महामातंगी साधना
अक्षय तृतीया पर्व समीप ही
है। यह इस वर्ष १८ मार्च २०१८ को आ रहा है। इसी दिन मातंगी जयन्ती भी होती है। आप
सभी को अग्रिम रूप से अक्षय तृतीया पर्व की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ!
समस्त जगत जिस शक्ति से चलित है, उसी शक्ति की दस स्वरूप हैं
ये दस महाविद्याएँ, जिनके नौवें क्रम में भगवती मातंगी का
नाम आता है। भगवान शिव के मतंग रूप में उनकी अर्द्धांगिनी होने के कारण ही उनकी
संज्ञा मातंगी रूप में विख्यात हुई।
जीवन में भगवती मातंगी की साधना प्राप्त
होना ही सौभाग्य का प्रतीक माना गया है। महर्षि विश्वामित्र ने तो यहाँ तक कहा है
कि बाकी नौ महाविद्याओं का भी समावेश मातंगी साधना में स्वतः ही हो गया है। चाहे
हम बाकी नौ साधनाएँ नहीं भी करें और केवल मातंगी साधना को ही सम्पन्न कर लें तो भी
अपने आप में पूर्णता प्राप्त हो सकती है।
इसीलिए तो शास्त्रों में मातंगी साधना
की प्रशंसा में कहा गया है‚ कि -------
“मातंगी
मेवत्वं पूर्ण, मातंगी पूर्णत्व उच्चते।”
इससे यह स्पष्ट होता है कि मातंगी
एकमात्र श्रेष्ठतम साधना है और एकमात्र मातंगी ही पूर्णता दे सकती है।
मातंगी शब्द जीवन के प्रत्येक पक्ष को
उजागर करने की क्रिया के का नाम है,
जिससे जीवन के दोनों ही पक्षों को पूर्णता मिलती है। परन्तु मातंगी
साधना साधकों के मध्य विशेष रूप से जीवन के भौतिक पक्ष को सुधारने के लिए ही की
जाती रही है।
माना जाता है कि मातंगी देवी की आराधना
सर्वप्रथम भगवान विष्णु ने की थी। तभी से वे सुखी, सम्पन्न, श्रीयुक्त तथा उच्च पद पर विराजित हैं। देवी की आराधना बौद्ध धर्म में भी
की जाती हैं, किन्तु बौद्ध धर्म के प्रारम्भ में देवी का कोई
अस्तित्व नहीं था। कालान्तर में देवी बौद्ध धर्म में “मातागिरी”
नाम से जानी जाती है। तन्त्र विद्या के अनुसार देवी सरस्वती नाम से
भी जानी जाती हैं, जो श्रीविद्या महात्रिपुरसुन्दरी के रथ की
सारथी तथा मुख्य सलाहकार हैं।
हम जीवन में सदैव मेहनत करते हैं तथा
हमेशा यह प्रयत्न करते रहते हैं कि हमारा समाज तथा हमारा परिवार हमसे सदैव प्रसन्न
रहे, परन्तु
ऐसा होता नहीं है। उसका सबसे बड़ा कारण है कि हमारे पास बहुमत नहीं है। यहाँ बहुमत
का अर्थ प्रसिद्धि से है, क्यूँकि जब तक हमें जीवन में
प्रसिद्धि नहीं मिलती, हमारा कोई सम्मान नहीं करता है।
दुनिया सर झुकाएगी तो ही परिवार भी हमें सम्मान देगा अन्यथा वो कहावत तो सुनी ही
होगी, घर की मुर्गी दाल बराबर। और यदि आप प्रसिद्ध है तो
लक्ष्मी भी आपके जीवन में आने को आतुर हो उठती है।
प्रस्तुत साधना इसीलिए है। कुछ लाभ यहाँ
लिख रहा हूँ, जो इस साधना से आपको प्राप्त होंगे -------
१. इस साधना को सम्पन्न करने के बाद साधक
अपने कार्य क्षेत्र में तथा समाज में ख्याति प्राप्त करता है। वह एक लोकप्रिय और
यशस्वी व्यक्तित्व बन जाता है।
२. साधना माँ मातंगी से सम्बन्धित है, अतः साधक को पूर्ण गृहस्थ
सुख प्राप्त होता है तथा परिवार में सम्मान होता है। साधक को कुटुम्ब सुख, पुत्र, पुत्रियाँ, पत्नी,
स्वास्थ्य, पूर्णायु आदि सभी कुछ प्राप्त होता
है, जिससे उसका गृहस्थ जीवन पूर्ण माना जा सकता है।
३. माँ मातंगी में महालक्ष्मी समाहित है, अतः साधक का आर्थिक पक्ष
मजबूत होता है। स्वास्थ्य, आय, धन,
भवन सुख, वाहन सुख, राज्य
सुख, यात्राएँ और विविध इच्छाओं की पूर्ति सब कुछ तो मातंगी
अपने साधक को प्रदान कर देती है।
यह केवल मैंने तीन लाभ ही लिखे हैं, परन्तु एक साधक होने के
नाते आप सभी यह बात बखूबी जानते है कि कोई भी साधना मात्र लाभ ही नहीं देती है,
बल्कि साधक का चहुँमुखी विकास करती है। साथ ही धैर्य तथा विश्वास
परम आवश्यक है। अतः साधना साधना कर लाभ उठाएं तथा अपने जीवन को प्रगति प्रदान
करें।
साधना विधि :-----------
यह
साधना अक्षय तृतीया या मातंगी जयन्ती अथवा मातंगी सिद्धि दिवस से आरम्भ की जा सकती
है। ए तो अधिक श्रेष्ठ रहता है। इसके अतिरिक्त यह साधना किसी भी नवरात्रि के प्रथम
दिन से अथवा किसी भी शुक्रवार से शुरू की जा सकती है। फिर भी अक्षय तृतीया से
वैशाख पूर्णिमा के मध्य यह साधना सम्पन्न करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
यह साधना रात्रि १० बजे के बाद शुरू करे
या ब्रह्ममुहूर्त में भी की जा सकती है। आसन, वस्त्र सफ़ेद हो तथा आपका मुख उत्तर की ओर हो।
सामने बजोट पर सफ़ेद वस्त्र बिछाएं और उस पर अक्षत से बीज मन्त्र “ह्रीं” लिखें, फिर उस पर माँ
मातंगी का कोई भी यन्त्र या चित्र स्थापित करे। यह सम्भव न हो तो एक मिटटी के दीपक
में तिल का तेल डालकर कर जलाएं और उसे स्थापित कर दें। इस दीपक को ही माँ का
स्वरूप मानकर पूजन करना है। अगर अपने यन्त्र या चित्र स्थापित किया है तो घी का
दीपक पूजन में लगाना होगा, जो सम्पूर्ण साधना काल में जलता
रहे।
सबसे पहले साधक को चाहिए कि वह समान्य
गुरु पूजन करे और गुरुमन्त्र का चार माला जाप करे। फिर सद्गुरुदेवजी से महामातंगी साधना
सम्पन्न करने के लिए मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लें और उनसे साधना की पूर्णता एवं
सफलता के लिए निवेदन करें।
तदुपरान्त भगवान गणपतिजी का संक्षिप्त
पूजन करके “ॐ वक्रतुण्डाय हुम्” मन्त्र की एक
माला जाप करें। फिर गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना
करें।
इसके बाद भगवान भैरवनाथजी का स्मरण करके
“ॐ हूं भ्रं हूं मतंग भैरवाय नमः” मन्त्र की
एक माला जाप करें और भगवान भैरवनाथजी से साधना की निर्बाध पूर्णता एवं सफलता के
लिए निवेदन करें।
तत्पश्चात साधक को साधना के पहले दिन
संकल्प अवश्य लेना चाहिए। संकल्प में अपनी मनोकामना का उच्चारण करें और उसकी
पूर्ति के लिए माँ भगवती मातंगी से साधना में सफलता तथा आशीर्वाद प्रदान करने की
प्रार्थना करें।
इसके बाद साधक माँ भगवती मातंगी का
सामान्य पूजन करे, भोग में सफ़ेद मिठाई अर्पित करे। साथ ही कोई भी इतर अर्पित करे। यदि अपने
तेल का दीपक स्थापित किया है तो घी का दीपक लगाने की कोई जरुरत नहीं है। बाकी सारा
क्रम वैसा ही रहेगा।
पूजन के बाद माँ भगवती मातंगी से अपनी
मनोकामना कहे एवं सफलता तथा आशीर्वाद प्रदान करने की प्रार्थना करे। फिर स्फटिक
माला से निम्न मन्त्र की २१ माला करें -----
मन्त्र :-----------
॥ ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं महामातंगी प्रचितीदायिनी
लक्ष्मीदायिनी नमो नमः ॥
OM
HREEM HREEM HREEM MAHAAMAATANGI PRACHITIDAAYINI LAKSHMIDAAYINI NAMO NAMAH.
मन्त्र जाप के बाद अग्नि प्रज्वलित कर
घी, तिल
तथा अक्षत मिलकर १०८ आहुति प्रदान करे।
अगले
दिन दीपक हो तो विसर्जन कर दे। यन्त्र या चित्र हो तो पूजाघर में रख दे। प्रसाद
स्वयं ग्रहण कर ले। इतर सँभाल कर रख ले, प्रतिदिन इसे लगाने से आकर्षण पैदा होता है। इस
तरह यह एक दिवसीय साधना सम्पन्न होगी।
कुछ दिनों में आप साधना का प्रभाव
स्वयं अनुभव करने लग जाएंगे तो देर किस बात की? साधना करें तथा जीवन को
पूर्णता प्रदान करें!
आपकी साधना सफल हो और आपकी मनोकामना
माँ भगवती पूर्ण करे! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्रीनिखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए
कल्याण कामना करता हूँ।
इसी कामना के साथ
ॐ नमो
आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।
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