बुधवार, 10 जनवरी 2018

बन्धन-मुक्ति साबर मातंगी साधना

बन्धन-मुक्ति साबर मातंगी साधना

          माघ मासान्तर्गत आनेवाली गुप्त नवरात्रि निकट ही है। यह नवरात्रि १७ जनवरी २०१८ से शुरू हो रही है। आप सभी को गुप्त नवरात्रि की अग्रिम रूप से बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ!

          सामान्यत: लोग वर्ष में पड़ने वाले केवल दो नवरात्रियों के बारे में ही जानते हैं  “चैत्र” या “वासन्तिक नवरात्रि” एवं “आश्विन” या “शारदीय नवरात्रि” जबकि इसके अतिरिक्त दो और नवरात्रि भी होती हैंजिनमें विशेष कामनाओं की सिद्धि की जाती है। कम लोगों को इसका ज्ञान होने के कारण या इसके छिपे हुए होने के कारण ही इसको “गुप्त नवरात्रि” कहते हैं। वर्ष में दो बार गुप्त नवरात्रि आती हैं — माघ मास के शुक्ल पक्ष व आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में। इस प्रकार कुल मिला कर वर्ष में चार नवरात्रि होती हैं। यह चारों ही नवरात्रियाँ ऋतु परिवर्तन के समय मनाये जाती हैं। इस विशेष अवसर पर अपनी विभिन्न मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए पूजा-पाठ आदि किये जाते हैं।

          गुप्त नवरात्रियों का बड़ा ही महत्त्व बताया गया है। गुप्त नवरात्रि मनाने और इनकी साधना का विधान “देवी भागवत” एवं अन्य धार्मिक ग्रन्थों में मिलता है। श्रृंगी ऋषि ने गुप्त नवरात्रियों के महत्त्व को बतलाते हुए कहा है कि “जिस प्रकार वासन्तिक नवरात्रि में भगवान विष्णु की पूजा और शारदीय नवरात्रि में देवी शक्ति की नौ देवियों की पूजा की प्रधानता रहती हैउसी प्रकार गुप्त नवरात्रियाँ दस महाविद्याओं की होती हैं। यदि कोई इन महाविद्याओं के रूप में शक्ति की उपासना करें तो जीवन धन-धान्यराज्य सत्ता और ऐश्वर्य से भर जाता है।”

          मानव के समस्त रोगदोष एवं कष्टों के निवारण के लिए गुप्त नवरात्रि से बढ़कर कोई साधना काल नहीं हैं। श्रीवर्चस्वआयुआरोग्य और धन प्राप्ति के साथ ही शत्रु संहार के लिए गुप्त नवरात्रि में अनेक प्रकार के अनुष्ठान व व्रत-उपवास के विधान शास्त्रों में मिलते हैं। इन अनुष्ठानों के प्रभाव से मानव को सहज ही सुख व अक्षय ऎश्वर्य की प्राप्ति होती है।

          दुर्गावरिवस्या” नामक ग्रन्थ में तो स्पष्ट लिखा है कि साल में दो बार आने वाली गुप्त नवरात्रियों में भी माघ में पड़ने वाली गुप्त नवरात्रि मानव को न केवल आध्यात्मिक बल ही प्रदान करती हैंबल्कि इन दिनों में संयम-नियम व श्रद्धा के साथ माता दुर्गा की उपासना करने वाले व्यक्ति को अनेक सुख व साम्राज्य भी प्राप्त होते हैं। “शिवसंहिता” के अनुसार ये नवरात्रियाँ भगवान शंकर और आदिशक्ति माँ पार्वती की उपासना के लिए भी श्रेष्ठ हैं। गुप्त नवरात्रियों को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने से कई बाधाएँ समाप्त हो जाती हैंजैसे - विवाह बाधातन्त्र बाधाग्रह दोष आदि।

          सतयुग में चैत्र नवरात्रित्रेता में आषाढ़ नवरात्रिद्वापर में माघ नवरात्रि और कलयुग में आश्विन नवरात्रि की साधना-उपासना का विशेष महत्व रहता है। ऐसी मान्यता है कि यदि कोई नास्तिक भी परिहासवश इस समय मन्त्र साधना कर ले तो उसे भी फल सफलता के रूप में अवश्य ही मिलता है। यही इस गुप्त नवरात्रि की महिमा है। “मार्कण्डेय पुराण” में इन चारों नवरात्रियों में शक्ति के साथ-साथ इष्ट की आराधना का भी विशेष महत्व बतलाया गया है।

          गुप्त नवरात्रि के पावन अवसर पर साधक भाई-बहिनों के लिए साबर बन्धन-मुक्ति मातंगी साधना प्रस्तुत की जा रही है। वास्तव में यह साधना साधक को सभी प्रकार के बन्धनों से मुक्त करती है। चाहे वह गृह बन्धन हो या तन्त्र बन्धन हो या ग्रह दोष हो या पितृदोष हो या किसी भी प्रकार का कार्य बन्धन आदि हो तो इस साधना को करने से वह बन्धन तो दूर होता ही है, साथ ही किसी तान्त्रिक द्वारा किया गया बन्धन भी हट जाता है और साधक सुख-शान्ति की अनुभूति करता है।

           यह साधना बहुत ही तीक्ष्ण है। इसे बहुत सारे साधकों ने परखा है। यह मेरी स्वयं की अनुभूत की हुई साधना है। इस साधना के बहुत सारे लाभ हैं। यह आपके जीवन में आने वाली विकट परिस्थितियों को भी आपके अनुकूल कर देती है। पितृ-बाधा से मुक्ति दिलाती हैग्रह-बाधा को शान्त करती हैकई बार तो साधना करते-करते पितृ-आत्माओं से साक्षात्कार भी हो जाता है और कई बार उनकी अगर कोई इच्छा अधूरी रह गई हो तो वे स्वप्न या किसी भी माध्यम से बता देते हैं। कई साधकों को तो इससे मातंगी का प्रत्यक्ष दर्शन भी हुआ है। यह आपकी निष्ठा पर निर्भर करता है। इससे रुके हुए काम स्वयं चलने लग जाते हैं। आमदनी के नए आयाम शुरू हो जाते हैं।

साधना विधि :----------

          इसे नवरात्रि में किया जाए तो ज्यादा उचित है। फिर भी आप किसी भी शुक्लपक्ष की प्रथम तिथि से शुरू करके पूर्णिमा तक कर सकते हैं। आप सर्वप्रथम स्नान आदि से निवृत्त होकर शुद्ध  लाल वस्त्र पहनकर लाल आसन पर बैठ जाएं। अपने सामने बाजोट पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर अक्षत की एक ढेरी बनाएं। अब शुद्ध घी की ज्योत (दीपक) जलाकर अक्षत की ढेरी पर स्थापित कर दें। इस ज्योत को ही माँ मातंगी मानकर पूजन करना है। इसके साथ ही पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का चित्र भी स्थापित करे। अब आप शुद्ध घी का दीपक जला लें और साथ ही धूप-अगरबत्ती लगा दें।

          इसके बाद आप गुरु पूजन करें। मातंगी साबर मन्त्र को किसी कागज़ पर लिख कर गुरु चरणों में अर्पित करें और सामान्य गुरुपूजन सम्पन्न कर गुरुमन्त्र का चार माला जाप करें। फिर सद्गुरुदेवजी से मन्त्र प्रदान करने की प्रार्थना कर मातंगी साबर मन्त्र ग्रहण करें और तीन बार मन्त्र का उच्चारण करें। इस प्रकार मन्त्र दीक्षा हो जाती है।

          फिर आप भगवान श्री गणेशजी का स्मरण कर भोग के लिए दो लड्डू ज्योत के पास रखें और एक पात्र में जल भी रख दें। अब किसी भी गणेश मन्त्र का एक माला जाप कर गणेशजी से साधना की सफलता के लिए प्रार्थना करें।

          इसके बाद आपने जो ज्योत (घी का दीपक) स्थापित की हैउसको माँ मातंगी मानकर सामान्य पूजा करें। भोग में आप शुद्ध मिठाई भी अर्पित कर सकते हैं। यदि ऐसा सम्भव ना हो तो किसी भी माता के मन्दिर में जाकर जाप कर सकते हैं। वहाँ ज्योत में घी डाल सकते हैं।

          आप चाहे तो “मातंगी यन्त्र” को भी अपने सामने स्थापित कर सकते हैं। यन्त्र का पूजन पञ्चोपचार से कर लें। सर्वप्रथम यन्त्र को दूध से स्नान करा लें। फिर शुद्ध जल से स्नान कराएं और कपड़े से साफ कर बाजोट पर लाल रंग का वस्त्र बिछा कर उस पर यन्त्र की स्थापना करें। यन्त्र का पूजन कुंकुंमफूलधूपदीपनैवेद्य के लिए मिठाई और फल से करें।

          फिर निम्न मन्त्र का ज्योत के सामने मात्र १०८ बार मन्त्र जाप कर लें। आप चाहें तो ३२४ बार (तीन माला) भी जाप कर सकते हैंवह आपकी इच्छा पर निर्भर है।

साबर मन्त्र :----------

॥ ॐ नमोस्तुते भगवते पार्श्व चन्द्राधरेन्द्र पद्मावती सहिताये मे अभीष्ट सिद्धिदुष्ट ग्रह भस्म भक्ष्यम् स्वाहास्वामी प्रसादे कुरू कुरू स्वाहाहिल हिली मातंगनी स्वाहास्वामी प्रसादे कुरू कुरू स्वाहा ॥

OM NAMOSTUTE BHAGWATE PAARSHWA CHANDRADHARENDRA PADMAVATI SAHITAAYE ME ABHISHTA SIDDHI, DUSHTA GRAH BHASMA BHAKSHYAM SWAAHA, SWAMI PRASAADE KURU KURU SWAAHA, HIL HILI MATANGANI SWAAHA, SWAMI PRASAADE KURU KURU SWAAHA.

          नवरात्रि में नौ दिन जाप करना है और अन्य दिनों में पन्द्रह दिनों तक जाप करना है।

          साधना समाप्ति पर हवन सामग्री में घी और शक्कर मिला कर हवन करना है। पूर्णिमा को हवन के लिए आम की लकड़ी जलाकर १०८ आहुति डालें और नवरात्रि में सम्पन्न करने वाले साधक नवमी तिथि को हवन कर सकते हैं।

          हवन के लिए किसी पात्र में अग्नि जलाकर घी से प्रथम पाँच आहुति प्रजापति के नाम से डालें और फिर गुरु मन्त्र की आहुति डालें। उसके बाद नवग्रहों के नाम की और अन्त में मातंगी साबर मन्त्र की १०८ आहुति डालें। हवन के बाद एक सूखे नारियल में छेद करके उस में घी डालें और उसे मौली बाँध कर उसका पूर्ण आहुति के रूप में पूजन करें। तिलक आदि लगाएं और खड़े हो कर अपने परिवार के सभी सदस्यों का हाथ लगाकर अग्नि में प्रार्थना करते हुए अर्पित कर दें। फिर जो भी आपने भोग बनाया हैउसे अर्पित करें और गुरु आरती सम्पन्न कर सभी सदस्यों को प्रसाद वितरित करें।

           साधना पूरी होने पर समस्त पूजन सामग्री जलप्रवाह कर दें। माला गले में पहन लें और यन्त्र पूजन-स्थान में स्थापित कर लें।

          आपकी यह साधना सफल हो और माँ भगवती मातंगी आप सबका कल्याण करे। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए कल्याण कामना करता हूँ।

              इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।

 

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