रविवार, 23 सितंबर 2018

पितृ-मुक्ति रसेश्वर प्रयोग

पितृ-मुक्ति रसेश्वर प्रयोग




          कल से श्राद्ध पक्ष शुरू हो रहा है। श्राद्धपक्ष में पितृदोष अथवा कालसर्पदोष के निवारण के लिए उपाय‚ पूजन व साधना की जाए तो शुभ फलों की प्राप्ति होती है तथा कालसर्प दोष अथवा पितृदोष के दुष्प्रभाव में कमी आती है।

          भगवान शिव का ही  एक नाम रसेश्वर  भी है। भारतीय  शास्त्रों  में  रस”  की  धारणा  पारद  से  की  गई है। रसविद्या का बड़ा महत्व माना गया है। “रसचण्डाशुः” नामक ग्रन्थ में कहा गया है –––––

शताश्वमेधेनकृतेन पुण्यं गोकोटिभि: स्वर्णसहस्रदानात।
नृणां भवेत् सूतकदर्शनेन यत्सर्वतीर्थेषु कृताभिषेकात्॥

          अर्थात सौ अश्वमेध यज्ञ करने के बाद, एक करोड़ गाय दान देने के बाद या स्वर्ण की एक हजार मुद्राएँ दान देने के पश्चात् तथा सभी तीर्थों के जल से अभिषेक (स्नान) करने के फलस्वरूप जो–जो पुण्य प्राप्त होता है, वही पुण्य केवल पारद के दर्शन मात्र से होता है।
          इसी तरह –––––

मूर्च्छित्वा हरितं रुजं बन्धनमनुभूय मुक्तिदो भवति।
अमरीकरोति हि मृतः कोऽन्यः करुणाकर: सूतात्॥


        जो मूर्छित होकर रोगों का नाश करता है, बद्ध होकर मनुष्य को मुक्ति प्रदान करता है, और मृत होकर मनुष्य को अमर करता है, ऐसा दयालु पारद के अतिरिक्त अन्य कौन हो सकता है? अर्थात कोई नहीं।

            रसतन्त्र सदा से मनुष्य के लिए आकर्षण का विषय रहा है, क्यूँकि यह एक ऐसा विषय है जो साधक को सब कुछ दे देने में समर्थ है। किन्तु जितनी इस क्षेत्र में  दिव्यता है, उतना ही परिश्रम भी है। रस तन्त्र के साधकों ने समय-समय पर समाज के समक्ष कई साधनाएँ रखी जो कि अपने आप में अद्भूत है।आज भी हम पारद से जुड़ी कई-कई साधनाएँ सम्पन्न करते हैं तथा उसके लाभ को अपने जीवन में अनुभूत करते है। ऐसी कोई साधना नहीं है जो "पारद विज्ञान" से दूर रही हो, चाहे महालक्ष्मी हो या कुबेर प्रयोग हो या स्वर्णाकर्षण साधना ही क्यों न हो? सभी पारद के माध्यम से कई-कई बार सम्पन्न की गई है। जहाँ हम पारद विग्रह के माध्यम से देवी-देवता, इतर योनि आदि को आकर्षित कर प्रसन्न कर सकते हैं, वहीं इन दिव्य विग्रहों पर साधना कर आप पितृदोष से मुक्त होकर पितरों की कृपा के पात्र भी बन सकते हैं।

           प्रश्न उठता है कि क्या यह सम्भव है कि हम पारद शिवलिंग के माध्यम से पितृ शान्ति कर सकें? क्या पारद शिवलिंग के माध्यम से पितरों की कृपा प्राप्त की जा सकती है?

           जी, हाँ! पारद में अद्भूत आकर्षण है, जो शेषनाग को भी अपनी ओर खींच ले। नागकन्याओं  का सम्मोहन कर उन्हें अपने समक्ष आने पर विवश कर दे तो फिर पितृ क्यों आकर्षित नहीं होंगे भला!

          सामान्य रूप से हम पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण आदि का सहारा लेते हैं और यह अत्यन्त प्राचीन विधान भी है, जिसके अन्तर्गत पिण्ड दान, तर पिण्डी आदि भी आती है। उसी प्रकार रसतन्त्र के ज्ञानी हमें पारद के क्षेत्र में भी पितरों के कई-कई विधान प्रदान करते है। उनमें से ही एक साधना है, जिसे रस क्षेत्र में पितृ-मुक्ति रसेश्वर प्रयोग के नाम से जाना जाता है।  यह  तो  नाम से ही ज्ञात होता है कि प्रस्तुत विधान पितरों की मुक्ति से सम्बन्ध रखता है।

                       मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार गति पाता है। उसी अनुसार उसे पुनः गर्भ में भेज दिया जाता है, ताकि वो अपने कर्मों का भोग कर मुक्ति प्राप्त कर सके। परन्तु कभी-कभी कर्म अधिक दूषित होने पर मनुष्य को गर्भ की भी प्राप्ति नहीं होती है और उसे अन्य योनियों में भटकना पड़ता है, जिन्हें हम भूत, प्रेत या पिशाच आदि नामों से जानते हैं। इसके अतिरिक्त यदि मनुष्य इन सबसे बच भी जाए तो उसकी आत्मा ब्रह्माण्ड में अतृप्त रहकर मुक्ति की चाह में विचरण करती रहती है और अपने वंशजों को कष्ट पहुँचाती रहती है।

          ताकि वे इन कष्टों से व्यथित होकर उनकी मुक्ति का उपाय करे। प्रस्तुत साधना आज इसी विषय पर है, जिसके करने मात्र से पितृ मुक्त हो जाते हैं। यदि परिवार का कोई सदस्य किसी अन्य योनि में कष्ट भोग रहा हो तो उसे मुक्ति मिलती है तथा वो सद्गति पाता है। जब पितृ सद्गति को प्राप्त कर लेते हैं तो वंशजों की प्रगति निश्चित है, क्यूँकि अब पितरों की ओर से दी जा रही बाधा सदा-सदा के लिए समाप्त हो जाती है। यह प्रयोग पारद शिवलिंग पर किया जाता है, क्यूँकि साधना के मध्य पारद पितरों का आकर्षण करता है और उन्हें खींचकर साधक के कक्ष तक लाता है। साधना के अन्त में इसी पितृ साधना का समस्त पुण्य लेकर पितृ लोक की ओर विदा लेते हैं तथा मुक्ति के मार्ग की ओर बढ़  जाते हैं। इसके साथ ही साधक को आशीर्वाद देते हैं, जिससे साधक आध्यात्मिक तथा भौतिक दोनों ही सुख प्राप्त करता है।

          भाइयों/बहिनों! साधना को सम्पन्न कर आप अपने पितरों के ऋण से मुक्त होने का प्रयत्न करें, जिन्होंने आपको जन्म दिया है, जिनके कारण आपका अस्तित्व है, उन्हें समस्त कष्टों से मुक्त कर उन्हें सद्गति प्रदान करवाएं। इससे बड़ा उपहार और कोई नहीं होगा जो आप अपने पितरों को दे सकें। सभी साधकों के लिए प्रस्तुत है पितृ-मुक्ति रसेश्वर प्रयोग।




साधना विधान :-----------

          यह प्रयोग आप पितृपक्ष में पूर्णिमा अथवा सोमवार से शुरु कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त इसे किसी भी माह की पूर्णिमा से या सोमवार से आरम्भ किया जा सकता है। इस साधना को प्रातः ४ बजे से ९ बजे के मध्य ही कर सकते है।

          स्नान करने के पश्चात श्वेत वस्त्र धारण कर श्वेत आसन पर दक्षिण की ओर मुख करके बैठ जाए। सामने बाजोट पर श्वेत वस्त्र बिछाकर उस पर ताम्र या स्टील की थाली रखे। अब इस थाली में काले तिल और सफ़ेद तिल मिलाकर  एक ढेरी बना दे। अब पारद शिवलिंग को पहले दूध तथा फिर जल से स्नान कराकर स्वच्छ वस्त्र से पोंछकर इस ढेरी पर स्थापित कर दे।

          इसके बाद सद्गुरुदेवजी तथा गणपतिजी का सामान्य पूजन कर गुरुमन्त्र की चार माला तथा गणपति मन्त्र की एक माला जाप करे। तत्पश्चात सद्गुरुदेवजी से पितृ-मुक्ति रसेश्वर प्रयोग सम्पन्न करने हेतु मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लेकर उनसे साधना की सफलता के लिए प्रार्थना करे।

          तदुपरान्त साधक को साधना के पहले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए। इसके लिए हाथ में जल लेकर संकल्प करे कि मैं यह पितृ-मुक्ति रसेश्वर प्रयोग अपने पितरों की शान्ति तथा उनकी मुक्ति हेतु कर रहा हूँ तथा पितृ-दोष से मुक्ति एवं पितृ-शान्ति के लिए कर रहा हूँ। भगवान पारदेश्वर मेरी मनोकामना को पूर्ण करे तथा मुझे साधना में सफलता प्रदान करे।

           और हाथ के जल जमीन पर छोड़ दे।

          इसके बाद भगवान पारदेश्वर का सामान्य पूजन करे तथा शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करे। भोग में केसर मिश्रित खीर भगवान पारदेश्वर को अर्पित करे।

          अब नीचे कुछ मन्त्र दिए जा रहे हैं, सभी का आपको १०८ बार उच्चारण करना है और जिस मन्त्र के आगे जो सामग्री लिखी गई है वो सामग्री पारदेश्वर शिवलिंग पर अर्पित करना है। अर्थात एक बार मन्त्र पढ़ना है और सामग्री अर्पित करना है। इसी प्रकार हर मन्त्र को १०८ बार पढ़कर सामग्री अर्पण करते जाना है।

ॐ भूत मुक्तेश्वराय नमः।      (काले तिल)
ॐ प्रेत मुक्तेश्वराय नमः।      (सफ़ेद तिल)
ॐ पिशाच मुक्तेश्वराय नमः।        (जौ)
ॐ श्मशानेश्वराय नमः।        (गाय के कण्डे या लकड़ी से बनी भस्म)
ॐ सर्व मुक्तेश्वराय नमः।       (सफ़ेद तथा काले तिल का मिश्रण)
ॐ पितृ मुक्तेश्वराय नमः।      (सफ़ेद तिल, काले तिल तथा जौ का मिश्रण)
  रसेश्वराय नमः।            (दूध मिश्रित जल को पुष्प से छीटें)

          इसके बाद साधक को रुद्राक्ष माला से निम्न मन्त्र की ७ माला जाप करना चाहिए -----

मन्त्र :-----------

।। ॐ हरिहर पितृ-मुक्तेश्वर पारदेश्वराय नमः ।।

OM HARIHAR PITRI-MUKTESHWAR PAARADESHWARAAY NAMAH.

          प्रत्येक माला की समाप्ति के बाद साधक को थोड़े अक्षत लेकर पारदेश्वर पर अर्पण कर देना चाहिए।

          जब मन्त्र जाप पूर्ण हो जाए, तब सम्पूर्ण पूजन एवं जाप एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर भगवान् शिव को अर्पित कर दे तथा उनसे पितृ-शान्ति, पितृ-मुक्ति तथा पितृ-दोष निवारण की प्रार्थना करे।

          भोग की खीर नित्य गाय को खिला दे तथा साधना के बाद पुनः स्नान करे। इसी प्रकार यह साधना को ३ दिन करे।

          साधना समाप्ति के बाद पारदेश्वर को स्नान कराकर पूजा घर में ही स्थापित कर दे तथा समस्त समग्री जो पात्र में एकत्रित हुई है, उन्हें बाजोट पर बिछे वस्त्र में बाँधकर किसी पीपल वृक्ष के नीचे गाड़ दे। यदि यह सम्भव न हो तो वृक्ष के नीचे रख आए, परन्तु प्रयत्न यही करे कि सारी सामग्री गाड़ दी जाए। इस प्रकार यह दिव्य विधान पूर्ण होता है।

            निःसन्देह इस साधना से साधक के सभी पितृ इस प्रयोग से तृप्त होकर साधक को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। पितृ-दोष का नाश होता है, पितृ-शान्ति हो जाती है तथा पितरों को सद्गति प्राप्त होती है। कुपित हुए पितृ शान्त होकर साधक को आर्थिक, दैहिक तथा मानसिक बल प्रदान कर सुखी करते है।

          साधक भाइयों! प्रयोग को स्वयं सम्पन्न कर अनुभव करे तथा अपने पितरों के प्रति अपने कर्त्तव्य का पालन करे।

                     आपको साधना में सफलता प्राप्त हो तथा भगवान पारदेश्वर आपके पितरों को शान्ति प्रदान करे!

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।



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