गुरुवार, 4 अप्रैल 2019

समस्त पाप-दोष, श्राप-दोष एवं कीलन-दोष समापन प्रयोग


समस्त पाप-दोष, श्राप-दोष एवं कीलन-दोष समापन प्रयोग


                  वासन्तीय (चैत्र) नवरात्रि पर्व समीप ही है। यह ६ अप्रैल २०१९ से आरम्भ हो रहा है। इसी दिन से हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत २०७६ भी शुरू हो रहा है। आप सभी को हिन्दू नववर्ष एवं चैत्र नवरात्रि की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          चैत्र नवरात्रि का यह पर्व ज्योतिषीय तथा खगोलीय दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस दौरान सूर्य का मेष राषि में प्रवेश होता है। सूर्य का यह राशि परिवर्तन हर राशि पर प्रभाव डालता है तथा इसी दिन से नववर्ष के पंचाग गणना की शुरुआत होती है। चैत्र नवरात्रि के यह नौ दिन इतने शुभ माने जाते हैं कि इन नौ दिनों में आप यदि कोई नया कार्य आरम्भ करना चाहते हैं, तो आपको किसी विशेष तिथि का इन्तजार करने की आवश्यकता नही है। आप पूरी चैत्र नवरात्रि के दौरान कभी भी कोई भी नया कार्य आरम्भ कर सकते हैं।

          इसके साथ ही ऐसी भी मान्यता है कि जो व्यक्ति बिना किसी लोभ के चैत्र नवरात्रि में महादुर्गा की पूजा करता है, वो जन्म-मरण के इस बन्धन से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है।

          माँ आद्या शक्ति की कृपा से मनुष्य में आत्मबल, दृढ़ विश्वास, दया, प्रेम, भक्ति जैसे सद्गुणों का विकास होता है। जीवन के इन्हीं मूल्यों को समझकर मनुष्य जीवन में सच्चा सुख, शान्ति, वैभव, धन, सम्पदा को प्राप्त करता है, अन्यथा इस संसार के दलदल से निकलना उसके लिए सम्भव नहीं है। इसलिए असम्भव को भी सम्भव कर दिखाने की शक्ति मनुष्य को देवी कृपा से ही प्राप्त होती है।

          नवरात्रि में पूजा उपासना का मुख्य उद्देश्य होता है माँ दुर्गा की आराधना, मनुष्य का तन-मन और इन्द्रियाँ संयमित होना। पूर्ण निष्ठा एवं श्रद्धा भाव से किए गए उपवास से मनुष्य का तन सन्तुलित होता है। मनुष्य के तन के संतुलित होने पर योग बल से मनुष्य की इन्द्रियाँ संयमित हो जाती है। इन्द्रियों के संयमित होने पर मनुष्य का मन देवी आराधना में स्थिर हो जाता है, जिसके बल पर मनुष्य को मनोवांछित लाभ की प्राप्ति हो सकती है, इसमें जरा भी संशय नहीं है।

          पुराणों में चैत्र नवरात्रि को विशेष महत्व दिया गया है, इसे आत्म शुद्धि और मुक्ति का आधार माना गया है। चैत्र नवरात्रि में माँ दुर्गा का पूजन करने से नकरात्मक ऊर्जा का खात्मा होता है और हमारे चारों ओर सकरात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

          क्या आपका जीवन किसी के श्राप से दूषित हो गया है या बँध गया है? आपको साधना या अनुष्ठान करने पर भी उसका लाभ नहीं मिल पा रहा है तो अवश्य ही आप बाधित है। श्राप दोष से मुक्ति केवल माँ भगवती दुर्गा की विशेष साधना से ही सम्भव है। आज मैं एक विशिष्ट प्रयोग दे रहा हूँ, जिसे सम्पन्न कर जीवन में श्राप-दोष एवं पाप-दोष से मुक्ति प्राप्त होती ही है। यह प्रयोग सिर्फ पाप-दोष ही समाप्त नहीं करता, बल्कि श्राप-दोष और कीलन-दोष भी नष्ट कर देता है।

साधना विधान :-----------

          यह प्रयोग किसी भी माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से अथवा आने वाली नवरात्रि के प्रथम दिवस से आरम्भ कर नौ दिन तक निरन्तर करें। इस प्रयोग को रात्रि में ही करना चाहिए।

         साधक को चाहिए कि वह स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल वस्त्र धारण कर लाल आसन पर उत्तर दिशा की ओर मुँह कर बैठ जाएं। अपने सामने एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर मां भगवती दुर्गा का चित्र अथवा विग्रह स्थापित करें। चित्र के पास ही गणेश एवं गुरु को स्थान दें। फिर शुद्ध घी का दीपक एवं धूप प्रज्ज्वलित कर दें।

          सबसे पहले साधक सामान्य गुरु-पूजन एवं गणेश-पूजन करके गुरु-मन्त्र का पाँच माला जाप करें। फिर भगवान गणेश और सद्गुरुदेवजी से साधना में पूर्ण सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          अब दाहिने हाथ में जल, अक्षत, पुष्प लेकर अपने नाम व गोत्र का उच्चारण कर समस्त पाप-दोष, श्राप-दोष एवं कीलन-दोष से मुक्ति का संकल्प लें और गणेशजी के पास रख दें।
  
          इसके बाद माँ भगवती दुर्गा का सामान्य पूजन कर भोग में मिष्ठान्न व फल अर्पित करें। फिर माँ भगवती से अपने समस्त पाप-दोष, श्राप-दोष एवं कीलन-दोष से मुक्ति के लिए निवेदन करें।

          फिर सर्वप्रथम निम्नलिखित उत्कीलन मन्त्र का १०८ बार जाप करें -----

॥ ॐ श्रीं श्रीं क्लीं हूं ॐ ऐं क्षोभय मोहय उत्कीलय उत्कीलय उत्कीलय ठं ठं ॐ ॥

          तत्पश्चात साधक निम्न विनियोग मन्त्र का उच्चारण करते एक आचमनी जल भूमि पर छोड़ दें -----

विनियोग :----------

ॐ अस्य श्रीचण्डिकाया ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापविमोचनमन्त्रस्य वशिष्ठ-नारदसंवाद-सामवेदाधिपतिब्रह्माण ऋषयः, सर्वैश्वर्कारिणी श्रीदुर्गादेवता, चरित्रत्रयं बीजं, ह्रीं शक्तिः त्रिगुणात्मस्वरूपचण्डिकाशापविमुक्तौ मम संकल्पित कार्यसिद्धयर्थे जपे विनियोगः।

          अब निम्नलिखित शापोद्धार मन्त्र का २१ बार जाप करें -----

॥ ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिका देव्यै शाप नाशानुग्रहं कुरु-कुरु स्वाहा ॥

          इसके बाद रुद्रयामल महातन्त्र के अन्तर्गत दुर्गाकल्प में कहे गए चण्डिका-शाप-विमोचन अष्टादश शक्ति मन्त्रों का २१-२१ बार जाप करना चाहिए।

अष्टादश शक्ति मन्त्र :----------

॥ ॐ ह्रीं रेतःस्वरूपिण्यै मधुकैटभमर्दिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१॥

॥ ॐ श्रीं बुद्धिस्वरूपिण्यै महिषासुरसैन्यनाशिन्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥२॥

॥ ॐ रं रक्तस्वरूपिण्यै महिषासुरमर्दिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥३॥

॥ ॐ क्षुं क्षुधास्वरूपिण्यै देववन्दितायै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥४॥

॥ ॐ छां छायास्वरूपिण्यै दूतसंवादिन्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥५॥

॥ ॐ शं शक्तिस्वरूपिण्यै धूम्रलोचनघातिन्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥६॥

॥ ॐ तृं तृषास्वरूपिण्यै चण्डमुण्डवधकारिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥७॥

॥ ॐ क्षां क्षान्तिस्वरूपिण्यै रक्तबीजवधकारिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥८॥

॥ ॐ जां जातिस्वरूपिण्यै निशुम्भवधकारिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥९॥

॥ ॐ लं लज्जास्वरूपिण्यै शुम्भवधकारिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१०॥

॥ ॐ शां शान्तिस्वरूपिण्यै देवस्तुत्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥११॥

॥ ॐ श्रं श्रद्धास्वरूपिण्यै सकलफलदात्र्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१२॥

॥ ॐ कां कान्तिस्वरूपिण्यै राजवरप्रदायै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१३॥

॥ ॐ मां मातृस्वरूपिण्यै अनर्गलमहिमसहितायै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१४॥

॥ ॐ ह्रीं श्रीं दुं दुर्गायै सं सर्वैश्वर्यकारिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१५॥

॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः शिवायै अभेद्यकवचस्वरूपिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१६॥

॥ ॐ क्रीं काल्यै कालि ह्रीं फट् स्वाहायै ऋग्वेदस्वरूपिण्यै ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१७॥

॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वती स्वरूपिण्यै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गादेव्यै नमः ब्रह्म-वसिष्ठ-विश्वामित्र-शापाद् विमुक्ता भव ॥१८॥

          साधक को प्रत्येक अष्टादश शक्ति मन्त्र का २१-२१ बार जप करना है।

          प्रत्येक अष्टादश शक्ति मन्त्र जप के बाद माँ भगवती दुर्गा के चरणों में एक लाल पुष्प अर्पित करते जाएं। इस प्रकार १८ पुष्प अर्पित करने चाहिए। अष्टादश शक्ति मन्त्रों के जप के पश्चात पुनः २१ बार शापोद्धार मन्त्र का जप करना है।

          इसके बाद पुनः १०८ बार उत्कीलन मन्त्र का जाप करना चाहिए।

          यह शक्ति प्रयोग अत्यन्त तीव्र और प्रभावकारी है। इन अष्टादश शक्तियों का जब आवाहन किया जाता है, तब शरीर और मन से श्राप, पाप एवं कीलन दोष का निराकरण होता ही है। उस समय एक ज्वलन शक्ति-सी उठती है, कुछ विचित्र-से भाव होने लगते हैं। साधक अपने आप को शान्त रखते हुए यह प्रयोग करें।

           अत्यन्त परिश्रम से आप सब के लिए जनकल्याण के उद्देश्य से उपरोक्त मन्त्रों को लिखा है। आशा करता हूँ कि आप सब अवश्य ही इस प्रयोग को करेंगे और लाभान्वित होंगे।

                 आपकी साधना सफल हो और यह नवरात्रि आपके लिए मंगलमय हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

                 इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।


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