शुक्रवार, 5 जनवरी 2018

मकर संक्रान्ति और दरिद्रता नाशक सूर्य प्रयोग

मकर संक्रान्ति और दरिद्रता नाशक सूर्य प्रयोग



               मकर संक्रान्ति पर्व समीप ही है। यह १४ जनवरी २०१८ को आ रहा है। आप सभी को मकर संक्रान्ति पर्व की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

               हमारे पवित्र पुराणों के अनुसार मकर संक्रान्ति का पर्व ब्रह्माविष्णुमहेशगणेशआद्यशक्ति और सूर्य की आराधना एवं उपासना का पावन व्रत हैजो तन-मन-आत्मा को शक्ति प्रदान करता है। सन्त-महर्षियों के अनुसार इसके प्रभाव से प्राणी की आत्मा शुद्ध होती हैसंकल्प शक्ति बढ़ती हैज्ञान तन्तु विकसित होते हैंमकर संक्रान्ति इसी चेतना को विकसित करने वाला पर्व है। यह सम्पूर्ण भारत वर्ष में किसी न किसी रूप में आयोजित ही होता है।

              पुराणों के अनुसार मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य अपने पुत्र शनि के घर एक महीने के लिए जाते हैंक्योंकि मकर राशि का स्वामी शनि है। हालाँकि ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्य और शनि का तालमेल सम्भव नहींलेकिन इस दिन सूर्य खुद अपने पुत्र के घर जाते हैं। इसलिए पुराणों में यह दिन पिता-पुत्र के सम्बन्धों में निकटता की शुरुआत के रूप में देखा जाता है।

               इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अन्त करके युद्ध समाप्ति की घोषणा की थीउन्होंने सभी असुरों के सिरों को मन्दार पर्वत में दबा दिया था। इसलिए यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।

              एक अन्य पुराण के अनुसार गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद इस दिन गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थीइसलिए मकर संक्रान्ति पर गंगा सागर में मेला लगता है।

              विष्णु धर्मसूत्र में कहा गया है कि पितरों की आत्मा की शान्ति के लिए एवं स्व स्वास्थ्यवर्द्धन तथा सर्वकल्याण के लिए तिल के छः प्रयोग पुण्यदायक एवं फलदायक होते हैं। (१) तिल जल से स्नान करना, (२) तिल दान करना, (३) तिल से बना भोजन करना, (४) जल में तिल अर्पण करना, (५) तिल से आहुति देना, (६) तिल का उबटन लगाना।

               सूर्य के उत्तरायण होने के बाद से देवों की ब्रह्म मुहूर्त उपासना का पुण्यकाल प्रारम्भ हो जाता हैइस काल को ही परा-अपरा विद्या की प्राप्ति का काल कहा जाता हैइसे साधना का सिद्धिकाल भी कहा गया है। इस काल में देव प्रतिष्ठागृह निर्माणयज्ञ कर्म आदि पुनीत कर्म किए जाते हैंमकर संक्रान्ति के एक दिन पूर्व से ही व्रत उपवास में रहकर योग्य को दान देना चाहिए।

               रामायण काल से भारतीय संस्कृति में दैनिक सूर्य पूजा का प्रचलन चला आ रहा है। राम कथा में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा नित्य सूर्य पूजा का उल्लेख मिलता है। रामचरित मानस में ही भगवान श्री राम द्वारा पतंग उड़ाए जाने का भी उल्लेख मिलता है। मकर संक्रान्ति का जिक्र वाल्मिकी रचित रामायण में भी मिलता है।

                राजा भगीरथ सूर्यवंशी थेजिन्होंने भगीरथ तप साधना के परिणाम स्वरूप पापनाशिनी गंगा को पृथ्वी पर लाकर अपने पूर्वजों को मोक्ष प्रदान करवाया था। राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों का गंगाजलअक्षततिल से श्राद्ध तर्पण किया थातब से माघ मकर संक्रान्ति स्नान और मकर संक्रान्ति श्राद्ध तर्पण की प्रथा आज तक प्रचलित है।

                कपिल मुनि के आश्रम पर जिस दिन माँ गंगे का पदार्पण हुआ थावह मकर संक्रान्ति का दिन थापावन गंगा जल के स्पर्श मात्र से राजा भगीरथ के पूर्वजों को स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी। कपिल मुनि ने वरदान देते हुए कहा था --- "मातु गंगे त्रिकाल तक जन-जन का पापहरण करेंगी और भक्तजनों की सात पीढ़ियों को मुक्ति एवं मोक्ष प्रदान करेंगीगंगा जल का स्पर्शपानस्नान और दर्शन सभी पुण्यदायक फल प्रदान करेगा।"

                महाभारत में पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया थाउनका श्राद्ध संस्कार भी सूर्य की उत्तरायण गति में हुआ था। फलतः आज तक पितरों की प्रसन्नता के लिए तिल अर्घ्य एवं जल तर्पण की प्रथा मकर संक्रान्ति के अवसर पर प्रचलित है।

                 सूर्य की सातवीं किरण भारत वर्ष में आध्यात्मिक उन्नति की प्रेरणा देने वाली हैसातवीं किरण का प्रभाव भारत वर्ष में गंगा-जमुना के मध्य अधिक समय तक रहता है। इस भौगोलिक स्थिति के कारण ही हरिद्वार और प्रयाग में माघ मेला अर्थात मकर संक्रान्ति या पूर्ण कुम्भ तथा अर्द्धकुम्भ के विशेष उत्सव का आयोजन होता है।

दरिद्रता नाशक सूर्य प्रयोग

                 मकर संक्रान्ति  पर्व के शुभ एवं पावन अवसर पर आप सभी साधक भाइयों और बहिनों के लिए एक आसान साधना प्रयोग दिया जा रहा है। यह प्रयोग भगवान सूर्यदेव से सम्बन्धित है और अपने आप में यह पूरी तरह दरिद्रता नाशक प्रयोग है। इसे सम्पन्न करने से धनागम के नये स्रोत खुल जाते हैंआर्थिक परेशानियाँ खत्म हो जाती है।  आप भी इस अत्यन्त सरल साधना को सम्पन्न करके अपने जीवन से दरिद्रता नाम के अभिशाप को जड़-मूल मिटा सकते हैं।

               हर साधना धैर्य और विश्वास से किए जाने  पर ही परिणाम देती है। अतः साधना में अति शीघ्रता अच्छी बात नहीं है। ऐसा करके केवल हम अपना समय व्यर्थ ही बर्बाद करते हैंकोई लाभ नहीं उठा पाते हैं। अतः इस उच्चकोटि के प्रयोग को आप पूर्ण धैर्य और विश्वास के साथ करेआपको अवश्य ही लाभ होगा।

साधना विधान :----------

              यह साधना आप मकर सक्रान्ति के दिन से शुरू करें। यदि आप इस दिन शुरु न  कर पाए तो आप किसी भी रविवार को आरम्भ कर सकते हैं।

              प्रतिदिन एक ताम्रपात्र में पुष्पअक्षतचन्दन मिलाकर नीमवृक्ष की जड़ में चढ़ाएं और वहीं खड़े होकर सर्वप्रथम सूर्य गायत्री मन्त्र का १०८ बार पाठ करें।

सूर्य गायत्री :----------

।।ॐ आदित्याय विद्महे भास्कराय धीमहि तन्नो भानुहु प्रचोदयात् ।।

OM  AADITYAAY  VIDMAHE  BHAASKSRAAY  DHEEMAHI  TANNO  BHAANUHU  PRACHODAYAAT.

             इसके बाद निम्न सूर्य स्तवन का ११ बार पाठ करें-----

ॐ नमः सहस्त्र बाहवे आदित्याय नमो नमः।
नमस्ते पद्महस्ताय वरुणाय नमो नमः।।१।।
नमस्तिमिरनाशाय श्री सूर्याय नमो नमः।
नमः सहस्त्रजिह्वाय भानवे च नमो नमः।।२।।
त्वं च ब्रह्मा त्वं च विष्णु रुद्रस्त्वं च नमो नमः।
त्वमग्निसर्वभूतेषु वायुस्त्वं च नमो नमः।।३।।।
सर्वगः सर्वभूतेषु न हि किंचित् त्वयं विना।
चराचरे जगतस्मिन सर्वदेहे व्यवस्थितः।।४।।

            इसके पश्चात पुनः सूर्य गायत्री मन्त्र का १०८ बार पाठ करें ------

।।ॐ आदित्याय विद्महे भास्कराय धीमहि तन्नो भानुहु प्रचोदयात् ।।

          यह साधना ४५ दिनों तक निरन्तर करते रहें।

          इस साधना से जन्म जन्मान्तर की दरिद्रता का नाश हो जाता है।

          इस साधना में कोई नियम या वस्त्रमालाआसन का बन्धन नहीं है।

         आपकी साधना सफल हों और मनोकामना पूर्ण हो। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

        आज के लिए बस इतना ही।


ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश।।

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