शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

भुवनेश्वरी साधना प्रयोग

भुवनेश्वरी साधना प्रयोग


               माँ भगवती भुवनेश्वरी जयन्ती निकट ही है। यह २१ सितम्बर २०१८ को आ रही है। आप सभी को भुवनेश्वरी जयन्ती की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

               पृथ्वी लोक पर शायद ही ऐसा कोई साधक होगा, जो भगवती के इस स्वरूप से परिचित न हो। दस महाशक्ति अर्थात महाविद्याओं में भुवनेश्वरी महाविद्या का अत्यन्त ही विशिष्ट स्थान है। भगवती के नाम के विविध अर्थ ही उनकी शक्ति और सामर्थ्य के बारे में संकेत कर ही देते हैं, लेकिन फिर भी उनकी कृपा दृष्टि साधक के जीवन में कितना आनन्द प्रदान कर सकती है, इसकी कोई सीमा ही नहीं है। अनन्त सम्भावनाओं के रास्ते खोल देती है भगवती भुवनेश्वरी की साधना-उपासना।

                सम्पूर्ण जगत या तीनों लोकों की ईश्वरी देवी भुवनेश्वरी नाम की महा-शक्ति हैं तथा महाविद्याओं में इन्हें चौथा स्थान प्राप्त हैं। अपने नाम के अनुसार देवी त्रि-भुवन या तीनों लोकों के ईश्वरी या स्वामिनी हैं, देवी साक्षात सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को धारण करती हैं। सम्पूर्ण जगत के पालन पोषण का दायित्व इन्हीं  भुवनेश्वरी देवी  पर हैं, परिणामस्वरूप ये जगन्-माता तथा जगत-धात्री के नाम से भी विख्यात हैं।

          पंच तत्व अर्थात १. आकाश, २. वायु ३. पृथ्वी ४. अग्नि और  ५. जल, जिनसे इस सम्पूर्ण चराचर जगत के प्रत्येक जीवित तथा अजीवित तत्व का निर्माण होता हैं, वह सब इन्हीं देवी की शक्तियों द्वारा संचालित होता हैं। पञ्च तत्वों को इन्हीं, देवी भुवनेश्वरी ने निर्मित किया हैं, देवी की इच्छानुसार ही चराचर ब्रह्माण्ड (तीनों लोकों) के समस्त तत्वों का निर्माण होता हैं। प्रकृति से सम्बन्धित होने के कारण देवी की तुलना मूल प्रकृति से भी की जाती हैं।

          आद्या शक्ति, भुवनेश्वरी स्वरूप में भगवान शिव के समस्त लीला विलास की सहचरी हैं, सखी हैं। देवी नियन्त्रक भी हैं तथा भूल करने वालों के लिए दण्ड का विधान भी तय करती हैं, इनके भुजा में व्याप्त अंकुश, नियन्त्रक का प्रतीक हैं। जो विश्व को वमन करने हेतु वामा, शिवमय होने से ज्येष्ठा तथा कर्म नियन्त्रक, जीवों को दण्डित करने के कारण रौद्री, प्रकृति का निरूपण करने से मूल-प्रकृति कही जाती हैं। भगवान शिव के वाम भाग को देवी भुवनेश्वरी के रूप में जाना जाता हैं तथा सदाशिव के सर्वेश्वर होने की योग्यता इन्हीं के संग होने से प्राप्त हैं।

          भुवनेश्वरी नाम का अर्थ ही है ब्रह्माण्ड की अधिष्ठात्री। जो ब्रह्माण्ड की अधिष्ठात्री स्वयं है, वह अपने साधक को भला क्या प्रदान नहीं कर सकती है? अगर साधक पूर्ण श्रद्धा और समर्पण के साथ भगवती की साधना करता है तो निश्चय ही उसे अनुकूलता की प्राप्ति होती है। भले ही वह आध्यात्मिक क्षेत्र हो या भौतिक क्षेत्र, भगवती साधक को दोनों ही क्षेत्रों में उन्नति का आशीर्वाद प्रदान करती है।

          देवी की साधना उपासना जीवन को सुखमय बनाने के लिए, ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए तथा आध्यात्मिक उन्नति के लिए आदिकाल होती आई है। इस रहस्यमय शक्ति स्वरूप से सम्बन्धित कई गुप्त प्रयोग एवं प्रक्रियाएँ हैं, जिसके सम्बन्ध में विवरण प्राप्त नहीं होता है। लेकिन सहज रूप से इनके कल्याणमय स्वरूप की साधना उपासना तथा इनके विश्वविख्यात बीज मन्त्र "ह्रीं" के कारण साधकों के मध्य यह प्रिय रही है।

          भगवती से सम्बन्धित कई प्रकार के त्रि-बीज प्रयोग है, जिनमें तीन बीज मन्त्र होते हैं। इनसे सम्बन्धित विविध मन्त्र विविध फल प्रदान करते है। भगवती के विविध त्रि-बीज मन्त्रों में से एक मन्त्र कम प्रचलन में रहा है, लेकिन यह मन्त्र साधक को कई प्रकार के फलों की प्राप्ति करा सकने में समर्थ है। इस गूढ़ मन्त्र का विस्तार अनन्त है तथा इसकी व्याख्या करना असम्भव कार्य ही है। भले ही यह अति सामान्य-सा मन्त्र दिखे, लेकिन यह त्रि-शक्ति अर्थात ज्ञान, इच्छा एवं क्रिया में आ रही न्यूनता को तीव्र रूप से दूर करने में समर्थ है, जिसका अनुभव साधक प्रयोग के माध्यम से कर सकता है।

          एक तरफ यह प्रयोग करने पर साधक के आन्तरिक पक्ष में बदलाव आता है, साधक के नकारात्मक विचार हटकर सकारात्मक विचारों की प्राप्ति होती है तथा आत्मविश्वास का विकास होता है। साथ ही साथ, बाह्य रूप से साधक के जीवन की न्यूनताओं का क्षय होता है। मुख्य रूप से साधक को ऐश्वर्य प्राप्ति में आने वाली बाधाओं का निराकरण होता है। साथ ही साथ साधक को घर-मकान से सम्बन्धित कोई समस्या हो तो उसका समाधान प्राप्त होता है। इस दृष्टि से यह प्रयोग अति उत्तम है, क्योंकि यह साधक के आन्तरिक तथा बाह्य रूप में आध्यात्मिक एवं भौतिक दोनों ही पक्षों में लाभ प्रदान करता है।

साधना विधान :-----------

          इस साधना प्रयोग को साधक भुवनेश्वरी जयन्ती की रात्रि में सम्पन्न करे। यदि यह सम्भव न हो तो साधक इसे किसी भी माह के शुक्लपक्ष के रविवार की रात्रि में कर सकता है। समय रात्रि ९ बजे के बाद का रहे।

          रात्रि में स्नान आदि से निवृत होकर साधक लाल वस्त्रों को धारण करे तथा लाल आसन पर उत्तर की तरफ मुख करके बैठ जाए। अपने सामने साधक एक बाजोट रखकर उसपर लाल वस्त्र बिछाए। फिर किसी पात्र में कुमकुम से ह्रीं बीजमन्त्र लिखकर उसके ऊपर साधक एक हकीक पत्थर रख दे। इसके अलावा अगर सम्भव हो तो बाजोट पर साधक को भगवती भुवनेश्वरी का यन्त्र या चित्र भी स्थापित कर देना चाहिए।

          इसके बाद साधक सामान्य गुरुपूजन करके गुरुमन्त्र का जाप करे और मानसिक रूप से गुरु-आज्ञा लेकर उनसे साधना की सफलता के लिए निवेदन करे।

          फिर संक्षिप्त गणेशपूजन सम्पन्न करे तथा किसी गणेश मन्त्र का जाप कर उनसे साधना की निर्विघ्न पूर्णता के लिए प्रार्थना करे।

          इसके बाद साधक को संकल्प अवश्य लेना चाहिए। फिर उस हकीक पत्थर पर ही माँ भगवती भुवनेश्वरी का सामान्य पूजन सम्पन्न करे और कोई भी मिठाई भोग में अर्पण करे। इसके बाद साधक निम्नानुसार न्यास सम्पन्न करे -----

कर-न्यास :----------

ॐ ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः।            (दोनों तर्जनी उंगलियों से दोनों अँगूठे को स्पर्श करें)
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः।             (दोनों अँगूठों से दोनों तर्जनी उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः।             (दोनों अँगूठों से दोनों मध्यमा उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः।         (दोनों अँगूठों से दोनों अनामिका उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ ह्रौं  कनिष्ठिकाभ्यां नमः।       (दोनों अँगूठों से दोनों कनिष्ठिका उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।   (परस्पर दोनों हाथों को स्पर्श करें)

अङ्ग-न्यास :----------

ॐ ह्रां हृदयाय नमः।           (हृदय को स्पर्श करें)
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा।           (सिर को स्पर्श करें)
ॐ ह्रूं शिखायै वषट्।            (शिखा को स्पर्श करें)
ॐ ह्रैं कवचाय हुम्।             (भुजाओं को स्पर्श करें)
ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्।        (नेत्रों को स्पर्श करें)
ॐ ह्रः अस्त्राय फट्।            (सिर से घूमाकर तीन बार ताली बजाएं)

          तत्पश्चात साधक हाथ जोड़कर माँ भगवती भुवनेश्वरी का निम्नानुसार ध्यान करे -----

ॐ उद्यदिनद्युतिमिन्दुकिरीटां तुङ्गकुचां नयनत्रययुक्ताम्।
       स्मेरमुखीं वरदाङ्कुशपाशाभीतिकरां प्रभजे भुवनेशीम् ।।

          इसके बाद साधक निम्न मन्त्र की १०१ माला उसी रात्रि में जाप कर ले -----

मन्त्र :-----------

                 ।। ॐ ह्रीं क्रों ।।

                                  OM HREEM KROM.

          इस मन्त्र में मात्र तीन बीज है, अतः १०१ माला जाप में ज्यादा समय नहीं लगता है। यह जाप मूँगामाला, शक्ति माला या लाल हकीक माला से करे।

          जाप समाप्ति के बाद साधक एक आचमनी जल भूमि पर छोड़कर समस्त जाप माँ भगवती भुवनेश्वरी देवी को ही समर्पित कर दे तथा आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करे।

          साधक को माला का विसर्जन नहीं करना है, यह माला आगे भी भुवनेश्वरी साधना के लिए उपयोग में लायी जा सकती है। हकीक पत्थर को पूजा स्थान में स्थापित कर दे। ह्रीं बीज लिखे हुए पात्र को धो ले।

         आपकी साधना सफल हो और माँ भगवती आप पर कृपालु हो! मैं सद्गगुरुदेव भगवानजी से ऐसी ही प्रार्थना करता हूँ!

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश ।।।


1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

आपकी जानकारी सराहनीय है। जानकारी देने के लिए ह्रदय से आभार