शनिवार, 3 फ़रवरी 2018

चन्द्रमौलिश्वर साधना

चन्द्रमौलिश्वर साधना

            महाशिवरात्रि पर्व निकट ही है। यह इस बार १३ फरवरी २०१८ को आ रहा है। आप सभी को महागशिवरात्रि महापर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ! 

          मानव जीवन स्वतन्त्र नहीं है, क्योंकि उसका प्रत्येक कार्य ग्रहों से संचालित होता है। इसी कारणवश जब ग्रहों का विपरीत असर मानव पर पड़ता है तो उसे ज़रूरत से ज्यादा कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जिसके फलस्वरूप उसे विभिन्न प्रकार के कष्ट और दुःख भोगने पड़ते हैं।

          सम्पूर्ण जगत कुछ नियमों-उपनियमों से बँधा है। प्रत्येक मनुष्य के जीवन में जो कुछ भी घटित होता है, उन पर ग्रहों का प्रभाव निश्चित रूप से पड़ता ही है तथा पृथ्वी पर रहने वाली प्रत्येक वस्तु के साथ जो आकर्षण-विकर्षण ग्रहों के प्रभाव से बनता है, उसके प्रभाव से कोई बच नहीं सकता। यही कारण है कि मनुष्य चाहकर भी उन्नति की मंज़िल पर यदि बढ़ता है तो कुछ क्रूर ग्रह और पापी ग्रह उसकी कामयाबी के रास्ते का रोड़ा बन जाते हैं। अतः जीवन में यदि ग्रहों की दशा अच्छी रहती है तो हमारी कामयाबी भी हमारे साथ होती है।

          इसमें कोई दो राय नहीं कि मानव जीवन और भाग्य पर ग्रहों का प्रभाव बराबर रहता है। कई बार तो ऐसा होता है कि हम प्रयत्न करते हैं और जब सफलता हमसे दो-चार हाथ दूर रह जाती है, तो सारे किये-कराये काम पर पानी फिर जाता है। आपने कई बार यह अनुभव किया होगा कि प्रयत्न करने पर भी व्यापार में सफलता नहीं मिल पा रही है या जिस प्रकार से बिक्री बढ़नी चाहिए, उस प्रकार से नहीं बढ़ पा रही है अथवा घर में जो सुख-शान्ति होनी चाहिए, वह भी नहीं हो पा रही है। इसके अतिरिक्त भी कई छोटी-छोटी समस्याएँ है, जिनसे मानव व्यथित रहता है और प्रयत्न करने पर भी उसे सफलता नहीं मिल पाती।

          यों तो ग्रह किसी को भी नहीं छोड़ते, चाहे वह गरीब हो या अमीर या फिर देवता ही क्यों न हो? ऐसे अनेकों उदाहरण हैं हमारे सामने, जिनसे यह ज्ञात होता है कि ग्रहों का व्यक्ति के जीवन पर कितना अधिक प्रभाव पड़ता है? — श्रीराम को भी शनि की दशा से ग्रस्त होकर महल को छोड़कर वन में चौदह साल तक दर-दर भटकना पड़ा। यह बात और है कि वाल्मीकि ने भक्ति भाव पूर्वक उस वनवास को कुछ और नाम दे दिया, किन्तु सत्य यही है कि राम को भी जीवन में ग्रहों के दूषित प्रभाव के कारण चौदह साल तक जंगलों में रहकर जीवनयापन करना पड़ा।

          महात्मा बुद्ध को भी मंगल एवं राहु के दूषित प्रभाव से ग्रसित होकर अपना राजपाट छोड़कर उन सबसे संन्यास लेना पड़ा और राजा हरिशचन्द्र को भी शनि की साढ़े साती के प्रभाव के कारण अपना राज्य त्याग कर श्मशान में रहना पड़ा। यही नहीं अपितु उसके जीवन में एक समय ऐसा भी आया, जब वह अपने पुत्र की लाश पर कफ़न भी न डाल सका। इस प्रकार की अनेकों घटनाएँ हैं, जिनसे यह सिद्ध होता है कि इतने बड़े-बड़े महापुरुष भी ग्रहों के दूषित प्रभावों से बच नहीं पाए, भले ही इन घटनाओं को समाज में कोई और रूप दे दिया गया हो, किन्तु सत्य यही है कि ग्रहों के प्रभाव से ही उनकी यह गति हुई।

          ग्रहाधीनं जगत् सर्वम्” अर्थात् यह सारा संसार ग्रहों के अधीन है। क्योंकि वायुमण्डल में विचरण करने वाले ग्रह मात्र भ्रमणशील ग्रह नहीं है, अपितु उनका प्रभाव निश्चित रूप से मानव जीवन पर पड़ता ही है और जब इन ग्रहों का प्रभाव विपरीत होता है तो विभिन्न प्रकार की समस्याएँ खुद-ब-खुद मनुष्य के सामने आकर खड़ी हो जाती है।

          ग्रह नौ प्रकार के होते हैं --- सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु। यों तो आकाश में सैकड़ों ग्रह है, किन्तु मुख्य ग्रह नौ ही माने जाते हैं, जिनका प्रभाव जाने-अनजाने, चाहे-अनचाहे हमारे ऊपर पड़ता ही रहता है और इन्हीं ग्रहों के प्रभाव से हमें अपने जीवन में सफलता-असफलता मिलती रहती है। हर ग्रह का मानव जीवन पर अपना अलग-अलग प्रभाव पड़ता है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य को कई समस्याओं का सामना करना पड़ जाता है। इन नौ ग्रहों में भी पाँच ग्रह ऐसे हैं, जिनका प्रभाव प्रायः व्यक्ति पर देखने को मिलता ही है।

१. सूर्य — यदि सूर्य की दशा व्यक्ति को विपरीत फल दे तो उसे समाज में बदनामी, विश्वासघात एवं कष्टदायक जीवन बिताते हुए असफलताओं का शिकार होना पड़ता है।

२. मंगल — यदि मंगल की दशा अच्छी न हो तो व्यक्ति का जीवन कई प्रकार की उलझनों से ग्रस्त रहता है, जिससे उसे जीवन भर तनाव बना रहता है। यह ग्रह व्यक्ति को चोर या हत्यारा आदि भी बना देता है और जेल यात्रा करवाता है।

३. शुक्र — स्वप्न दोष, विवाह बाधा आदि इस ग्रह बाधा के कारण ही होता है।

४. शनि — शनि की दशा व्यक्ति को एक-एक पैसे का मोहताज बना देती है, जिसके कारण व्यक्ति का जीवन दरिद्रता और गरीबी में बीतने लगता है तथा वह शारीरिक, आर्थिक एवं मानसिक तनावों से ग्रस्त होकर मृत्यु तक को प्राप्त हो जाता है। इसके लिए एक्सीडेण्ट, राज्य छीन जाना, कोर्ट-कचहरी, डॉक्टरों आदि के चक्कर लगना, यह सब परेशानियाँ इस ग्रह बाधा के कारण ही मानव को झेलनी पड़ती है।

५. राहु — इस ग्रह दोष के कारण गृह कलह, आपसी मनमुटाव आदि अनेक प्रकार की समस्याओं से मनुष्य हर पल घिरा रहता है।

          इस प्रकार अन्य ग्रह भी अपना दूषित प्रभाव मानव जीवन पर डालते रहते हैं, जिनके चंगुल से बच निकलना एक मानव के लिए दुष्कर कार्य प्रतीत होता है। कईं व्यक्ति ढोंगी पण्डित-पुरोहितों के चंगुल में  फँसकर उपरोक्त समस्याओं को निवारण हेतु उनके द्वारा बताए गए उपायों को आजमाते हैं, परन्तु उनसे उन्हें कोई लाभ नहीं मिल पाता। अपने कार्यों की सिद्धि एवं सफलता के लिए वे उनसे कई प्रकार के छोटे-मोटे अनुष्ठान-प्रयोग भी  करवाते हैं, किन्तु फिर भी उसका अनुकूल फल उन्हें प्राप्त नहीं होता, तब उनका देवताओं आदि पर से विश्वास उठने लगता है। क्योंकि वे उन समस्याओं एवं परेशानियों का कारण नहीं जान पाते, जबकि इन आपदाओं-विपदाओं का मूल कारण “ग्रह बाधा” ही है।

          कुछ व्यक्ति ग्रह बाधा निवारण के लिए छोटे-मोटे टोने-टोटके, मन्त्र, अनुष्ठान भी करते रहते हैं, किन्तु उनसे समस्त ग्रह दोषों के मुक्ति नहीं प्राप्त हो सकती, वह तो भगवान चन्द्रमौलिश्वर की साधना-उपासना करने पर ही सम्भव है। यदि व्यक्ति अपने जीवन की समस्त बाधाओं, उलझनों एवं परेशानियों से छुटकारा पाना चाहता है, यदि वह जीवन में पूर्णतः सुखी एवं समृद्ध होना चाहता है, यदि वह समस्त ग्रह बाधा से मुक्ति पाना चाहता है तो उसे यह साधना अवश्य ही सम्पन्न करना चाहिए, वरन् आज जो आपके पास है वह भी बचा रहे, यह कोई ज़रूरी नहीं।

          वेदों, शास्त्रों, पुराणों आदि में भगवान शिव को ही चन्द्रमौलिश्वर कहा गया है -----

चन्द्रोद्भासितशेखरे स्मरहरे गंगाधरे शंकरे,

सर्पैर्भूषित कण्ठकर्णविवरे नेत्रोत्थ वैश्वानरे।

दन्तित्यक् कृत सुन्दराम्बर धरे त्रैलोक्य सारे हरे,

मोक्षार्थ कुरुचित्तवृत्तिमचलाम् अन्यैस्तु किं कर्मभिः॥

          अर्थात सिर पर अर्द्धचन्द्र को धारण किए हुए भगवान चन्द्रमौलिश्वर, जो कामदेव को भस्म करने वाले है, जिनके मस्तक से गंगा प्रवाहित हो रही है, कण्ठहार के रूप में सर्प को धारण किए हुए हैं, जिनके तृतीय नेत्र से वैश्वानर अग्नि निकल रही है। हस्ति चर्म को सुन्दर वस्त्र को रूप में धारण किए हुए तीनों लोकों में अद्वितीय भगवान शंकर, जो अपने इस रूप-गुण के कारण चन्द्रमौलिश्वर कहे जाते हैं, वे मेरे मन और बुद्धि को मोक्ष मार्ग की ओर प्रेरित करते हुए मेरे समस्त ग्रहजन्य दोषों को दूर करें।

          भगवान शिव अपने “चन्द्रमौलिश्वर” स्वरूप द्वारा ग्रहों के दूषित प्रभावों से व्यक्ति को या साधक को छुटकारा दिलाते हैं, क्योंकि भगवान चन्द्रमौलिश्वर देवाधिपति हैं, तन्त्रेश्वर हैं। अतः समस्त मन्त्र-तन्त्र भी उनके अधीन हैं। ऐसे भगवान चन्द्रमौलिश्वर की साधना तो प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में एक बार अवश्य ही सम्पन्न करनी चाहिए। इस साधना के बल पर वह व्यक्ति अपने जीवन में समस्त नीच ग्रहों के दूषित प्रभावों से मुक्ति प्राप्त कर उन ग्रहों को अपने अनुकूल बनाने में सफल हो जाता है और तब उसे जीवन में कभी भी किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं भोगना पड़ता।

          ग्रहों की दशा यदि सही रहे तो व्यक्ति के जीवन में उन्नति के स्रोत हमेशा के लिए खुले रहते हैं और वह कामयाबी की मंज़िल की ओर बढ़ते हुए अपने जीवन में पूर्ण सुखी एवं सम्पन्न हो जाता है। क्योंकि इस साधना-शक्ति के द्वारा वह एकबारगी ही अपनी समस्त परेशानियों एवं बाधाओं से मुक्ति पा लेता है।

साधना विधान :-----------

          रात्रिकालीन इस साधना में बैठने से पहले साधक स्नानादि करके पूर्णतया शुद्ध होकर पीली धोती धारण कर लें, ऊपर गुरु चादर ओढ़ लें तथा अपने सामने किसी लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछा दें। फिर आसन पर शान्तचित्त और दत्तचित्त होकर बैठ जाएं।

          इसके पश्चात तीन बार “ॐ” की ध्वनि का उच्चारण करें। फिर पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का ध्यान करें और गुरुमन्त्र का कम से कम चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से चन्द्रमौलिश्वर साधना सम्पन्न करने हेतु मानसिक रूप से आज्ञा लें और प्रार्थना करें कि मुझे समस्त परेशानियों से मुक्ति प्राप्त हो, ऐसा कहकर उनसे आशीर्वाद ग्रहण करें।

          इसके बाद भगवान गणपतिजी का स्मरण कर एक माला ॐ वक्रतुण्डाय हुं मन्त्र की जाप करें और गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता एवं सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          तत्पश्चात किसी ताम्रपात्र में कुमकुम से  लिखकर उसके ऊपर शुद्ध पारद शिवलिंग स्थापित कर दें और शिवलिंग के समक्ष एक पञ्चमुखी रुद्राक्ष भी स्थापित कर दें। फिर शिवलिंग का सामान्य पूजन करें और  ॐ नमः शिवाय मन्त्र की एक माला जाप  करें। 

          फिर पञ्चमुखी रुद्राक्ष पर कुंकुंम का तिलक लगाकर “ॐ चन्द्रमौलिश्वराय नमः” मन्त्र बोलते हुए उस पर ११ बार थोड़े-थोड़े चावल चढ़ाएं तथा ११-११ बार इसी मन्त्र का उच्चारण करते हुए क्रमशः काले तिल, काली सरसों, काली मिर्च अलग-अलग चढ़ाएं।

          साधना में धूप या अगरबत्ती जलाकर सरसों या तिल के तेल का दीपक अवश्य जलाएं। ध्यान रहे कि पूरे साधना काल में दीपक प्रज्ज्वलित रहे।

          फिर साधक मन ही मन भगवान शिव के चन्द्रमौलिश्वर स्वरूप को प्रणाम (नमस्कार) कर रुद्राक्ष माला से निम्न मन्त्र का ९ माला जाप करें -----

मन्त्र :-----------

ॐ शं चं चन्द्रमौलिश्वराय नमः

OM SHAM CHAM CHANDRAMOULISHWARAAAY NAMAH.

          जाप समाप्ति के बाद समस्त जाप एक आचमनी जल छोड़कर भगवान चन्द्रमौलिश्वर की ही समर्पित कर दें और गुरु आरती करें।

          फिर चैतन्य रुद्राक्ष पर चढ़ाई गई सामग्री को रात्रि के समय ही पूरे घर व दुकान तथा जो भी आपके आवासीय या व्यापारिक संस्थान हैं, सब जगह छिड़क दें, जिससे दुष्ट ग्रहों का प्रभाव दूर हो सके तथा भविष्य में भी उन ग्रह दोषों का प्रभाव न हो।

          इसके पश्चात रुद्राक्ष तथा माला को किसी नदी या तालाब में विसर्जित कर दें।

          यह साधना पूर्ण सफलतादायक है, जिसे पूर्ण श्रद्धा और लगन से करने की आवश्यकता है, तभी साधक को इससे निश्चित लाभ की प्राप्ति सम्भव है।

          आपकी साधना सफल हो और यह महाशिवरात्रि आपके लिए मंगलमय हो। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।


          इसी कामना के साथ 
ॐ नमो आदेश निखिलजी को आदेश आदेश आदेश।।।


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