रविवार, 28 अक्तूबर 2018

दीपावली के अचूक प्रयोग (भाग-२)


दीपावली के अचूक प्रयोग (भाग-२)

          पञ्च दिवसीय दीपावली महापर्व निकट ही है। इसका आरम्भ ५ नवम्बर २०१८ से हो रहा है और इसका समापन ९ नवम्बर २०१८ को होगा। आप सभी को दीपावली महापर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          दीवालीजिसे दीपावली के नाम से भी जाना जाता हैसाल का सबसे प्रसिद्ध त्योहार है। दीवाली उत्सव धनतेरस से शुरू होता है और भैया दूज पर समाप्त होता है। अधिकतर प्रान्तों में दीवाली की अवधि पाँच दिनों की होती हैजबकि महाराष्ट्र में दीवाली उत्सव एक दिन पहले गोवत्स द्वादशी के दिन शुरू हो जाता है।

          इन पाँच दिनों के दीवाली उत्सव में विभिन्न अनुष्ठानों का पालन किया जाता है और देवी लक्ष्मी के साथ-साथ कई अन्य देवी देवताओं की पूजा की जाती है। हालाँकि दीवाली पूजा के दौरान देवी लक्ष्मी सबसे महत्वपूर्ण देवी होती हैं। पाँच दिनों के दीवाली उत्सव में अमावस्या का दिन सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है और इसे लक्ष्मी पूजालक्ष्मी-गणेश पूजा और दीवाली पूजा के नाम से जाना जाता है।

          दीवाली पूजा केवल परिवारों में ही नहींबल्कि कार्यालयों में भी की जाती है। पारम्परिक हिन्दु व्यवसायियों के लिए दीवाली पूजा का दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है। इस दिन स्याही की बोतलकलम और नये बही-खातों की पूजा की जाती है। दवात और लेखनी पर देवी महाकाली की पूजा कर दवात और लेखनी को पवित्र किया जाता है और नये बही-खातों पर देवी सरस्वती की पूजा कर बही-खातों को भी पवित्र किया जाता है।

          दीवाली के दिन लक्ष्मी पूजा करने के लिए सबसे शुभ समय सूर्यास्त के बाद का होता है। सूर्यास्त के बाद के समय को प्रदोष कहा जाता है। प्रदोष के समय व्याप्त अमावस्या तिथि दीवाली पूजा के लिए विशेष महत्वपूर्ण होती है। अतः दीवाली पूजा का दिन अमावस्या और प्रदोष के इस योग पर ही निर्धारित किया जाता है। इसलिए प्रदोष काल का मुहूर्त लक्ष्मी पूजा के लिए सर्वश्रेस्ठ होता है और यदि यह मुहूर्त एक घटी के लिए भी उपलब्ध हो तो भी इसे पूजा के लिए प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

          ४. पारद लक्ष्मी प्रयोग

          कोई भी व्यक्ति कभी दुर्भाग्यशाली नहीं होता है। सारा खेल समय का है। फिर भी यदि आपके मन में यह बात घर कर गई है कि आप दुर्भाग्यशाली हैं तो आप दीपावली की रात्रि में अपने घर में पारद की माँ लक्ष्मी की मूर्ति को स्थान दें।

          सर्वप्रथम आप किसी पाटे (बाजोट) पर लाल रेशमी वस्त्र बिछाकर उस पर हल्दी से रँगे पीले चावलों से “स्वस्तिक” बनाएं। स्वस्तिक के ऊपर ताँबे की प्लेट में हल्दी से ही “श्रीं” लिखकर गुलाब पुष्प की पँखुड़ियों पर माँ पारदेश्वरी लक्ष्मी को स्थान दें तथा दीपावली की रात्रि से लेकर लगातार ४० दिन तक ११ माला नित्य निम्न मन्त्र का जाप करें -----

मन्त्र :----------

॥ ॐ ऐं ऐं श्रीं श्रीं ह्रीं ह्रीं पारदेश्वरी सिद्धि ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं ऐं ऐं ॐ ॥

OM AYEIM AYEIM SHREEM SHREEM HREEM HREEM PAARDESHWARI SIDDHI HREEM HREEM SHREEM SHREEM AYEIM AYEIM OM.

           ४० वें दिन किसी सुहागिन को भोजन कराएं और यथाशक्ति दक्षिणा आदि भेंट देकर सन्तुष्ट करें।

          पारदेश्वरी महालक्ष्मी अपने उपासकों को धनऐश्वर्यभूमिमान-सम्मान, पुत्र, बन्धु-बान्धवआयु एवं बुद्धि प्रदान करती है। वह स्वयं शक्ति स्वरूपा है।

           इस उपाय से आपके मन का सारा शक निकल जाएगा तथा आप स्वयं ही स्वीकार करेंगे कि आप से बड़ा कोई भाग्यशाली नहीं है।

          ५. मोती शंख प्रयोग

          मोती शंख भी सामान्य शंख जैसा ही होता हैपरन्तु इसमें चमक मोती जैसी होती है। इसीलिए इसको मोती शंख कहा जाता है।

          दीपावली की रात्रि में दीपावली पूजन के साथ ही  मोती शंख और एक चाँदी के सिक्के का भी पूजन करें। जब दीपावली पूजन के बाद सभी लोग पूजास्थल से हट जाएं तो आप  मोती शंख को उठाकर माँ भगवती लक्ष्मी से अपनी सम्पन्नता का निवेदन करते हुए शंख को अपने माथे से लगाकर उसमें चाँदी का सिक्का रख दें और “श्रीदक्षिणलक्ष्मी स्तोत्र” का ५१ बार पाठ करें -------

ॐ त्रैलोक्य पूजिते देवि कमले विष्णुवल्लभे।

   यथा त्वमचला कृष्णे तथा भव मयि स्थिरा॥

   कमला चञ्चला लक्ष्मीश्चला भूतिर्हरिप्रिया।

   पद्मा पद्मालया सम्पदुच्चैः श्रीपद्मधारिणी॥

   द्वादशैतानि नामानि लक्ष्मीं सम्पूज्य यः पठेत्।

   स्थिरा लक्ष्मीः भवेतस्य पुत्रदारादिभिः सह॥

          फिर निम्न मन्त्र का १०८ बार जाप करें -------

मन्त्र :---------------

॥ ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः ॐ ॥

OM SHREEM HREEM SHREEM KAMALE KAMALAALAYE PRASEED-PRASEED SHREEM HREEM SHREEM MAHAALAKSHMYEI NAMAH OM.

          प्रत्येक मन्त्र जाप के साथ ही मोती शंख में एक चावल का दाना डालते जाएं। इसमें यह ध्यान रखें कि चावल का दाना साबुत होखण्डित न हो।

          जब मन्त्र जाप पूर्ण हो जाए तो शंख को लाल वस्त्र में लपेटकर पूजास्थल में ही रख दें। अगले दिन सांध्यकाल में फिर माँ भगवती लक्ष्मी की पूजनकर यही प्रक्रिया अपनाएं। यह प्रक्रिया तब तक चलेगीजब तक मोती शंख चावलों से भर न जाए।

          जिस दिन शंख चावलों से भर जाएउस दिन उसे उसी लाल वस्त्र में बाँधकर पुनः श्रीलक्ष्मी स्तोत्र  का  ५१ बार पाठ करके अपने धन रखने के स्थान पर रख दें। फिर २१ दिन तक नित्य अगरबत्ती अवश्य दिखाएं।

          इस प्रयोग से आपको माँ भगवती लक्ष्मी की कृपा तो अवश्य प्राप्त होगीसाथ ही आपका निवास वास्तुदोष से भी मुक्त रहेगा।

          ६. कनकधारा प्रयोग

          अब श्री कनकधारा यन्त्र से सम्बन्धित एक प्रयोग प्रस्तुत किया जा रहा है। आर्थिक समृद्धि के लिए यह यन्त्र बहुत अधिक शक्तिशाली है। इसकी स्थापना का तरीका भी बहुत ही सामान्य रूप से बताया जा रहा है।

          दीपावली की रात्रि में आप पूजन के समय श्री कनकधारा यन्त्र को पंचतत्व (दूधदहीघीशहद और शक्कर) से स्नान करवाकर उसका भी पूजन करें। फिर लाल वस्त्र पर चावल की ढेरी बनाकर उस पर इस यन्त्र को स्थापित करें। यन्त्र को कुमकुम से तिलक करके दीपधूप और नैवेद्य अर्पित करें। इसके साथ ही २१ आँवले समर्पित करें। आँवले सूखे अथवा हरेकैसे भी हो सकते हैं।

          इसके बाद आप रुद्राक्ष अथवा कमलगट्टे की माला से निम्न मन्त्र का ११ माला जाप करें -------

मन्त्र :-----------

॥ ॐ ह्रीं श्रीं कनकधारायै श्रीं ह्रीं नमः ॥

OM HREEM SHREEM KANAKDHAARAAYEI SHREEM HREEM NAMAH.

           तत्पश्चात श्रीकनकधारा स्तोत्र” के ११ पाठ सम्पन्न करें -------

॥ श्रीकनकधारा स्तोत्रम् ॥

ॐ अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम्।

अङ्गीकृताऽखिल विभूतिरपाङ्गलीला माङ्गल्यदाऽस्तु मम मङ्गलदेवतायाः॥१॥

मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गताऽगतानि।

माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः॥२॥

विश्वामरेन्द्रपद विभ्रमदानदक्षम् आनन्द हेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि।

ईषन् निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धं इन्दीवरोदर सहोदरं इन्दिरायाः॥३॥

आमीलिताक्षं अधिगम्य मुदा मुकुन्दं आनन्दकन्दं अनिमेषं अनङ्गतन्त्रम्।

आकेकरस्थित कनीनिकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः॥४॥

बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।

कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला कल्याणं आवहतु मे कमलालयायाः॥५॥

कालाम्बुदालि ललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव।

मातुः समस्त जगतां महनीयमूर्तिर्भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः॥६॥

प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान् माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन्।

मय्यापतेत् तदिह मन्थर मीक्षणार्धं मन्दालसञ्च मकरालय कन्यकायाः॥७॥

दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारां अस्मिन्नकिञ्चन विहङ्ग शिशौ विषण्णे।

दुष्कर्म-घर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयन अम्बुवाहः॥८॥

इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते।

दृष्टिः प्रहृष्ट कमलोदर दीप्तिरिष्टां पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टरायाः॥९॥

गीर्देवतेति गरुडध्वज सुन्दरीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।

सृष्टि-स्थिति-प्रलय-केलिषु संस्थितायै तस्यै नमस्त्रिभुवनैक गुरोस्तरुण्यै॥१०॥

श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्म-फलप्रसूत्यै रत्यै नमोऽस्तु रमणीय गुणार्णवायै।

शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्र निकेतनायै पुष्टयै नमोऽस्तु पुरुषोत्तम वल्लभायै॥११॥

नमोऽस्तु नालीक निभाननायै नमोऽस्तु दुग्धोदधि जन्म भूत्यै।

नमोऽस्तु सोमामृत सोदरायै नमोऽस्तु नारायण वल्लभायै॥१२॥

नमोऽस्तु हेमाम्बुज पीठिकायै नमोऽस्तु भूमण्डल नायिकायै।

नमोऽस्तु देवादिदयापरायै नमोऽस्तु शार्ङ्गायुध वल्लभायै॥१३॥

नमोऽस्तु देव्यै भृगुनन्दनायै नमोऽस्तु विष्णोरुरस स्थितायै।

नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायै नमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै॥१४॥

नमोऽस्तु कान्त्यै कमलेक्षणायै नमोऽस्तु भूत् भुवनप्रसूत्यै।

नमोऽस्तु देवादिभिरर्चितायै नमोऽस्तु नन्दात्मज वल्लभायै॥१५॥

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रिय नन्दनानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरुहाक्षि।

त्वद् वन्दनानि दुरिताहरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु मान्ये॥१६॥

यत्कटाक्ष समुपासनाविधिः सेवकस्य सकलार्थ सम्पदः।

सन्तनोति वचनाऽङ्ग मानसैस्त्वां मुरारि हृदयेश्वरीं भजे॥१७॥

सरसिज निलये सरोजहस्ते धवलतमांशुक गन्ध माल्यशोभे।

भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवन भूतिकरि प्रसीद मह्यम्॥१८॥

दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखाव सृष्टस्वर्वाहिनी विमलचारु जलप्लुताङ्गीम्।

प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणीं अमृताब्धि पुत्रीम्॥१९॥

कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूर तरंगि तैरपाङ्गैः।

अवलोकय माम् अकिञ्चनानां प्रथमं पात्रं अकृत्रिमं दयायाः॥२०॥

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।

गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते भुवि बुध भाविताशयाः॥२१॥

॥ श्रीभगवत्पादशङ्कराचार्यविरचितं श्रीकनकधारा स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥

         इसके बाद दूसरे दिन से नित्य २१ दिनों तक एक माला मन्त्र जाप एवं एक पाठ कनकधारा स्तोत्र का करते रहें। फिर आप इसका चमत्कार देखें।

          इस यन्त्र की एक विशेषता होती है कि इस यन्त्र पर जितने अधिक लोगों की दृष्टि पड़ती हैयह उतना ही अधिक प्रभावी फल देता है।

          आपके लिए यह दीपावली महापर्व मंगलमय हो और यह दीपावली आप के जीवन में धन-धान्यसुख-समृद्धियश एवं अपार खुशियाँ लेकर आए। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए ऐसी ही कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ॥

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