नववर्ष २०१८ समीप ही है। एक साधक को चाहिए कि वह नववर्ष का आरम्भ पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी द्वारा बताए गए साधनात्मक तरीके से करे, जिससे कि सम्पूर्ण नववर्ष उसके और उसके परिवार के लिए सौभाग्यदायक, समृद्धिदायक और आरोग्यदायक हो। आप सभी को नववर्ष २०१८ की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ।
वह दिन जब
हम जीवन का प्रारम्भ करते हैं, हम सभी के लिए नववर्ष कहलाता है। मान्यताओं, संस्कारों और
तथ्यों के आधार पर एक सामान्य वर्ष में कई बार नववर्ष मनाया जाता है, जैसे नवरात्रि को
हिन्दू संस्कृति का तो भिन्न-भिन्न प्रान्तों के अपने नववर्ष होते हैं तो स्वयं का
जन्मदिन भी व्यक्ति विशेष के लिए नववर्ष ही होता है और मानव चिन्तन सदैव इस ओर रहा
है कि कैसे हम अपने मनोवांछित को प्राप्त कर न्यूनताओं को समाप्त कर सके और सार्थक
कर सके अपना नववर्ष।
सदगुरुदेव
हमेशा नववर्ष के अवसर पर साधकों को विलक्षणता प्रदान करने वाले नवीन तथ्यों से
परिचित तो करवाते ही थे, साथ ही साथ
दिव्यपात श्रेणी की विभिन्न दीक्षाओं को भी उन्होंने देना प्रारम्भ किया था, जिससे साधक
सामान्य न होकर अद्भुत हो जाए। परन्तु १९९८ के बाद वे सारे क्रम ही लुप्त हो गए और
अन्य कोई उन तथ्यों को समझा पाए, ऐसा सम्भव ही नहीं था। हमारे विभिन्न ज्ञात और लुप्त तन्त्र
ग्रन्थ प्रमाण हैं
उन उच्चस्तरीय साधनाओं के‚ जिनका प्रयोग कर साधक अपनी जीवन शैली में आमूलचूल परिवर्तन
कर सकता है और वर्ष भर के लिए श्रेष्ठता तो प्राप्त कर ही सकता है। ऐसा ही एक
ग्रन्थ है “गुह्य रहस्य
पद्धति” जो पूरी तरह दिनों, महीनों और वर्षों
को अनुकूल बनाने तथा गतिमान वर्ष, माह एवं दिवस के अधिष्ठाता ग्रह, देवशक्ति, मातृका और मुन्था
को वश में करके स्वयं का भाग्य लेखन करने की गुह्यतम पद्धति पर आधारित है। पूरा ग्रन्थ ही २२८ प्रयोगों से युक्त है, भिन्न-भिन्न
दिवसों और माहों के अपने-अपने प्रयोग हैं। परन्तु उन सब में जो सभी के लिए
प्रभावकारी पद्धति है, उसी का विवेचन मैं इस लेख में कर रहा हूँ।
इस प्रयोग
को दो तरीकों से किया जा सकता है –
१. या तो जब सामूहिक मान्यताओं के आधार पर नववर्ष प्राम्भ हो तब।
२. या जब साधक का जन्मदिवस हो या उसकी पारिवारिक या धार्मिक
मान्यताओं के आधार पर जब नववर्ष प्रारम्भ होता हो।
चाहे आप
किसी भी क्रम को मानते हो,
तब भी आप दो
तरीके से इस प्रयोग को कर सकते हैं –
१. या तो सूर्योदय के समय का आश्रय लेकर साधना की जाए।
२. या फिर जिस समय साधक का जन्म हुआ हो, उस समय पर इसे सम्पन्न किया जाए। भले ही आप १ जनवरी को इसका प्रयोग कर रहे हो, परन्तु तब भी आप
इसे इन दोनों में से किसी भी समय पर कर सकते हैं, अर्थात मान लीजिए कि किसी का जन्म २४ अगस्त को
रात्रि में ९.३५ पर हुआ है,
तब ऐसे में साधक
१ जनवरी को ही या तो सूर्योदय के समय इस साधना को कर सकता है या फिर रात्रि में
९.३५ पर। दोनों ही समय प्रभावकारी हैं और इसमें कोई दोष नहीं है।
आप चाहे
आत्मविश्वास की मजबूती चाहते हों या फिर रोजगार की प्राप्ति या वृद्धि, सम्मान चाहते हों या फिर सन्तान-सुख या सन्तान या परिवार का आरोग्य, आर्थिक उन्नति
चाहते हों या कार्य में
सफलता, जीवन में प्रेम
की अभिलाषा हो या फिर विदेश यात्रा का स्वयं के भाग्य में अंकन, यह प्रयोग सभी अभिलाषाओं की पूर्ति करता है।
गुरु
मन्त्र की १६ माला अनिवार्य हैं, उन्हीं क्षणों
में साधक के द्वारा इस प्रयोग को करने से पहले, तभी यह प्रयोग
पूर्णता प्रदान करता है।
साधना विधान :-----------
आप अपनी
मान्यताओं के आधार पर जिस भी नववर्ष के प्रारम्भ में इस साधना को करना चाहे, उस सुबह सूर्योदय
के पहले उठकर स्नान कर ले और श्वेत वस्त्र धारण कर भगवान सूर्य को अर्घ्य प्रदान
करे। अर्घ्य पात्र में जल भर कर और उसको पहले सामने रखकर २१-२१ बार निम्न मन्त्रों
से अभिमन्त्रित कर लें –
ॐ
आदित्याय नमः।
ॐ
मित्राय नमः।
ॐ
भाष्कराय नमः।
ॐ
रवये नमः।
ॐ
खगाय नमः।
ॐ
पूषाय नमः।
ॐ
ग्रहाधिपत्ये नमः।
इसके बाद
ही उस जल से अर्घ्य प्रदान करें। तत्पश्चात साधना कक्ष में स्वयं या परिवार के साथ
बैठकर सदगुरुदेव और भगवान गणपति का पूजन करें।
आज जिस
गुरु ध्यान मन्त्र का प्रयोग होता है, वह भी इस अवसर विशेष के साथ योगित है। सद्गुरुदेव पूजन से पूर्व निम्न ध्यान मन्त्र का ७ बार
उच्चारण करें –
अज्ञान
तिमिरान्धस्य ज्ञानांजनशलाकया।
चक्षुरुन्मीलितं
येन तस्मै श्री गुरुवै नमः।।
तत्पश्चात
पंचोपचार विधान या सुविधाजनक रूप से पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का पूजन करें, फिर १६ माला गुरुमन्त्र
की जाप करें। इसके बाद सद्गुरुदेवजी से आदित्य भैरव सायुज्य कृत्या साधना सम्पन्न की आज्ञा लें। फिर उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता एवं संवत्सर की शुभता के लिए प्रार्थना करें।
तदुपरान्त भगवान गणपति का सामान्य पूजन करें और एक माला किसी भी गणपति मन्त्र का जाप करें। फिर भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।
इसके बाद
उनकी साक्षी में ही हाथ में जल लेकर
उपरोक्त साधना में सफलता की प्रार्थना करें और संकल्प लें।
यदि आप परिवार के
साथ पूजन कर रहे हैं तब भी और यदि आप अकेले पूजन कर रहे हैं तब भी किसी भी
पारिवारिक सदस्य या आत्मीय के नाम से संकल्प ले सकते हैं।
जितने
सदस्य यह प्रयोग कर रहे हैं उन सभी के लिए एक-एक घृत का दीपक लगेगा। जिस बाजोट पर
गुरु यन्त्र या चित्र रखा हो, उस बाजोट पर श्वेत वस्त्र बिछाना है और सदगुरुदेव के चित्र
के सामने “आदित्य
भैरव यन्त्र” का निर्माण अष्टगन्ध से करना है और जहाँ पर ५ लिखा है‚ वहाँ पर घी का
दीपक जलाना है। फिर उस यन्त्र और दीपक का पंचोपचार पूजन कर खीर का भोग लगाना है।
यदि आप अपने
परिवार के अन्य सदस्यों या अपने आत्मीयों को भी इसका प्रभाव देना चाहते हों तो यन्त्र के चारों ओर १ व्यक्ति के लिए १ दीपक घी का
प्रज्वलित कर सकते हैं और स्वयं की ११ माला की समाप्ति पर प्रत्येक व्यक्ति की तरफ
से ३-३ माला उनके नाम का संकल्प लेकर जाप कर सकते हैं।
माला गुरु रहस्य माला या स्फटिक, रुद्राक्ष या
सफ़ेद हकीक की हो सकती है। अन्य मालाओं में मूँगा या शक्ति माला का चयन भी किया जा
सकता है। पूर्ण एकाग्र भाव से निम्न मन्त्र की ११ (ग्यारह) माला जाप करना है -----
मन्त्र :---------
।। ॐ
ह्रीं श्रीं आदित्य भैरवाय सौभाग्यं प्रसीद प्रसीद ह्रीं ह्रीं कृत्याय श्रीं
ह्रीं ॐ।।
OM
HEENG SHREEM AADITYA BHAIRVAAY SOUBHAGYAM PRASEED PRASEED HREENG HREENG
KRITYAAY SHREEM HREENG OM.
मन्त्र जाप के उपरान्त
समस्त जाप एक आचमनी जल छोड़कर भगवान भैरवनाथजी को समर्पित कर दें। तत्पश्चात गुरु आरती सम्पन्न कर उस खीर के भोग को सपरिवार ग्रहण किया
जा सकता है।
इस प्रकार यह साधना विधान
एक दिवसीय ही है,
किन्तु
आप चाहें तो इसे कम से कम ११ दिन तक सम्पन्न कर सकते हैं।
नवीन संवत्सर की उपलब्धियों
को आप अपने जीवन में स्वतः ही देखेंगे।
इस प्रयोग
के द्वारा आप सभी को अपने अभीष्ट की प्राप्ति हो और आपकी अशुभता एवं दुर्भाग्य की
समाप्ति होकर न्यूनताओं का नाश हो। साथ ही नववर्ष आपके लिए मंगलमय हो। ऐसी ही मैं
सद्गुरुदेव भगवान श्रीनिखिलेश्वरानन्दजी से प्रार्थना करता हूँ।
इसी कामना के साथ
ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश ॥
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