दीपावली के अचूक प्रयोग (भाग-१)
पञ्च दिवसीय दीपावली
महापर्व निकट ही है। इसका आरम्भ ५ नवम्बर २०१८ से हो रहा है और इसका समापन ९
नवम्बर २०१८ को होगा। आप सभी को दीपावली महापर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी
हार्दिक शुभकामनाएँ!
दीपावली या दीवाली अर्थात “रोशनी का त्योहार”
शरद ऋतु (उत्तरी गोलार्द्ध) में हर वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन हिन्दू
त्योहार है। दीवाली भारत के सबसे बड़े और प्रभावशाली त्योहारों में से एक है। यह
त्योहार आध्यात्मिक रूप से अन्धकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है।
भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक
और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। “तमसो मा ज्योतिर्गमय” अर्थात् “अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए” यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा
जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप
में मनाते हैं तथा सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है।
माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के
वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से
प्रफुल्लित हो उठा था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए।
कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब
से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं।
यह पर्व अधिकतर ग्रिगेरियन कैलेण्डर के अनुसार अक्टूबर या नवम्बर महीने
में पड़ता है। दीपावली दीपों का त्योहार है। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की
सदा जीत होती है, झूठ का नाश होता है। दीवाली यही
चरितार्थ करती है − असतो माऽ सद्गमय, तमसो माऽ ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह
पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरम्भ हो जाती हैं।
लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य
आरम्भ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता है। लोग दुकानों को भी साफ़ सुथरा कर सजाते
हैं। बाज़ारों में गलियों को भी सुनहरी झण्डियों से सजाया जाता है। दीपावली से
पहले ही घर-मोहल्ले, बाज़ार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे
नज़र आते हैं।
लक्ष्मी का अर्थ हमारे शास्त्रों में केवल मात्र धन से ही सम्बन्धित नहीं
है, अपितु जीवन के विविध आयाम धन-धान्य, गृहस्थ,आरोग्य, शान्ति, पुत्र, पौत्र, शत्रु-विनाश, यश, समृद्धि, प्रतिष्ठा, भवन से भी है। यही कारण है कि
लक्ष्मी को अनेकानेक नामों से सम्बोधित किया गया है और उनके प्रत्येक स्वरूप का
पूजन भी वर्णित किया गया है। दीपावली का पर्व महालक्ष्मी की साधना का पर्व है, इस अवसर पर लक्ष्मी के ही विभिन्न स्वरूपों से सम्बन्धित प्रयोग प्रस्तुत
हैं, जिन्हें सम्पन्न कर आप अवश्य ही लाभ प्राप्त कर
सकेंगे और अपने जीवन की समस्याओं को इन लघु प्रयोगों के माध्यम से समाप्त कर
सकेंगे।
१. लक्ष्मीप्रदाता गणपति प्रयोग
दीपावली की रात्रि को स्थिर लग्न में एक चौकी पर पारद गणेश की प्रतिमा
स्थापित करे। तत्पश्चात सर्वप्रथम पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का ध्यान करके गुरुमन्त्र
की चार माला जाप करे। फिर सद्गुरुदेवजी से लक्ष्मीप्रदाता गणपति प्रयोग सम्पन्न
करने हेतु मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लेकर उनसे साधना की सफलता के लिए प्रार्थना
करे।
उसके बाद गणेश प्रतिमा का यथा विधि पूजन करें और भोग में मोदक (लड्डू)
अर्पण करे। तदुपरान्त भगवान गणपतिजी का ध्यान करके निम्नलिखित लक्ष्मीप्रदाता
गणपति स्तोत्र के १०८ पाठ सम्पन्न करे -------
॥
लक्ष्मीप्रदाता गणपति स्तोत्र ॥
ॐ नमो
विघ्नराजाय सर्वसौख्यप्रदायिने।
दुष्टारिष्टविनाशाय पराय
परमात्मने॥
लम्बोदरं महावीर्यं
नागयज्ञोपशोभितम्।
अर्धचन्द्रधरं देवं
विघ्नव्यूहविनाशनम्॥
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं
ह्रौं ह्रः हेरम्बाय नमो नमः।
सर्वसिद्धिप्रदोऽसि त्वं
सिद्धिबुद्धि प्रदो भव॥
चिन्तितार्थप्रदस्त्वं हि सततं
मोदकप्रिय :।
सिन्दूरारूणवस्त्रैश्च पूजितो वरदायकः॥
॥
फलश्रुति ॥
इदं गणपतिस्तोत्रं यः पठेद भक्तिमान नरः।
तस्य देहं च गेहं च स्वयं लक्ष्मीर्न मुञ्चति॥
१०८ स्तोत्र पाठ के पश्चात एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समस्त स्तोत्र जाप
समर्पित कर दें।
अन्त में विघ्न नाशक गणनायक से अपनी आर्थिक मनोकामना की पूर्ति के लिए
प्रार्थना करें। १०८ पाठ के पश्चात प्रत्येक दिन प्रातः काल इस स्तोत्र का ५ बार
पाठ करते रहे। इस स्तोत्र का पाठ करने से घर में
धन-धान्य की वृद्धि होती है तथा लक्ष्मी कभी भी उस साधक को एवं उसके घर को छोड़कर
पलायन नहीं करती! यह कथन मिथ्या नहीं है!
इस स्तोत्र का पाठ एक वर्ष तक अर्थात अगली दीपावली तक करते रहे, आपकी आय एवं संचित धन में निश्चय ही वृद्धि होगी। यह मेरा स्व-अनुभूत
प्रयोग है।
२. महालक्ष्मी मन्त्र प्रयोग
मन्त्र
:----------
॥ ॐ ऐं
श्रीं महालक्ष्म्यै कमलधारिण्यै गरुड़वाहिन्यै श्रीं ऐं नमः ॥
OM AYIEM SHREEM
MAHAALAKSHMYEI KAMALDHAARINYEI GARUDVAAHINYEI SHREEM AYIEM NAMAH.
यह मन्त्र अत्यन्त ही श्रेष्ठ मन्त्र है, इस मन्त्र के जप को किसी शुक्रवार से प्रारम्भ करना चाहिए।
सबसे पहले किसी चाँदी अथवा काँसे की थाली में सवा पाव चावल बिछाकर उस पर
नारियल का एक गोला जल से स्नान करा कर रख दें। उस गोले के ऊपर श्वेत चन्दन से “श्रीं” बीज लिखकर गोले की पूजा करें। उस गोले पर
सफेद फूल चढ़ावे और दूध से बने प्रसाद का भोग लगावे।
इसके बाद वह थाली और उसमें रखे हुए चावल यथावत रहने दे और नित्य उसके
सामने १०८ बार उपरोक्त
महालक्ष्मी मन्त्र का जाप करें।
साधक जब तक दिए गए मन्त्र का जाप करे, तब तक घी
का दीपक अवश्य जलते रहना चाहिए। साधक साधना काल में श्वेत वस्त्र धारण करें, श्वेत आसन पर बैठे, “कमलगट्टे
की माला” से जाप करें और एक समय भोजन करें।
यदि साधक अनुष्ठान के रूप में इस मन्त्र का प्रयोग करना चाहे तो
महालक्ष्मी मन्त्र की १२५० मालाएँ अर्थात सवा लाख मन्त्र जाप करें और ४० दिन में
यह अनुष्ठान सम्पन्न कर ले। इसके बाद बादाम से १०८ आहुतियाँ इसी मन्त्र से दे।
इसके बाद किसी ब्राह्मण को भोजन कराकर चावल तथा गोला उसे दान कर दें तथा माला को
नदी में प्रवाहित कर दे।
यदि साधक अनुष्ठान के रूप में इस मन्त्र को नहीं करे तो नित्य एक माला
फेरे और इस प्रकार एक वर्ष पर्यन्त करे। वर्ष के अन्त में किसी एक ब्राह्मण को
भोजन करावे और वह थाली, चावल, गोला आदि उस ब्राह्मण को दान कर दे।
ऐसा करने पर साधक को मनोवांछित लक्ष्मी प्राप्त होती है, व्यापार में उन्नति होने लगती है तथा आर्थिक दृष्टि से पूर्णता और
सम्पन्नता प्राप्त होती है।
यह मन्त्र अत्यन्त श्रेष्ठ और व्यापार वृद्धि में विशेष रूप से सहायक बताया
गया है। दूसरे रूप में इसको “व्यापार लक्ष्मी मन्त्र”
भी कहते हैं। अतः यदि व्यापार नहीं हो रहा हो या व्यापार में बाधाएँ आ रही हो या
व्यापार में आर्थिक उन्नति नहीं हो रही हो तो यह मन्त्र और इसका अनुष्ठान विशेष
रूप से लाभदायक होता है।
३. श्रीयन्त्र साधना प्रयोग
धन प्राप्ति के लिए लक्ष्मी के विभिन्न स्वरूपों की भिन्न-भिन्न रूप से
पूजा-आराधना की जाती है, जिनमें से सर्वाधिक तीव्र एवं
प्रभावी परिणाम श्रीयन्त्र की उपासना से
प्राप्त होता है। श्रीयन्त्र स्वयं लक्ष्मी स्वरूप होता है। जिस घर में अथवा जिस स्थान
पर पूजा घर में श्रीयन्त्र रखा हो तथा नित्य
प्रति उसका पूजन किया जाए तो वहाँ सभी प्रकार के आर्थिक कष्टों का शमन होकर माता
लक्ष्मी की कृपा से सभी प्रकार का धन वैभव प्राप्त होता है।
“श्रीयन्त्र” को
पञ्चामृत से स्नान कराकर लाल वस्त्र अथवा चाँदी की प्लेट में रखना चाहिए। यथाशक्ति
षोडशोपचार अथवा पंचोपचार पूजन करने के पश्चात सुगन्धित धूप-दीप एवं गौ-घृत का दीपक
जलाना चाहिए।
“श्रीयन्त्र” के
सम्मुख आसन पर बैठकर सर्वप्रथम विनियोग करना चाहिए -----
विनियोग
:---------
ॐ अस्य श्रीलक्ष्मी बीजमन्त्रस्य भृगु ऋषिः, निवृच्छन्दः, श्रीलक्ष्मीः देवता मम धनप्राप्तये जपे विनियोग।
विनियोग करने के पश्चात लक्ष्मी की ध्यान स्तुति करनी चाहिए -------
ध्यान
:----------
ॐ आसीना सरसीरुहे स्मितमुखी हस्ताब्जैः बिभ्रती,
दानं पदम्युगामये च वपुषा
सौदामिनी सन्निभा।
मुक्ताहार विराजमान
पृथुलोतुङ्गस्तनोद्भासिनी,
पायाद्वः कमला कटाक्ष
विभवैरानन्दयन्ती हरिम्॥
ध्यान स्तुति के बाद लक्ष्मी के नीचे दिए गए मन्त्र का
कमलगट्टे अथवा स्फटिक माला से ५१ मालाएँ जाप करना चाहिए -------
मन्त्र
:----------
॥ ॐ नमः
कमलवासिन्यै स्वाहा ॥
OM NAMAH
KAMALVAASINYEI SWAAHAA.
मन्त्र जप के पश्चात मिष्ठान्न का भोग लगाकर प्रसाद को कन्याओं को बाँटना
चाहिए। इस प्रकार श्रीयन्त्र का पूजन करना चाहिए तथा दूसरे दिन श्रीयन्त्र को पूजा घर में रख देना चाहिए। प्रतिदिन
ऊपर दिए गए लक्ष्मी मन्त्र की एक माला का जप करने से लक्ष्मी की कृपा अवश्य ही
प्राप्त होती है।
मन्त्र जप हेतु लक्ष्मी के अन्य मन्त्र का प्रयोग भी किया जा सकता है।
प्रतिदिन श्रीयन्त्र के सम्मुख गौ-घृत का दीपक एवं धूप-दीप मन्त्रोच्चार द्वारा
पूजन करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के धन-ऐश्वर्य का सुख सहज ही प्राप्त हो जाता
है।
आपके लिए यह दीपावली महापर्व मंगलमय हो और यह दीपावली आप के जीवन में
धन-धान्य, सुख-समृद्धि, यश
एवं अपार खुशियाँ लेकर आए। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप
सबके लिए ऐसी ही कामना करता हूँ।
इसी कामना के साथ
ॐ नमो आदेश निखिल को
आदेश आदेश आदेश ॥
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