तान्त्रोक्त धूमावती साधना
धूमावती जयन्ती समीप ही है। यह १० जून
२०१९ को आ रही है। आप सभी को धूमावती जयन्ती की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक
शुभकामनाएँ!
मन्त्र महार्णव, मन्त्र महोदधि, तन्त्रसार इत्यादि ग्रन्थों में दस
महाविद्याओं की साधना पर विशेष बल दिया गया है। विस्तार से यह स्पष्ट किया गया है
कि व्यक्ति अपनी आवश्यकता अनुसार कैसे शक्ति सिद्धि प्राप्त कर सकता है? कौन-सी शक्ति की साधना करने से किस
प्रकार का अभीष्ट फल प्राप्त होगा? काली, तारा, छिन्नमस्ता,
भुवनेश्वरी, भैरवी, षोडशी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला — प्रत्येक महाविद्या का विस्तृत विवेचन
है।
दस महाविद्याओं की साधना करना जीवन की
श्रेष्ठतम उपलब्धि मानी जाती है। यह दस प्रकार की शक्तियों की प्रतीक होती है और
महत्वपूर्ण अवसर पर जीवन में जिस शक्ति तत्व की कमी होती है, उस कमी को पूरा करने के लिए महाविद्या
साधना-उपासना करना जीवन का सौभाग्य माना जाता है।
दस महाविद्याओं के क्रम में धूमावती
सप्तमी महाविद्या है, यह शत्रु का भक्षण करने वाली महाशक्ति
और दुःखों की निवृत्ति करने वाली है। बुरी शक्तियों से पराजित न होना और विपरीत
स्थितियों को अपने अनुकूल बना देने की शक्ति साधक को इनकी साधना से ही प्राप्त
होती है।
धूमावती दस महाविद्याओं में से एक है, जिस प्रकार "तारा" बुद्धि और
समृद्धि की, "त्रिपुर सुन्दरी" पराक्रम एवं
सौभाग्य की सूचक मानी जाती है, उसी
प्रकार "धूमावती" शत्रुओं पर प्रचण्ड वज्र की तरह प्रहार करने वाली मानी
जाती है। वह अपने आराधक को अप्रतिम बल प्रदान करने वाली देवी है, जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही
रूपों में सहायक सिद्ध होती ही है, यदि
पूर्ण निष्ठा व विश्वास के साथ धूमावती साधना को सम्पन्न कर लिया जाए तो।
महाविद्याओं का कोई भी रूप हो, फिर वो चाहे महाकाली हों, तारा हों या कमला हों, अपने आप में पूर्ण होता है। यह सभी उसी
पराशक्ति आद्याशक्ति के ही तो विभिन्न रूप हैं। जब वो स्वयं अपनी कल्पना मात्र से
इस सृष्टि का सृजन, पालन और संहार कर सकती हैं तो उसी परम
पूर्ण के यह महाविद्या रूपी रूप कैसे अपूर्ण होंगे, इनमें भी तो निश्चित ही वही विशिष्टता होंगी ही, ना!
महाविद्याओं के पृथक-पृथक १० रूपों को
उनके जिन गुणों के कारण पूजा जाता है, वास्तव
में वो उन्हें जनसामान्य को ना होने देने की गोपनीयता ही है, जो पुरातनकाल से सिद्धों और साधकों की
परम्परा में चलती चली आई है। जब कोई साधक गुरु के संरक्षण में पूर्ण समर्पण के साथ
साधना के लिए जाता है तो परीक्षा के बाद उसे इन शक्तियों की ब्रह्माण्डीयता से
परिचित कराया जाता है और तब सभी कुँजियाँ उसके हाथ में सौंप दी जाती हैं। तभी उसे
ज्ञात होता है कि सभी महाविद्याएँ सर्वगुणों से परिपूर्ण है और वे अपने साधक को सब
कुछ देने का सामर्थ्य रखती हैं अर्थात यदि माँ कमला धन प्रदान करने वाली शक्ति के
रूप में साध्य हैं तो उनके कई गोपनीय रूप शत्रु मर्दन और ज्ञान से आपूरित करने
वाले भी हैं।
अब यह तो गुरु पर निर्भर करता है कि वो
कब इन तथ्यों को अपने शिष्य को सौंपता है और यह शिष्य पर है कि वह अपने समर्पण से
कैसे सद्गुरुदेव के हृदय को जीतकर उनसे इन कुँजियों को प्राप्त करता है। वास्तव
में सत, रज और तम गुणों से युक्त ध्यान, दिशा, वस्त्र, काल और विधि पर ही उस शक्तियों के गुण
परिवर्तन की क्रिया आधारित होती है। किसी भी महाविद्या को पूर्ण रूप से सिद्ध कर
लेने के लिए साधक को एक अलग ही जीवनचर्या, आहार-विहार
और खान-पान का आश्रय लेना पड़ता है, किन्तु
जहाँ मात्र उनकी कृपा प्राप्त करनी हो तो यह नियम थोड़े सरल हो जाते हैं और यह हम
सब जानते हैं कि विगलित कण्ठ से माँ को पुकारने पर वो आती ही हैं।
माँ धूमावती के साथ भी ऐसा ही है, जनसामान्य या सामान्य साधक उन्हें
मात्र अलक्ष्मी और विनाश की देवी ही मानते हैं, किन्तु
जिनकी प्रज्ञा का जागरण हुआ हो वे जानते हैं कि आखिर इस महाविद्या का बाह्य परिवेश
यदि इतना वृद्ध बनाया गया है तो क्या वह वृद्ध दादी या नानी माँ का परिवेश उन्हीं
की भाँति वात्सल्यमयता से युक्त नहीं होगा।
नीचे की पंक्तियों में माँ भगवती
धूमावती से सम्बन्धित ऐसा ही साधना प्रयोग दिया जा रहा है, जिसे सम्पन्न करने पर ना सिर्फ जीवन
में पूर्ण अनुकूलता प्राप्त हो जाती है, अपितु
शत्रुओं से मुक्ति, आर्थिक उन्नति, कार्य क्षेत्र में सफलता, प्रभावकारी व्यक्तित्व और कुण्डलिनी
जागरण जैसे लाभ भी प्राप्त होते हैं। विनाश और संहार के कथनों से परे यह गुण भी हम
माँ भगवती धूमावती की साधना से स्पष्ट रूप से देख सकते हैं।
साधना विधान :----------
यह साधना धूमावती जयन्ती पर सम्पन्न
करे अथवा इसे धूमावती सिद्धि दिवस या किसी भी रविवार को भी किया जा सकता है। यह
साधना रात्रि में ही १० बजे के बाद की जाती है। स्नान करके बगैर तौलिए से शरीर को
पोंछे या तो वैसे ही शरीर को सुखा लिया जाए या धोती के ऊपर धारण किए जाने वाले अंग
वस्त्र से हल्के-हल्के शरीर सुखा लिया जाए और साधना के निमित्त सफ़ेद वस्त्र या
बहुत हल्का पीला वस्त्र धारण कर लिया जाए।
ऊपर का अंगवस्त्र भी सफ़ेद या हल्का पीला ही होगा। धोती और अंगवस्त्र के अतिरिक्त
कोई अन्तर्वस्त्र प्रयोग नहीं किया जाए। साधक-साधिका दोनों के लिए यही नियम है, महिला ऊपर साड़ी के रंग का ही ब्लाउज
पहन सकती हैं। आसन सफ़ेद होगा, दिशा
दक्षिण होगी।
सर्वप्रथम पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का
सामान्य पंचोपचार पूजन करें और गुरुमन्त्र का कम से कम चार माला जाप करें। फिर
उनसे तान्त्रोक्त धूमावती साधना सम्पन्न करने हेतु मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लेकर
साधना की पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।
तत्पश्चात भगवान गणपतिजी का स्मरण करके
एक माला गणपति मन्त्र का जाप करें। फिर उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता
के लिए निवेदन करें।
इसके बाद एक पृथक बाजोट पर सफ़ेद
वस्त्र बिछाकर एक लोहे या स्टील के पात्र में काजल से “धूं” बीज का अंकन करके उसके ऊपर एक सुपारी
स्थापित कर दें और हाथ जोड़कर निम्न ध्यान मन्त्र का ११ बार उच्चारण करे —
धूम्रा मतिव सतिव पूर्णात सा सायुग्मे।
सौभाग्यदात्री सदैव करुणामयि:।।
इसके बाद उस सुपारी को माँ धूमावती का
रूप मानते हुए, अक्षत, काजल, भस्म (धूपबत्ती या अगरबत्ती की राख, गोबर के उपलों की राख या पहले हुए किसी
भी हवन की भस्म), काली मिर्च और तेल के दीपक से और उबाली
हुई उड़द तथा फल के नैवेद्य द्वारा उनका पूजन करे। (यथा— ॐ धूं धूं धूमावत्यै अक्षत समर्पयामि, ॐ धूं धूं धूमावत्यै
कज्जलं समर्पयामि...आदि
आदि)
तत्पश्चात उस पात्र के दाहिने अर्थात
अपने बायीं ओर एक मिटटी या लोहे का छोटा पात्र स्थापित कर उसमें सफ़ेद तिलों की
ढेरी बनाकर उसके ऊपर एक दूसरी सुपारी स्थापित करे और निम्न ध्यान मन्त्र का ५ बार
उच्चारण करते हुए माँ धूमावती के भैरव अघोर रूद्र का ध्यान करे —
त्रिपाद हस्तं नयनं नीलांजनं चयोपमम्।
शूलासि सूची हस्तं च घोर दंष्ट्राटट् हासिनम्।।
और उस सुपारी का पूजन काले तिल, अक्षत, धूप-दीप तथा गुड़ से करे तथा काले तिल डालते हुए ‘ॐ अघोर रुद्राय नमः’ मन्त्र का २१ बार उच्चारण करे। इसके
बाद बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ से निम्न मन्त्र का ५ बार उच्चारण करते हुए
पूरे शरीर पर छिड़के –
धूमावती मुखं पातु धूं धूं
स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्यसुन्दरी।।
कल्याणी हृदये पातु हसरीं नाभि देशके।
सर्वांग पातु देवेशी निष्कला भगमालिना।।
सुपुण्यं कवचं दिव्यं यः पठेदभक्ति संयुतः।
सौभाग्यमतुलं प्राप्य जाते देवीपुरं ययौ।।
इसके बाद जिस थाली में माँ धूमावती की
स्थापना की थी, उस सुपारी को अक्षत और काली मिर्च
मिलाकर निम्न मन्त्र की आवृत्ति ११ बार कीजिए अर्थात क्रम से हर मन्त्र ११-११ बार
बोलते हुए अक्षत मिश्रित काली मिर्च डालते रहे।
उदाहरण
----- ॐ भद्रकाल्यै नमः।
मन्त्र को ११ बार बोलते हुए अक्षत और
साबुत काली मिर्च का मिश्रण अर्पित करे, फिर
दूसरा मन्त्र ११ बार बोलते हुए पुनः मिश्रण चढाएं। फिर क्रमशः तीसरा मन्त्र, चौथा, पाँचवाँ, छठवाँ, सातवाँ और आठवाँ मन्त्र ११-११ बार बोलते हुए अक्षत और काली मिर्च का
मिश्रण अर्पित करते जाएं -----
ॐ भद्रकाल्यै नमः।
ॐ महाकाल्यै नमः।
ॐ डमरूवाद्यकारिणीदेव्यै
नमः।
ॐ स्फारितनयनादेव्यै नमः।
ॐ कटंकितहासिन्यै नमः।
ॐ धूमावत्यै नमः।
ॐ जगतकर्त्री नमः।
ॐ शूर्पहस्तायै नमः।
इसके बाद निम्न मन्त्र का जाप रुद्राक्ष माला से ५१ माला
करें, यथासम्भव एक बार में ही यह जाप हो सके
तो अतिउत्तम होगा —
मन्त्र :-------------
।। ॐ धूं धूं धूमावत्यै फट् स्वाहा ।।
OM
DHOOM DHOOM DHOOMAVATYAI PHAT SWAAHA.
मन्त्र जाप के बाद मिट्टी या लोहे के
हवन कुण्ड (हवन कुण्ड ना हो तो कोई भी कटोरा, कढ़ाई, तवा आदि भी लिया जा सकता है) में लकड़ी
जलाकर १०८ बार घी व काली मिर्च के द्वारा आहुति डाल दें। आहुति के दौरान ही आपको
आपके आसपास एक तीव्रता का अनुभव हो सकता है और पूर्णाहुति के साथ अचानक मानो सब
कुछ शान्त हो जाता है। इसके बाद आप पुनः स्नान करके ही सोने के लिए जाए और दूसरे
दिन सुबह आप सभी सामग्री को बाजोट पर बिछे वस्त्र के साथ ही विसर्जित कर दें। जाप
माला को कम से कम २४ घण्टे नमक मिश्रित जल में डुबाकर रखे और फिर साफ़ जल से धोकर
तथा उसका पूजन कर अन्य कार्यों में प्रयोग करें। यदि बाद में भी कभी इस प्रयोग को
करना हो तो नवीन सामग्री (माला छोड़कर) से उपरोक्त सारी प्रक्रिया पुनः करना
पड़ेगा। इस प्रयोग को करने पर स्वयं ही अनुभव हो जाएगा कि आपने किया क्या है? कैसे परिस्थितियाँ आपके अनुकूल हो जाती
है, यह तो स्वयं अनुभव करने वाली बात है।
आपकी साधना सफल हो और आपकी मनोकामना
पूर्ण हो। मैं सद्गुरुदेव भगवान परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्दजी के आप सबके लिए
कल्याण कामना करता हूँ।
इसी कामना के साथ
ॐ
नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।।
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