रविवार, 30 जुलाई 2017

रक्षा बन्धन प्रयोग

रक्षा बन्धन प्रयोग


                     रक्षा बन्धन अर्थात राखी पर्व समीप ही है। यह पर्व इस वर्ष ७ अगस्त २०१७ को आ रहा है। आप सभी को रक्षा बन्धन पर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ।

          रक्षा बन्धन का पर्व आते ही सभी व्यक्तियों के हृदय में एक भावनात्मक सम्बन्ध उत्पन्न हो जाता है। रक्षा बन्धन का पर्व भारत में अत्यधिक महत्व रखता है, इस पर्व का अर्थ अन्य पर्वों से हटकर है। न तो यह किसी मठ से सम्बन्धित है और न ही किसी विशेष सम्प्रदाय से, अपितु सभी धर्मों में इस पर्व को अति सम्मानजनक स्थान प्राप्त है और सभी धर्मों में इसको अत्यधिक उल्लास के साथ सम्पन्न किया जाता है। इस पर्व का उद्देश्य है - "रक्षा"। रक्षा, इस शब्द के पीछे उनका उद्देश्य यही था कि व्यक्ति अपनी रक्षा स्वयं करें, सामाजिक रूप से भी तथा आर्थिक रूप से भी।

          रक्षा बन्धन के पर्व पर बहिनें अपने भाई के हाथ में रक्षा सूत्र बाँधती हैं, जिसका अर्थ है कि भाई अपनी बहिन की मान, मर्यादा, यश, प्रतिष्ठा की रक्षा करेगा और बहिनें अपने भाई की लम्बी आयु तथा श्रेष्ठ जीवन एवं सभी तरह से सम्पन्न जीवन की कामना करती है। आज के आधुनिक युग में तो रक्षा बन्धन की मात्र यही परिभाषा कह गई है।

          जब भी बहिन अपने भाई के हाथ में राखी बाँधती है तो भाई स्वयं को उसका रक्षक मान बैठता है, परन्तु -----
     ---क्या वह इतना सक्षम होता है कि हर मुसीबत से अपनी तथा उसके जीवन की रक्षा कर सके?
    ---यदि वह इतना सक्षम नहीं होता तो इस पर्व का अर्थ क्या है?
    --- फिर इसका मूल उद्देश्य क्या है?

          हमारे महर्षियों ने इस पर्व की रचना मात्र इसी उद्देश्य से तो नहीं की होगी, बल्कि इसकी रचना के पीछे उनका कोई विशेष उद्देश्य रहा होगा। हम लोग इसका मूल उद्देश्य भूलकर इसे केवल धागों का ही बन्धन मान बैठे हैं। इस पर्व की रचना के पीछे उनका मुख्य उद्देश्य यह रहा होगा कि व्यक्ति स्वयं के जीवन की सम्पूर्ण सुरक्षा के साथ ही साथ अपने सम्बन्धियों के जीवन की भी सुरक्षा कर सके।

          इस विशिष्ट दिवस पर जो कि रक्षा बन्धन के नाम से सुशोभित है, ग्रह-नक्षत्रों का एक विशेष सम्बन्ध स्थापित होता है, जिसके कारण दिव्य शक्तियों से युक्त रश्मियाँ इस दिवस विशेष में पृथ्वी को आच्छादित कर लेती हैं। इसी कारण ऋषियों ने इस दिवस को एक पावन पर्व के रूप में स्थापित किया, क्योंकि इस विशिष्ट मुहूर्त में यदि अपने इष्ट की अथवा अपने गुरु द्वारा निर्देशित साधना की जाए तो वर्ष पर्यन्त सुरक्षा का उपाय प्राप्त होता है।

          पुरातन काल की तरह आधुनिक काल में भी व्यक्ति अपनी शारीरिक, आर्थिक व सामाजिक रूप से सम्पूर्ण सुरक्षा के लिए प्रयत्न करता रहता है और अपने जीवन की सम्पूर्ण सुरक्षा के लिए उपाय ढूँढता रहता है। इसके लिए वह समस्त प्रकार की आपदाओं को समाप्त करना चाहता है और भौतिक संसाधनों के साथ ही साथ दैवीय सहायता भी प्राप्त करने का प्रयास करता है। इसी कारण वह व्रत-उपवास रखता है, मन्दिरों में जाता है, पूजा-पाठ तथा साधनाएँ सम्पन्न करता है।

          जैसा कि ऊपर स्पष्ट किया गया है कि रक्षा बन्धन की रचना व्यक्ति की असुरक्षा की भावना को समाप्त करने के लिए ही की गई है। इस विशेष दिवस पर व्यक्ति साधना सम्पन्न करके अपने जीवन को दैवीय सुरक्षा प्रदान कर सकता है।

         अपने जीवन को सुरक्षा प्रदान करना व्यक्ति का धर्म ही है। यदि व्यक्ति जीवन में अपने आपको सुरक्षित अनुभव नहीं करता है तो स्वाभाविक रूप से उसकी आधी ऊर्जा उन भयास्पद परिस्थितियों से जूझने में ही समाप्त हो जाती है। भयग्रस्त रहने के कारण व्यक्ति का व्यक्तित्व शनैः-शनैः समाप्त होने लगता है।

          यदि भयातुर व्यक्ति में सुरक्षा की भावना उत्पन्न हो जाए तो वह साहस कर उन परिस्थितियों से भी जूझ जाता है, जिनके विचार से भी कभी उसकी शक्ति क्षीण हो जाती थी।

          व्यक्ति सुरक्षा के प्रति कितना अधिक सचेष्ट रहता है, इसका उदाहरण महाभारत जैसे ग्रन्थ में स्पष्टता से देखने को मिलता है। महाभारत युद्ध का निर्धारण हो चुका था, कौरव और पाण्डव अपनी-अपनी रणनीति तैयार कर रहे थे। कौरवों की ओर महान योद्धा भीष्म, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य आदि थे, जबकि पाण्डवों की ओर कुछ गिने-चुने व्यक्ति ही थे। श्रीकृष्ण पाण्डवों के पक्ष में थे और वे उन्हें विजय दिलाने के लिए प्रयत्नशील थे। युद्ध के आरम्भ में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उसकी सुरक्षा के लिए एक साधना सम्पन्न करवाई थी, जिसके कारण उन्हें युद्ध में निरन्तर दैवीय सहायता प्राप्त होती रही और वे युद्ध में विजयी हुए।

          साधना द्वारा अपने आपको सुरक्षित करने का विधान अति प्राचीन तथा प्रामाणिक है।

साधना विधान :-----------

          इस साधना को आप रक्षा बन्धन के दिन अथवा किसी भी मास की पूर्णिमा को प्रारम्भ कर सकते हैं। इस साधना में आवश्यक सामग्री "सर्व रक्षाकारी यन्त्र" तथा "सफ़ेद हकीक माला" है।

          यदि साधना सामग्री उपलब्ध न हो तो भी आप इस साधना को पारद शिवलिंग पर सम्पन्न कर सकते हैं। यह साधना ग्यारह दिवसीय है और किसी भी समय सम्पन्न की जा सकती है।

          सर्वप्रथम साधक स्नान करके पीले वस्त्र धारण कर लाल अथवा पीले आसन पर बैठ जाएं। अपने सामने बाजोट पर पीला या सफ़ेद वस्त्र  बिछाकर उसपर पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का चित्र स्थापित करें। चित्र सामने किसी ताम्रपात्र में यन्त्र अथवा पारद शिवलिंग स्थापित कर दें। फिर घी का दीपक प्रज्ज्वलित कर धूप-अगरबत्ती जला दें।

          इसके बाद पहले सामान्य गुरुपूजन करके गुरुमन्त्र की कम से कम चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से रक्षा बन्धन प्रयोग सम्पन्न करने की अनुमति लें और उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          तत्पश्चात संक्षिप्त गणपति पूजन सम्पन्न करें और एक माला गणेश मन्त्र का जाप करें। फिर भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          इसके बाद साधना के पहले दिन साधक को संकल्प अवश्य लेना चाहिए।

          तदुपरान्त साधक यन्त्र अथवा शिवलिंग का पूजन कुमकुम, पुष्प तथा अक्षत से करें और नैवेद्य अर्पित करें। यन्त्र या शिवलिंग के समक्ष एक जलपात्र रखें।

          फिर साधक सफ़ेद हकीक माला अथवा रुद्राक्ष माला से निम्न मन्त्र की नित्य २१ माला जाप करें -----

मन्त्र :----------
          ।। ॐ रं रुद्राय रं ॐ फट् ।।

                    OM RAM RUDRAAY RAM OM PHAT.

          मन्त्र जाप समाप्त होने के बाद जलपात्र का थोड़ा-सा जल लेकर स्वयं पर छिड़क दें तथा बचा हुआ जल किसी पौधे की जड़ में डाल दें।

         इस प्रकार यह साधना क्रम नित्य ग्यारह दिनों तक सम्पन्न करें।

         साधना समाप्ति के बाद यन्त्र तथा माला को किसी रविवार को दिन नदी में प्रवाहित कर दें। यदि आपने शिवलिंग पर साधना सम्पन्न की है, तो उस शिवलिंग को पूजा स्थान में स्थापित कर दें।

          आपकी साधना निखिल कृपा से सफल हो। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

                      इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।

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