बुधवार, 19 जुलाई 2017

नागपंचमी पूजन साधना

नागपंचमी पूजन साधना



           नागपंचमी पर्व निकट ही है। इस बार नागपंचमी २८ जुलाई २०१७ को आ रही है। आप सभी को नागपंचमी पर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ।

            हमारे धर्म ग्रन्थों में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पूजा का विधान है। पुराणों के अनुसार नागों की अनेक जातियाँ और प्रजातियाँ हैं। भविष्य पुराण में नागों के लक्षण, नाम, स्वरूप एवं जातियों का विस्तार से वर्णन मिलता है। मणिधारी तथा इच्छाधारी नागों का भी उल्लेख मिलता है।

           श्रावणमास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी का त्यौहार नागों को समर्पित है। इस त्यौहार पर व्रत पूर्वक नागों का अर्चन-पूजन होता है। व्रत के साथ एक बार भोजन करने का नियम है। पूजा में पृथ्वी पर नागों का चित्रांकन किया जाता है। स्वर्ण, रजत, काष्ठ या मृत्तिका से नाग बनाकर पुष्प, गन्ध, धूप-दीप एवं विविध नैवेद्यों से नागों का पूजन होता है।

           नाग अथवा सर्प पूजा की परम्परा पूरे भारतवर्ष में प्राचीनकाल से रही है। प्रत्येक गाँव में ऐसा स्थान अवश्य होता है, जिसमें नाग देव की प्रतिमा बनी होती है और उसका पूजन किया जाता है।

           धर्मग्रन्थों के अनुसार नागपंचमी के दिन नाग अर्थात सर्प के दर्शन व उसके पूजन का विशेष फल मिलता है। जो भी व्यक्ति नागपंचमी के दिन नाग की पूजा करता है, उसे कभी भी नाग अर्थात साँप का भय नहीं होता और न ही उसके परिवार में किसी को नागों द्वारा काटे जाने का भय सताता है। 

           नागपंचमी का पर्व मनाए जाने के पीछे जो कथा प्रचलित है, वह संक्षेप में इस प्रकार है --- 


           एक किसान जब अपने खेतों में हल चला रहा था, उस समय उसके हल से कुचल कर एक नागिन के तीन बच्चे मर गए। अपने बच्चों को मरा देखकर क्रोधित नागिन ने किसान, उसकी पत्नी और लड़कों को डँस लिया। जब वह किसान की कन्या को डँसने गई, तब उसने देखा कि किसान की कन्या दूध का कटोरा रखकर नागपंचमी का व्रत कर रही है। यह देख नागिन प्रसन्न हो गई। उसने कन्या से वर माँगने को कहा। किसान कन्या ने अपने माता-पिता और भाइयों को जीवित करने का वर माँगा। नागिन ने प्रसन्न होकर किसान परिवार को जीवित कर दिया और तभी से यह परम्परा चली आ रही है कि श्रावण शुक्ल पंचमी को नागदेवता का पूजन करने से किसी प्रकार का कष्ट और भय नहीं रहता।

क्या नाग देवता हैं?

             जिस प्रकार मनुष्य योनि है, उसी प्रकार नाग भी योनि भी है। प्राचीन कथाओं में उल्लेख मिलता है कि पहले नागों का स्वरूप मनुष्य की भाँति होता था, लेकिन नागों को विष्णु की अनन्य भक्ति के कारण वरदान प्राप्त होकर इनका स्वरूप बदल दिया गया और इनका स्थान विष्णु की शय्या के रूप में हो गया। नाग ही ऐसे देव हैं, जिन्हें विष्णु का साथ हर समय मिलता है और भगवान शंकर के गले में शोभा पाते हैं। भगवान भास्कर (सूर्य) के रथ के अश्व भी नाग का ही स्वरूप हैं।




             भय एक ऐसा भाव है, जिससे कि बली से बली व्यक्ति, बुद्धिमान से बुद्धिमान व्यक्ति भी अपने को शक्तिहीन समझता है। कोई अपने शत्रुओं से भय खाता है, कोई अपने अधिकारी से भय खाता है, कोई भूत-प्रेत से भयभीत रहता है। भयभीत व्यक्ति उन्नति की राह पर कदम नहीं बढ़ा सकता है। भय का नाश और भय पर विजय प्राप्त करना प्रत्येक मनुष्य के लिए आवश्यक है और नाग, सर्प देवता भय के प्रतीक हैं। इसलिए इनकी पूजा का विधान हर जगह मिलता है।

              इस बार यह पर्व २८ जुलाई २०१७ शुक्रवार को है। इस दिन नाग देवता की पूजा किस प्रकार करें, इसकी विधि इस प्रकार है -----

पूजन विधि :----------

             नागपंचमी के दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर अपने आसन पर बैठ जाएं। अब सबसे पहले सामान्य गुरुपूजन सम्पन्न करके गुरुमन्त्र की चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से नागपंचमी पूजन एवं साधना सम्पन्न करने की अनुमति लें और उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

            इसके बाद भगवान गणपतिजी का स्मरण करके एक माला गणेश मन्त्र की जाप करें और उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

            इसके बाद भगवान शंकर का ध्यान करें -----

ॐ ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतन्सम्,
रत्नाकल्पोज्ज्वलांगं परशुमृग वराभीतिहस्तं प्रसन्नम्।
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानम्,
विश्वाद्यं विश्ववन्द्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्।।

          फिर दूध मिश्रित जल से शिवलिंग का अभिषेक करके संक्षिप्त शिवपूजन करें और "ॐ नमः शिवाय" मन्त्र की एक माला जाप करें। फिर भगवान शिव से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।

            इसके बाद नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा (सोने, चाँदी या ताँबे से निर्मित) को किसी ताँबा की प्लेट में स्थापित करके उसके सामने २१ बार निम्न मन्त्र बोलें ------

ॐ अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शंखपाल धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात:काले विशेषत:।।
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।

            इसके बाद व्रत-उपवास एवं पूजा-उपासना का संकल्प लें। नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा को दूध से स्नान करवाएं। इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर गन्ध, पुष्प, धूप, दीप से पूजन करें तथा सफेद मिठाई का भोग लगाएं।

            इसके बाद प्रार्थना करें ------

सर्वेनागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले।।
ये च हेलिमरीचिवस्था येन्तरे दिवि संस्थिता।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।                                                                              ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।

          प्रार्थना के बाद निम्न नाग गायत्री मन्त्र का यथाशक्ति १०८ अथवा १००८ बार
 जाप करें ------

।। ॐ नागकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात् ।।

           इसके बाद सर्प सूक्त का पाठ करें ------

सर्पसूक्तः
ब्रह्मलोकुषु ये सर्पा: शेषनाग पुरोगमा:
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥१॥

विष्णुलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥२॥

काद्रवेयाश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणाः।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥३॥

इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षको प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥४॥

सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिताः।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥५॥

मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥६॥

समुद्रतीरे ये सर्पाः ये सर्पाः जलवासिन:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥७॥

रसातलेषु च ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥८॥

सर्पसत्रे तु ये सर्पा: आस्तिकेन च रक्षिताः।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥९॥

धर्मलोकेषु  च ये सर्पा: वैतरण्यां समाश्रिताः।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥१०॥

पर्वताणां  च ये सर्पा: दरीसन्धिषु  संस्थिताः।                           नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥११॥

खाण्डवस्य तथा दाहे स्वर्गं ये च समाश्रिताः।                         नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥१२॥

पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये  साकेतवासिनः
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥१३॥

सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसन्ति  सर्वे स्वच्छन्दाः।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥१४॥

ग्रामे वा यदिवारण्ये ये सर्पा: प्रचरन्ति च।                                                        नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा॥१५॥

            नागदेवता की आरती करें और प्रसाद बाँट दें। इस प्रकार पूजन करने से नागदेवता प्रसन्न होते हैं और हर मनोकामना पूरी करते हैं।

विशेष :----------

            यदि जातक की कुण्डली में कालसर्प दोष या पितृ दोष विद्यमान है, तो ऐसे जातक को उपरोक्त पूजन विधान अवश्य सम्पन्न करना चाहिए।

            हालांकि यह पूजन विधान एक दिवसीय ही है। कालसर्प दोष या पितृ दोष से युक्त कुण्डली वाले जातक इसे ११ या २१ दिनों तक सम्पन्न कर सकते हैं। इस विधान को सम्पन्न करने से कालसर्प अथवा पितृ दोष के दुष्प्रभाव न्यून हो जाते हैं।

           आपकी साधना सफल हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

               इसी कामना के साथ

         ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।


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