रि को सम्पन्न होने वाले इस पूजन के पूर्व स्नानादि से निवृत्त होकर शुद्ध पीले वस्त्र धारण कर लें। अपने पूजा कक्ष को सजाकर एक चौकी पर पीला या सफ़ेद वस्त्र बिछा दें। उस पर पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी एवं भगवान श्रीकृष्ण के चित्र को स्थापित करें। पूजन की आवश्यक सामग्रियों को अपने समीप रख लें। धूप, दीप आदि जला दें।

पवित्रीकरण :----------

        पंचपात्र से अपने बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ से ढँक लें और फिर निम्न मन्त्र का उच्चारण करें-----

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोSपि वा।                                                         
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं सः बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।।

      इस अभिमन्त्रित जल को निम्न मन्त्र का उच्चारण करते हुए दाहिने हाथ की अँगुलियों से अपने सम्पूर्ण शरीर पर जल छिड़कें -----

ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु। ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु।। ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु।।।

आचमन :----------

      दाहिने हथेली को मोड़कर गौ के कर्ण की तरह बना लें अर्थात अँगूठे और कनिष्ठिका अँगुली को अलग करके शेष अँगुलियों को सटा लें। अब बाएँ हाथ से आचमनी द्वारा पंचपात्र से जल लेकर दाहिनी हथेली पर डाल दें। इस जल को हथेली के ब्रह्मतीर्थ स्थान से निम्न मन्त्र का उच्चारण करके पी जाएं। ऐसा तीन बार करना है -----

ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा।
ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा।
ॐ सत्यं यशः श्रीर्मयि श्रीः श्रयतां स्वाहा।

      फिर निम्न मन्त्र का उच्चारण करते हुए अँगूठे के मूल भाग से मुँह को पोंछ लें। ऐसा दो बार करना है -----

ॐ हृषिकेशाय नमः।  ॐ गोविन्दाय नमः।

        अन्त में बाएँ हाथ से आचमनी द्वारा पंचपात्र से जल लेकर दाहिनी हथेली पर डालकर निम्न मन्त्र के उच्चारण के साथ हाथ को लें -----

ॐ नारायणाय नमः।

गणपति स्मरण :----------

                 हाथ जोड़कर गणपतिजी एवं अन्य मांगलिक देवों का स्मरण और वन्दन करें -----

ॐ श्रीमन्महागणाधिपतये नमः।
ॐ लक्ष्मी नारायणाभ्यां नमः।
ॐ उमा महेश्वराभ्यां नमः।
ॐ वाणी हिरण्यगर्भाभ्यां नमः।
ॐ शची पुरन्दराभ्यां नमः।
ॐ मातृपितृ चरणकमलेभ्यो नमः।
ॐ इष्ट देवताभ्यो नमः।
ॐ कुल देवताभ्यो नमः।
ॐ ग्राम देवताभ्यो नमः।
ॐ वास्तु देवताभ्यो नमः।
ॐ स्थान देवताभ्यो नमः।
ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः।
ॐ सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः।
ॐ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः।
ॐ सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः।।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः।
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि।।
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।।

तत्पश्चात संक्षिप्त गणेशपूजन सम्पन्न करके एक माला गणपति मन्त्र का जाप करें और फिर हाथ जोड़कर  भगवान गणपतिजी निम्न प्रार्थना करें

वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्य समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा।।

संकल्प :----------

             दाहिने हाथ में जल लेकर उसमें कुमकुम और अक्षत मिला लें तथा निम्न मन्त्र बोलकर फिर उसे भूमि पर छोड़ दें -----

            ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्रह्मणोSह्नि द्वितीय परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तैक देशान्तरे गते पुण्यक्षेत्रे  मासानामुत्तमे मासे भाद्रपद मासे कृष्णपक्षे अष्टम्यां तिथौ अमुक नक्षत्रे अमुक वासरे अमुक (गोत्र बोलें) गोत्रः अमुक (नाम बोलें) शर्माSहं जन्माष्टमी पुण्यवासरे भगवतो महापुरुषस्य श्रीकृष्णस्य विशिष्ट पूजनम् अहं करिष्ये।

दीप पूजन :----------

            दीपक पर कुमकुम, अक्षत एवं पुष्प चढ़ाएं और फिर निम्न स्तुति करें -----

भो दीप! देवरूपस्त्वं कर्मसाक्षी हचविघ्न कृत्।
यावत् कर्म समाप्तिः स्यात् तावदत्र स्थिरो भव।।
ॐ दीप देवतायै नमः।

कलश पूजन :----------

            अपने सामने दाहिनी ओर कलश स्थापित करें। निम्न मन्त्र बोलते हुए कलश के चारों ओर कुमकुम से चार तिलक (बिन्दी) लगाएं -----

ॐ पूर्वे ऋग्वेदाय नमः।
ॐ उत्तरे यजुर्वेदाय नमः।
ॐ पश्चिमे सामवेदाय नमः।
ॐ दक्षिणे अथर्ववेदाय नमः।

चतुर्वेदं आवाहयामि स्थापयामि नमः।

            फिर निम्न श्लोक बोलते हुए कलश में जल डालें -----

ॐ गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेSस्मिन सन्निधिं कुरु।।

             अब निम्न श्लोक का उच्चारण करते हुए कलश में कुमकुम या चन्दन डालें -----

ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्य पुष्टां करीषिणीं।
     ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम्।।

          "अक्षतान् समर्पयामि नमः" बोलकर कलश में अक्षत अर्पित करें।

           फिर निम्न श्लोक बोलकर कलश में एक सुपारी अर्पित करें -----

ॐ याः फलिनीर्या अफला अपुष्पायाश्च पुष्पिणीः।
     बृहस्पतिः प्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व (गूं) हसः।।

           कलश के ऊपर पंच पल्लव डाल दें तथा उसके ऊपर एक नारियल स्थापित करें। फिर कलश को चन्दन, अक्षत, धूप, दीप, पुष्प और नैवेद्य समर्पित करें। तत्पश्चात हाथ जोड़कर प्रार्थना करें -----

        ॐ कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः समाश्रितः।
    मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः।।
    कुक्षौ तु सागराः सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धरा।
    ऋग्वेदोSथ यजुर्वेदः सामवेदो ह्यथर्वणः।।
    अंगैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिताः।
    अत्र गायत्री सावित्री शान्तिः पुष्टिकरी तथा।।
     सर्वे समुद्राः सरितस्तीर्थानि जलदा नदाः।
     आयान्तु देवपूजार्थम् दुरितक्षयकारकाः।।
      गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
       नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेSस्मिन सन्निधिं कुरु।।
    ॐ कलशस्थ देवता अपां पतये नमः।।

गुरु पूजन :----------

              भगवान श्रीकृष्ण को जगद्गुरु कहा गया है। जिस गुरु तत्व से भगवान श्रीकृष्ण जगद्गुरु हुए, वही गुरु तत्व भगवान निखिलेश्वर में भी विद्यमान है। क्योंकि गुरु तत्व को अलग नहीं किया जा सकता। इसीलिए श्रीकृष्ण पूजन के पूर्व गुरुपूजन आवश्यक है। दोनों हाथ जोड़कर पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का ध्यान करें -----

ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।।
अखण्ड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरं।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरुवै नमः।।
अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानांजन शलाकया।
चक्षुरुन्मिलितं येन तस्मै श्री गुरुवै नमः।।
मूकं करोति वाचालं पंगुं  लंघयते गिरिं।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्।।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम् देव देव।।

              इस प्रकार ध्यान के पश्चात गुरुचित्र पर पुष्प से जल छिड़ककर उसे पोंछ दें। धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, कुमकुम से सद्गुरुदेवजी का संक्षिप्त पूजन करें। फिर आँखें बन्द करके गुरुमन्त्र का एक माला मानसिक जाप करें और पूजन में उपस्थिति की प्रार्थना करें।

श्रीकृष्ण पूजन विधान :----------

ध्यान :-----

            हाथ जोड़कर भगवान श्रीकृष्ण का निम्नानुसार ध्यान करें ---

ॐ बर्हापीडं नटवर वपुः कर्णयोः कर्णिकारं,
विभ्रद्वासा कनक कपिशं वैजयन्तीं च मालां।
रन्ध्रान वेणूरधरसुदया पूरयन् गोपवृन्दैः,
वृन्दारण्यं स्वपद रमणं प्रविशद् गीतकीर्तिः।।
ध्यानम् समर्पयामि ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।

आसन :-----

           भगवान श्रीकृष्ण के चित्र के समक्ष आसन हेतु पुष्प रखें ---

ॐ पुरुष एवेद (गूं) यद्भूतं यच्च भाव्यम्।
उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति।।
पुष्पासनं समर्पयामि ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।

पाद्य :-----

           भगवान श्रीकृष्ण के चित्र के समक्ष दो आचमनी जल चढ़ाएं ---

ॐ एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पूरुषः।
पादोSस्य विश्वाभूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि।।
पाद्यं समर्पयामि ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।

अर्घ्य :-----

            ताम्रपात्र में जल, कुमकुम, चन्दन, अक्षत, पुष्प लेकर अर्पित करें ---

        ॐ ताम्रपात्रे स्थितं तोयं गन्ध पुष्प फलान्वितम्।
      सहिरण्यं ददाम्य अर्घ्यं गृहाण परमेश्वर ।।
अर्घ्यम् समर्पयामि ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।

आचमन :-----

          तीन आचमनी जल चित्र के समक्ष अर्पित करें ---

      ॐ सर्व तीर्थ समानीतं सुगन्धिं निर्मलं जलम्।
     आचमनार्थं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर ।।
आचमनीयं जलं समर्पयामि ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।

स्नान :-----

            पुष्प के माध्यम से जल लेकर चित्र पर छिड़कें ---

ॐ गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेSस्मिन सन्निधिं कुरु।।
स्नानं समर्पयामि ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।
स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।।

दुग्ध :-----

          चित्र के सामने एक पात्र रखकर उसमें दूध अर्पित करें ---

ॐ कामधेनु समुद्भूतं सर्वेषां जीवनं परम्।
पावनं यज्ञ हेतुश्च पयः स्नानार्थं अर्पितम्।।
दुग्ध स्नानं समर्पयामि ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।

दधि :-----

         चित्र के सामने रखे पात्र में दही चढ़ावें ---

ॐ पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम्।
दध्यानीतं मयादेव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
दधि स्नानं समर्पयामि ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।

घृत :-----

          चित्र के सामने रखे पात्र में घी अर्पित करें ---

ॐ नवनीत समुत्पन्नं सर्व सन्तोष कारकम्।
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
घृत स्नानं समर्पयामि ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।

मधु :-----

       श्रीकृष्ण चित्र के समक्ष रखे पात्र में शहद अर्पित करें ---

ॐ पुष्परेणु समुत्पन्नं सुस्वादु मधुरं मधु।
तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
मधु स्नानं समर्पयामि ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।

शर्करा :-----

          चित्र के समक्ष रखे पात्र में शक्कर चढ़ावें ---

ॐ इक्षुसार समुद्भूतां शर्करां पुष्टिदां शुभाम्।
मलापहारिकां दिव्यां स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
शर्करा स्नानं समर्पयामि ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।

शुद्धोदक स्नान :-----

           शुद्ध जल से स्नान हेतु पात्र में दो आचमनी जल अर्पित करें तथा चित्र पर भी जल छिड़कें ---

ॐ कावेरी नर्मदावेणी तुंगभद्रा सरस्वती।
गंगा च यमुना तोयं मया स्नानार्थं अर्पितम्।।
शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।
शुद्धोदक स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयाम ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।।

वस्त्रोपवस्त्र :-----

           चित्र को वस्त्र से पोंछकर वस्त्र अर्पित करें ---

       ॐ सर्वभूषादिके सौम्ये लोक लज्जानिवारणे।
     मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रतिगृह्यताम्।।
वस्त्रोपवस्त्रं समर्पयामि ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।
वस्त्रोपवस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।।

तिलक :------

        चन्दन, कुमकुम से भगवान श्रीकृष्ण को तिलक करें ---

    ॐ श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्।
      विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यताम्।।
तिलकम् समर्पयामि ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।

अक्षत :-----

             चित्र के समक्ष अक्षत चढ़ावें ---

     ॐ अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुंकुमाक्ताः सुशोभिताः।
     मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर ।।
अक्षतान् समर्पयामि ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।

पुष्प :------

          चित्र को पुष्प और पुष्पमालाओं से अलंकृत करें ---

ॐ माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो।
     मयानीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर ।।
पुष्पं पुष्पमाला च समर्पयामि ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।

तुलसी दल :-----

            चित्र के सामने तुलसीदल अर्पित करें ---

ॐ तुलसीं हेमरूपां च रत्नरूपां च मंजरीम्।
भवमोक्षप्रदां तुभ्यं समर्पयामि हरिप्रियाम्।।
तुलसीदलं समर्पयामि ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।

धूप :-----
         चित्र के समक्ष धूप समर्पित करें ---

ॐ वनस्पति रसोद्भूतो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तमः।
आघ्रेयः सर्व देवानां धूपोSयं प्रतिगृह्यताम्।।
धूपं आघ्रापयामि ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।

दीप :-----

         घृत का दीपक दिखाएं ---

ॐ साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया।
     दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्य तिमिरापहम्।।
दीपं दर्शयामि ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।

              और फिर हाथ धो लें।

नैवेद्य :------

              भगवान को भोग के निमित्त सामने रखे नैवेद्य में तुलसीदल डालकर अर्पित करें ---

ॐ शर्कराखण्ड खाद्यान्न दधिक्षीरघृतानि च।
आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्।।
नैवेद्यं निवेदयामि ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।

            आचमनी में जल लेकर निम्न मन्त्रों का उच्चारण करते हुए पाँच बार जल छोड़ें ---

ॐ प्राणाय स्वाहा।
ॐ अपानाय स्वाहा।
ॐ समानाय स्वाहा।
ॐ व्यानाय स्वाहा।
ॐ उदानाय स्वाहा।
नैवेद्यान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।।

ऋतुफल :------

           विविध मौसमी फल अर्पित करें ---

ॐ इदं फलं मया देव स्थापितं पुरतस्तव।
तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि।।
ऋतुफलानि समर्पयामि ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।

ताम्बूल :------

         पान में लौंग, इलायची तथा सुपारी रखकर अर्पित करें ---

ॐ पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम्।
   एलालवंगसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्।।
ताम्बूलं समर्पयामि ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।

दक्षिणा :------

          चित्र के समक्ष दक्षिणा द्रव्य चढ़ाएं ---

ॐ दक्षिणा प्रेमसहिता यथाशक्ति ससमर्पिता।
     अनन्तफल दामेनाम् गृहाण परमेश्वर ।।
दक्षिणा द्रव्यं समर्पयामि ॐ क्लीं कृष्णाय नमः।

मन्त्र जाप :----------

               निम्न मन्त्र का यथाशक्ति १०८ अथवा १००८ बार जाप करें ---

                 ।। ॐ कृं कृष्णाय ब्रह्मण्य देवाय नमः ।।

          OM KRIM KRISHNNAAY BRAHMANNYA DEVAAY NAMAH.

प्रार्थना :------

             हाथ जोड़कर पूर्ण सौभाग्य, समृद्धि एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें ---

ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
प्रणतक्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः।।
नमो ब्रह्मण्यदेवाय गोब्रह्मणहिताय च।
जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः।।

           इसके बाद भगवान श्रीकृष्णजी की आरती सम्पन्न करें ---

आरती

आरती कुंज बिहारी की। श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की।।
आरती कुंज बिहारी की। श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की।।

गले में बैजन्ती माला। बजावे मुरली मधुर बाला।।
श्रवण में कुण्डल झलकाला।
नन्द के आनन्द, श्रीआनन्द कन्द, मोहन ब्रिजचन्द।।
राधिका रमण बिहारी की। श्री गिरधर कृष्णमुरारी की।।
आरती कुंज बिहारी की। श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की।।

गगन सम अंग कान्ति काली। राधिका चमक रही आली।।
लतन में ठाढ़े बनमाली।
भ्रमर-सी अलक, कस्तूरी तिलक, चन्द्र-सी झलक।।
ललित छवि श्यामा प्यारी की। श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की।।
आरती कुंज बिहारी की। श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की।।

कनकमय मोर मुकुट बिलसै। देवता दरसन को तरसै।।
गगन सों सुमन रासि बरसै।।
बजै मुरचंग, मधुर मृदंग, ग्वालिनी संग।।
अतुअल रति गोप कुमारी की। श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की।।
आरती कुंज बिहारी की। श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की।।

जहाँ ते प्रगट भई गंगा। सकल मल हारिणी श्रीगंगा।।
स्मरण ते होत मोह भंगा।
बसी शिव शीश, जटा के बीच, हरै अघ कीच।।
चरण छवि श्री बनवारी की। श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की।।
आरती कुंज बिहारी की। श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की।।

चमकती उज्ज्वल तट रेणु। बज रही वृन्दावन बेनु।।
चहूँ दिसि गोपि ग्वाल धेनु।
हँसत मृदु मन्द, चाँदनी चन्द, कटत भव फन्द।।
टेर सुन दीन दुखारी की। श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की।।
आरती कुंज बिहारी की। श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की।।

            आरती सम्पन्न होने के बाद प्रसाद वितरण करें। फिर बाद में भोजन करें।

            आपकी यह पूजन साधना सफल हो। मैं सद्गुरुदेव भगवान परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

              इसी कामना के साथ


ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।

2 टिप्‍पणियां:

Ahaana Gupta ने कहा…

श्रीकृष्ण मंत्र का उच्चारण करने से हर प्रकार की समस्या दूर हो जाती हैं. इसके मंत्र के उच्चारण से जीवन सुख समृद्धि बनी रहती है.

Unknown ने कहा…

Aap to great 🌎🌎🌎🌎🌎🌎🌎 hai