बुधवार, 1 नवंबर 2017

श्री निखिलेश्वरानन्द साबर सिद्धि साधना

श्री निखिलेश्वरानन्द साबर सिद्धि साधना
         
           निखिल संन्यास दिवस निकट ही है। यह इस बार ४ नवम्बर २०१७ को आ रहा है। आप सभी को निखिल संन्यास दिवस की अग्रिम रूप से ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ!

          एक अकेला व्यक्तित्व जो संसार की समस्त साधनाओं और सिद्धियों को समेटे हुए है, जो अपने आप में अप्रतिम, अद्भुत और अनिवर्चनीय है, जिनमें हिमालय की ऊँचाई और सागरवत् गहराई भी है। उच्चकोटि की वैदिक एवं दैविक साधनाओं में जहाँ यह व्यक्तित्व अग्रणी है, वहीं औघड़, श्मशान और साबर साधनाओं में भी अन्यतम है।

          परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्दजी का व्यक्तित्व ऐसा ही अनिन्द्य, अनिवर्चनीय और अद्वितीय है। औघड़ साधनाओं, साबर साधनाओं तथा समस्त साधनाओं के विषय में आज पूरे विश्व में उच्चतम प्रामाणिक व्यक्तित्व माने जाते हैं। साधनाओं के तो वे महारथी हैं।

          संसार की शायद ही ऐसी कोई साधना पद्धति रही होगी, जिनको उन्होंने आत्मसात् न किया हो। साबर साधनाओं के तो वे मसीहा हैं। उन्होंने गुरु गोरखनाथ के स्तर पर खड़े होकर उनके चिन्तन को समझा है तथा उनकी साधना-सम्बन्धी न्यूनताओं को सुधार है, उनको परिमार्जित किया है। उन साधना विधियों को खोज निकाला है, जो अभी तक अपने आप में अगम्य रही है।

          साबर साधनाएँ जीवन की सरल, सहज और महत्वपूर्ण साधनाएँ हैं, जिनमें लम्बे-लम्बे संस्कृत के श्लोक नहीं है, अपितु सरल भाषा में सफलता की शैलियाँ हैं। इस क्षेत्र में भी उन्होंने उन विद्याओं को ढूँढ निकाला है, जो अपने आप में लुप्त हो गई थी, जिनके प्रयास से आज भी ये विद्याएँ जीवित है।

          पूज्यपाद सद्गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्दजी का व्यक्तित्व अपने आप में पूर्णता लिए हुए है। उन्हें इन विद्याओं की पूर्ण प्रामाणिकता के साथ जानकारी है। आज पूरे विश्व में सद्गुरुदेव निखिलेश्वरानन्दजी ही है, जिन्हें लुप्त विद्याओं की प्रामाणिक जानकारी है, वे लुप्त विद्याएँ हैं - परकाया प्रवेश विद्या, हाजी विद्या, काजी विद्या, मदालसा विद्या, वायुगमन सिद्धिकनकधारा सिद्धि, सूर्य विज्ञान, संजीवनी विद्या आदि।

          भारतीय साधना क्षेत्र का मध्यकाल अन्धकार में था। ऐसे अन्धकार के क्षणों में सूर्य की तरह पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का अवतरण हुआ, जिन्होंने खोई हुई साधना-सम्पदा को पुनः भारतीयों को देने का अथक प्रयास किया। उस लुप्त साहित्य से लोगों को परिचित किया और मन्त्र एवं साधना के क्षेत्र में लोगों की आस्था बनी। एक बार पुनः साधना-सम्बन्धी चेतना लोगों में जागृत हुई, पुनः प्रकाश की किरणें इस धरती पर प्रकट हुई। उन साधनाओं को सीखने और समझने की ललक जगी तथा वे साधना पथ की ओर अग्रसर हुए।

साधना विधि :-----------

          साधक को चाहिए कि वह निखिल जयन्ती, निखिल संन्यास दिवस, गुरु पूर्णिमा अथवा किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के गुरुवार को प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पीली धोती पहन लें, पीली गुरु चादर लें। सफ़ेद आसन पर पूर्व की ओर मुँह करके सुखासन या पद्मासन में बैठ जाएं।

          अपने सामने किसी चौकी (बाजोट) पर पीला वस्त्र बिछा लें, उसके ऊपर प्राण-प्रतिष्ठित गुरु चित्र तथा गुरु यन्त्र स्थापित करें। लोबान धूप तथा घी का दीपक जलाकर रख लें।

          सर्वप्रथम भगवान गणपतिजी का स्मरण करके एक माला किसी भी गणपति मन्त्र का जाप करें। फिर भगवान गणपतिजी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें। 

          फिर दोनों हाथ जोड़कर पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का निम्नानुसार ध्यान करें -----

ॐ गुरुर्वै शतां द्वै हिमलेव ध्यानम् प्रज्ञा प्रदम्शे निवेदं च ध्याना।
दैवत्व दर्शन मदैव भवसिन्धु पारं गुरुर्वै कृपात्वं गुरुर्वै कृपात्वं।।

          उसके बाद निम्न मन्त्रों से गुरु चरणों में जल चढ़ावें ----

ॐ भवाय नमः पादो पूजयामि नमः।
ॐ गुरुभ्यो नमः पादो पूजयामि नमः।
ॐ परम गुरुभ्यो नमः पादो पूजयामि नमः।
ॐ परात्पर गुरुभ्यो नमः पादो पूजयामि नमः।
ॐ पारमेष्ठि गुरुभ्यो नमः पादो पूजयामि नमः।
ॐ रुद्राय नमः पादो पूजयामि नमः।
ॐ रिलाय नमः पादो पूजयामि नमः।
ॐ भवाय नमः पादो पूजयामि नमः।
ॐ सर्वाज्ञान हराय नमः पादो पूजयामि नमः।

          फिर यन्त्र और चित्र का गन्ध (कुमकुम या अष्टगन्ध) एवं अक्षत से पूजन कर धूप, दीप तथा नैवेद्य अर्पित करें ---

गन्धम् समर्पयामि श्री गुरुचरण कमलेभ्यो नमः।
अक्षतान् समर्पयामि श्री गुरुचरण कमलेभ्यो नमः।
धूपम् आघ्रापयामि श्री गुरुचरण कमलेभ्यो नमः।
दीपम् दर्शयामि श्री गुरुचरण कमलेभ्यो नमः।
नैवेद्यम् निवेदयामि श्री गुरुचरण कमलेभ्यो नमः।

          इसके बाद दोनों हाथों में पुष्प लेकर पुष्पांजलि समर्पित करें ---

ॐ परमहंसाय विदमहे महातत्पराय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात्।
ॐ महादेवाय विदमहे रुद्रमूर्तये धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्।
ॐ गुरुदेवाय विदमहे परब्रह्माय धीमहि तन्नो गुरुः प्रचोदयात्।
श्री गुरुचरण कमलेभ्यो नमः पुष्पांजलिं समर्पयामि।

          फिर पुनः एक बार हाथ जोड़े और पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी को नमस्कार करें -----

ॐ नमोष्टुग्रवे तस्मै इष्टदेव स्वरूपिणे।
सस्य वाग्मृतं हन्ते विषं संसार संज्ञकाम्।।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवै नमः।।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम् देव देव।।

          सामने चौकी पर जिसमें पीला वस्त्र बिछा हो, उस पर लाल रंग से रँगे हुए चावल से अष्टदल कमल बनाकर ताँबे की प्लेट रखें। उस प्लेट में कुमकुम से स्वस्तिक का निर्माण करें। स्वस्तिक की चारों दिशाओं की चार लाइनों पर चार सुपारी स्थापित करें। यह चार सुपारियाँ चार गुरुत्व शक्ति का प्रतीक हैं। फिर उन चारों का कुमकुम लगाकर पूजन करें, अक्षत और पुष्प भी चढ़ावें। फिर बाँयें हाथ में सरसों के दाने एवं काली मिर्च के दाने मिलाकर चारों सुपारी पर क्रमशः चढ़ावें और निम्न सन्दर्भ का उच्चारण करें -----

ॐ गुरुभ्यो स्वाहा।          (एक सुपारी पर चढ़ावें)
ॐ परम गुरुभ्यो स्वाहा।          (दूसरी सुपारी पर चढ़ावें)
ॐ परात्पर गुरुभ्यो स्वाहा।          (तीसरी सुपारी पर चढ़ावें)
ॐ पारमेष्ठि गुरुभ्यो स्वाहा।          (चौथी सुपारी पर चढ़ावें)

          इसके बाद स्वस्तिक के मध्य में तेल का दीपक जलावें। फिर "रुद्राक्ष माला" से निम्न मन्त्र का ११ माला जाप सम्पन्न करें -----

मूल मन्त्र :-----------

।। ॐ न्रिं निखिलेश्वराय न्रिं हुं जं जं सिद्धये फट् ।।

OM NRIM NIKHILESHWARAAY NRIM HUM JAM JAM SIDDHAYE PHAT.

          मन्त्र जाप समाप्ति के पश्चात पुनः संक्षिप्त गुरुपूजन सम्पन्न करें। फिर समस्त जाप एक आचमनी जल छोड़कर पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी को ही समर्पित कर दें।

          इस प्रकार इस साधना क्रम को नित्य ग्यारह दिनों तक सम्पन्न करना चाहिए।

          साधना समाप्ति के बाद अगले दिन प्रातः माला को गले में पहिन लें। शेष सामग्री को उसी कपड़े में बाँधकर ग्यारह दिनों तक के लिए अपने पूजा स्थान में ही रख दें। बाद में  सभी सामग्री को जल में प्रवाहित कर दें। माला एक वर्ष तक पहिने रहें।

          इस साधना के माध्यम से आपके जीवन में धन-धान्य, यश, मान-प्रतिष्ठा की प्राप्ति, साधनाओं में सफलता तथा पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी के पूर्ण आशीर्वाद की प्राप्ति होगी। इस साधना से परमपूज्य सद्गुरुदेव श्री निखिलेश्वरानन्दजी की दिव्यता और चैतन्यता को आप स्वयं ही अनुभूत कर सकेंगे। यह आपका सौभाग्य होगा।

          आपकी साधना सफल हो और आपको पूज्यपाद सद्गुरुदेवजी का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त हो। मैं सद्गुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानन्दजी से आप सबके लिए ऐसी ही कामना करता हूँ।

          इसी कामना के साथ

ॐ नमो आदेश निखिल को आदेश आदेश आदेश।।।