रविवार, 31 मार्च 2019

दुर्गा रहस्य साधना

दुर्गा रहस्य साधना
  

                  वासन्तीय (चैत्र) नवरात्रि पर्व समीप ही है। यह ६ अप्रैल २०१९ से आरम्भ हो रहा है। इसी दिन से हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत २०७६ भी शुरू हो रहा है। आप सभी को हिन्दू नववर्ष एवं चैत्र नवरात्रि की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          जीवन में कब किस मोड़ पर शत्रु मिल जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। यह कोई जरूरी नहीं कि आज जो मित्र है, वह कल भी मित्र ही हो, क्योंकि जो आज तुम्हारा गहरा मित्र है, वही कल स्वार्थ के वशीभूत होकर तुम्हारा घोर शत्रु बन सकता है। यह सब तो समय का कुचक्र ही कहा जा सकता है, जहाँ एक पल में सुख है तो दूसरे ही पल दुःख भी है। जीवन पग-पग परिवर्तनशील है, न जाने कब, कौन-सी विकट परिस्थिति से गुजरना पड़ जाए। शत्रु तो हर मोड़ पर तैनात सैनिकों की तरह खड़े रहते हैं हमला करने के लिए, उस अचानक प्रहार से व्यक्ति संकट में फँस जाता है और उस प्रहार को झेल नहीं पाता, और ऐसी स्थिति में व्यक्ति निर्णय नहीं कर पाता कि अब वह क्या करें और क्या नहीं करें?

          मनुष्य के शत्रु एक नहीं हजारों होते हैं, जब तक वह एक को परास्त करता है, तब तक दूसरा उस पर वार कर देता है और इस सामाजिक संग्राम में युद्ध करते-करते उसकी शक्ति क्षीण होने लगती है, क्योंकि व्यक्ति इस जीवन रूपी संग्राम को अपनी शक्ति के बल पर नहीं जीत सकता। इसके लिए उसके पास दैविक बल होना आवश्यक है, मन्त्रसिद्धि होना आवश्यक है।

          महाभारत काल में श्रीकृष्ण ने गीता में यही कहा है कि हे, अर्जुन तुम युद्ध को शस्त्रों के माध्यम से नहीं जीत सकते। जब तक कि तुम्हारे पीछे दैविक बल नहीं होगा, जब तक कि तुम्हें मन्त्र सिद्धि नहीं होगी, इसलिए तुमने जो द्रोणाचार्य से मन्त्र सिद्धि प्राप्त की है, उस मन्त्र सिद्धि को स्मरण करते हुए गाण्डीव उठाओ, तभी तुम महाभारत युद्ध को जीत सकोगे। केवल धनुष और तीर चलाने से ही यह दुर्योधन, दुःशासन जैसे पापी समाप्त नहीं हो सकते, उसके लिए द्रोणाचार्य ने तुम्हें तीर चलाना ही नहीं सिखाया, अपितु मन्त्र शक्ति भी दी है।

          आए दिन के क्लेश, पति-पत्नी के आपसी झगड़े, रिश्तेदारों, भाई-बन्धुओं में आपसी मतभेद ये सब ईर्ष्या, वैमनस्य, प्रतिस्पर्धा और द्वेष के कारण ही होते हैं। व्यक्ति का जीना दुष्कर हो जाता है, भाई-भाई का दुश्मन हो जाता है, इन आपसी मतभेदों के कारण ही शत्रु व्यक्ति की उन्नति के रास्ते में बाधा उत्पन्न करने लगते हैं, इनसे वह मुक्त नहीं हो पाता। फलस्वरूप वह शारीरिक रूप से तो दुर्बल हो ही जाता है, साथ ही उसकी मानसिक शक्ति भी क्षीण हो जाती है और तब उसे एक ही मार्ग सूझता है, तरह-तरह के पण्डे साधुओं के पास जाकर टोने-टोटके करवाना, तन्त्र प्रयोगों का सहारा लेना और इसमें वह हजारों रुपए भी बर्बाद कर डालता है, किन्तु से कोई लाभ प्राप्त नहीं हो पाता। दर-दर की ठोकरें खाने के बाद वह हताश-निराश होकर हाथ पर हाथ धरकर बैठ जाता है और अपने भाग्य को कोसने लगता है।

          ऐसी स्थिति में साधना ही एकमात्र ऐसा प्रबलतम शस्त्र है, जिसके माध्यम से जीवन के समस्त शत्रुओं को परास्त कर जीवन के महासंग्राम में विजय प्राप्त की जा सकती है और वह भी पूर्णता के साथ। साधना, शक्ति का स्रोत है, जिससे व्यक्ति शारीरिक रूप से तो स्वस्थ और बलवान होता ही है, अपितु मानसिक रूप से भी वह पूर्ण स्वस्थ और बलवान हो जाता है, क्योंकि उसे साधना का बल, ओज और तेजस्विता जो प्राप्त हो जाती है, जो उसे जीवन के हर क्षेत्र में विजयी बनाने में सहायक सिद्ध होती है।

          यदि व्यक्ति के पास साधना का तेज, मन्त्र बल हो तो वह पराजित हो ही नहीं सकता, और यदि उसे उस अद्भुत एवं गोपनीय दुर्गा रहस्य का भली प्रकार से ज्ञान हो तो कोई दूसरी शक्ति ऐसी है ही नहीं, जो उसे परास्त कर सके।

          "दुर्गा रहस्य" से अपने जीवन में आने वाले हर शत्रु को, हर बाधा को, हर अड़चन को हमेशा-हमेशा के लिए दूर किया जा सकता है। फिर किसी टोने-टोटके की या तान्त्रिक प्रयोग की आवश्यकता शेष नहीं रह जाती, फिर उसे हर प्रकार के डर, भय से छुटकारा मिल जाता है, क्योंकि इस दुर्गा रहस्य को जानने के बाद उसे ऐसा महसूस होने लगता है, मानो कोई शक्ति हर क्षण उसके साथ हो और उसकी सहायता कर रही हो। वह अपने आप को सुरक्षित और निर्भय अनुभव करने लगता है, और उस शक्ति के माध्यम से ही उसमें दृढ़ता और विश्वास का जागरण होता है, जिसके फलस्वरूप उसमें शत्रुओं को परास्त करने की क्षमता स्वतः ही आने लगती है। लेकिन यह तभी सम्भव हो सकता है, जब उसे इस रहस्य का पूर्ण ज्ञान हो और इसके प्रति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो।

साधना विधान :-----------

           इसे आप किसी भी नवरात्रि के प्रथम दिवस से आरम्भ कर सकते हैं। यह साधना साधक को रात्रि ९ बजे के बाद ही सम्पन्न करना चाहिए। पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके बैठें। लाल  आसन का प्रयोग करें तथा लाल वस्त्र धारण करें। अपने सामने लाल वस्त्र से बाजोट पर "महादुर्गा यन्त्र" अथवा माँ भगवती दुर्गा का सुन्दर चित्र स्थापित करें। समस्त पूजन सामग्री को अपने पास रख लें।

          इस प्रयोग से पूर्व गुरु पूजन एवं पाँच माला गुरुमन्त्र जाप अनिवार्य है, क्योंकि समस्त साधनाओं के एकमात्र सूत्रधार गुरु ही हैं, जो प्रत्येक साधना में सफलता देते हैं।

          इसके पश्चात सामान्य गणपति पूजन और भैरव पूजन अवश्य करें और उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          इसके बाद साधना के प्रथम दिवस साधक को संकल्प अवश्य लेना चाहिए। इसके लिए साधक हाथ में जल लेकर अपने नाम व गोत्र का उच्चारण कर संकल्प ले कि मैं आज से दुर्गा रहस्य साधना का अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हूँ। मैं नित्य ९ दिनों तक श्रीदुर्गाआपदुद्धारक स्तोत्र के ११२ पाठ करूँगा। माँ! मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे इस स्तोत्र की सिद्धि प्रदान करे और मेरे ज्ञात-अज्ञात समस्त शत्रुओं का शीघ्र संहार हो।

         ऐसा कहकर जल को भूमि पर छोड़ दें।

         इसके बाद यन्त्र अथवा चित्र का कुमकुम, अक्षत व गुलाब की पँखुड़ियों से सामान्य पूजन करें। शुद्ध घी का हलवा बनाकर माँ भगवती दुर्गा को भोग लगाएं। पूरे साधना काल में घी का दीपक जलते रहना चाहिए।          

          फिर दोनों हाथ जोड़कर माँ भगवती दुर्गा का ध्यान करें -----

ॐ कालाभ्रामां कटाक्षैररिकुलभयदां मौलिबद्धेन्दुरेखाम्,
शङ्खं चक्रं कृपाणं त्रिशिखमपि करैरुद्वहन्तीं त्रिनेत्राम्।
सिंहस्कन्धाधिरूढां त्रिभुवनमखिलं तेजसा पूरयन्तीम्,
ध्यायेद् दुर्गां जयाख्यां त्रिदशपरिवृतां सेवितां सिद्धिकामैः॥
ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
 शरण्य त्र्यम्बके गौरि नारायणी नमोऽस्तुते॥

          इसके बाद साधक को चाहिए कि वह निम्न मन्त्र का १०८ बार जाप करे -----

॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय-ज्वालय ज्वल-ज्वल प्रज्वल-प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥

         अब निम्न स्तोत्र का ११२ बार पाठ करें, जो समस्त शत्रुओं का संहार करके साधक की मनोकामना को पूर्ण करता है -----

॥ श्रीदुर्गाआपदुद्धारक स्तोत्रम् ॥

नमस्ते शरण्ये शिवे सानुकम्पे नमस्ते जगद्व्यापिके विश्वरूपे।
नमस्ते जगद्वन्द्यपादारविन्दे नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥१॥
नमस्ते जगच्चिन्त्यमानस्वरूपे नमस्ते महायोगिविज्ञानरूपे।
नमस्ते नमस्ते सदानन्द रूपे नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥२॥
अनाथस्य दीनस्य तृष्णातुरस्य भयार्तस्य भीतस्य बद्धस्य जन्तोः।
त्वमेका गतिर्देवि निस्तारकर्त्री नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥३॥
अरण्ये रणे दारुणे शुत्रुमध्ये जले सङ्कटे राजगेहे प्रवाते।
त्वमेका गतिर्देवि निस्तार हेतुर्नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥४॥
अपारे महदुस्तरेऽत्यन्तघोरे विपत् सागरे मज्जतां देहभाजाम्।
त्वमेका गतिर्देवि निस्तारनौका नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥५॥
नमश्चण्डिके चण्डोर्दण्डलीलासमुत्खण्डिता खण्डलाशेषशत्रोः।
त्वमेका गतिर्विघ्नसन्दोहहर्त्री नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥६॥
त्वमेका सदाराधिता सत्यवादिन्यनेकाखिला क्रोधना क्रोधनिष्ठा।
इडा पिङ्गला त्वं सुषुम्ना च नाडी  नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥७॥
नमो देवि दुर्गे शिवे भीमनादे सदासर्वसिद्धिप्रदातृस्वरूपे।
विभूतिः सतां कालरात्रिस्वरूपे नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे॥८॥
शरणमसि सुराणां सिद्धविद्याधराणां मुनिमनुजपशूनां दस्यभिस्त्रासितानाम्।
नृपतिगृहगतानां व्याधिभिः पीडितानां त्वमसि शरणमेका देवि दुर्गे प्रसीद॥९॥

॥ फलश्रुति ॥
इदं स्तोत्रं मया प्रोक्तमापदुद्धारहेतुकम्।
त्रिसन्ध्यमेकसन्ध्यं वा पठनाद्धोरसङ्कटात्॥१०॥
मुच्यते नात्र सन्देहो भुवि स्वर्गे रसातले।
सर्वं वा श्लोकमेकं वा यः पठेद्भक्तिमान् सदा॥११॥
स सर्व दुष्कृतं त्यक्त्वा प्राप्नोति परमं पदम्।
पठनादस्य देवेशि किं न सिद्ध्यति भूतले॥१२॥
स्तवराजमिदं देवि सङ्क्षेपात्कथितं मया॥१३॥

                  ११२ पाठ के उपरान्त पुनः उपरोक्त मन्त्र १०८ जाप करें -----

॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय-ज्वालय ज्वल-ज्वल प्रज्वल-प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥

                 मन्त्र जाप के बाद एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समस्त जाप समर्पित कर दें। इस प्रकार नित्य नौ दिनों तक यह प्रयोग करना चाहिए।

        पहले पाठ में मूल स्तोत्र और फलश्रुति दोनों का पाठ करें। बीच के पाठों में मात्र मूल स्तोत्र का पाठ करें और अन्तिम पाठ में पुनः मूल स्तोत्र एवं फलश्रुति दोनों का पाठ करें। इस प्रकार आप १००८ पाठ को नवरात्रि काल के ९ दिनों में सम्पन्न कर सकते हैं।

        इस प्रयोग को करते समय बार-बार आसन से न उठें, क्योंकि शक्ति की उपासना में विघ्न आने की सम्भावना रहती है।

        यदि किसी कारणवश साधक नवरात्रि काल में इस प्रयोग को सम्पन्न नहीं कर पाए तो किसी भी महीने की पूर्णमासी अथवा रविवार के दिन से इस प्रयोग को शुरू किया जा सकता है।

        प्रयोग समाप्ति के बाद यन्त्र को नदी या कुएं में विसर्जित कर दें तथा चित्र को पूजा स्थान में ही रहने दें।

        यह दुर्गा रहस्य निश्चित ही साधक के सौभाग्य को जागृत करने वाला और शत्रु विनाश के लिए पूर्णतया लाभदायक माना जाता है। यह अद्वितीय एवं नवीन प्रयोग है, जो बाण की तरह अचूक है और लक्ष्य सिद्धि के लिए प्रसिद्ध माना गया है।

                 आपकी साधना सफल हो और यह नवरात्रि आपके लिए मंगलमय हो! मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

                 इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।

कोई टिप्पणी नहीं: